‘मीडिया‘ या ‘पत्रकारिता‘ को लोकतंत्र का चौथा खम्भा कहा जाता है. इसलिए इसका निष्पक्ष और स्वतंत्र होने निहायत जरुरी है. लोकतंत्र में कई समूह होते है. एक अत्यधिक अमीरों का समूह, जिनमें सत्ता को अपने अनुकूल मोड़ने का क्षमता होता है; दुसरा आम जनता, जो सत्ता तक अपनी बात पहुंचाकर सरकार के नीतियों को अपने पक्ष में करना चाहते है. इस टकराव में मीडिया को स्वतंत्र और निष्पक्ष होकर बात रखना होता है और सच को दुनिया के सामने लाना पड़ता है, जो लोकतान्त्रिक मूल्यों को बढ़ाने में योगदान देता है. पत्रकारिता की यही खासियत बेहतर समाज के निर्माण में मददगार है.
मीडिया या पत्रकारिता क्या है (What is media or journalism in Hindi)?
पत्रकारिता का अर्थ, समाचारों का एकत्रीकरण, प्रस्तुतीकरण और वितरण है. आधुनिक दौर में यह समाजसेवा के जगह एक व्यवसाय का रूप लेता जा रहा है, जो खबरों का कारोबार करता है. इसका काम समाज और दुनिया भर में हो रहे महत्वपूर्ण घटनाक्रमों से हमें सूचित करना है. पत्रकारिता के माध्यम से महत्वपूर्ण घटनाओं का समाज और देश या दुनिया पर होने वाले प्रभावों का विश्लेषण भी किया जाता है. इससे हम किसी घटना के प्रभावों का विस्तृत ज्ञान प्राप्त करते है.
दूसरे शब्दों में, मीडिया का अर्थ उस माध्यम से है जो हम तक खबरों व अन्य समसामयिक जानकारियों व इससे जुड़े अन्य महत्वपूर्ण तथ्यों से रूबरू करवाता है. बदलते समय के साथ इसके स्वरुप में बदलाव आया है. आज के दौर में मीडिया का पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर निष्पक्ष व सत्य खबरें न चलाना एक बड़ी समस्यां है.
कई बार समाचार माध्यमों में विश्लेषण व सम्पादकीय निजी स्वार्थ और अन्य पूर्वाग्रहों से प्रेरित भी हो सकते है. यह मीडिया और जनसंचार माध्यमों में नैतिकता के ह्रास को दर्शाता है. आज के दौर में पत्रकारिता कई विभिन्न रूपों में संचालित की जाती है, जिनमें निम्न शामिल है.
- समाचार रिपोर्टिंग: वर्तमान घटनाओं का कवरेज
- फीचर लेखन: गहराई से खोजपूर्ण लेख
- विश्लेषणात्मक लेखन: घटनाओं और मुद्दों के बारे में विचार और राय
- फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी: घटनाओं का दृश्य रिकॉर्डिंग
पत्रकारिता के लिए तथ्यात्मकता, निष्पक्षता और स्वतंत्रता महत्वपूर्ण मूल्य हैं. पत्रकारों को हमेशा अपने स्रोतों की सावधानीपूर्वक जांच करनी चाहिए, और उन्हें अपनी रिपोर्टिंग में किसी भी प्रकार के पूर्वाग्रह से बचना चाहिए. पत्रकारों को बिना किसी बाहरी दबाव या प्रभाव के स्वतंत्र रूप से रिपोर्ट करने के लिए सक्षम होना चाहिए. इसे पत्रकारिता या मीडिया का प्रथम सिद्धांत कहा जा सकता है.
यहां पत्रकारिता की कुछ विशिष्ट परिभाषाएँ दी गई हैं:
एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका के अनुसार, पत्रकारिता “समाचारों और संबंधित टिप्पणी और फीचर सामग्री का संग्रह, तैयारी और वितरण है, जिसे पैम्फलेट, समाचार पत्र, समाचार पत्र, पत्रिकाएं, रेडियो, मोशन पिक्चर्स, टेलीविजन, किताबें, ब्लॉग, वेबकास्ट पॉडकास्ट, और ई-मेल जैसे मीडिया के माध्यम से किया जाता है.”
विश्व संचार संस्थान के अनुसार, पत्रकारिता “सार्वजनिक हित के लिए सूचना का संग्रह, प्रसंस्करण और प्रसार है.”
अमेरिकन सोसाइटी ऑफ जर्नलिस्ट्स के अनुसार, पत्रकारिता “सत्य और न्याय की खोज है.”
इन परिभाषाओं से पता चलता है कि पत्रकारिता शब्द का स्वरुप व्यापक है, जो उनके काम में कई जिम्मेदारियों को शामिल करता है. पत्रकारिता का पहला उद्देश्य लोगों को सूचित करना, उन्हें सशक्त बनाना, और एक बेहतर समाज बनाने में मदद करना है.
आज के डिजिटल युग में सोशल मीडिया के माध्यम से बड़े पैमाने पर सूचनाओं का सम्प्रेषण होता है. कई बार ये सूचनाएं तथ्यात्मक रूप से गलत होते है और समाज को भ्रमित करते है. इससे किसी लोकतान्त्रिक समाज का निर्णय भी प्रभावित होता है. ऐसे सूचनाओं के सत्यता का पता लगाकर जनता को सूचित करना आज के मीडिया की एक बड़ी चुनौती है.
मीडिया की भूमिका (Role of Media in Hindi)
लोकतान्त्रिक समाज में मीडिया कई महत्वपूर्ण कार्यों का निष्पादन करता है-
- सुचना सम्प्रेषण: मीडिया सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, और सरकार से सम्बंधित महत्वपूर्ण खबरों का सुचना हम तक पहुंचाता है. इससे हम सरकार व अन्य निजी उपक्रमों, नेताओं, राजनैतिक दलों के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करते है, जो हमें निर्णय लेने में सक्षम बनाता है.
- जवाबदेह बनाना: यह देश के विभिन्न घटकों के संबंध में जानकारी प्रदान करती है. इनके निर्णय और नीतियों का विश्लेषण कर उसके सही या गलत होने का जानकारी भी हम तक मीडिया द्वारा ही पहुंचता है. इससे राजनेता और निजी कंपनियों के कार्यप्रणाली की जानकारी भी हम तक पहुँचती है. इससे पैदा होने वाले जनदवाब के कारण ये निकाय जवाबदेह बनते है.
- सार्वजनिक बहस: मीडिया सार्वजनिक बहस का महत्वपूर्ण स्थल है. इससे नए तर्क व तथ्य उभरकर सामने आते है. वंचित समाज भी अपना बात रख पाता है, जो स्वस्थ्य लोकतंत्र के लिए आवश्यक है.
- दृष्टिकोण की विविधता: मीडिया समाज के विभिन्न वर्गों के दृष्टिकोण को स्थान प्रदान करना चाहिए. इससे मीडिया समावेशी बनता है. साथ ही, जनता को विभिन्न विचारों से रूबरू होने, उन्हें अपनाने या निरस्त करने या फिर अपना खुद का दृष्टिकोण विकसित करने में मदद मिलता है.
- नागरिक शिक्षा: लोकतंत्र के सफलता के लिए नागरिकों का शिक्षित होना काफी जरुरी माना जाता है. भारत जैसे निर्धन देशों में समाज का एक बड़ा हिस्सा शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाता है. ऐसे में साक्षर लोगों तक मीडिया को शैक्षणिक दृष्टिकोण से विभिन्न जानकारियों को पहुँचाना चाहिए, जो लोकतान्त्रिक समाज को विकसित और समृद्ध कर सकें.
- जनता का आवाज: सुखी और समृद्ध देश की नींव एक अच्छी सरकार, आक्रामक विपक्ष और सजग पत्रकारिता (मीडिया) पर टिकी होती है. विपक्ष के कमजोर होने की स्तिथि में मीडिया ही होती है, जो सरकार के नीतियों का निष्पक्ष विश्लेषण करती है. साथ ही मीडिया जनता के माँगों को एक आवाज़ देती है. इसलिए, मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है.
पत्रकारिता की वर्तमान जवाबदेही (Present Responsibilities of Journalism in Hindi)
बदलते परिदृश्यों के साथ ही पत्रकारिता व मीडिया जगत की जवाबदेही में थोड़ा बहुत बदलाव आया है. सोशल मीडिया के दौर में पत्रकारिता को और भी अधिक सजग होना होगा. इसके लिए निम्न नियम अपनाकर पत्रकारिता को लोकतान्त्रिक मूल्यों के साथ जोड़ा जा सकता है-
1. तथ्य की शुद्धता और तथ्य-परीक्षण को बढ़ावा देना
मीडिया जगत को अपने यहां फैले किसी भी प्रकार के पूर्वाग्रह को अपने पेशे अलग कर देना चाहिए. पत्रकारिता का एकमात्र उद्देश्य मानव मात्र का कल्याण के लिए सूचना का सम्प्रेषण व प्रसारण होना चाहिए. किसी भी खबर को प्रकाशित करने से पहले इसके तथ्यों को अन्य पक्षों द्वारा जरूर जांचा जाना चाहिए. सभी संभावित स्वतंत्र व निष्पक्ष स्त्रोतों से पुष्टि के बाद ही खबरों को प्रकाशित किया जाना चाहिए.
2. विविध दृष्टिकोण प्रदान करना
मीडिया का दृष्टिकोण व्यापक, समावेशी व विविध होना चाहिए. कई बार देखा जाता है कि मीडिया पैनल में ‘सवर्ण प्रभुत्व’ या फिर ‘दलित चिंतन’ पर बहस की जा रही है, लेकिन इनके प्रतिनिधि इस बहस में नहीं होते है. इस तरह जिनपर वार्तालाप हो रही होती है, उनके बातें मीडिया से दरकिनार हो जाती है. इसके लिए जरुरी है कि किसी भी विषय पर चर्चा के दौरान निष्पक्ष व सम्बंधित पक्षों को जरूर वरीयता दिया जाएं.
3. सत्तारूढ़ लोगों में जवाबदेह बनाए रखना
किसी भी समाज में सबसे ताकतवर लोग सत्तारूढ़ शासक होते है. ये सत्ता हाथ में होने के कारण अत्यधिक शक्तिशाली हो जाते है. इससे भ्रष्टाचार बढ़ने की आशंका भी बनती है. इसलिए मीडिया इनके कार्यों व नीतियों को उजागर कर इन्हें नियंत्रित रख सकती है. इस तरह लोकतान्त्रिक सत्ता में मीडिया द्वारा सत्ता पर अंकुश जरुरी है.
4. सार्वजनिक संवाद को बढ़ावा देना
मीडिया को सार्वजनिक मुद्दों पर चर्चा और बहस को प्रोत्साहित करना चाहिए. यह लोगों को अपने विचारों को साझा करने और एक-दूसरे से सीखने के अवसर प्रदान करता है. यह लोगों के निर्णय लेने की क्षमता में भी सुधार करता है, जो लोकतंत्र के लिए जरूरी भी है. मीडिया निम्नलिखित तरीकों से सार्वजनिक संवाद को बढ़ावा दे सकती हैं:
- अखबारों और पत्रिकाओं में विभिन्न दृष्टिकोणों और विचारों के साथ लेख और समाचार प्रकाशित करना.
- टीवी और रेडियो पर सार्वजनिक बहस और चर्चा कार्यक्रम प्रसारित करना.
- इंटरनेट पर सार्वजनिक मुद्दों पर चर्चा और बहस के लिए मंचों की मेजबानी करना.
- सार्वजनिक मुद्दों पर जागरूकता बढ़ाने के लिए अभियान चलाना.
- लोकतांत्रिक प्रक्रिया के बारे में लोगों को शिक्षित करने के लिए कार्यक्रम और सामग्री प्रदान करना.
5. पक्षपात से बचना
मीडिया को पक्षपात से बचना चाहिए और सभी पक्षों को समान रूप से प्रतिनिधित्व देना चाहिए. विभिन्न दृष्टिकोणों और विचारों को प्रस्तुत करते वक्त सभी हितधारकों के बातों को शामिल करना चाहिए. एक समुदाय के हितों को अनदेखा करते हुए दूसरे समुदाय के बातों को प्रचारित व प्रसारित करने से बचना चाहिए.
6. ऑनलाइन ट्रोल से सुरक्षा
डिजिटल सोशल मीडिया के युग में सत्य व निष्पक्ष खबर प्रस्तुत करने वाले कई पत्रकार व मीडिया संस्थान राजनैतिक दलों व अन्य निगमों के आईटी सेल द्वारा निशाने पर लिए जाते रहे है. पत्रकारों को इनसे बचाने के लिए समुचित व्यवस्था होना चाहिए. अभद्र भाषा का प्रयोग करने वाले ट्रोल्स के एकाउंट्स को तुरंत बर्खास्त करने की सुविधा होना चाहिए.
7. स्वतंत्र पत्रकारिता को बढ़ावा देना
स्वतंत्र पत्रकारिता वह पत्रकारिता है जो किसी भी व्यक्ति या संगठन के प्रभाव या नियंत्रण से मुक्त होती है. स्वतंत्र पत्रकारों को अपने कार्यों को चुनने और उनका संपादन करने की पूर्ण स्वतंत्रता होना चाहिए. उन्हें अपने कार्यों के लिए ऐसा कोई भी वित्तीय या अन्य लाभ नहीं मिलना चाहिए जो उनके रिपोर्टिंग के निष्पक्षता को प्रभावित कर सकता है.
लोकतंत्र के लिए स्वतंत्र पत्रकारिता अत्यंत आवश्यक होता है. यह आम जनता को सूचित कर निर्णय लेने में मदद करता है. स्वतंत्र पत्रकार बिना किसी भय के सच्चाई को उजागर कर सकते हैं, भले ही इससे सरकार या कोई अन्य शक्तिशाली व्यक्ति या संगठन नाराज हो. इस तरह स्वतंत्र पत्रकारिता सरकार और प्रभावशाली लोगों व संगठनों को जवाबदेह बनाता है.
स्वतंत्र पत्रकारिता को बढ़ावा देने के लिए कई तरीके हैं. इनमें शामिल हैं:
- स्वतंत्र मीडिया का समर्थन करना: आप समाचार पत्र, पत्रिका, वेबसाइट या रेडियो स्टेशन का समर्थन कर सकते हैं जो स्वतंत्र रिपोर्टिंग प्रदान करते हैं. आप इन संगठनों को दान दे सकते हैं या उनके उत्पादों या सेवाओं को खरीद सकते हैं.
- स्वतंत्र पत्रकारों का काम बढ़ावा देना: आप स्वतंत्र पत्रकारों के काम के बारे में अपने दोस्तों और परिवार को बता सकते हैं. आप सोशल मीडिया पर उनके काम को साझा कर सकते हैं या उनके लिए लेख लिख सकते हैं.
- स्वतंत्र पत्रकारिता के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए आप स्वतंत्र पत्रकारिता के महत्व के बारे में लोगों को शिक्षित कर सकते हैं. आप स्कूलों, समुदाय केंद्रों या अन्य सार्वजनिक स्थानों में साक्षात्कार या व्याख्यान दे सकते हैं.
- आप स्वतंत्र पत्रकारिता को बढ़ावा देने के लिए अपने स्वयं के तरीके भी बनाकर अपना सकते हैं. बस याद रखें कि स्वतंत्र पत्रकारिता एक महत्वपूर्ण अधिकार है जिसे हमें संरक्षित करने की आवश्यकता है.
स्वतंत्र पत्रकारिता के कुछ महत्वपूर्ण गुणों में, निष्पक्षता, सटीकता, व्यापकता व उत्तरदायित्व शामिल हैं. स्वतंत्र पत्रकारिता सरकारों, व्यवसाय और अन्य शक्तिशाली समूह के गलत कार्यों व भ्रष्टाचार के लिए अक्सर चुनौती बन जाता है. इसलिए स्वतंत्र पत्रकारिता लोकतंत्र के लिए आवश्यक है और हमें इसकी रक्षा करने के लिए सजग व जागरूक रहना चाहिए.
8. पत्रकारिता के लिये कानूनी सुरक्षा
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19 वाक् व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है. इसके बावजूद भी पत्रकारों व पत्रकारिता संस्थानों को अक्सर धमकी, हमलों व भयादोहन का सामना करना पड़ता है. इसलिए लिए संविधान में पत्रकारों, पत्रकारिता संस्थानों व पत्रकारों के नजदीकी परिजनों को सुरक्षा का गारंटी कानून होना जरुरी है.
9. नैतिकता का पालन
पत्रकार व इसके संस्थानों को सच्चाई एवं तथ्यपरकता, पारदर्शिता, स्वतंत्रता, न्यायपरकता एवं निष्पक्षता, उत्तरदायित्व और निष्पक्ष जैसे सिद्धांतों से हमेशा जुड़ा होना चाहिए. इन नीतियों का पालन करते हुए पत्रकारिता अपना मानकीकरण कर सकता है. जनसमर्थन के लिए भी पत्रकारिता का इनसे जुड़ा होना निहायत जरुरी है.
पत्रकारिता/ मीडिया की चुनौतियां (Challenges of Journalism/ Media in Hindi)
बदलते समय के साथ ही मीडिया कई रूपों में विस्तृत हो चुकी है. किसी समय सिर्फ अखबार ही पत्रकारिता का जरिया हुआ करता था. लेकिन अब डिजिटल ऑडियो व वीडियो, टेलीविज़न, रेडियो जैसे माध्यमों से भी समाचारों और विश्लेषित नजरियों का सम्प्रेषण होता है. इस विस्तार के साथ ही मीडिया जगत कई चुनौतियों का सामना कर रहा है. इनमें मुख्य चुनौतियाँ इस प्रकार है-
- मीडिया पूर्वाग्रह: एक पत्रकार किसी ख़ास विचारधारा या किसी संगठन का समर्थक हो सकता है. भारत में यह पूर्वाग्रह जाति या वर्ग विशेष के समर्थन के रूप में भी हो सकता है. इस पूर्वाग्रह का सन्देश का स्वरुप बिगड़ जाता है, जो ध्रुवीकृत जनमत का निर्माण करता है. कई बार सरकार के पक्ष में या विपक्ष में भी खबर चलाई जाती है. 2010 में अन्ना आंदोलन ने भारतीय मीडिया का यह स्वरुप उजागर कर दिया है. संतुलन न साधने के स्तिथि में आम जनता से जुड़े सवाल पीछे छूट जाते है.
- फेक न्यूज़: सोशल मीडिया के उदय के साथ ही फर्जी व अतथ्यात्मक खबरों का प्रसार कई गुना बढ़ गया है. कई मीडिया संस्थानों के खबरें भी फर्जी पाई गई है. एक तरफ इससे जहां लोकतान्त्रिक देश में लोग गलत निर्णय लेते है. वहीं यह मीडिया और जनसंचार माध्यमों के विश्वसनीयता को भी नुकसान करती है. इसलिए इनका रोका जाना नितांत आवश्यक है.
- कॉर्पोरेट प्रभाव: जनसंचार माध्यमों को बड़े-बड़े निगमों (कॉर्पोरेट्स) द्वारा विज्ञापन भी दिया जाता है. कई बार इन विज्ञापनों के कीमत पर सम्पादकीय व पत्रकारिता नीतियों से समझौता कर लिया जाता है. अकसर सार्वजनिक हित के जगह कॉर्पोरेट हित को तरजीह दिया जाता है, जो आम जनता के हित को प्रभावित करता है. जैसे कृषि सब्सिडी के जगह किसी ख़ास उद्योग को सब्सिडी के लिए लगातार खबरें प्रकाशित करना, सिर्फ निजी क्षेत्र को ही सर्वश्रेठ बताना इत्यादि.
- कई बार कॉर्पोरेट स्वामित्व में मीडिया समूहों का संचालन होता है. ये औद्योगिक घराने अपने फायदे-नुकसान के अनुसार सम्पादकीय निति को प्रभावित करते है, जो जनसरोकारों से जुड़े मुद्दों को गौण कर देता है. मीडिया का यह स्वरुप आधुनिक सामंती प्रणाली माना जा सकता है.
- सरकारी सेंशरशिप: कई बार मीडिया द्वारा प्रसारित खबरों की सरकारी सेंशरशिप की जाती है. इससे खबरों का स्वरुप बदल जाता है और सरकार के खिलाफ खबरें प्रसारित नहीं हो पाती है. इससे सरकार में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी हो जाती है, जो मीडिया के ‘जन प्रहरी’ के जगह ‘सरकारी प्रवक्ता’ बना देती है.
- वैधता: मीडिया के वैधता का निर्धारण कई चीजों से होता है. इसका विविध एवं प्रतिनिधिक सम्पादकीय टीम होना चाहिए. ये हमेशा सटीक, निष्पक्ष या सत्यनिष्ठ सूचना का सम्प्रेषण नहीं करते, जो इनके वैध होने पर सवाल उठती है. राजनीतिक पूर्वाग्रहों, व्यावसायिक हितों, सनसनीखेज प्रवृत्ति और पत्रकारिता मानकों की कमी से भी मीडिया के वैधानिकता पर सवाल उठते है.
- जातिय विविधता: भारतीय पत्रकारिता जातिय विविधता की कमी से भी जूझ रही है. अक्टूबर 2022 में ऑक्सफैम इंडिया-न्यूज़लॉन्ड्री का दूसरा संस्करण का रिपोर्ट न्यूज़रूम में जातिय विविधता की कमी को भलीभांति रेखांकित करता है. इसके अनुसार सम्पादकीय जैसे निर्णायक पदों पर 90 फीसदी लोग उच्च जाति से है. इसी रिपोर्ट में बताया गया है कि हिंदी व अंग्रेजी समाचारपत्रों में वंचित समुदाय (एससी, एसटी व ओबीसी समूह) द्वारा पांच में से एक खबर लिखा गया. दूसरी तरफ, देश में इनकी आबाद करीब 85 फीसदी माना जाता है.
- उपरोक्त कारणों से मीडिया का किसी ख़ास वर्ग या जातिय समूह के तरफ झुका होने का पूर्वाग्रह उत्त्पन्न होता है. इसलिए मीडिया में जातिय विविधता का विचार किया जाना जरूरी है. इस विविधता के अभाव से समाज में जातिवाद का भी वर्चस्व का पता चलता है.
भारतीय लोकतंत्र में मीडिया का योगदान (Contribution of media in Indian democracy)
विधायिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका के बाद मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है. अभी तक मीडिया को स्वतंत्र, निष्पक्ष व सटीक रिपोर्टिंग करने की छूट मिली हुई है. भारतीय लोकतंत्र को वर्तमान स्वरुप में लाने के लिए मीडिया के योगदान को इंकार नहीं किया जा सकता है.
मीडिया को 1980 के दशक में भयावह दौर से गुजरना पड़ा था. 26 जून, 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में तानाशाही लागू की और नियंत्रण के लिए सभी समाचार पत्रों और पत्रिकाओं को बंद कर दिया. यह दौर मीडिया के काले इतिहास के दौर के रूप में याद किया जाता है.
वर्तमान दौर में मीडिया के स्वरुप में तेजी से बदलाव आया है. आज के वक्त मुख्यधारा के मीडिया से अधिक सोशल मीडिया जनसरोकारों के मुद्दों से जुड़ा प्रतीत होता है. विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत की स्तिथि भारत में मीडिया के वर्तमान दौर को भलीभांति चिन्हित करता है.
विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक और भारत (World Press Freedom Index and India)
यह सूचकांक 1985 में स्थापित फ्रांस के एक गैर-सरकारी संगठन रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (RWB) (पेरिस) द्वारा जारी की जाती है. इस रैंकिंग में विश्व के प्रमुख देशों के लिए प्रेस फ्रीडम रैंकिंग जारी किया जाता है. इस सूचकांक का मान 0 से 100 तक निर्धारित किया गया है. 85 से अधिक अंक प्रेस की अच्छी स्थिति को दर्शाता है. 70 से 85 संतोषजनक, 55 से 70 समस्यात्मक, 40 से 55 मुश्किल व 40 से कम अतिगंभीर स्थिति को दर्शाता है. इसे हरेक साल विश्व प्रेस स्वतन्त्रता दिवस यानि 23 मई के दिन जारी किया जाता है.
करीब पिछले 20 वर्षों की रैंकिंग स्पष्ट इशारा करती है कि, भारत में मीडिया की स्वतंत्रता समाप्त की जा रही है. वर्ष 2006 में भारत की स्तिथि 105 थी, जो 2019 में 140 है. 2022 में 180 देशों की सूचि में भारत 150वें स्थान पर था. इससे पहले 2021 में भारत की रैंकिंग 142वां था. वहीं, 2023 में 180 देशों की सूचि में भारत का स्थान 161वां है और इसे 36·62 अंक प्राप्त हुआ है. भारत के मीडिया के लिए यह रैंकिंग अतिचिन्तनीय व भारतीय लोकतंत्र के लिए भी खतरनाक स्थिति को दर्शाता है.
भारत में मीडिया व पत्रकारिता के विकास का इतिहास (Development History of Media and Journalism in India)
भारत में मीडिया का विकास तीन चरणों में हुआ है:
1. प्रथम चरण (1780-1947)
भारत में मीडिया का इतिहास 29 जनवरी 1780 को आयरिशमैन जेम्स ऑगस्टस हिकी के बंगाल गजट के प्रकाशन के साथ शुरू होता है. हिकी एक ब्रिटिश पत्रकार थे जो भारत में ब्रिटिश शासन की आलोचना के लिए जाने जाते थे. उनके समाचार पत्र ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को उभारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
इस अवधि के अन्य प्रमुख समाचार पत्रों में हिंदुस्तान समाचार, द इंडियन मेल और द हिंदू शामिल हैं. इन समाचार पत्रों ने भारत की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति के बारे में जानकारी प्रदान की और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को बढ़ावा दिया.
भारत में हिंदी पत्रकारिता का शुरुआत उन्नीसवीं सदी के शुरुआत में हुआ. हिंदी में प्रकाशित होने वाला पहला अखबार, उदंत मार्तंड (द राइजिंग सन), 30 मई 1826 को पहली बार प्रकाशित किया गया. आज के वक्त इस दिन को “हिंदी पत्रकारिता दिवस” के रूप में मनाया जाता है.
उदंतमार्तंड के संपादक जुगलकिशोर शुक्ल या युगल किसोर शुक्ल थे. उन्होंने कलकता के कोलू टोला मोहल्ले की 37 नंबर आमड़तल्ला गली से यह समाचार पत्र निकाला था.
इसके बाद हिंदी में कई पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित होने लगे. इससे अंग्रेजी समाचारपत्रों का दबदबा समाप्त होने लगा. आज के दौर में भारत में हिंदी भाषा में सबसे अधिक पत्र-पत्रिकाएं छपती है. लेकिन, गुणवत्ता के मामले में अंग्रेजी भाषा के पत्रों से पिछड़ना इसके लिए एक बड़ी चुनौती है.
2. द्वितीय चरण (1947-1991)
भारत की स्वतंत्रता के बाद देश में मीडिया का विकास तेजी से हुआ। इस अवधि के दौरान, भारत में प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और इंटरनेट मीडिया का विकास हुआ.
प्रिंट मीडिया में, कई नए समाचार पत्र और पत्रिकाएँ प्रकाशित हुईं. इनमें द हिंदू, द टाइम्स ऑफ इंडिया, द इंडियन एक्सप्रेस, द स्टेट्समैन और द ट्रिब्यून शामिल हैं. इन समाचार पत्रों ने भारत के लोकतंत्र को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में, भारत में टेलीविजन और रेडियो का विकास हुआ. 15 सितम्बर 1959 को भारत ने अपना पहला टेलीविजन चैनल दूरदर्शन शुरू किया. इससे पहले 8 जून 1936 को आल इंडिया रेडियो की स्थापना की गई थी, जो आजादी के बाद 1956 को प्रसार भारती के एक डिवीज़न, आकाशवाणी, के नाम से इसे पुनर्स्थापित किया गया. अगले साल 1957 को विविध भारती सेवा का भी शुभारम्भ किया गया.
3. तृतीय चरण (1991-वर्तमान)
1991 में, भारत ने आर्थिक सुधारों को लागू किया। इन सुधारों ने मीडिया उद्योग को निजीकरण और विदेशी निवेश के लिए खोल दिया। इसने भारत में मीडिया उद्योग के विकास को तेज किया।
इस अवधि के दौरान, भारत में समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, टेलीविजन चैनलों और रेडियो स्टेशनों की संख्या में वृद्धि हुई है। भारत में मीडिया उद्योग अब दुनिया के सबसे बड़े मीडिया उद्योगों में से एक है।
भारत में मीडिया का विकास भारत के लोकतंत्र के विकास के साथ निकटता से जुड़ा हुआ है। मीडिया ने भारत की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति के बारे में जागरूकता बढ़ाने और भारतीय नागरिकों को सूचित निर्णय लेने में मदद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
भारत में पत्रकारिता के विकास के कुछ प्रमुख मील के पत्थर इस प्रकार हैं:
- 1780: जेम्स ऑगस्टस हिकी द्वारा बंगाल गजट का प्रकाशन.
- 1826: हिंदी में पहला समाचार पत्र समाचार पत्र का प्रकाशन.
- 1857: 1857 के भारतीय विद्रोह की रिपोर्टिंग के लिए द हिंदू को प्रतिबंधित किया गया.
- 1875: द टाइम्स ऑफ इंडिया का प्रकाशन.
- 1905: बंगाल विभाजन के खिलाफ प्रदर्शनों की रिपोर्टिंग के लिए द स्टेट्समैन को प्रतिबंधित किया गया.
- 1920: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में पत्रकारों का पहला सम्मेलन.
- 1947: भारत की स्वतंत्रता.
- 1956: आकाशवाणी का प्रसारण.
- 1959: दूरदर्शन का प्रसारण.
- 1991: आर्थिक सुधारों के कारण मीडिया उद्योग का निजीकरण और विदेशी निवेश.
- 2000: इंटरनेट की शुरुआत.
भारत में मीडिया का विकास आज भी जारी है. अब मीडिया उद्योग तेजी से बदल रहा है, और नए मीडिया रूपों का उदय हो रहा है. डिजिटल मीडिया ने इस स्पेस को कम बजट वाले वंचित समुदायों के लिए भी खोल दिया है. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि भविष्य में भारत में मीडिया का विकास कैसे होता है.
भारत के मीडिया पाठ्यक्रम संस्थान (Media Course Institutes of India)
भारत में कई विश्वविद्यालय और कॉलेज मीडिया पाठ्यक्रम प्रदान करते हैं. इन पाठ्यक्रमों में पत्रकारिता, संचार अध्ययन, जनसंचार और मीडिया प्रबंधन शामिल हैं. ये संस्थान उच्च गुणवत्ता की शिक्षा प्रदान करते हैं. इन संस्थानों से स्नातक होने वाले छात्रों को मीडिया उद्योग में अच्छी नौकरी के अवसर मिलते हैं. भारत के कुछ प्रमुख मीडिया पाठ्यक्रम संस्थान इस प्रकार हैं:
- भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी), नई दिल्ली
- एजेके मास कम्युनिकेशन रिसर्च सेंटर, जामिया मिलिया इस्लामिया, नई दिल्ली
- सिम्बायोसिस इंस्टीट्यूट ऑफ मीडिया एंड कम्युनिकेशन, पुणे
- माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल
- जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली
- इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, दिल्ली
- मद्रास विश्वविद्यालय, चेन्नई
- बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी
- अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, अलीगढ़
इन संस्थानों में विभिन्न स्तरों के पाठ्यक्रम प्रदान किए जाते हैं, जिनमें स्नातक, स्नातकोत्तर और डॉक्टरेट शामिल हैं. स्नातक पाठ्यक्रमों में आमतौर पर पत्रकारिता, संचार अध्ययन और जनसंचार शामिल होते हैं. स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में पत्रकारिता, संचार अध्ययन, जनसंचार, मीडिया प्रबंधन और मीडिया अर्थशास्त्र शामिल हैं. डॉक्टरेट पाठ्यक्रमों में पत्रकारिता, संचार अध्ययन और मीडिया प्रबंधन शामिल हैं.
इन संस्थानों में प्रवेश के लिए आमतौर पर प्रवेश परीक्षा और साक्षात्कार में उत्तीर्ण होने की आवश्यकता होती है. प्रवेश परीक्षाएं आमतौर पर सामान्य ज्ञान, अंग्रेजी भाषा और मीडिया पर आधारित होती हैं. साक्षात्कार आमतौर पर उम्मीदवार की योग्यता और रुचि को निर्धारित करने के लिए आयोजित किए जाते हैं. यहाँ प्रवेश के लिए आरक्षण का लाभ भी मिलता है.