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प्रयोगशाला निर्मित हीरे (LGDs)

प्राकृतिक हीरों का निर्माण पृथ्वी के काफी गहराई में अत्यधिक तापमान और दवाब के कारण कोयला या कार्बन के क्रिस्टलीकरण से बनता है. जबकि, प्रयोगशाला निर्मित हीरे किसी इंसान द्वारा प्रयोगशाला में आदर्श परिस्थिति में बनाया जाता है. इसलिए इन हीरों को हम कृत्रिम हीरे (Synthetic Diamonds) भी कह सकते है.

अपने अद्वितीय गुणों के कारण हीरे काफी मूलयवान होते है. लेकिन प्रयोगशाला निर्मित हीरों के बाज़ार में आने से इसकी दुर्लभता में कमी आ रही है. प्रायोगिक निर्माण के शुरूआती दौर में इनकी गुणवत्ता खराब थी. इसलिए इनका इस्तेमाल औद्योगिक कार्यों के लिए होता था. लेकिन आज के समय में ये मणि गुणवत्ता वाले होते है. इसलिए इनका इस्तेमाल अब आभूषण निर्माण में भी होने लगा है.

इस लेख में हम जानेंगे

प्रयोगशाला निर्मित हीरों का इतिहास (History of LGDs in Hindi)

हीरे अत्यधिक कीमती होते है. इसलिए इसे प्रयोगशाला में बनाने का प्रयास 1797 से ही आरम्भ हो गया था. लेकिन इसे पहली बार बनाने में जनरल इलेक्ट्रिक्स के वैज्ञानिक सफल हुए. होवार्ड ट्रेसी हॉल (Howard Tracy Hall) और हर्बर्ट स्ट्रांग (Herbert Strong) को इसका श्रेय दिया जाता है. इन्होंने एचपीएचटी विधि का उपयोग किया था. कृत्रिम हीरों के विकास का कालक्रम कुछ इस प्रकार है:

1953

कथित तौर पर विलियम जी. ईवर्सल (William G. Eversole) ने सीवीडी तकनीक से कृत्रिम हीरा बनाई.

1954

GE के वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला निर्मित हीरा बनाकर सफलता प्राप्त की.

1971

पहला रत्न-गुणवत्ता वाला कृत्रिम हीरा बनाया गया

1980 का दशक

सीवीडी पद्धति और अधिक विकसित हुआ. कृत्रिम हीरों के आभूषण और अंगूठियों का व्यापक इस्तेमाल होने लगा.

2007

जीआईए ने प्रयोगशाला में विकसित हीरों के लिए पहली ग्रेडिंग रिपोर्ट पेश की.

2017

वीआरएआई निर्मित हीरे दुनिया के पहले कार्बन-न्यूट्रल प्रमाणित हीरे बना.

2018

अमेरिकी संस्था FTC ने प्रयोगशाला में विकसित हीरों को असली हीरे के रूप में मान्यता दी.

कृत्रिम हीरा बनाने की तकनीक (Methods of making synthetic Diamonds in Hindi)

प्रयोगशाला में हीरे बनाने के लिए दो तकनीक है:

A. HPHT या उच्च दबाव उच्च तापमान विधि (High Pressure High Temperature Method)

यह इसके निर्माण के प्राथमिक तकनीकों में से एक है. यह गहरे पृथ्वी के मेन्टल में प्राकृतिक हीरा निर्माण के तरीकों का नक़ल करता है. इसकी प्रक्रिया इस प्रकार है:

  1. प्रारंभिक सामग्री: यह प्रक्रिया एक छोटे बीज को उच्च दवाब और तापमान वाले कक्ष में रखकर की जाती है. यह बीज आमतौर पर ग्रेफाइट से बना होता है. इसके साथ ही, लोहा, निकल या कोबाल्ट जैसे धातु उत्प्रेरक भी इसमें शामिल किए जाते है. ये उत्प्रेरक कार्बन परमाणुओं को हीरे की संरचना में पुनर्व्यवस्थित करने में मदद करता है.
  2. उच्च दबाव: फिर कक्ष में पृथ्वी के मेन्टल के समान अत्यधिक उच्च दबाव उत्पन्न किया जाता है, यह आमतौर पर लगभग 5 से 6 GPa (गीगापास्कल) होता है.
  3. उच्च तापमान: उच्च दवाब के परिस्थिति में ही कक्ष को 1300 से 1600 डिग्री सेल्सियस (2372 से 2912 डिग्री फारेनहाइट) के तापमान पर गर्म किया जाता है. इस कारण ग्रेफाइट से कार्बन परमाणु पिघले हुए धात्विक उत्प्रेरक में घुल जाते हैं।
  4. हीरा निर्माण: जैसे-जैसे कार्बन परमाणु पिघले हुए उत्प्रेरक से गुजरते हैं, वे हीरे के बीज पर क्रिस्टलीकृत होने लगते हैं. ये परत दर परत बढ़ते हुए सिंथेटिक हीरा बनाते हैं.
  5. शीतलन और निष्कर्षण: जब हीरा वांछित आकार का हो जाता है, तो दबाव और तापमान धीरे-धीरे कम किया जाता है. फिर सिंथेटिक हीरे को कक्ष से निकाल लिया जाता है. इसके साथ मिले हुए अवशिष्ट धातु को एसिड डालकर अलग किया जाता है. इस तरह पूर्ण रूप से शुद्ध कृत्रिम हीरा प्राप्त होता है.

B. रासायनिक वाष्प जमाव (Chemical Vapor Deposition – CVD Method)

  1. इस प्रक्रिया में प्राकृतिक या सिंथेटिक पतले टुकड़ों को हीरे के बीज के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. इसे वैक्यूम चैम्बर के अंदर रखा जाता है. यह प्राकृतिक हीरा निर्माण का आरंभिक चरण है.
  2. मीथेन (CH₄) जैसे कार्बन से भरपूर गैस वैक्यूम चैंबर में डाला जाता हैं। सामान्यतः ये गैस कार्बन और हाइड्रोजन के संयोजन से बने होते है.
  3. इसके बाद वैक्यूम चैम्बर को लगभग 800°C से 1000°C (1472°F से 1832°F) तक गर्म किया जाता है.
  4. अंदर डाले गए गैसों को आयनित करने के लिए माइक्रोवेव ऊर्जा, लेजर या गर्म तंतुओं का उपयोग किया जाता है. इस आयनीकरण से स्वतंत्र गैसीय कार्बन परमाणु प्राप्त होता है.
  5. कार्बन परमाणु हीरे के बीज पर जमने लगते है और इसके परत-दर-परत जमाव से क्रिस्टलीकृत कृत्रिम हीरा प्राप्त होता है.
  6. हाइड्रोजन की उपस्थिति कार्बन को हीरे के अन्य पदार्थ जैसे ग्रेफाइट इत्यादि बनने से रोकने में मदद करता है.

HPHT बनाम CVD विधि

पहलूHPHTCVD
दबाव/ तापमानउच्च दबाव, उच्च तापमानकम दबाव, उच्च तापमान
उत्पादन-गतितेज़धीमी
रंगअक्सर हल्का पीलापनअक्सर रंगहीन
शुद्धताअधिक समावेशीअधिक समावेशी, उच्च शुद्धता
अनुप्रयोग आभूषण, औद्योगिक उपकरणआभूषण, अर्धचालक, इलेक्ट्रॉनिक्स

प्रयोगशाला निर्मित हीरों का बाज़ार

लोग आज भी खदानों से निकले हीरों के आभूषण को परंपरा के नाम से पहनना पसंद करते है. साथ ही, यह उन्हें दुर्लभ वस्तु के उपभोग का एहसास दिलाता है. इसलिए आरम्भ में कृत्रिम हीरों का उपभोग सिमित रहा.

लेकिन सस्ता तकनीक व ब्लड डायमंड के बढ़ते धारणा ने प्रयोगशाला निर्मित हीरों के कारोबार के विस्तार में सहायक हुआ. 1990 से इसका इस्तेमाल आभूषण के तौर पर आम होता गया. 2014 में इसके इस्तेमाल में काफी उछाल आया.

इन्हीं बढ़ते खपत के कारण, साल 2023 में प्रयोगशाला निर्मित हीरों का कुल व्यापार 19.5 अरब अमेरिकी डॉलर था. 2024 से 2031 तक इसमें 5.01% के वार्षिक वृद्धि का अनुमान है. इस तरह 2031 में इसका कुल कारोबार 28.66 अरब अमेरिकी डॉलर हो जाएगा.

इसके बाज़ार को पॉलिशड और रफ़ में विभाजित किया जाता है. 2023 में पॉलिशड कृत्रिम हीरों का बाज़ार में कुल हिस्सा 60.32% रहा था. आगे भी पॉलिशड कृत्रिम हीरों का मांग अधिक रहने का उम्मीद है. इसी साल CVD विधि से निर्मित हीरों का बाज़ार मूल्य 61.25% है.

डी बीयर्स ग्रुप (लाइटबॉक्स ज्वेलरी), भंडेरी लैब ग्रोन डायमंड्स, एबीडी डायमंड्स, मियाडोना एंड कंपनी, सीवीडी डायमंड इंक., लैब्रिलिएंट, लैब ग्रोन सॉलिटेयर डायमंड, क्राफ्ट लैब ग्रोन डायमंड्स, ग्रोन डायमंड कॉर्पोरेशन, फाइनग्रोनडायमंड्स.कॉम इस क्षेत्र में कार्यरत प्रमुख कंपनियां है.

क्षेत्रवार बाज़ार

प्रयोगशाला निर्मित हीरों के बाज़ार को उत्तरी अमेरिका, यूरोप, एशिया-पसिफ़िक, मध्य-पूर्व एवं उत्तरी अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में विभाजित किया जाता है.

2023 में एशिया पैसिफिक क्षेत्र का 35.64% हिस्सा था. यह 6.95 अरब अमेरिकी डॉलर के बराबर है. चीन, भारत और जापान जैसे देशों में इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोटिव और एयरोस्पेस में इसकी बढ़ती मांग के कारण इनका हिस्सेदारी अधिक है. इस क्षेत्र की मजबूत विनिर्माण क्षमता और तकनीकी प्रगति ने इसके लिए अनुकूल बाजार का निर्माण किया है.

उदाहरण के लिए, चीन में प्रयोगशाला निर्मित हीरों की मांग में वृद्धि इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग के तेज विकास के कारण हुआ है. इस उद्योग में कृत्रिम हीरों का उपयोग इलेक्ट्रॉनिक घटकों को काटने और चमकाने वाले उपकरणों में किया जाता है.

इसी तरह भारत का ऑटोमोटिव क्षेत्र सिंथेटिक हीरे का खपत करने वाला महत्वपूर्ण उद्योग है. इनका उपयोग उच्च गुणवत्ता के कटाई करने वाले उपकरणों के उत्पादन में बड़े पैमाने पर किया जाता है, जो इंजन निर्माण में उपयोग किया जाता है.

दुनिया में सिंथेटिक हीरे का सबसे बड़ा उत्पादक देश चीन है. 2019 में इसका बाज़ार हिस्सा लगभग 56% था. वहीं, भारत दूसरा और संयुक्त राज्य अमेरिका तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है. हालांकि, भारत इस दिशा में निरंतर आगे बढ़ रहा है और शीर्ष स्थान हासिल करने को प्रयासरत है.

लेकिन कृत्रिम हीरे के बाज़ार में बड़े कारोबारी समूह और तकनिकी विकास ने इसके उपयोग को काफी बढ़ावा दिया है. इसका उपयोग उच्च प्रदर्शन वाले अर्धचालक और अत्याधुनिक इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के उत्पादन में व्यापक रूप से हो रहा है. इस तरह के उत्पादों के विकसित देशों में खपत अधिक है, जैसे स्मार्टफोन, टैबलेट और अन्य इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स. इसलिए पूर्वानुमानित अवधि में उत्तरी अमेरिका में इसके बाजार का 6.40% की तीव्र वृद्धि दर से बढ़ने का अनुमान है.

विश्व में कई देश विकासशील श्रेणी में है. इसलिए ये सहज कहा जा सकता है कि विकास के साथ ही प्रयोगशाला निर्मित हीरों का कारोबार इन क्षेत्रों में अधिक विस्तारित होगा.

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