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नैनो टेक्नोलॉजी और इसकी संभावनाएं

    नैनो टेक्नोलॉजी का सम्बन्ध विज्ञान की उस शाखा से है, जिसमें सामग्रियों और उपकरणों का निर्माण अति-सूक्ष्म स्तर पर किया जाता हैं. इसे नैनो-स्केल से मापा जाता है, जो एक मीटर का एक अरबवां भाग है. नैनो टेक्नोलॉजी में मुख्यतः रसायन, भौतिकी, बायो इन्फॉर्मेटिक्स और बायो टेक्नोलॉजीके सिद्धांतों का उपयोग किया जाता है, जो किसी वस्तु या उपकरण के अतिसूक्ष्म रूप में बनाने में सक्षम है.

    आसान भाषा में कहें तो, नैनो टेक्नोलॉजी विज्ञान का वह करिश्माई शिक्षा है, जो सुपर कंप्यूटर को एक छोटे से मोबाईल में बदलने की क्षमता रखता है. ऐसा इसलिए भी संभव है, क्योंकि इस तकनीक में किसी वस्तु के निर्माण में ऐसे नैनो पदार्थो का इस्तेमाल होता है, जिसमें अपने मूल पदार्थ के सभी गुण मौजूद होते है.

    आज के दौर में, नैनो टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कई क्षेत्रों में हो रहा है, जिसका हमारे जीवन पर व्यापक असर हुआ है. आज के समय में कृत्रिम बुद्धिमत्ता की जितनी चर्चा है, अपने शुरुआत समय में नैनो टेक्नोलॉजी भी ठीक इसी तरह चर्चित था. समय के साथ इसका इस्तेमाल होमलैंड सिक्योरिटी, मेडिसिन, ट्रांसपोर्टेशन, इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी, फूड सिक्योरिटी, एनवायरमेंटल साइंस, एनर्जी, फॉरेंसिक और डिफेंस जैसे क्षेत्रों में होने लगा.

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    नैनो टेक्नोलॉजी क्या है? (What is Nano Technology in Hindi)

    विज्ञान की वह शाखा जो सूक्ष्मता के मापन, अध्ययन और अनुप्रयोग पर आधारित है, नैनो टेक्नोलॉजी कहलाता है. इस तकनीक में किसी वस्तु का निर्माण उस पदार्थ से किया जाता है, जिसके तीन विमाओं में एक 100 नैनोमीटर से कम हो. एक नैनो स्केल 100 नैनोमीटर के बराबर होता है. मूल पदार्थ के विमा के आधार पर इसे चार भागों में विभाजित किया गया हैं. इसे नैनोविज्ञान (Nano-Science) के नाम से भी जाना जाता है.

    दूसरे शब्दों में, नैनो टेक्नोलॉजी वह विज्ञान है जिसमें मानव उपयोग के वस्तुओं का निर्माण परमाणु या अणु के स्तर पर किया जाता है. “नैनो” (Nano) शब्द ग्रीक भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ “बौना” होता है. इस तकनीक में किसी तत्व या यौगिक के काफी छोटे हिस्से के उपयोग से मानव जीवन में सुधार लाने वाले वस्तुओं का निर्माण होता है. अक्सर छोटे हिस्से के इस्तेमाल से पदार्थ क्वांटम भौतिकी के कारण विशिष्ट रासायनिक या भौतिक गुण प्रस्तुत करते है.

    नैनो टेक्नोलॉजी का शुरुआत व इतिहास (Development and History of Nano Technology in Hindi)

    अमेरिकी प्रोफेसर रिचर्ड पी. फिन्मैन ने 29 दिसंबर 1959 को नैनो-टेक्नोलोजी पर बेहद महत्वपूर्ण भाषण दिया था. इस भाषण का शीर्षक था, “नीचे काफी जगह है” (There’s Plenty of Room at the Bottom). उन्होंने अपने भाषण का शुरुआत ईश्वर की प्रार्थना (Lord’s Prayer) करते हुए चरम छोटे पदार्थ के निर्माण का दर्शन प्रस्तुत किया था. उन्होंने पदार्थों के गुण और इससे बनने वाले वस्तुओं के संभावना पर, नैनो तकनीक के आधार पर व्याख्या प्रस्तुत की.

    उन्होंने ऐसे आविष्कार के लिए वैज्ञानिकों को एकजुट होने को भी कहा था और भरोसा दिलाया था कि भविष्य में ये आविष्कार हमारे जीवन में क्रन्तिकारी बदलाव लाएंगे. उदाहरण के तौर पर, उन्होंने एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका (Encyclopaedia Britannica) के सभी 24 वॉल्यूम को एक छोटे से पिन में समाने की वकालत की थी. उन्होंने इस पिन का आकार एक इंच के छठवें इससे के बराबर बताया था.

    British Physicist Richard Feynman
    प्रोफेसर रिचर्ड पी. फिन्मैन

    अपने भाषण में फिनमेन ने नैनो या नैनो तकनीक शब्द का उपयोग नहीं किया था. आगे चलकर जापानी प्रोफ़ेसर नोरियो तानिगुची ने साल 1974 में इस शब्द का उपयोग किया. लेकिन, वे भी नैनो टेक्नोलॉजी को व्यापक पहचान नहीं दिला पाएं.

    आगे चलकर अमेरिकी वैज्ञानिक के. एरिक ड्रेक्सलर ने इस विषय पर दो पुस्तक लिखकर नैनो टेक्नोलॉजी को विख्यात बना दिया. ये पुस्तक थे, इंजन्स ऑफ क्रिएशन (1986) और नैनोसिस्टम्स (1992). ये दोनों पुस्तक नैनो विज्ञान में काफी अहम् माने जाते है. इससे पहले 1981 में ड्रेक्स्लर ने प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में इसी विषय पर एक शोधपत्र भी प्रकाशित किया था. ये जानना भी जरुरी है कि ड्रेक्स्लर नैनोटेक में पीएचडी पाने वाले पहले व्यक्ति थे.

    ड्रेक्समैन के नैनो टेक्नोलॉजी पर लिखे पुस्तकों ने इस क्षेत्र में क्रांति सी ला दी. इसके बाद इस दिशा में तेजी से काम होने लगा. आज शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र है जिससे नैनो टेक्नोलॉजी अछूता है.

    नैनो टेक्नोलॉजी उत्पादों के प्रकार (Types of Nano Technology Products in Hindi)

    विमा के आधार पर नैनो टेक्नोलॉजी को चार प्रकार में विभाजित किया जाता है. ये है:

    1. शून्य विमीय– इसके तीनों विमाओं का आकार एक नैनोस्केल से छोटा है. जैसे- फुलरीन, क्वांटम डॉट्स, नैनोकण इत्यादि.
    2. एक विमीय: ऐसे नैनो पदार्थों का एक विमा एक नैनोस्केल से बड़ा होता है और अन्य एक नैनोस्केल से छोटे होते है. उदाहरण के लिए- नैनोवायर, नैनोट्यूब, नैनोरॉड एक विमीय नैनो पदार्थ के उदाहरण है.
    3. दो विमीय– वैसे नैनो पदार्थ, जिनका दो विमा एक नैनोस्केल से बड़ा हो और तीसरा विमा एक नैनोस्केल से छोटा हो, दो विमीय कहलाता है. इसके उदाहरण है- नैनोफिल्म्स, नैनोलेयर, नैनोकोटिंग और ग्राफीन इत्यादि.
    4. त्रिविमय– इन नैनो पदार्थों का तीनों विमा एक नैनोस्केल से थोड़ा बड़ा होता है. मूल कण के तीनो विमा एक नैनोस्केल के समीप होते है. इसलिए इसे भी नैनो पदार्थ माना जाता है. इसके कुछ उदाहरण है- नैनोवेयर के बंडल, बल्क पाउडर, पोलीक्रिस्टल्स, डिस्पर्सन ऑफ़ नैनोपार्टिकल्स आदि.

    नैनो टेक्नोलॉजी की शक्ति : अनेक क्षेत्रों में क्रांति सम्भव

    एक ऐसी दुनिया, जहां बीमारियों का इलाज सटीक हो, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण कई गुना अधिक कुशलता से काम करे और पर्यावरणीय चुनौतियाँ चुटकियों में हल हो जाएं. आपको ऐसा होना सुदूर भविष्य में संभव लग रहा होगा. लेकिन यह भविष्य की दुनिया में यानी कोई दूर की संभावना नहीं बल्कि वर्तमान वास्तविकता है, जिसका श्रेय नैनो टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति को जाता है.

    नैनो टेक्नोलॉजी यानी परमाणु और आणविक पैमाने पर पदार्थ का हेरफेर ने हमारे जीवन में चमत्कार लाया है. नैनो टेक्नोलॉजी प्रदूषणकारी पदार्थों, ऊर्जाओं, प्रक्रियाओं के विकास और विषाक्त गैसों का पता लगाने में मदद कर सकता है. आगे नैनो टेक्नोलॉजी से बने कुछ उत्पादों के सम्बन्ध में वर्णन किय गया है, जिससे आप इस तकनीक के उपयोग के संभावनाओं को समझ पाएंगे. इसलिए इस भाग में हम नैनो टेक्नोलॉजी के व्यापक अनुप्रयोग और चिकित्सा, इलेक्ट्रॉनिक्स, ऊर्जा में क्रांति लाने की इसकी अपार संभावनाओं का पता लगाएंगे, साथ ही इसके उपयोग से जुड़ी चुनौतियों और नैतिक विचारों पर संक्षिप्त में प्रकाश डालेंगे.

    नैनो टेक्नोलॉजी के अनुप्रयोग (Applications of Nano Technology in Hindi)

    चिकित्सा और स्वास्थ्य सेवा (Medical and Health Services)

    दवा वितरण प्रणालियों में क्रांति लाकर, नैनोटेक्नोलॉजी लक्षित उपचारों को सक्षम बनाती है. इससे दवा का दुष्प्रभाव कम होता है दवा का अधिकतम प्रभावशीलता प्राप्त करते है. उत्कृष्ट चिकित्सकीय चित्र प्राप्त करने में भी यह सहायक है. इसके अलावा, पुनर्योजी चिकित्सा और ऊतक इंजीनियरिंग में नैनो टेक्नोलॉजी की अपार क्षमता है. किसी अंग के विफलता और उत्तकों में क्षति का इलाज में नैनो टेक्नोलॉजी अत्यंत कारगर माना जा रहा है. भविष्य में मानसिक समेत अन्य उत्तकीय रोगों का इलाज नैनो विज्ञान में संभव है.

    इलेक्ट्रॉनिक्स और प्रौद्योगिकी (Electronics and Technology)

    प्रोसेसर के के सूक्ष्मीतकरण के साथ क्षमता विस्तार जैसे कारनामे नैनोस्केल पर सामग्रियों के सटीक हेरफेर के माध्यम से संभव हो गया है. ऊर्जा भंडारण में नैनोमटेरियल के उपयोग से बेहतर दक्षता और लंबे जीवनकाल वाली बैटरियों का विकास हुआ है. इसके अलावा, नैनोटेक्नोलॉजी ने सौर कोशिकाओं की प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिससे सूर्य के प्रकाश को बिजली में अधिक कुशलता से रूपांतरण सम्भव हो सका है. नैनोटेक्नोलॉजी लचीले डिस्प्ले और पहनने योग्य उपकरणों के लिए भी मार्ग प्रशस्त कर रही है. इस तरह नैनो टेक्नॉलजी उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग में भी नवाचार के लिए नए रास्ते पेश कर रही है.

    पर्यावरण और ऊर्जा (Environment and Energy)

    पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान और टिकाऊ ऊर्जा स्रोतों का विकास पृथ्वी के स्वास्थ्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है. नैनोटेक्नोलॉजी का क्षेत्रों में सुधार का काफी संभावनाएं प्रदान करती है। करता है. नैनोमटेरियल का उपयोग प्रदूषण निवारण और जल शुद्धिकरण प्रक्रियाओं को सुविधाजनक बनाने, स्वच्छ और सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित करने के लिए किया जा सकता है. इसके अलावा, नैनोटेक्नोलॉजी कुशल ऊर्जा उत्पादन और भंडारण को सक्षम बनाती है, जो हमें टिकाऊ ऊर्जा समाधानों के करीब लाती है. नैनोटेक्नोलॉजी के माध्यम से विकसित हल्के और ईंधन-कुशल सामग्रियां भी ऊर्जा क्षमता बढ़ाकर कार्बन उत्सर्जन को कम करती है. इस तरह हम परिवहन प्रदुषण को भी नैनो टेक्नोलॉजी से सम्बोधित कर पा रहे है.

    वस्त्र उद्योग (Garment Industry)

    • नैनो टेक्नोलॉजी के उपयोग से वस्त्रों के रंगों और रेशों के आकार में मनवांछित परिवर्तन लाया जा सकता है. इससे लम्बे समय तक गंदे न होने वाले कपड़े और टिकाऊ कपड़ों का निर्माण भी सम्भव है.
    • नैनो तकनीक के उपयोग से ऐसे कपड़ों का निर्माण भी सम्भव है जो जीवाणु और धूलकणों को हमसे या हमारे नजरों से दूर रखे. नैनो सिल्वर से बने मौजे दुर्गन्ध पैदा करने वाले जीवाणुओं को पनपने नहीं देते है. वहीँ, कार्बन नैनो ट्यूब से बने कपड़े कार्बन फाइबर से हुए प्रकाश के परावर्तन से रंग का निर्माण करते है. इस तरह ये कपड़े के ड्राइक्लीनिंग का समस्या का समाधान कर देते है.
    • नैनो एधेसिव के उपयोग से कपड़े सिकुड़ नहीं पाते है. इससे बुलेट प्रूफ कपड़ों का निर्माण भी संभव है.

    कृषि और फसल उत्पादन (Agriculture and Crop Production)

    नैनो खेती में नैनो रसायनिक और जैविक तत्वों का उपयोग करके फसलों की संवर्धनशीलता में सुधार होता है. इससे फसलों को बीमारियों से बचाने और उन्हें अधिक मजबूत बनाने में मदद मिलती है. नैनो टेक्नोलॉजी के इस अद्भुत उपयोग से फसलों के उत्पादकता में सुधार होता है और उत्पादन बढ़ जाता है.

    इसके साथ ही नैनो सेंसर और विश्लेषक के उपयोग से भूमि की नमी, फसलों की जल आपूर्ति, और मौसम के परिवर्तन का अध्ययन किया जा सकता है. फसलों के गुणवत्ता और मानकों में सुधार के लिए नैनो स्तर पर उत्पाद का परिक्षण किया जा सकता है. फसल का भी इसी तकनीक से आकलन सम्भव है. इससे किसानों को अधिक जानकारी मिलेगा और वे अपनी खेती को समृद्धि से प्रबंधित कर सकते हैं. कृत्रिम बुद्धिमत्ता के संयोजन से इसका उपयोग खाद्य सुरक्षा के दृष्टि से भी क्रन्तिकारी है.

    प्राकृतिक रूप से मौजूद नैनो पदार्थ (Naturally available Nano Materials)

    प्रकृति में नैनोकण कई रूपों में मौजूद है. यह राख, समुद्र से निकले कण, ज्वालामुखी से निकले पदार्थ और धूलकण के रूप में मौजूद होते है. पौधों और कई छोटे जीवों में भी नैनो संरचना होता है. छोटे किट-पतंगों के छोटे अंग जैसे आँख व सेंसर नैनो तकनीक का सजीव उदाहरण हैं. इसके मदद से ही जीव अपने परिवेश को पहचान पाते है और हवा में उड़ पाते है.

    आजकल वैज्ञानिक भी परमाणु को पुनः व्यवस्थित कर नए नैनो पदार्थ प्राप्त करने में सक्षम है, जो अलग गुण वाले होते है. उदाहरण के लिए ये अधिक मजबूत, हलके और अलग रंग के होते है. वैज्ञानिक नैनो पदार्थ का इस्तेमाल का कृत्रिम नैनो संरचना बनाने में सक्षम है, जैसे मोड़दार मोबाईल स्क्रीन.

    नैनो टेक्नोलॉजी पर आधारित कुछ महत्वपूर्ण खोज (Some Important Discoveries using Nano Technology in Hindi)

    fullerine transparent image
    फुलरीन: नैनो टेक्नोलॉजी से बना कार्बन का नया अणु

    यहां, हम नैनो टेक्नोलॉजी के उपयोग के माध्यम से किए गए उल्लेखनीय नवाचारों का एक मिश्रित संकलन प्रस्तुत रहे है.

    1. एक्स-फाइब्रोमाइक्रोस्कोप (X-FibroMicroscope): यह नैनो टेक्नोलॉजी इस इस्तेमाल से बनाया गया उत्पाद है, जो हमें अति-सूक्ष्म जटिल संरचनाओं को देखने में सक्षम बनाता है. इससे अणुसूक्ष्मीकरण के रहस्यमय जगत को समझने में हमें मदद मिली है.
    2. क्यूबिट-टेक( Qubit-Tek): अत्याधुनिक क्वांटम कंप्यूटिंग क्षेत्र में नैनो टेक्नोलॉजी आधारित क्यूबिट-टेक का अद्वितीय योगदान है. क्यूबिट-टेक नैनो टेक्नोलॉजी के उपयोग से सुसंगत और स्थिर क्वांटम बिट्स को सक्षम बनाता है. इससे गणना में क्रांतिकारी बदलाव आए हैं.
    3. सिंथो-नैनोमेड (Syntho-NanoMed): आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में, सिंथो-नैनोमेड एक अभूतपूर्व चमत्कार के रूप में उभरा है. नैनो प्रौद्योगिकी की रहस्यमय क्षमता का उपयोग करते हुए सटीकता से दवा का निर्माण किया जाता है.
    4. क्रोनो-नैनोसेल (Chrono-NanoCell): इसका इस्तेमाल कोशिकीय जीव विज्ञान के क्षेत्र में होता है. इसका इस्तेमाल कोशिका के आंतरिक संरचना के अध्ययन में होता है. इससे किसी कोशिकीय बिमारी का पता भी चल जाता है. इसलिए इसका तंत्रिका विज्ञान में काफी इस्तेमाल होता है.
    5. प्लास्मो-नैनोकोट(Plasmo-NanoCoat): नैनो टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से बना यह एक विशेष कोटिंग है, जो नैनोस्केल स्तर पर वस्तुओं की सतह को संशोधित करती है. यह परमाणु स्तर पर सतह के गुण में बदलाव ला देता है. सौर पैनल में यह ऊर्जा अवशोषण को कई गुना बढ़ा देता है. इसने सौर ऊर्जा संचयन को उन्नत बना दिया है. इसके अलावा, संचार उद्योग में इसका उपयोग सिग्नल ट्रांसमिशन और रिसेप्शन क्षमताओं को बढ़ाने के लिए किया जाता है. नए खोजो व अनुसंधानों द्वारा मार्ग प्रशस्त किए जाने पर, प्लास्मो-नैनोकोट में विभिन्न वैज्ञानिक और तकनीकी क्षेत्रों में क्रांति लाने की क्षमता है.
    6. एयरो-नैनोग्राफीन (Aero-NanoGraphene): कार्बन के अपरूप ग्राफीन (C60) के द्वि-आयामी रूप को ही ऐरो-नैनोग्राफीन कहा जाता है. इसे ग्राफीन में नैनोस्केल पर बदलाव करके बनाया जाता है, जिससे इसमें असाधारण यांत्रिक शक्ति, तापीय चालकता और विद्युत गुण आ जाते है.
      • नैनोग्राफीन के असाधारण गुणों के कारण इसका व्यापक और विविध इस्तेमाल होता है. एयरोस्पेस अनुप्रयोगों में, इसका उपयोग विमान के लिए हल्के और मजबूत सामग्री के निर्माण, ईंधन दक्षता और समग्र प्रदर्शन को बढ़ाने के लिए किया जाता है. इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग में, इसकी उत्कृष्ट विद्युत चालकता के कारण इसका उपयोग तेज़ और अधिक कुशल इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के उत्पादन में किया जाता है.
      • इसके अलावा, एयरो-नैनोग्राफीन का उपयोग बैटरी और सुपरकैपेसिटर जैसे ऊर्जा भंडारण उपकरणों में भी किया जाता है, ताकि उनकी ऊर्जा घनत्व और चार्ज-डिस्चार्ज दरों को अविश्वसनीय रूप से बढ़ाया जा सके. यह प्रदूषकों को खुद में घोलने में भी सक्षम है, इसलिए इसका इस्तेमाल, जल शुद्धिकरण और वायु निस्पंदन में भी है. इसकी यांत्रिक शक्ति से निर्माण-सामग्री और भी मजबूत होते है. चिकित्सा में भी इसके उपयोग की संभावनाए हैं.
      • एयरो-नैनोग्राफीन का बहुमुखी गुण और असाधारण विशेषताएं इसे एक अहम सामग्री बनाता हैं.
    7. क्वांटम-एक्सआर (Quantum XR): इसका इस्तेमाल चित्रों के नैनो स्तर पर आकलन करने के लिए किया जाता है. इससे एक्स-रे जैसे कई चिकित्सीय चित्रों के सूक्ष्म विश्लेषण के लिए किया जाता है. यह परमाणु स्तर पर जटिल संरचनाओं को भी उजागर करने में सक्षम है. चित्रों में परमाणु स्तर के खामी को भी पकड़ने में सक्षम होने के कारण, इसके इस्तेमाल से चिकित्सकों को इलाज में काफी सहूलियत प्रदान करता है.
    8. बायो-नैनोजेन (Bio-NanoGen): यह नैनो टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से बना एक उन्नत प्लेटफार्म है, जो जीन एडिटिंग में सक्षम है. इसमें सटीक जीनोम संपादन प्राप्त करने के लिए नैनो प्रौद्योगिकी, आनुवंशिक इंजीनियरिंग उपकरण और उन्नत एल्गोरिदम का संयोजन शामिल है. इसके कारण ही जीएम फ़ूड का सपना साकार हो सका है.
    9. न्यूरो-नैनोन्यूरो (Neuro-NanoNeuro): यह तंत्रिका विज्ञान (Nerology) और नैनोविज्ञान के इस्तेमाल से बना एक तकनीक है. इससे सम्पूर्ण तंत्रिका तंत्र और मष्तिष्क के बनावट के उच्च उच्च-रिज़ॉल्यूशन मैपिंग की जाती है, जो चिकित्सकों को मष्तिष्क और मानसिक रोगियों के इलाज में मददगार है.
    10. नैनो-फार्माक्रोनो (Nano-PharmaChrono): दवा के उपभोग में नैनो प्रौद्योगिकी को एकीकृत करके, नैनो-फार्माक्रोनो तकनीक का ईजाद किया गया है. यह दवाओं के अधिक लक्षित और नियंत्रित रिलीज को सक्षम बनाता है. दूसरे शब्दों में, इस तकनीक में मरीज के शरीर में तय मात्रा सटीक समय में छोड़ा जाता है. इससे मरीजों को सही समय में सही मात्रा में दवा की खुराक मिलती है.
    11. ग्राफीन (Graphene): ग्राफीन, कार्बन के अपरूप ग्रेफाइट का एक परत वाला द्विविमीय रूप है. यह एक नैनो पदार्थ है, जो इससे पहले संभव नहीं माना जाता था. इसमें ग्रेफाइट के परमाणु का एक परत होता है, जिसमें कार्बन मजबूती से हनीकांब क्रिस्टल लैटिस आकार में आपस में बंधे होते है. ग्रेफाइट के ग्राफ (Graph) में इन (ene) जोड़कर ग्राफीन शब्द का ईजाद किया गया है. अत्याधुनिक नैनो पदार्थ ग्राफीन कई क्षेत्रों में बदलाव लाने में सक्षम है-
      • सामान्य तापमान पर ग्राफीन की चालकता अन्य पदार्थों से काफी अधिक है. इसके इस गुण का उपयोग करके तेज रफ़्तार वाले कंप्यूटर व सम्बंधित उपकरण बनाए जा सकते है. इसके प्रयोग से तेज रफ़्तार वाला ट्रांजिस्टर बनाया जा चुका है, जो तीन वायरलेस डिवाइस का काम एक साथ करने में सक्षम है.
      • तेज चालकता के साथ-साथ यह प्रकाश संवेदी भी है. इसलिए इससे सोलर सेलों व एलईडी के क्षमता को सुधारे जाने की संभावना है. इसके उपयोग से कई अन्य इलेक्ट्रॉनिक व आधुनिक उपकरणों व मशीनों के प्राद्यौगिकी में सुधार लाये जाने की संभावना है.
      • यह रबड़ से भी अधिक लचीला है, जो लचीले टचस्क्रीन बनाने के लिए मुफीद है. वैज्ञानिकों का मानना है कि इसके उपयोग से नए पीढ़ी के बैटरी, मेमोरी सिस्टम, फोटो डिटेक्टर और अल्ट्राफास्ट लेज़र बनाए जा सकते है. साथ ही, इसमें प्लेटिनम और इरेडियम जैसे दुर्लभ पदार्थों को प्रतिस्थापित करने का भी क्षमता है.
    12. नैनोमिसेल्स (Nanomicelles): यह नैनो टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से बना चमत्कारी पदार्थ है, जो कैंसर वाले कोशिकाओं में दवा के नियंत्रित पहुँच को सफल बनाता है. नैनोमिसेल्स का आकार पांच से एक सौ नैनोमीटर के बीच होता है.
      • ये गुण में एम्फीफिलिक होते हैं, जिसका बाहरी भाग ‘हाइड्रोफिलिक’ और अंदरूनी ‘हाइड्रोफोबिक’ होता है. नैनोमिकल्स के हाइड्रोफिलिक गुण दवा को पानी में घुलनशील बनाते हैं और हाइड्रोफोबिक गुण दवा को ट्यूमर तक पहुंचाते है. पानी में घुलनशील हिस्सा इसे अंतःशिरा वितरण के योग्य बनाता है और अघुलनशील हिस्सा कैंसर ट्यूमर तक दवा पहुंचता है.
      • अंतःशिरा में पहुँचने के बाद इनमें परिसंचरण से बचने की संभावना होती है और ट्यूमर में पहुंचकर घुल जाते है, जहाँ रिसाव हो रहा होता है. ये भी जान ले कि ये रिसावयुक्त रक्त वाहिकाएँ हमारे स्वस्थ अंगों में उपस्तिथ नहीं होती है. इस तरह से नैनोमीसल्स कैंसर के सटीक इलाज में अत्यधिक लाभकारी है.

    नैनो टेक्नोलॉजी में नोबेल पुरस्कार विजेता (Nobel Prize Winners in Nano Technology in Hindi)

    1950 में अपने प्रादुर्भाव के बाद से नैनो टेक्नोलॉजी का निरंतर विकास हुआ है. इससे जुड़े लाखों पेटेंट भी वैज्ञानिकों ने अपने नाम किए है. साथ ही, उन्हें कई सम्मानों और पुरस्कारों से नवाजा गया है. इनमें कुछ अद्भुत खोजकर्ता और आविष्कारक को नोबेल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है, जो इस प्रकार है-

    1986 में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार

    ऑप्टिकल माइक्रोस्कोप में देखी जा सकने वाली वस्तुओं का आकार प्रकाश की तरंगदैर्ध्य के कारण सिमित होता है. साल 1986 में नैनो टेक्नोलॉजी के उपयोग से हेनरिक रोहरर (Heinrich Röhrer) और गर्ड बिनिग (Gerd Binnig) ने स्कैनिंग टनलिंग माइक्रोस्कोप विकसित किया, जो ऑप्टिकल मिक्रोस्कोप से कई गुना अधिक क्षमतावान था.

    यह उपकरण एक अत्यंत पतले बिंदु पर लगा होता है, जो सतह के बहुत करीब होता है. इस बिंदु और सतह के बीच हल्का विद्युत् आवेश होता है. यह आवेश, क्वांटम यांत्रिक भौतिकी और टन्नल प्रभाव से उत्पन्न होता है, जिसकी मात्रा सतह से दूर होने के साथ कम होते जाती है. इस बदलाव के कारण हम परमाणु और इसके बंधन को देख पाते है.

    दोनों वैज्ञानिकों ने इस उपकरण के प्रयोग से कई परमाणुओं में छोटे-छोटे बदलाव भी किए. आगे चलकर यंत्र के उपयोगिता और महत्ता को स्वीकारते हुए, नोबेल फाउंडेशन ने 1986 में दोनों को अपने प्रतिष्ठित पुरस्कार से सम्मानित किया. एनालॉग एटॉमिक फोर्स माइक्रोस्कोप का आविष्कार भी इनके ही नाम है.

    1986 में ही प्रोफेसर अर्न्स्ट रुस्का (Prof. Ernst Ruska)को इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप के आविष्कार के लिए भौतिकी में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. कुल पुरस्कार राशि का आधा भाग प्रो. रूस्का को दिया गया, शेष राशि हेनरिक रोहरर और गर्ड बिनिग में समान रूप से बाँट दिया गया.

    1996 का रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार

    हैरी क्रुटो(Harry Kroto), रिचर्ड स्मली(Richard Smalley) और रॉबर्ट कर्ल(Robert Curl) द्वारा “फुलरेंसेस” या “फुल्लेरिन” (Fullerenes) की खोज के लिए दिया गया था. यह कार्बन के 60 परमाणुओं से बना एक अपरूप है, जो फूटबाल के आकार का होता है. इसका इस्तेमाल अतिचालक, अर्द्धचालक, स्नेहक, उत्प्रेरक और विद्युत तार के निर्माण में होता है. यह एड्स की रोकथाम में भी सहायक है. हैरत की बात है कि 15 साल बाद 2010 में भी कार्बन के नए रूप ग्राफीन के खोज के लिए नोबेल का पुरस्कार दिया गया. इस तरह एक तत्व के लिए दो बार नोबेल पुरस्कार पहली बार दिया गया.

    2010 का भौतिकी में नोबेल पुरस्कार

    मनोरंजन के लिए किए गए एक प्रयोग में दो वैज्ञानिकों ने यह आविष्कार कर दिया था. उन्होंने ग्रेफ़ाइट के परत को स्कॉच टेप पर उकेरा. फिर दूसरे टेप को चिपकाकर अलग करते गए. यह तबतक जारी रहा जबतक उन्हें एक परत वाला ग्रेफाइट नहीं मिला. गीम और नोवोसेलोव ने अंत में इसका विश्लेषण कर इसका नाम ग्राफीन रखा. इसका आविष्कार करने वाले डच वैज्ञानिक आंद्रे गीम (Andre Geim) और रुसी व ब्रिटिश नागरिक कोस्त्या नोवोसेलोव (Kostya Novoselov) को 2010 में भौतिकी के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.

    2014 का रसायन में नोबेल पुरस्कार

    अमेरिकी अमेरिकी रसायनशास्त्री एरिक बिट्जिग (Eric Betzig) और विलियम ई. मोर्नर (William E. Moerner) तथा जर्मन वैज्ञानिक स्टीफन हेल (Stefan Hell) को संयुक्त रूप से प्रदान किया गया. इन्होंने अतिसूक्ष्म चीजों को देखने के लिए बेहद शक्तिशाली ‘‘फ्लोरेसेंस माइक्रोस्कोपी’’ (super-resolved fluorescence microscopy) का विकास करने के लिए सम्मानित किया गया.

    इन्होंने माइक्रोस्कोप में नैनो तकनीक के इस्तेमाल से इस खोज को सम्भव बनाया. सामान्य माइक्रोस्कोप में प्रकाश के तरंगदैर्घ्य की लम्बाई अतिसूक्ष्म वस्तुओं को देखने से रोकती थी. इन वैज्ञानिकों ने प्रकाश के प्रतिदीप्ति का उपयोग किया और उन नैनो पदार्थों का उपयोग किया, जो प्रकाश के सम्पर्क में आने से और भी चमकदार हो जाते थे. इससे छोटे से छोटे वस्तु भी दिखने लगते थे. आगे, इन छवियों को संयोजित करके बहुत उच्च रिज़ॉल्यूशन की एक छवि प्राप्त की जाती है जिसमें विभिन्न अणु सक्रिय होते हैं. इससे जीवित कोशिकाओं के अंदर होने वाली प्रक्रियाओं को देखना संभव हो जाता है.

    2016 का रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार

    साल 2016 में केमिस्ट्री का नोबेल पुरस्कार फ़्रांस के प्रोफेसर जीन पियरे सॉवेज (Prof. Jean Pierre Sauvage), ब्रिटेन के प्रोफेसर सर जे फ्रेजर स्टोडडार्ट (Prof. Sir J. Fraser Stoddart) और नीदरलैंड के प्रोफेसर बर्नार्ड लुकास फेरिंगा (Prof. Bernard Lucas Feringa) को संयुक्त रूप से दिया गया है. इस उपलब्धि के पीछे उनके द्वारा खोजे गए आणविक मशीन का योगदान है. यह मशीन बाल के मोटाई से हजार गुना पतला है, जो ऊर्जा मिलते ही सक्रीय हो जाता है और अपने कार्य का निष्पादन करता है. आकार में सूक्ष्मता के पीछे, नैनो टेक्नोलॉजी का योगदान है, इसलिए इसे नैनो विज्ञान में मिला पुरस्कार भी कहा जाता है.

    भारत में नैनोटेक्नोलॉजी का विकास (Evolution of Nanotechnology in India)

    विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) नैनो विज्ञान का नोडल एजेंसी है. भारत में1980 के दशक में नैनो टेक्नोलॉजी पर अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने के लिए कई कार्यक्रम/ योजनाएँ शुरू की गईं. परणामस्वरूप भारतीय अनुसंधानकर्ताओं ने नैनो तकनीक का इस्तेमाल कर कई नए खोज किए, जो मानवता के लिए एक मिशाल है. भारत में नैनो टेक्नोलॉजी के विकास से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य इस प्रकार है-

    1. 9वीं पंचवर्षीय योजना (1998-2002) में पहली बार इसका उल्लेख किया गया था. फिर, इस क्षेत्र में अनुसंधान के लिए कोर समूह स्थापित किए गए. इस समय अतिचालकता, रोबोटिक्स, तंत्रिका विज्ञान और कार्बन और नैनो सामग्री में खोज को बढ़ावा दिया गया.
    2. साल 2002 में “नैनो सामग्री पर कार्यक्रम: विज्ञान और उपकरण” भारत में नैनो टेक्नोलॉजी के लिए मिल का पत्थर साबित हुआ. डीएसटी ने मूर्त प्रक्रियाएं, उत्पाद और प्रौद्योगिकियाँ को बढ़ावा देने के लिए सीधा सहयोग आरम्भ किया.
    3. वर्ष 2001-02 में डीएसटी ने नैनोकण पर एक विशेषज्ञ समूह का स्थापना किया. सरकार ने दसवें पंचवर्षीय योजना में भी नैनो टेक्नोलॉजी के विकास के लिए नैनो पदार्थ विज्ञान और प्राद्यौगिकी मिशन के स्थापना का प्रस्ताव पारित किया. एक रानीतिक रिपोर्ट में मुलभुत अनुसंधान और अनुप्रयोग के कार्यक्रम का रुपरेखा भी प्रस्तुत किया गया.
    4. विज्ञान और प्राद्यौगिकी विभाग के तत्वावधान में अक्टूबर, 2001 में नेशनल नैनोसाइंस एंड नैनोटेक्नोलॉजी इनिशिएटिव (NSTI) लॉन्च किया गया. इसका मकसद नौनो विज्ञान में अनुसंधान में बुनियादी ढांचे इसके निर्माण को बढ़ावा देना था. इसमें दवा, दवा का यपभोग और जीन संश्लेषण व डीएनए चिप्स से जुड़े अनुसंधान को भी बढ़ावा देने का निर्णय लिया गया.
    5. 3 मई 2007 को, नैनो विज्ञान और टेक्नोलॉजी से जुड़े पहलुओं को बढ़ावा देने और विकसित करने के लिए डीएसटी द्वारा नैनो मिशन (Nano Mission) का शुरुआत किया गया. इस उद्देश्य देश को लाभ पहुंचाने वाले नैनो टेक्नोलॉजी को बढ़ावा देना था. इस दौरान विभाग के द्वारा नैनो तकनीक से सम्बंधित विभिन्न क्षेत्रों को एकसाथ लाकर बहु एजेंसी कार्यक्रम का रुपरेखा तैयार किया गया. इसे ग्यारवीं पंचवर्षीय योजना के तहत तैयार किया गया था, जिसका नाम नैनो मिशन रखा गया.

    नैनो टेक्नोलॉजी पर भारतीय वैज्ञानिकों के कुछ महत्वपूर्ण उपलब्धियां

    भारत नैनो टेक्नोलॉजी पर काफी बेहतर काम कर रहा है. इस दिशा में हरेक साल दसियों हजार शोधपत्र प्रकाशित होते है. इस प्राद्यौगिकी के इस्तेमाल से सैकड़ो नैनो उत्पाद भारत में विकसित हुए है. इसके अलावा, जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च, बैंगलोर को दुनिया के शीर्ष 20 नैनोटेक्नोलॉजी अनुसंधान संस्थानों में स्थान दिया गया है. तो आइये जानते है भारतीय वैज्ञानिकों का इस क्षेत्र में कुछ ख़ास उपलब्धियां-

    • आईआईटी मद्रास के वैज्ञानिकों ने भूमिगत जल के शुद्धिकरण के लिए सस्ता और टिकाऊ आर्सेनिक फ़िल्टर का निर्माण किया है. इसे अमृत (AMRIT) नाम दिया गया है, जिसका मतलब “Arsenic and Metal Removal by Indian Technology ” होता है. इससे लेड, आर्सेनिक अन्य अशुद्धियों से जल-शुद्धिकरण संभव है. यह बायोपोलीमर रिइंफोर्स्ड सिंथेटिक ग्रैनुलर नैनो टेक्नोलॉजी (Biopolymer Reinforced Synthetic Granular Nano Technology Composite Technology) पर काम करता है.
    • भारतीय विज्ञान संसथान, बंगलुरु के वैज्ञानिकों ने द्विविमीय (2D) ग्राफीन को त्रिविमीय (3D) में बदलने में सफलता पाया है. ऐसा पोलीकॉप्रोलैक्टोन (Polycaprolactone-PCL) में ग्राफीन मिलाने से संभव हो सका. यह बहुलक ग्राफीन के कठोरता को 22 फीसदी तक बढ़ाने में सक्षम है, जो अस्थियों के निर्माण के लिए जरुरी वातावरण का निर्माण कर देता है. नए उत्तकों के निर्माण के कुछ समय बाद यह स्वतः ही विघटित हो जाता है.
    • राष्ट्रिय फार्मासूटिकल्स शिक्षण व शोध संस्थान, मोहाली ने ड्रग नैनो क्रिस्टल के विकास हेतु नैनोक्राईएसपी (NanoCrySP) नामक तकनीक ईजाद किया है. दुनिया के कई अन्य देशों के पास भी यह तकनीक मौजूद है.
    • आईआईटी मद्रास द्वारा विकसित कार्बन नैनो ट्यूब सिर्फ कैंसर के कोशिकाओं को समाप्त करता है. यह अन्य स्वस्थ्य कोशिकाओं को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है.
    • इंस्टीट्यूट ऑफ नैनो साइंस एंड टेक्नोलॉजी (INST), मोहाली ने कार्डियाक बायोमार्कर व कैंसर मार्कर का ईजाद किया है. यह संस्थान सभी तरह के प्रदुषण को अलग करने में सक्षम फ़िल्टर के निर्माण पर भी काम कर रहा है.

    चुनौतियाँ और नैतिक विचार (Challenges and Moral Thoughts)

    हालाँकि नैनोटेक्नोलॉजी की अपार क्षमता आशाजनक है. लेकिन इसके उपयोग से जुड़ी चुनौतियों और नैतिक विचारों पर विमर्श करना महत्वपूर्ण है. नैनोकण के मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर संभावित हानिकारक प्रभावों को कम हमारा नैतिक कर्तव्य है. साथ ही, नैनो टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में कार्यरत कर्मियों को इसके दुष्परिणाम से बचना भी एक चुनौती है. इसलिए नैनोमटेरियल के उपयोग के संबंध में सुरक्षा चिंताओं का पूरी तरह से मूल्यांकन किया जाना चाहिए. इसके अतिरिक्त, किसी भी संभावित जोखिम को कम करने के लिए गोपनीयता और निगरानी जैसे नैतिक विचारों की सावधानीपूर्वक समीक्षा किया जाना जारी रहना चाहिए.

    भविष्य की संभावनाएँ और निष्कर्ष (Future Prospects and Conclusion)

    नैनो टेक्नोलॉजी की भविष्य की संभावनाएं विस्मयकारी हैं. इस दिशा में निरंतर हो रहे अनुसंधान और विकास से विभिन्न उद्योगों में और भी अधिक परिवर्तनकारी सफलताओं का दावा किया जा रहा है. हालाँकि, संभावित जोखिमों को कम करते हुए इसकी पूरी क्षमता का दोहन सुनिश्चित करने के लिए नैनो टेक्नोलॉजी का जिम्मेदार और नैतिक कार्यान्वयन अत्यंत महत्वपूर्ण है. जैसे-जैसे नैनोटेक्नोलॉजी आगे बढ़ रही है, यह अपरिहार्य है कि यह स्वास्थ्य सेवा, इलेक्ट्रॉनिक्स, ऊर्जा और कई अन्य उद्योगों को नया आकार देगी, जिससे एक बेहतर और अधिक टिकाऊ दुनिया का निर्माण होगा.

    निष्कर्षतः, नैनोटेक्नोलॉजी एक शक्तिशाली शक्ति के रूप में उभरी है, जिसने कई क्षेत्रों को बदल दिया है और उद्योगों में क्रांति ला दी है. चिकित्सा, इलेक्ट्रॉनिक्स और पर्यावरण में इसके अनुप्रयोग चुनौतियों से निपटने के हमारे तरीके को नया आकार दे रहे हैं और नवीन समाधान पेश कर रहे हैं. हालाँकि, इसके जिम्मेदार कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए इसके उपयोग से जुड़ी चुनौतियों और नैतिक विचारों से निपटना भी जरुरी है. इस क्षेत्र में विकास को देखते हुए प्रगति और विभिन्न उद्योगों को नया आकार देने के लिए नैनोटेक्नोलॉजी की क्षमता असीमित है. निश्चित ही, यह समय कृत्रिम बुद्धिमत्ता के साथ ही नैनो टेक्नोलॉजी के व्यापक उपयोग का है.

    अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

    प्रश्न 1: नैनो टेक्नोलॉजी क्या है?

    उत्तर: नैनो टेक्नोलॉजी विज्ञान और इंजीनियरिंग का वह ब्रांच है, जिसमें किसी वस्तु का सूक्ष्तम रूप बनाया जाता है. इसमें परमाणु, अणु से लेकर सुपर कंप्यूटर तक के आकार को बिना गुणवत्ता में बदलाव लाएं छोटे से छोटे स्वरुप में ढालने की कोशिश की जाती है.

    प्रश्न 2: नैनो टेक्नोलॉजी के क्या उपयोग हैं?

    उत्तर: नैनो टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कृषि, खाद्य व पेय, चिकित्सा, स्वास्थ्य, ऊर्जा संचय, पर्यावरण संरक्षण, कंप्यूटिंग, इलेक्ट्रॉनिक्स, कॉस्मेटिक्स, सिक्योरिटी, फैब्रिक्स और अन्य विविध क्षेत्रों में किया जाता है.

    प्रश्न 3: नैनो टेक्नोलॉजी के फायदे क्या हैं?

    उत्तर: नैनो टेक्नोलॉजी से उच्च गुणवत्ता वाला प्रभावी उत्पादन, सरलता और सुगमता से सम्पन्न होते है. यह पर्यावरण संरक्षण, और सटीक और तेज इलाज में भी सक्षम है. AI और नैनो विज्ञान के मिश्रण से चिकित्सा में क्रन्तिकारी बदलाव आए है.

    प्रश्न 4: नैनो टेक्नोलॉजी के साथ साथ चुनौतियाँ कौन सी हैं?

    उत्तर: नैनो टेक्नोलॉजी से नैनो प्रदूषण और इसपर काम करने वाले वैज्ञानिकों के लिए सुरक्षा सम्बन्धी खतरे उत्पन्न होना चुनौती माना जाता हैं.

    प्रश्न 5: नैनो टेक्नोलॉजी का भविष्य क्या है?

    उत्तर: नैनो टेक्नोलॉजी का भविष्य बहुत उज्ज्वल है. यह तकनीक के दुनिया में क्रन्तिकारी बदलाव लाने में सक्षम है, जो मानव जीवन में सुधार ला सकता है.

    नैनो टेक्नोलॉजी से जुड़े पाठ्यक्रम (Nano Technology Courses in Hindi)

    12वीं के बाद ही नैनो टेक्नोलॉजी से जुड़े कोर्स में दाखिला लिया जा सकता है. इसके लिए बारहवीं में विज्ञान विषय से उत्तीर्णता अनिवार्य है. बेहतर संभावनाओं से लैस इस क्षेत्र में आप नए ऊंचाइयों को छू सकते है.

    • नैनोसाइंस में बी.एससी (B.Sc in Nanoscience)
    • नैनो टेक्नोलॉजी के साथ रसायन विज्ञान में बीएससी (B.Sc in Chemistry with Nanotechnology)
    • नैनो टेक्नोलॉजी में बी.एससी. (ऑनर्स) (B.Sc (Hons) in Nanotechnology)
    • ग्रीन नैनो टेक्नोलॉजी के साथ रसायन विज्ञान में स्नातक (Bachelors in Chemistry with Green Nanotechnology)
    • बी.एस. नैनोसिस्टम इंजीनियरिंग में (B.S. in Nanosystem Engineering)
    • बीटेक नैनो टेक्नोलॉजी (B. Tech. in Nanotechnology)
    • बीई नैनो टेक्नोलॉजी (B. E. Nanotechnology)

    आप स्नातक के बाद निम्न कोर्स को पोस्ट ग्रेजुएट के लिए चुन सकते है.

    • एमटेक नैनो टेक्नोलॉजी (M. Tech in Nanotechnology)
    • एमई नैनो टेक्नोलॉजी (M. E. in Nanotechnology)
    • एमटेक कार्यात्मक सामग्री और नैनो टेक्नोलॉजी (M. Tech. Functional Materials and Nanotechnology)
    • एमटेक नैनो टेक्नोलॉजी सेल्फ फाइनेंस (M. Tech. Nanotechnology Self Finance)

    इसके साथ ही, नैनो टेक्नोलॉजी में सर्टिफिकेट और पीएचडी से जुड़े पाठ्यक्रम भी विभिन्न संस्थानों में उपलब्ध है.

    नैनो टेक्नोलॉजी पर कोर्स उपलब्ध करवाने वाले संस्थान (Nano Technology Institutes and Colleges)-

    • राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कालीकट, कोझिकोड (National Institute of Technology, Calicut, Kozhikode)
    • एसआरएम इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी, चेन्नई
    • भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-मद्रास (आईआईटी-मद्रास), चेन्नई
    • जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नयी दिल्ली
    • भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, रुड़की (आईआईटी-रुड़की)
    • गुरु गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय, द्वारका (Guru Gobind Singh Indraprastha University, Dwarka)
    • एनआईटी कुरुक्षेत्र (NIT Kurukshetra)
    • राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, पटना (National Institute of Technology, Patna)
    • वेल्लोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (VIT)
    • भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान बंबई, मुंबई (IIT Bombay, Mumbai)
    • पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़
    • भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, पटना (आईआईटी पटना)
    • जादवपुर विश्वविद्यालय, कोलकाता
    • रासायनिक प्रौद्योगिकी संस्थान (आईसीटी), मुंबई
    • नेताजी सुभाष प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, द्वारका
    • पेरियार मनिअम्मई इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी, वल्लम
    • यू पी इ एस, देहरादून (UPES, Dehradun)
    • भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु (Indian Institute of Sciences, Bengaluru)
    • भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), इंदौर
    • के.एस.रंगासामी कॉलेज ऑफ टेक्नोलॉजी, तिरुचेंगोडे
    • शिवाजी विश्वविद्यालय, कोल्हापुर
    • जवाहरलाल नेहरू प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, हैदराबाद
    • मौलाना आजाद राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, भोपाल
    • उच्च शिक्षा के लिए नूरुल इस्लाम केंद्र
    • अलगप्पा विश्वविद्यालय, कराइकुडी
    • विश्वेश्वरैया प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (वीटीयू), बेलगावी
    • अन्नामलाई विश्वविद्यालय, अन्नामलाई नगर
    • नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग साउथ कैंपस (एनआईई साउथ), मैसूर
    • हैदराबाद विश्वविद्यालय, हैदराबाद
    • पांडिचेरी विश्वविद्यालय, पुदुचेरी

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