विश्व के महान सम्राट नेपोलियन बोनापार्ट का जन्म 15 अगस्त सन् 1769 को कोर्सिल द्वीप में हुआ था. नेपोलियन के माता-पिता इटालियन मूल के थे. उसके पिता का नाम कार्लों बोनापार्ट था. कुलीन श्रेणी का परिवार होते हुए भी उसके पास जमीन-जायदाद का अभाव था. नेपोलियन के पिता वकील थे. परिवार मे आठ सन्ताने थी और आय के साधन सीमित थे. इस कारण कार्लों बोनापार्ट ने अपने दो बड़े लड़कों को फ्रांस मे शिक्षा दिलाने का निश्चय किया. बड़े लड़के जोसफ को पुरोहिताई की शिक्षा दी गई और नेपोलियन को ब्रीएन के सैनिक स्कूल मे भर्ती करा दिया गया.
नेपोलियन का उदय और उसकी शक्ति मे वृद्धि बहुत तेजी से हुई. साथ ही उसकी महत्वाकांक्षा मे भी वृद्धि हुई जिससे उसने प्रत्येक अवसर का लाभ उठाकर उन्नति की.
नेपोलियन के उदय (उत्थान) के कारण (Reasons for the rise of Napoleon)
बहुमुखी प्रतिभा के धनी नेपोलियन बोनापार्ट को आरंभिक सफलताएं प्राप्त हुए. इसके बाद उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा व निरंतर प्रगति करता गया. उसके उत्थान के मुख्य कारण निम्न प्रकार से वर्गीकृत किए जा सकते हैं:
1. सैनिक सफलता
नेपोलियन की सैनिक योग्यता बड़ी विलक्षण और अद्भुत थी. उसे अपनी गरीबी का एहसास था. उसके साथी विद्यार्थी अक्सर उसका मजाक उड़ाया करते थे. यही फ्रेंच छात्रों के साथ पढ़ते हुए उसे अपनी मातृभूमि को स्वतंत्र करने की इच्छा हुई.
सैनिक शिक्षा समाप्त होने पर उसे 1785 ई. मे सेना मे द्वितीय लेफ्टीनेण्ट बना दिया गया. बाद मे क्रांति का विरोध कर उसने राजतंत्रवादिवादियों का विश्वास पाया इसके बाद टूलो से फ्रांसीसी जहाजी बड़े को सुरक्षित निकालने के कारण उसे ब्रिग्रेडियर बनाया गया. फिर नेशनल केन्वन्शन की भीड़ के आक्रमण से रक्षा करने के कारण उसे सेना का सेनापति बनाया गया.
2. डायरेक्ट्री शासन मे उत्कर्ष
नेपोलियन ने लोकप्रियता प्राप्त करके और डायरेक्टरों के चरित्र, भ्रष्टाचार और अनिश्चित दशा तथा फूट को भलीभांति समझर स्वयं फ्रांस का शासक बनने की योजना बनाई. इसके अन्तर्गत उसने इटली और आस्ट्रेलिया को जीतकर लोकप्रियता पाई तथा भावी योजना के लिये भारी मात्रा मे धन भी पाया. इससे नेपोलियन को लोकप्रियता, शक्ति और धन मिल गया.
3. फ्रांस के गौरव मे वृद्धि
नेपोलियन ने अपनी महत्वपूर्ण विजयों से फ्रांस को अंतर्राष्ट्रीय गौरव प्रदान किया. संपूर्ण यूरोप नेपोलियन की विजयो से आतंकित हो गया और विदेशी राज्यो पर फ्रांस की धाक स्थापित हो गई. इन विजयों ने उसे इतना अधिक गौरवशाली बना दिया, जितना वह लुई 14वें के समय मे भी न हो पाया था.
4. फ्रांस की शोचनीय दशा
फ्रांस की राज्य क्रांति के बाद राष्ट्रीय सभा देश मे शांति स्थापित करने मे असफल रही थी. व्यवस्थापिका तथा राष्ट्रीय सम्मेलन के आतंक ने फ्रांस की दशा को अत्यंत शोचनीय बना दिया था. डायरेक्टरी का शासन तो सबसे अधिक भ्रष्ट और निकम्मा था.
अतः फ्रांस मे ऐसे शक्तिशाली शासन की आवश्यकता थी, जो देश की दशा को सुधारकर एक सशक्त एवं सुव्यवस्थित शासन प्रणाली की स्थापना कर सके. इस कार्य को पूरा करने की क्षमता नेपोलियन मे पूर्ण रूप से विद्यमान थी. अतः उसका उत्थान होना एक स्वाभाविक बात थी.
5. फ्रांस की अराजकता ने नेपोलियन को सत्ता दिलाई
डायरेक्टरों के भ्रष्टाचार, अदूरदर्शिता तथा उनकी प्रशासन क्षमता के अभाव मे नेपोलियन को डायरेक्टरी शासन को समाप्त करने का अवसर प्रदान किया. मिस्त्र से लौटकर शासन के प्रमुख सेनापतियों, संसद के प्रधानों, गुप्तचर तथा पुलिस प्रधान को अपने पक्ष मे कर और डायरेक्टरों को जनता मे बदनाम कर नेपोलियन ने सत्ता पर अधिकार कर लिया.
6. कुशल कूटनीतिज्ञ
नेपोलियन एक कुशल कूटनीतिज्ञ था. अपनी इस योग्यता का प्रमाण उसने इटली की प्रथम विजय से दिया. उसने अपने कार्यों से यह सिद्ध कर दिया कि वह राजाओं के साथ कूटनीतिक व्यवहार कर सकता है. उसने वेनिस का विभाजन कर अपनी दूरदर्शिता का परिचय दिया. उसे कूटनीतिक दक्षता के लिए चार्ल्स मैगनी के समकक्ष माना जा सकता है.
7. अपूर्व अवसर
नेपोलियन को अपना उत्थान करने के दो अवसर मिले थे. तूलो बंदरगाह पर अधिकार (1793 ई.) और राष्ट्रीय सम्मेलन की सूरक्षा (1795 ई.) करके उसने अमर ख्याति प्राप्त कर ली. उसकी योग्यताओं ने फ्रांस की जनता का ह्रदय जीत लिया था.
8. महत्वाकांक्षा
नेपोलियन बड़ा महत्वाकांक्षी व्यक्ति था. उसकी असीमित महत्वाकांक्षाएं थे जिनके चलते वह शीघ्र ही सफलता के शिखर पर पहुंच गया.
नेपोलियन के सुधारात्मक कार्य (Napoleon’s reformatory actions)
जिस समय नेपोलियन के नेतृत्व मे कौंसल शासन प्रारंभ हुआ, उस समय फ्रांस को अपने शत्रुओं से युद्ध करते हुए दस वर्ष बीत गये थे. उस काल मे किसी प्रकार की सुव्यवस्थित शासन प्रणाली का निर्माण नही हो पाया था. क्रांति ने पुरानी प्रशासनिक व्यवस्था को नष्ट भ्रष्ट कर दिया था और किसी नयी प्रणाली की स्थापना उस उथल-पुथल के काल मे असम्भव थी. हर क्षेत्र मे अव्यवस्था छायी हुई थी, नेपोलियन ने सबसे पहले उस ओर ध्यान दिया.
नेपोलियन के सुधार कार्य इस प्रकार है-
1. स्थानीय शासन व्यवस्था
नेपोलियन की धारणा थी कि फ्रांस की जनता समानता की इच्छुक है स्वतंत्रता की नही. अतः अपने शासनकाल मे उसने केन्दीयकरण को अपनाया. उसने प्रांतों व जिलो से निर्वाचित सदस्यों को हटा दिया और उनके स्थान पर प्रीफेक्ट नियुक्त किये. प्रांत का अधिकारी प्रीफेक्ट कहलाता था. जबकि जिले का उप प्रीफेक्ट. उसको उसने वे सब अधिकार दे दिए जो संविधान सभा द्वारा वहां निर्वाचन समितियों को प्राप्त थे.
छोटे कम्यून अधिकारी मेयर होता था और उसकी नियुक्ति प्रीफेक्ट करता था. जिन कस्बों की जनसंख्या पाँच हजार से अधिक होती थी, उनका मेयर स्वयं नेपोलियन नियुक्त करता था. पेरिस नगर का प्रबंध प्रीफेक्ट ऑफ पुलिस के अधीन था.
कुछ इतिहासकारों ने नेपोलियन की इस व्यवस्था को अत्याचारपूर्ण एवं कठोर बताया है लेकिन यह तो स्वीकार करना ही पड़ेगा कि शांति तथा व्यवस्था बनाये रखने की दृष्टि से ये सुधार समयानुकूल तथा उचित थे.
2. सार्वजनिक व जनहितकारी कार्य
नेपोलियन ने जनहित के लिए निम्न कार्य किये:
1. उसने पेरिस को अत्यंत सुन्दर नगर बनवा दिया. इसकी सड़कों को चौड़ा किया गया व जगह-जगह उद्योग खूले गये. उसने परेसि को सुन्दर बाजारों, पुलों तथा मेहराबों से सुसज्जित किया. लुब्रे के राजभवन को पूरा करके कला के नमूनों से सजाया गया.
2. उसने पेरिस को फ्रांस की सीमाओं से जोड़ने के लिए अनेक सड़कों का निर्माण करवाया. यातायात व्यवस्था सुधारने के लिए 229 नयी सड़के बनवायी गयी, सारे देश मे अनेक पुल व बांध बनवाये गये.
3. पेरिस मे एक अजायब घर खोला गया, जिसमे विदेशो से लाई हुई बहुमूल्य वस्तुएं रखी गयी.
4. रोम, फिलान, ट्यूरिन व नेपल्स इत्यादि नगरों को पेरिस से मिलाने के लिए अनेक सड़के बनवायी गयी.
5. बेकार भूमि को कृषि योग्य बनवाया गया व दल-दलों को साफ करवा कर कृषि योग्य बनाया गया. यह भूमि किसानों को सस्ती दरों पर दी गयी.
6. सिंचाई के नवीन साधनों को जुटाया गया, जिससे कृषि की हालत पहले से अच्छी हो गयी.
7. जल सेना की सुविधा के लिए बन्दरगाहों को चौड़ा किया गया.
3. आर्थिक सुधार
नेपोलियन बोनापार्ट ने आर्थिक क्षेत्र मे अनेक महत्वपूर्ण सुधार किये. क्रांतिपूर्ण फ्रांस की कर व्यवस्था बहुत ही अव्यवस्थित तथा अन्यायपूर्ण थी. नेपोलियन ने कर व्यवस्था मे सुधार किये. कर नियमित रूप से सरकारी कर्मचारियों द्वारा वसूल किया जाने लगा. 1800 ई. मे नेपोलियन ने बैंक ऑफ फ्रांस की स्थापना की. तीन वर्ष के बाद इस बैंक को नोट जारी करने का भी अधिकार मिला. उसने फ्रांस के व्यापार वाणिज्य को उन्नत बनाया.
4. समानता का सिद्धांत
नेपोलियन ने सामंत तथा चर्च के विशेषाधिकारों का अंत कर समानता के सिद्धांत को कायम रखा. उसने इस सिद्धांत को मानते हुए नौकरियों के द्वारा सभी नागरिकों के लिए खोल दिये. इस बिषय मे योग्यता को ही मापदंड रखा गया. यहां तक कि पुराने राजतन्त्रों के भक्तों, जेकोबिनो तथा जिन्दोडिस्ट दल के लोगों के साथ भी समानता का व्यवहार किया गया, और सभी से नयी व्यवस्था के प्रति भक्ति को कहा गया.
सामंत वर्ग के लोग व पादरी जो क्रांति के समय देश छोड़कर भाग गये थे, उन्हें वापिस आने की आज्ञा दी गयी तथा उनकी शेष सम्पत्ति उन्हे वापिस की गयी. क्रांतिकाल मे पादरियों के विरूद्ध बने कानून भी शिथिल कर दिये गये.
5. शिक्षा सम्बन्धी सुधार
नेपोलियन के सत्ता मे आने से पूर्व शिक्षा धर्माधिकारियों के नियंत्रण मे थी. वह जानता था कि शिक्षा के क्षेत्र मे धर्माधिकारियों का प्रभाव सर्वंथा विनष्ट करना एक कठिन कार्य है. अतः प्राथमिक शिक्षा तो उसने चर्च के ही अधीन रहने दी. माध्यमिक शिक्षा के लिए उसने नवीन ढंग से लाईसे नामक स्कूल खोले. उनमे प्रशिक्षित अध्यापक नियुक्त किये जाने लगे.
पाठ्यक्रम मे विज्ञान और गणित को अधिक महत्व दिया गया. छात्रों मे सैनिक अनुशासन प्रचलित किया गया. नेपोलियन ने उद्योग व व्यवसाय को भी पर्याप्त महत्व दिया. अतः शिक्षा का स्वरूप भी वैसा ही बनाया गया. व्यवसाय के लिए विशेष स्कूल खोले गये. उसने प्रयोगात्मक शिक्षा का प्रबंध किया. प्रशिक्षित अध्यापकों की उपलब्धियों के लिए उसने पेरिस मे एक नार्मल स्कूल खोला. बड़े नगरों मे उसने हाई स्कूल स्पापित किये.
सेनानायक के रूप में नेपोलियन बोनापार्ट (Napoleon Bonaparte as a Military Commander)
नेपोलियन बोनापार्ट (1769–1821) यूरोप के इतिहास के सबसे महान सेनानायकों में गिने जाते हैं. उन्होंने 1796 से 1815 तक यूरोप में अनेक युद्ध लड़े, जिन्हें प्रायः नेपोलियनिक युद्ध (Napoleonic Wars) कहा जाता है. इन युद्धों का प्रभाव केवल यूरोप तक सीमित नहीं रहा, बल्कि विश्व राजनीति और कूटनीति पर भी पड़ा.
नेपोलियन ने अपने जीवन में छोटे-बड़े लगभग 60 से अधिक युद्ध लड़े. उन्होंने यूरोप की राजनीतिक संरचना बदल दी. यद्यपि रूस और वाटरलू की हार ने उनका अंत कर दिया, लेकिन उनके युद्धों ने लोकतांत्रिक सिद्धांतों, राष्ट्रवाद और आधुनिक सैन्य रणनीति को गहरा प्रभाव प्रदान किया.
नीचे नेपोलियन द्वारा लड़े गए प्रमुख युद्धों का क्रमवार वर्णन किया गया है:
1. इटली अभियान (1796–1797)
यह नेपोलियन का पहला बड़ा सैन्य अभियान था.उन्होंने ऑस्ट्रिया और उसके सहयोगी राज्यों के विरुद्ध फ्रांस की सेना का नेतृत्व किया.नेपोलियन ने लॉडी (Battle of Lodi, 1796), अरकोला (Battle of Arcola, 1796) और रिवोली (Battle of Rivoli, 1797) जैसी लड़ाइयों में शानदार जीत दर्ज की.परिणामस्वरूप कैम्पो फॉर्मियो की संधि (Treaty of Campo Formio, 1797) हुई, जिससे ऑस्ट्रिया ने उत्तरी इटली और नीदरलैंड में फ्रांस के अधिकार को स्वीकार किया.
2. मिस्र अभियान (1798–1799)
इसका उद्देश्य ब्रिटेन के भारत से संपर्क को तोड़ना था.नेपोलियन ने पिरामिड की लड़ाई (Battle of the Pyramids, 1798) में ममलुकों को हराया.लेकिन ब्रिटिश एडमिरल नेल्सन ने नाइल की लड़ाई (Battle of the Nile, 1798) में फ्रांसीसी नौसेना को नष्ट कर दिया.यह अभियान अंततः असफल रहा और नेपोलियन को फ्रांस लौटना पड़ा.
3. दूसरा गठबंधन युद्ध (War of the Second Coalition, 1799–1802)
इसमें ब्रिटेन, ऑस्ट्रिया, रूस और ओटोमन साम्राज्य ने फ्रांस का मुकाबला किया. नेपोलियन की सबसे महत्वपूर्ण जीत मारेन्गो की लड़ाई (Battle of Marengo, 1800) थी, जहाँ उन्होंने ऑस्ट्रियाई सेना को हराया. अंततः एमिएँ की संधि (Treaty of Amiens, 1802) के साथ अस्थायी शांति स्थापित हुई.
4. तीसरा गठबंधन युद्ध (War of the Third Coalition, 1805)
ब्रिटेन, रूस, ऑस्ट्रिया और स्वीडन ने नेपोलियन के खिलाफ गठबंधन किया. ट्राफलगर की लड़ाई (Battle of Trafalgar, 1805) – ब्रिटिश नेल्सन ने फ्रांसीसी–स्पेनी नौसेना को हराकर इंग्लैंड पर आक्रमण की योजना विफल कर दी. ऑस्टरलिट्ज़ की लड़ाई (Battle of Austerlitz, 1805) – जिसे “तीन सम्राटों की लड़ाई” कहा जाता है. इसमें नेपोलियन ने रूस और ऑस्ट्रिया की संयुक्त सेना को निर्णायक रूप से पराजित किया. यह उनकी सबसे बड़ी विजय मानी जाती है.
5. चौथा गठबंधन युद्ध (War of the Fourth Coalition, 1806–1807)
इसमें प्रशा, रूस, ब्रिटेन और स्वीडन शामिल थे. नेपोलियन ने जेना (Battle of Jena, 1806) और ऑयेरस्टेड (Battle of Auerstedt, 1806) में प्रशा को हराया. बाद में रूस को फ्रीडलैंड की लड़ाई (Battle of Friedland, 1807) में पराजित किया. टिलसिट की संधि (Treaty of Tilsit, 1807) के बाद यूरोप में नेपोलियन की शक्ति चरम पर पहुँच गई.
6. पेनिनसुलर युद्ध (Peninsular War, 1808–1814)
नेपोलियन ने स्पेन और पुर्तगाल पर नियंत्रण के लिए युद्ध छेड़ा. यह युद्ध गुरिल्ला संघर्ष में बदल गया. ब्रिटेन ने ड्यूक ऑफ वेलिंगटन के नेतृत्व में स्पेन और पुर्तगाल की मदद की. यह युद्ध नेपोलियन के लिए एक “खुला घाव” साबित हुआ और उनकी शक्ति को कमजोर कर गया.
7. पाँचवाँ गठबंधन युद्ध (War of the Fifth Coalition, 1809)
ऑस्ट्रिया ने फिर से युद्ध छेड़ा. नेपोलियन ने वाग्राम की लड़ाई (Battle of Wagram, 1809) में ऑस्ट्रियाई सेना को हराया. शॉनब्रुन की संधि (Treaty of Schönbrunn, 1809) के बाद ऑस्ट्रिया को भारी क्षेत्रीय हानि उठानी पड़ी.
8. रूस अभियान (1812)
नेपोलियन का सबसे महत्वाकांक्षी और घातक अभियान. लगभग 6 लाख सैनिकों के साथ नेपोलियन ने रूस पर आक्रमण किया. बोरोडिनो की लड़ाई (Battle of Borodino, 1812) भीषण रही, लेकिन निर्णायक जीत किसी को नहीं मिली.
मास्को पहुँचने के बाद रूसी सेना ने “जलाओ और भागो” (Scorched Earth Policy) रणनीति अपनाई. ठंड, भूख और गुरिल्ला युद्ध के कारण नेपोलियन की सेना नष्ट हो गई और मुश्किल से 1 लाख सैनिक लौट पाए.
9. छठा गठबंधन युद्ध (War of the Sixth Coalition, 1813–1814)
ब्रिटेन, रूस, प्रशा, ऑस्ट्रिया और अन्य यूरोपीय शक्तियाँ नेपोलियन के खिलाफ एकजुट हो गईं. लाइपज़िग की लड़ाई (Battle of Leipzig, 1813) – जिसे “राष्ट्रों की लड़ाई” कहा जाता है. इसमें नेपोलियन की निर्णायक हार हुई. 1814 में सहयोगी सेनाएँ पेरिस में प्रवेश कर गईं और नेपोलियन को पदत्याग करना पड़ा. उन्हें एल्बा द्वीप पर निर्वासित कर दिया गया.
10. सौ दिन का अभियान (Hundred Days, 1815)
नेपोलियन एल्बा से भागकर फ्रांस लौटे और सत्ता पुनः संभाली. यूरोपीय शक्तियों ने फिर से गठबंधन बनाया. वाटरलू की लड़ाई (Battle of Waterloo, 1815) – नेपोलियन की अंतिम लड़ाई थी. ब्रिटिश (वेलिंगटन के नेतृत्व में) और प्रशा (ब्लुशर के नेतृत्व में) ने उन्हें निर्णायक रूप से हरा दिया. इसके बाद नेपोलियन को सेंट हेलेना द्वीप पर भेजा गया, जहाँ 1821 में उनकी मृत्यु हुई.

समाधि स्थल
नेपोलियन बोनापार्ट का समाधि स्थल पेरिस, फ्रांस में ‘लेस इनवैलिड्स’ (Les Invalides) नामक एक स्मारक परिसर में है। उनकी मृत्यु 1821 में सेंट हेलेना द्वीप पर हुई थी, लेकिन 1840 में उनके अवशेषों को फ्रांस वापस लाया गया और उन्हें यहां दफनाया गया।
नेपोलियन बोनापार्ट का “महाद्वीपीय व्यवस्था”
नेपोलियन बोनापार्ट की “महाद्वीपीय व्यवस्था” (Continental System) उसकी विदेश नीति का एक प्रमुख हिस्सा थी, जिसे उसने अपने सबसे बड़े दुश्मन, ब्रिटेन को आर्थिक रूप से कमजोर करने के उद्देश्य से लागू किया था. यह व्यवस्था 1806 में बर्लिन फरमान के साथ शुरू हुई थी.
महाद्वीपीय व्यवस्था क्या थी?
नेपोलियन बोनापार्ट ने ब्रिटेन को सीधे सैन्य युद्ध में हराना बहुत मुश्किल पाया क्योंकि ब्रिटेन की नौसेना बहुत मजबूत थी. इसलिए, उसने ब्रिटेन को आर्थिक रूप से पंगु बनाने की रणनीति अपनाई. इस रणनीति को ही “महाद्वीपीय व्यवस्था” कहा गया.
इस व्यवस्था के तहत, नेपोलियन ने यूरोप के उन सभी देशों पर प्रतिबंध लगा दिया था जो उसके नियंत्रण में थे या उसके सहयोगी थे. इन प्रतिबंधों में निम्नलिखित बातें शामिल थीं:
- व्यापार पर प्रतिबंध: किसी भी यूरोपीय देश को ब्रिटेन से कोई भी सामान आयात या निर्यात करने की अनुमति नहीं थी.
- ब्रिटिश जहाजों पर प्रतिबंध: ब्रिटिश जहाजों को यूरोप के किसी भी बंदरगाह में प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी.
- तस्करी पर नियंत्रण: इस व्यवस्था को सख्ती से लागू करने के लिए नेपोलियन ने तस्करी पर भी रोक लगाने की कोशिश की.
नेपोलियन का मानना था कि यदि ब्रिटेन का व्यापार पूरी तरह से बंद हो जाएगा, तो उसकी अर्थव्यवस्था गिर जाएगी और वह अंततः नेपोलियन के सामने घुटने टेकने को मजबूर हो जाएगा.
महाद्वीपीय व्यवस्था के पतन के कारण
हालांकि, यह व्यवस्था नेपोलियन बोनापार्ट के लिए आत्मघाती साबित हुई और उसके पतन का एक प्रमुख कारण बन गई. इसके पतन के मुख्य कारण निम्नलिखित थे:
- फ्रांस की कमजोर नौसेना: नेपोलियन की नौसेना ब्रिटेन की शक्तिशाली नौसेना का मुकाबला नहीं कर सकती थी. इस कमजोरी के कारण वह पूरे यूरोपीय तट पर प्रभावी रूप से नाकाबंदी नहीं कर सका, जिससे तस्करी और गुप्त व्यापार जारी रहा.
- यूरोपीय देशों में असंतोष: इस व्यवस्था के कारण यूरोप के अन्य देशों को भी भारी आर्थिक नुकसान हुआ. ब्रिटिश सामान की कमी हो गई और उनके अपने व्यापार भी ठप्प हो गए. इस कारण कई देशों ने गुपचुप तरीके से ब्रिटेन के साथ व्यापार जारी रखा.
- रूस का विरोध: रूस के जार नेपोलियन की इस व्यवस्था से बहुत परेशान थे क्योंकि इससे रूस की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ रहा था. 1812 में, रूस ने इस व्यवस्था को मानने से इनकार कर दिया और ब्रिटेन के साथ फिर से व्यापार शुरू कर दिया. नेपोलियन ने रूस पर आक्रमण किया, जो उसकी सबसे बड़ी भूल साबित हुई और उसके पतन का कारण बनी.
- पुर्तगाल और स्पेन के साथ संघर्ष: पुर्तगाल ने भी इस व्यवस्था को मानने से इनकार कर दिया था, जिसके कारण नेपोलियन को उस पर आक्रमण करना पड़ा. इससे प्रायद्वीपीय युद्ध (Peninsular War) शुरू हुआ. स्पेनिश लोगों ने नेपोलियन के खिलाफ जमकर विद्रोह किया, जिससे नेपोलियन की सेना को भारी नुकसान हुआ और उसकी शक्ति क्षीण होने लगी.
- ब्रिटेन का प्रति-आक्रमण: महाद्वीपीय व्यवस्था से ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को कुछ नुकसान तो हुआ, लेकिन वह पूरी तरह से कमजोर नहीं हुआ. ब्रिटेन ने लैटिन अमेरिका और अन्य क्षेत्रों में नए व्यापारिक साझेदार खोज लिए. इसके अलावा, ब्रिटेन ने फ्रांस के खिलाफ प्रति-नाकाबंदी (counter-blockade) लागू की, जिससे फ्रांस और उसके सहयोगियों का व्यापार भी प्रभावित हुआ.
- नेपोलियन की निरंकुशता: इस व्यवस्था को लागू करने के लिए नेपोलियन ने पोप सहित कई यूरोपीय शासकों पर दबाव डाला और उनका अपमान किया. इससे कैथोलिक और अन्य वर्ग उसके खिलाफ हो गए, जिसने उसकी लोकप्रियता को भारी नुकसान पहुंचाया.
कुल मिलाकर, महाद्वीपीय व्यवस्था ने नेपोलियन के लिए एक ऐसा जाल बिछा दिया जिसमें वह खुद फंस गया. यह व्यवस्था ब्रिटेन को कमजोर करने में विफल रही. लेकिन इसने नेपोलियन को युद्धों और विद्रोहों में उलझाए रखा. फलतः इस व्यवस्था ने उसके विशाल साम्राज्य के विघटन और उसके अपने पतन का मार्ग प्रशस्त किया.
नेपोलियन बोनापार्ट के पतन के कारण (Reasons for the fall of Napoleon Bonaparte)
नेपोलियन के पतन के कारण इस प्रकार है:-
1. अति महत्वाकांक्षी
नेपोलियन का सम्पूर्ण जीवन महत्वाकांक्षाओं से भरा था. वह बहुत अधिक महत्वाकांक्षी था. 1793 मे वह उप लेफ्टीनेण्ट था. टूलों के बन्दरगाह की विजय के कारण ब्रिग्रेडियर बना. 1795 मे नेशनल कन्वेन्सन की रक्षा कर वह प्रमुख सेनापति बना तथा आस्ट्रेलिया इटली को पराजित कर और डायरेक्टरी को समाप्त कर सत्ता पर अधिकार किया.
फिर उसने सम्पूर्ण यूरोप को अपने आधीन बनाया परन्तु इंग्लैंड पर अधिकार की उसकी महत्वाकांक्षा ने उसे अनेक युद्ध करने लिये तत्पर बना दिया. अपनी इस आकांक्षा के चलते वह सम्पूर्ण यूरोप का शत्रु बन गया और सभी के संयुक्त प्रयासों से वह पराजित हो गया.
2. महाद्वीपीय व्यवस्था का दुष्परिणाम
नेपोलियन की महाद्वीपीय व्यवस्था एक प्रबल राष्ट्र इंग्लैंड के विरूद्ध थी. यह योजना बूरी नही थी एवं अपने आप मे अद्वितीय था परन्तु यह परिस्थितियों को देखते हुए उस समय के लिए अव्यावहारिक थी. इस व्यवस्था के कारण ही नेपोलियन एक के बाद एक आक्रमण एवं निरंतर युद्धों मे उलझता रहा. इसके कारण फ्रांस के जन-धन की हानि हुई तथा नेपोलियन की शक्ति का ह्रास हो गया.
3. नेपोलियन के त्रुटिपूर्ण अनुमान तथा स्वयं पर भरोसा
नेपोलियन के व्यक्तित्व का दोष अत्यधिक कार्य, त्रुटिपूर्ण अनुमान एवं स्वयं को सर्वश्रेष्ठ बुद्धिमान समझना था. उसने मानव जीवन की शक्ति की सीमाएं तोड़कर कार्य किया था. आयु के साथ शक्ति का क्षीण होना स्वाभाविक है. नेपोलियन ने कुशल नेतृत्व, अदम्य इच्छाशक्ति एवं विलक्षण बुद्धि का उपयोग कर संसार को चकित कर दिया था. पर उसके पतन का कारण मास्को अभियान के बाद उसकी थकान एवं क्लांत शरीर था.
4. साम्राज्य का एक व्यक्ति की शक्ति पर निर्भर होना
नेपोलियन का विशाल साम्राज्य उसकी प्रतिभा से निर्मित हुआ था. यह एक व्यक्ति की कृति थी. अतः यह साम्राज्य एक ही व्यक्ति के जीवन एवं मरण पर अवलंबित था.
5. निरंतर युद्ध
सम्राट बनने के बाद नेपोलियन ने 1804 से लगभग प्रतिवर्ष निरंतर संघर्ष किये. उसने राष्ट्रो के साथ दो-दो बार और कुछ के साथ अनेक बार युद्ध किये. आस्ट्रिया तो 1798 से ही नेपोलियन से संघर्ष कर रहा था. इनमे से अनेक युद्ध नेपोलियन की प्रतिष्ठा तथा सैनिक शक्ति के लिये अत्यंत घातक सिद्ध हुए. इन युद्धों मे नेपोलियन की शक्ति क्षीण होती चली गई जिससे मित्र संघ उसे पराजित करने मे सफल हो गये.
6. इंग्लैंड की जलशक्ति
नेपोलियन कभी अपने बेडें को इतना शक्तिशाली नही बना पाया कि वह इंग्लैंड से समुद्र मे मुकाबला कर सके. 1799 मे मिस्त्र से लौटते समय और ट्राफल्गर के युद्ध मे नेपोलियन नेल्सन से पराजित हुआ तथा पुर्तगाल मे वैलिंग्टन ने 1808 मे नेपोलियन से अपनी रक्षा समुद्र मे जाकर ही की थी.
नेपोलियन इंग्लैंड को पराजित करने की अथवा इंग्लिश चैनल पर अधिकार करने की लालसा को पूरा करने के लिये यूरोपीय राष्ट्रों पर इंग्लैंड से माल न मंगाने के लिए दबाव डालने लगा अतः अनेक युद्ध हुए तथा नेपोलियन अंत मे भूमि पर ही पराजित हो गया.
7. मास्को अभियान
सन् 1812 मे रूस पर आक्रमण या मास्कों अभियान उसके जीवन की एक बड़ी भूल थी. मास्को अभियान की जनहानि फ्रांस पूरी नही कर सका. इतिहास साक्षी है कि जर्मनी के हिटलर ने भी यही भूल कर स्वयं को बर्बाद कर दिया था. मास्कों अभियान की भूल को स्वयं नेपोलियन ने भी स्वीकार किया था. मास्कों से असहाय अवस्था मे लौटते ही उसके शत्रु उसके नाश के लिए संगठित होकर कृतसंकल्प हो गए थे.
8. नेपोलियन के धार्मिक सुधार व पोप के साथ उसका व्यवहार
नेपोलियन ने अपने कौंसिल काल मे जो धार्मिक नीति अपनाई वह वास्तव मे प्रशंसनीय एवं देश के हित मे थी, लेकिन इसके बाद उसने पोप से संबंध बिगाड़ लिए. राज्याभिषेक के अवसर पर उसके हाथ से ताज भी धारण नही किया. उसके राज्य को उसने अपने अधीन कर लिया. यहां तक की रोम को भी उसने नही छोड़ा. उसकी इस नीति से पोप का नाराज होना स्वाभाविक था. पोप के नाराज होने से यूरोप के समस्त कैथोलिक भी उससे नाराज हो गये.
9. संबंधियों का विश्वासघात
नेपोलियन ने अपने भाइयों एवं अन्य निकट संबंधियों को राज्यों का राजा बनाया और फ्रांसीसी प्रशासन मे उच्च पद प्रदान किए पर नेपोलियन ने अपने कुटूम्बियों तथा मित्रों से धोखा खाया. स्पेन का नासूर जोसेफ की अयोग्यता से बढ़ता गया. इटली मे भी केरोलिन एवं जेरोम के कारण नेपोलियन के गौरव को आघात गला. विदेश मंत्री तेलेरां एवं पुलिस अधिकारी फोश ने भी उसके साथ विश्वासघात किया.
नेपोलियन बोनापार्ट का ऐतिहासिक प्रभाव (The historical impact of Napoleon Bonaparte)
नेपोलियन बोनापार्ट केवल फ्रांस के ही नहीं बल्कि पूरे यूरोप और विश्व इतिहास के महान व्यक्तित्वों में से एक माने जाते हैं. उन्होंने अपने युद्धों, कानूनों और प्रशासनिक सुधारों के माध्यम से न केवल यूरोप की राजनीतिक संरचना बदली बल्कि विश्व के अन्य क्षेत्रों को भी गहरे रूप से प्रभावित किया. उनका प्रभाव तत्कालीन काल से लेकर आधुनिक समय तक देखा जा सकता है. नीचे उनके यूरोप और विश्व पर प्रभाव का विस्तृत वर्णन किया गया है:
1. राजनीतिक प्रभाव
- यूरोप का नक्शा बदला: नेपोलियन के विजय अभियानों से यूरोप का भूगोल और सत्ता-संतुलन बदल गया. कई छोटे-छोटे राज्यों का विलय हुआ और कुछ बड़े साम्राज्य अस्तित्व में आए.
- सामंती व्यवस्था का अंत: जहाँ-जहाँ नेपोलियन की सेनाएँ पहुँचीं, वहाँ पुराने सामंती ढाँचे को ध्वस्त कर दिया गया. सामंतवाद के अंत होने से किसानों को स्वतंत्रता और जमीन पर अधिकार मिला.
- राष्ट्रवाद का उदय: फ्रांस की क्रांति और नेपोलियनिक युद्धों ने जर्मनी, इटली और अन्य स्थानों में राष्ट्रीय चेतना को प्रबल किया, जिसने आगे चलकर जर्मनी और इटली के एकीकरण की नींव रखी.
- फ्रांस की राजनीतिक विरासत: यद्यपि नेपोलियन ने साम्राज्य स्थापित किया, लेकिन उनकी नीतियों ने यूरोप में लोकतंत्र, गणतंत्र और संवैधानिक शासन के विचारों को फैलाया.
2. कानूनी और प्रशासनिक प्रभाव
- नेपोलियनिक कोड (Napoleonic Code):
- 1804 में जारी यह विधि-संहिता दुनिया की सबसे प्रभावशाली कानूनी प्रणाली मानी जाती है.
- इसमें कानून के सामने सभी की समानता, निजी संपत्ति का अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता और नागरिक स्वतंत्रता की गारंटी दी गई.
- आगे चलकर यूरोप, लैटिन अमेरिका और एशिया के कई देशों की विधि-व्यवस्था इसी से प्रभावित हुई.
- प्रशासनिक सुधार: कर व्यवस्था, केंद्रीकृत नौकरशाही और शिक्षा प्रणाली को आधुनिक रूप दिया गया.
3. सैन्य प्रभाव
- आधुनिक युद्धकला का विकास: नेपोलियन ने सेना के संगठन, तोपखाने के उपयोग और रणनीतिक चालों में क्रांतिकारी बदलाव किए.
- जनसामान्य की सेना (Mass Army): उन्होंने बड़े पैमाने पर सैनिक भर्ती (Conscription) को अपनाया, जिससे युद्ध अब केवल पेशेवर सैनिकों तक सीमित न रहकर पूरे समाज का कार्य बन गया.
- यूरोपीय गठबंधन प्रणाली का उदय: नेपोलियन के खिलाफ बने विभिन्न गठबंधनों ने भविष्य की कूटनीतिक और सैन्य व्यवस्थाओं को प्रभावित किया.
4. सामाजिक और आर्थिक प्रभाव
- समानता और नागरिक अधिकार: नेपोलियन जहाँ-जहाँ गए, वहाँ पुरानी सामाजिक विषमताओं को चुनौती दी.
- व्यापार और आर्थिक नीतियाँ: महाद्वीपीय व्यवस्था (Continental System) के माध्यम से उन्होंने ब्रिटेन को आर्थिक रूप से कमजोर करने की कोशिश की. यद्यपि यह पूरी तरह सफल नहीं हुआ, लेकिन इसने यूरोप की आर्थिक दिशा को प्रभावित किया.
- औद्योगिक विकास को बढ़ावा: युद्धों और नाकेबंदियों के चलते यूरोपीय देशों को अपनी उद्योग-व्यवस्था विकसित करनी पड़ी.
5. यूरोप से बाहर प्रभाव
- लैटिन अमेरिका: नेपोलियनिक युद्धों ने स्पेन और पुर्तगाल को कमजोर कर दिया. इसका परिणाम यह हुआ कि लैटिन अमेरिकी उपनिवेशों में स्वतंत्रता आंदोलनों ने जोर पकड़ा.
- संयुक्त राज्य अमेरिका: फ्रांस की वित्तीय जरूरतों के कारण नेपोलियन ने अमेरिका को लुइसियाना क्षेत्र बेच दिया (Louisiana Purchase, 1803), जिससे अमेरिका का आकार दोगुना हो गया.
- मध्य पूर्व और मिस्र: मिस्र अभियान ने यूरोप की पूर्व की ओर बढ़ने की महत्वाकांक्षा और ओरिएंटल अध्ययन को बढ़ावा दिया.
- भारत और एशिया: नेपोलियन ने ब्रिटिश साम्राज्य को भारत में चुनौती देने की योजना बनाई थी, लेकिन ब्रिटिश नौसैनिक श्रेष्ठता के कारण यह कभी सफल नहीं हो पाया.
6. सांस्कृतिक और वैचारिक प्रभाव
- नेपोलियन स्वयं को “यूरोप का आधुनिकीकरणकर्ता” मानते थे.
- उनके शासन में कला, स्थापत्य और स्मारक (जैसे – आर्क डी ट्रायम्फ) का निर्माण हुआ.
- उनकी गाथाएँ साहित्य, चित्रकला और संगीत में अमर हो गईं.
7. दीर्घकालिक प्रभाव
- कांग्रेस ऑफ वियना (1815): नेपोलियन की हार के बाद यूरोप के शासकों ने सत्ता-संतुलन बनाए रखने के लिए नई कूटनीति विकसित की.
- यूरोपीय एकीकरण की प्रेरणा: जर्मनी और इटली का एकीकरण, राष्ट्रवाद और लोकतंत्र की लहर नेपोलियन के युग से ही उपजी.
- विश्व स्तर पर लोकतांत्रिक विचारों का प्रसार: आज भी कई देशों की विधि-व्यवस्था और राजनीतिक ढाँचा नेपोलियनिक सुधारों की छाप लिए हुए हैं.
इस प्रकार, नेपोलियन बोनापार्ट का प्रभाव बहुआयामी था. उन्होंने एक ओर यूरोप को युद्ध और रक्तपात में डुबोया, वहीं दूसरी ओर आधुनिक राज्य व्यवस्था, कानूनी समानता और राष्ट्रवाद की नींव भी रखी. यूरोप से लेकर अमेरिका और एशिया तक उनकी छाप स्पष्ट दिखती है. इसीलिए उन्हें अक्सर “यूरोप का पुनर्निर्माता” और आधुनिक युग का निर्माता कहा जाता है.