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समलैंगिक विवाह और समलैंगिकता

    17 अक्टूबर 2023 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय के पांच सदस्यीय संवैधानिक बेंच ने समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. अदालत ने 4-1 के बहुमत से याचिका के खिलाफ फैसला सुनाया और इसे वैधता प्रदान करने से इंकार कर दिया. अदालत के इस फैसले ने एलजीबीटीक्यूआईए+ (LGBTQIAA+) समुदाय को निराश किया है. वहीं, एलजीबीटीक्यूआईए समुदाय और विवाह से जुड़े कानून और प्रथाएं एक बार फिर से चर्चा में है. तो आइए हम समलैंगिक विवाह से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्यों को जानते है.

    समलैंगिक विवाह क्या है (What is Same Sex Marriage)?

    भारतीय समाज में आमतौर पर समलैंगिक विवाह को दो समान लिंग के व्यक्तियों के बीच (पुरुष-पुरुष या स्त्री-स्त्री) के बीच संपन्न विवाह माना जाता है. लेकिन इसका अर्थ इससे कहीं अधिक व्यापक हैं. कई बार कोई व्यक्ति न तो स्त्री के रूप में और न पुरुष के रूप में परिभाषित किया जा सकता है. भारत में ऐसे लोगों के लिए ‘हिजड़ा‘ शब्द प्रचलित है. ये लैंगिक रूप से न तो नर और न ही मादा होते है.

    हालांकि, अधिकांश हिजड़े शारीरिक रूप से ‘नर’ होते हैं या अन्त:लिंगी (intersex). किन्तु कुछ मादा (स्त्री) भी होते हैं. इसी के आधार पर वे अपने लिए पुल्लिंग या स्त्रीलिंग शब्द का इस्तेमाल करते है. आज के दौर में इस समुदाय को ‘किन्नर‘ भी कहा जाने लगा है.

    वास्तव में समलैंगिक विवाह किन्नर समुदाय के अधिकारों से भी जुड़ा हुआ है. इस समुदाय को अभी तक मुख्यधारा में जगह नहीं मिल पाया है. ऐसा इनके लिंग और इनके प्रति फैली तरह-तरह के भ्रांतियों के वजह से हुआ है. साथ ही, कई अन्य प्रकार के जन्मजात एलजीबीटीक्यूआईए+ समुदाय भी समलैंगिक विवाह के अवैध ठहराए जाने से प्रभावित हुए है.

    इस तरह हम कह सकते है कि एलजीबीटीक्यूआईए+ समुदाय के बीच सम्पन्न होने वाला शादी ही समलैंगिक विवाह है.

    एलजीबीटीक्यूआईए+ समूह के प्रकार (Types of LGBTQIA+ Groups in Hindi)

    एलजीबीटीक्यूआईए+ समुदाय में मुख्यतः निम्नलिखित लोगों को शामिल किया जाता है:

    • लेस्बियन (Lesbiyan): आमतौर पर ऐसी महिला को संदर्भित किया जाता है जिसका महिलाओं के प्रति रोमांटिक या यौन रुझान होता है. यह शब्द लेस्बोस द्वीप के नाम से आया है, जिसके प्रसिद्ध कवि सप्पो को समलैंगिक (Lesbian) माना जाता था.
    • गे (Gay): गे या समलैंगिक उन पुरुषों का प्रतिनिधित्व करते है जो रोमांटिक, कामुक या भावनात्मक रूप से पुरुषों के प्रति आकर्षित होते हैं. समान-लिंग यौन व्यवहार में संलग्न पुरुषों को समलैंगिक रूप से पहचानना मुश्किल होता है. इसलिए किसी के लिए समलैंगिक या गे शब्द का इस्तेमाल संभलकर करना चाहिए.
    • उभयलिंगी या द्विलिंगी (BISEXUAL or BI): उभयलिंगीपन एक से अधिक लिंगों के प्रति शारीरिक, यौन, रोमांटिक या आध्यात्मिक आकर्षण है. ऐसे इंसान समान या विपरीत लिंग या उनके लिंग या लिंग पहचान की परवाह किए बिना अन्य लोगों के प्रति आकर्षित हो सकते हैं. उभयलिंगीपन एक यौन रुझान है. लेकिन यह पैन सेक्सुअलिटी (Pan Sexuality) के समान नहीं है, जो सभी लिंग के लोगों के प्रति आकर्षण होता है.
    • ट्रांसजेंडर (Transgender or Trans): ऐसे लोगों की व्यक्तिगत पहचान या लिंग की भावना जन्म के समय निर्धारित लिंग से मेल नहीं खाती है. ऐसे लोगों के बाहरी रंग-रूप के विपरीत लिंग के गुण मौजूद होते है. ऐसे मामलों में कई बार लिंग परिवर्तन करवा लिया जाता है.
    • क्वीर (Queer): यह एक बहुआयामी शब्द है, जिसका प्रयोग अलग-अलग लोगों के लिए अलग -अलग तरीकों से किया जाता है. साथ ही, अलग-अलग लोगों के लिए इसका मतलब अलग-अलग होता है. ऐसे लोगों में निम्नलिखित लक्षण पाए जाते है-
      1. कई लिंग के लोगों के प्रति आकर्षण
      2. लिंग और/या कामुकता से संबंधित सांस्कृतिक मानदंडों के अनुरूप न हों
      3. सभी गैर-विषमलैंगिक लोगों को संदर्भित करने वाला एक सामान्य शब्द.
        • हालाँकि, समुदाय के भीतर कुछ लोग अपने खिलाफ इस शब्द का इस्तेमाल घृणास्पद तरीके से किया जाना महसूस कर सकते हैं. वे इस पहचान को अपनाने के लिए अनिच्छुक हो सकते है.
    • लैंगिंग अज्ञानी (Questioning): एक व्यक्ति जो अपनी लिंग पहचान या यौन रुझान के बारे में अनिश्चित या इस समझ की खोज कर रहा है.
    • इंटरसेक्स (Intersex): यह एक व्यापक शब्द है. इसका इस्तेमाल 30 तरह के यौन विभिन्नताओं के साथ जन्मे लोगों के लिए किया जाता है. इनमें क्रोमोसोम, गोनाड, सेक्स हार्मोन या जननांगों सहित अन्य यौन खामियां होती है.
    • अलैंगिक (Asexual): ऐसे व्यक्ति दूसरों के प्रति बहुत कम या शून्य यौन आकर्षण अनुभव करते है. ये यौन संबंधों/ व्यवहार में रुचि की कमी महसूस करते है. वे भावनात्मक, शारीरिक या रोमांटिक आकर्षण का अनुभव करते भी हैं या नहीं भी. अलैंगिकता और ब्रह्मचर्य अलग-अलग होते है. अलैंगिकता में कामुकता शून्य होता है, जबकि ब्रह्मचर्य में शरीर में मौजूद कामुकता पर नियंत्रण प्राप्त किया जाता है. अलैंगिक लोग स्वयं को इक्का कह सकते हैं.

    समलैंगिक विवाह का ऐतहासिक पृष्ठभूमि (Historical Overview of Same Sex Marriage)

    समलैंगिकता की कहानी सदियों पुरानी है. इसके अस्तित्व के कई ऐतिहासिक सख्य तक मिलता है. प्राचीन मेसोपोटामिया, यूनान, जापान, चीन और अन्य सभ्यताओं में इसके उपस्थिति का पता चलता है.

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    2400 BC में ख्नुपहोतें (Khnuphotem) और नियनखखनुम (Niankhkhnum) अभिलेखित इतिहास के अनुसार दुनिया के पहले समलैंगिक जोड़े (Same Sex Couple) थे. ये दोनों मिस्र के फराहो के खास सेवक थे. ‘ए हिस्ट्री ऑफ द वाइफ’ में दूसरी और तीसरी सदी में समलैंगिक शादियां आम होने का जिक्र है. इससे यह साबित होता है कि धीरे-धीरे समलैंगिक विवाह के प्रति समाज का नजरिया बदलने लगा और इसे अपराध मान लिया गया.

    भारत में भी समलैंगिक रिश्तों के कुछ ऐतिहासिक जानकारी मिलते है. मुग़ल बादशाह बाबर के भी समलैंगिक होने की बात कही जाती है. सम्राट अकबर के दरबारी जमान खान उर्फ़ कुली खान के भी समलैंगिक होने का दावा किया जाता है.

    शासक शाहजहां के वक्त समलैंगिक रिश्ते का वर्णन इतिहासकार टैवर्नियर द्वारा किया गया है. उस वक्त समलैंगिक रिश्ता रखने के कारण बुरहानपुर के एक गवर्नर का हत्या कर दिया गया था.

    इतिहास में रोमन साम्राज्य से लेकर क्रिश्चियन राज्य तक में समलैंगिक विवाह के उदाहरण मिलते है. लेकिन, इसे समाज में हेय की दृष्टि से देखा जाता रहा है. इसे इक्कीसवीं सदी में मान्यता मिलना शुरू हुआ है. लेकिन अभी भी अधिकाँश देशों में इसे मान्यता नहीं मिली है और अपराध के श्रेणी में रखा गया है.

    आधुनक युग पहला समलैंगिक विवाह 1971 में संयुक्त राज्य अमेरिका में माइकल मैककोनेल और जैक बेकर के बीच संपन्न हुआ था. दोनों ने मिनेसोटा के ब्लू अर्थ काउंटी में शादी किया था. यह पहला कानूनी समलैंगिक विवाह था.

    भारत और समलैंगिक विवाह: कालक्रम (India and Same Sex Marriage: Timeline)

    ब्रिटिश सत्ता ने 1860 में भारतीय दंड संहिता के अध्याय 16 धारा 377 का प्रावधान किया. इसके अनुसार समलैंगिक श्रेणी को अप्राकृतिक और अपराध माना गया. इसके लिए अदालत 10 वर्ष की सजा और जुरमाना आरोपित कर सकती थी. धारा 377 का यह प्रावधान करीब 16 दशकों तक कायम रहा.

    आजाद भारत का संविधान लागू होने पर अनुच्छेद 14 के तहत ‘समानता’ का अधिकार सुचिश्चीत किया गया. लेकिन समलैंगिकता एक अपराध बना रहा.

    11 अगस्त 1992 को समलैंगिकों के अधिकारों के लिए पहला प्रदर्शन हुआ. 1999 में कोलकता में 15 लोगों ने भारत का पहला “समलैंगिक गौरव परेड” में भाग लिया. इसे ‘कलकत्ता रेनबो प्राइड’ नाम दिया गया.

    साल 2001 में पहली बार एक गैरसरकारी संस्था (NGO) नाज फाउंडेशन ने धारा 377 के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और कहा कि समलैंगिक वयस्कों के बीच यौन संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर किया जाए.

    साल 2009 में दिल्ली हाई कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध के श्रेणी से हटा दिया. अदालत ने समलैंगिकता को अपराध मानना संविधान के मूल अधिकार का उलंघन माना. यह फैसला “नाज फाउंडेशन बनाम एनसीटी दिल्ली सरकार” के मामले में दिया गया था. लेकिन 2013 में सर्वोच्च अदालत ने इस फैसले को पलट दिया.

    साल 2016 में मामले को सुप्रीम कोर्ट के 5 सदस्यीय बेंच के पास भेजा गया. 6 सितंबर 2018 को पांच न्यायाधीशों की इस पीठ ने सर्वसम्मति से भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को रद्द कर दिया. फैसले के अनुसार वयस्कों के बीच सहमति से समलैंगिक संबंध अपराध नहीं माना गया. लेकिन, समलैंगिक विवाह का मसला कायम रहा.

    2018 के फैसले के बाद समलैंगिक विवाह का मांग करने वालों को उम्मीद दिखाई दी. साल 2022 में इस मसले पर देश के विभिन्न अदालतों में 20 याचिकाएं दायर की गई. इसी साल हैदराबाद के गे कपल सुप्रिया चक्रवर्ती और अभय डांग ने सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया. इन्होंने LGBTQIA+ समुदाय के लिए भी अन्य नागरिकों के भाँती विवाह के अधिकार का मांग किया.

    इसपर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया. केंद्र ने इस मांग का विरोध किया. अंततः सर्वोच्च अदालत ने भी केंद्र के रुख को स्वीकार कर लिया और 17 अक्टूबर 2023 को समलैंगिक विवाह के मांग को खारिज कर दिया.

    वर्तमान वैश्विक स्थिति (Present World Scenario)

    विश्व में समलैंगिकता के प्रति विचार बदल रहा है. अब यह दुनिया के कई देशों में अपराध नहीं है. साथ ही, विश्व के 34 देशों ने समलैंगिक विवाह को मान्यता दी है. इनमें सबसे पहला प्रयास साल 2000 में नीदरलैंड द्वारा किया गया. इस कानून के तहत 1 अप्रैल 2001 से समलैंगिक विवाह को मान्यता दे दी गई. फिलहाल दुनिया के 34 देशों में इसे मान्यता दिया गया है. इनमें विश्व के 17 फीसदी आबादी का निवास है. ये देश है-

    • क्यूबा ( 27 सितंबर 2022 से),
    • एंडोरा(2014),
    • स्लोवेनिया (2017),
    • चिली (2015),
    • एस्टोनिया (2016),
    • स्विट्जरलैंड (2022),
    • कोस्टा रिका (2020),
    • ऑस्ट्रिया (2019),
    • ऑस्ट्रेलिया (2017),
    • ताइवान (2019),
    • इक्वेडोर (2019),
    • बेल्जियम (2003),
    • ब्रिटेन और स्कॉटलैंड (2014),
    • डेनमार्क (2016),
    • फिनलैंड (2017),
    • फ्रांस (2013),
    • जर्मनी (2017),
    • आइसलैंड (2010),
    • आयरलैंड (2020),
    • लक्समबर्ग (2015),
    • माल्टा (2017),
    • नॉर्वे (2009),
    • पुर्तगाल (2010),
    • स्पेन (2005),
    • स्वीडन (2009),
    • अर्जेंटीना और मेक्सिको (2010),
    • दक्षिण अफ्रीका (2006),
    • संयुक्त राज्य अमेरिका (2015),
    • कोलंबिया (2016),
    • ब्राजील (2002),
    • कनाडा (2003),
    • नीदरलैंड (2001),
    • न्यूजीलैंड (2013) और
    • उरुग्वे (2013)

    आपको ये जानना भी जरुरी है कि दुनिया में सबसे पहले समलैंगिकता पर कानूनों में सुधार का काम डेनमार्क ने किया था. डेनमार्क ने साल 1989 में समलैंगिक नागरिक संघों को मान्यता प्रदान की थी.

    दुनिया के करीब 64 देशों में समलैंगिक विवाह को अपराध माना गया है. इन देशों में विभिन्न प्रकार के सजा का प्रावधान है. यहाँ तक की कुछ देश समलैंगिक विवाह करने वालों को मृत्यु दंड भी देते है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, जापान समेत सात बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश भी समलैंगिक विवाह को अनुमति नहीं दी गई है.

    समलैंगिक विवाह को अमान्य करार देने वाले देशों में, जहां लोकतान्त्रिक देश शामिल है, वहीं धार्मिक और अन्य विचारधाराओं पर आधारित देश भी शामिल है.

    भारत के पड़ोसी राष्ट्र भी ब्रिटिश शासन के अधीन थे. इसलिए इन देशों पर भी ब्रिटिश कानून या आईपीसी की धारा 377 का स्पष्ट प्रभाव दिखता है. इस मामले में साम्यवादी देश चीन ने भारत से काफी आगे दिखता है. चीन ने 1997 में ही समलैंगिक संबंध को अपराध की श्रेणी से हटा दिया था. चीन में इसे एक मनोवैज्ञानिक बिमारी कहा जाता है. नेपाल ने भी ऐसे ही कदम उठाए और समलैंगिक अल्पसंख्यकों के अधिकार को बहाल किया.

    भारत के अन्य पड़ोसी देशों, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका और म्यांमार में समलैंगिक रिश्तों को अपराध माना जाता है. वहीं राजशाही शासन वाले पहाड़ी राष्ट्र भूटान ने साल 2019 में समलैंगिक संबंधों को मान्यता दिया है. वहीं समलैंगिक विवाह को मान्यता देने वाला पहला एशियाई देश ताइवान है. ताइवान ने साल 2019 में ऐसा किया था.

    इस प्रकार कहा जा सकता है कि समलैंगिक विवाह के सम्बन्ध में दुनिया विभाजित है और आधुनिक दौर में इसे नए सिरे से परिभाषित किए जाने की जरूरत है.

    समलैंगिक विवाह के पक्ष में तर्क (Arguments in Favour of Same Sex Marriage)

    • समानता और नागरिक अधिकार: भारतीय संविधान में समानता और सुरक्षा का प्रावधान है. समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं मिलने से समलैंगिकों के प्रति सामाजिक विद्वेष और भेदभाव बढ़ता है. इसलिए यौन रुझानों को दरकिनार करते हुए समलैंगिकों को विवाह करने और घर बसाने का अधिकार होना चाहिए. इन्हें इस अधिकार से वंचित करना इनकी गरिमा पर आघात है.
    • सामाजिक स्वीकृति: समलैंगिक विवाह को वैध बनाकर LGBTQIA+ समुदाय की समाज में स्वीकृति बढ़ेगी. इससे इस समूह के प्रति सहिष्णुता बढ़ेगी. लोग ये समझ पाएंगे की ये रिश्ते भी समान रूप से मान्य और मूलयवान है.
    • समानता: हमारे संविधान के अनुच्छेद 15 तथा 16 में लैंगिक आधार पर भेदभाव पर रोक लगाया गया है. साथ ही, अनुच्छेद 21 में गरिमापूर्ण जीवन जीने की आजादी दी गई है. वहीं, अनुच्छेद 19 में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रावधान है. समलैंगिक विवाह को रोकना इन मौलिक अधिकारों का हनन है.
    • गरिमापूर्ण जीवन: वर्तमान में समलैंगिक विवाह करने पर संपत्ति, बीमा और परिवार में प्राप्त अधिकारों से वंचित होना पड़ता है. ये मानव अधिकारों के साथ ही संविधान के मौलिक अधिकारों का हनन प्रतीत होते है. नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ मामले में सर्वोच्च अदालत ने समलैंगिक जोड़ो को गरिमापूर्ण जीवन जीने की आजादी दी है.
    • धारा 377: सरकार ने आईपीसी की धारा 377 के तहत संबंधों को अपराध-मुक्तीकरण (decriminalization) कर दिया है. मतलब सरकार ने समलैंगिक संबंधों को स्वीकार कर लिया है. ऐसे में समलैंगिक विवाह को मान्यता न देना सुधारों के कड़ी से पीछे हटने जैसे है.
    • क्विर समुदाय और विशेष विवाह अधिनियम: वर्ष 2006 में एक बंगाली हिंदू और एक एंग्लो-इंडियन रोमन कैथोलिक को विशेष विवाह अधिनियम के तहत विवाह का अनुमति दिया गया था. इस आधार पर क्विर भारतियों के लिए भी विशेष विवाह अधिनियम का विस्तार किया जा सकता है.
    • भारतीय समाज: भारतीय समाज और भारतीयों द्वारा अपनाए गए अधिकांश धर्म समलैंगिक संबंधों को मान्यता नहीं देते है. लेकिन आधुनिक परिवेश में हमारा समाज तेजी से बदल रहा है. कई पुरातन मान्यताएं और पाबंदियां ढह रहे है. ऐसे में समाज में उपलब्ध समलैंगिक जोड़ो को शादी का अधिकार न देकर हम फिर से पुरातन और रूढ़िवादी विचारधारा के तरफ बढ़ रहे है.
    • बायोलॉजिकल जेंडर’ स्वयं में ‘पूर्ण’ नहीं है: भारत के सर्वोच्च न्यायालय का मानना है कि ‘बायोलॉजिकल जेंडर’ स्वयं में ‘पूर्ण’ या परम (absolute) स्थिति नहीं है और ‘लिंग’ या जेंडर महज जननांग विशेष के अर्थ तक सीमित नहीं है. पुरुष या महिला की कोई पूर्ण अवधारणा नहीं है (‘‘no absolute concept of a man or a woman’’).
    • ‘अधिकारों की श्रेणियों’ से वंचित किया जाना: LGBTQIA+ समुदाय को विवाह करने की अनुमति न देकर उन्हें कर लाभ, चिकित्सा अधिकार, उत्तराधिकार और गोद लेने जैसे कई महत्त्वपूर्ण कानूनी लाभों से वंचित किया जा रहा है. विवाह केवल गरिमा का प्रश्न नहीं है, बल्कि अधिकारों का एक संग्रह भी है.
    • सहूलियतें: समलैंगिक विवाह से युगलों को कई प्रकार के अधिकार प्राप्त हो जाते है. इनमें एक-दूसरे से तलाक क्षतिपूर्ति, घरेलु विवाद का न्यायालय में निपटान, उत्तराधिकार और पेंशन में अधिकार शामिल है. भारत के मुख्य न्यायाधीश ने भी सहवाह को मूल अधिकार के रूप में स्वीकार किया था. उनहोंने जोर दिया था कि समलैंगिक विवाह को समझौता के रूप में मान्यता देकर विवाह से होने वाले लाभों को समलैंगिक जोड़ो तक पहुँचाया जा सकता है.
    • निजता का अधिकार : साल 2017 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निजता के अधिकार (Right to Privacy) को एक मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता मिला. अदालत ने कहा कि यौन उन्मुखता (sexual orientation) किसी व्यक्ति की पहचान का एक महत्त्वपूर्ण अंग है जिसे बिना किसी भेदभाव के संरक्षित किया जाना चाहिये.
      • ये कहा जा सकता है कि समलैंगिक विवाह भी किसी का निजी मामला है. लेकिन विवाह का सार्वजनिक प्रभाव होता है. लेकिन हम किसी के निजी अधिकारों को इस आधार पर खारिज नहीं कर सकते. सभी को अपने तरीके से जीने का अधिकार है और सरकार को यह सुनश्चित करना चाहिए.
    • निष्कर्षतः समलैंगिक विवाह को अवैध मानने से किसी व्यक्ति के मूल अधिकार, उत्तरदायित्व अधिकार, सामाजिक अधिकार और पारिवारिक अधिकार जैसे कई मामलों में बाधा आती है. समलैंगिक विवाह पर रोक जीवन जीने के कई पहलुओं में अवरोध खड़ा करता है. इसलिए संविधान में विशेष प्रावधान कर इसे मान्यता प्रदान किया जाना चाहिए.

    समलैंगिक विवाह के विपक्ष में तर्क (Arguments against Same Sex Marriage)

    • धर्म: लगभग सभी धर्मों में समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं दिया गया है. ये विवाह को स्त्री और पुरुष के बीच का पवित्र बंधन मानते है. इसलिए विभिन्न धर्म के गुरु इसका विरोध कर रहे है. वे इसे धार्मिक और अपने समाज के नियमों के विरुद्ध मानते है.
    • सार्वजनिक मामला: समलैंगिक सम्बन्ध एक निजी मामला है. लेकिन समलैंगिक विवाह एक सार्वजनिक मामला है. इसका असर समाज के अन्य तबकों पर भी होता है.
    • विशेष विवाह अधिनियम, 1954: यह अधिनियम अंतर्धार्मिक या अंतर्जातीय विवाहों को मान्यता देने के लिए लाया गया था. इसमें विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों से परे अंतर्धार्मिक विवाहों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए लाया गया था. इसलिए यह समलैंगिक विवाह के मामले में लागू नहीं होता है.
    • परिवार की परिभाषा: संसद द्वारा एक परिवार को पति-पत्नी और बच्चे के रूप में परिभाषित किया गया है. वस्तुतः,पति का अर्थ जैविक पिता और पत्नी का अर्थ जैविक माता से है. वहीं समलैंगिक जोड़े संतानोत्पत्ति में सक्षम नहीं होते है. इस तरह यह जोड़ा परिवार के परिभाषा में फिट नहीं बैठता है. साथ ही, बच्चे जोड़े में से किसे माता या किसे पिता कहे- यह बच्चे के मन में दुविधा बनकर उभरता है.
    • संविधान संसोधन: केंद्र सरकार ने सर्वोच्च अदालत से कहा था कि संविधान में संसोधन का अधिकार विधायिका (संसद) को प्राप्त है. इसलिए अदालत को विशेष विवाह अधिनियम में समलैंगिक विवाह का प्रावधान नहीं करना चाहिए.
    • मानव जाति के लिए खतरा: समलैंगिक जोड़े मानव जाति के लिए संतानोत्पत्ति नहीं कर सकते. यह पति-पत्नी के प्राकृतिक जोड़ा के भी खिलाफ है. इस तरह के सम्बन्ध मानव वंश वृद्धि में बाधक है. हालाँकि, वे लोग जो जन्म से न तो स्त्री है और न पुरुष, इस कथन में फिट नहीं होते है. ऐसे जोड़ों को बच्चे गोद लेने का अधिकार भी दिया जा सकता है, जो एक हद तक परिवार के परिभाषा को पूर्ण कर देगा.

    समलैंगिक विवाह से जुड़े कानून (Laws related to Same Sex Marriage)

    सर्वोच्च अदालत द्वारा समलैंगिक विवाह को अवैध ठहराए जाने के साथ ही भारतीय संविधान के कई प्रावधानों की चर्चा हो रही है. इनमें मौलिक अधिकार, विवाह से जुड़े कानून और नागरिक अधिकारों से जुड़े कानून शामिल है. आइए हम इनमें से मुख्य कानूनों को जानते है, जिसका उल्लेख समलैंगिक विवाह के तर्क-वितर्क के दौरान किया गया है-

    1. विशेष विवाह अधिनियम (Special Marriage Act – SMA), 1954:

    यह भारतीय संसद द्वारा लागू एक अधिनियम है. परम्परागत रूप से भारतीय समाज में शादी एक ही धर्म या एक ही जाति के do लोगों के बीच संपन्न होता है. लेकिन कई बार दो अलग-अलग धर्म या जाति के लोग भी आपस में विवाह (अक्सर प्रेम विवाह) करना चाहते है. इन परिस्थितियों के लिए ही संसद द्वारा विशेष विवाह अधिनियम लाया गया है.

    यह अधिनियम विभिन्न जातियों और धर्मों के भारत या विदेश में बसे भारतीय नागरिकों पर लागू होता है. इसमें भारत में प्रचलित मुख्य धर्मों, यथा हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सिख, जैन और बौद्ध धर्मावलम्बियों में संपन्न होने वाले अंतर्जातीय और अंतर्धार्मिक विवाह शामिल है.

    यह अधिनियम आधुनिक समाजशास्त्र के सिद्धांतों के अनुरूप है और धर्म व जातीय परम्परा को दरकिनार करता है. इसके मुख्य खासियत इस प्रकार है:

    • किसी धार्मिक औपचारिकता की आवश्यकता नहीं होती.
    • वैध विवाह, वैध विवाह के लिए आवश्यक शर्तें, अंतर-धार्मिक विवाह का विघटन, विवाह पंजीकरण और अन्य नियम शामिल हैं.
    • शादी की डेट कोर्ट से ही सेट होती है.
    • नोटिस जिस डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में दिया गया है, दोनों में से किसी एक को उस डिस्ट्रिक्ट में 30 दिनों तक रहना होगा.
    • अगर 30 दिनों तक कोई शिकायत नहीं आई तो कोर्ट में शादी की जा सकती है.
    • यह अधिनियम जम्मू-कश्मीर राज्य के अलावा पूरे भारत पर लागू होता है.

    इस प्रकार हम पाते है कि विशेष विवाह अधिनियम में समलैंगिक विवाह का प्रावधान नहीं है. इसमें सिर्फ अंतर्जातीय या अंतर्धार्मिक विवाह का वर्णन है.

    2. संविधान का अनुच्छेद 15 :

    (1) राज्य, किसी नागरिक के विरुद्ध के केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा।
    (2) कोई नागरिक केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर–
    (क) दुकानों, सार्वजनिक भोजनालयों, होटलों और सार्वजनिक मनोरंजन के स्थानों में प्रवेश, या
    (ख) पूर्णतः या भागतः राज्य-निधि से पोषित या साधारण जनता के प्रयोग के लिए समर्पित कुओं, तालाबों, स्नानघाटों, सड़कों और सार्वजनिक समागम के स्थानों के उपयोग,
    के संबंध में किसी भी निर्योषयता, दायित्व, निर्बन्धन या शर्त के अधीन नहीं होगा।
    (3) इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को स्त्रियों और बालकों के लिए कोई विशेष उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी।
    [(4) इस अनुच्छेद की या अनुच्छेद 29 के खंड (2) की कोई बात राज्य को सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े हुए नागरिकों के किन्हीं वर्गों की उन्नति के लिए या अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए कोई विशेष उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी।]

    संविधान के उपरोक्त प्रावधान से स्पष्ट होता है कि संविधान द्वारा दो नागरिकों में ख़ास प्रावधानों के अतिरिक्त किसी भी प्रकार से भेदभाव का निषेध किया गया है. इस आधार पर समलैंगिक विवाह को मान्यता दिए जाने का मांग किया जाता है.

    3. अनुच्छेद 19 (1) के प्रावधान:

    (1) सभी नागरिकों को–
    (क) वाक्‌-स्वातंत्र्य और अभिव्यक्ति-स्वातंत्र्य का,
    (ख) शांतिपूर्वक और निरायुध सम्मेलन का,
    (ग) संगम या संघ बनाने का,
    (घ) भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र अबाध संचरण का,
    (ङ) भारत के राज्यक्षेत्र के किसी भाग में निवास करने और बस जाने का, [और]
    (छ) कोई वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारोबार करने का अधिकार होगा.

    उपरोक्त प्रावधानों में संगम या संघ बनाने का अधिकार समेत कई प्रकार के स्वतंत्रता का वर्णन है. इस आधार पर भी समलैंगिक वैवाहिक संघ बनाने का मांग कर रहे है.

    3. अनुच्छेद 16 और 21 :

    अनुच्छेद 16 के अनुसार किसी भी व्यक्ति को कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा.

    इस तरह समलैंगिक संबंधों को मान्यता मिलते ही समलैंगिक विवाह का बाधा समाप्त हो जाता है. मानव अधिकार की सार्वभौम घोषणा के अनुच्छेद 16 और पुट्टास्वामी मामले की चर्चा करते हुए सर्वोच्च न्यायलय ने भी कहा कि अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 का अभिन्न अंग है.

    इसके अलावा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 16(2) में कहा गया है कि धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, उद्भव, जन्मस्थान, निवास या इसमें से किसी भी आधार पर विभेद नहीं किया जाएगा. इस प्रकार भारतीय संविधान का झुकाव समलैंगिक विवाह के पक्ष में प्रतीत होता है. लेकिन भारतीय संविधान में समलैंगिक विवाह का कोई प्रावधान नहीं है. यह समलैंगिक विवाह के लिए एक बाधा के रूप में सामने आया है.

    4. IPC की धारा 377:

    • भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 के मुताबिक़, जो कोई भी स्वेच्छा से किसी पुरुष, महिला या जानवर के साथ प्रकृति के आदेश के विरुद्ध शारीरिक संबंध बनाता है, उसे आजीवन कारावास या एक अवधि के लिए कारावास की सज़ा हो सकती है. दस साल तक की सज़ा और जुर्माना भी लगाया जा सकता है.
    • धारा 377 में समान-लिंग वाले लोगों के बीच सहमति से यौन संबंध को “अप्राकृतिक अपराध” के रूप में वर्गीकृत किया गया है. यह विक्टोरियन युग का एक क़ानूनी प्रावधान है, जो 21वीं सदी तक जीवित रहा.
    • सुप्रीम कोर्ट ने साल 2018 में इस धारा को आंशिक रूप से रद्द कर दिया था. कोर्ट ने दो बालिगों के बीच सहमति से समलैंगिक संबंधों को वैध करार दिया.
    • धारा 377 को ब्रिटिश शासनकाल में सन 1861 में लागू किया गया था, जो 1533 के बग्गरी ऐक्ट पर आधारित थी.

    समलैंगिक विवाह पर हालिया फैसला (Current Verdict on Same Sex Marriage)

    बदलते वक्त के साथ संविधान के अनुच्छेद 21 में निजता, गरिमा और वैवाहिक पसंद के अधिकारों को समाहित किया गया है. लेकिन, समलैंगिक विवाह के मामले में सर्वोच्च अदालत ने अलग रुख अपनाया और यह कार्य विधायिका पर छोड़ दिया गया.

    भारत के प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस संजय किशन कौल ने फैसला दिया है कि समलैंगिक जोड़ों को अपने मिलन (यूनियन) के लिए मान्यता हासिल करने का अधिकार है.लेकिन साथ ही विशेष विवाह अधिनियम के उस आशय के प्रावधानों में काट-छांट करने (रीड डाउन) से इनकार किया है.

    दूसरी तरफ, न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट्ट, हिमा कोहली और पी.एस. नरसिम्हा ने इस नजरिए को खारिज किया है और कहा है कि कोई भी ऐसी मान्यता विधायिका द्वारा बनाये गये कानून पर ही आधारित हो सकती है. यानी, अदालत ने सरकार के इस दृष्टिकोण को स्वीकार किया है कि समलैंगिक शादियों को कानूनी बनाने का कोई भी कदम विधायिका के अधिकार-क्षेत्र में आयेगा.

    इस तरह सर्वोच्च न्यायालय ने विवाह के अधिकार को मौलिक अधिकार मानने से इंकार कर दिया. फैसले में अदालत ने समलैंगिक जोड़ों के साथ भेदभाव समाप्त करने के लिए भी कोई दिशानिर्देश जारी नहीं किया है.

    विवाह एक सामाजिक संस्था है. विवाह को वैध बनाने के लिए कानूनी जरूरतें और शर्तें हैं. विवाह के जरिए सामाजिक और कानूनी वैधता हासिल करने का अधिकार व्यक्तिगत पसंद का मामला है जिसे संविधान से संरक्षण प्राप्त है, लेकिन शीर्ष अदालत अब भी इसे विधायिका द्वारा बनाये गये कानूनों की सीमाओं के अधीन ही मानती है.

    बहुमत इस नजरिए के पक्ष में नहीं है कि समलैंगिक जोड़ों को बच्चे गोद लेने का अधिकार है. लेकिन इस बात पर अल्पमत से सहमत है कि परालिंगी (ट्रांस) व्यक्तियों के विपरीत-लिंगी वैवाहिक संबंध में प्रवेश करने पर कोई रोक नहीं है. न्यायाधीशों के बीच इस बात पर कोई असहमति नहीं है कि ऐसे समलैंगिक जोड़ों को साथ रहने और उत्पीड़न व धमकियों से मुक्त होने का अधिकार है.

    भारतीय आबादी का बड़ा हिस्सा समलैंगिक शादियों को कानूनी बनाये जाने का धार्मिक और सांस्कृतिक आधार पर विरोध कर सकता है. इस संभावना के कारण संसद द्वारा समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की काफी कम संभावना है.

    लेकिन सर्वोच्च अदालत के ताजा फैसलों के अनुरूप LGBTQIA+ समुदाय सरकार से समलैंगिक जोड़ों के अधिकारों व हकदारियों पर निर्णय के लिए एक कमेटी की उम्मीद कर सकता है. जैसा की सर्वोच्च अदालत ने समलैंगिक विवाह का मसला विधायिका पर छोड़ दिया है. तदनुरूप यह समुदाय अन्य नागरिकों के सामान अधिकार प्राप्त करने के लिए काफी संघर्ष करना होगा.

    आगे की राह (Conclusion)

    समलैंगिक विवाह खासकर किन्नर समुदायों के अधिकारों को सुरक्षित करता है. इसलिए समलैंगिक विवाह को मान्यता देना महत्वपूर्ण प्रतीत होता है. इसके लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते है-

    1. जागरूकता बढ़ाना: LGBTQIA+ समुदाय के अधिकारों के लिए अभियान चलाया जाना चाहिए. इस तरह से जनता के राय में विविधता लाया जा सकता है, जो समलैंगिक जोड़ों के क़ानूनी अधिकार के लिए जनमत तैयार कर सकेगा.
    2. क़ानूनी सुधार: संसद द्वारा विशेष विवाह अधिनियम में संसोधन कर समलैंगिक विवाह को मान्यता दिया जा सकता है. इसके लिए अलग से भी कानून बनाकर मान्यता दिया जा सकता है. इस तरह से समलैंगिक जोड़ों को सामान्य जोड़ो के भाँती अधिकार प्राप्त हो सकेंगे.
    3. संवाद और जुड़ाव: धार्मिक नेताओं और समुदायों के बीच संवाद स्थापित कर समलैंगिक संबंधों के प्रति वैमनस्य व भेदभाव समाप्त किया जा सकता है. इससे पारंपरिक मान्यताओं एवं आधुनिक दृष्टिकोण के बीच के अंतर को कम करने में मदद मिल सकती है.
    4. कानूनी चुनौतियाँ: भारतीय LGBTQIA+ समुदाय समलैंगिक विवाह को प्रतिबंधित करने वाले मौजूदा कानूनों की संवैधानिकता को न्यायालय में चुनौती दे सकता है. इस प्रकार कानूनी चुनौतियाँ एक मिसाल बन सकती हैं जो आने वाले समय में समलैंगिक विवाह को वैध बनाने का मार्ग प्रशस्त करेंगी. वैसे भी, अनुच्छेद 21 में अपने पसंद से विवाह करने और जीवन जीने का प्रावधान है.
    5. सहयोग: समलैंगिक विवाह को वैध बनाने के लिये इसके समर्थक व विरोधी समूहों के बीच आपसी सहयोग को बढ़ावा देकर शंकाओं को दूर किया जा सकता है. इस प्रकार के सहयोग में LGBTQIA+ समुदाय के अलावा सरकार, नागरिक समाज और धार्मिक नेताओं सहित सभी हितधारकों को शामिल किया जा सकता है. इस तरह एकजुटता से प्रेम व भाईचारा युक्त समावेशी समाज का निर्माण किया जा सकता है, जहाँ सभी को अपने पसंद से विवाह करने और निजी इक्षा के अनुरूप जीवन जीने का अधिकार हो.

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