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अंतरिक्ष मिशन के अंतर्राष्ट्रीय कानून

अंतरिक्ष मिशन पर समझौते और क़ानूनी ढांचों का विकास शीतयुद्ध के दौरान हुआ है. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद रूस और अमेरिका के बीच शीतयुद्ध का आगाज़ हो चुका था. यह रणनीतिक और मनोवैज्ञानिक युद्ध; जहां धरती पर एक-दूसरे से आगे बढ़ने के रूप में जारी था. वहीं अंतरिक्ष मिशन के जरिए धरती के बाहर पहुंचकर भी बढ़त लेने की कोशिश जारी थी. 1957 में सोवियत संघ रूस द्वारा स्पुतनिक उपग्रह छोड़े जाने के साथ ही अंतरिक्ष मिशन पर जोरो से चर्चा होने लगी. इन्हीं वार्तालापों के बीच ये बात भी उठने लगा कि धरती के बाहर के संसाधन पर किसका हक होगा और अंतरिक्ष मिशन से दूसरे देशों को हुए नुकसान का भरपाई कैसे होगा?

इस वक्त अंतरिक्ष मिशन के लिए न तो किसी देश ने कानून बनाए थे और न ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसपर कोई क़ानूनी ढांचा उपलब्ध था. ऐसे में अंतरिक्ष मिशन और अंतरिक्ष संसाधन के स्वामित्व को लेकर कानून का मांग किया जाने लगा. इसके कारण ही अंतरिक्ष मिशन से जुड़े समझौते हुए और कालांतर में अंतरिक्ष कानून का विकास हुआ.

इस लेख में हम जानेंगे

संयुक्त राष्ट्र संघ का प्रयास (Attempts by United Nations)

1959 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने ‘बाह्य अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग पर संयुक्त राष्ट्र समिति (UNCOPUOS) का स्थापना किया. इसका वार्षिक बैठक आयोजित किया जाता है. इसका कार्य पांच सिद्धांतों पर किए गए पांच समझौतों को लागू करवाने से है. ये संधियां अंतरिक्ष मिशन और अंतरिक्ष अन्वेषण के शांतिपूर्ण और मानव हित में उपयोग को बढ़ावा देता है.

1961 में इस समिति ने अपनी दो सहायक उपसमितियों का स्थापना किया. इसमें पहला वैज्ञानिक और तकनीकी उप-समिति और दूसरा कानूनी उप-समिति है. ये समिति हर साल ऑस्ट्रिया के वियना में अपना बैठक आयोजित करती है. इसका मुख्य काम जरुरत के अनुसार भविष्य का रुपरेखा तय करना है.

वैज्ञानिक और तकनीक समिति को निम्नलिखित निगरानी कार्य सौंपे गए है-

  • अंतरिक्ष मौसम,
  • पृथ्वी के पास की वस्तुएँ,
  • सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग,
  • आपदा प्रबंधन,
  • वैश्विक नेविगेशन उपग्रह प्रणाली, और
  • लंबी अवधि के लिए बाहरी अंतरिक्ष गतिविधियों की वहनीयता कायम रखना इत्यादि.

कानून उपसमिति को निम्नलिखित कार्य सौंपे गए है-

  • बाह्य अंतरिक्ष मिशन पर लागु पांच समझौतों का निगरानी व लागु करना,
  • बाह्य अंतरिक्ष से जुड़े परिभाषा और सीमाओं का निर्धारण,
  • अंतरिक्ष से जुड़े कानून बनाना,
  • अंतरिक्ष मिशन से पैदा हुए कचरे को कम करना,
  • शांतिपूर्ण तरीके से अंतरिक्ष अन्वेषण और बाह्य अंतरिक्ष के उपयोग के लिए कानूनी ढांचे का निर्माण इत्यादि.

क़ानूनी उपसमिति द्वारा ही बाह्य अंतरिक्ष पर पांच समझौते किए गए है. इन समझौतों का वर्णन आगे किया जा रहा है.

अंतरिक्ष मिशन से जुड़े अंतर्राष्ट्रीय कानून (International Law on Space Mission in Hindi)

संयुक्त राष्ट्र के पांच संधियों के समूह को ‘अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष मिशन कानून‘ का आधार माना जाता है. सबसे पहला संधि 1967 में की गई बाह्य अंतरिक्ष संधि है. इसे अंतरिक्ष मिशन कानून का मैग्ना कार्टा भी कहा जाता है. इन पांच संधियों में भारत ने चार का अनुमोदन किया है और एक पर हस्ताक्षर किये हैं.

अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून का मार्गदर्शन करने वाले मूल सिद्धांतों में से एक सामुदायिक संपदा (Res Communis) है. रेस कम्युनिस का तात्पर्य कुछ प्राकृतिक संसाधनों पर मानव जाति का साझा स्वामित्व की अवधारणा से है. जैसे, हवा, समुद्र, आकाश, पर्यावरण इत्यादि पर किसी एक देश का स्वामित्व नहीं होता, बल्कि सम्पूर्ण मानवजाति और अन्य जीव इसका इस्तेमाल करने के लिए स्वतंत्र होते है. इस सिद्धांत क एक गैर-अंतरिक्ष उदाहरण में उच्च समुद्री संसाधन का उपभोग (समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन द्वारा शासित) या आर्कटिक के ऊपर हवाई क्षेत्र के संसाधन शामिल है.

अंतरिक्ष मिशन पर पांच कानून या समझौते इस प्रकार है-

1. बाह्य अंतरिक्ष संधि (Outer Space Treaty in Hindi)

यह चंद्रमा और अन्य खगोलीय पिंडों सहित बाहरी अंतरिक्ष की खोज और उपयोग में राज्यों की गतिविधियों को नियंत्रित करने वाले सिद्धांतों पर संधि है. यह समझौता अंतरकश मिशन पर के शुरुआती दौर का संधि है. इस संधि द्वारा चंद्रमा और अन्य खगोलीय पिंडों सहित बाहरी अंतरिक्ष की खोज और उपयोग में राज्यों की गतिविधियों को नियंत्रित करने वाले कानून लागू के गए है.

27 जनवरी 1967 को इस संधि को विचार के लिए रखा गया. 10 अक्टूबर, 1967 से यह प्रभावी हो गया.

बाह्य अंतरिक्ष संधि के मुख्य विशेषताएं:

  • यह “अंतरिक्ष कानून का मैग्ना कार्टा” के रूप में प्रसिद्द है.
  • हस्ताक्षरता राष्ट्र पर बाह्य अंतरिक्ष का केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए उपयोग करने का बाध्यता, जो अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुरूप हो.
  • इस संधि में अंतरिक्ष के शस्त्रीकरण पर रोक लगाया गया है. सदस्यों को कक्षा में या चंद्रमा या अन्य खगोलीय पिंडों पर परमाणु या अन्य हथियार रखने पर रोक है.
  • कोई भी देश चंद्रमा या अंतरिक्ष में किसी अन्य पिंड पर संप्रभुता का दावा नहीं कर सकता है और खुले तौर पर अंतरिक्ष मिशन सम्पन्न करने होंगे.
  • यह सदस्यों को अंतरिक्ष में अपनी गतिविधियों के लिए जिम्मेदार बनाता है. सदस्य अपने क्षेत्र से अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किसी भी वस्तु से होने वाले नुकसान के लिए उत्तरदायी होंगे.
  • देशों को संकट में फंसे अंतरिक्ष यात्रियों की मदद करने का नैतिक बाध्यता इसका एक अन्य खासियत है. इसके अनुसार, एक देश के अंतरिक्ष प्रतिष्ठान और वाहन पारस्परिक आधार पर दूसरे देशों के लिए खुले होने चाहिए.

2. बचाव समझौता (The “Rescue Agreement”)

अंतरिक्ष यात्रियों के बचाव और वापसी, तथा बाहरी अंतरिक्ष में प्रक्षेपित वस्तुओं की वापसी पर समझौता (ARRA) 3 दिसंबर, 1968 को लागू हुआ था. यह संकट और आपातकालीन स्थितियों में अंतरिक्ष वस्तुओं और यात्रियों के प्रति राष्ट्रों के दायित्व से संबंधित है. इसमें बचाव, सहायता और अंतरिक्ष यात्रियों का सकुशल वापसी शामिल है.

अंतरिक्ष यात्रियों के बचाव में इस संधि को कभी भी क्रियान्वित नहीं किया गया है. इस वजह से अन्य संधियों की तरह यह सुर्ख़ियों में न के बराबर रहता है. इसी कारण 2008 के एक रिसर्च पेपर में इसे ‘स्लीपिंग ब्यूटी’ कहा गया है. इस संधि को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित वस्तुओं और यात्रियों के बचाव और सुरक्षा के उद्देश्य से लागू किया गया है.

3. उत्तरदायित्व कन्वेंशन (The “Liability Convention”)

इसे अंतरिक्ष उत्तरदायित्व कन्वेंशन के नाम से भी जाना जाता है. इस संधि में अंतरिक्ष मिशन के वस्तुओं द्वारा होने वाली क्षति के लिए अंतर्राष्ट्रीय दायित्व का उल्लेख किया गया है, जो 1 सितंबर, 1972 को लागू हुई. संधि का मुख्य उद्देश्य अंतरिक्ष मिशन से हुए क्षति के लिए दायित्व को परिभाषित करना है. यह संधि किसी राज्य द्वारा लॉन्च की गई अंतरिक्ष मिशन से होने वाली क्षति पर लागू होती है.

इस संधि के तहत, अंतरिक्ष में किसी वस्तु को लॉन्च करने वाला देश पृथ्वी की सतह या किसी विमान को होने वाले किसी भी नुकसान की भरपाई के लिए उत्तरदायी होगा. देश के गलती से बाहरी अंतरिक्ष में होने वाली किसी भी क्षति के लिए भी उत्तरदायी होगा. कन्वेंशन में क्षति के दावों के निपटान के लिए प्रक्रिया की रूपरेखा भी है. संधि क्षति को इस प्रकार परिभाषित करती है:

  • जन हानि
  • व्यक्तिगत चोट या स्वास्थ्य की अन्य हानि
  • राज्यों या व्यक्तियों की संपत्ति की हानि या क्षति

संधि में कहा गया है कि एक लॉन्चिंग करने वाले देश अपने अंतरिक्ष मिशन के वस्तुओं से होने वाले नुकसान के लिए मुआवजे का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी है.

यदि दो या दो से अधिक राज्य संयुक्त रूप से किसी अंतरिक्ष वस्तु का प्रक्षेपण करते हैं, तो वे किसी भी क्षति के लिए संयुक्त रूप से और अलग-अलग उत्तरदायी होते हैं. संयुक्त लॉन्चिंग में, यदि एक राज्य ने मुआवजे का भुगतान दिया है तो उसे अन्य प्रतिभागी राज्यों से क्षतिपूर्ति का दावा पेश करने का अधिकार होगा.

इसमें कुछ खामियां भी है. दायित्व कन्वेंशन अंतरराष्ट्रीय कानून के उस सिद्धांत का खंडन करता है जिसके अनुसार, नियंत्रण जिम्मेदारी को जन्म देता है. अभी तक इस संधि का सफल उपयोग नहीं पाया गया है. साथ ही, इस संधि में रॉकेट के पृथ्वी पर वापस आकर दुर्घटनाग्रस्त होने से होने वाली क्षति के लिए कोई प्रावधान नहीं है.

4. पंजीकरण कन्वेंशन (The “Registration Convention” in Hindi)

1974 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा पंजीकरण कन्वेंशन या बाहरी अंतरिक्ष में प्रक्षेपित वस्तुओं के पंजीकरण पर कन्वेंशन अपनाया गया था. यह 15 सितंबर, 1976 को लागू हुआ. यह अपेक्षाकृत अत्यधिक सरल और व्यावहारिक संधि है, जिसमें केवल 12 अनुच्छेद शामिल है.

कन्वेंशन में शामिल राज्यों को संयुक्त राष्ट्र को अपने किसी भी मिशन में प्रक्षेपित वस्तु के कक्षा के बारे में विवरण प्रदान करने की आवश्यकता होती है. यूएन के लिए इसका रिकॉर्ड एक रजिस्ट्री में दर्ज किया जाता है. 1962 से ही संयुक्त राष्ट्र ने एक लॉन्चिंग रजिस्ट्री बना रखी है.

संयुक्त राष्ट्र के महासचिव इस रेजिस्ट्री को जारी रखने, राज्यों और अंतर्राष्ट्रीय अंतर् सरकारी संगठों द्वारा प्रदान की गई जानकारी तक सभी का पूर्ण और खुला पहुँच सुनिश्चित करना भी महासचिव का उत्तरदायित्व है. यह सम्मेलन बाह्य अंतरिक्ष को समर्पित चौथी संधि है.

5. “चंद्रमा समझौता” (The Moon Agreement in Hindi)

आम तौर पर “चंद्रमा समझौता” के रूप में जाना जाता है. इसका आधिकारिक नाम “चंद्रमा और अन्य खगोलीय पिंडों पर राज्यों की गतिविधियों को नियंत्रित करने वाला समझौता” है. इसे 1979 में बाह्य अंतरिक्ष मामलों के लिए संयुक्त राष्ट्र कार्यालय द्वारा पेश किया गया और 11 जुलाई 1984 को लागू हुआ.

इस समझौते के अनुसार, चंद्रमा और अन्य खगोलीय पिंडों का उपयोग केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है. यह तत्व बाह्य अंतरिक्ष संधि में भी मुख्य तौर पर उल्लेखित है. समझौते में इन पिंडो के पर्यावरण को किसी भी तरह से नुकसान पहुँचाने वाले कोशिश का निषेध किया गया है. समझौते में किसी भी अंतरिक्ष मिशन द्वारा खगोलीय पिंडो पर स्थापित किसी भी स्टेशन के स्थान और उद्देश्य के बारे में संयुक्त राष्ट्र को सूचित करने का बाध्यता है.

समझौते में चंद्रमा और उसके प्राकृतिक संसाधन को मानव जाति का साझा विरासत माना गया है. यह खगोलीय पिंडो के संसाधनों के शोषण को विनियमित करने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था बनाने के उद्देश्यों पर भी जोर देता है.

इस बहुपक्षीय संधि के द्वारा सदस्य देशों को आकाशीय पिंडों पर उनके आसपास की कक्षाओं सहित अधिकार क्षेत्र देता है. समझौते का उद्देश्य चंद्रमा और अन्य खगोलीय पिंडों की खोज और दोहन को संतुलित करना है.

समझौते में मात्र 21 अनुच्छेद हैं. यह निम्नलिखित कृत्यों को प्रतिबंधित करता है:

  1. चंद्रमा पर सैन्य अड्डे, प्रतिष्ठान या किलेबंदी स्थापित करना.
  2. चंद्रमा पर किसी भी प्रकार के हथियार का परीक्षण करना.
  3. चंद्रमा पर सैन्य युद्धाभ्यास करना.

समझौते का उद्देश्य अंतरिक्ष मिशन द्वारा चंद्रमा पर खोज, अनुसंधान और उपयोग में राज्यों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना है ताकि इसे अंतरराष्ट्रीय संघर्ष का क्षेत्र बनने से रोका जा सके.

अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून से टकराहट (Conflict with International Space Law)

दुनिया के कई देश अपने अंतरिक्ष मिशन को आगे बढ़ा रहे है. इक्कीसवीं सदी में दुनिया के कई निजी निगम भी इस क्षेत्र में काम करने लगे है, जिनका आखिरी उद्देश्य लाभ कमाना होता है. इसी के साथ कई अंतरिक्ष मिशन व समझौते भी हुए है. इसने अंतरिक्ष मिशन पर अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के औचित्य पर सवाल खड़े किए है. इसमें आर्टेमिस समझौता (Artemis Accords) मुख्य है.

आर्टेमिस सहमति (Artemis Accords in Hindi)

अमेरिका द्वारा प्रायोजित आर्टेमिस समझौता 13 गैर-बाध्यकारी दिशानिर्देशों का एक समुच्चय है. यह इक्कीसवी सदी में शांतिपूर्ण नागरिक अंतरिक्ष मिशन और अन्वेषण पर एक सहमति आधारित समझौता है. बाह्य अंतरिक्ष संधि पर आधारित इस सहमति पर अक्टूबर 2020 में आठ देशों ने हस्ताक्षर किए थे. अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, इटली, जापान, लक्ज़मबर्ग, संयुक्त अरब अमीरात और यूनाइटेड किंगडम इसके संस्थापक सदस्य है. इसके माध्यम से चंद्रमा, मंगल, धूमकेतु, क्षुद्रग्रह तथा बाहरी अंतरिक्ष के उपयोग के लिये सामान्य सिद्धांत स्थापित किये गए हैं.

अमेरिकी विदेश विभाग के सह-नेतृत्व वाले इस कार्यक्रम का लक्ष्य 2024 में लोगों को चंद्रमा पर एक बार फिर से ले जाना है. इनमें पहली महिला और अश्वेत व्यक्ति भी शामिल हैं.

आर्टेमिस समझौते, राष्ट्रों को चंद्रमा से निकाली गई सामग्रियों पर संपत्ति का अधिकार का निषेध करता है. यह राष्ट्रीय विनियोग पर बाह्य अंतरिक्ष संधि के प्रावधान के अनुरूप है. इस समझौते में आकाशीय पिंडों पर सैन्य गतिविधियों और बाहरी अंतरिक्ष में सामूहिक विनाश के हथियारों की तैनाती पर प्रतिबंध लगाया गया है.

अंतरराष्ट्रीय कानून और अंतरिक्ष मिशन में सहयोग को आगे बढ़ाने के उद्देश्यों के कारण आर्टेमिस समझौते का आम तौर पर स्वागत किया गया है. पर्यवेक्षकों के अनुसार समझौते का सार असंतुष्टि को बढ़ावा देता है. इनके अनुसार, यह सहमति अंतरिक्ष कानून के प्रमुख सिद्धांतों को संहिताबद्ध करने के महत्वपूर्ण राजनीतिक प्रयास है.

अब तक 28 देशों ने आर्टेमिस समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. 21 जून 2023 को भारत ने भी इस सहमति पर हस्ताक्षर कर दिया और इसका 27वां सदस्य बन गया. वहीं, अर्जेंटीना 27 जुलाई, 2023 को आर्टेमिस समझौते का 28वां हस्ताक्षरकर्ता बन गया.

ऑस्ट्रेलिया, बहरीन, ब्राज़ील, कनाडा, कोलंबिया, चेक रिपब्लिक, इक्वेडोर, फ्रांस, इज़राइल, इटली, जापान, लक्समबर्ग, मेक्सिको, न्यूज़ीलैंड, नाइजीरिया, पोलैंड, दक्षिण कोरिया, रोमानिया, रवांडा, सिंगापुर, स्पेन, सऊदी अरब, यूक्रेन, संयुक्त अरब अमीरात, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका इसके अन्य 26 हस्ताक्षरकर्ता देश है.

यह समझौता अंतर्राष्ट्रीय कानून का पालन बाध्यकारी नहीं बनाता है. कथित तौर पर अमेरिका इसे व्यापक अंतर्राष्ट्रीय सहमति प्राप्त कर एक प्रथागत अंतर्राष्ट्रीय कानून के रूप में विकसित करना चाहता है.

अमेरिका का ये प्रयास “चन्द्रमा समझौता” (Moon Agreement) के अंतर्राष्ट्रीय प्रयास को कमजोर करने के लिए उठाया गया कदम प्रतीत होता है. डाउन टू अर्थ के एक रिपोर्ट के अनुसार, “अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अंतरिक्ष में क्षेत्रीय दावे निषिद्ध हैं. आर्टेमिस अकॉर्ड्स सबसे पहले 1979 के अलोकप्रिय मून एग्रीमेंट को खारिज करता है, जो सभी पक्षों को चंद्रमा के संसाधनों को “मानव जाति की सामान्य विरासत” घोषित करने और अंतरिक्ष खनन की निगरानी के लिए एक अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की वकालत करता है.”

डाउन टू अर्थ के इसी रिपोर्ट में बताया गया है कि यह अकॉर्डस 1967 के आउटर स्पेस संधि के पालन का दावा करते हैं, जिसे व्यापक रूप से समर्थन हासिल है. लेकिन, यह समझौता प्रभावी रूप से अंतरिक्ष खनन के अंतरराष्ट्रीय निरीक्षण की संभावना को खत्म कर देता है.

दरअसल, अंतरिक्ष मिशन के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ नए मसलों पर विचार करने और उससे जुड़े कानून बनाने के आम सहमति पर काम कर रहा था. इसी बीच कोविड-19 महामारी (Covid-19 pandemic) ने दुनिया को अपने चपेट में ले लिया. इसके कारण संयुक्त राष्ट्र को अपना प्रयास रोकना पड़ा. इसी बीच अमेरिका ने आर्टेमिस समझौता पेश किया और कई प्रभावशाली देशों से इसपर हस्ताक्षर करवा लिया गया. इस तरह अमेरिका अंतरिक्ष मिशन पर समानांतर अंतर्राष्ट्रीय कानून बनाने के दिशा में एक कदम आगे बढ़ गया.

जून 2018 में 1968 में वियना में ‘बाहरी अंतरिक्ष की खोज और शांतिपूर्ण उपयोग’ पर पहले संयुक्त राष्ट्र (यूएन) सम्मेलन की स्वर्ण जयंती (पचासवीं वर्षगांठ) मनाई गई. 1967 की बाहरी अंतरिक्ष संधि (OST) के 51 साल भी यहां याद किए गए.

अन्य अंतरिक्ष मिशन कानून (Other Space Mission Laws in Hindi)

पाँच प्रमुख संधियों के अलावा, अंतरिक्ष गतिविधियों से संबंधित पाँच घोषणाएँ भी हैं. पहला है “बाह्य अंतरिक्ष की खोज और उपयोग में राज्यों की गतिविधियों को नियंत्रित करने वाले कानूनी सिद्धांतों की घोषणा” – जिसे 1963 में एक महासभा प्रस्ताव के माध्यम से अपनाया गया था.

अन्य कानूनों में ‘टेलीविजन प्रसारण के लिए उपग्रहों के उपयोग’ को नियंत्रित करने वाले कानून, बाह्य अंतरिक्ष से सुदूर संवेदन और बाह्य अंतरिक्ष में परमाणु ऊर्जा स्रोतों का उपयोग शामिल है. पांचवाए घोषणा में सभी राज्यों, विशेषकर विकासशील देशों, के लाभ के लिए अंतरिक्ष अन्वेषण में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से सम्बन्धित है.

इसमें संयुक्त राष्ट्र महासभा के अन्य प्रस्ताव भी शामिल हैं, जो गैर-बाध्यकारी होते हुए भी अंतरिक्ष मिशन के मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय कार्रवाई का मार्गदर्शन करने में मदद करते हैं. यह अंतरिक्ष समुदाय के बीच आम सहमति को आकार देने में सहायक है.

अंतरिक्ष मिशन पर यूएन के हालिया पहल (Recent UN Initiatives on Space Mission)

संयुक्त राष्ट्र ने हाल ही में अपने एक विज्ञप्ति को “सभी मानवता के लिए – बाहरी अंतरिक्ष प्रशासन का भविष्य” नाम से जारी किया है. इसमें बाहरी अंतरिक्ष में शांति, सुरक्षा और हथियारों की दौड़ की रोकथाम सुनिश्चित करने के लिए एक नए संधि के विकास का सिफारिश किया है. अंतरिक्ष मिशन पर सितंबर 2024 में न्यूयॉर्क में एक संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन भी निर्धारित है. इसका उद्देश्य बाहरी अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण और टिकाऊ उपयोग के उद्देश्यों को आगे बढ़ाना है.

अंतरिक्ष मिशन पर अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का औचित्य (Importance of International Law on Space Missions)

हमारे अंतरिक्ष बहुमूल्य और अनंत आर्थिक सम्पदाओं का भंडार है. कई अंतरिक्ष मिशन और कार्यक्रमों द्वारा ये तथ्य साबित हो चुका है. इसी के साथ लाभ का दोहन करने के लिए प्रसिद्ध कम्पनियाँ भी अंतरिक्ष मिशन और अन्वेषण के क्षेत्र में पांव पसारने लगे है, जिनका एक लक्ष्य अंतरिक्ष मिशन और खगोलीय संसाधनों का आर्थिक दोहन हो सकता है.

नासा (NASA – National Aeronautics and Space Administration) ने साल 2020 में “चंद्र रेगोलिथ” के खनन के लिए चार कंपनियों से समझौता किया है. इस समझौते के तहत छोटे मात्रा में चंद्र रेगोलिथ का उत्पादन 2024 तक सम्पन्न करना है. यह अंतरिक्ष के संसाधन का आर्थिक दोहन से जुड़ा प्रथम प्रयास है, जो अंतरिक्ष संसाधन के व्यवसायीकरण का शुरुआत है.

खोजो से ये साबित हो चुका है कि चन्द्रमा के ध्रुवों पर स्थित क्रेटर (गड्ढें) में पानी का प्रयाप्त मात्रा उपलब्ध है. प्रज्ञान रोवर के लेजर-प्रेरित ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोपी (LIBS) उपकरण ने हाल ही में चन्द्रमा के सतह पर सल्फर की उपस्थिति की पुष्टि की है. प्रारंभिक विश्लेषणों ने एल्यूमिनियम (Al), सल्फर (S), कैल्शियम (Ca), आयरन (Fe), क्रोमियम (Cr), टाइटेनियम (Ti), मैंगनीज (Mn), सिलिकॉन (Si), और ऑक्सीजन (O) के उपस्थिति का पता चला है.

2018 में प्रकाशित एक रिसर्च पेपर के अनुसार, नासा का अनुमान है कि क्षुद्रग्रहों का मूल्य 700 क्विटिलियन अमेरिकी डॉलर के आसपास हो सकता है. यह राशि पृथ्वी के सभी इंसानों पर बराबर बांटे जाने पर, प्रत्येक व्यक्ति को 95 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बराबर धनराशि प्राप्त होगा. इसी रिपोर्ट में लिथियम, कोबाल्ट, निकल, तांबा, जस्ता, नाइओबियम, मोलिब्डेनम, लैंथेनम, यूरोपियम, टंगस्टन और सोना जैसे बहुमूल्य दुर्लभ पदार्थ अंतरिक्ष में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होने का संभावना जताई गई है.

इन संसाधनों के उपयोग से कोई भी देश अति साधन सम्पन्न और आमिर हो सकता है. दुर्भाग्य से, अंतरिक्ष माइनिंग पर अंतर्राष्ट्रीय कानून खामोश है. इसी वजह से कई देशों ने अंतरिक्ष मिशन के माध्यम से आर्थिक लाभ प्राप्त करने के दिशा में कदम बढ़ा दिया है.

इस तरह के कदम से विश्व में अंतरिक्ष अन्वेषण के दिशा में होड़ मच सकता है, जो वैश्विक शीत युद्ध के पनपने जैसा ही है. इसलिए अंतरिक्ष मिशन को नियंत्रित करने वाले कानूनों का नितांत आवश्यकता है.

इसके अलावा, विश्व के कई देशों के पास कक्षा में स्थापित कृत्रिम उपग्रहों को नष्ट करने की क्षमता है. इनमें संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, चीन और भारत शामिल है. 27 मार्च 2019 को भारत ने “मिशन शक्ति” कूट नाम से संचालित एक परियोजना के माध्यम से एक एंटी-सैटेलाइट हथियार का सफल परिक्षण किया था. इसका लक्ष्य पृथ्वी की निचली कक्षा में मौजूद एक उपग्रह था. एक देश द्वारा दूसरे देश के खिलाफ इस तरह के अंतरिक्ष मिशन के उपयोग से अंतर्राष्ट्रीय शांति को क्षति पहुँचती है. इसलिए भी अंतरिक्ष मिशन से जुड़े कानूनों का लागु होना औचित्यपूर्ण है.

अंतरिक्ष और केसलर सिंड्रोम (Space and Kessler syndrome in Hindi)

केसलर सिंड्रोम अंतरिक्ष में फैलते कचरे से संबंधित एक सिद्धांत है, जिसे 1978 में नासा के वैज्ञानिक डोनाल्ड कैस्लर द्वारा प्रस्तावित किया गया है. इसके अनुसार, किसी गृह के कक्षा में बहुत अधिक अंतरिक्ष कचरों की श्रृंखला प्रतिक्रिया का कारण बन सकता है. ये कचरे आपस में टकराकर कक्षीय कचरे को और भी बढ़ा सकते है. इसके कारण पृथ्वी का कक्षा अनुपयोगी हो सकती है.

मुक्त रूप से तैरता अंतरिक्ष मलबा पृथ्वी से छोड़े गए और कार्यशील उपग्रहों के लिए भी खतरा हो सकता है. अंतरिक्ष मलबा और उपग्रहों के बीच टक्कर से, हमारे उपग्रह निष्क्रिय हो सकते है. यह मलबा अंतरिक्ष अन्वेषण और उपग्रहों के प्रेक्षण को बाधित तक पीढ़ियों तक अंतरिक्ष मिशन को असंभव बना सकता है.

2022 में, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने टकराव का खतरा पैदा करने वाली वस्तुओं की निगरानी के लिए सुरक्षित और सतत संचालन प्रबंधन (IS 4 OM) प्रणाली की स्थापना किया है. इसरो के पास प्रोजेक्ट नेत्र (NETRA – Network for space object Tracking and Analysis) भी है. यह भारतीय उपग्रहों के मलबे और संभावित खतरों का पता लगाने के लिए एक प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली है.

डॉ कैस्लर के इसी प्रस्तावना के बाद अंतरिक्ष प्रदुषण पर वार्तालाप किया जाने लगा और अंतरिक्ष में फैले कचरों का निदान के उपाय खोजे जाने लगे. अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन इस दिशा में कई प्रयास को अंजाम दे चुका है.

ब्रह्माण्ड के दोहन का प्रयास (Attempt to exploit the Universe)

वास्तव में, “मून एग्रीमेंट” विश्व के देशों द्वारा ग्रहों और क्षुद्रग्रहों के व्यावसायिक दोहन पर रोक लगाता है. लेकिन इसके ‘तर्कसंगत प्रबंधन’, ‘न्यायसंगत साझाकरण’ और ‘अवसरों के विस्तार’ के लिए स्थापित अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था के माध्यम से ही इसे किर्यान्वयित किया जा सकता है.

वास्तव में, अंतर्राष्ट्रीय संधियों का गैर-विनियोग खंड (Non-appropriation clause) राष्ट्रों को आकाशीय पिंडों पर दावा करने से रोकते हैं. लेकिन ये संसाधनों के निकाले जाने के बाद उनके स्वामित्व और उपयोग पर स्पष्ट रूप से रोक नहीं लगाते हैं.

अंतर्राष्ट्रीय कानून में इस खामी का उपयोग कई देश कर रहे है और अंतरिक्ष मिशन के माध्यम से ब्रह्माण्ड के दोहन के दिशा में आगे बढ़ रहे है. इसका एक मकसद “अंतरिक्ष में उपलब्ध संसाधनों का उपभोग कर अपने देश को समृद्ध बनाना और आर्थिक विकास को बढ़ावा देना” हो सकता है.

इस खामी का फायदा उठाते हुए, अमेरिका, लक्ज़मबर्ग, संयुक्त अरब अमीरात और जापान जैसे देशों ने अंतरिक्ष मिशन पर घरेलू कानून लागू किए हैं. ये कानून कंपनियों को खगोलीय पिंडो से निकाले गए संसाधनों पर विशेष स्वामित्व का दावा करने की अनुमति देते हैं. भारत भी इस सम्बन्ध में कानून लागू करने के दिशा में आगे बढ़ रहा है. इस दिशा में विभिन्न देशों द्वारा किए जा रहे प्रयासों का वर्णन नीचे किया गया है.

A. अंतरिक्ष मिशन पर अमेरिकी कानून (American Law on Space Mission)

नवम्बर 2015 में अमेरिकी सरकार ने “यूएस वाणिज्यिक अंतरिक्ष लॉन्च प्रतिस्पर्धात्मकता अधिनियम, 2015” पेश किया. यह अंतरिक्ष संसाधनों पर निजी संस्थाओं को “संपत्ति का अधिकार” को मान्यता देने वाला पहला राष्ट्रीय कानून है. यह अमेरिकी नागरिकों को भी ऐसे अधिकारों का दावा करने की अनुमति देता है.

इस कानून ने अमेरिका में पंजीकृत निजी फर्मों को ‘संसाधनों या किसी अन्य व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए’ क्षुद्रग्रहों या आकाशीय पिंडों का खनन करने की अनुमति दी गई है.

2020 में अमेरिकी राष्ट्रपति ने एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर कर दिए. इसमें अंतरिक्ष संसाधनों के लिए संपत्ति अधिकार विकसित करने की देश की प्रतिबद्धता दोहराई गई. इस तरह चंद्रमा समझौते को खारिज कर दिया गया और अंतरराष्ट्रीय सहयोग का आग्रह किया गया.

वास्तव में उपरोक्त कानून, “मून एग्रीमेंट” के खिलाफ ही प्रतीत होते है. अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानूनों के अनुसार अंतरिक्ष और खगोलीय पिंड पर साझा विरासत और सामुदायिक सम्पदा का सिद्धांत लागु होता है. “आर्टेमिस एकॉर्ड” के तरह ही अमेरिका द्वारा अंतरिक्ष मिशन पर क़ानूनी प्रयास, निजी उद्यमों को स्वामित्व प्रदान करता है, जो मून एग्रीमेंट के ठीक विपरीत है.

B. लक्ज़मबर्ग का अंतरिक्ष कानून (Space Law of Luxembourg)

अमेरिका द्वारा स्थापित परिपाटी को आगे बढ़ते हुए लक्ज़मबर्ग द्वारा भी 2017 में अंतरिक्ष मिशन पर एक नया कानून लाया गया. इस कानून द्वारा अंतरिक्ष के संसाधनों के उपयोग पर दिशानिर्देश और शर्ते तय किए गए. साथ ही, अंतरिक्ष एजेंसी का स्थापना भी इसी के तहत किया गया. गौरतलब है कि इस देश ने अभी तक किसी भी अंतरिक्ष मिशन को स्वयं अंजाम नहीं दिया है.

लक्ज़मबर्ग के कानून के अनुसार, अंतरिक्ष संसाधनों पर स्वामित्व स्थापित किया जा सकता है. लक्ज़मबर्ग का अंतरिक्ष कानून केवल लाइसेंस प्राप्त गतिविधियों का अनुमति ही देता है.

अमेरिकी कानून के विपरीत, इस अधिनियम के तहत कंपनी के प्रमुख हितधारकों का देश में स्थित होना आवश्यक नहीं है. लेकिन कंपनी का निगमित होना या कंपनी का केंद्रीय प्रशासन कार्यालय लक्ज़मबर्ग में होना आवश्यक है.

जापान, पुर्तगाल और संयुक्त अरब अमीरात ने अंतरिक्ष खनन कार्यों के लिए लक्ज़मबर्ग के साथ सहयोग समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं.

C. यूएई का अंतरिक्ष मिशन पर रुख (Stand of UAE on Space Missions)

दिसंबर 2019 में संयुक्त अरब अमीरात (UAE) ने भी अंतरिक्ष पर स्थानीय कानून पारित किए है. अंतरिक्ष मिशन पर स्थानीय कानून लाने वाला यह तीसरा देश है. यह कानून स्थानीय नागरिकों और कंपनियों पर लागु होता है.

इसमें सीधे तौर पर अंतरिक्ष संसाधनों के दोहन का अनुमति नहीं दिया गया है. लेकिन, इसमें विनियमित अंतरिक्ष गतिविधियों की सूची में ‘अंतरिक्ष संसाधन अन्वेषण या निष्कर्षण गतिविधियां’ और ‘वैज्ञानिक, वाणिज्यिक या अन्य उद्देश्यों के लिए अंतरिक्ष संसाधनों की खोज और उपयोग के लिए गतिविधियां’ शामिल किए गए है. इस तरह यह कानून भी अंतरिक्ष सम्पदा को निजी क्षेत्रों व निजी उपयोग के लिए खोलने जैसा है.

इसमें कुछ दायित्वों का प्रावधान भी किया है. इन दायित्वों में एक के अनुसार, यदि यू.ए.ई. 1967 के संधि से अलग होता है, तो गलती के लिए अंतरिक्ष मिशन के संचालक को उत्तरदायी ठहराया जा सकता है.

D. जापान का अंतरिक्ष कानून (Space Law of Japan)

साल 2021 में जापान इस तरह का कानून बनाने वाला चौथा देश बन गया. इसे ‘अंतरिक्ष संसाधनों की खोज और विकास से संबंधित व्यावसायिक गतिविधियों को बढ़ावा देने पर अधिनियम’ नाम दिया गया है.

यह कानून भी कुछ शर्तों के साथ कंपनियों को अंतरिक्ष संसाधनों पर संपत्ति का अधिकार हासिल करने का अनुमति देता है. इसके शर्तों में सरकार द्वारा कम्पनी के अधिसूचित उद्देश्यों, समय और अनुसंधान के तरीकों को मंजूरी प्राप्त करना जरूरी है.

यह स्वामित्व के मामले में किसी खगोलीय पिंड या उसपर उपलब्ध संसाधनों के बीच अंतर नहीं करता है. लेकिन, अंतरराष्ट्रीय कानूनों के अनुपालन की आवश्यकता को स्वीकार करता है. इस तरह जापान का यह कानून भी बाह्य अंतरिक्ष पर अंतर्राष्ट्रीय कानून के विपरीत स्वामित्व के अवधारणा को मंजूरी देता हुआ प्रतीत होता है. इसके अनुच्छेद 5 में कहा गया है कि यदि परमिट के अनुसार अंतरिक्ष संसाधनों को पर स्वामित्व करने के उद्देश्य से यदि अंतरिक्ष मिशन को अंजाम दिया गया है, तो अंतरिक्ष से प्राप्त संसाधन पर स्वामित्व का दावा किया जा सकता है.

E. भारत का अंतरिक्ष कानून (Space Law of India)

फिलहाल भारत के पास बाह्य अंतरिक्ष में देश के निजी उद्यमों द्वारा की जाने वाले गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए कोई अंतरिक्ष कानून नहीं है. लेकिन अंतरिक्ष क्षेत्र को अभी निजी क्षेत्रों के लिए नहीं कोला गया है और भारत के सभी अंतरिक्ष मिशन के नेतृत्व का नोडल एजेंसी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) है.

इसरो का अब तक का सफर संतोषजनक रहा है और इस एजेंसी ने प्रतिस्पर्धी लागत पर अपने व्यावसायिक सेवाओं का विस्तार किया है.

2017 में, भारत ने राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून बनाने के लिए मसौदा अंतरिक्ष गतिविधि विधेयक तैयार किया था. लेकिन इसे लागु नहीं किया जा सका.

जून 2020 में, भारत सरकार ने इन्स्पेस (IN-SPACe) नाम से एक नया संगठन बनाया है. यह निजी उद्यम के भाँती इसरो का सहयोग करता है. इसे भारत द्वारा अंतरिक्ष मिशन को निजी क्षेत्रों के लिए खोले जाने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है. चंद्रयान-3 मिशन में ऐसे ही कई निजी निगमों का भागीदारी देखा गया है.

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