पृथ्वी पर कुल पाँच महासागर हैं, जो इस प्रकार हैं- 1. प्रशांत महासागर (The Pacific Ocean), 2. अटलांटिक महासागर (The Atlantc Ocean), 3. हिंद महासागर (The Indian Ocean), 4. आर्कटिक महासागर (The Arctic Ocean) और 5. अंटार्कटिक महासागर (The Antarctic Ocean).
पृथ्वी पर जल की प्रचुरता के कारण ही इसे ‘जलीय ग्रह’ (Water planet) और अंतरिक्ष से नीला दिखने के कारण ‘नीला ग्रह’ (Blue planet) कहा जाता है. सबसे अधिक जल महासागरों में पाया जाता है, जो कुल जल का 97.25% है. इसके बाद, हिमानियों और हिमटोपियों में 2.05% जल मौजूद है. भूमिगत जल का प्रतिशत 0.68% है, जबकि झीलों में 0.01% जल है. मृदा में नमी की मात्रा 0.005% है, और वायुमंडलीय नमी में 0.001% जल है. नदियों में जल का प्रतिशत 0.0001% है, और जैवमंडलीय जल सबसे कम, 0.00004% है.
प्रशांत महासागर (Pacific Ocean)
पृथ्वी के कुल क्षेत्रफल के लगभग एक-तिहाई भाग पर विस्तृत प्रशांत महासागर पृथ्वी का सबसे विशाल एवं गहरा महासागर है. इसका क्षेत्रफल पृथ्वी के समस्त महाद्वीपीय भाग के कुल क्षेत्रफल से भी अधिक है तथा भूमध्यरेखा पर इसका विस्तार (पश्चिम से पूर्व) 16,000 किमी. से भी अधिक है. वहीं उत्तर में बेरिंग जलसंधि (प्रशांत-आर्कटिक के मध्य) से लेकर दक्षिण में एड्रे अंतरीप (अंटार्कटिक) के मध्य इसका विस्तार करीब 15,000 किमी. है.
इसके उत्तर में रूस एवं अमेरिका की भूमियों को विभाजित करती हुई बेरिंग जलसंधि एवं आर्कटिक महासागर जबकि दक्षिण में अंटार्कटिका है. पूर्व एवं पश्चिम से क्रमशः अमेरिकी महाद्वीपीय वृहद् भूमियाँ (उत्तर अमेरिका एवं दक्षिण अमेरिका), एशिया एवं ऑस्ट्रेलिया महाद्वीपीय भूमियाँ प्रशांत महासागर को घेरे हुए हैं.
प्रशांत महासागर की धाराएं (Streams of Pacific Ocean)
प्रशान्त महासागर में भी धाराओं का एक वृहद् चक्रीय तंत्र पाया जाता है, जो कि उत्तरी गोलार्द्ध में दक्षिणावर्त (घड़ी की सुई की दिशा में) व दक्षिणी गोलार्द्ध में वामावर्त (घड़ी की सुई की विपरीत दिशा में) है.
प्रशान्त महासागर के विषुवतीय भाग में दो विषुवतीय धाराएँ मध्य अमेरिका के तट से महासागर के आर-पार बहती हैं. इन दोनों-उत्तरी विषुवतीय धारा तथा दक्षिणी विषुवतीय धारा के बीच पश्चिम से पूर्व की ओर एक विरूद्ध विषुवतीय धारा बहती है. उत्तरी विषुवतीय धारा उत्तर की ओर मुड़ती है और क्यूरो-सिवो धारा के नाम से फिलीपीन द्वीप समूह, ताईवान तथा जापान के तटों के साथ-साथ बहती है.
जापान के दक्षिणी-पूर्वी तट पर यह धारा पछुआ पवनों की चपेट में आकर महासागर के आर-पार पश्चिम से पूर्व दिशा में उत्तरी प्रशांत धारा के नाम से बहती है. उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी तट पर पहुँचकर यह धारा दो शाखाओं में बंट जाती है.
इसकी उत्तरी शाखा ब्रिटिश कोलंबिया तथा अलास्का के तटों के साथ वामवर्ती दिशा में बहती है तथा अलास्का धारा के नाम से जानी जाती है. इस धारा का गर्म जल शीत ऋतु में अलास्का तट को बर्फ मुक्त रखता है. उत्तरी प्रशांत महासागरीय धारा की दूसरी शाखा कैलीफोर्निया तट के साथ दक्षिण की ओर बहती है. यह ठंडी जलधारा है और इसे कैलीफोर्निया धारा कहते हैं. अंत में यह धारा उत्तरी विषुवतीय धारा में मिलकर अपना चक्र पूरा करती है.
प्रशांत महासागर के उत्तरी भाग में दो ठंडी जल धाराएँ भी बहती है. ये हैं- ओया शिओ धारा और आखोटस्क धारा. ठंडी ओया-शिओ धारा कमचटका प्रायद्वीप के तट के साथ बहती है. दूसरी ठंडी धारा ओखोटस्क धारा है जो सखालीन के पास बहती हुई होकेडो द्वीप के निकट ओया-शिओ धारा में मिल जाती है. ओया-शिओ धारा अंत में क्यूरो-सिवो धारा में मिल जाती है और उत्तरी प्रशांत महासागरीय धारा के गर्म जल के नीचे डूब जाती है.
दक्षिणी प्रशांत महासागर में दक्षिणी विषुवतीय धारा पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है और पूर्वी आस्ट्रेलियाई धारा के नाम से दक्षिण की ओर मुड़ जाती हैं. आगे चलकर यह तस्मानिया के निकट ठंडी दक्षिणी प्रशांत महासागरीय धारा में मिल जाती है जो पश्चिम से पूर्व की ओर बहती है.
दक्षिण अमेरिका के दक्षिण-पश्चिम तट पर पहुँचकर यह उत्तर की ओर मुड़ जाती है. इसे पेरू धारा कहते हैं. यह एक ठंडी जलधारा है. अन्त में यह दक्षिणी विषुवतीय धारा में मिलकर एक चक्र पूरा करती है. पेरू धारा का ठंडा जल ही चिली एवं पेरू के तटों को वर्षा विहीन बनाने के लिए कुछ हद तक उत्तरदायी है.
महाद्वीपीय मग्नतट (continental shelf)
प्रशांत महासागर को सामान्यतः कम विकसित निमग्नतटों (5.7 प्रतिशत) वाला महासागर माना जाता है. अमेरिकी तटों से संबंधित मग्नतट बेहद कम चौड़े (औसतन 80 किमी.) हैं. यहाँ प्रशांत एवं अमेरिकी प्लेटों के टक्कर से गर्तों का निर्माण हुआ है, जबकि इसके विपरीत एशिया एवं ऑस्ट्रेलिया महाद्वीपों के तटों के साथ निमग्न तट अधिक विस्तार वाले हैं, जहाँ द्वीपों की विशाल शृंखला से लेकर उथले सीमांत सागर उपस्थित हैं.
यह उत्तर से दक्षिण की ओर बेरिंग सागर, ओख़ोत्स्क सागर, जापान द्वीप समूह, पूर्वी चीन सागर, ताइवान, दक्षिणी चीन सागर, फिलीपींस, पापुआ न्यू गिनी, ऑस्ट्रेलियाई पूर्वी तट एवं न्यूज़ीलैंड तक विस्तृत है. इस समस्त क्षेत्र में मग्नतट की चौड़ाई 160 किमी. से लेकर 1,600 किमी. तक है.
कटकनुमा संरचनाएँ (Ridge like structures)
मध्य अटलांटिक कटक की तरह प्रशांत महासागर को मध्य से विभाजित करने वाला कोई मध्य-महाद्वीपीय कटक नहीं पाया जाता बल्कि इसमें कहीं-कहीं कटकीय संरचनाएँ अवस्थित हैं, जिनमें प्रमुख संरचनाएँ निम्नवत हैं:
- पूर्व प्रशांत महासागरीय कटक या अल्बेट्रोस पठार: यह मध्य अमेरिका के पास अधिक विस्तृत संरचना है. उत्तरी-पूर्वी भाग ‘कोकोस कटक’ एवं दक्षिणी-पूर्वी भाग ‘फैलिक्स जुआन फर्नाडीज कटक’ कहलाता है जो कि चिली तट के समानांतर अवस्थित है.
- हवाई कटक: यह ज्वालामुखीकृत कटक है, जिस पर प्रसिद्ध हवाई एवं होनोलुलू द्वीप अवस्थित हैं, यह ‘हवाइयन उभार’ के नाम से भी जाना जाता है.
- चाथम उभार: न्यूज़ीलैंड के पश्चिम की ओर अवस्थित एवं दक्षिण में न्यूज़ीलैंड पठार के रूप में नामित.
- तस्मानिया कटक, तस्मानिया के दक्षिण में और मेकवेरी बेल्लेनी कटक, सुदूर दक्षिण में अवस्थित है.
गर्त (Trenches)
प्रशांत महासागर के पूर्वी एवं पश्चिमी दोनों भागों के सीमांत विनाशात्मक प्लेट सीमा से संबंधित होने के कारण यहाँ पर कई गर्तें पाई जाती हैं. स्मरणीय है कि प्रशांत महासागर के पश्चिमी भागों में इन गर्तों की अधिकता मिलती है.
मेरियाना गर्त (विश्व की सबसे गहरी गर्त), करमाडेक गर्त, एल्यूशियन गर्त, क्यूराइल गर्त, जापान गर्त, फिलीपाइन गर्त, अटाकामा गर्त, रिक्यू गर्त, नीरो गर्त, ब्रुक गर्त, बेली गर्त, प्लानेट गर्त आदि प्रशांत महासागर की प्रमुख गर्तें हैं.
द्वीप (Islands)
प्रशांत महासागर में सर्वाधिक संख्या में लगभग 20,000 द्वीप अवस्थित हैं. अधिकतर द्वीप क्षेत्रफल की दृष्टि से छोटे-छोटे हैं. जापान, फिलीपींस, न्यूगिनी, न्यूज़ीलैंड जैसे कुछ बड़े द्वीप ‘महाद्वीपीय द्वीप’ (Continental islands) कहलाते हैं. प्रसिद्ध ज्वालामुखी द्वीप, हवाई द्वीप उत्तरी प्रशांत के अंतर्गत है. पूर्वी प्रशांत के अंतर्गत एल्यूशियन, ब्रिटिश कोलंबिया व चिली प्रमुख द्वीप हैं.
प्रशांत महासागर के पश्चिमी हिस्से में सर्वाधिक द्वीप पाये जाते हैं, जिनमें से अधिकतर प्लेटों की टक्कर से हुए वलन क्रिया एवं ज्वालामुखी से निर्मित हैं. इनमें क्यूराइल, जापान, फिलीपाइन, न्यूज़ीलैंड आदि समूहों में द्वीप पाये जाते हैं.
बेसिन (Basins)
प्रशांत महासागर के बेसिनों का वर्णन इस प्रकार है:
एल्यूशियन बेसिन: यह बेसिन एल्यूशियन खंदक (Aleutian Trench) और एल्यूशियन द्वीपों के दक्षिण में स्थित है. यह एक गहरा बेसिन है जो प्रशांत प्लेट के उत्तरी किनारे पर स्थित है. इसकी विशेषता इसकी जटिल भूवैज्ञानिक संरचना है, जो प्लेट विवर्तनिकी (plate tectonics) के कारण बनती है.
पूर्वी व पश्चिमी कैरोलिन बेसिन: ये बेसिन कैरोलिन द्वीप समूह के आसपास स्थित हैं. पूर्वी कैरोलिन बेसिन प्रशांत महासागर के पश्चिमी हिस्से में स्थित है और यह अपेक्षाकृत उथला है, जबकि पश्चिमी कैरोलिन बेसिन फिलीपींस के पास स्थित है और गहरा है. ये बेसिन अपनी ज्वालामुखीय गतिविधियों और प्रवाल भित्तियों (coral reefs) के लिए जाने जाते हैं.
फिजी बेसिन: यह बेसिन फिजी, टोंगा और समोआ द्वीप समूह के बीच स्थित है. यह एक भूवैज्ञानिक रूप से सक्रिय क्षेत्र है, जहाँ कई रूपांतरित फॉल्ट (transform faults) और मध्य-महासागरीय रिज (mid-ocean ridges) पाए जाते हैं. यह बेसिन वलय-आकार (ring-shaped) की संरचनाओं के लिए भी प्रसिद्ध है, जो ज्वालामुखीय गतिविधि का परिणाम हैं.
जेफरीन बेसिन (दक्षिणी ऑस्ट्रेलियाई बेसिन): यह बेसिन ऑस्ट्रेलिया के दक्षिण में स्थित है और इसे अक्सर दक्षिणी ऑस्ट्रेलियाई बेसिन के नाम से जाना जाता है. यह एक बड़ा और गहरा बेसिन है जो अंटार्कटिका के निकट है. यह बेसिन अपने ठंडे पानी और कम जैविक गतिविधि के लिए जाना जाता है.
दक्षिणी-पूर्वी प्रशांत बेसिन: यह बेसिन पेरू और चिली के तट के पश्चिम में स्थित है. यह पेरू-चिली खंदक (Peru-Chile Trench) के पास है, जो नाज़का प्लेट और दक्षिणी अमेरिकी प्लेट के बीच के अभिसरण क्षेत्र (convergent zone) में बनता है. इस क्षेत्र में अक्सर भूकंप और सुनामी आते हैं.
प्रशांत-अंटार्कटिक बेसिन: यह बेसिन प्रशांत महासागर के दक्षिणी भाग में स्थित है, जो अंटार्कटिका के पास है. यह प्रशांत-अंटार्कटिक रिज (Pacific-Antarctic Ridge) से घिरा हुआ है, जो एक मध्य-महासागरीय रिज है. यह दुनिया के सबसे ठंडे और कम खोजे गए समुद्री क्षेत्रों में से एक है. इसकी गहराई और ठंडे तापमान के कारण यहाँ की समुद्री जैव-विविधता कम है.
प्रशांत के सीमांत सागर एवं खाड़ियाँ (marginal seas and gulfs of the pacific Ocean)
अमेरिकी महाद्वीपों के अनुदैर्ध्य तटों के कारण प्रशांत महासागर के पूर्वी भाग में सीमांत सागर एवं खाड़ियों का सामान्यतया अभाव है. इस क्षेत्र में केवल कैलिफोर्निया की खाड़ी तथा तटों एवं द्वीपों के मध्य जलमग्न भाग ही हैं.
प्रशांत महासागर के अधिकांश सीमांत सागर एवं खाड़ियाँ इसके पश्चिमी हिस्से अर्थात् एशिया-ऑस्ट्रेलिया की तरफ हैं. इनमें उत्तर से दक्षिण बेरिंग सागर, ओख़ोत्स्क सागर, जापान सागर, पूर्वी चीन सागर, दक्षिणी चीन सागर, सेलीबीज सागर, कारपेन्ट्रिया की खाड़ी (ऑस्ट्रेलिया के पास), अराफूरा सागर, कोरल सागर, तस्मान सागर (ऑस्ट्रेलिया-न्यूज़ीलैंड के मध्य, तस्मानिया के नज़दीक) आदि प्रमुख हैं.
अटलांटिक या अंध महासागर (Atlantic Ocean)
पूर्व में यूरोप एवं अफ्रीका महाद्वीपों जबकि पश्चिम में उत्तर अमेरिका एवं दक्षिण अमेरिका महाद्वीपों के मध्य में अंग्रेज़ी वर्णमाला के ‘S’ अक्षर के आकार में इस महासागर का विस्तार है. इसके उत्तर में ग्रीनलैंड एवं आर्कटिक महासागर जबकि दक्षिण में अंटार्कटिक महासागर है. यह महासागर पृथ्वी का 1/6 वाँ भाग समाहित किये हुए है एवं विश्व के सबसे बड़े महासागर प्रशांत महासागर का आधा है.
धाराएं (Currents)
इसके विषुवत रेखा के उत्तर व दक्षिण दिशा में, पश्चिम की ओर प्रवाहित होने वाली दो धाराएँ हैं- उत्तर एवं दक्षिण विषुवतीय धारा. इन दोनों विषुवतीय धाराओं के बीच पश्चिम सेपूर्व की ओर विरूद्ध विषुवतीय धारा बहती है. यह विरूद्ध धारा उत्तरी तथा दक्षिणी विषुवतीय धाराओं द्वारा महासागर के पूर्व में हटाए गये जल की आपूर्ति करती है.
ब्राजील के साओ रौक अन्तरीप के निकट दक्षिणी विषुवतीय धारा दो शाखाओं में बँट जाती है. इसकी उत्तरी शाखा उत्तरी विषुवतीय धारा में मिल जाती है. इस सम्मिलित धारा का कुछ भाग कैरेबियन सागर तथा मैक्सिको की खाड़ी में प्रवेश करता है तथा शेष भाग वेस्ट इंडीज द्वीप समूह के पूर्वी किनारे पर अन्टाईल्स धारा के रूप में बहती हुई गुजरती है. जो शाखा मेक्सिको की खाड़ी में प्रवेश करती है, वह फ्लोरिडा जलडमरूमध्य से निकलकर अन्टाईल्स की धारा में मिल जाती है. यह सम्मिलित धारा संयुक्त राज्य अमेरिका के दक्षिणी पूर्वी तट के सहारे बहने लगती है. इसे हटेरस अन्तरीप तथा फ्लोरिडा धारा कहते हैं.
हटेरस अन्तरीप से न्यू फाउण्डलैंड के समीप स्थित ग्रेंड बैंक तक इस धारा को गल्फ स्ट्रीम कहते हैं. ग्रेंड बैंक से गल्फ स्ट्रीम पछुआ पवनों और पृथ्वी की घूर्णन गति के सम्मिलित प्रभाव के कारण पूर्व की ओर मुड़ जाती है. यह अटलांटिक महासागर को पूर्व की ओर बहते हुए पार करती है. इसे उत्तरी अटलांटिक अपवाह कहते हैं.
उत्तरी अटलांटिक अपवाह महासागर के पूर्वी भाग में पहुँचकर दो भागों में बंट जाता है. इसकी उत्तरी शाखा उत्तरी अटलांटिक अपवाह के रूप में बहती रहती है. यह ब्रिटिश द्वीप समूह पहुँचकर वहाँ से नार्वे के तट के साथ बहते हुए यह नार्वे धारा के रूप में जानी जाती है. वहाँ से यह आर्कटिक महासागर में प्रवेश कर जाती है. दक्षिणी शाखा स्पेन तथा एजोर्स द्वीप के मध्य से दक्षिण की ओर बहती है. यहाँ इसे केनारी धारा कहते हैं. यह एक ठंडी जलधारा है. केनारी धारा अंत में उत्तरी विषुवतीय धारा में मिल जाती है.
उत्तरी अटलांटिक महासागर में धाराओं के चक्र के बीच में सारगेसो समुद्र का शांत क्षेत्र है जो अत्याधिक समुद्री शैवालों से भरा हुआ है. ये समुद्री शैवाल जो भूरे रंग के हैं, सरगैसम के नाम से जाने जाते हैं.
उत्तरी अटलांटिक महासागर में धाराओं के दक्षिणावर्ती परिसंचरण के अतिरिक्त दो ठंडी धारायें भी इस महासागर में बहती हैं. ये हैं – पूर्वी ग्रीनलैंड धारा तथा लेब्राडोर धारा. ये धाराएँ आर्कटिक महासागर से अटलांटिक महासागर में बहती है. लेब्राडोर धारा कनाडा के पूर्वी तट पर दक्षिण की ओर बहती हुई गर्म गल्फ स्ट्रीम धारा से मिलती है.
भिन्न तापमान वाली इन दो धाराओं (एक ठंडी तथा दूसरी गर्म) के संगम से न्यू फाउंडलैण्ड के चारो ओर कोहरे का निर्माण होता है और इसे संसार का सबसे अधिक महत्वपूर्ण मत्स्य ग्रहण क्षेत्र बनाता है. पूर्वी ग्रीनलैंड धारा आइसलैंड और ग्रीनलैंड के बीच बहती है तथा संगम स्थल पर उत्तरी अटलांटिक अपवाह के तापमान को कम कर देती है.
हम पहले ही पढ़ चुके हैं कि दक्षिणी विषुवतीय धारा ब्राजील के साओ रोक अन्तरीप के निकट दो शाखाओं में बंट जाती है. इसकी उत्तरी शाखा उत्तरी विषुवतीय धारा से मिल जाती है और दक्षिणी शाखा दक्षिण की ओर मुड़कर दक्षिणी अमेरिका के पूर्वी तट के साथ-साथ बहती है. इसे ब्राजील धारा कहते हैं.
लगभग 350 दक्षिणी अक्षांश पर ब्राजील धारा को पछुआ पवनें तथा पृथ्वी की घूर्णन गति पूर्व की ओर मोड़ देती है, जहाँ यह पश्चिमी पवन अपवाह में मिल जाती है. आशा अन्तरीप के निकट दक्षिण अटलांटिक धारा उत्तर की ओर मुड़ जाती है. यह एक ठंडी जलधारा है और इसे बैंगुएला धारा कहते हैं.
अन्त में यह दक्षिणी विषुवतीय धारा से मिलकर धाराओं के चक्र को पूरा करती है. एक और ठंडी जल धारा दक्षिणी अमरीका के दक्षिण-पूर्वी तट के सहारे दक्षिण से उत्तर की ओर बहती है, जिसे फाकलैंड धारा कहते हैं.
महाद्वीपीय मगनतट
अटलांटिक महासागर सामान्यतः विस्तृत मग्नतटों से युक्त है. हालाँकि, इसमें पर्याप्त विविधता भी है. यह अटलांटिक महासागर के कुल क्षेत्र के 13.3 प्रतिशत भाग पर विस्तृत है. उत्तरी अटलांटिक महासागर के दोनों ओर विशेषतः उत्तर-पश्चिमी यूरोप एवं उत्तर-पूर्वी अमेरिका के तटों के पास मग्नतट जहाँ 240 से 400 किमी. तक चौड़े हैं, वहीं दक्षिणी अटलांटिक में विशेषतः अफ्रीकी तटों के पास इनकी चौड़ाई 80 से 160 किमी. ही है.
मध्य अटलांटिक कटक (Mid-Atlantic Ridge)
मध्य अटलांटिक कटक को अटलांटिक महासागर की सबसे विशिष्ट संरचना माना जाता है. यह अटलांटिक महासागर के लगभग ठीक मध्य में उत्तर में आइसलैंड से शुरू होकर (‘S’ की आकृति में) दक्षिण में बोवेट द्वीप के मध्य विस्तृत है. इसकी कुल लंबाई लगभग 14,500 किमी. है एवं इसकी गहराई सागर तल से 4 किमी. से नीचे नहीं जाती है. हालाँकि कहीं-कहीं अधिक ऊँचा है एवं द्वीपों के रूप में भी नजर आता संरचनाएँ है.
अटलांटिक कटक को डॉल्फिन उभार (उत्तरी भाग) एवं चैलेंजर उभार (दक्षिणी भाग) में विभाजित करता है. लगभग 55° उत्तरी अक्षांश के पास यह कटक सर्वाधिक चौड़ा है. यहाँ इसे ‘टेलीग्राफिक पठार’ का नाम दिया गया है. दक्षिण अटलांटिक महासागर में (40° द. अक्षांश के पास) कटक का एक हिस्सा पश्चिम में अफ्रीका की ओर निकला हुआ है, इसे ‘वालविस कटक’ का नाम दिया गया है.
गर्त (Trenches)
अटलांटिक महासागर के रचनात्मक प्लेट सीमा पर स्थित होने के कारण इसमें अधिक संख्या में समुद्री गर्ते नहीं पाई जाती हैं. यहाँ पर मुख्यतः दो गर्तें-साउथ सैंडविच तथा प्यू्टो रिको (अटलांटिक महासागर का सबसे गहरा गर्त) अवस्थित हैं.
द्वीप
अटलांटिक महासागर में मुख्यतः एजोर्स का पाडको द्वीप, केप वर्दे द्वीप, भूमध्य रेखा के नज़दीक सेंट पॉल द्वीप आदि मध्य-अटलांटिक कटक की उभरी हुई चोटियाँ हैं. इनके अलावा, ब्रिटिश द्वीप समूह, पश्चिमी द्वीप समूह, न्यूफाउंडलैंड आदि अटलांटिक के उत्तरी हिस्से के महत्त्वपूर्ण तटीय द्वीप हैं.
बेसिन
अटलांटिक महासागर के बेसिन इस प्रकार हैं:
लेब्रोडोर बेसिन: उत्तर में ग्रीनलैंड के तट एवं दक्षिण में न्यूफाउंडलैंड उभार के मध्य अवस्थित.
आइबेरियन बेसिन या उत्तर-पूर्वी अटलांटिक महासागरीय बेसिन: अटलांटिक महासागर के उत्तर-पश्चिमी भाग में एजोर्स द्वीप के उत्तर में 38° से 50° उत्तरी अक्षांशों के मध्य अवस्थित है. इसको ‘आइबेरियन बेसिन’ भी कहा जाता है.
उत्तर-पश्चिमी अटलांटिक महासागरीय बेसिन: उत्तरी अटलांटिक का सबसे बड़ा बेसिन.
- केप वर्दे बेसिन: अफ्रीका के लाइबेरिया तट एवं मध्य अटलांटिक कटक के मध्य अवस्थित.
- गिनी बेसिन: भूमध्य रेखा के नज़दीकी. अफ्रीका के गिनी के तट के साथ अवस्थित. उत्तरी भाग सियरा-लियोन बेसिन भी कहलाता है.
- ब्राज़ील बेसिन: लगभग भूमध्य रेखा से शुरू होकर 30° दक्षिणी अक्षांश तक इसका विस्तार ब्राज़ीलियन तट के सहारे है.
- केप बेसिन: अफ्रीका के पश्चिम में गिनी बेसिन के दक्षिण में अवस्थित.
- अर्जेंटीना बेसिन: दक्षिण अमेरिकी देश अर्जेंटीना के तट एवं मध्य अटलांटिक कटक के मध्य अवस्थित.
- अगुलहास बेसिन: द. अफ्रीका के केप ऑफ गुड होप (आशा अंतरीप) के दक्षिण में अवस्थित.
अटलांटिक के सीमांत सागर एवं खाड़ियाँ
- उत्तरी अटलांटिक में मग्नतटों के विस्तार एवं यूरोप के तटीय भागों के डूब जाने से सागर एवं खाड़ियाँ दक्षिणी अटलांटिक की तुलना में अधिकता में पाए जाते हैं.
- मध्य अमेरिकी क्षेत्र में अवस्थित ‘कैरेबियन सागर’, अटलांटिक महासागर का सबसे बड़ा सीमांत सागर है एवं दूसरा स्थान भूमध्य सागर का है. काला सागर को भूमध्य सागर का सीमांत सागर माना जाता है.
अटलांटिक के प्रमुख सीमांत सागर एवं खाड़ियाँ
ग्रीनलैंड व यूरोप से जुड़े | उत्तर एवं मध्य अमेरिका से जुड़े |
ग्रीनलैंड सागर | बैफिन की खाड़ी |
नॉर्वे सागर | लैब्राडोर सागर |
भूमध्य सागर | कैरेबियन सागर |
इंग्लिश चैनल | फंडी की खाड़ी |
- ध्यातव्य है कि अफ्रीकी महाद्वीप के तट पर दक्षिणी अटलांटिक महासागर के अंतर्गत गिनी की खाड़ी स्थित है.
ग्रेंड बैंक (Grand Bank)
ग्रेंड बैंक, जिसे ‘न्यूफ़ाउंडलैंड का ग्रेंड बैंक’ भी कहा जाता है, कनाडा के न्यूफ़ाउंडलैंड द्वीप के दक्षिण-पूर्व में स्थित एक बड़ा, उथला पानी वाला पठार है. यह दुनिया के सबसे प्रसिद्ध और समृद्ध मछली पकड़ने वाले विशाल समुद्री मैदानों में से एक है.
यह अटलांटिक महासागर में स्थित है और उत्तरी अमेरिकी महाद्वीपीय मग्नतट (continental shelf) का हिस्सा है. इसकी गहराई आमतौर पर 100 मीटर से कम होती है, जिससे सूर्य का प्रकाश तल तक पहुँच पाता है. इसकी समृद्धि का मुख्य कारण दो प्रमुख महासागरीय जलधाराओं का यहाँ मिलना है:
- गर्म गल्फ स्ट्रीम (Gulf Stream): यह गर्म पानी की धारा है जो दक्षिण से उत्तर की ओर बहती है.
- ठंडी लैब्राडोर धारा (Labrador Current): यह ठंडी धारा है जो उत्तर से दक्षिण की ओर बहती है.
इन दोनों धाराओं के मिलने से पानी में हलचल होती है, जिससे पोषक तत्व नीचे से ऊपर आ जाते हैं. यह स्थिति शैवाल और प्लवक (Plankton) के विकास के लिए आदर्श होती है, जो मछली और अन्य समुद्री जीवों के लिए भोजन का मुख्य स्रोत है.
आर्थिक महत्व
ग्रेंड बैंक ऐतिहासिक रूप से कॉड (Cod), हेरिंग (Herring) और हेक (Hake) जैसी मछलियों के लिए एक प्रमुख मत्स्यन क्षेत्र रहा है. सदियों से, यूरोप और उत्तरी अमेरिका के मछुआरे यहाँ मछली पकड़ने आते रहे हैं. हालाँकि, अत्यधिक मत्स्यन के कारण यहाँ की मछली आबादी में गिरावट आई है, जिसके बाद कई देशों ने इस क्षेत्र में मत्स्यन पर सख्त नियम लागू किए हैं.
हिंद महासागर (Indian Ocean)
हिंद महासागर, प्रशांत एवं अटलांटिक की तुलना में बेहद छोटा एवं कम औसत गहराई (लगभग 4,000 मी.) वाला है. इस दृष्टि से इसे ‘अर्द्ध-महासागर’ भी कहा जाता है. अन्य कई मानकों के आधार पर भी हिंद महासागर को प्रशांत एवं अटलांटिक से अलग माना जाता है, जैसे- इसकी उत्तरी सीमा भू-आबद्ध है, नितल पर उच्चावच की असमानताएँ भी बेहद कम हैं, गर्तों का अभाव है, महाद्वीपीय मग्नतटों की कमी है, सीमांत सागरों की संख्या भी कम है, आदि.
भारतीय उपमहाद्वीप की भौगोलिक अवस्थिति के चलते हिंद महासागर त्रिभुजाकार की विशिष्ट आकृति में दिखाई देता है. भारत की लंबी तट रेखा हिंद महासागर से जुड़ी हुई है. भारत इसके शीर्ष पर अवस्थित है, जिसके कारण इस महासागर का नामकरण ‘हिंद महासागर’ किया गया है.
धारा
हिन्द महासागर की धाराओं के परिसंचरण का प्रतिरूप अटलांटिक महासागर एवं प्रशांत महासागर की धाराओं से भिन्न है. क्योंकि हिन्द महासागर उत्तर में पूर्वत: स्थल से घिरा है. इसके दक्षिणी भाग में धाराओं के परिसंचरण का सामान्य प्रतिरूप वामवर्ती है जैसा कि अन्य महासागरों में है. लेकिन इसके उत्तरी भाग में धाराएँ शीतु ऋतु एवं ग्रीष्म ऋतु में स्पष्ट रूप से अपनी दिशाएँ पूर्णतया बदल लेती हैं.
ये धाराएँ पूर्णत: बदलते हुए मानसूनी मौसम के प्रभाव में हैं. इसलिए शीत ऋतु एवं ग्रीष्म ऋतु में धाराएँ उलट जाती है अर्थात उत्तरी-पूर्वी मानसून के दौरान इनकी दिशा दक्षिण-पश्चिम की ओर होती है, दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान उत्तर-पूर्व की ओर तथा संक्रमण काल में अस्थिर होती है.
शीत ऋतु में श्रीलंका बंगाल की खाड़ी की धाराओं को अरब सागर से धाराओं को अलग कर देता है. श्रीलंका के ठीक दक्षिण में उत्तरी विषुवतीय धारा और दक्षिणी विषुवतीय धारा पश्चिम की ओर बहती है. उत्तरी विषुवतीय धारा और दक्षिणी विषुवतीय धारा के मध्य एक विरूद्ध विषुवतीय धारा पश्चिम से पूर्व की ओर बहती है. इस समय इसके उत्तरी भाग में बंगाल की खाड़ी और अरब सागर के जल को उत्तरी पूर्वीमानसून प्रभावित करता है तथा उन्हें वामवर्ती दिशा में प्रवाह के लिए प्रेरित करती है. इस जलधारा को उत्तरी-पूर्वी मानसूनी अपवाह कहते है. ग्रीष्म ऋतु में वही उत्तरी भाग दक्षिणी-पश्चिमी मानसून के प्रभाव में आ जाता है.
बंगाल की खाड़ी एवं अरब सागर का जल पूर्व की ओर बहने लगता है. इस समय जल का परिसंचरण दक्षिणवर्ती या घड़ी की सुइयों की अनुकूल दिशा में होता है. इस धारा को दक्षिण-पश्चिम मानसून अपवाह कहते हैं. सामान्यत: ग्रीष्म ऋतु की धाराएँ शीत ऋतु की धाराओं से अधिक नियमित हैं.
हिन्द महासागर के दक्षिणी भाग में विषुवतीय धारा पूर्व से पश्चिम की ओर प्रवाहित होती है. अफ्रीका के मोजेंबिक तट के निकट यह धारा दक्षिण की ओर मुड़ जाती है. इस धारा का एक भाग अफ्रीका की मुख्य भूमि और मेडागास्कर द्वीप के मध्य बहता है. इसे गर्म मोजांबिक धारा कहते हैं. दक्षिण की ओर बढ़ने पर यह दक्षिणी विषुवतीय धारा की उस शाखा से मिल जाती है जो मेडागास्कर के तट के साथ बहती है. इस संगम के बाद इसे अगुल्हास धारा कहते हैं. इसके बाद यह पूर्व की ओर मुड़ जाती है और पश्चिमी पवन अपवाह में मिल जाती है.
पश्चिमी पवन अपवाह उच्च अक्षांशों में महासागर के आर-पार पश्चिम से पूर्व दिशा में बहता हुआ आस्ट्रेलिया के दक्षिणी तट तक पहुँचता है. इस धारा की एक शाखा उत्तर की ओर मुड़कर आस्ट्रेलिया के पश्चिम तट के साथ-साथ बहने लगती है. इसे पश्चिमी आस्ट्रेलियाई धारा कहते हैं. यह ठंडी जलधारा हैं. अंत में पश्चिमी आस्ट्रेलियाई धारा दक्षिणी विषुवतीय धारा से मिलकर चक्र पूरा करती है.
महाद्वीपीय निमग्न तट
हिंद महासागर में महाद्वीपीय निमग्न तटों का विस्तार बेहद कम है. अरब सागर एवं बंगाल की खाड़ी के अंतर्गत यह सर्वाधिक चौड़ाई में, अफ्रीकी तट विशेषकर मेडागास्कर के पास यह औसतन चौड़ा जबकि पूर्व में जावा, सुमात्रा एवं ऑस्ट्रेलियाई मग्नतट सबसे कम चौड़ाई के साथ अवस्थित है (औसत 160 किमी.). दक्षिणतम भाग अंटार्कटिक महाद्वीप के अंतर्गत मग्नतट बेहद सँकरा है.
कटक
हिंद महासागर का मुख्य कटक भारत की मुख्य भूमि के दक्षिणतम सिरे से शुरू होकर दक्षिण में अंटार्कटिक महाद्वीप तक जाता है. यह हिंद महासागर को पूर्वी एवं पश्चिमी विशाल बेसिनों में विभाजित करता है. इस मुख्य कटक से कई उपशाखाएँ पूर्वी ओर एवं पश्चिमी ओर अनियमित रूप से निकलती हैं, जिनको मिलाकर कटक को निम्नानुसार नाम दिये गए हैं-
- आरंभ में यह कटक ‘लक्षद्वीप-चागोस कटक’ कहलाता है. मालदीव व लक्षद्वीप इसी पर स्थित हैं.
- 30° दक्षिणी अक्षांश के आस-पास यह ‘चागोस सेंट पॉल कटक’ अथवा मध्य हिंद महासागरीय उभार के रूप में नामित है. इसी को आगे बढ़ने पर ‘एम्सटर्डम सेंटपॉल पठार’ कहते हैं.
- दक्षिण में आगे चलकर यह दो शाखाओं में विभक्त हो जाता है.
- पश्चिमी शाखा ‘करगुएलेन-गॉसबर्ग कटक’ जबकि पूर्वी शाखा ‘इण्डियन-अंटार्कटिक कटक’ कहलाती है, जो कि अंटार्कटिका के मग्नतट में मिल जाती है.
- कुछ अन्य पूरक एवं स्वतंत्र कटक भी हिंद महासागर में अवस्थित हैं, जैसे- बंगाल की खाड़ी में अंडमान-निकोबार कटक, 90° पूर्वी कटक (बंगाल की खाड़ी के अंतर्गत ही), सोकोत्रा-चागोस कटक, कार्ल्सबर्ग कटक दक्षिणी मेडागास्कर कटक, प्रिंस एडवर्ड क्रोजेट कटक आदि.
नोट: हिंद महासागर में मुख्यतः गर्तों का अभाव है. जावा द्वीप (इंडोनेशिया) के दक्षिण में ही इसके समानांतर रूप में ‘सुण्डा गर्त’ (जावा गर्त) अवस्थित है, जो कि 7,258 मीटर गहरा है. इसके अतिरिक्त ‘डायमेंटिना गर्त’ भी यहीं अवस्थित है.
गर्त
हिंद महासागर में मुख्य रूप से कुछ प्रमुख गर्त (महासागरीय खाइयाँ) हैं, जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण सुंडा गर्त (Sunda Trench) है, जिसे पहले जावा गर्त (Java Trench) के नाम से जाना जाता था. यह हिंद महासागर का सबसे गहरा बिंदु है.
सुंडा गर्त : यह गर्त इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप के पास, हिंद महासागर के पूर्वी हिस्से में स्थित है.इसकी अधिकतम गहराई लगभग 7,725 मीटर है. इसका निर्माण इंडो-ऑस्ट्रेलियन प्लेट के सुंडा प्लेट (यूरेशियन प्लेट का एक हिस्सा) के नीचे जाने (subduction) के कारण हुआ है.यह क्षेत्र अत्यधिक भूकंपीय और ज्वालामुखी गतिविधियों वाला है, जिसका कारण प्लेटों का अभिसरण (convergence) है. 2004 का हिंद महासागर का सुनामी इसी गर्त के पास आए एक बड़े भूकंप का परिणाम था.
अन्य गर्त: सुंडा गर्त के अलावा, हिंद महासागर में अन्य छोटे और कम गहरे गर्त भी पाए जाते हैं, जैसे कि ओब गर्त (Ob Trench) और डायमांटीना गर्त (Diamantina Trench). ये गर्त भी भूवैज्ञानिक रूप से महत्वपूर्ण हैं. लेकिन सुंडा गर्त जितनी गहराई नहीं होने के कारण प्रमुखता नहीं पाते.
द्वीप
- हिंद महासागर में विभिन्न तरह के निर्मित या उभरे हुए छोटे-बड़े द्वीप अवस्थित हैं.
- ये द्वीप मेडागास्कर एवं श्रीलंका महाद्वीपों के ही विस्तृत भाग हैं एवं इन्हें ‘महाद्वीपीय द्वीप‘ भी कहा जाता है. इसके अलावा सुमात्रा, जंजीबार, कोमोरोस को भी इसी श्रेणी में रखा जाता है.
- अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह म्यांमार की अराकनयोमा पर्वत श्रेणी के जलमग्न भाग के उभरे हुए हिस्से हैं.
- चागोस, डियागो गार्सिया, न्यू एम्सटर्डम, सेंट पॉल, करगुलन एवं सेशेल्स द्वीप मध्य-महासागरीय कटक के उभरे हुए हिस्से हैं.
- लक्षद्वीप व मालदीव को प्रवाल द्वीप की श्रेणी में वर्गीकृत किया जाता है.
- मॉरीशस व रीयूनियन द्वीप ज्वालामुखी शंकु हैं.
बेसिन
यहां हिंद महासागर के विभिन्न बेसिनों का संक्षिप्त वर्णन दिया गया है:
अंडमान बेसिन
यह बेसिन बंगाल की खाड़ी के पूर्वी भाग में, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के पश्चिम में स्थित है. यह एक गहरा बेसिन है जो अंडमान द्वीप समूह के निर्माण से जुड़ा हुआ है, जो म्यांमार की अराकनयोमा पर्वतमाला का ही हिस्सा है.
अरब बेसिन
यह बेसिन अफ्रीका के तट और भारत के तट के बीच स्थित है. इसे कार्ल्सबर्ग कटक (Carlsberg Ridge) दो मुख्य भागों में विभाजित करता है. यह एक विशाल और गहरा बेसिन है जो अपने सामरिक महत्व के लिए जाना जाता है.
ओमान बेसिन
यह बेसिन ओमान की खाड़ी के पास स्थित है और हिंद महासागर के उत्तरी-पश्चिमी हिस्से का हिस्सा है. यह फारस की खाड़ी के प्रवेश द्वार पर स्थित है और इसलिए इसका भू-राजनीतिक महत्व बहुत अधिक है.
मॉरीशस बेसिन
यह बेसिन मेडागास्कर के दक्षिण-पूर्व में स्थित है. यह एक अपेक्षाकृत गहरा बेसिन है और इसके चारों ओर मॉरीशस द्वीपसमूह और अन्य छोटे द्वीप स्थित हैं.
सोमालियन बेसिन
यह बेसिन पूर्वी अफ्रीका के तट पर स्थित है. यह उत्तर में सोकोत्रा-चागोस कटक और दक्षिण में सेशेल्स कटकों द्वारा घिरा हुआ है. यह एक महत्वपूर्ण समुद्री क्षेत्र है जहाँ मानसून की हवाएं और धाराएं सक्रिय रहती हैं.
नटाल बेसिन
यह बेसिन मेडागास्कर और दक्षिण अफ्रीका के पूर्वी तट के बीच स्थित है. इसका नाम दक्षिण अफ्रीका के नटाल प्रांत के नाम पर रखा गया है. यह एक गहरा बेसिन है जो हिंद महासागर के दक्षिण-पश्चिमी भाग में आता है.
अगुलहास बेसिन
यह बेसिन नटाल बेसिन के ठीक दक्षिण में स्थित है. यह अगुलहास धारा (Agulhas Current) के प्रवाह क्षेत्र में आता है, जो एक गर्म महासागरीय धारा है. यह बेसिन अंटार्कटिक जल के साथ मिलने के कारण भूवैज्ञानिक रूप से जटिल है.
कोकोस कॉलिंग बेसिन
इसे पश्चिमी ऑस्ट्रेलियाई बेसिन या भारत-ऑस्ट्रेलियाई बेसिन भी कहा जाता है. यह ऑस्ट्रेलिया के पश्चिमी तट के पास स्थित है. इस बेसिन पर कोकोस कॉलिंग (Cocos Keeling) नामक द्वीप स्थित है, जो प्रवाल द्वीपों से बना है.
अटलांटिक-हिंद-अंटार्कटिक बेसिन
यह वास्तव में हिंद महासागर का मूल हिस्सा नहीं है, बल्कि अटलांटिक महासागर की अटलांटिक-अंटार्कटिक बेसिन का एक विस्तृत भाग है. यह अटलांटिक, हिंद और अंटार्कटिक महासागरों के संगम पर स्थित एक बड़ा और ठंडा बेसिन है, जो मध्य-महासागरीय कटकों से घिरा हुआ है.
हिंद महासागर के सीमांत सागर एवं खाड़ियाँ
हिंद महासागर के अंतर्गत आने वाली लगभग सभी महाद्वीपीय ढालें (Continental Slopes) तीव्र हैं, जिसका कारण इनके प्राचीन गोंडवानालैंड के पठारों से निर्मित होना है. अतः ऐसी स्थिति में हिंद महासागर में सीमांत सागरों का भी सामान्यतया अभाव है.
अरब सागर एवं बंगाल की खाड़ी को कई विद्वान सीमांत सागर नहीं मानते (ऐसा इनके आकार व अवस्थिति के चलते). यहाँ लाल सागर एवं उथले गर्त के रूप में उपस्थित फारस की खाड़ी को ही हिंद महासागर के वास्तविक सीमांत सागर व खाड़ियों के अंतर्गत वर्गीकृत किया जाता है.
अंटार्कटिक महासागर (Antarctic Ocean)
अंटार्कटिक (जिसे दक्षिणी महासागर भी कहते हैं) एक महासागर के रूप में अपनी विशिष्ट भौगोलिक विशेषताओं के लिए जाना जाता है. यह अंटार्कटिक महाद्वीप को चारों ओर से घेरता है. यह 60° दक्षिणी अक्षांश के दक्षिण में स्थित है और प्रशांत, अटलांटिक व हिंद महासागरों के दक्षिणी भागों को मिलाता है.
यह पृथ्वी का सबसे ठंडा और कम खारा महासागर है. इसकी सतह का तापमान -1.8°C से 10°C तक भिन्न होता है. वर्ष के अधिकांश समय इसकी सतह पर समुद्री बर्फ (sea ice) की मोटी चादर जमी रहती है, जो गर्मियों में पिघलती है और सर्दियों में फैलती है.
जलधाराओं का प्रवाह व दिशा
अंटार्कटिक की सबसे प्रमुख जलधारा अंटार्कटिक सर्कंपोलर करंट (Antarctic Circumpolar Current – ACC) है. यह दुनिया की सबसे बड़ी महासागरीय जलधारा है. यह पश्चिम से पूर्व की ओर, दक्षिणावर्त दिशा में, अंटार्कटिक महाद्वीप के चारों ओर बहती है. यह जलधारा किसी भी महाद्वीप से बाधित नहीं होती, जिससे इसका प्रवाह बहुत शक्तिशाली होता है. यह अटलांटिक, प्रशांत और हिंद महा सागरों के जल को मिलाती है.
मुख्य भौगोलिक विशेषताएं
- महाद्वीपीय मग्नतट: अंटार्कटिक महाद्वीप का मग्नतट (continental shelf) आमतौर पर अन्य महाद्वीपों की तुलना में बहुत गहरा है, जो लगभग 400-800 मीटर गहरा है.
- कटक: इसकी सबसे महत्वपूर्ण कटक अंटार्कटिक-प्रशांत कटक और अटलांटिक-अंटार्कटिक कटक हैं, जो मध्य-महासागरीय कटकों का हिस्सा हैं.
- गर्त: इस महासागर में कोई प्रमुख गहरा गर्त नहीं है, क्योंकि यह एक अभिसरण क्षेत्र के बजाय एक विवर्तनिक रूप से सक्रिय क्षेत्र है.
- द्वीप: प्रमुख द्वीपों में साउथ शेटलैंड द्वीप और साउथ जॉर्जिया द्वीप शामिल हैं, जो महासागर के किनारे स्थित हैं.
- बेसिन: यहाँ कई गहरे बेसिन हैं, जैसे अटलांटिक-अंटार्कटिक बेसिन और हिंद-अंटार्कटिक बेसिन, जो महासागर के फर्श पर पाए जाते हैं.
सीमांत सागर व खाड़ियाँ
अंटार्कटिक महासागर के आसपास कई सीमांत सागर और खाड़ियाँ हैं जो अंटार्कटिक महाद्वीप के तट से सटी हुई हैं. इनमें से कुछ प्रमुख हैं:
- वेडेल सागर (Weddell Sea): यह अंटार्कटिक प्रायद्वीप के पास एक बड़ा सीमांत सागर है.
- रॉस सागर (Ross Sea): यह रॉस आइस शेल्फ के पास स्थित है और इसे अक्सर एक महत्वपूर्ण समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में जाना जाता है.
- अमुंडसेन सागर (Amundsen Sea) और बेलिंग्सहॉसन सागर (Bellingshausen Sea): ये भी अंटार्कटिक प्रायद्वीप के पास स्थित हैं.
- खाड़ियाँ: प्रमुख खाड़ियों में प्राइड्ज़ खाड़ी और अडेली खाड़ी शामिल हैं.
आर्कटिक महासागर (Arctic Ocean)
आर्कटिक महासागर पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में स्थित है और यह विश्व का सबसे छोटा व उथला महासागर है. यह लगभग पूरी तरह से यूरेशिया और उत्तरी अमेरिका महाद्वीपों से घिरा है. इसकी भौगोलिक विशेषताएं इसे अन्य महासागरों से अलग बनाती हैं.
आर्कटिक महासागर की सबसे प्रमुख विशेषता यह है कि यह साल भर, खासकर सर्दियों में, अधिकांशतः समुद्री बर्फ से ढका रहता है. इसका तापमान और लवणता (Salinity) मौसमी बदलाव के साथ बदलती रहती है. गर्मियों में लगभग 50% बर्फ पिघल जाती है. यह प्रशांत महासागर से बेरिंग जलसंधि और अटलांटिक महासागर से ग्रीनलैंड सागर के माध्यम से जुड़ा हुआ है.
जलधाराएँ
आर्कटिक महासागर में जलधाराओं का प्रवाह अटलांटिक और प्रशांत महासागरों से आने वाली धाराओं से प्रभावित होता है.
- अटलांटिक प्रवाह: अटलांटिक महासागर की गर्म उत्तरी अटलांटिक प्रवाह (North Atlantic Drift) नॉर्वेजियन सागर से आर्कटिक में प्रवेश करती है, जिससे इस क्षेत्र के तापमान में वृद्धि होती है. यह प्रवाह आर्कटिक में ठंडा और कम खारा होकर पूर्वी ग्रीनलैंड धारा (East Greenland Current) के रूप में वापस अटलांटिक में बहता है.
- प्रशांत प्रवाह: बेरिंग जलसंधि के माध्यम से प्रशांत महासागर का पानी आर्कटिक में प्रवेश करता है, लेकिन यह प्रवाह अटलांटिक प्रवाह की तुलना में कम होता है.
भौगोलिक विशेषताएं (Geographical Features)
आर्कटिक महासागर में महाद्वीपीय मग्नतट (Continental Shelf) काफी विस्तृत हैं, जो इसके उथलेपन का प्रमुख कारण हैं.
- महाद्वीपीय मग्नतट: रूस के साइबेरियाई तट के पास का मग्नतट दुनिया में सबसे चौड़ा है.
- कटक: आर्कटिक महासागर का मध्य-महासागरीय कटक (Mid-oceanic ridge) जिसे लोमोनोसोव कटक (Lomonosov Ridge) कहते हैं, आर्कटिक बेसिन को दो प्रमुख बेसिनों में विभाजित करता है:
- यूरेशियन बेसिन (Eurasian Basin), जिसमें अमरासिया बेसिन (Amerasia Basin) भी शामिल है.
- बेसिन: ये कटक महासागर के तल को गहरे बेसिनों में विभाजित करते हैं. यूरेशियन बेसिन के भीतर नेंसन बेसिन (Nansen Basin) और अमरासिया बेसिन के भीतर कनाडा बेसिन (Canada Basin) और मकारोव बेसिन (Makarov Basin) प्रमुख हैं.
गर्त और द्वीप
- गर्त: आर्कटिक महासागर में बहुत कम गहरे गर्त (Trenches) पाए जाते हैं. इसका सबसे गहरा बिंदु यूरेशियन बेसिन में है, जो फ्राम जलडमरूमध्य (Fram Strait) के पास स्थित है.
- द्वीप: इस महासागर में कई बड़े द्वीप और द्वीपसमूह हैं.
- कनाडा का आर्कटिक द्वीपसमूह (Canadian Arctic Archipelago): इसमें बैफिन द्वीप (Baffin Island) और विक्टोरिया द्वीप (Victoria Island) जैसे बड़े द्वीप शामिल हैं.
- ग्रीनलैंड (Greenland): यह दुनिया का सबसे बड़ा द्वीप है.
- रूस के द्वीप: नोवाया जेमल्या (Novaya Zemlya), सेवरनाया जेमल्या (Severnaya Zemlya) और न्यू साइबेरियन द्वीपसमूह (New Siberian Islands).
- अन्य द्वीप: स्वालबार्ड (Svalbard) और आइसलैंड (Iceland) भी इसके सीमावर्ती क्षेत्रों में स्थित हैं.
सीमांत सागर और खाड़ियाँ
आर्कटिक महासागर के चारों ओर कई सीमांत सागर और खाड़ियां स्थित हैं जो इसे यूरेशिया और उत्तरी अमेरिका के तटों से अलग करते हैं.
- प्रमुख सागर:
- ग्रीनलैंड सागर (Greenland Sea): ग्रीनलैंड और स्वालबार्ड के बीच.
- बैरेंट्स सागर (Barents Sea): नॉर्वे और रूस के उत्तरी तट पर.
- कारा सागर (Kara Sea): नोवाया जेमल्या के पूर्व में.
- लैप्टेव सागर (Laptev Sea): रूस के साइबेरियाई तट पर.
- चुक्ची सागर (Chukchi Sea): बेरिंग जलसंधि के पास.
- प्रमुख खाड़ियाँ:
- बैफिन की खाड़ी (Baffin Bay): बैफिन द्वीप और ग्रीनलैंड के बीच.
महासागर पृथ्वी के मानचित्र में

महासागरों का महत्व
महासागर पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र और जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं. उनका महत्व निम्नलिखित बिंदुओं में समझा जा सकता है:
- जलवायु नियंत्रण: ये पृथ्वी की जलवायु को नियंत्रित करने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं. साथ में सूर्य की गर्मी को अवशोषित, संग्रहित और वितरित कर वैश्विक तापमान संतुलित रखते है. समुद्री धाराएँ, जैसे गल्फ स्ट्रीम, गर्मी को विभिन्न क्षेत्रों में ले जाती हैं, जिससे जलवायु मध्यम रहती है.
- ऑक्सीजन उत्पादन: इनमें रहने वाले फाइटोप्लांक्टन पृथ्वी की लगभग 50-70% ऑक्सीजन का उत्पादन करते हैं. ये सूक्ष्म जीव प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर ऑक्सीजन छोड़ते हैं.
- कार्बन चक्र: ये कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर ग्रीनहाउस गैसों को कम करने में मदद करते हैं, जिससे ग्लोबल वॉर्मिंग का प्रभाव कम होता है. वे कार्बन सिंक के रूप में कार्य करते हैं.
- जैव विविधता: इनमें लाखों प्रजातियाँ निवास करती हैं, जो पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित रखती हैं. प्रवाल भित्तियाँ, मछलियाँ, और अन्य समुद्री जीव खाद्य श्रृंखला का हिस्सा हैं.
- आर्थिक महत्व: ये मत्स्य पालन, पर्यटन, और व्यापार के लिए महत्वपूर्ण हैं. विश्व की अधिकांश व्यापारिक गतिविधियाँ समुद्री मार्गों से होती हैं. मछलियाँ और अन्य समुद्री जीव भोजन का प्रमुख स्रोत हैं.
- जल चक्र: ये जल चक्र का आधार हैं. वे वाष्पीकरण के माध्यम से बादलों के निर्माण में योगदान देते हैं, जिससे वर्षा होती है और पृथ्वी पर मीठे पानी की आपूर्ति होती है.
- सांस्कृतिक और वैज्ञानिक महत्व: ये मानव सभ्यताओं के लिए सांस्कृतिक प्रेरणा का स्रोत रहे हैं. साथ ही, वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए वे अनमोल हैं, क्योंकि वे पृथ्वी के इतिहास और पर्यावरणीय परिवर्तनों का अध्ययन करने में मदद करते हैं.
संक्षेप में, हमारे महासागर पृथ्वी के पर्यावरण, अर्थव्यवस्था, और जीवन के लिए आधार हैं. उनके संरक्षण से ही ग्रह का संतुलन और मानव जीवन की निरंतरता संभव है.