समुद्र का पानी चंद्रमा और सूर्य की खिंचाव की शक्ति के कारण दिन में एक या दो बार ऊपर-नीचे होता है, इसे ज्वारभाटा कहते हैं. मौसम के बदलाव, जैसे हवा या हवा के दबाव में परिवर्तन, के कारण समुद्र के पानी की गति को महोर्मि कहते हैं. महोर्मि ज्वारभाटा की तरह नियमित नहीं होती. ज्वारभाटा का अध्ययन करना मुश्किल है क्योंकि इनकी आवृत्ति, मात्रा और ऊंचाई में बहुत अंतर होता है.
ज्वारभाटा कैसे बनता हैं? (How is tide formed?)
ज्वारभाटा मुख्य रूप से चंद्रमा की खिंचाव शक्ति और कुछ हद तक सूर्य की खिंचाव शक्ति से बनता है. दूसरा कारण है अपकेंद्रीय बल, जो खिंचाव शक्ति को संतुलित करता है. ये दोनों बल मिलकर पृथ्वी पर दो मुख्य ज्वार पैदा करते हैं.
पृथ्वी का जो हिस्सा चंद्रमा के करीब होता है, वहां चंद्रमा का खिंचाव बल ज्यादा होता है, जिससे वहां पानी ऊपर उठता है और ज्वार बनता है. दूसरी तरफ, जहां चंद्रमा दूर होता है, वहां खिंचाव कम होता है और अपकेंद्रीय बल प्रभावी होता है, जिससे वहां भी पानी ऊपर उठता है और दूसरा ज्वार बनता है.

ज्वार पैदा करने वाला बल इन दो बलों (चंद्रमा का खिंचाव और अपकेंद्रीय बल) के अंतर से बनता है. चंद्रमा के करीब वाले हिस्से में खिंचाव बल ज्यादा होता है, इसलिए वहां पानी का उभार होता है. दूसरी तरफ, जहां चंद्रमा दूर है, वहां अपकेंद्रीय बल ज्यादा प्रभावी होता है, जिससे वहां भी उभार बनता है. पृथ्वी पर क्षैतिज (horizontal) ज्वार पैदा करने वाले बल ऊर्ध्वाधर (vertical) बलों से ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं, जो ज्वार के उभार का कारण बनते हैं.
ज्वारभाटा की प्रकृति
जहाँ समुद्र का तट चौड़ा होता है, वहाँ ज्वार की लहरें ज़्यादा ऊँची उठती हैं. जब ये लहरें बीच समुद्र में बने द्वीपों से टकराती हैं, तो उनकी ऊँचाई बदल जाती है. तट के पास खाड़ियों और नदियों का आकार भी ज्वार की ताकत को प्रभावित करता है. अगर खाड़ी शंकु (कोन) की तरह हो, तो ज्वार की ऊँचाई बहुत ज़्यादा बदल सकती है. जब ज्वार की लहरें द्वीपों के बीच या खाड़ियों और नदी के मुहाने से होकर गुज़रती हैं, तो उन्हें ज्वारीय धारा कहते हैं.
ज्वार और भाटा: जब पानी ऊपर चढ़ता है, उसे ज्वार कहते हैं. जब पानी नीचे जाता है, उसे भाटा कहते हैं.
ज्वार-भाटा का आसान वर्गीकरण
ज्वार-भाटा समुद्र में पानी के ऊपर-नीचे होने की प्रक्रिया है. यह हर जगह और हर समय एक जैसा नहीं होता. इसे हम दो आधार पर वर्गरीकृत कर सकते हैं: 1) ज्वार की बारंबारता (कितनी बार आता है) और 2) सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी की स्थिति के आधार पर.
1. बारंबारता के आधार पर ज्वार-भाटा
ज्वार-भाटा हर जगह और हर समय एक जैसा नहीं होता है. ज्वार की आवृत्ति (कितनी बार होता है), दिशा (कहाँ जाता है), और गति (कितनी तेजी से होता है) अलग-अलग हो सकती है. इस आधार पर हम इसे निम्न प्रकार से बाँट सकते हैं:
- अर्ध-दैनिक ज्वार(Semi-diurnal): यह सबसे आम ज्वार है. इसमें एक दिन में दो बार पानी ऊपर (उच्च ज्वार) और दो बार नीचे (निम्न ज्वार) होता है. दोनों उच्च और निम्न ज्वार की ऊँचाई लगभग बराबर होती है.
- दैनिक ज्वार(diurnal tide): इसमें एक दिन में केवल एक उच्च ज्वार और एक निम्न ज्वार होता है. दोनों की ऊँचाई एक जैसी होती है.
- मिश्रित ज्वार (Mixed tide): इसमें ज्वार की ऊँचाई हर बार अलग-अलग होती है. यह ज्वार खासकर उत्तर अमेरिका के पश्चिमी तट और प्रशांत महासागर के द्वीपों पर देखने को मिलता है.
2. सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी की स्थिति के आधार पर
(A) वसंत ज्वार (Spring tides) : उच्च ज्वार की ऊँचाई में भिन्नता पृथ्वी के सापेक्ष सूर्य एवं चंद्रमा के स्थिति पर निर्भर करती है. वृहत् ज्वार एवं निम्न ज्वार इसी वर्ग के अंतर्गत आते हैं. इनके अंतराल में कम से कम सात दिनों का अंतर होता हैं:
- वृहत् ज्वार (High Tides): जब सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी एक सीधी रेखा में होते हैं, तब ज्वार बहुत ऊँचा और बहुत नीचा होता है. इसे वृहत् ज्वार कहते हैं. यह पूर्णिमा और अमावस्या के दिन, यानी महीने में दो बार होता है.
- निम्न ज्वार (Neap Tides): जब सूर्य और चंद्रमा एक-दूसरे के समकोण (90 डिग्री) पर होते हैं, तब ज्वार की ऊँचाई कम होती है. यह वृहत् ज्वार के 7 दिन बाद होता है. इस दौरान सूर्य और चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण एक-दूसरे के खिलाफ काम करता है. चंद्रमा का आकर्षण ज्यादा होता है क्योंकि वह पृथ्वी के करीब है.
(B) उपभू और अपभू: जब चंद्रमा पृथ्वी के सबसे करीब हो तो यह उपभू कहलाता है. ऐसे में ज्वार बहुत ऊँचा और नीचा होता है. जब चंद्रमा सबसे दूर (अपभू) होता है, तो ज्वार की ऊँचाई कम होती है.
(C) उपसौर और अपसौर: जब पृथ्वी सूर्य के सबसे करीब (उपसौर, 3 जनवरी) होती है, तो ज्वार की ऊँचाई ज्यादा होती है. जब पृथ्वी सूर्य से सबसे दूर (अपसौर, 4 जुलाई) होती है, तो ज्वार की ऊँचाई कम होती है.
ज्वार-भाटा का महत्व
ज्वार की ऊँचाई का पता होना नाविकों और मछुआरों के लिए जरूरी है. यह बंदरगाहों और नदियों के मुहाने पर जहाजों के आने-जाने में मदद करता है. सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी की स्थिति का सही ज्ञान होने से ज्वार का समय और ऊँचाई पहले से पता की जा सकती है, जो नाविकों और मछुआरों के लिए बहुत उपयोगी है.
ज्वार-भाटा समुद्र और नदियों से गंदगी और तलछट को बाहर निकालता है. ज्वार की शक्ति से बिजली बनाई जाती है, जैसे कनाडा, फ्रांस, रूस और चीन में. भारत में पश्चिम बंगाल के सुंदरवन में भी एक 3 मेगावाट का बिजली संयंत्र लगाया जा रहा है.