दिल्ली सल्तनत का प्रशासन अरबी-फारसी पद्धति पर आधारित थी. इस प्रशासन का केन्द्र बिन्दु राजा या सुल्तान था. यह सुल्तान खुदा के नाम पर शासन करता था. जबकि वास्तविक सत्ता सुन्नी भातृत्व भासना अथवा मिल्लत में निहित थी.
चूँकि मुस्लिम शासन पद्धति धार्मिक पुस्तक कुरान पर आधारित थी और मुस्लिम जगत में पैगम्रुबर के बाद खलीफा ही सर्वोच्च धार्मिक व्यक्ति रह गया था. इसीलिए दिल्ली सल्तनत के अधिकांश शासकों ने खलीफा की सत्ता को स्वीकार किया. और उनसे खिल्लत प्राप्त करने की कोशिश की. केवल अलाउद्दीन खिलजी और मुबारक खिलजी ने किसी भी प्रकार से खलीफा के हस्तक्षेप को स्वीकार नही किया. मुबारक खिलजी ने स्वयं को ही खलीफा कहा.
पहले खलीफा की सत्ता का केन्द्र बिन्दु बगदाद था. परन्तु बाद में यह मिश्र में स्थानान्तरित हो गया. तैमूर लंग ने 14वीं शताब्दी में खलीफा की सत्ता को ही समाप्त कर दिया. सुल्तान के प्रशासनिक कार्यों में सहायता के लिए दो प्रमुख अधिकारी वजीर एवं अमीर होते थे.
वजीर
दिल्ली सल्तनत के समय वजारत का स्वर्ण काल माना जाता है. यह तुगलकों के समय विशेषकर फिरोज तुगलक के समय चरम पर था. उसके वजीर का नाम खाने जहाँ मकबूल था. जबकि इल्तुतमिश के वजीर का नाम मुहम्मद खाँ जुनेंदी था. वजारत का निम्नकाल बलबन के समय माना जाता है.
अमीर
अमीरों का स्वर्ण काल लोदियों के समय माना जाता है क्योंकि लोदी शासकों के अपने अफगान अमीरों से सम्बन्ध भाई चारे पर आधारित थे. अमीरों का निम्नकाल बलबन और अलाउद्दीन के समय माना जाता है.
मंत्री परिषद (Cabinet)
सुल्तान के प्रशासनिक कार्यों में सहायता के लिए एक मंत्री परिषद होती थी जिसे मजलिस-ए-खलवत कहा जाता था.
- मजलिस-ए-खास: मजलिस-ए-सलवत की बैठक जिस स्थान पर होती थी उसे मजलिस-ए-खास कहा जाता था. यहाँ पर खास लोगों को ही बुलाया जाता था.
- बार-ए-आजम: यही पर सुल्तान राजकीय कार्यों का अधिकांश भाग पूरा करता था. यहाँ पर उसकी सहायता के लिए विद्वान, काजी मुल्ला आदि भी उपस्थित रहते थे.
- बार-ए-खास: यहाँ सुल्तान अपने प्रमुख सहयोगियों को बुलाकर उनसे मंत्रणा करता था.
मंत्री परिषद या मजलिस-ए-खलवत में चार विभाग अत्यन्त महत्वपूर्ण थे-
1. दीवान-ए-विजारत:यह सबसे महत्वपूर्ण विभाग था. यह आर्थिक मंत्रालय की तरह था.
2. दीवान-ए-अर्ज: यह सैन्य विभाग था. इसकी स्थापना बलबन ने की थी.
3. दीवाने-ए-रसालत: यह विदेश विभाग था.
4. दीवाने-ए-इंशा: यह पत्राचार विभाग था. फिरोज तुगलक के समय में इसका स्तर गिर गया था. मुल्तान के गर्वनर एलुल मुल्क मुल्तानों ने अपने पत्रों इंशा-ए-माहरु में शिकायत की है कि लोग अपनी शिकायते सीधे उसके पास न लाकर मौलवियों के पास ले जाते हैं. और ये मौलवी मुझसे जबाव मांगते हैं.
दीवाने-ए-वजारत
यह सबसे महत्वपूर्ण विभाग था. इसका प्रमुख वजीर अथवा प्रधानमंत्री होता था. दीवाने वजारत से कई विभाग जुड़े हुए थे, जिसका वर्णन निम्न लिखित है:
1. दीवान-ए-इशराफ: यह लेखा परीक्षक विभाग था.
2. दीवान-ए-इमारतः यह लोक निर्माण विभाग था. इसकी स्थापना फिरोज तुगलक ने की
3. दीवान-ए-अमीर कोही: कृषि विभाग, मुहम्मद तुगलक द्वारा स्थापित.
4. दीवान-ए-वकूफ: व्यय की कागजात की देखभाल करना.
5. दीवान-ए-मुस्तखराज: अधिकारियों के नाम बकाया राशि को वसूल करने वाला विभाग था. इसकी स्थापना अलाउद्दीन खिलजी ने की थी.
राजदरबार से सम्बन्धित अधिकारी
1. वकील-ए-दर : यह शाही महल एवं सुल्तान की व्यक्तिगत सेवाओं की देखभाल करता था.
2. बारबर : यह दरबार की शान शौकत एवं रस्मों की देखभाल करता था.
3. अमीर-ए-हाजिब : सुल्तान से मिलने वाले लोगों की जाँच पड़ताल करता था. इसे दरबारी शिष्टाचार का अधिकारी भी कहा जाता था.
4. सर-ए-जादार : सुल्तान के अंगरक्षकों का प्रधान अधिकारी.
5. अमीर-ए-मजलिश : शाही उत्सवों एवं दावतों का प्रबन्ध करने वाला प्रमुख अधिकारी.
6.अमीर-ए-शिकार : सुल्तान के शिकार की व्यवस्था करने वाला.
7. अमीर-ए-आखूर : अश्वशाला का प्रमुख.
8. शहना-ए-पील : हस्ति-सेना का प्रमुख
प्रान्तीय प्रशासन (Provincial Administration)
केन्द्र-प्रान्त (इक्ता)
शिक-परगना-ग्राम प्रान्तों को इक्ता या अक्ता कहा जाता था. भारत में इक्ता प्रथा की शुरुआत इल्तुतमिश ने की. इक्ता की परिभाषा निजामुलमुल्क की पुस्तक सियासत नाम में मिलता है. इक्ता इजारेदारी के लिये दिया गया भू-राजस्व क्षेत्र था जो सैनिक या असैनिक किसी को भी दिया जा सकता था. दिल्ली सुल्तानों में सबसे अधिक इक्ता मुहम्मद तुगलक के समय में थे. इक्ता के प्रमुख को इक्तादार या मुक्ता या वली कहा जाता था.
जिला (शिक)
बलबन के समय में इक्ता को जिले अथवा शिकों में विभाजित किया गया शिकों के प्रमुख को शिकदार कहा जाता था.
परगना
जिले (परगनों) तहसील में विभाजित थे. यहाँ आमिल अथवा नजीम प्रमुख अधिकारी था. इसकी सहायता खजीन मुश्तशरिरफ् आदि लोग करते थे.
ग्राम
ग्राम के मुखिया को मुकद्दम कहा जाता था जबकि गाँव के जमींदारों को खूत कहा जाता था. साधारण किसानों को बलाहार कहा जाता था.
सैन्य संगठन (Military Organisation)
सैन्य विभाग दीवान-ए-आरिज़ कहलाता था. इसका नियंत्रण आरिज़-ए-मुमालिक के पास थी होता था. सैनिकों की भर्ती और सैन्य विभाग का प्रशासन इसका काम था. लेकिन, खुद सुल्तान सेना का कमांडर-इन-चीफ के रूप में काम करता था.
दिल्ली की केन्द्रीय सेना को हश्म-ए-वल्ब कहा जाता था, जबकि प्रान्तीय सेना को हश्म-ए-अतरफ कहा जाता था. शाही घुड़सवार सेना को सवार-ए-कल्ब कहते थे. प्रान्तीय घुड़सवार सेना को सवार-ए-अतरफ कहते थे. सल्तनत कालीन सेना में तुर्क अमीर, ईरानी मंगोल, अफगानी एवं भारतीय मुसलमान सम्मिलित थे.
खास-खेल
सल्तनत की स्थायी सेना को खास खेल कहा जाता था. पहली बार सैन्य विभाग की स्थापना बलबन के समय में हुयी. इसका नाम दीवार-ए-अर्ज था तथा इसका प्रमुख आरिज-ए-मुमालिक होता था. परन्तु पहली बार स्थायी सेना अथवा खड़ी सेना अलाउद्दीन के समय में गठित की गयी. उसने सैनिकों की हुलिया एवं घोड़ों को दागने की प्रथा की भी शुरूआत की.
सेना का आधार
सेना का संगठन मंगोलों की दशमलव प्रणाली पर किया गया था. सर्वप्रथम इस प्रणाली के आधार पर अलाउद्दीन ने अपनी सेना संगठित की मुहम्मद तुगलक ने आदर्श रूप में दशमलव प्रणाली के आधार पर अपनी सेना गठित की.
भूमि के प्रकार (Types of Land)
1. इक्ता की भूमि: इस भूमि का मालिक इक्तादार था मुक्ता कहलाता था. बलबन ने ख्वाजा नामक अधिकारी की नियुक्ति की थी जो मुक्ता एवं बली के कार्यों की देखभाल करता था.
2. खालसा की भूमि: यह सीधे केन्द्र के नियन्त्रण में होती थी. यहाँ का भू-राजसव आमिल वसूलता था.
3. उर्सी भूमि: इस भूमि के मालिक तुर्की मुसलमान होते थे.
4. इनाम व वक्फ की भूमि: यह कर मुक्त भूमि होती थी इस पर वंशानुगत अधिकार भी होता था.
लगान व्यवस्था (Land Revenue System)
सल्तनत काल में लगान व्यवस्था के लिए किस्मत-ए-गल्ला, गल्ला बक्शी, बटाई आदि शब्द प्रयुक्त किये गये हैं. यह लगान निर्धारण की ऐसी प्रणाली थी जिसमें राज्य की ओर से प्रत्यक्ष रूप से जमीन की पैदावार से हिस्सा ले लिया जाता था.
सल्तनत काल में निम्नलिखित 3 प्रकार की बटाई की व्यवस्था प्रचलित थी:
1. खेत बटाई : खड़ी फसल या बुआई के बाद ही खेत को बांटकर कर निर्धारण करना.
2. लंक बटाई : खेत काटने के बाद खलियान में लाये गये अनाज से बिना भूसा निकाले कृषक एवं सरकार के बीच बंटवारा.
3. राशि बटाई : खलिहान में अनाज से भूसा अलग करने के बाद उसका बंटवारा.
4. मसाहत : भूमि के माप के आधार पर लगान निश्चित करने को मसाहत कहा गया. इस प्रणाली की शुरूआत अलाउद्दीन खिलजी ने की.
5. मुक्ताई : यह कर निर्धारण (लगान) की मिश्रित प्रणाली थी. इसमें कर ठेकेदार पर लगाया जाता था और ठेकेदार किसानों पर कर लगाता था.
निष्कर्ष (Conclusion)
आपने देखा कि दिल्ली सल्तनत की स्थापना के साथ ही नए शासक वर्ग और कुछ नई प्रशासनिक संस्थाओं का उदय हुआ. प्रशासनिक संस्थाएँ मूल रूप से मिश्रित थीं जिनकी जड़ें अरब और मध्य एशिया और भारतीय मूल से थीं. मुगल काल के दौरान सल्तनत-काल की कुछ संस्थाओं में कुछ बदलाव किया गया और कुछ नई बनाई गईं. स्थानीय स्तर के प्रशासन को गांव के मुखिया के हाथों में सौंपा गया.
प्रान्तीय स्तर पर सल्तनत काल के दौरान इक्ता की संस्थाओं तथा मुगल काल में मनसब व जागीर संस्थाओं के माध्यम से प्रशासन चलाया जाता था और केन्द्रीय स्तर पर सुल्तान या सम्राट की अपनी प्रशासन प्रणाली होती थी जिसमें उसकी सहायता के लिए बहुत सारे अधिकारी होते थे. अन्य कार्यों की देखरेख के लिए भी कई अन्य विभाग थे. और संस्थाओं ने सल्तनत और मुगल साम्राज्य को सुदढ़ करने में योगदान किया. प्रशासनिक प्रणाली को शासकों द्वारा समाज में सद्भाव बनाए रखने के लिए भी प्रयुक्त किया जाता था.