अजंता के गुफाएं महाराष्ट्र में औरंगाबाद शहर से लगभग 107 किलो मीटर की दूरी पर पहाड़ को काट कर विशाल घोड़े की नाल के आकार में बनाई गई हैं. ये वाघोरा नदी के पास सह्याद्रि पर्वतमाला (पश्चिमी घाट) में रॉक-कट गुफाओं की एक श्रृंखला है. अजंता में 29 गुफालाओं का एक सेट बौद्ध वास्तुकला, गुफा चित्रकला और शिल्प चित्रकला के उत्कृष्तम उदाहरणों में से एक है. इन गुफाओं में चैत्य कक्ष या मठ है, जो भगवान बुद्ध और विहार को समर्पित हैं. इनका उपयोग बौद्ध भिक्षुओं द्वारा ध्यान लगाने और भगवान बुद्ध की शिक्षाओं का अध्ययन करने के लिए किया जाता था.
अजंता के गुफाओं का परिचय
यहाँ कुल 29 गुफाएँ (सभी बौद्ध) हैं, जिनमें से 25 को विहार या आवासीय गुफाओं के रूप में जबकि 4 को चैत्य या प्रार्थना हॉल के रूप में इस्तेमाल किया जाता था. इन गुफाओं का विकास 200 ई.पू. से 650 ईस्वी के मध्य हुआ था. वाकाटक राजाओं जिनमें हरिसेना एक प्रमुख था, के संरक्षण में अजंता की गुफाएँ बौद्ध भिक्षुओं द्वारा उत्कीर्ण की गई थीं.
अजंता के गुफाओं की जानकारी चीनी बौद्ध यात्रियों फ़ाहियान (चंद्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल के दौरान 380- 415 ईस्वी) और ह्वेन त्सांग (सम्राट हर्षवर्धन के शासनकाल के दौरान 606 – 647 ईस्वी) के यात्रा वृतांतों में पाई जाती है.
इन गुफाओं में आकृतियों को फ्रेस्को पेंटिंग का उपयोग करके दर्शाया गया था. इन गुफाओं के चित्रों में लाल रंग की प्रचुरता है. किंतु नीले रंग की अनुपस्थिति है. इन चित्रों में सामान्यतः बुद्ध और जातक कहानियों को प्रदर्शित किया गया है. गुफाओं की दीवारों तथा छतों पर बनाई गई ये तस्वीरें भगवान बुद्ध के जीवन की विभिन्न घटनाओं और विभिन्न बौद्ध देवत्व की घटनाओं का चित्रण करती हैं. इसमें से सर्वाधिक महत्वपूर्ण चित्रों में जातक कथाएं हैं, जो बोधिसत्व के रूप में बुद्ध के पिछले जन्म से संबंधित विविध कहानियों का चित्रण करते हैं.
ये एक संत थे जिन्हें बुद्ध बनने की नियति प्राप्त थी. ये शिल्पकलाओं और तस्वीरों को प्रभावशाली रूप में प्रस्तुत करती हैं जबकि ये समय के असर से मुक्त है. ये सुंदर छवियां और तस्वीरें बुद्ध को शांत और पवित्र मुद्रा में दर्शाती हैं.
अजंता के गुफाओं की विशेषताएं
यहाँ अजंता के गुफाएं प्राचीन भारत के स्वर्णिम कला व इंजीनियरिंग का प्रतीक हैं. इसके कई खसियतों में कुछ प्रमुख विशेषताएँ यहाँ दी गई हैं:
1. उत्कृष्ट चित्रकला (पेंटिंग्स)
अजंता की गुफाएँ अपनी अविश्वसनीय और जटिल भित्तिचित्रों (Murals) के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं. ये पेंटिंग्स 200 ईसा पूर्व से लेकर 480 ईस्वी तक की हैं, और इन्हें प्राचीन भारतीय कला के सबसे बेहतरीन जीवित उदाहरणों में से एक माना जाता है. ये चित्र मुख्य रूप से जातक कथाओं (बुद्ध के पिछले जन्मों की कहानियाँ), बुद्ध के जीवन की घटनाओं और बोधिसत्वों को दर्शाते हैं.
- तकनीक: ये चित्र फ्रेस्को (Fresco) और टेम्पेरा (Tempera) तकनीक का मिश्रण हैं. पहले प्लास्टर की एक परत लगाई जाती थी और उसके सूखने के बाद उस पर प्राकृतिक रंगों (जैसे लाल गेरू, पीला गेरू, चूना, काजल, और खनिज) का उपयोग करके चित्र बनाए जाते थे.
- भाव और विषय-वस्तु: इन चित्रों की सबसे बड़ी विशेषता इनमें दर्शाए गए भावों की गहराई (भाव-भंगिमाएँ) है. यहाँ मनुष्य ही नहीं, बल्कि पशु-पक्षियों के भी भावों को बखूबी दिखाया गया है. इनमें प्रेम, करुणा, क्रोध और शांति जैसे भाव स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं.
- भित्तिचित्र: अजंता की गुफाओं में भित्तिचित्र भी हैं, जो गीले प्लास्टर पर बनाई गई पेंटिंग हैं. भित्तिचित्र गुफाओं की छत और दीवारों के ऊपरी हिस्सों में स्थित हैं. भित्तिचित्र जातक कथाओं के दृश्यों को दर्शाते हैं, जो बुद्ध के पिछले जीवन के बारे में कहानियाँ हैं.
2. चट्टानों को काटकर बनाई गई वास्तुकला (रॉक-कट आर्किटेक्चर)
अजंता की गुफाएँ अपनी रॉक-कट वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण हैं. ये गुफाएँ एक घोड़े की नाल के आकार की चट्टान को काटकर बनाई गई हैं. इन गुफाओं को मुख्य रूप से दो चरणों में बनाया गया था:
- हीनयान चरण (लगभग 200 ईसा पूर्व से 100 ईस्वी): इस चरण में बनी गुफाएँ, जैसे कि गुफा संख्या 9 और 10, मुख्य रूप से चैत्य हॉल (पूजा स्थल) हैं. इनमें स्तूप हैं लेकिन बुद्ध की कोई मूर्ति नहीं है, क्योंकि इस चरण में बुद्ध को प्रतीकों के रूप में पूजा जाता था.
- महायान चरण (लगभग 5वीं शताब्दी ईस्वी): इस चरण की गुफाओं में विहार (भिक्षुओं के रहने के कमरे) और चैत्य दोनों शामिल हैं. इन गुफाओं में बुद्ध की मूर्तियों को प्रमुखता से दर्शाया गया है.
3. चैत्य और विहार
- चैत्य: ये पूजा स्थल थे. चैत्य गुफाएँ (जैसे गुफा 9, 10, 19, 26, 29) आयताकार होती हैं, जिनमें सामने की ओर प्रवेश द्वार और पीछे की ओर एक स्तूप होता है. ये प्रार्थना और ध्यान के लिए बनाए गए थे.
- विहार: ये भिक्षुओं के आवासीय और अध्ययन कक्ष थे. विहार गुफाएँ (जैसे गुफा 1, 2, 16, 17) वर्गाकार या आयताकार होती हैं, जिनके चारों ओर छोटे-छोटे कमरे होते हैं.
4. मूर्तिकला
इन गुफाओं में बुद्ध, बोधिसत्वों, और अन्य बौद्ध आकृतियों की कई मूर्तियाँ हैं. ये मूर्तियाँ भी चट्टान को काटकर बनाई गई हैं. गुफा संख्या 26 में स्थित महापरिनिर्वाण की मूर्ति विशेष रूप से उल्लेखनीय है, जो बुद्ध के निर्वाण प्राप्त करने की अवस्था को दर्शाती है.
5. एक एकीकृत मठ परिसर
अजंता सिर्फ गुफाओं का समूह नहीं है, बल्कि यह एक संपूर्ण बौद्ध मठ परिसर था, जहाँ भिक्षु रहते, अध्ययन करते और ध्यान करते थे. यहाँ रहने के क्वार्टर, भोजन कक्ष और ध्यान कक्ष जैसी सुविधाएँ थीं. यह परिसर उस समय के बौद्ध धर्म के महत्व और कलात्मक उत्कृष्टता का प्रमाण है.
आधुनिक युग में अजंता के गुफाएं
आधुनिक युग में, यूनेस्को द्वारा 1983 से विश्व विरासत स्थल घोषित किए जाने के बाद अजंता और एलोरा को पुनः ख्याति मिली हैं. अजंता की गुफाओं में तस्वीरें बौद्ध धर्म द्वारा प्रेरित है. यहाँ गौतम बुद्ध की करुणामय भावनाओं से भरी हुई शिल्पकला व चित्रकला पाई जाती है. यह मानवीय इतिहास में कला के उत्कृष्ट व अनमोल काल को दर्शाती है. बौद्ध तथा जैन सम्प्रदाय द्वारा बनाई गई ये गुफाएं सजावटी रूप से तराशी गई हैं. फिर भी इनमें एक शांति और अध्यात्म झलकता है तथा ये दैवीय ऊर्जा और शक्ति से भरपूर हैं.
तीस अजंता गुफाओं पश्चिम मध्य भारत के पहाड़ों में वघोरा नदी के किनारे बनाया गया है. लगभग 200 वर्ष पहले तक इन गुफ़ाओं को भुला दिया गया था और इनकी कोई जानकारी नही थी. परंतु अब इसे सयुंक्त राष्ट्र द्वारा विश्व विरासत स्थल घोषित किया जा चुका है. उस समय इन गुफ़ाओं को खोजने का मौका एक अँग्रेज़ सैनिक को मिला जब वह बाघ का शिकार करते हुए यहाँ तक पहुँचा. इनकी चौकाने वाली खोज की पुष्टि यहाँ स्थित 10 नंबर की गुफा में एक स्तंभ पर उकेरी खरोंच से हुई है यहाँ लिखा है “John Smith, 28th Cavalry, 28 April, 1819”.
अजंता के गुफाओं का निर्माण का इतिहास
अजंता के गुफाओं का संरक्षण दो अलग-अलग अवधियों में हुआ- पहला बौद्ध चरण या हीनयान चरण 50 ई.पू. से लेकर 100 ईसवी तक था. इस अवधि में बड़े चैत्य हॉल 9 और 10 का इस्तेमाल पूजा करने के लिए और 12,13.15A विहारों का निर्माण बौद्ध भिक्षुओं के रहने के लिए किया गया था. यहाँ शिलालेखों पर उत्कीर्ण अभिलेखों से पता चलता है यह गुफ़ाएँ पश्चिम भारत में विभिन्न समुदायों का सम्मिलित प्रयास थी. इस समय सातवाहन शासकों दौर था और बुद्ध धर्म फल-फूल रहा था.
दूसरे चरण की खुदाइयां लगभग तीन शताब्दियों की स्थिरता के बाद की गयीं. इस चरण को महायान चरण बौद्ध धर्म का दूसरी सबसे बड़ी शाखा, जिसे उदारवादी शाखा भी कहते है. इसमें एवं बुद्ध को सीधे गाय आदि रुप में चित्रों या शिल्पों में दर्शित करने की अनुमति दी गयी है. कई लोग इस चरण को वाकाटक चरण कहते हैं. यह वत्सगुल्म शाखा के शासित वंश वाकाटक के नाम पर है. इस द्वितीय चरण की निर्माण तिथि कई शिक्षाविदों में विवादित है.
हाल के वर्षों में, कुछ बहुमत के संकेत इसे पाँचवीं शताब्दी में मानने लगे हैं. वॉल्टर एम.स्पिंक (Walter M Spink), एक अजंता विशेषञ के अनुसार महायन गुफाएं 462-480 ई. के बीच निर्मित हुईं थीं. महायान चरण की गुफाएं संख्या हैं 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 11, 14, 15, 16, 17, 18, 19, 20, 21, 22, 23, 24, 25, 26, 27, 28, एवं 29. गुफा संख्या 8 को लम्बे समय तक हीनयान चरण की गुफा समझा गया. किन्तु वर्तमान में तथ्यों के आधार पर इसे महायान घोषित किया गया है.
100 ई.पू. के पश्चात अजंता के गुफाएँ तीन शताब्दियों तक निष्क्रिय पड़ी रहीं. 400 ईसवी में चीनी यात्री फ़ाहसियन ने लिखा है की बौद्ध भिक्षुओं के यहाँ रहते हैं. यहाँ रहने वाले स्थानीय लोगों के विचार ग़लत हैं और वे बुद्ध के विचारों के बारे में नहीं जानते.
460 ईस्वी में यहाँ की परिस्थिति में नाटकीय बदलाव तब आया जब यह गुफ़ाएँ शक्तिशाली वाकाटक राजवंश के राजा हरिसेन के संरक्षण में आ गयी. 477 ईस्वी में राजा हरिसेन की अप्रत्याशित मौत के समय तक उसका राज्य संपूर्ण मध्य भारत में पश्चिम से पूर्वी समुद्रि तटों तक फैल चुका था.
हरिसेन के 20 वर्ष के संक्षिप्त शासन काल के दौरान अजंता के गुफाओं का स्वर्णकाल रहा. 465 ईस्वी तक 5 वर्ष के अंदर यहाँ 20 बड़ी गुफ़ाओं का निर्माण हो रहा था. इसके निर्माण के लिए दरबारियों के एक समूह का चयन किया गया जिन्होने स्वेच्छा से इस धार्मिक कार्य के लिए वित्तीय संसाधनों का प्रबंध किया.
देश के प्रमुख शहरों से हज़ारों कारीगरों,मूर्तिकारों और चित्रकारों को यहाँ स्वेच्छा से कम करने के लिए भेजा गया. यहाँ के शिलालेखों से पता चलता है किस प्रकार यहाँ ठोस आग्नेय चट्टानों को काटकर यहाँ ‘इनको देवताओं के महलों से अधिक सुंदर’ और ‘जब तक सूर्य और चंद्रमा हैं’ तबतक इनका अस्तित्व बने रहने के लिए बनाया जायेगा.
सम्राट हरिसेन ने स्वयम् यहाँ की वैभवशाली और बेहतरीन गुफा न. 1 का निर्माण कराया. हरिसेन के प्रधानमंत्री वराहदेव जो हरिसेन का प्रधानमंत्री था ने यहाँ प्रभावशाली केंद्रीय गुफा न. 16 का निर्माण कराया और राजा उपेन्द्रगुप्त ने जो की ऋषिका (प्राचीन अजंता क्षेत्र) पर शासन करता था, इसने यहाँ बहुत पैसा कर्च किया और लगभग 5 गुफ़ाओं का निर्माण कराया.
इसी समय, महत्वाकांक्षी भिक्षु बुद्धभद्र ने एक दर्जन गुफाओं के निर्माण का निरीक्षण किया और इसके इसके निर्माण को पूरा करने के लिए लगने वाले भव्य धन का इंतज़ाम अस्मक राज्य के प्रधानमंत्री द्वारा भी कराया. 468 ईस्वी में अस्मक राज्य से धमकी मिलने पर समस्या पैदा हो गयी और सैन्य उद्देश्यों के संसाधनों को जुटाने के लिए राजा की गुफा न. 1 को छोड़कर सभी गुफ़ाओं का निर्माण कार्य रोक दिया गया. 472 ईस्वी तक इस क्षेत्र में युद्ध भड़क उठा और यहाँ शाही गुफा के साथ सभी गुफ़ाओं पर कम बंद हो गया.
475 ईस्वी मे अस्मक और ऋषिका के बीच युद्ध समाप्त होने के बाद अस्मक यहाँ के नये जागीरदार बने. इसके पश्चात राजा यहाँ पर निर्माण कार्य में और तेजी आ गयी और यहाँ के स्थानीय राजा उपेन्द्रगुप्त का नाम कभी नहीं सुना गया. 477 ईस्वी तक अजंता में आख़िरी चरण के निर्माण में भित्तिचित्र बनाने का काम भी लगभग पूरा हो गया था.
सन् 477 ईस्वी में महान सम्राट हरिसेन की रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु हो गयी. संभवतः इसका कारण अस्मक लोगों द्वारा की गयी साजिश और और विद्रोह था फलस्वरूप इन गुफ़ाओं का निर्माण शीघ्र ही रुक गया. इसके पश्चात हरिसेन का अयोग्य पुत्र सर्वसेन तृतीय गद्दी पर बैठा जिसने ही यह साजिश असम्कों के साथ मिलकर रची थी. परंतु शीघ्र ही विशाल वकाटक सम्राज्य पर कब्जा करने की साजिशें और युद्ध शुरू हो गये और सर्वसेन की युद्ध में मृत्यु हो गयी और वकाटक राज्य अपने विद्रोहियों से कभी निपट नही पाया.
धीरे-धीरे इन गुफ़ाओं को इनके संरक्षकों के उपर ही छोड़ दिया गया. 478 ईस्वी तक यहाँ बौद्ध भिक्षु रहा करते थे. 480 ईस्वी के पश्चात यहाँ किसी भी प्रकार का काम नहीं हुआ. युद्ध के बाद वाकटक साम्राज्य बुरी तरह से बिखर गया था. बाद के किसी भी हिंदू राजाओं ने इन स्थलों के निर्माण व संरक्षण में रूचि नहीं दिखाई. 5वीं शताब्दी के अंत तक यहाँ कुछ ही भिक्षु रह गये थे. परंतु शीघ्र ही उन्होने यह स्थान पूरी तरह से अनाथ और निर्जन छोड़ दिया. अजंता अब अपने दूरदराज के खड्ड में पड़ा रहा और धीरे धीरे भुला दिया गया.