VVIP सुरक्षा के विभिन्न स्तर: SPG, NSG, Z+,Z, Y+, Y और X

भारत में प्रमुख व्यक्तियों की सुरक्षा एक बहु-स्तरीय और व्यवस्थित ढाँचा है, जो आंतरिक व बाहरी सुरक्षा चुनौतियों के अनुरूप तैयार किया गया है. VVIP सुरक्षा में विभिन्न श्रेणियां—एसपीजी, Z+, Z, Y+, Y और X—खतरे के स्तर के आकलन के आधार पर दी जाती हैं, जिसका मूल्यांकन इंटेलिजेंस ब्यूरो की रिपोर्ट के आधार पर गृह मंत्रालय करता है. ‘ब्लू बुक’ और ‘येलो बुक’ जैसे प्रोटोकॉल सुरक्षा मानकों को तय करते हैं.

एसपीजी प्रधानमंत्री व उनके परिवार को सर्वोच्च सुरक्षा देता है, जबकि अन्य श्रेणियों में बलों व संसाधनों का स्तर खतरे के अनुरूप घटता-बढ़ता है. हाल में NSG की वीआईपी सुरक्षा भूमिका घटाकर CAPFs (जैसे CRPF, ITBP, CISF) की भागीदारी बढ़ाई गई है. सुरक्षा काफिले में अत्याधुनिक हथियार, बख्तरबंद वाहन और उन्नत संचार तकनीक का उपयोग होता है, जिसमें स्वदेशीकरण पर जोर है. अधिकांश खर्च सरकार वहन करती है, जबकि कुछ मामलों में लाभार्थी भी योगदान दे सकते हैं.

पूर्व सुरक्षा विफलताओं ने इस प्रणाली को निरंतर सुधार और अनुकूलन की दिशा में प्रेरित किया है, जिससे यह ढाँचा समय के साथ अधिक सक्षम और विकसित होता गया है.

इस लेख में हम जानेंगे

VVIP सुरक्षा का महत्व

भारत में प्रमुख व्यक्तियों की सुरक्षा राष्ट्रीय सुरक्षा का एक अनिवार्य स्तंभ है, जिसका उद्देश्य निर्णयकर्ता, नीति निर्माता और अन्य महत्वपूर्ण सार्वजनिक व्यक्तित्वों को आंतरिक व बाहरी खतरों से सुरक्षित रखना है. यह व्यवस्था शासन की स्थिरता, देश की संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और सामाजिक सद्भाव को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.

भारत का आंतरिक सुरक्षा वातावरण सांप्रदायिक तनाव, सामाजिक अशांति, राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित विवाद और विभाजन से जुड़े ऐतिहासिक कारकों के कारण जटिल है. बाहरी मोर्चे पर, सीमा पार आतंकवाद, कट्टरपंथ, अवैध प्रवासन, हथियार और ड्रग्स की तस्करी, साइबर अपराध और समुद्री अवैध गतिविधियाँ गंभीर चुनौतियाँ प्रस्तुत करती हैं. पड़ोसी देशों में अस्थिरता भी सीधे तौर पर भारत की आंतरिक सुरक्षा को प्रभावित करती है.

प्रमुख व्यक्तियों को सुरक्षा देने का उद्देश्य उन्हें अपराधियों, आतंकवादियों और अन्य असामाजिक तत्वों से होने वाले संभावित खतरों से बचाना है. राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के न्यायाधीश, सशस्त्र बलों के प्रमुख, राज्यपाल, मुख्यमंत्री और कैबिनेट मंत्री जैसे पदों पर बैठे व्यक्ति स्वचालित रूप से सुरक्षा के पात्र होते हैं. यह केवल शारीरिक सुरक्षा तक सीमित नहीं, बल्कि खुफिया जानकारी एकत्र करने, खतरे का विश्लेषण करने और एजेंसियों के बीच समन्वय की व्यापक प्रक्रिया भी है, जो शासन की निरंतरता और राष्ट्रीय स्थिरता सुनिश्चित करती है.

सुरक्षा के विभिन्न श्रेणी

भारत में प्रमुख व्यक्तियों की VVIP सुरक्षा छह श्रेणियों—SPG, Z+, Z, Y+, Y और X—में विभाजित है, जो खतरे के स्तर के आकलन के बाद तय होती है. इस आकलन का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि प्रत्येक व्यक्ति को उसकी जोखिम-प्रोफाइल के अनुरूप सुरक्षा मिले. विभिन्न श्रेणियों में कर्मियों की संख्या तय होते हुए भी परिस्थितियों, खतरे के प्रकार और उपलब्ध संसाधनों के अनुसार इसमें लचीलापन रखा जाता है. यह प्रणाली स्थिर न होकर गतिशील है, जो बदलते हालात के अनुसार अनुकूलित होती है और “वन-साइज-फिट्स-ऑल” के बजाय व्यक्तिगत आवश्यकताओं के आधार पर सुरक्षा प्रदान करती है.

1. SPG (विशेष सुरक्षा समूह): सर्वोच्च सुरक्षा कवच

1984 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद इसके गठन की आवश्यकता महसूस हुई. इसे एसपीजी अधिनियम, 1988 के तहत स्थापित किया गया है. इससे पहले प्रधानमंत्री की सुरक्षा दिल्ली पुलिस और इंटेलिजेंस ब्यूरो देखता था. इसके 819 सदस्य होते है. यह अमेरिका के US Secret Service मॉडल पर आधारित है. 

इस प्रकार की सुरक्षा केवल सेवारत प्रधानमंत्री और उनके साथ रहने वाले निकटतम परिवार को ही प्रदान किया जाता है. 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद – पूर्व प्रधानमंत्रियों व परिवार को 10 साल तक इस सुरक्षा कवच का प्रावधान किया गया. लेकिन 2003 में वाजपेयी सरकार ने इस अवधि को घटाकर 1 साल कर दिया. मोदी सरकार में हुए नवीनतम संशोधन के बाद इसे केवल सेवारत प्रधानमंत्री तक सीमित कर दिया गया. 

SPG में 3,000 सदस्य है. इनकी प्रत्यक्ष भर्ती नहीं होती है. इनका चयन पुलिस व केंद्रीय सुरक्षा बलों से किया जाता है. इनका प्रशिक्षण विश्व-स्तरीय होती है. इसें फुर्ती, प्रतिक्रिया गति और हथियार संचालन में माहिर करने पर जोर दिया जाता है. यह बल पूर्णतः केंद्र सरकार के अधीन होता है.

इनके मुख्य हथियार ‘FN F2000 असॉल्ट राइफल, स्वचालित गन, Glock-17/19 पिस्तौल’ है. इन्हें विशेष सूटकेस दिया जाता है. इस सूटकेस में लेवल-3 बुलेटप्रूफ शील्ड और छिपा हुआ पिस्तौल होल्डर होता है. काउंटर असॉल्ट टीम (CAT) द्वारा FN-2000, P-90, FN-5 आदि का इस्तेमाल किया जाता है.

SPG Act, 1988 के महत्वपूर्ण कानूनी प्रावधान हैं:

  • धारा 4(2): केवल पीएम और परिवार को सुरक्षा.
  • धारा 6: भारत और विदेश दोनों जगह अधिकार क्षेत्र.
  • धारा 7: सदस्य हमेशा ड्यूटी पर माना जाएगा.
  • धारा 8(A): इस्तीफा नहीं दे सकता.
  • धारा 10(A/C): अन्य संस्था का सदस्य नहीं बन सकता, प्रेस/किताब में कार्यकाल की चर्चा नहीं कर सकता.
  • धारा 14: निदेशक के आदेशों का सभी को पालन करना होगा.
  • धारा 15: कानूनी कार्रवाई से छूट.

2. Z+ श्रेणी: उच्च-स्तरीय सुरक्षा

जेड प्लस सुरक्षा को भारत में “सबसे उच्च सुरक्षा कवर” और “सबसे मजबूत सिक्योरिटी कवर” माना जाता है. यह एक तीन-घेरे की व्यवस्था में दी जाती है, जिसमें पहले घेरे में कमांडो, और तीसरे घेरे में आईटीबीपी (ITBP) और सीआरपीएफ (CRPF) के जवान होते हैं. इस सुरक्षा घेरे में आधुनिक हथियार और बुलेटप्रूफ वाहन शामिल होते हैं.

इस श्रेणी में 55 कर्मियों का सुरक्षा कवर होता है. इनमें 10 से अधिक एनएसजी (NSG) कमांडो या सीआरपीएफ (CRPF) कमांडो और पुलिसकर्मी शामिल होते हैं. सुरक्षा में लगे कमांडो 24 घंटे हथियारों से लैस रहते हैं और मार्शल आर्ट तथा निहत्थे युद्ध में विशेषज्ञ होते हैं.

पहले यह सुरक्षा मुख्य रूप से एनएसजी (NSG) कमांडो द्वारा प्रदान की जाती थी, लेकिन अब यह सीआरपीएफ या अन्य केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (CAPFs) जैसे आईटीबीपी और सीआईएसएफ द्वारा दी जाती है. इसमें पायलट वाहन की सुविधा भी शामिल है. इसके तहत एडवांस्ड सिक्योरिटी लायसन (ASL) की सुविधा शामिल हैं.

जेड प्लस सुरक्षा के प्रमुख प्राप्तकर्ताओं में शामिल हैं: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत, अन्य महत्वपूर्ण हस्तियाँ जैसे केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री, और सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्ट के जज इत्यादि. 

उद्योगपति मुकेश अंबानी और उनका परिवार भी इस सुरक्षा को प्राप्त करता है. इसका खर्च वे स्वयं वहन करते हैं. 2024 तक लगभग 51 लोग इस सुरक्षा को प्राप्त कर रहे हैं. इनमें अभिनेता सलमान खान और बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी भी शामिल हैं.

3. Z श्रेणी की सुरक्षा

जेड प्लस के बाद जेड श्रेणी को सबसे सुरक्षित श्रेणी माना जाता है. इसमें 22 सुरक्षा कर्मी होते हैं, जिनमें 4-6 एनएसजी कमांडो (या अब सीएपीएफ कमांडो) और पुलिसकर्मी शामिल होते हैं. इस श्रेणी में 3 से अधिक पर्सनल सिक्योरिटी ऑफिसर (PSO) होते हैं जो 9 घंटे से अधिक की शिफ्ट में काम करते हैं .  

जेड श्रेणी की VVIP सुरक्षा दिल्ली पुलिस, आईटीबीपी, या सीआरपीएफ के जवानों द्वारा दी जाती है. कुछ स्थानीय पुलिस सुरक्षाकर्मी भी इस दल का हिस्सा होते हैं. बेहतर सुरक्षा के लिए एक एस्कॉर्ट कार भी उपलब्ध कराई जाती है. काफिले में 5 से अधिक वाहन शामिल होते हैं, जिनमें कम से कम 1 बुलेटप्रूफ वाहन होता है.  

जेड श्रेणी की सुरक्षा मिनिस्टर्स, गवर्नर्स, जजेस, राजनेता और अभिनेताओं को प्रदान की जाती है. बाबा रामदेव और आमिर खान कुछ ऐसे उदाहरण हैं, जिन्हें पहले जेड सिक्योरिटी कवर मिला था. तेजस्वी यादव को भी अब जेड सुरक्षा दी जाएगी. 2024 तक 68 लोगों को जेड श्रेणी की सुरक्षा प्राप्त है.

4. Y+ और Y की सुरक्षा श्रेणियाँ

  • Y+ श्रेणी: जेड सिक्योरिटी के बाद वाई प्लस सुरक्षा का नाम आता है . इस श्रेणी में 11 सुरक्षाकर्मी शामिल होते हैं, जिनमें 2-4 कमांडो और पुलिसकर्मी शामिल होते हैं . इसमें 1 या 2 कमांडो और 2 पर्सनल सिक्योरिटी ऑफिसर (PSO) शामिल होते हैं. महाराष्ट्र सरकार द्वारा शाहरुख खान को वाई प्लस सुरक्षा दी गई है. 2024 तक 86 लोगों को वाई प्लस श्रेणी की सुरक्षा प्राप्त है.
  • Y श्रेणी: इस श्रेणी में 8 कर्मियों का सुरक्षा दल होता है, जिसमें 1 या 2 कमांडो और पुलिसकर्मी शामिल होते हैं. पप्पू यादव को वाई श्रेणी की सुरक्षा मिली है. 2024 तक 79 लोगों को वाई श्रेणी की सुरक्षा प्राप्त है.

सुरक्षा कवर का निर्धारण

भारत में महत्वपूर्ण व्यक्तियों की सुरक्षा का निर्धारण एक सोची-समझी प्रक्रिया के माध्यम से किया जाता है. इसका मुख्य आधार उस व्यक्ति पर खतरे का आकलन होता है. यह आकलन खुफिया ब्यूरो (IB) जैसी विभिन्न एजेंसियों से प्राप्त खुफिया जानकारी पर आधारित होता है.

सुरक्षा कवर का निर्धारण करने में निम्नलिखित प्रमुख चरण और मानदंड शामिल हैं:

  • खतरे का आकलन: सुरक्षा की श्रेणी खतरे के स्तर से तय होती है. खुफिया एजेंसियां, विभिन्न स्रोतों से मिली जानकारी के आधार पर, किसी व्यक्ति के जीवन या चोट के जोखिम का एक “व्यापक व्यक्तिपरक मूल्यांकन” करती हैं. यह मूल्यांकन केवल कच्चे डेटा पर नहीं, बल्कि खुफिया विश्लेषण और संभावित परिदृश्यों की व्याख्या पर आधारित होता है, जिससे निर्णय प्रक्रिया में लचीलापन आता है.
  • गृह मंत्रालय की भूमिका: सुरक्षा कवर देने का अंतिम निर्णय गृह मंत्रालय (MHA) लेता है. यदि बाद में यह पाया जाता है कि खतरा टल गया है या कम हो गया है, तो सुरक्षा हटाई भी जा सकती है.
  • प्रोटोकॉल पुस्तकें: सुरक्षा मानकों को स्थापित करने के लिए दो प्रमुख प्रोटोकॉल पुस्तकों का उपयोग किया जाता है:
    • ब्लू बुक: यह भारत के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और विदेशी राष्ट्राध्यक्षों जैसे अति विशिष्ट व्यक्तियों (VVIPs) की सुरक्षा के लिए विस्तृत दिशानिर्देश प्रदान करती है.
    • येलो बुक: इसमें राजनेताओं और अन्य वीआईपी के लिए सुरक्षा व्यवस्था को परिभाषित किया गया है, जिन्हें सरकार द्वारा सुरक्षा दी जाती है.
  • स्वचालित पात्रता: कुछ व्यक्ति अपने आधिकारिक कर्तव्यों के कारण स्वतः ही सुरक्षा कवर के पात्र होते हैं. हालांकि, सांसदों जैसे व्यक्तियों को सुरक्षा व्यक्तिगत खतरे की आशंका के आधार पर दी जाती है. राज्य सरकारें भी सांसदों को सुरक्षा प्रदान करती हैं.

सुरक्षा एजेंसियों की भूमिका व समन्वय

भारत की वीआईपी सुरक्षा व्यवस्था कई केंद्रीय और राज्य एजेंसियों के बीच समन्वय पर आधारित है. ये एजेंसियां खतरे का आकलन करने, सुरक्षा प्रदान करने और समन्वय स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं.

प्रमुख भूमिकाएँ

  • राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG): पहले, एनएसजी कमांडो जेड प्लस (Z+) सुरक्षा प्रदान करते थे. हालांकि, हाल के फैसले के अनुसार, उन्हें अब इस जिम्मेदारी से हटा दिया गया है ताकि वे अपने मुख्य कार्य, आतंकवाद-रोधी अभियानों, पर ध्यान केंद्रित कर सकें. इस कदम से लगभग 450 कमांडो इस कार्य के लिए मुक्त हो गए हैं.
  • केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (CAPFs): सीआरपीएफ (CRPF), आईटीबीपी (ITBP), और सीआईएसएफ (CISF) अब वीआईपी सुरक्षा की जिम्मेदारी संभालते हैं. सीआरपीएफ कमांडो जेड प्लस श्रेणी में 24×7 सुरक्षा प्रदान करते हैं. आईटीबीपी, सीआरपीएफ और दिल्ली पुलिस के जवान जेड सुरक्षा में शामिल होते हैं.
  • राज्य पुलिस और स्थानीय प्रशासन: वाई (Y) और एक्स (X) श्रेणियों में केवल पुलिस बल (PSO) सुरक्षा प्रदान करते हैं. इसके अलावा, जिस भी राज्य में वीआईपी जाते हैं, उस राज्य की पुलिस उनके सुरक्षा दल को पूरा करने के लिए पुलिसकर्मी मुहैया कराती है, जिससे स्थानीय समन्वय सुनिश्चित होता है.
  • खुफिया एजेंसियां (IB, RAW): इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) आंतरिक मामलों पर नजर रखता है, जबकि रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW) भारत की बाहरी खुफिया एजेंसी है. ये दोनों एजेंसियां खतरे के आकलन के लिए महत्वपूर्ण खुफिया जानकारी एकत्र करती हैं, जिसके आधार पर सुरक्षा कवर का निर्धारण होता है.

अन्य एजेंसियों का योगदान

इसके अलावा, कई अन्य जांच एजेंसियां भी अप्रत्यक्ष रूप से सुरक्षा परिदृश्य में योगदान करती हैं, जैसे:

  • एनआईए (NIA): आतंकवाद से संबंधित मामलों की जांच करती है.
  • एनसीबी (NCB): अवैध मादक पदार्थों की तस्करी से जुड़े मामलों से निपटती है.
  • सीबीआई (CBI): राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े जटिल आपराधिक मामलों की जांच करती है.
  • डीआईए (DIA) और एनटीआरओ (NTRO): रक्षा और खुफिया जानकारी एकत्र करने में समन्वय करती हैं.

उपकरण और वाहन

वीआईपी सुरक्षा काफिले में अत्याधुनिक हथियारों और बख्तरबंद वाहनों का उपयोग किया जाता है. यह सुरक्षाकर्मियों को खतरों से प्रभावी ढंग से निपटने में सहायता करता है.

हथियार और उपकरण

  • एसपीजी जवान: ये FNF-2000 असॉल्ट राइफल, स्वचालित बंदूकें और विशेष पिस्तौल से लैस होते हैं.
  • एनएसजी कमांडो: पहले ये Heckler & Koch MP5 सब-मशीन गन का उपयोग करते थे और मार्शल आर्ट में निपुण होते थे.
  • स्वदेशी हथियार: 5.56 x 30 एमएम जेवीपीसी (JVPC) और त्रिका 74U (Trika 74U) जैसे हल्के और कॉम्पैक्ट हथियार शहरी आतंकवाद और काउंटर-इंसर्जेंसी ऑपरेशनों के लिए उपयोगी हैं.
  • विशेष उपकरण: एसपीजी कमांडो एक विशेष पोर्टेबल बुलेटप्रूफ शील्ड (काले सूटकेस के रूप में) भी रखते हैं, जो एनआईजी (NIG) लेवल 3 की सुरक्षा प्रदान करता है और इसमें एक गुप्त पिस्तौल होती है.

वाहन और उनकी क्षमताएँ

  • काफिले के वाहन: प्रधानमंत्री के काफिले में एक दर्जन वाहन होते हैं, जिनमें BMW 7 Series सेडान, BMW X3, Mercedes-Benz और Tata Safari जैमर शामिल हैं. इन वाहनों को हर छह साल में अपग्रेड किया जाता है.
  • Mercedes-Maybach S650 Guard: यह प्रधानमंत्री का नवीनतम वाहन है, जो VR10 स्तर की सुरक्षा प्रदान करता है. यह 15 किलोग्राम तक के टीएनटी विस्फोटक का सामना कर सकता है.
  • अन्य महत्वपूर्ण वाहन: सुरक्षा काफिले में Kalyani M4, Mahindra MPV-I, Mahindra ASLV, Tata Merlin, Renault Sherpa, Tata WhAP और Mahindra Marksman जैसे विभिन्न बख्तरबंद वाहन शामिल होते हैं. इन वाहनों में आईईडी, माइन विस्फोटकों और बैलिस्टिक हमलों से सुरक्षा की क्षमता होती है.

संचार और निगरानी प्रणालियाँ

सुरक्षा काफिले में लगे कमांडो आधुनिक संचार उपकरणों से लैस होते हैं ताकि वे एक-दूसरे से और नियंत्रण कक्ष से लगातार संपर्क में रह सकें, जिससे खतरे के प्रति त्वरित प्रतिक्रिया सुनिश्चित हो सके.

लागत और वित्तपोषण

वीआईपी सुरक्षा एक महंगी व्यवस्था है, जिसका खर्च आमतौर पर सरकार उठाती है. हालांकि, कुछ विशेष मामलों में, लाभार्थी स्वयं भी इसका खर्च वहन करते हैं.

खर्च वहन करने वाले पक्ष

  • सरकार: वीआईपी सुरक्षा का खर्च मुख्य रूप से सरकार उठाती है. सुरक्षा पाने वाला व्यक्ति जिस राज्य में रहता है, आमतौर पर वही राज्य सरकार इसका खर्च वहन करती है.
  • व्यक्तिगत लाभार्थी: कुछ लोग, जैसे कि बिजनेसमैन मुकेश अंबानी, अपनी सुरक्षा का खर्च स्वयं उठाते हैं. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार, मुकेश अंबानी और उनके परिवार को दी जाने वाली Z+ सुरक्षा का पूरा खर्च उनके द्वारा वहन किया जाता है.

अनुमानित लागत

  • Z+ सुरक्षा: इस पर प्रति माह ₹33 लाख से ₹45 लाख तक का खर्च आता है.
  • Z सुरक्षा: इस पर प्रति माह लगभग ₹16 लाख का खर्च आता है.
  • एसपीजी (SPG): वित्तीय वर्ष 2020-21 में एसपीजी के लिए ₹592 करोड़ का बजट था.

पारदर्शिता में चुनौतियाँ

सुरक्षा कवर पर होने वाले खर्च का सटीक आंकड़ा बताना मुश्किल है, क्योंकि इसमें कई सारी एजेंसियां (केंद्र और राज्य दोनों) शामिल होती हैं. यह बहु-एजेंसी समन्वय की जटिलता के कारण होता है, जिससे लागत को ट्रैक करना और आवंटित करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है.

चुनौतियाँ और महत्वपूर्ण चूक

भारत की वीआईपी सुरक्षा प्रणाली एक सीखने वाली प्रणाली है जो ऐतिहासिक विफलताओं और बदलते खतरों के जवाब में लगातार विकसित होती रहती है. यह प्रणाली विभिन्न चुनौतियों का सामना करती है.

सुरक्षा विफलताएँ

भारत में कुछ महत्वपूर्ण सुरक्षा विफलताओं ने नीतिगत बदलावों को प्रेरित किया है:

  • इंदिरा गांधी की हत्या (1984): पूर्व प्रधानमंत्री की उनके ही सुरक्षाकर्मियों द्वारा हत्या के बाद विशेष सुरक्षा समूह (SPG) का गठन किया गया था.
  • राजीव गांधी की हत्या (1991): इस घटना के बाद SPG अधिनियम में संशोधन किया गया ताकि पूर्व प्रधानमंत्रियों को भी सुरक्षा प्रदान की जा सके.
  • अन्य घटनाएँ: राजबीर सिंह (एनकाउंटर स्पेशलिस्ट) और प्रमोद महाजन (पूर्व केंद्रीय मंत्री) जैसे व्यक्तियों की हत्याओं ने सुरक्षा की जटिलताओं को उजागर किया.

खतरों का विकास

भारत को कई बहुआयामी खतरों का सामना करना पड़ता है:

  • बाहरी खतरे: सीमा पार आतंकवाद, कट्टरता, अवैध आप्रवासन, और पड़ोसी देशों (जैसे पाकिस्तान और अफगानिस्तान) में अस्थिरता.
  • आंतरिक खतरे: सांप्रदायिक हिंसा, सामाजिक अशांति और साइबर स्पेस में बढ़ते खतरे (जैसे डार्क नेट).

खतरे लगातार बदल रहे हैं. इसे देखते हुए वीआईपी सुरक्षा को एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है. इसमें खुफिया जानकारी, कानून प्रवर्तन और सैन्य क्षमताओं का समन्वय शामिल होता है.

नीतिगत बदलाव और अनुकूलन

  • SPG अधिनियम में संशोधन: पूर्व प्रधानमंत्रियों और उनके परिवारों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए समय-समय पर अधिनियम में संशोधन किए गए हैं.
  • NSG की भूमिका में बदलाव: हाल ही में, NSG (राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड) को वीआईपी सुरक्षा से हटाकर उनके मुख्य आतंकवाद-रोधी अभियानों पर केंद्रित किया गया है. यह संसाधनों के कुशल प्रबंधन और विशेषज्ञता पर ध्यान केंद्रित करने की एक रणनीति है.

संसाधन प्रबंधन

वीआईपी सुरक्षा एक महंगी व्यवस्था है, और लागत का सटीक आकलन करना मुश्किल है क्योंकि इसमें कई एजेंसियां शामिल होती हैं. सुरक्षा कर्मियों की तैनाती और प्रशिक्षण को खतरों के बदलते स्वरूप के अनुसार अनुकूलित करना भी एक सतत चुनौती है.

चलते-चलते (Conclusion)

भारत में महत्वपूर्ण व्यक्तियों की सुरक्षा एक बहु-स्तरीय और जटिल व्यवस्था है. हाल ही में NSG को वीआईपी सुरक्षा से हटाकर आतंकवाद-रोधी अभियानों पर केंद्रित किया गया है. इससे CRPF और अन्य केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों की भूमिका बढ़ी है. 

अतीत में हुई सुरक्षा विफलताओं ने इस प्रणाली में लगातार सुधार को प्रेरित किया है. भविष्य में इसे और सशक्त बनाने के लिए उन्नत प्रशिक्षण, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, डेटा एनालिटिक्स और एजेंसियों के बीच बेहतर समन्वय की आवश्यकता है, साथ ही लागत पारदर्शिता और सार्वजनिक-निजी भागीदारी जैसे विकल्पों पर भी विचार किया जा रहा है.

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