भारत के संविधान में उच्च न्यायालय (हाई कोर्ट) का प्रावधान भी किया गया है. भारतीय न्यायिक व्यवस्था में सर्वोच्च अदालत के बाद इन्हीं अदालतों का वरीयता दिया जाता है. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 214 से 232 तक उच्च न्यायालयों से संबंधित प्रावधान हैं. संक्षेप में, ये अनुच्छेद भारतीय न्यायिक प्रणाली में उच्च न्यायालयों की भूमिका, संरचना, अधिकार क्षेत्र, न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण, और उनके प्रशासन को स्पष्ट करते हैं.
इन अनुच्छेदों की मुख्य विशेषताएं संक्षेप में इस प्रकार हैं:
- अनुच्छेद 214: प्रत्येक राज्य के लिए एक उच्च न्यायालय होगा.
- अनुच्छेद 215: उच्च न्यायालय अभिलेख न्यायालय (कोर्ट ऑफ रिकॉर्ड) होंगे, यानी उनके पास अपनी अवमानना के लिए दंडित करने की शक्ति सहित सभी न्यायालयों के अधिकार होंगे.
- अनुच्छेद 216: उच्च न्यायालयों का गठन, जिसमें मुख्य न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीशों की संख्या शामिल है, का प्रावधान करता है.
- अनुच्छेद 217: उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति, योग्यता, और पद की शर्तों से संबंधित है.
- अनुच्छेद 218: उच्चतम न्यायालय से संबंधित कुछ प्रावधानों का उच्च न्यायालयों को लागू होना.
- अनुच्छेद 219: उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों द्वारा ली जाने वाली शपथ या प्रतिज्ञान का प्रावधान.
- अनुच्छेद 220: स्थायी न्यायाधीश के रूप में कार्य करने के बाद वकालत पर प्रतिबंध.
- अनुच्छेद 221: उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन आदि का प्रावधान.
- अनुच्छेद 222: एक उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों का स्थानांतरण.
- अनुच्छेद 223: कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति का प्रावधान.
- अनुच्छेद 224: अतिरिक्त और कार्यकारी न्यायाधीशों की नियुक्ति का प्रावधान.
- अनुच्छेद 224A: सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की उच्च न्यायालयों में बैठने के लिए नियुक्ति का प्रावधान.
- अनुच्छेद 225: मौजूदा उच्च न्यायालयों के क्षेत्राधिकार को बनाए रखने का प्रावधान.
- अनुच्छेद 226: उच्च न्यायालयों को मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन और अन्य उद्देश्यों के लिए रिट (जैसे बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, उत्प्रेषण और अधिकार पृच्छा) जारी करने की शक्ति प्रदान करता है.
- अनुच्छेद 227: उच्च न्यायालयों को अपने अधीनस्थ सभी न्यायालयों और न्यायाधिकरणों पर अधीक्षण की शक्ति प्रदान करता है.
- अनुच्छेद 228: कुछ मामलों को उच्च न्यायालय में स्थानांतरित करने से संबंधित है यदि अधीनस्थ न्यायालय में लंबित मामले में कानून का एक महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल है.
- अनुच्छेद 229: उच्च न्यायालयों के अधिकारियों और सेवकों की नियुक्ति तथा उनके खर्चों से संबंधित है.
- अनुच्छेद 230: उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार का संघ राज्य क्षेत्रों तक विस्तार करने की संसद की शक्ति.
- अनुच्छेद 231: दो या अधिक राज्यों के लिए एक ही उच्च न्यायालय की स्थापना का प्रावधान.
- अनुच्छेद 232: (निरस्त) यह अनुच्छेद संविधान के सातवें संशोधन अधिनियम, 1956 द्वारा निरस्त कर दिया गया है. यह पहले भाग B राज्यों के उच्च न्यायालयों से संबंधित था.
अनुच्छेद 226A और 228A को 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा जोड़ा गया. बाद में 43वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1977 द्वारा निरस्त कर दिए गए.
आगे उच्च न्यायालय के बारे मे विस्तार से वर्णन किया जा रहा है:
उच्च न्यायालय का गठन (Formation of High Courts in Hindi)
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 214 में ‘प्रत्येक राज्य के लिए एक उच्च न्यायालय के स्थापना का प्रावधान किया गया है. परंतु, संसद विधि बनाकर दो या दो से अधिक राज्यों अथवा किसी संघ शासित प्रदेशों के लिए एक ही उच्च न्यायालय स्थापित कर सकता है.
उच्च न्यायालय राज्य के न्यायिक-व्यवस्था के शीर्ष पर स्थित होता है, जो एक अभिलेख न्यायालय भी हैं. इस अदालत के अवमानना पर किसी को दंडित किया जा सकता है. लेकिन, अदालत के फैसलों पर चर्चा की जा सकती है.
संरचना
उच्च न्यायालयों (High Court) का गठन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 214, अध्याय 5, भाग 6 के अंतर्गत किया गया है. प्रत्येक उच्च न्यायालय का गठन एक मुख्य न्यायाधीश तथा अन्य न्यायाधीशों से मिलकर किया जाता है. इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति के अनुच्छेद 217 के द्वारा होती है. भिन्न-भिन्न उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या का वर्णन तय नहीं किया गया है. इसलिए यह अलग-अलग होती है. संख्या तय करने का अधिकार राष्ट्रपति के विवेक पर छोड़ दिया गया है.
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 216 के तहत प्रत्येक उच्च न्यायालय का गठन एक मुख्य न्यायाधीश तथा एक अन्य न्यायाधीश से मिलकर होता है. अन्य न्यायाधीशों की संख्या समय-समय पर राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित किए जाते हैं.
उच्च न्यायालय एक स्वतंत्र न्यायिक प्रणाली के रूप में, राज्य के विधायकों और अधिकारियों के संस्थाओं से स्वतंत्र हैं.
नियुक्ति, स्थानांतरण और योग्यताएं
नियुक्ति
उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति भारत के मुख्य न्यायाधीश तथा उस राज्य के राज्यपाल से परामर्श लेकर भारत के राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 217 के द्वारा किया जाता है. वहीं, राष्ट्रपति द्वारा अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति में राज्यपाल और भारत के मुख्य न्यायाधीश के साथ ही उस अदालत के मुख्य न्यायाधीश का का सलाह भी लिया जाता है.
राष्ट्रपति आवश्यकता अनुसार किसी भी हाई कोर्ट के न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि कर सकता है अथवा अतिरिक्त न्यायाधीशों की भी नियुक्ति कर सकता है. राष्ट्रपति उच्च न्यायालय के किसी अवकाश प्राप्त न्यायाधीशों को भी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कार्य करने का अनुरोध कर सकता है.
नोट: वर्तमान में उच्च अदालत मे नियुक्ति कॉलेजियम प्रणाली के माध्यम से किया जा रहा हैं.
स्थानांतरण
भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श कर राष्ट्रपति अनुच्छेद 222 के तहत उच्च न्यायालय के किसी भी न्यायाधीश का स्थानांतरण किसी दूसरे उच्च न्यायालय में कर सकता है.
योग्यताएं
हाई कोर्ट की न्यायाधीशों के लिए अनिवार्य योग्यता होनी चाहिए :-
- वह भारत का नागरिक हो.
- भारत के राज्य क्षेत्र में कम से कम 10 वर्ष तक न्यायाधीश के पद पर कार्य कर चुका हो .
- अथवा किसी उच्च न्यायालय में या एक से अधिक उच्च न्यायालयों में लगातार 10 वर्ष तक अधिवक्ता रहा हो.
- उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के लिए न्यूनतम आयु का कोई प्रावधान नहीं है. अनुच्छेद 217(3) के अंतर्गत. राष्ट्रपति आयु का निर्धारण भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श द्वारा तय करते है.
वेतन व भत्ता
हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश तथा अन्य न्यायाधीशों का वेतन व भत्ते उस राज्य के संचित निधि से दिए जाते है, जिस राज्य में वह कार्यरत हैं.
वर्तमान में उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की वेतन ₹250000 प्रतिमाह तथा उच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों का वेतन ₹225000 प्रतिमाह प्राप्त होता है. इससे पहले उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का वेतन ₹90000 प्रतिमाह तथा अन्य न्यायाधीशों का वेतन ₹80000 प्रतिमा प्राप्त होता था. न्यायाधीशों को सरकार के द्वारा सरकारी आवास, कार, चिकित्सीय सुविधा और सफाईकर्मी व अन्य भत्ते भी दिया जाते हैं. अवकाश ग्रहण करने के बाद उन्हें अपने वेतन का आधा राशि अन्य निर्धारित भत्तों के साथ दिया जाता है.
कार्यकाल
- उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का अवकाश ग्रहण करने की अधिकतम आयु सीमा 62 वर्ष है.
- किसी न्यायाधीश को उसे कार्यकाल से पूर्व कदाचार और क्षमता के आधार पर उसी रीति से हटाया जा सकता है जिस प्रकार से उच्चम न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाया जाता है अर्थात महाभियोग प्रक्रिया द्वारा.
- अगर कोई न्यायाधीश अपने समय से पहले (कार्यकाल) त्यागपत्र देना चाहता है तो राष्ट्रपति को संबोधित कर अपना त्यागपत्र सौंप सकता है.
शक्तियां व क्षेत्राधिकार
किसी राज्य के उच्च न्यायालय कि क्षेत्राधिकार उस राज्य के विभागीय सीमा तक होती है. लेकिन यदि संसद दो या उससे अधिक राज्यों के लिए एक ही उच्च न्यायालय के गठन करती है तो उन सभी राज्यों की विभागीय सीमाओं तक उसका अधिकार क्षेत्र होता है. इसके अतिरिक्त संसद किसी उच्च न्यायालय की अधिकार क्षेत्र का विस्तार किसी संघ शासित प्रदेश पर भी कर सकती है.
हाई कोर्ट के निम्न अधिकार क्षेत्र प्राप्त है.
- प्रारंभिक क्षेत्राधिकार
- अपीलीय क्षेत्राधिकार
- रिट संबंधी क्षेत्राधिकार
- अंतरण संबंधित क्षेत्राधिकार
- प्रशासकीय क्षेत्राधिकार
प्रारंभिक क्षेत्राधिकार
- उच्च न्यायालय को मौलिक अधिकारों को परिवर्तित कराने, सांसद तथा राज्य विधानसभा के चुनाव तथा राजस्व संबंधित मामलों में आरंभिक शक्ति प्राप्त होता है.
- संविधान के अनुच्छेद 226 के अंतर्गत उच्च न्यायालयों को रिट जारी करने की विस्तृत शक्ति प्राप्त है.
- उच्चतम न्यायालय को रिट जारी करने की शक्ति केवल मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की दशा में ही प्राप्त है, जबकि उच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की स्थिति में तो रिट जारी कर ही सकता है, इसके अतिरिक्त सामान्य कानूनी अधिकारों के मामले में भी रिट जारी कर सकता है.
अपीलीय क्षेत्राधिकार
उच्च न्यायालय को अपनी अधीनस्थ न्यायालयों के निर्णय के विरुद्ध दीवानी तथा फौजदारी दोनों प्रकार के मामलों में अपील सुनने की शक्ति प्राप्त है.
- दीवानी मामलों में यदि अधीनस्थ न्यायालयों को ऐसा लगता है कि मामले के निपटारे के लिए किसी कानून की वैधता की जांच करने और उसकी व्याख्या करने की जरूरत है, तो ऐसे मामलों को वे उच्च न्यायालय में भेजने का कार्य करते हैं.
- फौजदारी मामलों में यदि किसी सत्र न्यायाधीश अथवा अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने 7 वर्ष से अधिक की कैद की सजा सुनाई है, तो उसके निर्णय के विरुद्ध उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है.
यदि किसी मामले में जिले के सत्र न्यायाधीश ने किसी अभियुक्त को फांसी की सजा दी हो तो उच्च न्यायालय द्वारा इसका अनुमोदन कार्य करना आवश्यक होता है.
रिट संबंधी शक्तियां
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के अनुसार उच्च न्यायालयों को भी रिट जारी करने का शक्ति है. इसे मौलिक अधिकार या और किसी भी सामान्य कानूनी अधिकार के प्रवर्तन के लिए जारी किया जा सकती है.
रिट क्या हैं?
रिट न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश या निर्देश होते हैं, जो विभिन्न लोगों या संस्थानों को निर्देशित करते हैं. इसके निम्नलिखित प्रकार है:
- बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus): किसी व्यक्ति को अवैध रूप से हिरासत में रखने पर इसे जारी किया जाता है. इससे किसी व्यक्ति को हिरासत में लिए जाने के कारणों को न्यायालय के सामने प्रकट होता है.
- परमादेश (Mandamus): यह रिट सार्वजनिक कर्तव्य को पूरा करने के लिए किसी सार्वजनिक अधिकारी को निर्देशित करती है.
- निषेध (Prohibition): यह रिट किसी निचली अदालत या न्यायाधिकरण को अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर कार्य करने से रोकने के लिए जारी की जाती है.
- अधिकार पृच्छा (Quo Warranto): यह रिट किसी सार्वजनिक कार्यालय पर अवैध रूप से अधिकार करने वाले व्यक्ति को हटाने के लिए जारी की जाती है.
- उत्प्रेषण (Certiorari): यह रिट निचली अदालत को निर्देश देने के लिए जारी की जाती है कि वह अपना फैसला उच्च न्यायालय को भेजें, या अपने फैसले को रद्द कर दें.
अंतरण संबंधित क्षेत्राधिकार
इन्हें अपने अधीनस्थ न्यायालयों में लंबित किसी मामले को अपने पास मंगा सकता है, यदि उसे ऐसा लगे कि उसमें संविधान की व्याख्या का प्रश्न निहित है. उच्च न्यायालय को अपने अधीनस्थ न्यायालयों के निरीक्षण तथा नियंत्रण की शक्ति प्राप्त है. ये अपने अधीनस्थ न्यायालयों के लिए समय-समय पर नियम बना सकते है तथा उन्हें निर्देश दे सकते है.
राज्यपाल द्वारा जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति उच्च न्यायालय के परामर्श पर ही की जाती है.
प्रशासकीय क्षेत्राधिकार
हाई कोर्टस को अपने अधीनस्थ न्यायालयों में नियुक्ति, पदवानती, पदोन्नति तथा छुट्टियां के संबंध में नियम बनाने का अधिकार है.
अन्य अधिकार
सर्वोच्च अदालत की भांति इन्हें भी न्यायिक पुनरावलोकन का शक्ति प्राप्त है. हाई कोर्ट अपने अधीनस्थ निचले अदालतों के संचालन या कार्यों का पर्यवेक्षण भी कर सकता है.
सर्वोच्च न्यायायाल के साथ ही उच्च न्यायालय को भी अभिलेख न्यायालय और न्यायिक अवमानना संबंधी मामलों मे दंड दे सकता है. अवमानना के मामले की सुनवाई न्यायिक अवहेलना अधिनियम, 1971 के तहत की जाती है. न्यायिक अवमानना का संविधान में कोई उल्लेख नहीं है.
न्यायाधीशों पर प्रतिबंध
जो न्यायाधीश जिस हाई कोर्ट में स्थाई न्यायाधीश के रूप में कार्य किया है वह उसी न्यायालय में वकालत नहीं कर सकता. किंतु वह किसी दूसरे उच्च न्यायालय में अथवा उच्चतम न्यायालय में वकालत कर सकता है.
भारत में उच्च न्यायालयों (High Courts) की संख्या
वर्तमान में भारत में इस प्रकार के अदालतों की संख्या 25 है. भारत का पहला उच्च न्यायालय 1862 ई. में मुंबई में स्थापित किया गया था. देश का 25वां और सबसे नया उच्च न्यायालय आंध्र प्रदेश के अमरावती में 1 जनवरी, 2019 ई. को तेलंगाना हाई कोर्ट के रूप में स्थापित किया गया.
पंजाब और हरियाणा दोनों राज्यों के लिए एक ही उच्च न्यायालय है जो चंडीगढ़ उच्च न्यायालय क्षेत्र अधिकार के अंतर्गत आता है. इसी प्रकार, नागालैंड, मेघालय, मिजोरम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, असम और त्रिपुरा के लिए भी एक ही उच्च न्यायालय है; ये राज्य गुवाहाटी उच्च न्यायालय क्षेत्र अधिकार के अंतर्गत आते है.
केंद्र शासित राज्य दिल्ली का अपना एक अलग उच्च न्यायालय है. वहीं, केंद्र शासित राज्य पुडुचेरी को मद्रास उच्च न्यायालय, चेन्नई और गोवा, दमन और दीव, और दादरा और नगर हवेली को बॉम्बे उच्च न्यायालय के अपीलीय क्षेत्राधिकार के अंतर्गत रखा गया है.
उच्च न्यायालयों के नाम और क्षेत्राधिकार

क्रम संख्या | उच्च न्यायालय का नाम | स्थापना का वर्ष | क्षेत्राधिकार (राज्य/केंद्र शासित प्रदेश) | मुख्य पीठ (प्रधान कार्यालय) | खंडपीठ (बेंच) | स्वीकृत न्यायाधीशों की संख्या |
1 | बॉम्बे उच्च न्यायालय | 1862 | गोवा, दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव, महाराष्ट्र | मुंबई | औरंगाबाद, नागपुर, पणजी | 94 |
2 | कलकत्ता उच्च न्यायालय | 1862 | अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, पश्चिम बंगाल | कोलकाता | पोर्ट ब्लेयर, जलपाईगुड़ी | 72 |
3 | मद्रास उच्च न्यायालय | 1862 | पुडुचेरी, तमिलनाडु | चेन्नई | मदुरै | 75 |
4 | इलाहाबाद उच्च न्यायालय | 1866 | उत्तर प्रदेश | प्रयागराज | लखनऊ | 160 |
5 | कर्नाटक उच्च न्यायालय | 1884 | कर्नाटक | बेंगलुरु | धारवाड़, कलबुर्गी | 62 |
6 | पटना उच्च न्यायालय | 1916 | बिहार | पटना | – | 53 |
7 | जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख उच्च न्यायालय | 1928 | जम्मू और कश्मीर, लद्दाख | श्रीनगर/जम्मू | – | 17 |
8 | मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय | 1936 | मध्य प्रदेश | जबलपुर | ग्वालियर, इंदौर | 53 |
9 | गुवाहाटी उच्च न्यायालय | 1948 | अरुणाचल प्रदेश, असम, मिजोरम, नागालैंड | गुवाहाटी | आइजोल, ईटानगर, कोहिमा | 30 |
10 | ओडिशा उच्च न्यायालय | 1948 | ओडिशा | कटक | – | 33 |
11 | राजस्थान उच्च न्यायालय | 1949 | राजस्थान | जोधपुर | जयपुर | 50 |
12 | केरल उच्च न्यायालय | 1956 | केरल, लक्षद्वीप | कोच्चि | – | 47 |
13 | गुजरात उच्च न्यायालय | 1960 | गुजरात | अहमदाबाद | – | 52 |
14 | दिल्ली उच्च न्यायालय | 1966 | दिल्ली | नई दिल्ली | – | 60 |
15 | हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय | 1971 | हिमाचल प्रदेश | शिमला | – | 17 |
16 | पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय | 1975 | चंडीगढ़, हरियाणा, पंजाब | चंडीगढ़ | – | 85 |
17 | सिक्किम उच्च न्यायालय | 1975 | सिक्किम | गंगटोक | – | 3 |
18 | छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय | 2000 | छत्तीसगढ़ | बिलासपुर | – | 22 |
19 | झारखंड उच्च न्यायालय | 2000 | झारखंड | रांची | – | 25 |
20 | उत्तराखंड उच्च न्यायालय | 2000 | उत्तराखंड | नैनीताल | – | 11 |
21 | मणिपुर उच्च न्यायालय | 2013 | मणिपुर | इम्फाल | – | 5 |
22 | मेघालय उच्च न्यायालय | 2013 | मेघालय | शिलांग | – | 4 |
23 | त्रिपुरा उच्च न्यायालय | 2013 | त्रिपुरा | अगरतला | – | 5 |
24 | आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय | 2019 | आंध्र प्रदेश | अमरावती | – | 37 |
25 | तेलंगाना उच्च न्यायालय | 2019 | तेलंगाना | हैदराबाद | – | 42 |
नोट: न्यायाधीशों की संख्या स्वीकृत अधिकतम संख्या है. वास्तविक संख्या रिक्तियों के कारण कम हो सकती है.
ये याद रखें कि उच्च न्यायालय राज्यों में अपील का सर्वोच्च न्यायालय नहीं है. राज्य सूची से संबंध विषयों में भी उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में अपील की जा सकती है.
सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय में अंतर क्या है?
यहाँ सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के बीच अंतर को दर्शाती एक तालिका दी गई है:
अंतर का आधार | सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) | उच्च न्यायालय (High Court) |
पदानुक्रम | भारत का सर्वोच्च न्यायिक निकाय. इसके निर्णय देश के सभी न्यायालयों पर बाध्यकारी होते हैं. | राज्य या केंद्र शासित प्रदेश का सर्वोच्च न्यायिक निकाय. इसके निर्णय केवल अपने क्षेत्राधिकार में अधीनस्थ न्यायालयों पर बाध्यकारी होते हैं. |
स्थान | नई दिल्ली में स्थित, यह पूरे भारत के लिए एकल न्यायालय है. | भारत में 25 उच्च न्यायालय हैं, जो विभिन्न राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के लिए हैं. |
स्थापना | 26 जनवरी 1950 को स्थापित. | विभिन्न वर्षों में स्थापित, अधिकांश राज्यों के गठन के साथ. |
न्यायाधीशों की संख्या | एक मुख्य न्यायाधीश और अधिकतम 33 अन्य न्यायाधीश (कुल 34). | एक मुख्य न्यायाधीश और राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त अन्य न्यायाधीशों की संख्या निश्चित नहीं होती, यह आवश्यकतानुसार भिन्न होती है. |
नियुक्ति | भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त. | भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त. |
क्षेत्राधिकार – मूल | केंद्र और राज्यों के बीच या राज्यों के बीच के विवादों की सीधी सुनवाई. | रिट याचिकाओं, विवाह, तलाक, कंपनी कानून आदि से संबंधित कुछ मामलों की सीधी सुनवाई. |
क्षेत्राधिकार – अपीलीय | उच्च न्यायालयों के निर्णयों (दीवानी, आपराधिक, संवैधानिक) के खिलाफ अपील सुनता है. | अपने क्षेत्राधिकार में अधीनस्थ न्यायालयों के निर्णयों के खिलाफ अपील सुनता है. |
क्षेत्राधिकार – रिट | अनुच्छेद 32 के तहत केवल मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिए रिट जारी कर सकता है. | अनुच्छेद 226 के तहत मौलिक अधिकारों के साथ-साथ अन्य कानूनी अधिकारों के प्रवर्तन के लिए रिट जारी कर सकता है. इसका रिट क्षेत्राधिकार सर्वोच्च न्यायालय से व्यापक है. |
सलाहकार क्षेत्राधिकार | राष्ट्रपति किसी कानूनी या तथ्यात्मक प्रश्न पर सर्वोच्च न्यायालय से सलाह मांग सकते हैं. | उच्च न्यायालय के पास कोई सलाहकार क्षेत्राधिकार नहीं होता है. |
पर्यवेक्षी क्षेत्राधिकार | यह अपने अधीनस्थ न्यायालयों पर कोई पर्यवेक्षी क्षेत्राधिकार नहीं रखता है (हालांकि अपीलीय शक्ति के कारण प्रभाव रहता है). | अपने क्षेत्राधिकार में आने वाले सभी अधीनस्थ न्यायालयों और न्यायाधिकरणों (सैन्य न्यायाधिकरणों को छोड़कर) पर पर्यवेक्षण की शक्ति रखता है. |
न्यायिक समीक्षा | केंद्र और राज्य दोनों के कानूनों और कार्यकारी आदेशों की संवैधानिकता की समीक्षा कर सकता है. | राज्य के कानूनों और कार्यकारी आदेशों की संवैधानिकता की समीक्षा कर सकता है, साथ ही केंद्र के कानूनों की भी, यदि वे उसके क्षेत्राधिकार में हों. |
मामलों का स्थानांतरण | किसी भी मामले को एक उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय में, या एक उच्च न्यायालय के अधीनस्थ न्यायालय से दूसरे में स्थानांतरित कर सकता है. | अपने क्षेत्राधिकार में आने वाले अधीनस्थ न्यायालयों से किसी मामले को अपने पास स्थानांतरित कर सकता है. |