प्राचीन भारत का ऐतिहासिक स्त्रोत, साक्ष्य और लेखन की तकनीक

प्राचीन भारत को जानने के लिए आधुनिक शैली के ऐतिहासिक लेखन का अभाव है. इस काल के ऐसे ग्रंथों का अभाव मिलता हैं, जिन्हें आधुनिक परिभाषा के अनुसार ‘इतिहास’ कहा जाता है. इसलिए प्राचीन भारत के इतिहास को जानने के लिए साहित्यिक स्रोतों, पुरातात्त्विक साक्ष्यों तथा विदेशी यात्रियों के वर्णनों का मदद लिया जाता है. इन स्रोतों के अभाव में इतिहास की प्रमाणिकता स्थापित करना संभव नहीं है. दुर्भाग्यवश, इस संदर्भ में उपयोगी सामग्री बहुत सीमित मात्रा में उपलब्ध है.

इसलिए, प्राचीन भारत को जानने के लिए इतिहास लेखन के निश्चित मानकों का कड़ाई पालन किया जाता है. ये मानक निम्नलिखित हैं—

  1. काल बोध (समय की स्पष्टता)
  2. क्षेत्र बोध (स्थान की जानकारी)
  3. तथ्यों का विस्तृत विवरण एवं उनके स्रोतों का उल्लेख
  4. विवरणों का विश्लेषणात्मक अध्ययन
  5. पूर्वाग्रह रहित और निष्पक्ष लेखन.

काल विभाजन

आधुनिक शैली के ऐतिहासिक लेखन के अभाव में भारत के इतिहास को समझने के लिए तीन कालावधि में विभाजित किया गया हैं. ये हैं—

  1. प्रागैतिहासिक काल: यह वह काल है जिसके लिए कोई लिखित स्रोत उपलब्ध नहीं हैं. इस दौर में मानव-जीवन पूर्ण रूप से विकसित सभ्यता का हिस्सा नहीं था. हड़प्पा सभ्यता से पूर्व का भारतीय इतिहास इसी श्रेणी में आता है.
  2. आद्य-ऐतिहासिक काल: इस काल के लिखित साक्ष्य उपलब्ध हैं. परंतु वे अब तक पढ़े नहीं जा सके हैं, क्योंकि वे जटिल या अज्ञात लिपि में हैं. हड़प्पा सभ्यता को इसी काल में शामिल किया जाता है. इस काल का लेखन बौस्ट्रोफेडॉन शैली में भाव-चित्रात्मक लिपि की है.
  3. ऐतिहासिक काल: इस दौर के स्पष्ट और पढ़े जा सकने वाले लिखित साक्ष्य उपलब्ध हैं. इस दौर में मानव सभ्यता विकसित हो चुकी थी. लगभग 600 ईसा पूर्व के बाद का काल ऐतिहासिक काल के अंतर्गत आता है.

प्राचीन भारत के ऐतिहासिक स्त्रोत (Historical Sources of Ancient India)

स्पष्ट ऐतिहासिक लेखन के अभाव में भारत के प्राचीन इतिहास को जानने के लिए पुरातात्विक और साहित्यिक स्रोतों की सहायता ली जाती है. इनका वर्गीकरण आगे विस्तार से बताया गया है.

प्राचीन भारत के ऐतिहासिक स्त्रोत (Historical Sources of Ancient India in Hindi)

A. पुरातात्विक स्त्रोत (Archaeological Sources)

पुरातत्व (Archaeology) शब्द दो शब्दों ‘आर्काइअस’ (Archaios) और ‘लॉजिया’ (Logia) के संयोजन से बना है. यहाँ ‘आर्काइअस’ का अर्थ है प्राचीन और ‘लॉजिया’ का अर्थ है ज्ञान. पुरातात्विक उत्खनन की दो विधियाँ हैं: क्षैतिज उत्खनन और लंबवत उत्खनन. एक काल के परत को पहले लंबवत खोदा जाता है. फिर इसके विशेषताओं को जानकार क्षैतिज खनन किया जाता है. अधिकांश पुरातात्विक खनन को इसी प्रकार अंजाम दिया जाता है.

पुरातात्विक खनन से प्राप्त निम्नलिखित स्त्रोतों को ऐतिहासिक स्त्रोत माना जाता है:

शिलालेख (Inscriptions)

शिलालेख पुरातात्विक स्रोतों का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा हैं. इन्हें सबसे प्रामाणिक और विश्वसनीय स्रोत माना जा सकता है. ये तुलनात्मक रूप से कम पक्षपातपूर्ण होते हैं. शिलालेखों की श्रृंखला में सबसे प्राचीन शिलालेख सम्राट अशोक के हैं. उनके अधिकांश शिलालेख ब्राह्मी लिपि में हैं, जो अशोक के शासन, प्रशासन और धम्म के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं. 

अशोक के शिलालेखों के अलावा कुछ अन्य महत्वपूर्ण शिलालेख हैं, जैसे समुद्रगुप्त का प्रयाग प्रशस्ति, खारवेल का हाथीगुंफा शिलालेख, पुलकेशिन का ऐहोल शिलालेख, आदि. सातवाहनों का संपूर्ण इतिहास उनके पुरातात्विक स्रोतों पर आधारित है. इसी प्रकार, पल्लव, चालुक्य, पांड्य, और चोल शासकों के शिलालेख भी उनके इतिहास के निर्माण में महत्वपूर्ण साबित हुए हैं.

नोट: सबसे पुराने अभिलेख हड़प्पा सभ्यता की मुहरों पर मिलते हैं, ये लगभग 2500 ई.पू. के हैं. ये अब तक नहीं पढ़े जा सके हैं. सबसे पुराने अभिलेख जो पढ़े जा चुके हैं, वे ई.पू. तीसरी सदी के अशोक के शिलालेख हैं. सर्वप्रथम 1837 में जेम्स प्रिंसेप ने इन्हें पढ़ने में सफलता पाई. इस प्रकार के प्राचीन लिपियों का अध्ययन पुरालेखशास्त्र (Epigraphy) कहलाता है. 

मुद्राएँ/सिक्के (Currencies/Coins)

मुद्राएँ प्राचीन भारतीय इतिहास की जानकारी में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं. मुद्राओं की सहायता से हमें उस समय के व्यापार और वाणिज्यिक गतिविधियों के बारे में पता चलता है. इनके आकार, सामग्री और टकसाल (minting) में उपयोग की गई तकनीक के माध्यम से उस समय के आर्थिक और तकनीकी विकास की भी जानकारी मिलती है. 

मुद्राओं पर अंकित तारीखें हमें राजा के कालक्रम (Timeline) को समझने में मदद करती हैं. मुद्राएँ उनके ऊपर अंकित तारीखों और प्रतीकों के आधार पर शासकों की धार्मिक विचारधाराओं को समझने में भी सहायता करती हैं. 

भारत की पहली मुद्रा को ‘पंचमार्क्ड मुद्राएँ’ (Punchmarked Coins) के नाम से जाना जाता है. ये मुद्राएँ पंचिंग (छिद्रण) की विधि से बनाई गई थीं. इसलिए इन्हें पंचमार्क्ड मुद्राएँ कहा गया. संभवतः ये मुद्राएँ व्यापारिक समुदायों (Trading Guilds) द्वारा शुरू की गई थीं, न कि किसी शासक द्वारा. 

मुद्राओं में शुद्धता का अनुपात हमें शासक और उसके समय की आर्थिक स्थिति के बारे में जानकारी देता है. उदाहरण के लिए, पहली स्वर्ण मुद्रा भारत-यूनानी (Indo-Greek) शासकों द्वारा शुरू की गई थी. सबसे शुद्ध स्वर्ण मुद्राएँ कुषाणों द्वारा जारी की गई थीं. जबकि सबसे अधिक संख्या में स्वर्ण मुद्राएँ, लेकिन सबसे कम शुद्ध, गुप्तों द्वारा जारी की गई थीं.

नोट: सिक्कों के अध्ययन को मुद्राशास्त्र (Numismatics) कहते हैं.

स्मारक और भवन (Memorials and Monuments)

स्मारक पुरातात्विक स्रोतों के सबसे महत्वपूर्ण तत्वों में से एक हैं. इन स्मारकों का अध्ययन न केवल उस समय की तकनीकी कौशल, जीवन स्तर, और आर्थिक स्थिति को समझने में मदद करता है, बल्कि उस समय की स्थापत्य कला (वास्तुकला) के बारे में भी जानकारी प्रदान करता है. 

भव्य स्मारक किसी शासक या राजवंश की समृद्धि और साम्राज्य के विकास को दर्शाते हैं. भारत में वास्तुकला की तीन शैलियाँ थीं:

  1. नागर शैली: उत्तर भारत में. मध्य प्रदेश में स्थित खजुराहो के मंदिर नागर शैली के बेहतरीन उदाहरण हैं. ओडिशा में स्थित कोणार्क सूर्य मंदिर भी नागर शैली का एक शानदार उदाहरण है. भुवनेश्वर में स्थित लिंगराज मंदिर भी नागर शैली का एक महत्वपूर्ण मंदिर है. 
  2. द्रविड़ शैली: दक्षिण भारत में. चोल राजाओं द्वारा बनाया गया अम्बिका मंदिर (श्रीरंगम) और बृहदीश्वर मंदिर (तंजौर) द्रविड़ शैली के उत्कृष्ट उदाहरण है.
  3. वेसर शैली: दक्कन, अर्थात् मध्य भारत में. यह शैली, नागर (उत्तर भारतीय) और द्रविड़ (दक्षिण भारतीय) मंदिर वास्तुकला शैलियों का एक मिश्रण है. कुछ प्रसिद्ध वेसर शैली के मंदिरों में कैलाशनाथ मंदिर (एलोरा), चेन्नाकेशव मंदिर (श्रीरंगनाथपुरम), और विरुपाक्ष मंदिर (अटडकल) शामिल हैं. 

महाबोधि मंदिर (बोधगया) एक प्राचीन बौद्ध मंदिर है जो बुद्ध के ज्ञानोदय के स्थान को चिह्नित करता है. यह मंदिर ईंटों से बना है. इसकी वास्तुकला में भारतीय, बर्मी और तिब्बती शैलियों का मिश्रण है.

मृद्भांड (Potteries)

मृद्भांड पुरातात्विक स्रोतों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं. ये मृद्भांड हमें संस्कृति और सभ्यता के प्रसार के बारे में जानकारी देते हैं. ये मृद्भांड प्रागैतिहासिक काल से लेकर ऐतिहासिक काल तक उपलब्ध हैं.

उदाहरण के लिए- ऋग्वैदिक काल में BRW (काली और लाल मृद्भांड), OCP (ताम्र रंग के मृद्भांड), PGW (चित्रित धूसर मृद्भांड) का उपयोग होता था. बाद के वैदिक काल में BW (काली मृद्भांड), RW (लाल मृद्भांड), BRW और PGW मृद्भांड उपयोग में थे. बौद्ध काल के दौरान NBPW (उत्तरी काले चमकीले मृद्भांड) संस्कृति का निर्माण हुआ. इस प्रकार, मृद्भांड इतिहास के पुनर्गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

मूर्तियाँ (Sculptures)

मूर्तियाँ प्राचीन भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण तत्व हैं. उस समय की बनाई गई मूर्तियाँ हमें तत्कालीन धार्मिक परिस्थितियों की जानकारी प्रदान करती हैं. मूर्तिकला की तीन शैलियाँ थीं:

  1. गंधार शैली
  2. मथुरा शैली
  3. अमरावती शैली

चित्रकला (Paintings)

यह कला भी इतिहास का एक महत्वपूर्ण तत्व है. अजंता की चित्रकलाएँ प्राचीन भारतीय इतिहास का सुंदर उदाहरण हैं. इन चित्रों में विभिन्न प्राकृतिक और मानवीय दृश्यों को चित्रित किया गया है, जो देखने में अत्यंत अनूठे हैं.

इस प्रकार, पुरातात्विक स्रोत प्राचीन भारतीय स्रोतों का एक बड़ा हिस्सा बनाते हैं, जिन्हें अधिक प्रामाणिक, अधिक विश्वसनीय और कम पक्षपातपूर्ण माना जा सकता है. लेकिन प्राचीन भारत के इतिहास को जानने के लिए साहित्यिक स्रोत भी पुरातात्विक स्रोतों के समान ही महत्वपूर्ण हैं.

साहित्यिक स्रोत (Literary Sources)

साहित्यिक स्रोतों को व्यापक रूप से दो भागों में विभाजित किया जाता है. पहला हैं धार्मिक स्रोत और दूसरा गैर-धार्मिक स्रोत. गैर-धार्मिक स्त्रोतों में विदेशी यात्रियों के लेख, दस्तावेज और पुस्तकें काफी प्रामाणिक माने जाते है.

A. धार्मिक ग्रंथ (Religious Sources)

धार्मिक साहित्यिक स्रोतों का आधार ब्राह्मण ग्रंथों जैसे वेद, सूत्र, स्मृति, पुराण, और महाकाव्यों से बनता है. बौद्ध और जैन साहित्य भी काफी प्रामाणिक माने गए है.

वेद (Vedic texts)

वेदों में सबसे प्राचीन ऋग्वेद है, जो हमें ऋग्वैदिक समाज के बारे में जानकारी देता है. वहीं दूसरी ओर, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद बाद के वैदिक काल के समाज की जानकारी प्रदान करते हैं. 

वेदों का कालावधि विवादित है. लेकिन कई लोग वेद को 900 वर्षों (1500 ई.पू.-600 ई.पू.) के इतिहास से जोड़ते है. ये ग्रंथ हमें आर्यों के उद्गम, उनकी राजनीतिक संरचना, समाज, आर्थिक गतिविधियों, धार्मिक दृष्टिकोण, सांस्कृतिक उपलब्धियों और बहुत कुछ के बारे में जानकारी प्राप्त करने में मदद करते हैं.

सूत्र (Sutras)

वैदिक ग्रंथों के बाद सूत्रों का युग आया. इन्हें सूत्र इसलिए कहा गया क्योंकि शब्दों या भजनों को मोतियों की तरह धागे में सुंदर ढंग से पिरोया गया था. ये सूत्र हमें वैदिक काल की जानकारी देते हैं. वेदों को अच्छी तरह समझने के लिए वेदांग बनाए गए, जिन्हें छह भागों में विभाजित किया गया: (1) शिक्षा, (2) व्याकरण  (3) छंद (4) कल्प (5) निरुक्त (6) ज्योतिष.

उपवेद (Upvedas)

वेदांगों की तरह उपवेदों का एक वर्ग भी विकसित हुआ. चार उपवेद हैं, जो विभिन्न वेदों से संबंधित हैं:

  1. आयुर्वेद: यह चिकित्सा विज्ञान से संबंधित है और ऋग्वेद का उपवेद है.  
  2. गंधर्ववेद: यह संगीत से संबंधित है और सामवेद का उपवेद है.  
  3. धनुर्वेद: यह युद्ध कौशल, हथियारों और गोला-बारूद से संबंधित है. यह यजुर्वेद से संबंधित है.  
  4. शिल्पवेद: यह कला, मूर्तिकला और वास्तुकला से संबंधित है. यह अथर्ववेद का उपवेद है.

स्मृति ग्रंथ (Smriti Texts)

सूत्रों के बाद स्मृति ग्रंथों का निर्माण हुआ. स्मृति ग्रंथों का कालावधि भी विवादित है. लेकिन इन्हें प्राचीन इतिहास का स्त्रोत ही माना जाता है. मनुस्मृति सबसे प्राचीन स्मृति ग्रंथ है, जो 200 ई.पू. से 200 ई.स्वी. (400 वर्षों) के बीच रचित हुआ. याज्ञवल्क्य स्मृति एक अन्य स्मृति ग्रंथ है, जो 100 ई.स्वी. से 300 ई.स्वी. के बीच संकलित हुआ. ये दोनों स्मृति ग्रंथ मौर्योत्तर काल पर प्रकाश डालते हैं.

नारद स्मृति (300 ई.स्वी.-400 ई.स्वी.) और पराशर स्मृति (300 ई.स्वी.-500 ई.स्वी.) गुप्त काल की सामाजिक और धार्मिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालती हैं. इसके अलावा, बृहस्पति स्मृति (300 ई.स्वी.-500 ई.स्वी.) और कात्यायन स्मृति (400 ई.स्वी.-600 ई.स्वी.) भी गुप्त काल के ग्रंथ थे.

पुराण (Puranas)

स्मृति ग्रंथों के बाद पुराणों का संकलन हुआ, जो मुख्य रूप से 18 की संख्या में हैं. इनमें मार्कण्डेय पुराण, वायु पुराण, ब्रह्म पुराण, विष्णु पुराण, भागवत पुराण, और मत्स्य पुराण संभवतः प्राचीन पुराण हैं, और शेष बाद में रचित हुए. 18 उपलब्ध पुराणों के नाम है:

  1. अग्नि
  2. ब्रह्म
  3. ब्रह्मवैवर्त
  4. कूर्म
  5. मार्कण्डेय
  6. नारद
  7. शिव
  8. वामन
  9. भागवत
  10. ब्रह्मांड
  11. गरुड़
  12. लिंग
  13. मत्स्य
  14. पद्म
  15. स्कंद
  16. वाराह
  17. विष्णु
  18. वायु

मत्स्य, वायु, और विष्णु पुराणों में प्राचीन भारतीय राजवंशों की बहुत सी जानकारी उपलब्ध है. पुराण महाभारत युद्ध के बाद शासन करने वाले राजवंशों का एकमात्र उपलब्ध स्रोत हैं. पुराण प्राचीन भारत की सांस्कृतिक इतिहास के निर्माण में भी महत्वपूर्ण तत्व हैं. पुराण विभिन्न राजवंशों के कालक्रम और उनकी पदानुक्रम (निम्न से उच्च तक) की जानकारी प्रदान करते हैं.

महाकाव्य (Epics)

महाकाव्य भी ब्राह्मणिक ग्रंथों का हिस्सा हैं, जिनमें महाभारत और रामायण सबसे महत्वपूर्ण हैं. रामायण की रचना वाल्मीकि द्वारा मौर्योत्तर काल में की गई. यद्यपि इस ग्रंथ की ऐतिहासिकता संदिग्ध है, लेकिन इसने आदर्श भारतीय समाज की तस्वीर प्रस्तुत की.

महाभारत दूसरा महाकाव्य है, जिसे वेदव्यास ने संकलित किया और यह गुप्त काल में पूर्ण हुआ. प्रारंभ में इसे जय संहिता कहा गया, जो बाद में भारत के नाम से जाना गया, क्योंकि इसमें भारत के राजवंशों का इतिहास था. अंततः इसे महाभारत के नाम से जाना गया.

बौद्ध साहित्य (Buddhist Literatures)

प्राचीन भारत के इतिहास को समझने के लिए बौद्ध साहित्य काफी सहायक साबित हुए हैं. इन साहित्यों में प्राचीन बौद्ध स्थलों के विवरण प्राप्त हुए हैं. खुदाई के बाद इस सम्बन्ध में लिखे गए तथ्य सही पाए गए. इसलिए इन्हें काफी प्रामाणिक माना गया. वस्तुतः बौद्धों के कई रचनाओं और उसके अनुरूप बौद्ध स्थलों की खोज ने, बौद्ध धर्म के इतिहास को ही प्राचीन भारत का इतिहास साबित कर दिया है.

बौद्ध ग्रांटों में पिटक सबसे प्राचीन बौद्ध ग्रंथ हैं. पिटकों के तीन प्रकार हैं: सुत्तपिटक, विनय पिटक, और अभिधम्म पिटक. इन्हें सम्मिलित रूप से त्रिपिटक कहा जाता हैं. इनका संकलन भगवान बुद्ध के निर्वाण प्राप्त करने के बाद किया गया:

  1. सुत्तपिटक: इसमें भगवान बुद्ध की धार्मिक विचारधारा और उपदेश शामिल हैं.  
  2. विनय पिटक: इसमें बौद्ध संघ के नियम शामिल हैं.  
  3. अभिधम्म पिटक: इसमें बौद्ध दर्शन शामिल हैं.

त्रिपिटकों के अलावा जातक कथाएँ भी बौद्ध साहित्य है. इनमें भगवान बुद्ध के पूर्व जन्मों से संबंधित उपाख्यान शामिल हैं. जातक कथाओं का संकलन पहली शताब्दी ई.पू. में शुरू हुआ, लेकिन इसका वर्तमान स्वरूप दूसरी शताब्दी ई.स्वी. में संकलित हुआ.  

मिलिंदपन्हो एक अन्य बौद्ध ग्रंथ है, जो यूनानी शासक मिनंदर और बौद्ध संत नागसेन के बीच दार्शनिक संवाद की जानकारी देता है.वहीं बौद्ध ग्रन्थ दिव्यावदान (चौथी शताब्दी ई.स्वी.) में विभिन्न शासकों के बारे में जानकारी शामिल है. 

आर्यमंजुश्रीमूलकल्प एक और बौद्ध ग्रंथ है, जिसमें गुप्त साम्राज्य के विभिन्न शासकों के बारे में बौद्ध दृष्टिकोण से जानकारी दी गई है. अंगुत्तरनिकाय एक बौद्ध ग्रंथ है, जिसमें प्राचीन भारत के सोलह महाजनपदों के नाम दिए गए हैं.

सिंहली ग्रंथ (Sinhalese Texts)

वर्तमान श्रीलंका में रचे गए सिंहली ग्रन्थ विदेशी बौद्ध ग्रंथों की श्रेणी में आते है. सिंहली ग्रंथों में दीपवंश और महावंश शामिल हैं, जो प्राचीन भारतीय इतिहास पर प्रकाश डालते हैं. दीपवंश की रचना चौथी शताब्दी ई.स्वी. में हुई और महावंश की रचना पाँचवीं शताब्दी ई.स्वी. में हुई. इस प्रकार, ये बौद्ध ग्रंथ हमें उस समय के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन की जानकारी प्रदान करते हैं. यह भारत एवं विदेशी देशों के सांस्कृतिक संबंधों का ज्ञान भी देता है.

जैन ग्रंथ (Jain Texts)

प्राचीन भारत में रचित जैन ग्रन्थ भी भारत के मुख्य ऐतिहासिक स्त्रोत है. जैन ग्रंथो को आगम कहा जाता है. आगम ग्रंथ जैन धर्म के मुख्य ग्रंथ हैं. आचारांगसूत्र, जो आगमों का एक हिस्सा है और महावीर के उपदेशों पर आधारित है, जैन संतों के आचरण के बारे में बताता है. वाख्याप्रज्ञप्ति, जिसे सामान्यतः भगवती सूत्र के नाम से जाना जाता है, महावीर के जीवन पर प्रकाश डालता है.

नायधम्मकहा भगवान महावीर के उपदेशों का संकलन है. इसके अलावा कई अन्य आगम ग्रंथ हैं, जिनकी कुल संख्या 12 है. भगवती सूत्र में सोलह महाजनपदों के बारे में जानकारी शामिल है. भद्रबाहुचरित जैन आचार्य भद्रबाहु और चंद्रगुप्त मौर्य के जीवन पर प्रकाश डालता है. सबसे महत्वपूर्ण जैन ग्रंथ परिशिष्टपर्वण है, जिसे हेमचंद्र ने 12वीं शताब्दी ईस्वी. में लिखा था.

B. गैर-धार्मिक ग्रंथ (Non-Religious Texts)

धार्मिक ग्रंथ मुख्य रूप से हमें धार्मिक विचारधारा और दर्शन के बारे में जानकारी देते हैं. इस प्रकार, वे हमें राजनीतिक गतिविधियों के बारे में बहुत कम जानकारी प्रदान करते हैं, जबकि गैर-धार्मिक ग्रंथ समाज के लगभग सभी पहलुओं पर प्रकाश डालते हैं. कुछ गैर-धार्मिक ग्रंथ निम्नलिखित हैं:

  • अष्टाध्यायी: यह पाणिनि द्वारा लिखित है और भारत का सबसे पुराना व्याकरण/साहित्य है. यह हमें प्री-मौर्य काल की राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक स्थिति के बारे में जानकारी देता है.
  • मुद्राराक्षस: विश्वखदत्त द्वारा लिखित, यह मौर्य काल के बारे में जानकारी देता है.
  • अर्थशास्त्र: कौटिल्य द्वारा लिखित, जिन्हें विष्णुगुप्त और चाणक्य के नाम से भी जाना जाता है. यह 15 भागों में विभाजित है. यह भारतीय राजनीतिक व्यवस्था के बारे में जानकारी देता है और मौर्य युग की स्थिति पर भी प्रकाश डालता है.
  • महाभाष्य: पतंजलि द्वारा लिखित, और कालिदास का मालविकाग्निमित्रम, हमें ‘शुंग वंश’ के बारे में जानकारी देता है.
  • कामसूत्र: वात्स्यायन द्वारा लिखित, यह यौन जीवन, सामाजिक जीवन, शारीरिक संबंध, पारिवारिक जीवन आदि के बारे में जानकारी देता है. यह बताता है कि उस काल के युवाओं को यौन शिक्षा देने के लिए इसे वैज्ञानिक तरीके से बनाया गया था.
  • शूद्रक द्वारा मृच्छकटिकम्और दंडी द्वारा दशकुमारचरित, उस काल के सामाजिक जीवन की जानकारी प्रदान करते हैं.

C. विदेशी विवरण (Foreign Accounts)

विदेशी विवरण साहित्यिक स्रोतों का हिस्सा हैं, जिनमें ग्रीक, रोमन, चीनी और अरब यात्रियों के लेखन शामिल हैं. भारतीय इतिहासकारों के विपरीत, विदेशी यात्रियों ने गैर-धार्मिक घटनाओं में भी रुचि दिखाई. इस प्रकार, उनके कार्य राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालते हैं.

ग्रीक या रोमन लेखक (Greek or Roman Writers)

  • हेरोडोटस और थ्यूसीडाइड्स सबसे पुराने ग्रीक और रोमन लेखक हैं. संभवतः, इन दो लेखकों ने ईरान के बारे में जानकारी प्राप्त की थी.
  • अलेक्जेंडर के साथ आए यात्रियों, जैसे नियार्कस और ओनेसिक्रिटस के लेखन को अधिक प्रामाणिक माना जाता है.
  • एक अन्य महत्वपूर्ण विवरण इंडिका है, जो दुर्भाग्यवश वर्तमान में उपलब्ध नहीं है. अन्य ग्रीक और रोमन लेखकों ने इंडिका के आधार पर अपने कार्य लिखे. इन विदेशी लेखकों ने उन परिस्थितियों और पहलुओं पर लिखा, जिन्हें भारतीय लेखकों ने नजरअंदाज किया था. इस प्रकार, उनके लेखन प्राचीन भारतीय इतिहास के निर्माण में अत्यंत महत्वपूर्ण साबित हुए.
  • एरिथ्रियन सागर का पेरीप्लस: एक अज्ञात लेखक द्वारा लिखित यह ग्रीक कार्य, भारतीय बंदरगाहों और भारत से आयात-निर्यात की जाने वाली वस्तुओं के नामों के बारे में जानकारी देता है.
  • प्टोलेमी: दूसरी शताब्दी ईस्वी में भारत का भौगोलिक विवरण लिखा.
  • प्लिनी द एल्डर: रोमन इतिहासकार, जिन्होंने पहली शताब्दी ईस्वी में नेचुरलिस हिस्टोरिया लिखी, जो भारत में जानवरों, फसलों और खनिजों के बारे में प्रचुर जानकारी प्रदान करती है.

चीनी यात्री (Chinese Travellers)

उन सभी चीनी यात्रियों का उल्लेख करना महत्वपूर्ण है, जिन्होंने भारत की यात्रा की और वहां की परिस्थितियों के बारे में लिखा. चीनी लेखकों में फा-हिएन, ह्वेन त्सांग और इत्सिंग के नाम शामिल हैं.

  • फा-हिएन: 5वीं शताब्दी ईस्वी में भारत आए और 14 वर्ष तक रहे. उन्होंने मुख्य रूप से बौद्ध धर्म के बारे में लिखा और उस समय की राजनीतिक स्थिति के बारे में कम जानकारी दी.
  • ह्वेन त्सांग: हर्ष के समय भारत आए और 16 वर्ष तक रहे. उन्होंने धार्मिक स्थिति के साथ-साथ राजनीतिक स्थिति, सांस्कृतिक समाज और उस समय की शिक्षा के बारे में लिखा.
  • इत्सिंग: 17वीं शताब्दी के अंत में भारत आए. उन्होंने विक्रमशिला और नालंदा विश्वविद्यालयों में लंबे समय तक रहकर भारत के शैक्षिक संस्थानों का वर्णन किया. इसके अलावा, उन्होंने भारत के खान-पान और वेशभूषा के बारे में भी लिखा.

अरब यात्री (Arab Travellers)

अरब यात्रियों ने 8वीं शताब्दी ईस्वी में भारत के बारे में लिखना शुरू किया. इनमें प्रमुख लेखक है:

  • सुलेमान-अल-ताजिर: 9वीं शताब्दी के मध्य में भारत आए और पाल, प्रतिहार और गुर्जरों के बारे में लिखा.
  • अल-मसूदी: 941-943 ईस्वी में दो साल तक भारत में रहे और राठौड़ वंश के शासकों के बारे में लिखा.
  • अबू-रिहान-अल-बेरुनी: अन्य अरब लेखकों में सबसे प्रसिद्ध लेखक थे. उनकी किताब-उल-हिंद में गणित, भूगोल, दर्शन, अन्य धार्मिक प्रथाओं, संस्कृति और परंपराओं, और सामाजिक परिस्थितियों के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है, जो प्रशंसनीय है.
  • इब्न बतूता के ‘रिहला/रहला’ में 14वीं सदी के दौरान सत्तासीन मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल और दिल्ली सल्तनत के बारे में जानकारी मिलती है. इब्न बतूता ने भारतीय समाज में प्रचलित जाति व्यवस्था, सती प्रथा, और दास प्रथा का उल्लेख किया है. उन्होंने भारतीय शहरों, बाजारों, और लोगों के रीति-रिवाजों का वर्णन किया है. इब्न बतूता ने भारतीय अर्थव्यवस्था, व्यापार, और डाक प्रणाली का भी वर्णन किया है.

प्राचीन भारत के ऐतिहासिक तथ्य स्रोतों से संकलित

  • भारतवर्ष नाम का प्रथम उल्लेख हथिगुम्फा अभिलेख में पाया जाता है.
  • 1400 ई.पू. के बोगटकोई अभिलेख में वैदिक देवताओं—इंद्र, मित्र, वरुण और नासत्य (अश्विनी कुमार)—के नाम उल्लिखित हैं.
  • मध्य भारत में भागवत् धर्म के विकास का साक्ष्य यवन राजदूत हेलियोडोरस के बेसनगर (विदिशा) स्थित गरुड़ स्तंभ लेख से मिलता है.
  • दुर्भिक्ष का प्राचीनतम उल्लेख सौगौरा ताम्रपत्र अभिलेख में दर्ज है.
  • हूण आक्रमण से संबंधित जानकारी भितरी स्तंभ लेख से प्राप्त होती है.
  • सती प्रथा का प्रथम लिखित प्रमाण एरण अभिलेख (शासक भानुगुप्त) में उपलब्ध है.
  • सिक्कों पर लेखन का प्रारंभिक कार्य यवन शासकों द्वारा किया गया.
  • प्राचीनतम भारतीय धर्मग्रंथ वेद हैं, जो चार हैं: ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद.
  • ऋग्वेद सबसे प्राचीन और अथर्ववेद सबसे बाद का वेद है.
  • प्राचीन ऐतिहासिक कथाओं का सबसे अच्छा क्रमबद्ध विवरण पुराणों में मिलता है. इनकी संख्या 18 है. पुराणों में मत्स्यपुराण सबसे प्राचीन और प्रामाणिक है.
  • स्मृतियों में सबसे प्राचीन और प्रामाणिक मनुस्मृति मानी जाती है. यह शृंग काल का मानक ग्रंथ है.
  • प्रमुख यूनानी-रोमन लेखकों में टीसियस, हेरोडोटस, मेगस्थनीज, टॉलेमी, प्लिनी आदि हैं.
  • हेरोडोटस को इतिहास का पिता कहा जाता है. इनकी प्रसिद्ध पुस्तक हिस्टोरिका में 5वीं शताब्दी ई.पू. के भारत-पारस के संबंधों का वर्णन है.
  • टॉलेमी ने दूसरी शताब्दी में भारत का भूगोल नामक पुस्तक लिखी.
  • प्रमुख चीनी लेखकों में फाह्यान, संयुंगन (518 ई. में भारत आया) व ह्वेनसांग हैं. ह्वेनसांग का भ्रमण-वृत्तांत सि-यू-की नाम से प्रसिद्ध है. ह्वेनसांग ने हर्षकालीन समाज, धर्म तथा राजनीति के बारे में वर्णन किया है. ह्वेनसांग के अध्ययन के समय नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य शीलभद्र थे.
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