साम्राज्य-विस्तार की दृष्टि से तुगलक साम्राज्य, दिल्ली सल्तनत के इतिहास में सबसे विशाल था, किंतु साम्राज्य के सिकुड़ने की दृष्टि से और राजनीतिक-सैनिक ह्रास की दृष्टि से भी यह दिल्ली सल्तनत की पराकाष्ठा थी. इसी काल में उत्तर-पश्चिम से दिल्ली सल्तनत पूर्णतः असुरक्षित हो गई थी. इसी राजवंश में तैमूर का भारत आक्रमण हुआ जिसमें कि उत्तर भारत में अभूतपूर्व लूट मची और नर-संहार हुआ. इसके पश्चात् पंजाब, तैमूर के साम्राज्य का अंग बन गया था जिसके कि आधार पर तैमूर के वंशज, बाबर ने इब्राहिम लोदी से पंजाब को अपने अधिकार में दिए जाने की मांग की थी.
खिलजी साम्राज्य के मुल्तान, उच तथा सिंध पर अधिकार कर चुके गाज़ी मलिक ने दिल्ली की राजनीतिक अस्थिरता का लाभ उठाकर, वहां 1320 में, खिलजी राजवंश के पतन के बाद गियासुद्दीन तुगलक के रूप में तुगलक राजवंश की स्थापना की.
तुगलकों का उत्कर्ष
सुल्तान गियासुद्दीन तुगलक ने दिल्ली सल्तनत में व्याप्त राजनीतिक अस्थिरता को समाप्त कर शांति एवं न्याय व्यवस्था की स्थापना की. उसने कृषि, उद्योग एवं व्यापार को बढ़ावा देने के लिए राज्य की ओर से प्रोत्साहन दिया. उसने साम्राज्य-विस्तार की नीति अपनाई और वारंगल तथा बंगाल को अपने साम्राज्य में सम्मिलित किया. उसने उत्तर-पश्चिम से निरंतर हो रहे मंगोलों के आक्रमणों को विफल किया.
मितव्ययता की नीति अपनाकर उसने राज्य के आर्थिक संकट को भी दूर किया. बंगाल में फ़िरोज़ शाह का दमन करने के बाद दिल्ली पहुंचने से पहले ही एक दुर्घटना में गियासुद्दीन तुगलक की मृत्यु हो गई. इस दुर्घटना के पीछे उसके बड़े पुत्र जूना खान का हाथ था.
मूर्ख राजा का शासन
1325 में अपने पिता की मृत्यु के बाद जूना खान अर्थात् मुहम्मद बिन तुगलक सुल्तान बना. दिल्ली सल्तनत के इतिहास में मुहम्मद बिन तुगलक सबसे विद्वान सुल्तान था. किंतु अपनी अव्यावहारिक योजनाओं, अपने अनियंत्रित क्रोध के कारण अनावश्यक रक्तपात करने की प्रवृत्ति, अपनी जिद्दी प्रकृति तथा अपनी प्रजा के कष्टों के प्रति पूर्ण उदासीनता के कारण उसे दिवा-स्वप्नदर्शी, रक्त-पिपासु, सनकी, पागल अथवा बुद्धिमान मूर्ख कहा जाता है.
जियाउद्दीन बर्नी, यहिया बिन अहमद सरहिंद, निजामुद्दीन अहमद, बदायूनी और फरिश्ता जैसे इतिहासकारों ने उसे धर्म-विमुख कहा है. विदेशी यात्री इब्न बतूता ने उसकी रक्त-पिपासु प्रवृत्ति का उल्लेख किया है. मुहम्मद बिन तुगलक ने सुल्तान बनते ही अपनी प्रगतिशीलता का परिचय दिया और धर्मांधता की नीति का परित्याग किया किंतु उसकी असफल योजनाओं ने उसके साम्राज्य को खोखला कर दिया.
मुहम्मद बिन तुगलक की पहली अव्यावहारिक योजना – दोआब क्षेत्र में लगभग 50% कर-वृद्धि थी. सुल्तान को अपने इस निर्णय से कोई आर्थिक लाभ होना तो दूर, पुरानी व्यवस्था के अंतर्गत मिलने वाला राजस्व भी प्राप्त नहीं हो सका. मुहम्मद बिन तुगलक ने ‘दीवान-ए-कोही’ विभाग का गठन कर कृषि-सुधार की महत्वाकांक्षी योजना बनाई थी किंतु यह भी भू-राजस्व अधिकारियों तथा किसानों की उदासीनता के कारण निष्फल हो गई.
मुहम्मद बिन तुगलक द्वारा दिल्ली के स्थान पर दक्षिण में स्थित दौलताबाद को राजधानी बनाने का निर्णय मंगोलों के आक्रमणों से राजधानी को बचाने, दक्षिण भारत पर अपनी पकड़ मजबूत बनाने के लिए लिया गया था किंतु अपार जन-धन की हानि के बाद सुल्तान को 1335 में अपने इस निर्णय को रद्द करना पड़ा था. सुल्तान की दक्षिण भारत पर पकड़ पहले से कमजोर हो गई. 1336 में विजयनगर राज्य की स्थापना और 1347 में बहमनी राज्य की स्थापना इसका प्रमाण हैं.
मुहम्मद बिन तुगलक ने राजकोष में चांदी की कमी के कारण चांदी के टंके के मूल्य के बराबर के तांबे के सिक्कों को सांकेतिक मुद्रा के रूप में प्रचलित करने का मौलिक किंतु नितांत अव्यावहारिक प्रयोग किया था. इस सांकेतिक मुद्रा के ढालने में ऐसी कोई सावधानी नहीं बरती गई. इस प्रयोग के असफल होने के बाद सुल्तान ने अपना निर्णय वापस ले लिया किंतु जाली सांकेतिक मुद्रा के बदले में असली चांदी का भुगतान करते-करते राजकोष लगभग पूरी तरह से खाली हो गया.
मंगोल तमाशरीन की मृत्यु के बाद औक्सश पर्वत के पार के क्षेत्र की अराजक स्थिति का लाभ उठाकर मुहम्मद तुगलक खुरासान और कराचिल को जीतना चाहता था. किंतु इसका यह अभियान नितांत अव्यावहारिक था.
खुसरो मलिक के नेतृत्व में 3,50,000 की सेना रास्ता भटकते हुए, मुश्किलों से जूझते हुए असफल होकर जब वापस लौटी तो उस विशाल सेना में से केवल मुट्ठी भर सैनिक ज़िंदा बचे थे. मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में सागर, मुल्तान, सुनाम, कड़ा, बीदर और गुलबर्गा में असफल विद्रोह हुए. किंतु बंगाल, मालाबार, तेलंगाना, कांची में सफल विद्रोह हुए. दक्षिण में 1336 में विजयनगर और 1347 में बहमनी साम्राज्य की स्थापना हुई.
एक शासक के रूप में मुहम्मद बिन तुगलक का आकलन करते समय किसी भी इतिहासकार ने उसे सफल नहीं बताया है. उसकी हर असफल योजना ने उसको पागल और सनकी समझने वालों की संख्या में वृद्धि की. सुल्तान फिरोज़ शाह तुगलक को राजनीतिक दृष्टि से अस्थिर, अमीरों और प्रजा के मध्य एक समान अप्रिय, आर्थिक दृष्टि से खोखला और चारों ओर से दुश्मनों से घिरा हुआ साम्राज्य मिला था. उसने अपने अमीरों की निष्ठा प्राप्त की और अपनी प्रजा की दृष्टि में उसकी छवि एक प्रजा-पालक सुल्तान के रूप में स्थापित हुई. उसके शासन काल में राज्य की आर्थिक स्थिति सुधरी. किंतु उसकी धर्मांधता के कारण बहु-संख्यक हिन्दू प्रजा दुखी थी.
सुधार का एक और प्रयास
फिरोज़ शाह तुगलक ने यमुना, घग्घर और सतलज पर 5 बड़ी नहरों का निर्माण कराया. राज्य की आय बढ़ाने के लिए उसने 1200 फलों के बाग लगवाए थे. उसने आंतरिक व्यापार के मार्ग की अनेक बाधाओं को दूर किया. वह एक महान निर्माता था. सार्वजनिक निर्माण-कार्य तथा नगर-निर्माण में उसकी गहन अभिरुचि थी. उसने अनेक नगरों की स्थापना की. उसने चिकित्सालयों, अनाथालयों, विधवाश्रमों तथा मदरसों की स्थापना की किंतु इनका लाभ केवल मुस्लिम समाज तक सीमित रहा. वह साहित्यकारों और इतिहासकारों का संरक्षक था.
फिरोज़ शाह तुगलक द्वारा अपने 1,80,000 निजी दासों की नियुक्ति, जागीरदारी व्यवस्था को पुनर्जीवित करना और सैनिक तथा प्रशासनिक पदों को पैतृक बनाना तथा घूसखोरी को अनदेखा करना ऐसे कार्य थे जिनसे कि सल्तनत कमजोर हुई. उसकी धार्मिक कट्टरता की नीति भी उसके साम्राज्य के लिए हानिकारक सिद्ध हुई. फिरोज़ शाह तुगलक की मृत्यु के तुरंत बाद तुगलक राजवंश का पतन प्रारंभ हो गया. एशिया में अपने समय के सबसे बड़े विजेता तैमूर का भारत आक्रमण भारत के लिए और तुगलक साम्राज्य के लिए विनाशकारी सिद्ध हुआ. तैमूर मुख्य रूप से भारत को लूटने के लिए ही आया था पर उसका एक उद्देश्य गैर-मुस्लिमों के पूजा-स्थलों को ध्वस्त करना भी था.
लंगड़े का आतंक और पतन
तैमूर लंग ने दिल्ली में प्रवेश किया. उसने दिल्ली को न केवल लूटा अपितु क़त्ल-ए-आम का हुक्म भी दे दिया. भारत के इतिहास की यह सबसे बड़ी लूट थी और सबसे बड़ा नर-संहार था. तैमूर के आक्रमण ने पहले से लड़खड़ाती दिल्ली सल्तनत पर एक और ज़बरदस्त प्रहार किया. नाम के तुगलक सुल्तान का अब दिल्ली के आसपास के क्षेत्र पर भी अधिकार नहीं रह गया. दिल्ली सल्तनत से टूटकर अनेक स्वतंत्र प्रांतीय राज्यों का उदय हुआ. तैमूर के आक्रमण के बाद राजस्थान में मेवाड़ राजवंश तथा मारवाड़ राजवंश प्रभावशाली हो गए.
तुगलक राजवंश के पतन के लिए मुख्यतः मुहम्मद बिन तुगलक की अव्यावहारिक योजनाएं, फिरोज़ शाह तुगलक की सैनिक दुर्बलता, उसकी धर्मांधता की नीति, उसके उत्तराधिकारियों की अयोग्यता और तैमूर का आक्रमण उत्तरदायी थे. हिन्दू-प्रतिरोध तथा अमीरों की महत्वाकांक्षाएं भी इसके लिए काफी हद तक जिम्मेदार थीं. 1414 में तैमूर के कृपापात्र, सिंध, मुल्तान तथा लाहौर के सूबेदार खिज़्र खान सैयद ने दिल्ली पर अधिकार कर सैयद राजवंश की स्थापना की जिस कारण तुगलक राजवंश की समाप्ति हो गई.