बाबर के आक्रमण के समय भारत की स्थिति

16वीं शताब्दी में बाबर के आक्रमण के समय भारत की स्थिति अत्यन्त दयनीय थी. दिल्ली सल्तनत काफी कमजोर हो चुका था. पूरे भारत में अनेक छोटे-छोटे राज्यों का उदय हो चुका था. इनमें आपसी प्रतिस्पर्द्धा एवं वैमनस्य की भावना थी. ये सदैव एक दूसरे को पराजित एवं अपमानित करने का सपना देखा करते थे. इनमें एकता व संगठन की कोई संभावना नहीं थी. यह स्थिति  किसी भी महत्वकांक्षी आक्रमणकारी के लिए काफी उपयुक्त थी.

भारतीय शासक अपने शत्रु का विनाश करने के लिए विदेशी शक्तियों को आमंत्रित करने में भी नही हिचकते थे.  इस समय भारत का अधिकांश क्षेत्र दिल्ली सल्तनत के अधीन ही था. लेकिन कई अन्य स्वतंत्र और शक्तिशाली शासक भी थे. बाबर ने स्वयं लिखा है कि उसके आक्रमण के समय भारत में पाँच प्रमुख मुस्लिम राज्य -दिल्ली, बंगाल, मालवा, गुजरात तथा दक्षिण का बहमनी राज्य- तथा दो काफिर (हिन्दू) शासकों-चित्तौड़ तथा विजयनगर-का राज्य था. इसके अतिरिक्त भी देश में कई अन्य राज्य थे. बाबर के आक्रमण के समय इन राज्यों का स्थिति इस प्रकार था:

बाबर के आक्रमण के समय भारत की राजनैतिक स्थिति

उत्तरी भारत में उस समय दिल्ली, पंजाब, सिंध, कश्मीर, मालवा, गुजरात, बंगाल, बिहार, उड़ीसा, मेवाड़ (राजस्थान) आदि प्रमुख राज्य थे. इन राज्यों की राजनीतिक अवस्था इस प्रकार थी-

1. दिल्ली

बाबर के आक्रमण के समय दिल्ली पर लोदी वंश का इब्राहीम लोदी शासन कर रहा था. वह अयोग्य, अभिमानी, निर्दयी और अनुभवहीन शासक था. उसने अपनी कठोर नीतियों और दुर्व्यवहार से अमीरों और सरदारों को अपने खिलाफ कर लिया. नतीजतन, साम्राज्य में कई जगह विद्रोह होने लगे. दौलत खां लोदी ने लाहौर में खुद को स्वतंत्र घोषित कर बाबर से मदद मांगी, जबकि दरिया खां लोदी बिहार में स्वतंत्र शासक बन बैठा.

उस समय दिल्ली का साम्राज्य असल में छोटे-छोटे स्वतंत्र राज्यों और जागीरों का ढीला-ढाला संघ था. स्थानीय गवर्नर ही जनता के प्रति जिम्मेदार माने जाते थे. सुल्तान जनता से दूर था और उसकी प्रतिष्ठा बहुत घट चुकी थी. शासन अव्यवस्थित और कमजोर हो गया था.

ऐसे हालात में सल्तनत की रीढ़ सामंतशाही व्यवस्था ढह गई और सुल्तान की सत्ता खोखली हो गई. इब्राहीम लोदी के पास साधन और सेना तो थे. लेकिन, उनकी गलत नीतियों के कारण वे बेकार साबित हुए. इन कमजोरियों का फायदा उठाकर बाबर ने पानीपत के युद्ध में इब्राहीम को हरा दिया.

2. पंजाब 

पंजाब औपचारिक रूप से तो दिल्ली सल्तनत का ही हिस्सा था. लेकिन वास्तविक सत्ता गवर्नर दौलत खां लोदी के हाथ में था. यह राज्य भी लगभग स्वतंत्र था. वह इब्राहीम से असंतुष्ट था और दोनों के संबंध शत्रुतापूर्ण थे. इब्राहीम ने उसे दंडित करने के लिए दिल्ली बुलाया. लेकिन दौलत खां ने अपने बेटे दिलावर खां को भेजा. दिलावर के साथ इब्राहीम ने दुर्व्यवहार किया. इससे दोनों में और भी ज्यादा शत्रुता हो गई.

इब्राहीम का चाचा आलमखां भी उससे सत्ता छीनना चाहता था. इन परिस्थितियों में दौलत खां ने खुद को स्वतंत्र शासक घोषित किया और इब्राहीम के खिलाफ युद्ध की तैयारी शुरू कर दी. अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए उसने बाबर से मदद मांगी. बाबर दिल्ली का सुल्तान बनने के लिए पहले से ही अवसर की तलाश में था. उसने इस मौके का फायदा उठाया और भारत पर आक्रमण कर दिया.

3. गुजरात 

गुजरात 1401 ई. में दिल्ली से स्वतंत्र हो गया. जफरखां (मुजफ्फर शाह) इसका पहला सुल्तान बना. बाबर के आक्रमण के समय मुजफ्फर शाह द्वितीय (1511–1526 ई.) गुजरात का शासक था. वह विद्वान था और कुरान-हदीस पढ़ने का शौकीन था. उसने कई संघर्ष किए लेकिन मेवाड़ के राणा सांगा से हार गया. पानीपत की लड़ाई के समय से कुछ पहले ही उसकी मृत्यु हो गई. इस तरह गुजरात भी दिल्ली के पकड़ से बाहर चला गया. 

4. मालवा

मालवा, खानदेश के उत्तर में स्थित था. तैमूर के आक्रमण के बाद फैली अशांति का दिलावर खां गौरी ने फायदा उठाया. उसने 1401 ई. में मालवा में स्वतंत्र राज्य स्थापित किया. 1435 ई. में महमूद खिलजी ने इसे वापस जीत लिया. 

बाबर के आक्रमण के समय मालवा पर महमूद द्वितीय शासन कर रहा था और राजधानी माण्डू थी. मालवा का गुजरात और मेवाड़ से लगातार संघर्ष चलता रहा. महमूद द्वितीय के समय मालवा पर राजपूतों का अधिकार हो गया था. महमूद खिलजी ने चंदेरी के मेदिनीराय से मदद ली और उसे प्रधानमंत्री बनाया. फरिश्ता के अनुसार महमूद खिलजी न्यायप्रिय और लोकप्रिय शासक था, लेकिन मेदिनीराय का कठपुतली बन गया था.

5. खानदेश 

खानदेश ताप्ती नदी की घाटी में स्थित एक क्षेत्र था. यह शुरू में दिल्ली सल्तनत के अधीन था. 14वीं शताब्दी के अंत में मलिक राजा फारूकी ने इसे स्वतंत्र राज्य बना लिया. उसका शासन 1388–1399 तक रहा. गुजरात का सुल्तान शुरू से ही इस पर प्रभाव जमाना चाहता था. इसलिए, दोनों के बीच लगातार संघर्ष होता रहा. 

1508 में सुल्तान वानुदखां की मृत्यु के बाद उत्तराधिकार युद्ध छिड़ गया. अहमदनगर और गुजरात ने अलग-अलग दावेदारों का समर्थन किया. अंततः गुजरात के महमूद बेगड़ा की मदद से आदिलखां सत्ता में आया और 1520 तक शासन किया. उसके बाद उसका पुत्र मीरनमहमूद शासक बना. परन्तु, दिल्ली से दूरी और अंदरूनी अशांति के कारण उस समय खानदेश की राजनीतिक स्थिति महत्वहीन हो गई.

6. बंगाल

फिरोज तुगलक के समय बंगाल दिल्ली सल्तनत से स्वतंत्र हो गया था. यहाँ हुसैनी वंश ने शासन स्थापित किया. सबसे शक्तिशाली शासक अलाउद्दीन हुसैन (1493–1519) ने बंगाल की सीमा कूच बिहार (आसाम) तक बढ़ा दी. बाबर के समय वहां नुसरतशाह शासक था.  नुसरतशाह ने तिरहुत जीता और बाबर से मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए. वह कला, साहित्य प्रेमी और सहिष्णु शासक था तथा उसकी प्रजा सुखी थी. बाबर ने भी उसकी प्रशंसा की. बंगाल शक्तिशाली था. लेकिन, दिल्ली से दूरी के कारण इसके राजनीति का भारत की प्रमुख राजनीति पर अधिक प्रभाव नहीं पड़ा. घाघरा युद्ध के बाद बाबर और नुसरतशाह के बीच अस्थायी संधि भी हुई.

7. सिंध

मुहम्मद तुगलक के बाद सिंध स्वतंत्र हो गया. 1516 ई. में शाहबेग आरगन ने सुमरा वंश को हराकर अपनी सत्ता स्थापित की. बाबर के समय शाह हुसैन आरगन शासक था, जिसने मुलतान भी जीत लिया और सिंध की शासन व्यवस्था को संगठित किया. 1526 में सिंध अपनी प्रगति के शिखर पर था. लेकिन दिल्ली से दूरी के कारण उसकी राजनीति का दिल्ली पर खास प्रभाव नहीं पड़ा. समा वंश और अफगान वंश के बीच संघर्ष भी जारी था.

8. जौनपुर

 इब्राहीम लोदी की कमजोरी का लाभ उठाकर मरफ फारमूली तथा नासिर खां लौहानी ने जौनपुर को स्वतंत्र राज्य घोषित कर दिया. यह उच्च शिक्षा एवं संस्कृति का केंद्र तथा समृद्ध राज्य था.  आगे चलकर, नासिर खां लोहानी के पुत्र मुहम्मद शाह लोहानी ने इस नव-स्वतंत्र राज्य पर शासन किया. उन्होंने 1526 तक जौनपुर और उसके आसपास के क्षेत्रों पर अपनी पकड़ बनाए रखी, जब तक कि बाबर के आगमन और पानीपत के युद्ध के बाद राजनीतिक परिदृश्य पूरी तरह से बदल नहीं गया.

9. कश्मीर 

बाबर के समय कश्मीर में मुस्लिम शासक मुहम्मद शाह था. लेकिन अमीरों और सरदारों के बढ़ते प्रभाव से राज्य में लगातार गृहकलह और अव्यवस्था फैल गई. मुहम्मद शाह के बाद उसका वजीर काजी चक शासक बन गया. बाबर की सेना ने कश्मीर पर कब्जा कर उसे हटा दिया. लेकिन, स्थानीय अमीरों और सामंतों ने मिलकर मुगलों को वापस खदेड़ दिया.

10. राजस्थान 

16वीं शताब्दी की शुरुआत में राजस्थान एक संगठित और सुव्यवस्थित क्षेत्र बन चुका था. 15वीं शताब्दी की अव्यवस्था के बाद यह पुनर्निर्माण और बड़े राज्यों की स्थापना का समय था. इस दौर में राजस्थान में भी अन्य भारतीय क्षेत्रों की तरह राजनीतिक परिवर्तन हुए. राजनीतिक दृष्टि से यह व्यवस्था और स्थिरता का काल था. मेवाड़ सबसे महत्वपूर्ण राज्य था.

11. मेवाड़

मेवाड़ का प्राचीन नाम मेदपाट था. यहां गुहिल वंश (सिसोदिया) का शासन छठी शताब्दी से शुरू हुआ, जिसका संस्थापक गुहिल था. राज्य का विस्तार राणा हमीर से शुरू हुआ और महाराणा कुंभा के समय यह चरम पर पहुंचा. कुंभा ने मेवाड़ को मालवा और गुजरात से सुरक्षित रखा और सांस्कृतिक और स्थापत्य क्षेत्र में भी इसे स्वर्णयुग बनाया. बाबर के अनुसार भारत में उसके समय दो बड़े हिन्दू राज्य थे – मेवाड़ और विजयनगर. 

राणा सांगा ने मेवाड़ की शक्ति को शीर्ष पर पहुंचाया, उसकी सेना में 80 हजार सैनिक और कई राजा व सामंत थे. उसने मालवा, गुजरात और इब्राहीम लोदी को कई बार हराया और दिल्ली पर हिन्दू राज्य स्थापित करना चाहा. बाबर के आक्रमण से पहले राजपूतों का इतना बड़ा संगठन पहली बार बना था. लेकिन खानवा के युद्ध में सांगा की हार और उसके बाद मृत्यु से उसकी महत्वाकांक्षा अधूरी रह गई.

12. मारवाड़

मेवाड़ के अलावा राजस्थान का दूसरा महत्वपूर्ण राज्य मारवाड़ था, जिसे मरूदेश या मरूधर भी कहा जाता था. जोधपुर के निर्माण के बाद वही इसकी राजधानी बनी और राज्य ‘जोधपुर राज्य’ कहलाने लगा. बाबर के समय इसका शासक राव गांगा (1515–1531) था, जिसने खानवा के युद्ध में राणा सांगा का साथ दिया. उसके समय मारवाड़ में कई स्वतंत्र सामंत थे, लेकिन उसने राज्य की सीमाओं को मजबूत किया. उसका उत्तराधिकारी मालदेव एक शक्तिशाली और योग्य शासक था, जिसके काल में मारवाड़ पूरी तरह संगठित और सुव्यवस्थित हुआ.

13. बीकानेर

बीकानेर, जांगल प्रदेश के नाम से जाना जाने वाला राठौड़ वंश का एक प्रमुख राज्य था, जहां पानी और वृक्षों की कमी थी. यह पहले परमारों के अधीन था, लेकिन राव बीका, जो जोधपुर के शासक राव जोधा के पुत्र थे, ने 1472 ई. में बीकानेर में राठौड़ राज्यवंश की स्थापना की. उन्होंने छोटी-छोटी स्थानीय जातियों को हराकर एक विशाल साम्राज्य स्थापित किया और 1485 ई. में बीकानेर नगर व दुर्ग का निर्माण शुरू किया. 1505 ई. में अपनी मृत्यु तक उन्होंने राज्य की सीमा पंजाब के हिसार तक विस्तारित की.

बाबर के आक्रमण के समय बीकानेर का शासक लूणकरण था, जिसने 21 वर्ष तक शासन किया. उसने सामंती विद्रोहों को दबाया, पड़ोसी शासकों को पराजित कर फतेहपुर, नागौर, जैसलमेर और नारनौल पर आक्रमण किए, और राज्य की सीमाओं को सुरक्षित किया. लूणकरण न केवल एक कुशल विजेता था, बल्कि प्रजाहितैषी, साहित्य प्रेमी और दानी शासक भी था. उसने अकाल और संकट के समय प्रजा की सहायता की, जिससे राठौड़ वंश बीकानेर में और सुदृढ़ हुआ. बाबर के समय मेवाड़ और मारवाड़ के बाद बीकानेर सबसे शक्तिशाली राज्य था.

14. कछवाहा राजवंश 

कछवाहा राजवंश, जो स्वयं को कुश के वंशज मानता था, राजस्थान का एक महत्त्वपूर्ण राज्य था. इसकी स्थापना सौढ़ादेव ने की. सौढ़ादेव ने सबसे पहले दौसा पर अधिकार किया. इतिहासकारों में इसके स्थापना काल को लेकर मतभेद हैं. ओझा के अनुसार सौढ़ादेव 1137 ई. में, कर्नल टाड के अनुसार 967 ई., श्यामलदास के अनुसार 976 ई., और इम्पीरियल गजीटियर के अनुसार 1128 ई. में राजस्थान आया. शिलालेख ओझा के कथन की पुष्टि करते हैं. सौढ़ादेव ने ग्वालियर से दौसा आकर बढ़गुर्जरों को हराया और जयपुर (ढूंढाण प्रदेश) में अपना राज्य स्थापित किया. यह आमेर राज्य के नाम से प्रसिद्ध हुआ. 

बाबर के आक्रमण के समय आमेर का शासक पृथ्वीराज था. तब तक आमेर का राजस्थान में विशेष महत्त्व नहीं था. इसकी सीमाएँ लगभग निश्चित हो चुकी थीं. पृथ्वीराज ने साम्राज्य विस्तार नहीं किया. वह कृष्ण का परम भक्त था और उसने राज्य में धार्मिक वातावरण को बढ़ावा दिया. इस काल में आमेर में कई मंदिरों का निर्माण हुआ. ये मंदिर वास्तुकला के उत्कृष्ट नमूने हैं. पृथ्वीराज ने खानवां के युद्ध में राणा सांगा की ओर से भाग लिया.

15. चौहान राजवंश

चौहान वंश राजस्थान का एक महत्त्वपूर्ण राजवंश था. प्राचीन काल में अजमेर और सांभर इसके मुख्य केंद्र थे. राजस्थान के विभिन्न हिस्सों में इसके छोटे-छोटे राज्य थे,. 16वीं शताब्दी के प्रारम्भ तक इसका प्रभाव समाप्त हो गया. यह केवल हाड़ौती क्षेत्र (कोटा-बूंदी) तक सिमट गया. इससे पहले चौहान वंश मेवाड़ के अधीन था और इसके शासकों का स्वतंत्र अस्तित्व नहीं था. राणा सांगा की मृत्यु के बाद चौहान शासकों ने मेवाड़ से स्वतंत्रता प्राप्त की. लेकिन यह स्वतंत्रता अधिक समय तक नहीं रही. जल्द ही उन्हें मुगलों की अधीनता स्वीकार करनी पड़ी.

16. बहमनी राज्य

सुल्तान मुहम्मद तुगलक के शासनकाल में दक्षिण भारत में बहमनी राज्य की स्थापना हुई. यह लगभग दो शताब्दियों तक एक प्रबल राज्य रहा. आंतरिक संघर्षों और विजयनगर राज्य के साथ निरंतर युद्धों के कारण इसका पतन हुआ. अमीरों की बढ़ती शक्ति ने भी इसकी कमजोरी बढ़ाई. 

अंतिम शासक महमदू शाह (1482-1518 ई.) के बाद बहमनी पांच राज्यों—अहमदनगर, बीदर, बरार, बीजापुर और गोलकुण्डा—में विभाजित हो गया. ये शासक शिया इस्लाम के अनुयायी थे. इन राज्यों में आपसी संघर्ष और वैमनस्य के कारण उनकी शक्ति क्षीण हुई. इस प्रकार दक्षिण भारत की राजनीति में अव्यवस्था फैली. बाबर के आक्रमण के समय ये राज्य अस्तित्व में थे. आपसी वैमनस्य के कारण उत्तरी भारत की राजनीति पर उनका प्रभाव नहीं था.

17. विजयनगर 

विजयनगर दक्षिण भारत का सर्वाधिक शक्तिशाली हिन्दू राज्य था, जिसकी स्थापना 1336 ई. में हरिहर और बुक्का ने की. यह राज्य हिन्दू धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए बहमनी राज्य से निरंतर संघर्षरत रहा. बाबर के आक्रमण के समय इसका शासक कृष्णदेव राय था. कृष्णदेव अपने वंश का महानतम शासक था. वह वीर, साहसी, विजेता और योग्य शासक था, जिसे साहित्य और कला से गहरा प्रेम था. उसके शासनकाल में विजयनगर राजनीतिक, आर्थिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक दृष्टि से चरमोत्कर्ष पर था. 

उत्तरी भारत से दूरी के कारण विजयनगर उत्तरी राजनीति को प्रभावित नहीं कर सका. लेकिन दक्षिण में मुस्लिम आक्रमणकारियों को रोककर हिन्दू धर्म व संस्कृति की रक्षा की. के.एम. पन्निकर के अनुसार, कृष्णदेव राय अशोक, चन्द्रगुप्त, विक्रमादित्य, हर्ष और भोज की परंपरा में महान सम्राट था. बाबर ने भी उसे दक्षिण भारत का सबसे प्रतापी शासक माना.

18. गोआ के पुर्तगाली 

बाबर के आक्रमण के समय पुर्तगालियों ने दक्षिण भारत में अपनी स्थिति मजबूत कर ली थी. 1498 ई. में वास्को डि गामा ने कालीकट बंदरगाह तक पहुँचकर पश्चिमी देशों के लिए भारत के द्वार खोले. 1510 ई. में पुर्तगाली गवर्नर अल्बुकर्क ने गोआ पर कब्जा किया, जो जल्द ही उनकी गतिविधियों का केंद्र और राजधानी बन गया. इसके बाद पुर्तगालियों ने दिऊ, दमन, साल्सेट और बसीन पर भी अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया.

बाबर के आक्रमण के समय भारत की सामाजिक स्थिति

यद्यपि बाबर समान्यतः भारत की सामाजिक स्थिति के विषय में कोई विशेष बात नहीं कहता है. लेकिन, अन्य स्रोतों से ज्ञात होता है कि  उस समय हिन्दुस्तान में मुसलमान और हिन्दू समाज के दो प्रमुख वर्ग थे. लम्बे समय तक एक साथ रहने की वजह से दोनो ने एक दूसरे के खान-पान वेश भूषा एवं रिति-रिवाजों को बहुत कुछ अपना लिया था. 

सल्तनत के अन्तर्गत मुसलमान शासक वर्ग में थे. सुल्तान प्रशासन में हिन्दुओं की सहायता भी लेता था. हिन्दुओं से जजिया लिया जाता था. सामान्यतः उन्हें प्रशासन में महत्वपूर्ण पद नहीं दिए जाते थे. उन पर कुछ धार्मिक प्रतिबन्ध भी थे. फिर भी, हिन्दू-मुस्लिम विभेद की खाई बहुत गहरी नहीं थी. अनेक स्थानीय सुल्तानों ने धार्मिक सहिष्णुता की नीति भी अपनाई. 

भक्ति-आन्दोलन ने भी आपसी भेद-भाव को मिटाने मे मदद किया. बोलचाल की सामान्य भाषा हिन्दी अथवा उर्दू बन गई थी. हिन्दू-मुसलमान दोनों ही वर्गों में तीन सामाजिक उपवर्ग थे – सामंत वर्ग, माध्यम वर्ग तथा निम्न वर्ग. 

समाज में अनेक कुप्रथाएं – बाल विवाह, सती-प्रथा, जौहर, मधपान, ध्रुतकीड़ा, वेश्यावृत्ति इत्यादि प्रचलित थी. स्त्रियों की स्थिति दयनीय थी. राज्य की तरफ से शिक्षा की कोई भी व्यवस्था नहीं की गई थी. हिन्दू विद्यार्थी पाठशाला एवं मुस्लिम बच्चे मकतब में शिक्षा ग्रहण करते थे. शिक्षा से केवल अभिजात वर्ग ही लाभाविन्त होते थे. सामाजिक भेद-भाव एवं छुआ-छूत जैसी बुराईयां समाज में मौजूद थीं. इस प्रकार, भारतीय समाज अनेक दुर्बलताओं से ग्रस्त था.

बाबर के आक्रमण के समय भारत की धार्मिक स्थिति 

हिन्दू-समाज में वैष्णव, जैन, शैव, शाक्त और अन्य कई सम्प्रदाय और मत मतान्तर प्रचलित थे. मंदिरों में धर्म के नाम पर दुराचरण होता था. तंत्र-मंत्र अनुष्ठान, भूत-प्रेत, मूर्ति पूजा, कर्मकाण्ड, यज्ञ, अनुष्ठान हवन, पूजा पाठ आदि कई बातों में विश्वास किया जाता था. बहुदेववाद का प्रचलन था. पशु बलि-प्रथा प्रचलित थी. धर्म को बहुत ही संकीर्ण बना दिया गया था. धर्म शास्त्रों का अध्ययन केवल ब्राह्मण वर्ग तक ही सीमित था. 

पन्द्रहवीं और सोलहवीं शताब्दी में हिन्दू-धर्म व समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने के लिए रामानन्द, कबीर, रैदास, चैतन्य, महाप्रभु, गुरू नानक, तुकाराम जैसे भक्तों और संतों ने बहुत प्रयास किया. उन्होंने एकेश्वरवाद पर जोर दिया और भक्ति को ही मुक्ति का साधन माना. जाति प्रथा, अन्ध विश्वास और मिथ्या आडम्बरों का खंडन किया.

इस समय देश में हिन्दू, मुस्लिम समन्वय के प्रयास भी हुए. इसमें भक्ति आंदोलन व सूफी मत के संतों ने काफी योगदान दिया. इससे हिन्दू व मुसलमानों के बीच भ्रातृत्व भावना पैदा हुई और सामाजिक एकता को प्रोत्साहन मिला. तत्कालीन साहित्य, स्थापत्य कला, संस्कृति, धार्मिक व सामाजिक-जीवन में भी उन्नति हुई और धार्मिक सहिष्णुता की भावना में विशेष वृद्धि हुई.

बाबर के आक्रमण के समय भारत की आर्थिक स्थिति

आर्थिक दृष्टि से भी समाज में प्रथम, मध्यम और निम्न वर्ग थे. प्रथम वर्ग बहुत ही सम्पन्न एवं समृद्ध था, जिसमें बड़े-बड़े शासक, मध्ययुगीन कोटि के सामन्त और पदाधिकारी तथा धनवान लोग सम्मिलित थे. यह वर्ग विलास प्रिय जीवन व्यतीत करता था. मध्यम वर्ग में छोटे-छोटे अमीर, सामन्त व्यापारी आदि सम्मिलित थे. निम्न वर्ग में सैनिक, शिल्पी, श्रमिक और कृषक वर्ग था, जो प्राय: सादा-जीवन व्यतीत करता था.

भारत की आर्थिक स्थिति का वर्णन करते हुए बाबर लिखता है कि हिन्दुस्तान एक विशाल देश है. यहां पर पर्याप्त मात्रा में सोना और चांदी है. यहां हर एक पेशे और व्यापार के अनगिनत व्यक्ति है. रोजगार एवं व्यापार में लोग पुश्तैनी आधार पर काम करते है. 

जहांगीर के समय के एक ग्रन्थ तारीख-ए-दाऊदी में भी बाबर के भारत आगमन के समय की आर्थिक अवस्था का उल्लेख किया गया है. इस ग्रन्थ के अनुसार अलाउदीन खिलजी के शासन के अतिरिक्त अनाज कपड़ा एवं अन्य वस्तुएं सुल्तान इब्राहिम के समय मे जितनी सस्ती थी उतनी कभी भी नहीं हुई. एक बहलोली सिक्के मे दस मन अनाज, पांच सेर मक्खन (घी) तथा दस गज कपड़ा खरीदा जा सकता था. अत्यधिक वर्षा होने से उपज बहुत अधिक होती थी. 

अन्य विवरणों से भी भारत की आर्थिक सम्पन्नता की जानकारी मिलती है. भारतियों का मुख्य व्यवसाय कृषि उद्योग एवं व्यापार था. वस्त्र उद्योग सबसे प्रमुख उद्योग था. भारत का आंतरिक एवं विदेशी व्यापार काफी विकसित था. भारत का व्यापारिक सम्बन्ध चीन, अफगानिस्तान, ईरान, तिब्बत, भूटान, मध्य एशियाई देशों तथा यूरोप से भी था. भारत विदेशों को वस्त्र, अफीम, अनाज, नील, एवं गरम मसालों का निर्यात करता था, तथा घोड़ो का आयात मख्य रूप से करता था. भारत की आर्थिक सम्पन्नता जानकर ही बाबर ने भारत विजय की योजना बनाई. 

इस प्रकार, बाबर के आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक, सामाजिक, एवं सैनिक व्यवस्था अत्यन्त दुर्बल थी, राजनीतिक प्रतिर्स्पद्धा एवं विद्वेष की भावना चरम सीमा पर पहुंच गई थी. राष्ट्रीयता एवं देशप्रेम की भावना का सर्वथा अभाव था. भारतीय समाज एवं सैन्य व्यवस्था भी खोखली हो चुकी थी भारत बिल्कुल निःसहाय स्थिति में था. बाबर ने इस परिस्थति का लाभ उठाया.

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