ऐनेलिडा संघ (Phylum Annelida) का वर्गीकरण व लक्षण

ऐनेलिडा संघ में उन जंतुओं को शामिल किया गया है, जिनका शरीर बेलनाकार लंबा कोमल तथा कृमि के जैसा होता है. इनका शरीर खंडों में विभक्त होता है अर्थात इनके शरीर पर खंड बने हुए होते हैं. इस संघ के जंतुओं में प्रचलन के लिए सीटी (Ceatea) नामक संरचना भी पाई जाती है. ऐनेलिडा शब्द की उत्पत्ति दो शब्दों से मिलकर हुई है, Annulus = Small Rings  अर्थात छोटे-छोटे छल्ले व Edos = Form/Worm जिसका अर्थ है- कृमि. इस प्रकार से कह सकते हैं, कि वे जीवधारी जिनके शरीर पर छोटे-छोटे छल्ले पाए जाते हैं.

इनका शरीर लंबा बेलनाकर और कृमि के समान होता है. ऐसे सभी जंतुओं का ऐनेलिडा संघ के अंतर्गत अध्ययन किया जाता है. ऐनेलिडा संघ का प्रमुख लक्षण कि इसके सभी जंतुओं के शरीर पर छोटे-छोटे छल्ले पाये जाते है. इन्ही छोटे-छोटे छल्लो के कारण से ऐनेलिडा संघ के जंतुओं को कहीं भी आसानी से पहचाना जा सकता है.

ऐनेलिडा का नामकरण (Nomenclature of Annelida)

ऐनेलिडा संघ का नामकरण जीन-बैप्टिस्ट लैमार्क (Jean-Baptiste Lamarck) ने 1801 ईस्वी में किया था. वे पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने इन जीवों को एक अलग संघ (Phylum) के रूप में वर्गीकृत किया. वर्तमान में एनीलिडा संघ के जीव-जंतुओं की 10,000 से अधिक जातियाँ (Species) ज्ञात हैं, जबकि कई प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी है. इस संघ में केंचुआ (earthworms), जोंक (leeches) और समुद्री कृमि (marine worms) जैसे जीव शामिल हैं.

ऐनेलिडा संघ के लक्षण (Characteristics of Phylum Annelida)

ऐनेलिडा संघ के लक्षणों को निम्न प्रकार वर्गीकृत किया गया है:-

1. आवास एवं प्रकृति: ऐनेलिडा संघ के जीव जंतु संपूर्ण विश्व में नम मिट्टी में जल में बिलों में रहते हैं एवं कुछ जंतु परजीवी (Parasite) भी होते हैं. ऐनेलिडा संघ के जंतु मांसाहारी सर्वभक्षी और रक्त खाने वाले होते हैं.

2. शारीरिक आकृति: ऐनेलिडा संघ के जंतु अधिकतर शरीर में बेलनाकार, कोमल तथा हमेशा लंबे आकार के होते हैं.

3. सममिति: इस संघ के जंतु त्रिजनन स्तरीय जंतु होते हैं.

4. खंडी भवन: ऐनेलिडा संघ का सबसे प्रमुख लक्षण इस संघ के जंतुओं का छोटे-छोटे छल्लो का धारण करना है. इन जंतुओं के पूरे शरीर पर छल्लो के समान संरचना होती है, और पूरा शरीर खंडों में विभाजित होता हैं, जिसे समखंडीभवन भी कहते हैं, जबकि कुछ जंतुओं में यह खड़ीभवन बाहर होता है, तो कुछ जंतुओं में आंतरिक भी होता है.

5. प्रचलन: ऐनेलिडा संघ के जंतुओं में प्रचलन काइटिन की बनी हुई सीटी नामक संरचना से होता है. यह पेशियों के द्वारा नियंत्रित रहती है, जबकि कुछ जंतुओं में सीटी पंखे की आकृति के संरचना में होते हैं जिसे पेरापोडिया कहा जाता है.

6. देहभित्ति:  ऐनेलिडा संघ के जंतुओं की देहभित्ति का बाहरी आवरण पतली क्यूटिकल के स्तर से ढका हुआ रहता है, जबकि नीचे कोशिकीय स्तर मोटा एपिडर्मिस (Apidermis) का बना होता है. इस स्तर के नीचे ही अनुदैर्ध्य पेशियाँ पाई जाती है.

7. देहगुहा: ऐनेलिडा संघ के जंतुओं की देहगुहा वास्तविक देहगुहा कहलाती है. यह पूर्णतया विकसित होती है, जो शीजोसीलिक प्रकार की होती है.

8. पोषण और उत्सर्जन: ऐनेलिडा संघ के जंतुओं में पोषण सर्वभक्षी मांसाहारी तथा परजीवी प्रकार का होता है, जबकि इनकी आहार नाल पूर्ण सीधी होती है, तथा पाचन वाह्य कोशिकीय प्रकार का होता है. इन जंतुओं में उत्सर्जन नेफ्रीडिया नामक संरचना से होता है, जो शरीर के बाहर अथवा आहार नाल में खुलते हैं.

9. परिसंचरण तंत्र: ऐनेलिडा संघ के जंतुओं में परिसंचरण तंत्र विकसित होता है, जो ऐनेलिडा संघ का लक्षण है. ऐनेलिडा संघ के जंतुओं में परिसंचरण तंत्र खुले प्रकार का एवं बंद प्रकार का दोनों प्रकार का ही पाया जाता है.  ऐनेलिडा संघ के जंतुओं के संपूर्ण शरीर में रक्त वाहिनी और रक्त कोशिकाओं का जाल फैला रहता है, रक्त में श्वसन वर्णक हीमोग्लोबिन और हीमोसाइएनिन पाया जाता है, जो रक्त में घुलनशील अवस्था में होता है. इन प्राणियों के रक्त में विभिन्न प्रकार की रक्त कणिकाएँ भी पाई जाती हैं, जबकि कुछ जंतुओं में ह्रदय में वाल्व भी देखने को मिलते हैं.

10.श्वसन तंत्र: ऐनेलिडा संघ में श्वसन तथा श्वसन अंगक  अनुपस्थित होते हैं. इन जंतुओं में श्वसन क्रिया बाहरी सतह के द्वारा या गिल्स के द्वारा होती है.

11. तंत्रिका तंत्र: ऐनेलिडा संघ का लक्षण है, कि इसमें सुविकसित तंत्रिका तंत्र पाया जाता है. इसके अंतर्गत गैन्ग्लिया, संयोजक तंत्रिकायें पाई जाती हैं, शरीर के मध्य अधर भाग में तंत्रिका रज्जु पाई जाती हैं, जिससे प्रत्येक खंड गैन्ग्लिया एवं तंत्रिकायें निकलती हैं.

12. संवेदी अंग: ऐनेलिडा संघ के जंतुओं में संवेदी अंग एक प्रमुख लक्षण है. इनमें विभिन्न प्रकार के संवेदी अंग जैसे- स्पर्श, स्वाद संवेदी अंग प्रकाश संवेदी कोशिकाएँ लेंस युक्त नेत्र और स्टेटोसिस्ट संवेदी अंग पाए जाते हैं.

13. प्रजनन तंत्र: इनमें द्विलिंगी तथा एकलिंगी जंतु होते हैं इन जंतुओं के जनद अंग और जनद वाहिनियाँ भी विकसित होती है.

14. परिवर्धन: ऐनेलिडा संघ में निषेचन आंतरिक तथा बाहरी होता है. द्विलिंगी जंतुओं में प्रत्यक्ष एवं एकलिंगी जंतुओं ट्रोकोफोर लार्वा अवस्था सहित अप्रत्यक्ष प्रकार का परवर्धन होता है.

Characteristics of Phylum Annelida

ऐनेलिडा संघ का वर्गीकरण (Classification of Phylum Annelida)

ऐनेलिडा संघ के लक्ष्णों जैसे प्रत्येक खंड में सीटी की संख्या, शरीर में खंडों की संख्या के आधार पर चार वर्गों में किया गया है.

वर्ग पोलिकीटा (Class Policheata)

इसके सामान्य लक्षण (common symptoms) इस प्रकार हैं:
1.इस वर्ग के जंतु अधिकांश समुद्री तथा मांसाहारी जंतु होते हैं. किन्तु कुछ सदस्य स्वच्छ जल में भी पाए जाते हैं.

2. इन जंतुओं का शरीर बेलनाकार वाह्य तथा आंतरिक रुप से भी खंडित होता है.

3. इनके शरीर के अग्रभाग पर सिर स्पष्ट जिस पर नेत्र रोमगुच्छक आदि उपस्थित होते हैं.

4. इनके शरीर में क्लाइटेलम का अभाव होता है.

5. इन जंतुओं में प्रचलन पैरापोड़िया के द्वारा होता है जिस पर शूक उपस्थित होते हैं.

6. लिंग पृथक होते हैं, जबकि जनद अस्थाई तथा अनेक खंडों में बनते हैं.

7. परिवर्धन कायांतरण के द्वारा होता है तथा ट्रोकोफोर लार्वा पाया जाता है.

इस वर्ग को दो उप वर्गों में बांटा गया है:-

(A) इरेन्शिया (Errantia)

इरेंटिया के सदस्य मुख्य रूप से स्वतंत्र रूप से चलने वाले या विचरणशील (free-moving or wandering) कृमि होते हैं. उनके शरीर में कई खंड होते हैं, और प्रत्येक खंड में एक जोड़ी पार्श्वपाद (parapodia) पाए जाते हैं. ये पार्श्वपाद चलन (locomotion), श्वसन और भोजन ग्रहण करने में सहायता करते हैं. इनकी विशेषताएं इस प्रकार हैं:

  • ये समुद्री जीव होते हैं.
  • इनका शरीर लंबा और बेलनाकार होता है.
  • इनमें पार्श्वपाद और बहुत सारे शूक (chaetae) पाए जाते हैं.
  • इनका सिर और संवेदी अंग (sensory organs) स्पष्ट और विकसित होते हैं.
  • उदाहरण: नेरीस (Nereis).

(B) सेडेन्टरीयल (Sedentaria)

सेडेंटारिया के सदस्य आमतौर पर स्थिर जीवनशैली (sedentary lifestyle) अपनाते हैं. वे या तो बिलों में रहते हैं या ट्यूब जैसी संरचनाओं में स्थिर रहते हैं. इनके पार्श्वपाद या तो अनुपस्थित होते हैं या बहुत कम विकसित होते हैं.

इनकी विशेषताएँ इस प्रकार हैं:

  • ये समुद्री, मीठे पानी के या स्थलीय जीव हो सकते हैं.
  • इनके पार्श्वपाद कम विकसित होते हैं या अनुपस्थित होते हैं.
  • इनके शरीर में शूक (chaetae) की संख्या कम होती है.
  • इनका सिर और संवेदी अंग कम विकसित होते हैं.
  • उदाहरण: केंचुआ (Earthworm) और जोंक (Leech).

वर्ग आर्कीएनिलिडा (Class Archiannelida)

इसके सामान्य लक्षण (common symptoms) इस प्रकार हैं:
1. यह प्राणी समुद्री संकीर्ण लम्बे और बेलनाकार होते हैं.
2. इन प्राणियों का खंड विभाजन आंतरिक पैरापोडिया एवं शूक सीटी अनुपस्थित होते हैं.
3. इनके शरीर वाह्य विखंडन अस्पष्ट होता है.
4. यह प्राणी एकलिंगी होते हैं. जिनमें जनद केवल जनदकाल में ही पाए जाते हैं.
5. इनके  परिवर्धन में ट्रोकोफोर लार्वा पाया जाता है.

वर्ग ओलीगोकीटा (Class Oligochaeta)

इसके सामान्य लक्षण (common symptoms) इस प्रकार हैं:
1. यह प्राणी नम भूमि में तथा स्वच्छ जल में भी पाए जाते हैं.
2. इन प्राणियों का सिर अस्पष्ट तथा उपांग अनुपस्थित होते है.
3. इनमें चलन काइटिन की बनी S प्रकार की आकृति की सीटीयों के द्वारा होता है.
4. इस वर्ग के जंतुओं में क्लाइटेलम उपस्थित होता है. यह प्राणी उभयलिंगी होते है.

5. इस वर्ग के जंतुओं में जनन नलिकाएँ पाई जाती हैं.

6. इस वर्ग के जंतुओं में निषेचन कोकून के बाहर होता है, तथा अंडे कोकून में इकट्ठे होते हैं.

वर्ग हीरूडिनिया (Class Hirudinea)

इसके सामान्य लक्षण (common symptoms) इस प्रकार हैं:
1. यह प्राणी प्रायः स्वच्छ जल में पाए जाते हैं. जो स्वतंत्र एवं पर परजीवी के रूप में होते हैं.
2. इनका शरीर हमेशा चपटा लसलसा बाह्यरूप खंडित प्रत्येक खंड फिर से खंडित होता है.तथा खंडों की संख्या निश्चित होती है. इस वर्ग के प्राणियों के सिर एवं स्पर्शकों का अभाव होता है.
3. शरीर के आगे तथा पीछे बाले सिरे पर चूषक  उपस्थित होते हैं. जो चिपकने, चलने में मदद करते हैं.

4. देहगुहा में बोट्रीआयडल ऊतक भरे होते हैं.
5. इस वर्ग के प्राणी उभयलिंगी होते हैं.
6. इनमें निषेचन आंतरिक तथा एक नर तथा एक मादा जनन छिद्र होता है.

फाइलम एनलिडा के दो उदाहरण (Two Examples of Phylum Annelida)

फाइलम एनेलिडा के दो उदाहरण निम्न प्रकार हैं

1. हिरूडिनेरिया (Hirudinea)

वर्गीकरण (classification)

संघ (phylum) – ऐनेलिडा (Annelida)

वर्ग (class) – हीरूडिनिया (Hirudinea)

गण (order) – ग्नेथोबडलाइदा  (Gnathobdellida)

वंश ( genus) – हिरूडिनेरिया (Hirudinaria)

सामान्य लक्षण common symptoms

यह प्राणी स्वच्छ जल में पाया जाने वाला प्राणी होता है, जिसे सामान्य जौंक कहा जाता है. यह प्राणी बाह्य परजीवी के रूप में होता है. इसका शरीर 12 से 34 सेमी लंबा तथा यह गहरे हरे भूरे रंग का पृष्ठ अधरतल पर चपटा तथा बाहर से  33 सम खंडों में विभाजित होता है. सिर अविकसित अग्र अधरतल पर होता है. तथा मुख चूषक उपस्थित होते है.

इनमें एक से पांच खंडों पर पृष्ठ तल पर एक एक जोड़ी नेत्र तथा 22 वें खंड के अधर तल पर एक जोड़ी उत्सर्गिका छिद्र तथा 10 वे खंड में नर और 11 वे खंड में  मादा जनन छिद्र पाए जाते हैं. इस प्राणी में रक्त चूषक स्वसन देहभित्ति के द्वारा होता है. पश्च सिरे पर एक बड़ा चूषक पाया जाता है. यह प्राणी द्विलिंगी होते है.

2. ऐरेनिकोला (Arenicola)

Image of Arenicola marina (Northern Lugworm)
Arenicola marina

वर्गीकरण Classification
संघ (Phylum ) – ऐनेलिडा (Annelida)

वर्ग (Class) – पोलिकीटा (Polychaeta)

वंश (Genus) – ऐरेनिकोला (Arenicola)

सामान्य लक्षण Common Symptoms

इस जीव को लग या लोब वर्म कहते है. इस जीव का शरीर लंबा बेलनाकार में  20 सेंटीमीटर तक लंबा हरा भूरे रंग का होता है. शरीर तीन भागों में अग्र मध्य और पश्च भाग में विभाजित होता है. इस जीव का अग्र भाग मोटा जिसमें पेरीस्टोमियम जिसमें प्रथम 6 सेटीजेरस खंड होते है. मध्य भाग में 13 वे खंड में सीटी एवं शाखान्वित क्लोम पाए जाते हैं. पश्च भाग पतला अनेक खंडो बाला जिसमें सीटी पैरापोड़िया और क्लोम का अभाव होता है.

प्रोसटोमियम के आधर तल में मुख पाया जाता है. इस जीव में 6 जोड़ी उत्सर्गिका पायी जाती है. जो मछली को पकड़ने का काम करती है.

अक्सर जाने वाले प्रश्न (FAQs)

Q.1. ऐनेलिडा के मुख्य उत्सर्जी अंग क्या हैं?

उत्तर: ऐनेलिडा में उत्सर्जन के लिए नेफ्रीडिया नामक विशेष संरचनाएँ होती हैं. ये उत्सर्जी अंग प्रत्येक खंड (segment) में पाए जाते हैं और शरीर से अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालने का कार्य करते हैं.

Q.2. ऐनेलिडा संघ की दो प्रमुख विशेषताएँ बताइए?

उत्तर: ऐनेलिडा संघ के जीवों की दो प्रमुख विशेषताएँ हैं:
1. खंडित शरीर (Segmented Body): इनका शरीर खंडों या छल्लों में विभाजित होता है, जो बाहर से स्पष्ट दिखाई देते हैं.
2. सीलोम (Coelom): इनमें एक सच्ची देहगुहा (true body cavity) पाई जाती है, जिसे सीलोम कहा जाता है.

Q.3. क्या केंचुआ दो टुकड़ों में कटने पर जीवित रह सकता है?

उत्तर: हाँ, केंचुए में पुनर्जनन (regeneration) की क्षमता होती है. यदि इसे बीच से काट दिया जाए, तो कटे हुए दोनों टुकड़े अपनी खोई हुई संरचनाओं को फिर से विकसित कर सकते हैं. हालाँकि, यह हमेशा संभव नहीं होता; पुनर्जनन की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि शरीर का कौन सा हिस्सा कटा है और क्या उसमें महत्वपूर्ण अंग मौजूद हैं.

Q.4. हिरुडिन को क्यों महत्वपूर्ण माना जाता है?

उत्तर: हिरुडिन एक शक्तिशाली थक्कारोधी (anticoagulant) पॉलीपेप्टाइड है जो जोंक (leech), विशेषकर हिरुडो मेडिसिनलिस की लार ग्रंथियों में पाया जाता है. यह रक्त को जमने से रोकता है. चिकित्सा क्षेत्र में इसका उपयोग रक्त के थक्कों को घोलने और रक्त परिसंचरण को बेहतर बनाने के लिए किया जाता है.

Q.5. “रेत का कीड़ा” (Sandworm) क्या होता है?

उत्तर: नेरीस (Nereis) को सामान्यतः “रेत का कीड़ा” कहा जाता है. यह एक समुद्री ऐनेलिड है जो गीली रेत और मिट्टी में बिल बनाकर रहता है. इसे वैज्ञानिक रूप से एलिटा विरेन्स के नाम से भी जाना जाता है और यह मछुआरों के लिए एक लोकप्रिय चारा (bait) है.

Q.6. क्या केंचुए में हृदय होता है?

उत्तर: केंचुए में एक सच्चा, एकल हृदय नहीं होता. इसके बजाय, इसमें पाँच जोड़ी महाधमनी चाप (aortic arches) होते हैं, जो हृदय जैसी संरचनाओं के रूप में कार्य करते हैं. ये चाप पृष्ठीय और अधर रक्त वाहिकाओं के साथ मिलकर एक बंद परिसंचरण तंत्र (closed circulatory system) का निर्माण करते हैं, जो शरीर में रक्त को पंप करता है.

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