प्लासी युद्ध: पृष्ठभूमि, कारण, घटनाएं, परिणाम व महत्व

प्लासी युद्ध के शुरुआत के कई छिपे रहस्य थे. रॉबर्ट क्लाइव, सिराजुद्दौला को बंगाल की गद्दी से उतारने की अपनी योजना को अंतिम रूप देने में लगा हुआ था. उसने नवाब सिराजुद्दौला को एक पत्र लिखा, जिसमें उस पर अलीनगर की संधि (फरवरी 1757) को तोड़ने और फ्रांसीसियों के साथ साठगांठ करने जैसे विभिन्न आरोप लगाए. जब सिराजुद्दौला को यह पत्र मिला, तो उसने भी अपनी सैनिक तैयारियां प्रारंभ कर दीं और अपनी सेना को लेकर मुर्शिदाबाद के दक्षिण में भागीरथी नदी के किनारे प्लासी (पलाशी) नामक स्थान पर पहुँच गया. क्लाइव भी अपनी सेना लेकर प्लासी के लिए प्रस्थान कर गया.

नवाब के अधीन लगभग 50,000 सैनिक थे, जिनको देखकर क्लाइव घबरा गया. इसी समय उसको अफवाह मिली कि मीर जाफर (नवाब का सेनापति) नवाब से मिल गया है, तो उसकी चिंता और भी बढ़ गई. वह इस परिस्थिति पर विचार ही कर रहा था. उसी वक्त उसे मीर जाफर का अंतिम संदेश मिला, जिसमें उससे अगले दिन आक्रमण करने का आग्रह किया गया था. उस समाचार के मिलते ही उसने नवाब की सेना पर आक्रमण करने का निश्चय किया.

प्लासी युद्ध की पृष्ठभूमि

प्लासी के युद्ध की नींव 1756 में ही पड़ गई थी, जब अप्रैल 1756 में नवाब अलीवर्दी खाँ की मृत्यु के बाद उसका नाती (पुत्री का पुत्र) सिराजुद्दौला बंगाल का नवाब बना.

  1. आंतरिक शत्रुता: सिराजुद्दौला के नवाब बनने से उसकी मौसी घसीटी बेगम, उसका चचेरा भाई पूर्णिया का नवाब शौकत जंग और उसका अपना सेनापति मीर जाफर खुश नहीं थे. बंगाल के सबसे धनी बैंकर जगत सेठ भी नवाब के खिलाफ थे.
  2. अंग्रेजों से तनाव: नवाब अंग्रेजों द्वारा की जा रही किलेबंदी और शाही ‘दस्तक’ (व्यापार परमिट) के दुरुपयोग से नाराज था. उसने अंग्रेजों को किलेबंदी रोकने का आदेश दिया, जिसे फ्रांसीसियों ने मान लिया पर अंग्रेजों ने नहीं.
  3. कलकत्ता पर आक्रमण: अंग्रेजों द्वारा आदेश न माने जाने पर सिराजुद्दौला ने जून 1756 में कलकत्ता पर आक्रमण कर फोर्ट विलियम पर कब्जा कर लिया.
  4. कालकोठरी की घटना (Black Hole of Calcutta): इसी दौरान कथित “कालकोठरी की घटना” हुई. यह प्रचारित किया गया कि नवाब ने 146 अंग्रेज बंदियों को एक छोटी सी कोठरी में बंद कर दिया, जिसमें 123 की दम घुटने से मौत हो गई. इस घटना ने अंग्रेजों को नवाब के खिलाफ बदले की आग में झोंक दिया, हालाँकि कई इतिहासकार इस घटना की सत्यता या मृतकों की संख्या पर संदेह करते हैं.
  5. अलीनगर की संधि: इस घटना की खबर मद्रास पहुँचने पर, रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में एक सेना कलकत्ता भेजी गई. क्लाइव ने जनवरी 1757 में कलकत्ता पर पुनः अधिकार कर लिया. विवश होकर नवाब को अंग्रेजों के साथ फरवरी 1757 में “अलीनगर की संधि” करनी पड़ी. इस संधि के तहत अंग्रेजों को उनके पुराने व्यापारिक अधिकार वापस मिल गए, किलेबंदी की अनुमति मिल गई और नवाब को हर्जाना भी देना पड़ा.
  6. क्लाइव का षड्यंत्र: क्लाइव इस संधि से संतुष्ट नहीं था; वह सिराजुद्दौला को हटाकर एक कठपुतली नवाब चाहता था. उसने नवाब के असंतुष्ट अधिकारियों— मीर जाफर (सेनापति), राय दुर्लभ (कोषाधिकारी) और जगत सेठ (बैंकर) के साथ मिलकर एक गुप्त षड्यंत्र रचा. इस षड्यंत्र के तहत मीर जाफर को बंगाल का अगला नवाब बनाने का वादा किया गया.

प्लासी युद्ध के कारण (Reasons for Plassey War)

प्लासी का युद्ध अनिवार्य रूप से क्लाइव के षड्यंत्र और ब्रिटिश विस्तारवाद का परिणाम था. यह सिराजुद्दौला और अंग्रेजों के मध्य 23 जून 1757 ई. को प्रारंभ हुआ. इसके प्रमुख कारण इस प्रकार हैं:

1. उत्तराधिकार का संघर्ष और आंतरिक षड्यंत्र

सिराजुद्दौला के नवाब बनने से उसकी मौसी घसीटी बेगम और चचेरा भाई शौकत जंग (जो पूर्णिया का शासक था) उसका विरोध कर रहे थे. इस आंतरिक फूट का अंग्रेजों ने भरपूर लाभ उठाया. क्लाइव ने नवाब के प्रमुख अधिकारियों जैसे सेनापति मीर जाफर, दीवान राय दुर्लभ और बंगाल के सबसे बड़े साहूकार जगत सेठ को नवाब बनाने का लालच देकर अपने षड्यंत्र में शामिल कर लिया.

2. यूरोप मे सप्तवर्षीय युद्ध

यूरोप मे सप्तवर्षीय युद्ध (1756-1763) आरंभ हो चुका था, जिसमें ब्रिटेन और फ्रांस एक-दूसरे के शत्रु थे. इस युद्ध का प्रभाव भारत में भी पड़ा. फ्रांसीसियों से सुरक्षा के बहाने अंग्रेजों ने नवाब की अनुमति के बिना कलकत्ता की किलेबंदी आरंभ कर दी. नवाब ने इसे अपनी संप्रभुता पर हमला माना और किलेबंदी गिरा देने का आदेश दिया. फ्रांसीसियों ने आदेश मान लिया, पर अंग्रेजों ने इसका उल्लंघन किया, जो संघर्ष का एक बड़ा कारण बना.

3. अंग्रेज और फ्रांसीसी शत्रुता

अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के बीच पुरानी व्यापारिक और राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता थी. दक्षिण भारत (कर्नाटक) में वे पहले ही लड़ चुके थे. अंग्रेजों को भय था कि सिराजुद्दौला फ्रांसीसियों के साथ मिलकर बंगाल से उनका अस्तित्व समाप्त कर सकता है. अतः वे सिराजुद्दौला को गद्दी से हटाना चाहते थे.

4. व्यापारिक सुविधाओं (दस्तक) का दुरुपयोग

मुगल सम्राट फर्रुखसियर द्वारा 1717 में दिए गए एक फरमान के तहत अंग्रेजों को बंगाल में कर-मुक्त व्यापार (दस्तक) की सुविधा मिली हुई थी. कंपनी के अधिकारी इस ‘दस्तक’ का निजी व्यापार के लिए भी दुरुपयोग करने लगे थे. वे भारतीय व्यापारियों से रिश्वत लेकर उन्हें भी यह पर्ची दे देते थे, जिससे नवाब के खजाने को भारी राजस्व की हानि हो रही थी. सिराजुद्दौला ने जब इस भ्रष्टाचार को रोकने का प्रयत्न किया, तो अंग्रेज उसके विरुद्ध हो गए.

5. नवाब के शत्रुओं को शरण देना

नवाब के कई शत्रु जैसे शौकतजंग, राय दुर्लभ और विशेष रूप से दीवान राजवल्लभ का पुत्र कृष्णवल्लभ, जो खजाने का गबन करके भागा था, को अंग्रेजों ने कलकत्ता में शरण दी. सिराजुद्दौला ने जब कृष्णवल्लभ को सौंपने की माँग की, तो अंग्रेजों ने इससे साफ इनकार कर दिया. नवाब ने इसे अपनी सत्ता को सीधी चुनौती माना.

प्लासी युद्ध का तात्कालिक कारण

इस युद्ध का तात्कालिक कारण अलीनगर की संधि (फरवरी 1757) का उल्लंघन था. क्लाइव ने संधि करने के बावजूद नवाब के खिलाफ षड्यंत्र जारी रखा. जब क्लाइव को अपने षड्यंत्र की सफलता का पूरा विश्वास हो गया, तब उसने नवाब पर “अलीनगर की संधि” तोड़ने का झूठा आरोप लगाते हुए अपनी सेना के साथ मुर्शिदाबाद की ओर प्रस्थान किया.

प्लासी युद्ध की घटनाएं (Incidents of Plassey War)

23 जून, 1757 ई. को प्रातः काल प्लासी के मैदान में युद्ध प्रारंभ हुआ. नवाब की सेना में जहाँ 50,000 सैनिक थे, वहीं क्लाइव के पास मात्र 3,000 सैनिक (जिनमें अधिकांश भारतीय थे) थे. नवाब की सेना के एक छोटे से वफादार दल, जिसका नेतृत्व मीर मर्दन और फ्रांसीसी अधिकारी सिनफ्रे कर रहे थे, ने अंग्रेजों का बड़ी वीरता व साहस के साथ सामना किया.

युद्ध के दौरान अचानक तेज बारिश हो गई. नवाब की सेना अपने तोपखाने और बारूद को ठीक से नहीं ढँक सकी, जिससे उनका बारूद गीला होकर बेकार हो गया. वहीं, अंग्रेजों ने अपने बारूद को तिरपाल से सुरक्षित रखा था.

मीर मर्दन की मृत्यु के बाद सिराजुद्दौला घबरा गया और उसने मीर जाफर से अंग्रेजों पर आक्रमण करने को कहा. मीर जाफर और राय दुर्लभ, जो अपनी सेना की बड़ी टुकड़ियों के साथ चुपचाप खड़े तमाशा देख रहे थे, ने नवाब को युद्ध रोककर वापस महल लौटने की सलाह दी.

सिराजुद्दौला उनकी चाल समझ नहीं पाया और युद्ध क्षेत्र से भागकर मुर्शिदाबाद पहुँच गया. सेना को नेतृत्वविहीन पाकर मीर मर्दन की टुकड़ी भी बिखर गई. क्लाइव ने बिना किसी विशेष लड़ाई के ही युद्ध जीत लिया. यह युद्ध एक वास्तविक लड़ाई कम और एक पूर्वनियोजित विश्वासघात अधिक था.

सिराजुद्दौला को बाद में पकड़ लिया गया और मीर जाफर के पुत्र मीरन के आदेशानुसार उसका वध कर दिया गया. शर्तों के अनुसार, क्लाइव ने मीर जाफर को बंगाल, बिहार और उड़ीसा का नवाब घोषित कर दिया.

प्लासी युद्ध के परिणाम और महत्व (Aftermath of Plassey War)

प्लासी का युद्ध सैनिक दृष्टि से कोई बड़ा युद्ध नहीं था (अंग्रेजों के 30 से भी कम और नवाब के लगभग 500 सैनिक मारे गए), किंतु इसके परिणाम अत्यंत दूरगामी और प्रभावशाली सिद्ध हुए.

1. आर्थिक परिणाम (Economic Consequences)

  • बंगाल की भयंकर लूट: मीर जाफर ने नवाब बनने के एवज में कंपनी और उसके अधिकारियों को अकूत धन दिया. कंपनी को लगभग 2 करोड़ 25 लाख रूपये (आज के अरबों रूपये) की धनराशि और 24 परगने की जागीर मिली.
  • प्लासी की लूट” (Plassey Plunder): क्लाइव और अन्य अधिकारियों को भारी मात्रा में निजी “नजराने” मिले. इस धन ने इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति के लिए पूँजी का काम किया.
  • धन की निकासी” का आरंभ: इस युद्ध के बाद भारत से इंग्लैंड की ओर “धन की निकासी” (Economic Drain) का एक अंतहीन सिलसिला शुरू हो गया. अब कंपनी को व्यापार के लिए इंग्लैंड से सोना-चाँदी मँगाने की आवश्यकता नहीं रही; वे भारत के ही पैसे से भारत का माल खरीदकर इंग्लैंड भेजने लगे.
  • स्थानीय उद्योगों का पतन: कंपनी ने बंगाल में अफीम, शोरा और नमक के व्यापार पर एकाधिकार कर लिया. अंग्रेजों की नीतियों ने बंगाल के समृद्ध कपड़ा उद्योग और दस्तकारों को तबाह कर दिया.

2. राजनैतिक परिणाम (Political Consequences)

  • भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की नींव: यह प्लासी के युद्ध का सबसे महत्वपूर्ण परिणाम था. इस युद्ध ने एक व्यापारिक कंपनी (ईस्ट इंडिया कंपनी) को भारत की एक राजनैतिक शक्ति में बदल दिया. बंगाल पर अप्रत्यक्ष रूप से अंग्रेजों का अधिकार हो गया और भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की नींव पड़ी.
  • किंग मेकर” की भूमिका: अंग्रेज बंगाल में “नवाब बनाने वाले” (King Maker) बन गए. मीर जाफर उनके हाथ की कठपुतली मात्र था. जब मीर जाफर ने उनकी माँगें पूरी करने में आनाकानी की, तो 1760 में उन्होंने उसे हटाकर मीर कासिम को नवाब बना दिया.
  • फ्रांसीसी शक्ति का अंत: बंगाल से अकूत धन मिलने के कारण अंग्रेजों की स्थिति दक्षिण भारत में भी मजबूत हुई. इसी धन के बल पर वे बाद में (1760 में वांडीवाश के युद्ध में) फ्रांसीसियों को निर्णायक रूप से पराजित कर सके.

3. नैतिक और सैन्य महत्व (Moral and Military Significance)

  • नैतिक पतन का प्रदर्शन: प्लासी युद्ध अंग्रेजों की सैन्य श्रेष्ठता के कारण नहीं, बल्कि षड्यंत्र, धोखे और विश्वासघात के बल पर जीता गया था. इसने भारतीय समाज और दरबार की आंतरिक खोखलेपन, फूट और नैतिक दुर्बलता को उजागर कर दिया.
  • भारतीय सेना की कमजोरी: इस युद्ध ने यह भी दिखा दिया कि भारतीय सेना भले ही संख्या में बड़ी हो, लेकिन उसमें एकता, कुशल नेतृत्व और आधुनिक प्रशिक्षण का अभाव था, और उसे आसानी से हराया जा सकता था.
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