यह खंड भारत की जलवायु, इसके निर्धारक कारकों, विशेषताओं, जलवायु क्षेत्रों, और अक्षांश, देशांतर तथा पृथ्वी के वार्षिक परिक्रमण के प्रभाव का विस्तृत अध्ययन प्रस्तुत करता है. यह जानकारी शैक्षिक और अनुसंधान उद्देश्यों के लिए उपयोगी है और विभिन्न स्रोतों से संकलित की गई है.
भारत की जलवायु: परिचय और प्रकार
भारत की जलवायु मुख्यतः उष्णकटिबंधीय मानसूनी है, जो अरबी शब्द “मौसिम” (मौसमी हवाओं की दिशा में परिवर्तन) से ली गई है. यह जलवायु तापमान और वर्षा में महत्वपूर्ण मौसमी भिन्नताओं से चिह्नित है, जो देश में विभिन्न पारिस्थितिक तंत्रों और कृषि प्रथाओं का समर्थन करती है.
जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक
भारत की जलवायु कई भौगोलिक और मौसम संबंधी कारकों से प्रभावित होती है, जिनमें शामिल हैं:
- अक्षांश और देशांतर: भारत उत्तरी गोलार्ध में स्थित है, और कर्क रेखा (23.5°N) इसके मध्य से गुजरती है, जिससे यह उष्णकटिबंधीय क्षेत्र बनता है. इस अक्षांशीय स्थिति के कारण, भारत में सौर विकिरण अधिक मात्रा में प्राप्त होता है, जिससे तापमान उच्च रहता है. देशांतर (68°E से 97°E) भारत को हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी के निकट लाता है, जो मानसून हवाओं को प्रभावित करता है.
- हिमालय पर्वत – उत्तर में ऊंचे हिमालय पर्वत एक प्रभावी जलवायु विभाजक के रूप में कार्य करते हैं. ये पर्वत आर्कटिक वृत्त के पास उत्पन्न होने वाली और मध्य तथा पूर्वी एशिया में बहने वाली ठंडी उत्तरी हवाओं से एक ढाल प्रदान करते हैं. जिससे उत्तरी भागों में भी उष्णकटिबंधीय जलवायु का विस्तार होता है. इन्हीं पहाड़ों के कारण यह उपमहाद्वीप मध्य एशिया की तुलना में अपेक्षाकृत हल्की सर्दियों का अनुभव करता है. ये पर्वत मानसूनी हवाओं को भी रोकते हैं, जिससे उन्हें अपनी नमी उपमहाद्वीप के भीतर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ता है.
- भू-आकृति और जल का वितरण: थार मरुस्थल ग्रीष्म ऋतु में तप्त होकर निम्न वायुदाब केंद्र बनाता है. यह दक्षिण-पश्चिम मानसूनी हवाओं को आकर्षित करता है, जिससे पूरे भारत में वर्षा होती है. पश्चिमी घाट पर्वत श्रृंखला मानसूनी हवाओं को रोककर पश्चिमी तट को अधिक वर्षा देती है.
- मानसून हवाएँ और जेट स्ट्रीम: दक्षिण-पश्चिम मानसून (जून-सितंबर) भारत की कुल वर्षा का 70-80% देता है. जेट स्ट्रीम्स, जो 12 किमी ऊँचाई पर 150-300 किमी/घंटा की गति से चलती हैं, मानसून के पैटर्न को प्रभावित करती हैं.
- समुद्र से दूरी – समुद्र जलवायु पर मध्यम प्रभाव डालता है. जैसे-जैसे समुद्र से दूरी बढ़ती है, इसका मध्यम प्रभाव कम होता जाता है और ऐसे क्षेत्रों में अत्यधिक मौसमी स्थितियां होती हैं. इस स्थिति को महाद्वीपीयता के रूप में जाना जाता है, यानी बहुत गर्म गर्मियां और बहुत ठंडी सर्दियां.
- ऊंचाई – पहाड़ों में स्थान मैदानी इलाकों की तुलना में ठंडे होते हैं क्योंकि ऊंचाई बढ़ने के साथ तापमान घटता है. हालांकि आगरा और दार्जिलिंग एक ही अक्षांश पर स्थित हैं, आगरा में जनवरी में तापमान 16°C होता है जबकि दार्जिलिंग में यह केवल 4°C होता है.
- उच्चावच – भारत की भू-आकृति या उच्चावच भी तापमान, वायुदाब, हवा की दिशा और गति तथा वर्षा की मात्रा और वितरण को प्रभावित करता है. पश्चिमी घाट और असम के पवनमुखी किनारों पर जून और सितंबर के दौरान भारी वर्षा होती है, जबकि दक्षिणी पठार पश्चिमी घाट के अनुवात की स्थिति के कारण शुष्क रहता है.
- अन्य मौसम संबंधी कारक:
- एल नीनो और ला नीना: एल नीनो के दौरान प्रशांत महासागर का तापमान बढ़ने से भारत में वर्षा कम हो सकती है, जबकि ला नीना वर्षा बढ़ा सकती है.
- दक्षिणी कंपन (Southern Oscillation): भारतीय और प्रशांत महासागरों के बीच वायुदाब में परिवर्तन मानसून को प्रभावित करता है.
- उष्णकटिबंधीय चक्रवात: बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से उठने वाले चक्रवात तटीय क्षेत्रों में भारी वर्षा लाते हैं.

मानसून क्या है? |
भारत में मानसून मुख्य रूप से जून से सितंबर तक सक्रिय रहता है और कृषि के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है. मानसून एक मौसमी हवा है जो मुख्य रूप से दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में वर्षा लाने के लिए जानी जाती है. मानसून हवाएँ मौसम के अनुसार दिशा बदलती हैं और गर्मियों में समुद्र से स्थल की ओर नम हवाएँ लाती हैं, जिससे भारी वर्षा होती है. वहीं, वर्षा के रूप में नमी छोड़ने के बाद सर्दियों में ये शुष्क हो जाते है. ये शुष्क हवाएँ स्थल से समुद्र की ओर बहती हैं. |
मानसून कैसे उत्पन्न होता है? |
मानसून का उत्पत्ति तापमान और वायुदाब के अंतर से संबंधित है, जो निम्नलिखित प्रक्रियाओं से होता है: ➣ तापमान का अंतर (Land-Sea Temperature Contrast): गर्मियों में, भारतीय उपमहाद्वीप की भूमि सूर्य की गर्मी से तेजी से गर्म हो जाती है, जबकि हिंद महासागर अपेक्षाकृत ठंडा रहता है. गर्म भूमि पर कम दबाव (Low Pressure) का क्षेत्र बनता है, जबकि समुद्र पर उच्च दबाव (High Pressure) का क्षेत्र रहता है. यह दबाव अंतर हवाओं को समुद्र से स्थल की ओर खींचता है, जो नमी से भरी होती हैं. ➣ हवाओं की दिशा (Wind Patterns): दक्षिण-पश्चिम मानसून हवाएँ हिंद महासागर से नमी लेकर भारतीय उपमहाद्वीप की ओर बढ़ती हैं. ये हवाएँ अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से नमी ग्रहण करती हैं और जब ये पश्चिमी घाट या हिमालय जैसे पर्वतों से टकराती हैं, तो नमी वर्षा के रूप में बरसती है. ➣ कोरिओलिस प्रभाव (Coriolis Effect): पृथ्वी का घूर्णन हवाओं की दिशा को प्रभावित करता है, जिससे मानसून हवाएँ दक्षिण-पश्चिम दिशा में बहती हैं. जेट स्ट्रीम और ITCZ (Inter-Tropical Convergence Zone): गर्मियों में, ITCZ (उष्णकटिबंधीय संनाद क्षेत्र) उत्तर की ओर खिसकता है, जो नम हवाओं को भारत की ओर लाता है. उप-उष्णकटिबंधीय जेट स्ट्रीम भी मानसून की तीव्रता को प्रभावित करती है. ➣ एल नीनो और ला नीना (El Niño and La Niña): ये वैश्विक समुद्री धाराएँ मानसून को प्रभावित करती हैं. एल नीनो और ला नीना, प्रशांत महासागर में समुद्र के तापमान और वायुमंडलीय परिस्थितियों में परिवर्तन के कारण होने वाले दो जलवायु पैटर्न हैं. एल नीनो के दौरान, भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में समुद्र का तापमान औसत से अधिक गर्म हो जाता है, जबकि ला नीना के दौरान यह औसत से अधिक ठंडा हो जाता है. ये दोनों एल नीनो-दक्षिणी दोलन (ENSO) चक्र के विपरीत चरण हैं. एल नीनो कमजोर मानसून और सूखे का कारण बन सकता है, जबकि ला नीना सामान्य या भारी वर्षा ला सकता है. |
भारत में मानसून की प्रगति |
मानसून आमतौर पर मई के अंत या जून की शुरुआत में केरल तट पर प्रवेश करता है. यह धीरे-धीरे पूरे देश में फैलता है, और जुलाई तक अधिकांश भारत में वर्षा होती है. सितंबर-अक्टूबर में मानसून वापसी शुरू करता है, जिसे उत्तर-पूर्व मानसून कहा जाता है, जो तमिलनाडु जैसे क्षेत्रों में वर्षा लाता है. |
जलवायु की विशेषताएँ
भारत की जलवायु की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं:
- मौसमी विविधता: भारतीय मौसम विभाग के अनुसार, भारत में चार मुख्य ऋतुएँ हैं:
- शीत (मध्य दिसंबर से फरवरी, उत्तरी भारत में 10-15°C, पश्चिमी विक्षोभ से वर्षा)
- ग्रीष्म (मार्च से मई, उच्च तापमान, 32-40°C, लू हवाएँ)
- मानसून (जून से सितंबर, दक्षिण-पश्चिम मानसून मुख्य वर्षा स्रोत)
- शरद (सितंबर मध्य से नवंबर, अक्टूबर की गर्मी, पीछे हटते मानसून)
- तापमान वितरण: तटीय क्षेत्रों में तापमान स्थिर रहता है (20-30°C), जबकि उत्तरी मैदानों और थार मरुस्थल में वार्षिक तापमान में बड़ा अंतर आता है. ग्रीष्म में तापमान 32-40°C तक पहुँच सकता है, और मई सबसे गर्म महीना है. शीत में तापमान 10-15°C तक गिर सकता है. हिमालयी क्षेत्रों में तापमान पूरे वर्ष कम रहता है, और बर्फबारी आम है.
- वर्षा पैटर्न: वर्षा असमान रूप से वितरित है. पश्चिमी घाट के पश्चिमी तट और पूर्वोत्तर पहाड़ियों में सबसे अधिक वर्षा होती है, जैसे मौस्यनराम (मेघालय) में विश्व की सबसे अधिक वार्षिक वर्षा (बंगाल की खाड़ी से नमी के कारण). वर्षा पूर्व से पश्चिम की ओर घटती है, और थार मरुस्थल में वर्षा 30 सेमी से कम होती है. एक वर्षा दिवस को 24 घंटों में 2.5 मिमी से अधिक वर्षा के रूप में परिभाषित किया जाता है.
- जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून के पैटर्न में बदलाव आ रहे हैं. अब 80% मानसून प्रणालियाँ मध्य प्रदेश से गुजरात-राजस्थान के रास्ते जाती हैं, जिससे पारंपरिक रूप से शुष्क क्षेत्रों में भी वर्षा बढ़ रही है. तापमान में वृद्धि और वर्षा पैटर्न में बदलाव से कृषि, जल संसाधन, और मानव जीवन पर प्रभाव पड़ रहा है.
भारत के जलवायु क्षेत्र
भारत को कोपेन (Köppen) के जलवायु वर्गीकरण के आधार पर निम्नलिखित क्षेत्रों में बाँटा जा सकता है, जैसा कि नीचे दी गई तालिका में दिखाया गया है:
जलवायु क्षेत्र | विवरण | उदाहरण क्षेत्र |
उष्णकटिबंधीय गीला (Am) | वर्ष भर वर्षा, शुष्क ऋतु छोटी, 250-300 सेमी ग्रीष्म वर्षा | पश्चिमी घाट, पूर्वोत्तर भारत |
उष्णकटिबंधीय गीला-शुष्क (Aw) | ग्रीष्म में वर्षा, शुष्क ऋतु लंबी, 75 सेमी ग्रीष्म वर्षा | दक्षिणी पठार, गंगा मैदान |
अर्ध-शुष्क (BSh) | 30-60 सेमी ग्रीष्म वर्षा, शुष्क जलवायु | राजस्थान, पंजाब |
शुष्क (BWh) | <30 सेमी वर्षा, अत्यंत शुष्क, गर्म रेगिस्तान | थार मरुस्थल, पश्चिमी राजस्थान |
उष्णकटिबंधीय शुष्क ग्रीष्म (As) | ग्रीष्म शुष्क, उत्तर-पूर्व मानसून से वर्षा | कोरोमंडल तट, तमिलनाडु |
उच्च पर्वतीय (E) | पूरे वर्ष तापमान <10°C, बर्फबारी आम | हिमालयी क्षेत्र, जम्मू-कश्मीर |
ये क्षेत्र भौगोलिक विविधता और मौसम पैटर्न के आधार पर भिन्न हैं, जैसे दक्षिण में उष्णकटिबंधीय, उत्तर में उच्च पर्वतीय, और पश्चिम में शुष्क जलवायु.
मानसून सिद्धांत और अतिरिक्त तथ्य

मानसून सिद्धांत (Theories of Monsoon)
- थर्मल थ्योरी: थार मरुस्थल के गर्म होने से निम्न वायुदाब बनता है, जो मानसून हवाओं को आकर्षित करता है.
- ट्रेड विंड थ्योरी: मानसून हवाएँ व्यापारिक पवनों से उत्पन्न होती हैं.
- जेट स्ट्रीम थ्योरी: जेट स्ट्रीम्स मानसून के पैटर्न को प्रभावित करती हैं.
- एल नीनो थ्योरी: 3-8 साल के चक्र में, एल नीनो मानसून की ताकत को कम कर सकता है.
वर्षा तथ्य:
- केरल में दक्षिण-पश्चिम मानसून जून के पहले सप्ताह में आता है.
- लेह में सबसे कम वर्षा होती है, जबकि मौस्यनराम (मेघालय) में विश्व की सबसे अधिक वार्षिक वर्षा होती है.
- तमिलनाडु में अधिकांश वर्षा उत्तर-पूर्व मानसून से होती है.
भारत में ऋतुएँ
भारत की ऋतुएँ इसकी भौगोलिक विविधता और मानसूनी जलवायु को दर्शाती हैं, जो कृषि, जल संसाधनों, और जीवनशैली को प्रभावित करती हैं. हिमालय, हिंद महासागर, और अक्षांशीय स्थिति इन मौसमी पैटर्न को आकार देते हैं, जिसमें क्षेत्रीय तापमान और वर्षा में भारी विविधता देखी जाती है.
मौसम विज्ञानी भारत में चार प्रमुख ऋतुओं को मान्यता देते हैं: शीत ऋतु, ग्रीष्म ऋतु, दक्षिण-पश्चिम मानसून ऋतु (वर्षा ऋतु), और मानसून की वापसी की ऋतु. नीचे प्रत्येक ऋतु का संक्षिप्त विवरण दिया गया है:
शीत ऋतु (मध्य-नवंबर से फरवरी)
उत्तरी भारत में दिसंबर-जनवरी सबसे ठंडे महीने होते हैं. तापमान दक्षिण से उत्तर की ओर घटता है; दिन गर्म और रातें ठंडी होती हैं. हिमालय की ऊँची ढलानों पर बर्फबारी और उत्तरी मैदानों में पाला आम है. तटीय क्षेत्रों में समुद्र के मध्यम प्रभाव से तापमान में मौसमी बदलाव कम होता है.
उत्तर-पूर्वी व्यापारिक हवाएँ शुष्क मौसम लाती हैं, लेकिन तमिलनाडु तट पर समुद्र से नमी के कारण वर्षा होती है. पश्चिमी चक्रवाती विक्षोभ भूमध्यसागर से उत्तर-पश्चिम भारत में वर्षा और हिमालय में बर्फबारी लाते हैं, जो रबी फसलों के लिए महत्वपूर्ण हैं.
ग्रीष्म ऋतु (मार्च से जून)
सूर्य की कर्क रेखा की ओर गति से तापमान बढ़ता है: मार्च में दक्कन पठार पर ~38°C, अप्रैल में गुजरात-मध्य प्रदेश में ~42°C, और मई में उत्तर-पश्चिम में ~45°C. प्रायद्वीपीय भारत में समुद्र के प्रभाव से तापमान 20-32°C रहता है; पश्चिमी घाट की पहाड़ियों में ऊँचाई के कारण <25°C.
उत्तर-पश्चिम में निम्न दबाव के कारण अंतर-उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ) उत्तर की ओर खिसकता है, जो मानसून की शुरुआत के लिए महत्वपूर्ण है.
“लू” (गर्म, शुष्क हवाएँ) उत्तर-पश्चिम में चलती हैं. मई में धूल भरी आँधियाँ, हल्की बारिश और ठंडी हवाएँ राहत देती हैं. पश्चिम बंगाल में “काल बैसाखी” और असम में “बारडोली छीरहा” तूफान चाय, जूट, और चावल की खेती में सहायक हैं. केरल और कर्नाटक में “आम्र वर्षा” (मानसून-पूर्व वर्षा) आमों के पकने में मदद करती है.
दक्षिण-पश्चिम मानसून ऋतु/वर्षा ऋतु (जून से सितंबर)
उत्तर-पश्चिम में निम्न दबाव हिंद महासागर से दक्षिण-पूर्वी व्यापारिक हवाओं को आकर्षित करता है, जो भूमध्य रेखा पार कर दक्षिण-पश्चिम मानसून बनती हैं. ये हवाएँ बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से नमी लाती हैं, जिससे भारी वर्षा होती है. मानसून का “फटना” जून के पहले सप्ताह में केरल तट पर शुरू होता है, जुलाई तक देश के आंतरिक भागों तक पहुँचता है.
- अरब सागर शाखा: यह पश्चिमी घाट पर 250-400 सेमी वर्षा और पूर्वी क्षेत्र (वृष्टि छाया) में कम वर्षा करती है. दूसरी शाखा मध्य भारत में नर्मदा-तापी घाटियों और छोटानागपुर पठार (~15 सेमी) में वर्षा लाती है. तीसरी शाखा सौराष्ट्र-कच्छ और अरावली में हल्की वर्षा करती है.
- बंगाल की खाड़ी शाखा: यह म्यांमार और बांग्लादेश के तट से प्रवेशभारत में प्रवेश करती है. गंगा मैदानों और ब्रह्मपुत्र घाटी में भारी वर्षा लाती है. मॉसिनराम (खासी पहाड़ियाँ) में विश्व की सर्वाधिक औसत वर्षा इसी मॉनसूनी हवा के कारण होता है. तमिलनाडु तट इस दौरान शुष्क रहता है (वृष्टि छाया क्षेत्र).
- मानसून में ठहराव: मानसून गर्त की गति और उष्णकटिबंधीय अवदाबों के कारण वर्षा कुछ दिनों तक होती है, फिर शुष्क अंतराल आते हैं. यह ऋतु कृषि के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि देश की 75% से अधिक वर्षा इसी दौरान होती है.
मानसून की वापसी की ऋतु (अक्टूबर-नवंबर)
सूर्य के दक्षिण की ओर गति से मानसून गर्त कमजोर होकर उच्च दबाव से प्रतिस्थापित होता है. मानसून अक्टूबर की शुरुआत में उत्तरी मैदानों से हटता है. दक्षिणी प्रायद्वीप से दिसंबर तक हट जाता है. इसके कारण हमें साफ आसमान और बढ़ता तापमान की अनुभूति होती है. उच्च आर्द्रता के कारण “अक्टूबर हीट” का सामना भी करना पड़ता है.
नवंबर तक निम्न दबाव बंगाल की खाड़ी में स्थानांतरित होता है, जिससे अंडमान सागर में चक्रवाती अवदाब बनते हैं. ये चक्रवात पूर्वी तट (गोदावरी, कृष्णा, कावेरी डेल्टा) पर भारी वर्षा और विनाश लाते हैं, जो बांग्लादेश, पश्चिम बंगाल, और ओडिशा तक पहुँच सकते हैं. कोरोमंडल तट की अधिकांश वर्षा इन्हीं चक्रवातों और अवदाबों से होती है.
जलवायु और मौसम में अंतर
मौसम अल्पकालिक परिवर्तनों को दर्शाता है, जैसे अचानक बारिश, जबकि जलवायु दीर्घकालिक प्रभावों को, जैसे ग्लेशियर पिघलना, दर्शाती है. मौसम में बदलाव कुछ सेकंड या मिनट या घंटों में हो जाता है, लेकिन जलवायु-परिवर्तन में बदलाव काफी लम्बे वक्त बाद होता है. वास्तव में 30 से 40 साल के मौसम को जलवायु कहा जाता है. जलवायु में बदलाव को करीब 50 साल बाद मापा जा सकता है. मौसम और जलवायु के तत्व समान हैं अर्थात वायुमंडलीय दबाव, तापमान, आर्द्रता, हवा और वर्षा इत्यादि.
दोनों में अंतर नीचे तालिका में वर्णित हैं:
विशेषता | मौसम (Weather) | जलवायु (Climate) |
अर्थ | किसी विशेष क्षेत्र में किसी निश्चित समय पर वातावरण में होने वाले दैनिक परिवर्तन. | किसी निश्चित क्षेत्र के लिए 30+ वर्षों की औसत मौसम संबंधी सांख्यिकीय जानकारी. |
वातावरणीय स्थिति | अल्पकालिक, मिनटों, घंटों या दिनों में बदल सकती है. | दीर्घकालिक, दशकों में औसत वातावरणीय स्थितियाँ. |
प्रभाव | दैनिक मानव जीवन को प्रभावित करता है, जैसे व्यवसाय, परिवहन, संचार, कृषि. | भौगोलिक क्षेत्र की उद्योग, कृषि और आजीविका पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है. |
परिवर्तन की अवधि | जल्दी बदलता है. | लंबी अवधि में बदलता है. |
अभिव्यक्ति | मौसम के तत्वों (जैसे तापमान, वर्षा) के संख्यात्मक मानों के रूप में व्यक्त. | मौसम के तत्वों के समय और क्षेत्र के औसत के रूप में व्यक्त. |
फसल निर्धारण | किसी विशेष मौसम में फसलों की सफलता या विफलता निर्धारित करता है. | क्षेत्र के लिए उपयुक्त फसल प्रकार निर्धारित करता है, नई फसलों के लिए विचार किया जाता है. |
इस प्रकार, भारत की जलवायु उष्णकटिबंधीय मानसूनी है, जो अक्षांश, देशांतर, भू-आकृति, और मानसून हवाओं जैसे कारकों द्वारा निर्धारित होती है. इसकी विशेषताएँ, जैसे मौसमी विविधता, तापमान और वर्षा में अंतर, और विभिन्न जलवायु क्षेत्र, देश की भौगोलिक विविधता को दर्शाती हैं. अक्षांश और देशांतर भारत की जलवायु पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं, जबकि पृथ्वी का वार्षिक परिक्रमण ऋतुओं का निर्माण करता है. जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, जैसे तापमान वृद्धि और मानसून पैटर्न में बदलाव, भविष्य में और अधिक महत्वपूर्ण हो सकते हैं.