गयासुद्दीन तुगलक और तुगलक वंश का स्थापना

गयासुद्दीन तुगलक ने तुगलक वंश की स्थापना की थी. उन्होंने 1320 ई. में दिल्ली सल्तनत की गद्दी संभाली और 1325 ई. तक शासन किया. गयासुद्दीन तुगलक का मूल नाम गाजी मलिक था. उन्होंने तुगलकाबाद शहर की स्थापना की और मंगोलों के विरुद्ध कठोर नीति अपनाई. 

इस लेख में हम गयासुद्दीन तुगलक का राज्यारोहण, तुगलक वंश का स्थापना, और अन्य मौलिक तथ्यों को जानेंगे.

गयासुद्दीन तुगलक का उदय (Rise of Ghiyasuddin Tuglaq in Hindi)

इब्न बतूता के अनुसार तुगलक, करुना तुर्क थे जो कि तुर्किस्तान तथा सिंध के मध्य पहाड़ी क्षेत्र में रहते थे. जब कि फ़रिश्ता के अनुसार तुगलक सुल्तान बलबन का एक गुलाम था जिसकी कि माँ एक भारतीय जाट थी.

गाज़ी मलिक, अर्थात् गयासुद्दीन तुगलक, अपने भाइयों रज्जब और अबू बकर के साथ अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल में खुरसंदुरिंग से भारत आया था. वह जलालुद्दीन खिलजी के शाही रक्षक के रूप में नियुक्त हुआ था. अलाउद्दीन खिलजी ने गयासुद्दीन तुगलक को 10000 के सैनिक टुकड़ी के साथ चगताई मंगोलों से युद्ध करने के लिए दीपलपुर भेजा था. अलाउद्दीन की मृत्यु के बाद उत्पन्न राजनीतिक अस्थिरता का लाभ उठाकर गाज़ी मलिक ने मुल्तान, उच तथा सिंध पर अधिकार कर लिया.

गयासुद्दीन तुगलक का सुल्तान के रूप में राज्यारोहण

अलाउद्दीन खिलजी के पुत्र, सुल्तान कुतबुद्दीन मुबारक शाह को खुसरो खान ने अपदस्थ कर दिया था. गाज़ी मलिक तथा उसके पुत्र फ़ख़ मलिक ने सिंध तथा मुल्तान से सैनिक अभियान के द्वारा खुसरो खान को अपदस्थ कर दिया. इस प्रकार 1320 में गाज़ी मलिक, गयासुद्दीन तुगलक के नाम से दिल्ली का सुल्तान बना और उसके पुत्र फ़ख़ मलिक को मुहम्मद शाह तुगलक का नाम दिया गया.

सुल्तान गयासुद्दीन के सैन्य कार्य

मंगोलों के आक्रमण से दिल्ली की रक्षा करने के लिए गयासुद्दीन तुगलक ने तुगलकाबाद का निर्माण करवाया. इस दुर्ग जैसे नगर में उसने अपने विश्वस्त अमीरों के निवास की व्यवस्था की. सुल्तान ने मंगोलों के आक्रमणों को विफल किया. 1324 में उसने मंगोलों को पराजित कर उन्हें खदेड़कर राज्य की सीमा से बाहर कर दिया.

अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु के बाद के चार वर्ष, राजनीतिक अराजकता और आर्थिक संकट में बीते थे. गयासुद्दीन तुगलक ने अपने साम्राज्य में शांति-व्यस्था स्थापित की और कृषि, उद्योग एवं व्यापार को बढ़ावा देने के लिए राज्य की ओर से प्रोत्साहन दिया.

गयासुद्दीन पहला सुल्तान था जिसने किसानों ने कृषि-आपदा की स्थिति में किसानों को लगान में राहत दिए जाने की व्यवस्था की थी. अलाउद्दीन खिलजी के समय की भूमि की पैमाइश के आधार पर लगान निर्धारण की नीति का परित्याग कर उसने किसानों में लोकप्रिय ‘नस्क’ अथवा ‘बटाई’ की प्रणाली को लागू किया. सुल्तान ने भू-राजस्व में वृद्धि के लिए कृषि-योग्य भूमि का विस्तार भी किया.

तुगलक वंश का शासन (Rule of Tughlaq Dynasty)

साम्राज्य-विस्तार की दृष्टि से तुगलक साम्राज्य, दिल्ली सल्तनत के इतिहास में सबसे विशाल था. विडम्बना यह है कि इसी तुगलक राज्यवंश के एक सुल्तान के काल में दिल्ली सल्तनत -दिल्ली से पालम तक सिमट गयी थी. अर्थात् केवल साम्राज्य-विस्तार की दृष्टि से तुगलक काल दिल्ली सल्तनत की पराकाष्ठा नहीं थी, अपितु साम्राज्य के सिकुड़ने की दृष्टि से और राजनीतिक-सैनिक ह्रास की दृष्टि से भी यह दिल्ली सल्तनत की पराकाष्ठा थी.

दिल्ली सल्तनत के इतिहास में मुहम्मद बिन तुगलक से अधिक विद्वान, उदार विचारक और प्रतिभा का धनी कोई और सुल्तान नहीं हुआ. किन्तु इस अभूतपूर्व प्रतिभा का सदुपयोग न करके अपनी अव्यावहारिक योजनाओं से उसने दिल्ली सल्तनत की शक्ति का जिस प्रकार ह्रास किया, उसे इतिहास में अव्यावहारिकता की पराकाष्ठा कहा जा सकता है.

इसी काल में उत्तर-पश्चिम से दिल्ली सल्तनत पूर्णतया असुरक्षित हो गयी थी. इसी राज्यवंश के पतन के तुरंत बाद पंजाब, तैमूर के साम्राज्य का अंग बन गया था. इसी आधार पर तैमूर के वंशज, बाबर ने इब्राहीम लोदी से पंजाब को अपने अधिकार में दिए जाने की मांग की थी.

इस कालखंड में सूबेदारों और अमीरों के सबसे अधिक विद्रोह हुए और सबसे अधिक स्वतंत्र राज्यों का उदय हुआ था. अर्थात् दिल्ली सल्तनत के इतिहास में तुगलक राज्यवंश, साम्राज्य-विघटन की दृष्टि से भी पराकाष्ठा का युग था.

आर्थिक संकट दूर करने के लिए दरबार में सादगी और मितव्यता को प्राथमिकता दी गयी. सुल्तान ने सैनिक अधिकारियों तथा सैनिकों को नकद वेतन के स्थान पर भूमि प्रदान की, जिसका राजस्व एकत्र करने का अधिकार उन्हें दिया. गयासुद्दीन तुगलक को दक्षिण भारत में दिल्ली सल्तनत के विस्तार का श्रेय जाता है. 1321 में उसने अपने बड़े बेटे उलुग खान (बाद में मुहम्मद बिन तुगलक्र) को वारंगल और तेलंगाना के हिन्दू शासकों के दमन के लिए भेजा. उलुग खान को ककातीय राज्यवंश के वारंगल राज्य पर विजय प्राप्त करने में सफलता मिली.

गयासुद्दीन तुगलक की अस्वाभाविक मृत्यु

गयासुद्दीन तुगलक अपने बेटे जूना खान की शीघ्र सुल्तान बनने की महत्वाकांक्षा से चिंतित था. शेख़ निज़ामुद्दीन औलिया का वरद हस्त शहज़ादे के सर पर था. लखनौती (बंगाल) में फ़िरोज़ शाह के दमन के लिए स्वयं सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक ने अपने बेटे महमूद खान के साथ प्रस्थान किया.

लखनौती में उसे फ़िरोज़ शाह का दमन करने में सफलता मिली. किन्तु वह दिल्ली वापस जीवित नहीं लौट पाया. इब्नबतूता के अनुसार दिल्ली पहुँचने से पहले ही अपने बड़े बेटे उलुग खान (जूना खान और बाद में मुहम्मद बिन तुगलक) द्वारा रची गयी साज़िश के तहत वह अपने बेटे महमूद खान के साथ मारा गया.

शासक के रूप में गयासुद्दीन तुगलक (Ghiyasuddin Tughlaq as a Ruler)

गयासुद्दीन तुगलक का 5 वर्ष का अल्पकालीन शासन कुल मिलकर सफल कहा जा सकता है. उसने न केवल पिछले चार वर्ष से व्याप्त राजनीतिक अराजकता को दूर कर शांति-व्यवस्था स्थापित की, अपितु राज्य के आर्थिक संकट को भी दूर किया. कृषि योग भूमि के विस्तार की तथा आपदा की स्थिति में किसानों को राहत देने की उसकी नीति राज्य तथा किसान, दोनों के लिए ही हितकारी सिद्ध हुई.

उसकी सैनिक उपलब्धियां भी महत्वपूर्ण थीं. उसने उत्तर-पश्चिम से हो रहे मंगोलों के आक्रमणों को विफल किया और बंगाल तथा वारंगल को जीतकर अपने साम्राज्य में मिला लिया. गयासुद्दीन तुगलक का बनवाया हुआ अपना मक़बरा स्थापत्य-कला की दृष्टि से एक उत्कृष्ट रचना है. इब्नबतूता और अमीर खुसरो की दृष्टि में वह एक सफल सुल्तान था.

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