संतुलित आहार का अर्थ, परिभाषा, महत्व एवं घटक

संतुलित आहार वह भोजन है, जिसमें विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ ऐसी मात्रा व समानुपात में हों कि जिससे कैलोरी खनिज लवण, विटामिन व अन्य पोषक तत्वों की आवश्यकता समुचित रूप से पूरी हो सके. इसके साथ-साथ पोषक तत्वों का कुछ अतिरिक्त मात्रा में प्रावधान हो ताकि अपर्याप्त मात्रा में भोजन मिलने की अवधि में इनकी आवश्यकता की पूर्ति हो सके. यदि इस परिभाषा को ध्यान से पढ़ें तो पायेंगे कि इनमें 3 मुख्य बातें हैं-

  1. संतुलित आहार आहार में विभिन्न खाद्य पदार्थ शामिल होते हैं. 
  2. संतुलित आहार शरीर में पोषक तत्वों की जरूरतों को पूरा करता है. 
  3. संतुलित आहार अपर्याप्त मात्रा में भोजन मिलने की अवधि के लिये पोषक तत्व प्रदान करता है. 

संतुलित आहार में विभिन्न खाद्य पदार्थ शामिल हैं- संतुलित आहार में विविध प्रकार के खाद्य पदार्थ होते हैं. परन्तु इसका चुनाव किस प्रकार किया जाये, इसका नियोजन करते समय हमारा मुख्य उद्देश्य यह होना चाहिए कि आहार द्वारा व्यक्ति को सभी पोषक तत्व मिलें.

संतुलित आहार शरीर में पोषक तत्वों की जरूरतों को पूरा करता है- संतुलित आहार सभी पोषक तत्वों की आवश्यकता पूर्ण करता है, क्योंकि इसमें सही मात्रा व अनुपात में खाद्य पदार्थों का चुनाव किया जाता है. किसी व्यक्ति को अपनी पोषक तत्वों की जरूरतें पूरी करने के लिये कितना भोजन लेना चाहिये, यह उस व्यक्ति की पोषक तत्वों की प्रस्तावित दैनिक मात्रा पर निर्भर करता है.

अपर्याप्त मात्रा में भोजन मिलने की अवधि के लिये संतुलित आहार अतिरिक्त पोषक तत्व प्रदान करता है- संतुलित आहार में पोषक तत्वों की मात्रा इतनी होती है कि कुछ समय के लिये भोजन न प्राप्त होने के समय शरीर में पोषक तत्वों की मात्रा पर्याप्त बनी रहती है. अर्थात् जब पोषक तत्वों की आवश्यकता पूर्ण रूप से पूरी न हो पा रही हो तो ऐसी स्थिति में यह आहार सुरक्षात्मक मात्रा में पोषक तत्व भी प्रदान करता है.

संतुलित भोजन क्या है- साधारणत: एक मनुष्य प्रतिदिन कौन-कौन वस्तु कितनी-कितनी मात्रा में खाये, जिससे उसकी शारीरिक आवश्यकताएँ पूरी हो जायें और वह रोगों से बचा रहकर उत्तम स्वास्थ्य और लम्बी आयु प्राप्त करें, अब इस पर विचार किया जाता है.

  1. रक्त में क्षारत्व और अम्लत्व की उपस्थिति की दृष्टि से संतुलित भोजन 
  2. मोटे हिसाब से संतुलित भोजन 
  3. सबसे सस्ता संतुलित भोजन 
  4. एक परिश्रमी का संतुलित भोजन 
  5. प्रौढ़ व्यक्ति के लिए संतुलित दैनिक भोजन 

रक्त में क्षारत्व और अम्लत्व की उपस्थिति की दृष्टि से संतुलित भोजन- किसी के शरीर का रक्त तभी शुद्ध समझा जाता है जब उसमें रासायनिक प्रक्रिया के फलस्वरूप 80 प्रतिशत क्षारमय और 20 प्रतिशत अम्लमय हो अर्थात् यदि हमारे प्रतिदिन के भोजन में एक हिस्सा अम्लधर्मी खाद्य पदार्थ हों तो उसमें उसका चौगुना क्षारधर्मी पदार्थ होना चाहिए. तभी हमारे आरोग्य की रक्षा सम्भव हो सकती है.

जब रूधिर में क्षारधर्मी की कमी और अम्ल बढ़ जाता है तो प्रकृति रूधिर औरशरीर के अन्य तन्तुओं में से क्षार को खींचकर शरीर के पोषण के काम में उसे लगाने के लिये बाध्य होती है, नतीजा यह होता है कि शरीर का रूधिर और अन्य तन्तु जिनसे क्षारत्व खींच लिया जाता है, नि:सत्व, निर्बल और रोगी हो जाता है. 

स्नायु और मज्जा की रचना के लिये अम्ल की रक्त में मात्रा अल्प होनी चाहिये. इससे अधिक अम्ल का रूधिर में होना तो उसका विषाक्त बनना और अत्यन्त भयावह है.

इसके विपरीत रूधिर में क्षारत्व वह वस्तु होती है, जो हमें रोगों से लड़ने की शक्ति प्रदान करती है. शरीर में क्षारत्व की कमी या न होने पर हम एक क्षण भी जीवित नहीं रह सकते. ऐसा इसलिये होता है क्योंकि क्षारत्व की कमी या अभाव हो जाने से उसमें स्थित श्वेतकणों की हमारे उत्तम स्वास्थ्य के लिये काम करने की शक्ति क्षीण हो जाती है. तथा शरीर यंत्र को सुचारू रूप से परिचालित करने वाली सारी व्यवस्था ही नष्ट-भ्रष्ट हो जाती है. 

मधुमेह, नेत्ररोग, सभी प्रकार के ज्वर, वातव्याधियाँ, पेट के रोग तथा हर प्रकार की पाचन की खराबियाँ आदि सभी रोग केवल रक्त में क्षार की कमी हो जाने से ही उत्पन्न होते हैं. इस विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि हमारे भोजन के चुनाव में क्षारधर्मी और अम्लधर्मी खाद्यों के क्रमश: 4 और 1 के अनुपात की कितनी बड़ी महत्ता और उपयोगिता है.

मोटे हिसाब से संतुलित भोजन- मोटे हिसाब से यदि हम अपने भोजन में कार्बोज 2/3 भाग, वसा 1/6 भाग तथा प्रोटीन, लवण व विटामिन 1/6 भाग रखते हैं तो यह एक साधारण मनुष्य के लिये संतुलित भोजन समझा जा सकता है. परन्तु मनुष्य की आयु, पेशा, मौसम एवं देश व स्थान के विचार से इस प्रकार के भोजन में कमी-अधिकता का होना स्वाभाविक है.

संतुलित आहार की परिभाषा

” संतुलित आहार उसे कहते हैं, जिसमें सभी भोज्यावयक आवश्यक मात्रा में उपस्थित हों ताकि उनसे उपयुक्त मात्रा में शक्ति प्राप्त होने के साथ शरीर की वृद्धि तथा रख-रखाव संबंधी सभी पोषक तत्व प्राप्त हों और आहार अनावश्यक रूप से मात्रा में अधिक भी न हो.”

क्षारधर्मी (Alkaline) और अम्लधर्मी (Acidic) खाद्य पदार्थ

आमतौर पर, फल और सब्जियां अधिक क्षारधर्मी होती हैं, जबकि मांस, डेयरी, अनाज और प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थ अधिक अम्लधर्मी होते हैं. स्वस्थ आहार के लिए, शरीर के pH संतुलन को बनाए रखने के लिए क्षारधर्मी खाद्य पदार्थों का अधिक सेवन करने की सलाह दी जाती है. इन्हें नीचे वर्गीकृत किया गया है:

क्षारधर्मी खाद्य पदार्थ (Alkaline Foods)

ये खाद्य पदार्थ शरीर में पाचन के बाद क्षारीय अवशेष छोड़ते हैं, जिससे शरीर का pH स्तर संतुलित रहता है और अम्लता (acidity) कम होती है:

  • हरी मटर (Green Peas)
  • मूली पत्ती समेत (Radish with leaves)
  • प्याज (Onion)
  • गाजर (Carrot)
  • सलाद (Lettuce/Salad greens)
  • हरा चना (Green Gram)
  • उबला हुआ दूध (Boiled Milk) (हालांकि दूध को कुछ लोग न्यूट्रल मानते हैं, उबला हुआ दूध और अधिक आसानी से पचता है और क्षारीय प्रभाव डाल सकता है.)
  • मसाले (Spices) (कुछ मसाले जैसे अदरक, हल्दी आदि क्षारीय होते हैं, लेकिन अत्यधिक मसालेदार भोजन अम्लीय हो सकता है.)

अम्लधर्मी खाद्य पदार्थ (Acidic Foods)

ये खाद्य पदार्थ पाचन के बाद शरीर में अम्लीय अवशेष छोड़ते हैं. इनका अत्यधिक सेवन अम्लता बढ़ा सकता है:

  • आलू छिलका सहित (Potatoes with skin) (आलू को आमतौर पर तटस्थ या हल्के अम्लीय के रूप में देखा जाता है, विशेष रूप से छिलके सहित)
  • मांस (Meat)
  • मछली (Fish)
  • अण्डा (Egg)
  • पनीर (Paneer/Cheese)
  • गेहूँ (Wheat)
  • चावल (Rice)
  • शहद (Honey) (शहद का pH अम्लीय होता है, लेकिन शरीर में यह क्षारीय प्रभाव छोड़ता है। फिर भी, इसे कुछ संदर्भों में अम्लीय खाद्य पदार्थों के साथ वर्गीकृत किया जा सकता है, विशेष रूप से अगर इसे अधिक मात्रा में लिया जाए।)
  • रोटी (Bread) (गेहूं से बनी होने के कारण)
  • दालें (Lentils/Pulses) (दालें प्रोटीन युक्त होती हैं और हल्के अम्लीय हो सकती हैं, हालांकि कुछ दालें जैसे मूंग दाल को कम अम्लीय माना जाता है)
  • सूखा मेवा (Dry Fruits) (कुछ सूखे मेवे जैसे किशमिश, खजूर आदि अम्लीय हो सकते हैं.)
  • सफेद चीनी (White Sugar)
  • मिश्री (Rock Sugar)
  • गुड़ (Jaggery)
  • मक्खन (Butter)
  • कच्ची गरी (Raw Coconut) (नारियल को अक्सर न्यूट्रल या हल्के क्षारीय माना जाता है, लेकिन अगर मात्रा में ज्यादा हो तो यह अम्लीय हो सकता है)
  • किशमिश (Raisins)
  • मुरब्बे (Jams/Preserves) (चीनी की अधिक मात्रा के कारण)
  • अचार (Pickles) (सिरके और नमक के कारण अत्यधिक अम्लीय)
  • खटाई (Sour items) (जैसे इमली, अमचूर – अम्लीय)
  • सिरका (Vinegar)
  • तली चीजें (Fried Foods)
  • गन्ना (Sugarcane) (इसमें प्राकृतिक चीनी होती है जो अम्लीय हो सकती है)
  • खीर (Kheer) (दूध और चीनी के कारण)

संतुलित आहार को प्रभावित करने वाले कारक 

1. उम्र- उम्र से संतुलित आहार प्रभावित होता है. बच्चों को उनके शरीर के भार की तुलना में प्रौढ़ व्यक्तियों से अधिक तत्वों की आवश्यकता होती है. संतुलित आहार में ऊर्जा प्रदान करने वाले तत्व, निर्माणक तत्व व सुरक्षात्मक तत्वों की आवश्यक मात्रा सम्मिलित होती है. बच्चों को ऊर्जा प्र्रदान करने वाले तत्वों की अधिक आवश्यकता उनके नये ऊतकों में ऊर्जा संग्रह के लिए होती है. बाल्यावस्था तथा वृद्धावस्था में शरीर की संवेदनशीलता बढ़ जाने के कारण सुरक्षात्मक तत्वों की अधिक आवश्यकता होती है. वृद्धावस्था में शरीर के शिथिल हो जाने के कारण क्रियाशीलता कम हो जाती है, अत: ऊर्जा की कम आवश्यकता होती है.

2. लिंग- स्त्रियों व पुरूषों के संतुलित आहार में अन्तर होता है. पुरूषों की पोषकता तथा आवश्यकता स्त्रियों की अपेक्षा अधिक होती है. इसका कारण पुरूषों का आकार, भार, क्रियाशीलता का अधिक होना है. क्रियाशीलता व आकार, भार अधिक होने के कारण उन्हें ऊर्जा की आवश्यकता होती है.

3. स्वास्थ्य- व्यक्ति का स्वास्थ्य भी पोषक तत्वों की आवश्यकता को भी प्रभावित करता है. अस्वस्थता की स्थिति में क्रियाशीलता कम होने के कारण एक स्वस्थ व्यक्ति की अपेक्षा कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है, पर यदि दोनों व्यक्तियों की क्रियाशीलता समान हो तो अस्वस्थ व्यक्ति की बी.एम.आर. अधिक होने के कारण अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है. अस्वस्थ व्यक्ति के शरीर में टूट-फूट अधिक होने के कारण निर्माणक व सुरक्षात्मक तत्वों की आवश्यकता भी अधिक होती है, परन्तु पाचन क्रिया कमजोर हो जाने के कारण भोजन के रूप में अन्तर होता है.

4. क्रियाशीलता- अधिक शारीरिक क्रियाशील व्यक्ति को अधिक पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है. जो व्यक्ति जितना अधिक क्रियाशील होगा, उसको ऊर्जा की आवश्यकता भी उतनी अधिक होती है. क्रियाशीलता अधिक होने के कारण शरीर में टूट-फूट भी अधिक होती है, अत: अधिक क्रियाशील व्यक्ति को निर्माणक तत्वों की आवश्यकता भी अपेक्षाकृत अधिक होती है.

5. जलवायु और मौसम- जलवायु और मौसम भी आहार की मात्रा को प्रभावित करते हैं. गर्म प्रदेश के देशवासियों की अपेक्षा ठण्डे प्रदेश के देशवासियों को अधिक आहार की आवश्यकता होती है. ठण्डे देश के निवासी ऊर्जा का उपयोग शरीर का ताप बढ़ाने के लिए भी करते हैं, इसके अतिरिक्त ठण्डे देश के निवासी अपेक्षाकृत अधिक क्रियाशील होते हैं. इसी प्रकार सर्दियों के मौसम में उष्मा के रूप में ऊर्जा लेने के कारण अधिक भोजन की आवश्यकता होती है.

6. विशेष शारीरिक अवस्था- कुछ विशेष शारीरिक अवस्थाएँ भी आहार की मात्रा व पोषक तत्वों की आवश्यकता को प्रभावित करती हैं, जैसे- गर्भावस्था, दुग्धापान अवस्था, ऑपरेशन के बाद की अवस्था, जल जाने के बाद आदि.

संतुलित आहार कैसा हो (How Should Balanced Diet)

EDIT GIMP
  1.  संतुलित आहार में व्यक्तिगत आवश्यकताओं के अनुसार पोषक तत्वों की मात्राएँ शामिल होनी चाहिए. 
  2. उसमें सभी पोषक तत्वों को स्थान मिलना चाहिए. 
  3. संतुलित आहार ऐसा होना चाहिए कि विशेष पोषक तत्व साथ-साथ हो. जैसे- प्रोटीन और वसा, प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट आदि. 
  4. उस आहार में सभी पोषक तत्व उचित अनुपान में होने चाहिए. 
  5. आहार उचित मात्रा में ऊर्जा प्रदान करने वाला होना चाहिए. 
  6. शरीर में एकत्रित होने वाले पोषक तत्वों की मात्रा आहार में अधिक होनी चाहिए. 
  7. संतुलित आहार में सभी भोज्य समूहों से भोज्य पदार्थ शामिल होने चाहिए. 
  8. आहार आकर्षक, सुगन्धित, स्वादिष्ट एवं रूचिकर होना चाहिए. 

 संतुलित आहार के घटक (Components of Balanced Diet)

 इसके घटकों में दो तरह के प्रमुख घटक आते हैं-  1. उपापचयी नियंत्रक तथा 2. ऊर्जा उत्पादक घटक

उपापचयी नियंत्रक  (Metabolism Controller)

‘‘जल’’- जीवन के लिये जल अति आवश्यक है. जीवों के शरीर में जल की मात्रा 50 प्रतिशत से 85 प्रतिशत तक होती है. मनुष्य के शरीर का 70 प्रतिशत भार जल के कारण है. अपनी विशेष आण्विक रचना के कारण जल जीवों के शरीर के अंदर निम्न कार्य करता है-

  1. जल एक आदर्श विलायक है. कोशिकाओं में अनेक पदार्थ जल में ही घुले रहते हैं. 
  2. बहुत से पदार्थ जीव के शरीर में और कोशिकाओं में अन्दर व बाहर की ओर जल में घुलित अवस्था में होता है. 
  3. बड़े अणु पानी में मिलने पर छोटे अणुओं में टूट जाते हैं. 
  4. यह कोशिकाओं में उपापचयी क्रियाओं की गति को तेज करता है. 

जल में मुख्य कार्य- 

  1. संरचना-जीवद्रव्य का मुख्य अवयव है. 
  2. पदार्थों का परिवहन. 
  3. पसीने इत्यादि द्वारा शरीर के तापक्रम को कम करना.  
  4. मूत्र द्वारा अपशिष्ट पदार्थों का उत्सर्जन-समस्थैतिकता बनाये रखना. 

खनिज लवण- यह शरीर में कार्बनिक एवं अकार्बनिक अणुओं एवं आयनों के रूप में होते हैं. शरीर में पाये जाने वाले मुख्य खनिज लवण इस प्रकार हैं.

  1. गंधक – गंधकयुक्त एमीनों एसिड प्रोटीन निर्माण में सहायक हैं.
  2.  कैल्शियम- फॉस्फोरस के साथ मिलकर हड्डियों व दाँतों के निर्माण में सहायक.
  3.  फॉस्फोरस- कोशिका कला की संरचना हेतु फॉस्फोलिपिड का निर्माण.
  4.  सोडियम तथा पोटैशियम- कोशिका के अन्दर तरल की मात्रा को नियंत्रित करना.
  5.  क्लोरीन- पाचन रस में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल का मुख्य अवयव.
  6.  लौह- ऑक्सीजन संवहन, हीमोग्लोबिन का प्रमुख भाग.
  7.  आयोडीन- थॉयरॉक्सिन हार्मोन का प्रमुख अवयव, उपापचय पर नियंत्रण.
  8.  मैंगनीज- वसीय अम्लों का ऑक्सीकरण. 
  9.  मॉलिण्डेनम- नाइट्रोजन द्वारा नाइट्रोजन स्थिरीकरण में सहायक.

ऊर्जा उत्पादक घटक (Energy Giving Compositions)

1. कार्बोहाइड्रेट- रासायनिक रूप से ये जलयोजित कार्बनिक यौगिक या पॉलीहाइड्रॉक्सी एल्डिहाइड्स व कीटोन्स होते हैं. कार्बोहाइड्रेट को शर्करा वाले यौगिक भी कहा जाता है. भोजन में यह घुलनशील शर्कराओं तथा अघुलनशील मंड के रूप में होते हैं. अधिकांश कार्बोहाइड्रेट शरीर में ऊर्जा उत्पादन के काम आते हैं.

कार्य-

  1. यह जीवों में मुख्य ऊर्जा स्रोत है. 
  2. श्वसन के समय ग्लूकोस के टूटने से ऊर्जा उत्पन्न होती है. 
  3. अनेक जन्तुओं में रूधिर में ग्लूकोस ही रूधिर शर्करा के रूप में होती है. कोशिकाएँ इसे ऑक्सीकृत करके ऊर्जा प्राप्त करती हैं. 
  4. स्तन ग्रंथियों में ग्लूकोस तथा गैलेक्टोस दूध की लैक्टोस शर्करा बनाते हैं. 
  5. मांड व ग्लाइकोजन के रूप में कार्बोहाइड्रेट का शरीर में संग्रह किया जाता है. इसे संचित र्इंधन कहते हैं. 

2. वसायें- वसायें कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के यौगिक हैं, किन्तु इनमें ऑक्सीजन परमाणुओं की संख्या कार्बोहाइड्रेट की अपेक्षा कम होती है. रासायनिक रूप में ये वसा अम्ल तथा ग्लिसरॉल के एस्टर हैं.

कार्य- 

  1. शरीर को ऊर्जा प्रदान करते हैं, भोजन का महत्वपूर्ण घटक है. 
  2. ये जीवधारियों में संचित ऊर्जा के स्रोत के रूप में त्वचा के नीचे एडीपोज ऊतक की कोशिकाओं में संचित रहते हैं. यहाँ पर रहकर ये ताप अवरोधक का कार्य करते हैं और ठण्ड से बचाते हैं. 
  3. विटामिन ए, डी, तथा ई के लिये विलायक का कार्य करते हैं. 

3. प्रोटीन्स- प्रोटीन अधिक आण्विक भार वाले अत्यधिक जटिल रासायनिक यौगिक हैं. ये जीवधारियों में उनके शरीर में मुख्य घटक के रूप में पाये जाते हैं. ये कोशिकाओं के घटकों का संरचनात्मक ढांचा बनाते हैं. तथा जीवद्रव्य में प्रचुर मात्रा में पाये जाने वाले ठोस पदार्थ हैं. ये शरीर का 14 प्रतिशत प्रोटीन होते हैं.

कार्य- 

  1. एन्जाइम के रूप में, हार्मोन्स के रूप में. 
  2. ये इम्यूनोग्लोब्यूलिन्स हैं. ये बाह्य पदार्थ के प्रभाव को समाप्त करते हैं. 
  3. रूधिर में पाये जाने वाले Thrombin तथा Librinogen प्रोटीन चोट लगने पर रूधिर का थक्का बनने में सहायक होते हैं. 
  4. परिवहन- कुछ प्रोटीन कुछ विशिष्ट प्रकार के अणुओं से जुड़कर रूधिर द्वारा उनके परिवहन में सहायक है. उदाहरण के लिये हीमोग्लोबिन फेफड़ों से ऑक्सीजन लेकर ऊतकों को पहुँचाता है. 

4. न्यूक्लिक एसिड- ये प्यूरिन एवं पाइरिमिडनी न्यूक्लिओटाइड्स के रैखिक क्रम में विन्यसित बहुलक हैं. ये बहुत अधिक आण्विक भार व जटिल संरचना वाले कार्बनिक अणु हैं.

कार्य-

  1. DNA जीवों के आनुवंशिक लक्षणों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में पहुँचाता है. 
  2. कुछ न्यूक्लियोटाइड्स सहएन्जाइम के रूप में कार्य करते हैं. 
  3. जीवों के शरीर की मूल रूपरेखा क्छ. द्वारा ही बनायी जाती है. 
  4. न्यूक्लियोप्रोटीन्स अन्य पदार्थों से अपने समान पदार्थ संश्लेषित कर सकते हैं. 

5. विटामिन- विटामिन जटिल कार्बनिक यौगिक हैं. यद्यपि इनकी अल्प मात्रा ही विभिन्न उपापचय क्रियाओं को समान रूप से चलाने के लिये काफी होती है, किन्तु इनकी अनुपस्थिति में उपापचय असम्भव है. विटामिन ऊर्जा प्रदान नहीं करते, वरन् सभी ऊर्जा-सम्बन्धी रासायनिक क्रियाओं का नियंत्रण करते हैं. इनकी कमी से त्रुटिपूर्ण उपापचय के कारण प्राणियों में अनेक रोग होते हैं. इसी कारण इन्हें वृद्धि तत्व कहते हैं. प्राणी विटामिन का संश्लेषण नहीं करते, इनकी प्राप्ति का एकमात्र स्रोत भोजन है.

संतुलित आहार का महत्व (Importance of Balanced Diet)

संतुलित आहार के बारे में जानना और स्वस्थ रहने के लिये संतुलित आहार लेना कितना आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण है. संतुलित आहार के महत्व को आप निम्न बिन्दुओं के माध्यम से समझ सकते है-

  1. शरीर को पोषक तत्व प्रदान करना 
  2. अपर्याप्त मात्रा में भोजन मिने की अवधि में शरीर को पोषक तत्व प्रदान करना. 
  3. शरीर निर्माण एवं बुद्धि हेतु आवश्यक.
  4. शारीरिक क्रियाओं का सुचारू संचालन.
  5. शरीर की सुरक्षा के लिये. 
  6. धातुनिर्माण के लिये आवश्यक. 
  7. शक्ति निर्माण हेतु आवश्यक. 
  8. समग्र स्वास्थ्य की दृष्टि से आवश्यक. 

 इन सभी बिन्दुओं का विस्तृत विवेचन निम्नानुसार है-

  1. शरीर को पोषण तत्व प्रदान करना- संतुलित आहार के कारण शरीर को सभी पोषक तत्व जैसे कि कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन, विटामिन, खनिज लवण तथा जल पर्याप्त एवं समुचित मात्रा में प्राप्त होते है. 
  2. अपर्याप्त मात्रा में भोजन मिलने की अवधि में शरीर को अतिरिक्त पोषक तत्व प्रदान करना- संतुलित आहार में पोषक तत्व अतिरिक्त मात्रा में भी उपलब्ध रहते है. कुद ऐसा इसलिये ताकि जब कभी भोजन पर्याप्त मात्रा में प्राप्त न हो सके तो शरीर को इससे किसी भी प्रकार की क्षति ना हो. उसे पर्याप्त मात्रा में उर्जा मिलती रहे.
  3. शरीर निर्माण एवं बुद्धि हेतु आवश्यक- शरीर संबर्धन की दृष्टि से भी संतुलित आहार का अत्यन्त महत्व है. आहार के संतुलित होने पर ही शरीर का ठीक ढंग से निर्माण तथा उम्र के अनुसार सही शारीरिक विकास होता है. 
  4. शारीरिक क्रियाओं का सुचारू संचालन- जिस प्रकार किसी विद्युत उपकरण को चलाने के लिये बिजली की आवश्यक्ता होती है. उसी प्रकार शरीर की समस्त गतिविधिया ठीक-ठीक चलती रहे, इसके लिये पर्याप्त मात्रा में उर्ज्ाा की आवश्यक्ता होती है, जो संतुलित आहार से ही प्राप्त होती है. 
  5. शरीर की सुरक्षा के लिये- यदि आहार हमारा संतुलित हो तो इससे शरीर की रोग प्रतिरोध क्षमता का भी विकास होता है. अत: रोगों से शरीर की सुरक्षा की दृष्टि से भी संतुलित आहार का विशेष महत्व है.
  6. धातुनिर्माण हेतु आवश्यक- सप्त धातुओं(रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा,शुक्र) के पोषक के लिये आहार में सभी पोषक तत्वों का समुचित मात्रा में होना अत्यन्त आवश्यक है.
  7. शक्ति या उर्जा निर्माण हेतु आवश्यक- शरीर हमारा बलवान या शक्तिशाली तभी बनता है, जब आहार संतुलित हो. अत: उर्जा के निर्माण की दृष्टि से संतुलित आहार आवश्यक है.
  8. समग्र स्वास्थ्य की दृष्टि से आवश्यक- जैसा कि आप अब तक यह समझ ही चुके हैं कि आहार का संबंध केवल हमारे शरीर से ही नहीं बल्कि यह हमारे मन, भावनाओं और यहाँ तक की हमारी आत्मा पर भी प्रभाव डाले बिना नहीं रहता है क्योंकि आहार का सूक्ष्म प्रभाव भी होता है, जो हमें आन्तरिक रूप से प्रभावित करता है. अत: समग्र स्वास्थ्य (शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, आध्यात्मिक) की दृष्टि से अर्थात् न केवल हमारा शरीर वरन् इन्द्रियों, मन एवं आत्मा भी प्रसन्न रहे, इसके लिये संतुलित आहार आवश्यक है. अत: स्पष्ट है कि संतुलित आहार का व्यावहारिक जीवन की दृष्टि से अत्यधिक महत्व है.
Spread the love!

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

मुख्य बिंदु
Scroll to Top