इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे लम्बा चलने वाला संघर्ष का कारण बन चुका है. इस विवाद के जड़ में फिलिस्तीन में यहूदी राष्ट्र इजराइल की स्थापना है. इसकी शुरुआत 1917 में तत्कालीन ब्रिटिश विदेश सचिव आर्थर जेम्स बाल्फोर के घोषणा के साथ हुआ था. इन्होंने बाल्फोर घोषणा के तहत फिलिस्तीन में यहूदियों के लिए एक राष्ट्र स्थापित करने के ब्रिटेन का आधिकारिक समर्थन व्यक्त किया था. आगे के घटनाक्रम में इलाके में मौजूद गैर-यहूदियों के अधिकारों के सुरक्षा के लिए यहाँ संघर्ष छिड़ गया, जो अब तक बना हुआ है.
इसराइल-फिलिस्तीन संघर्ष चर्चा में क्यों है (Why Israel-Palestine Conflict in on Discussion)?
करीब दो साल के शांति के बाद इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष एक बार फिर से शुरू हो गया है. फिलिस्तीन के सशस्त्र समूह हमास ने इजराइल के खिलाफ ‘ऑपरेशन अल-अक्सा फ्लड‘ का शुरुआत किया है. 7 अक्टूबर को सुबह साढ़े 6 बजे किए गए इस हमले में 700 से अधिक लोग जान गंवा चुके है. हमास ने कई इजराइलियों को बंदी बना लिया है. साथ ही, हमास ने 20 मिनट में 5 हजार राकेट दागकर सभी को चौंका दिया.
यह हमला ऐसे वक्त किया गया है, जब यहूदी अपना पवित्र त्यौहार सुकोट के अगले दिन वाले पर्व सिमचट टोरा मना रहे थे. जवाबी कार्रवाई करते हुए इजराइल ने भी ‘ऑपरेशन आइरन शॉर्ड्स‘ शुरू किया है. इस इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष एक बार फिर से चर्चा में है.
इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष का प्रारम्भ (Inception of Israel-Palestine Conflict in Hindi)
प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटेन ने ओटोमन साम्राज्य को जीत लिया. इस तरह तुर्की के ऐतिहासिक साम्राज्य का पतन हो गया. 1917 में ब्रिटेन ने बालफोर घोषणा के माध्यम से, फिलिस्तीन में यहूदी मातृभूमि इजराइल के स्थापना का प्रस्ताव जारी किया. इस दौरान जियोनिष्ट आंदोलन चल रहा था. बालफोर घोषणा के बाद यहूदी बड़ी संख्या में फिलिस्तीन जाकर बसने लगे. यह 1945 तक जारी रहा.
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी ने 42 लाख यहूदियों को या तो गैस चैम्बर में या फिर अन्य तरीकों से मार डाला था. इससे यहूदियों के प्रति वैश्विक सहानुभूति बनी. दूसरे तरफ फिलिस्तीन में स्थानीय लोग और यहूदियों के बीच टकराव हो रहा था. ब्रिटेन इस संघर्ष को संभालने में मुश्किल पा रहा था. इसलिए उसने मामला संयुक्त राष्ट्र को सौंप दिया और अपनी सेना फिलिस्तीन से हटा ली.
संयुक्त राष्ट्र संघ में इस मसले पर वोटिंग हुई. फिर फिलिस्तीन को तीन हिस्सों में बांटने का नतीजा निकला. पहला, यहूदी बहुल इलाका इजराइल को दिया गया. दूसरा, अरब बहुल इलाका फिलिस्तीन को मिला. तीसरा, यरूशलम में यहूदियों और अरबियों की आबादी समान रूप से आधी-आधी थी. इसलिए इस इलाके में अंतर्राष्ट्रीय नियंत्रण स्थापित करने का निर्णय लिया गया.
अरबियों ने संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव को ठुकरा दिया. लेकिन विश्व समुदाय शांति के लिए इस सिद्धांत को लागु होना जरुरी समझते है.
बालफोर घोषणा का क्या हुआ (What happened to Balfour Declaration)?
प्रथम विश्वयुद्ध के के दौरान ब्रिटेन ने बालफोर घोषणा के माध्यम से यहूदियों को उनका राष्ट्र सौंपने की घोषणा की थी. लेकिन, ब्रिटेन ने रूस और फ़्रांस के साथ गोपनीय तरीके से साइक्स-पिकॉट समझौता कर ओटोमन साम्राज्य को फ़्रांस व रूस के साथ बाँट लिया. इस बंटवारे में बालफोर घोषणा के उलट ब्रिटेन ने, फिलिस्तीन को अपने पास रख लिया था. लेकिन, पुरे दुनिया में फैले यहूदी फिलिस्तीनी इलाके में बसते रहे और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इजराइल का निर्माण अवश्यम्भावी हो गया.
विवादित इलाके का भूगोल (Geography of Disputed Area)
- वेस्ट बैंक (West Bank): यह इलाका इज़राइल और जॉर्डन के बीच स्थित है. इसके प्रमुख शहरों में से एक रामल्लाह है, जो फ़िलिस्तीन की वास्तविक प्रशासनिक राजधानी है. 1967 के युद्ध में इजराइल ने इस पर कब्ज़ा कर लिया और पिछले कुछ वर्षों में वहां बस्तियां बसा लीं है.
- गाजा: गाजा पट्टी (Gaza Strips) इजराइल और मिस्र के बीच स्थित है. इज़राइल ने 1967 के बाद पट्टी पर कब्जा कर लिया. लेकिन ओस्लो शांति प्रक्रिया के दौरान गाजा शहर और अधिकांश क्षेत्र में दिन-प्रतिदिन के प्रशासन पर नियंत्रण छोड़ दिया. 2005 में, इज़राइल ने एकतरफा तरीके से यहूदी बस्तियों को क्षेत्र से हटा दिया. लेकिन इलाके में अंतर्राष्ट्रीय पहुँच अब भी इजराइल के नियंत्रण में है.
- गोलान हाइट्स (Golan Heights): गोलान हाइट्स एक रणनीतिक पठार है जिसे इज़राइल ने 1967 के युद्ध में सीरिया से कब्जाया था. आगे चलकर 1981 में इजराइल ने प्रभावी रूप से इस क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया. हाल ही में, संयुक्त राज्य अमेरिका ने आधिकारिक तौर पर येरुशलम और गोलान हाइट्स को इज़राइल का हिस्सा माना है.
फिलिस्तीन के राजनैतिक गुट
- फिलिस्तीनी प्राधिकरण (Palestinian Authority)– इसे 1993 के ओल्सो समझौते द्वारा बनाया गया है. यह फिलिस्तीनी लोगों का आधिकारिक शासी निकाय है. इसका नेतृत्व फतह गुट के राष्ट्रपति महमूद अब्बास करते हैं. यह प्राधिकरण भ्रष्टाचार और अंदरूनी राजनीतिक कलह से झूझ रहा है. इस कारण संस्थापकों के उम्मीदों के अनुरूप यह स्थिर वार्ता भागीदार बनने में विफल रहा है.
- फतह (Fatah)– इसे 1950 के दशक में दिवंगत यासिर अराफात द्वारा स्थापित गया. फतह फिलिस्तीन का सबसे बड़ा राजनीतिक गुट है. हमास के विपरीत फतह एक धर्मनिरपेक्ष आंदोलन है. इसने अनाधिकृत रूप से इज़राइल को मान्यता दिया है. शांति प्रक्रिया में भी यह सक्रिय रूप से भाग लेते रहा है.
- हमास (Hamas)– हमास को अमेरिकी सरकार एक आतंकवादी संगठन मानती है. 2006 में हमास ने फिलिस्तीनी प्राधिकरण के विधायी चुनाव जीते थे. इसके अगले साल 2007 में हमास ने फतह को गाजा से बेदखल कर दिया. इसके साथ ही फिलिस्तीनी आंदोलन भौगोलिक रूप से भी विभाजित हो गया. अब गाजा में हमास का नियंत्रण है, जहाँ से अक्टूबर 2023 का हमला किया जा रहा है.
इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष का ऐतिहासिक कालक्रम (Historical Timeline of Israel-Palestine Conflict)
- यह इलाका ब्रिटिश उपनिवेश था. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भी ब्रिटिश हिंसा रोकने में असमर्थ थे. इसलिए ब्रिटेन ने 1948 में फ़िलिस्तीन से अपनी सेनाएँ वापस ले लीं. विवाद हल करने का जिम्मा नव निर्मित संयुक्त राष्ट्र संघ पर छोड़ दिया गया.
- संयुक्त राष्ट्र ने 1947 में संकल्प 181 को अपनाया, जिसे फिलिस्तीन विभाजन योजना के रूप में जाना जाता है. इसमें ब्रिटिश फिलिस्तीन को अरब और यहूदी राज्यों में विभाजित करने की मांग की गई थी. अधिकतर यहूदियों ने इसे स्वीकार कर लिए, लेकिन अरबियों को यह स्वीकार नहीं था.
- जब ब्रिटिश सेना वापस गई तो इजराइल के गठन का घोषणा कर दिया गया. इस तरह 14 मई, 1948 को, इज़राइल राज्य का निर्माण हुआ, जिससे पहला अरब-इजरायल युद्ध छिड़ गया. 1949 में इज़राइल के जीत के साथ युद्ध समाप्त हो गया, लेकिन 750,000 फ़िलिस्तीनी विस्थापित हो गए. फिर इस क्षेत्र को 3 भागों में विभाजित किया गया: इज़राइल राज्य (यहूदियों का), जेरुसलम का पवित्र स्थल और वेस्ट बैंक (जॉर्डन ओके नियंत्रण में), और गाजा पट्टी (मिस्त्र के नियंत्रम में).
- मिस्त्र ने अक्टूबर 1956 में स्वेज़ नहर जलमार्ग का राष्ट्रीयकरण कर दिया. इससे इज़राइल के लिए इस जलमार्ग का इस्तेमाल भी प्रतिबंधित हो गया. अगले कुछ महीनों बाद, इज़राइल ने सिनाई प्रायद्वीप और गाजा पट्टी पर आक्रमण कर दिया. नवंबर में, संयुक्त राष्ट्र ने ब्रिटेन, फ्रांस और इज़राइल से मिस्र से अपनी सेना वापस बुलाने का आह्वान किया.
- जनवरी 1957 में, इज़राइल गाजा पट्टी और अकाबा की खाड़ी के क्षेत्र को छोड़कर, मिस्र की भूमि से हट गया. इसराइल ने यह तर्क दिया कि गाजा पट्टी कभी भी मिस्र का हिस्सा नहीं था.
- 1964 में फिलिस्तीन मुक्ति संगठन (पीएलओ) की स्थापना की गई.
- जून 1967 में, छह दिवसीय युद्ध के दौरान, इज़राइल ने सीरिया से गोलान हाइट्स, जॉर्डन से वेस्ट बैंक और पूर्वी येरुशलम और मिस्र से सिनाई प्रायद्वीप और गाजा पट्टी छीन लिया.
- 6 अक्टूबर 1973 को योम किप्पुर त्यौहार के दिन मिस्र और सीरिया ने मिलकर इजराइल पर हमला कर दिया. इसका उद्देश्य इज़राइल को अरब देशों के लिए बेहतर शर्तों के लिए राजी करना था. 19 दिनों के युद्ध में लगभग 2,700 इजरायली सैनिक मारे गए और हजारों घायल हुए. इस वक्त इजराइल की आबादी करीब 30 लाख थी.
- संयुक्त राष्ट्र ने 1975 में पीएलओ को पर्यवेक्षक का दर्जा दिया और फिलिस्तीनियों के आत्मनिर्णय के अधिकार को मान्यता दी.
- कैंप डेविड समझौते (1978): अमेरिका की मध्यस्थता में “मध्य पूर्व में शांति के लिए रूपरेखा” नाम का यह समझौता 17 सितम्बर 1978 को मिस्त्र और इजराइल के बीच सम्पन्न हुआ था. इस समझौते के दूसरे हिस्से में मध्य-पूर्व में शांति स्थापित करने का समझौता किया गया. लेकिन इसमें फिलिस्तीन को शामिल नहीं किया गया था. इसलिए संयुक्त राष्ट्र ने इसकी आलोचना की और शांति का यह प्रयास असफल रहा.
- 26 मार्च, 1979 को मिस्र और इज़राइल ने व्हाइट हाउस में एक शांति संधि पर हस्ताक्षर किए. इज़राइल सिनाई प्रायद्वीप से पूरी तरह से पीछे हट गया. दोनों देश कब्जे वाले क्षेत्रों में रहने वाले फिलिस्तीनियों के लिए स्व-शासन की अनुमति की रुपरेखा पर सहमति बनी. तीन साल बाद, राष्ट्रपति रीगन ने जॉर्डन की कुछ निगरानी के साथ उनकी पूर्ण स्वायत्तता के लिए अपना समर्थन व्यक्त किया. लेकिन इज़राइल ने इस योजना को अस्वीकार कर दिया.
- 1981 में गोलन पर इजराइल का प्रभावी कब्ज़ा गया. लेकिन इसे संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा मान्यता नहीं दी गई.
- दिसंबर 1987 में वेस्ट बैंक और गाजा में रहने वाले फिलिस्तीनियों ने इजराइल के खिलाफ पहला इंतिफादा शुरू किया. मुस्लिम ब्रदरहुड के सदस्यों ने हमास की स्थापना की. तनाव बढ़ने के कारण फिलिस्तीनी चरमपंथियों और इस्राइली सेना के बीच हल्की झड़प हुई.
- 1988 में जॉर्डन ने वेस्ट बैंक और पूर्वी येरुशलम के दावे वाले इलाके पीएलओ को सौंप दिए.
- 1993 में, श्री अराफ़ात ने इज़राइल के साथ ओस्लो समझौते पर हस्ताक्षर किए. समझौते में दो-राज्य समाधान के आधार पर संघर्ष को समाप्त करने के लिए बातचीत करने की प्रतिबद्धता जताई गई. दोनों देशों में एक-दूसरे को मान्यता देने पर सहमति बनी. फिलिस्तीनी प्राधिकरण का स्थापना हुआ, जिसे वेस्ट बैंक और ग़ज़ा पट्टी में सिमित स्वायत्ता मिली. हमास ने समझौते का विरोध किया और इज़राइल में आत्मघाती बम विस्फोटों की एक श्रृंखला शुरू की. इस समझौते के लिए इस्राइल के यिट्ज स्टाक राबेन और फिलिस्तीन के यासिर अराफात को शांति का नोबेल पुरस्कार (1994) दिया गया था
- 1997 में हुए दो आत्मघाती बम हमलों में 27 लोग मारे गए. इज़राइल ने कहा कि वह हमास के खिलाफ युद्ध लगातार जारी रखेगा.
- सितंबर 2000 में, कैंप डेविड में इज़राइल और फिलिस्तीन के बीच बातचीत के गतिरोध के साथ समाप्त हुआ. इसके कुछ महीनों बाद, दूसरा इंतिफादा शुरू हुआ, जिसमें फिलिस्तीनी युवाओं ने इजरायली पुलिस पर पत्थर फेंके. इज़राइल से लड़ने की तैयारी के कारण फ़िलिस्तीन के भीतर हमास के लिए समर्थन बढ़ता रहा.
- सितंबर 2005 में, इजरायली सैनिक गाजा से बाहर निकल गए. लेकिन सीमा पर कड़ी निगरानी होती रही. पट्टी के सीमा पर फिलिस्तीनियों के आवाजाही प्रतिबंधित करने के लिए इजरायल की आलोचना हुई.
- जनवरी 2006 में अर्धसैनिक संगठन फतह के सह-संस्थापक और फिलिस्तीनी नेता यासिर अराफात की मृत्यु हो गई. इसके करीब एक साल बाद हुए संसदीय चुनाव में हमास ने विजय हासिल की. इस तरह सदन हमास और फतह के बीच विभाजित हो गया. दोनों में आम सहमति से सरकार चलाने का प्रयास विफल रहा. इस तरह फिलिस्तीनी आंदोलन दो भागो में विभाजित हो गया. फिर हमास ने फतह बलों को हराकर गाजा पर कब्ज़ा कर लिया.
- जनवरी 2009 में, इज़राइल और फ़िलिस्तीनी समूहों ने एकतरफा संघर्ष विराम की घोषणा की. फिर इज़राइल गाजा से हट गया और पट्टी की परिधि पर फिर से तैनात हो गया.
- 2012 में संयुक्त राष्ट्र ने फ़िलिस्तीनी प्रतिनिधित्व को “गैर-सदस्य पर्यवेक्षक राज्य” का दर्जा दिया. इसी साल के नवंबर में, इज़राइल ने हमास के सैन्य प्रमुख अहमद अल-जबरी को मार डाला. इसके बाद एक सप्ताह से अधिक समय तक दोनों के बीच गोलीबारी हुई. इस दौरान 150 से अधिक फ़िलिस्तीनी और कम से कम छह इज़राइली मारे गए.
- 2014 में हमास ने तीन इजरायली किशोरों का अपहरण कर हत्या कर दी. बदले में इजराइल ने हमले किए और गाजा से रॉकेट लॉन्च किए गए. इस संघर्ष में 1,881 से अधिक फिलिस्तीनी और 60 से अधिक इजरायली मारे गए. मिस्त्र के देखरेख में हुए समझौते से यह विवाद समाप्त हुआ. इसी साल फ़तह और हमास ने मिलकर सरकार बनाया. लेकिन दोनों गुटों के बीच अविश्वास बना रहा.
- 2018 में गाजा और इजराइल को अलग करने वाले घेरे पर लोग प्रदर्शन कर रहे थे. इसपर इजराइल ने कार्रवाई की और करीब 170 फिलिस्तीनी मारे गए.
- मई 2021 में इजरायली पुलिस ने यरूशलेम में अल अक्सा मस्जिद पर छापा मारा. यह मस्जिद इस्लाम का तीसरा सबसे पवित्र स्थल है. फलतः इजरायल और हमास के बीच 11 दिनों तक युद्ध चला. इसमें 200 से अधिक फिलिस्तीनी और 10 से अधिक इजरायली मारे गए.
- 7 अक्टूबर 2023 को फिलिस्तीन द्वारा किए गए हमले के साथ ही एक बार फिर से इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष शुरू हो गया है. इसमें भी सैकड़ों लोगों के जान गंवाने का संभावना है.
इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष का सामाधान कठिन क्यों है (Why Solution of Israel-Palestine Conflict is Difficult)?
करीब 100 साल बाद भी इलाके में शांति नहीं हो पाया है. इसके कारण इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष का समाधान कठिन हो गया है. इसके पीछे कई कारण है.
- सीमा रेखा(Boarder Lines): दोनों राष्ट्रों के बीच सीमा निर्धारण को लेकर वैश्विक स्पष्टता नहीं है. इज़राइल वेस्ट बैंक में अपनी बस्तियाँ बना रहा है और अवरोधों (Boundaries) का निर्माण कर रहा है. इससे एक वास्तविक सीमा बन जाता है. लेकिन यह हिस्सा फिलिस्तीनियों का माना जाता है. इस वजह से स्वतंत्र रूप से नए इससे उस भूमि को एक स्वतंत्र फिलिस्तीन के हिस्से के रूप में स्थापित करना मुश्किल हो जाता है.
- यरूशलम (Jerusalem): दोनों पक्ष यरूशलम को अपनी राजधानी होने का दावा करते हैं. दोनों ही इसे धार्मिक पूजा और सांस्कृतिक विरासत का केंद्र मानते हैं. इसलिए इसका विभाजन मुश्किल हो जाता है. दिसंबर 2017 में, इज़राइल ने यरूशलेम को अपनी राजधानी घोषित कर दिया. इजराइल के इस कदम को अमेरिका का समर्थन मिला. इससे क्षेत्र में स्थिति और गंभीर हो गई.
- शरणार्थी (Refugees): पिछले युद्धों के दौरान बड़ी संख्या में फ़िलिस्तीनी वर्तमान इज़राइल में अपने घर छोड़कर भाग गए थे. इनके वंशजों का मानना है कि वे वापस लौटने के अधिकार के हकदार हैं. लेकिन इज़राइल इसके खिलाफ है.
- विभाजित नेतृत्व (Divided Leadership): फिलिस्तीनी नेतृत्व इजराइल को मान्यता देने के मत पर विभाजित है. दो-राज्य सिद्धांत को वेस्ट बैंक के फिलिस्तीनी राष्ट्रवादियों द्वारा समर्थन प्राप्त है. लेकिन गाजा का राजनैतिक नेतृत्व इज़राइल को मान्यता नहीं देता है. तीन लगातार इजरायली प्रधानमंत्रियों – एहुद बराक, एरियल शेरोन, एहुद ओलमर्ट और बेंजामिन नेतन्याहू – ने फिलिस्तीनी राज्य के विचार को स्वीकार कर लिया है. लेकिन इस राज्य के हिस्से में कौन सा इलाका आएगा, इसको लेकर तीनों के राय में मतभेद है.
- विश्व के लगभग 83% देशों ने आधिकारिक तौर पर इज़राइल को एक संप्रभु राज्य के रूप में मान्यता दी है. इन्होंने इजराइल के साथ राजनयिक संबंध भी स्थापित किए है. दूसरे तरफ कई देश फ़िलिस्तीन के प्रति सहानुभूति रखते हैं.
दोनों पक्षों की मांगे
- फिलिस्तीन चाहता है कि इजरायल सभी विस्तारवादी गतिविधियों को रोक दे और 1967 से पहले की सीमाओं पर पीछे हट जाए. वह वेस्ट बैंक और गाजा में एक संप्रभु फिलिस्तीन राज्य स्थापित करना चाहता है, जिसकी राजधानी पूर्वी येरुशलम हो. साथ ही फिलिस्तीन 1948 में अपने घर खो चुके फ़िलिस्तीनी शरणार्थी के वापसी का रह सुनिश्चित करना चाहता है.
- हाल के युद्ध के बाद फिलिस्तीन ने कुछ नए मांग भी किए है. इनमें अंतरराष्ट्रीय समुदाय से गाजा में अत्याचार रोकने और फिलिस्तीनी लोगों पर अत्याचार बंद करने का मांग मुख्य है. साथ ही इस्लाम का पवित्र तीर्थ-स्थल अल-अक्सा मस्जिद को अतिक्रमण से मुक्त करने की मांग की गई है.
- वहीं, इजराइल खुद को यहूदी राज्य के रूप में मान्यता दिलवाना चाहता है. कई इस्लामी देशों ने इजराइल को अभी भी मान्यता नहीं दिया है. इजराइल का यह मत है कि फ़िलिस्तीनी शरणार्थी केवल फ़िलिस्तीन लौटें, इज़राइल नहीं.
इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष और भारत
- भारत नवंबर 1947 में संयुक्त राष्ट्र की विभाजन योजना का विरोध करने वाले चुनिंदा देशों में से एक था. भारत ने कुछ समय पहले ही अपने यहाँ विभाजन के कड़वे अनुभव झेले थे. इसके बाद के दशकों में भी भारतीय राजनीतिक नेतृत्व ने सक्रिय रूप से फिलिस्तीनी मुद्दे का समर्थन किया और इज़राइल के साथ पूर्ण राजनयिक संबंधों को रोक दिया.
- भारत ने 1950 में इज़राइल को मान्यता दी. लेकिन फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (PLO) को फिलिस्तीन के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में मान्यता देने वाला यह पहला गैर-अरब देश भी है. भारत 1988 में फिलिस्तीन को राज्य का दर्जा देने वाले पहले देशों में से एक है.
- 2014 में, भारत ने गाजा में इजरायल के मानवाधिकार उल्लंघनों की जांच के लिए यूएनएचआरसी (UNHRC) के प्रस्ताव का समर्थन किया था. जांच का समर्थन करने के बावजूद, भारत ने 2015 में UNHRC में इज़राइल के खिलाफ मतदान से परहेज किया.
- हाल के समय में लिंक वेस्ट पॉलिसी के एक हिस्से के रूप में भारत ने 2018 में डी-हायफ़नेशन सिद्धांत अपनाया है. इसके तहत फिलिस्तीन के साथ रिश्ते रखने के साथ ही इजराइल के साथ भी दोस्ती निभाया जा रहा है.
- जून 2019 में, भारत ने संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद (ECOSOC) में इज़राइल द्वारा पेश किए गए एक निर्णय के पक्ष में मतदान किया, जिसमें फिलिस्तीनी गैर-सरकारी संगठन को सलाहकार का दर्जा देने पर आपत्ति जताई गई थी.
- अब तक भारत ने फ़िलिस्तीनी आत्मनिर्णय के लिए अपनी ऐतिहासिक नैतिक समर्थक की छवि को बनाए रखने की कोशिश की है. साथ ही इज़राइल के साथ सैन्य, आर्थिक और अन्य रणनीतिक संबंधों में संलग्न रहने की कोशिश की है.