भारत में बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाएँ देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. ये परियोजनाएँ नदियों के जल को नियंत्रित और प्रबंधित करके कई उद्देश्यों को पूरा करती हैं, जिनमें बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई, विद्युत उत्पादन, पेयजल आपूर्ति, मत्स्य पालन और पर्यटन शामिल हैं. भारत के पहले प्रधानमंत्री, पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इन्हें ‘आधुनिक भारत का मंदिर‘ कहा था, जो इनके महत्व को दर्शाता है.
भारत की प्रमुख बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाएँ (Main Mutipurpose River Projects of India)
भारत में जलविद्युत परियोजनाओं की कुल क्षमता 47,000 मेगावाट से अधिक है, जिससे भारत दुनिया के शीर्ष जलविद्युत ऊर्जा उत्पादक देशों में से एक बन गया है. भारत में कुछ प्रमुख बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाएँ इस प्रकार हैं:
- भाखड़ा-नांगल परियोजना (सतलुज नदी): पंजाब, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान में सिंचाई और हाइड्रोइलेक्ट्रिक ऊर्जा उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण. यह दुनिया के सबसे बड़े बांधों में से एक है.
- हीराकुड बांध परियोजना (महानदी): ओडिशा में स्थित, यह सिंचाई, विद्युत उत्पादन और बाढ़ नियंत्रण के लिए महत्वपूर्ण है. यह स्वतंत्रता के बाद शुरू की गई पहली प्रमुख परियोजनाओं में से एक थी.
- दामोदर घाटी निगम (DVC) परियोजना (दामोदर नदी): झारखंड और पश्चिम बंगाल में बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई, विद्युत उत्पादन और पर्यावरण संरक्षण पर केंद्रित है. यह अमेरिका की टेनेसी घाटी परियोजना पर आधारित है.
- टिहरी बांध परियोजना (भागीरथी): उत्तराखंड में स्थित, यह भारत का सबसे ऊंचा बांध है और सिंचाई, हाइड्रोइलेक्ट्रिक ऊर्जा उत्पादन और बाढ़ नियंत्रण में सहायक है.
- सरदार सरोवर बांध परियोजना (नर्मदा): गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान को लाभान्वित करती है, यह सिंचाई, पानी की आपूर्ति और हाइड्रोइलेक्ट्रिक ऊर्जा उत्पादन के लिए एक बड़ा बांध है.
- रिहंद बांध परियोजना (रिहंद): उत्तर प्रदेश में सिंचाई, पीने का पानी और हाइड्रोइलेक्ट्रिक ऊर्जा उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण है. यह भारत की सबसे बड़ी कृत्रिम झील का निर्माण करती है.
- नागार्जुन सागर बांध (कृष्णा): आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में सिंचाई और विद्युत उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण है. यह विश्व का सबसे बड़ा चिनाई वाला बांध है.
- कोयना परियोजना (कोयना): महाराष्ट्र में भारत की सबसे बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं में से एक है.
- इडुक्की परियोजना (पेरियार): केरल में जलविद्युत उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण है.
- शिवानासमुद्र (कावेरी): कर्नाटक में 1902 में स्थापित, यह भारत का पहला जलविद्युत संयंत्र था.
- इंद्र सागर बांध (नर्मदा): मध्य प्रदेश में स्थित, यह भारत का सबसे बड़ा जलाशय है.

क्र.सं. | परियोजना का नाम | नदी | राज्य/केंद्र शासित प्रदेश | स्थापना वर्ष (लगभग) | मुख्य उद्देश्य/विशेषताएँ |
1. | भाखड़ा-नांगल परियोजना | सतलुज | पंजाब, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान | 1948 | सिंचाई, हाइड्रोइलेक्ट्रिक ऊर्जा उत्पादन; दुनिया के सबसे बड़े बांधों में से एक |
2. | हीराकुड बांध परियोजना | महानदी | ओडिशा | 1957 | सिंचाई, विद्युत उत्पादन, बाढ़ नियंत्रण; स्वतंत्रता के बाद शुरू की गई पहली प्रमुख परियोजनाओं में से एक |
3. | दामोदर घाटी निगम (DVC) परियोजना | दामोदर | झारखंड, पश्चिम बंगाल | 1948 | बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई, विद्युत उत्पादन, पर्यावरण संरक्षण; अमेरिका की टेनेसी घाटी परियोजना पर आधारित |
4. | टिहरी बांध परियोजना | भागीरथी | उत्तराखंड | 1978 | भारत का सबसे ऊंचा बांध; सिंचाई, हाइड्रोइलेक्ट्रिक ऊर्जा उत्पादन, बाढ़ नियंत्रण |
5. | सरदार सरोवर बांध परियोजना | नर्मदा | गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान | 1987 | सिंचाई, पानी की आपूर्ति, हाइड्रोइलेक्ट्रिक ऊर्जा उत्पादन; भारत के सबसे बड़े बांधों में से एक |
6. | रिहंद बांध परियोजना | रिहंद | उत्तर प्रदेश | – | सिंचाई, पीने का पानी, हाइड्रोइलेक्ट्रिक ऊर्जा उत्पादन; भारत की सबसे बड़ी कृत्रिम झील |
7. | इंदिरा गांधी नहर (राजस्थान नहर) | सतलुज | राजस्थान, पंजाब, हरियाणा | – | सिंचाई |
8. | नागार्जुन सागर बांध | कृष्णा | आंध्र प्रदेश, तेलंगाना | 1967 | सिंचाई, विद्युत उत्पादन; विश्व का सबसे बड़ा चिनाई वाला बांध |
9. | कोयना परियोजना | कोयना | महाराष्ट्र | 1956 | भारत की सबसे बड़ी जलविद्युत परियोजना |
10. | इडुक्की परियोजना | पेरियार | केरल | 1976 | जलविद्युत उत्पादन; राज्य इस पर बहुत अधिक निर्भर है |
11. | शिवसमुद्र परियोजना | कावेरी | कर्नाटक | 1902 | भारत का पहला जलविद्युत संयंत्र |
12. | इंद्र सागर बांध | नर्मदा | मध्य प्रदेश | 2005 | भारत का सबसे बड़ा जलाशय |
13. | रणजीत सागर बांध (थीन बांध) | रावी | पंजाब | 1981 | सिंचाई, विद्युत उत्पादन |
14. | नाथपा-झाकरी परियोजना | सतलुज | हिमाचल प्रदेश | 1993 | जलविद्युत उत्पादन |
15. | चंबल परियोजना | चंबल | राजस्थान, मध्य प्रदेश | – | सिंचाई, विद्युत उत्पादन, बाढ़ नियंत्रण |
16. | कोसी परियोजना | कोसी | बिहार, नेपाल | – | बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई |
17. | मुक्कोंबु बांध | कावेरी | तमिलनाडु | 1838 | भारत का सबसे छोटा बांध |
18. | बाणसागर परियोजना | सोन | बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश | 2006 | मुख्य बांध, जो मध्य प्रदेश के शहडोल जिले के देवलोंद में स्थित, लाभ- 435 मेगावाट जलविद्युत और सिंचाई |
19. | बरगी परियोजना | बरगी | मध्य प्रदेश | 1990 | सिंचाई, जल आपूर्ति,बाढ़-नियत्रण, पनबिजली उत्पादन |
20. | ब्यास परियोजना | ब्यास | हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश | 1971 | सिंचाई और जलविद्युत |
21. | भद्रा परियोजना | भद्र | कर्नाटक | 1965 | सिंचाई, जल आपूर्ति |
22. | भीमा परियोजना | पवना | महाराष्ट्र | – | – |
23. | दुलहस्ती परियोजना | चिनाब | जम्मू और कश्मीर | 2007 | रन-ऑफ-द-रिवर जलविद्युत परियोजना |
24. | दुर्गा बैराज परियोजना | दामोदर | झारखंड, पश्चिम बंगाल | 1955 | सिंचाई और पानी की आपूर्ति |
25. | फरक्का परियोजना | गंगा, भागीरथी | पश्चिम बंगाल | 1975 | जल परिवहन, गंगा नदी से पानी को हटाने के लिए |
26. | गंडक परियोजना | गंडक नदी | बिहार, उत्तर प्रदेश | 1959 | सिंचाई और बिजली उत्पादन |
27. | गंगा सागर परियोजना | चंबल | मध्य प्रदेश | 1985 | गंगा नदी को प्रदूषण से बचाना |
28. | घाटप्रभा परियोजना | घाटप्रभा | कर्नाटक | 1977 | सिंचाई और जलविद्युत |
29. | गिरना परियोजना | गिरना | महाराष्ट्र | 1969 | सिंचाई, जलविद्युत उत्पादन और बाढ़ नियंत्रण |
30. | मिनिमाटो बांगो हसदेव परियोजना | हंसदेव | छत्तीसगढ़ | 1994 | जलविद्युत |
31. | हिडकल परियोजना | घाटप्रभा | कर्नाटक | 1977 | सिंचाई, जल विद्युत उत्पादन, बाढ़ नियंत्रण, और जल आपूर्ति |
32. | जवाहर सागर परियोजना | चंबल | राजस्थान | 1972 | जलविद्युत उत्पादन और सिंचाई |
33. | जयकवाड़ी परियोजना | गोदावरी | महाराष्ट्र | 1976 | सिंचाई, जल विद्युत उत्पादन, बाढ़ नियंत्रण, और जल आपूर्ति |
34. | काकरापारा परियोजना | ताप्ती | गुजरात | 1954 | सिंचाई और परमाणु ऊर्जा उत्पादन |
35. | कंगसाबती परियोजना | कंगसाबती | पश्चिम बंगाल | 1956-57 | सिंचाई |
36. | कोल बांध परियोजना | सतलुज | हिमाचल प्रदेश | 2013 | जलविद्युत परियोजना |
37. | कृष्णा परियोजना | कृष्ण | कर्नाटक | – | – |
38. | कुंडा परियोजना | कुंदा | तमिलनाडु | 1960 | जलविद्युत |
39. | लेट बैंक घाघरा नहर | गंगा | उत्तर प्रदेश | – | – |
40. | मध्य गंगा नहर | गंगा | उत्तर प्रदेश | कार्य अंतिम दौर में | सिंचाई |
41. | महानदी डेल्टा परियोजना | महानदी | ओडिशा | ||
42. | मालाप्रभा परियोजना | मालाप्रभा | कर्नाटक | 1972 | सिंचाई |
43. | मंडी (शानन जलविद्युत) परियोजना | व्यास | हिमाचल प्रदेश | 1932 | ऐतिहासिक जलविद्युत परियोजना |
44. | माताटिला परियोजना | बेतवा | उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश | 1958 | जलविद्युत और सिंचाई |
45. | मयूराक्षी परियोजना | मयूराक्षी | पश्चिम बंगाल | 1956 | जलविद्युत, बाढ़ नियंत्रण और सिंचाई |
46. | मुचकुंद परियोजना | मुचकुंद (सिलेरू) | ओडिशा, आंध्र प्रदेश | 1955 | जलविद्युत |
48. | नर्मदा (इंदिरा) सागर परियोजना | नर्मदा | मध्य प्रदेश, गुजरात | 2005 | सिंचाई, जल विद्युत उत्पादन, बाढ़ नियंत्रण, और जल आपूर्ति (कंक्रीट ग्रेविटी बांध) |
49. | पानम परियोजना | पानम | गुजरात | 1999 | सिंचाई, जल विद्युत उत्पादन और जल आपूर्ति |
50. | पंचेत परियोजना | दामोदर | झारखंड, पश्चिम बंगाल | 1959 | सिंचाई, जल विद्युत उत्पादन, बाढ़ नियंत्रण, और जल आपूर्ति |
51. | पोंग परियोजना | ब्यास | पंजाब | 1974 | सिंचाई, जल विद्युत उत्पादन, बाढ़ नियंत्रण, मत्स्य पालन, पर्यटन और वन्यजीव संरक्षण और जल आपूर्ति |
52. | पूचंपाद परियोजना | गोदावरी | आंध्र प्रदेश | 1977 | औद्योगिक उपयोग, सिंचाई, जल विद्युत उत्पादन, बाढ़ नियंत्रण, और जल आपूर्ति |
53. | पूर्णा परियोजना | पूर्णा | महाराष्ट्र | 1967 | सिंचाई और जल विद्युत उत्पादन |
54. | राजस्थान नहर परियोजना | सतलुज, व्यास, रावी | राजस्थान, पंजाब, हरियाणा | इंदिरा गांधी नहर परियोजना , पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना, गंग नहर और नर्मदा नहर परियोजना इसमें शामिल हैं. | |
55. | रामगंगा परियोजना | रामगंगा | उत्तर प्रदेश | 1975 | सिंचाई, जल विद्युत उत्पादन, बाढ़ नियंत्रण, मनोरंजन और पर्यटन |
56. | राणा प्रताप सागर परियोजना | चंबल | राजस्थान | 1971 | सिंचाई, जल विद्युत उत्पादन, और बाढ़ नियंत्रण |
57. | सलाल परियोजना | चिनाब | जम्मू और कश्मीर | 1987 | जलविद्युत उत्पादन (एक “रन-ऑफ-द-रिवर” योजना) |
58. | सरहिंद परियोजना | सतलुज | हरियाणा | 1882 | सिंचाई |
59. | शरावती परियोजना | शरावती | कर्नाटक | 1964 | अलग-अलग वर्षों में कई बांध और जलविद्युत संयंत्र चरणों में विकसित, लिंगनमक्की बांध का निर्माण 1964 और गेरुसोप्पा बांध परियोजना 2002 में. |
60. | शारदा परियोजना | शारदा, गोमती | उत्तर प्रदेश | 1928 | सिंचाई |
61. | सतलुज परियोजना | चिनाब | जम्मू और कश्मीर | – | कई चरण, भारत-पाक सिंधु जल समझौता 1960 के अनुरूप |
62. | तवा परियोजना | तवा | मध्य प्रदेश | 1978 | सिंचाई |
63. | तिलैया परियोजना | बराकर | झारखंड | 1953 | बाढ़ नियंत्रण |
64. | तुलबुल परियोजना | चिनाब | जम्मू और कश्मीर | स्थगित | |
65. | तुंगभद्रा परियोजना | तुंगभद्रा | आंध्र प्रदेश.कर्नाटक | 1953 | बाढ़ नियंत्रण और बिजली उत्पादन |
66. | उकाई परियोजना | ताप्ती | गुजरात | 1972 | सिंचाई, बिजली उत्पादन और बाढ़ नियंत्रण |
67. | ऊपरी पेनगंगा परियोजना | पेनगंगा | महाराष्ट्र | पेनगंगा | 1971 में शुरू, ईसापुर बांध का निर्माण पूरा, 80% नहर नेटवर्क भी पूरा. |
68. | उरी विद्युत परियोजना | झेलम | जम्मू और कश्मीर | 1997 | जम्मू और कश्मीर के उत्तरी ग्रिड को बिजली की आपूर्ति करना |
69. | उमियम परियोजना | उमियम | शिलांग (मेघालय) | 1965 | पूर्वोत्तर भारत में शुरू की गई पहली जलाशय-भंडारण जलविद्युत परियोजना |

बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं के लाभ और महत्व
बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाएँ भारत के समग्र विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं:
- सिंचाई और कृषि विकास: ये कृषि के लिए आवश्यक पानी उपलब्ध कराती हैं, जिससे कृषि उत्पादन में वृद्धि होती है और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होती है.
- जलविद्युत उत्पादन: ये नवीकरणीय ऊर्जा का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं, जो पर्यावरण को कम नुकसान पहुँचाते हैं और ऊर्जा सुरक्षा में योगदान करते हैं.
- बाढ़ नियंत्रण और जल प्रबंधन: जलाशयों का निर्माण बाढ़ को रोकने और सूखे क्षेत्रों में जल आपूर्ति सुनिश्चित करने में सहायक होता है.
- पेयजल आपूर्ति और औद्योगिक उपयोग: ये घरेलू और औद्योगिक कार्यों के लिए पानी की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करती हैं.
- नौका परिवहन, मत्स्य पालन और पर्यटन: नहरों का निर्माण नौका परिवहन में सहायता करता है, जलाशयों में मछली पालन को बढ़ावा मिलता है, और ये पर्यटन स्थलों का विकास करती हैं.
- मृदा संरक्षण, वनीकरण और वन्यजीव संरक्षण: ये मृदा अपरदन को रोकने, वन संरक्षण और वन्यजीवों की देखभाल में सहायक होती हैं.
- रोजगार सृजन और क्षेत्रीय आर्थिक विकास: इनके निर्माण और संचालन से बड़े पैमाने पर रोजगार का सृजन होता है, जिससे क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था को गति मिलती है.
बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं से जुड़ी चुनौतियाँ और आलोचनाएँ
इन परियोजनाओं के कई लाभों के बावजूद, उनसे जुड़ी कुछ गंभीर चुनौतियाँ और आलोचनाएँ भी हैं:
पर्यावरणीय प्रभाव (Environmental Effects)
- वन हानि और जैव विविधता पर असर: नहरों और जलाशयों के निर्माण से बड़े पैमाने पर वनों की कटाई होती है, जिससे पर्यावरण और जैव विविधता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.
- तलछट जमाव और जल गुणवत्ता में बदलाव: नदियों द्वारा लाई गई जलोढ़ मिट्टी जलाशयों में जमा हो जाती है, जिससे परियोजना का जीवनकाल कम हो जाता है और जल की गुणवत्ता प्रभावित होती है.
- सूक्ष्म जलवायु परिवर्तन और भूकंपीयता: बांधों के निर्माण से स्थानीय सूक्ष्म जलवायु में परिवर्तन हो सकते हैं, और कुछ अध्ययनों में भूकंपीय घटनाओं से भी संबंध बताया गया है.
- सामाजिक-आर्थिक प्रभाव:
- विस्थापन और पुनर्वास: बांधों के निर्माण से बड़ी संख्या में लोगों को विस्थापित होना पड़ता है, जिससे उनके आवास, कृषि भूमि और जीवनशैली पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.
- उपजाऊ कृषि भूमि का जलमग्न होना: जलाशय के जलग्रहण क्षेत्र की उपजाऊ कृषि भूमि जलमग्न हो जाती है, जिससे खाद्य उत्पादन क्षमता कम होती है.
सतत जल संसाधन प्रबंधन और भविष्य की रणनीतियाँ
इन चुनौतियों का समाधान करने और परियोजनाओं के दीर्घकालिक स्थायित्व को सुनिश्चित करने के लिए सतत जल संसाधन प्रबंधन आवश्यक है. इसमें निम्नलिखित सिद्धांत शामिल हैं:
- गतिशील प्रबंधन: जल प्रबंधन को एक चक्रीय प्रक्रिया के रूप में देखना, जिसमें निरंतर निगरानी, मूल्यांकन और अनुकूलन शामिल हो.
- समग्र दृष्टिकोण: “अर्थ-गंगा” अवधारणा के तहत नदी के मूर्त और अमूर्त मूल्यों का संरक्षण.
- स्थानीय सहभागिता: छोटी नदियों के पुनरुद्धार और स्थानीय नदी घाटी प्रबंधन समितियों के गठन से सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देना.
- प्राकृतिक प्रवाह: नदी में जल, गाद और अन्य प्राकृतिक बहाव को बनाए रखना, प्रदूषण नियंत्रण और संधारणीय कृषि पद्धतियों को अपनाना.
- आपदा प्रबंधन: बाढ़, सूखा और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए योजनाएँ और पर्यावरणीय जागरूकता बढ़ाना.
निष्कर्ष और आगे की राह (Conclusion)
भारत में बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाएँ देश के विकास में एक अपरिहार्य भूमिका निभाती रहेंगी. हालांकि, उनकी भविष्य की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि वे पर्यावरणीय स्थिरता, सामाजिक न्याय और एक एकीकृत जल प्रबंधन दृष्टिकोण के सिद्धांतों को कितनी प्रभावी ढंग से अपनाती हैं. विस्थापन और पुनर्वास के मुद्दों को संवेदनशीलता और पर्याप्त मुआवजे के साथ संबोधित किया जाना चाहिए.
पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) को परियोजना नियोजन के दौरान ही लागू किया जाना चाहिए. लागत-लाभ विश्लेषण में पर्यावरणीय और सामाजिक लागतों को भी शामिल किया जाना चाहिए ताकि वास्तविक व्यवहार्यता का आकलन हो सके.
यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि विकास जल संसाधनों के संरक्षण के साथ समन्वित हो, और नदी के प्राकृतिक स्वरूप में बदलाव से प्राप्त लाभों की सीमा निर्धारित हो. नदी जोड़ो परियोजना जैसी महत्वाकांक्षी योजनाओं के लिए व्यापक सामाजिक-पारिस्थितिकीय मूल्यांकन और तलछट प्रबंधन पर विशेष ध्यान देना आवश्यक है.
संभावित प्रश्न: बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं के सतत विकास के लिए भारत को और किन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए?