जनसंख्या वृद्धि का कारण, प्रभाव और सिद्धांत

जनसंख्या वृद्धि किसी भी देश या वैश्विक स्तर पर लोगों की संख्या में समय के साथ होने वाली बढ़ोतरी है. यह जन्म दर, मृत्यु दर और प्रवास जैसे कई कारकों से प्रभावित होती है. आज यह एक गंभीर चिंता का विषय बन चुका है. इसके दूरगामी सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय परिणाम सामने आ रहे हैं. इस लेख में, हम जनसंख्या वृद्धि के विभिन्न पहलुओं, जैसे- इसके कारण, जनसंख्या का प्रमुख सिद्धांत, प्रभावित करने वाले कारक और इसके बहुआयामी प्रभावों- को जानेंगे.

इस लेख में हम जानेंगे

परिभाषा- जनसंख्या वृद्धि क्या हैं? (What is Population Growth in Hindi)

जनसंख्या वृद्धि का सीधा अर्थ किसी आबादी या बिखरे हुए समूह में लोगों की संख्या में बढ़ोतरी है. इस वृद्धि का निर्धारण मुख्य रूप से जन्म दर और मृत्यु दर के बीच के अंतर से होता है. जब जन्म दर मृत्यु दर से अधिक होती है, तो जनसंख्या बढ़ती है. यह वृद्धि एक निश्चित क्षेत्र में, एक निश्चित समय अवधि में मापी जाती है, जैसे 6 महीने, 1 साल या 10 साल. भारत में जनसंख्या की वृद्धि का पता लगाने के लिए हर 10 साल में नियमित जनगणना कराई जाती है. 

इस वृद्धि में आप्रवास और प्रवास का अंतर भी शामिल किया जाता है. यह दर्शाता है कि जनसंख्या परिवर्तन में लोगों की भौगोलिक गतिशीलता भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. 

वैश्विक जनसंख्या के रुझान 

मानव इतिहास के अधिकांश समय में, ग्रह पर 1 बिलियन से भी कम लोग थे. कृषि क्रांति (लगभग 10,000 ईसा पूर्व) के समय पृथ्वी पर केवल 5-10 मिलियन लोग थे. 1800 में, जब औद्योगिक क्रांति शुरू हुई, तो वैश्विक आबादी लगभग 1 बिलियन थी. इससे पता चलता हैं कि मानव आबादी को 1 अरब तक पहुँचने में लाखों साल लग गए.

लेकिन, इसके एक अरब से सात गुणा होने अर्थात 1 अरब से 7 अरब तक पहुँचने में केवल लगभग 200 साल लगे. यह मानव इतिहास में जनसंख्या वृद्धि की अभूतपूर्व गति को दर्शाता है. साल 2011 में दुनिया की आबादी लगभग 7 अरब थी, जो 2021 तक बढ़कर 7.9 अरब हो गई. वर्तमान में, दुनिया की आबादी लगभग 8 अरब है.

संयुक्त राष्ट्र के अनुमानों के अनुसार, वैश्विक जनसंख्या 2030 तक 8.5 अरब, 2050 तक 9.7 अरब और 2100 तक 10.9 अरब तक पहुँच जाएगी. इसका 2086 तक 10.4 अरब से अधिक होकर अपने शिखर पर होने का अनुमान है.

वैश्विक जनसंख्या वृद्धि दर 1965 और 1970 के बीच चरम पर थी. इस दौरान औसतन 2.1% की दर से वार्षिक आबादी बढ़ रही थी. लेकिन, 2020 में यह दर घटकर 1% से भी कम रह गई. इसका अर्थ है कि कुल जनसंख्या का आकार बढ़ रहा है. लेकिन वृद्धि की गति धीमी हो गई है, जो घटते जनसंख्या का “जनसांख्यिकीय संक्रमण” का उदाहरण है. 

1970 के दशक की शुरुआत में, महिलाओं के औसतन 4.5 बच्चे थे. यह 2015 तक घटकर प्रति महिला 2.5 बच्चों से कम हो गई थी. 2021 में वैश्विक कुल प्रजनन दर (TFR) औसतन 2.2 बच्चे प्रति महिला रह गया है. इसी तरह, वैश्विक जीवनकाल जो 1990 के दशक की शुरुआत में 64.6 साल थी, वह 2019 में बढ़कर 72.6 साल हो गया है.

भारत में जनसंख्या वृद्धि 

भारत में जनसंख्या गणना 1901 से हर दस साल बाद होती है. 20वीं सदी के शुरू में जनसंख्या 23.84 करोड़ थी. तबसे, 1911-21 को छोड़कर यह हर दशक बढ़ी. 2001 में यह 102.8 करोड़ थी, जो 1.64% वार्षिक वृद्धि दर से 2011 में 121.08 करोड़ हो गई. यह वृद्धि ब्राजील की जनसंख्या के बराबर थी. 

विश्व बैंक के अनुमान के अनुसार, भारत की जनसंख्या 2021 में जनसंख्या 1.39 अरब और 2022 में 1.42 अरब थी. UNFPA के अनुसार, 2023 में भारत 1.46 अरब जनसंख्या के साथ विश्व का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बना. 2050 तक 1.6 अरब और 2060 के दशक में 1.7 अरब के शिखर के बाद 12% कमी अनुमानित है.

50% से अधिक जनसंख्या 25 वर्ष से कम और 65% 35 वर्ष से कम आयु की है. औसत आयु 29 वर्ष अनुमानित है. 68% आबादी कामकाजी उम्र (15-64) में हैं, जो आर्थिक अवसर है. कुल प्रजनन दर (TFR) 2.1 से घटकर 1.9 हो गई.  लेकिन युवा जनसंख्या के “जनसंख्या संवेग” के कारण जनसंख्या बढ़ रही है.

जनसंख्या वृद्धि के प्रमुख कारण (Main reasons of population growth)

जनसंख्या वृद्धि के कई अंतर्संबंधित कारण हैं. मुख्यतः, उच्च जन्म दर, घटती मृत्यु दर और प्रवास इसके कारण बताए जा सकते है. 

1. उच्च जन्म दर (High Birth Rate)

यदि जन्म दर मृत्यु दर से अधिक है, तो जनसंख्या बढ़ती है. प्रति 1,000 जनसंख्या पर प्रतिवर्ष होने वाले जन्मों की संख्या में बढ़ोतरी को जन्म दर कहते है.

2. सामाजिक-सांस्कृतिक कारक (Socio-Cultural Factors)

शिक्षा की कमी, विशेषकर महिलाओं में, उच्च जन्म दर का एक प्रमुख कारण है. अशिक्षित लोग परिवार नियोजन के महत्व को बेहतर ढंग से नहीं समझते और आधुनिक गर्भनिरोधक तरीकों का उपयोग करने की प्रवृत्ति नहीं रखते. ग्रामीण क्षेत्रों में अशिक्षा जनसंख्या वृद्धि के मुख्य कारणों में से एक है. दक्षिण भारत और विश्व के कई देशों में शिक्षा के प्रचार-प्रसार से जनसंख्या वृद्धि में क्रमिक कमी पाया गया है.

भारत में सरकार द्वारा विवाह के लिए निर्धारित आयु लड़की के लिए 18 वर्ष और लड़के के लिए 21 वर्ष है.  इसके बावजूद कम उम्र में विवाह हो जाता है. इसके पीछे सामाजिक मान्यताएं, अशिक्षा और मनोरंजन के सीमित साधन जैसे कारण है. यह भी प्रजनन दर बढाकार जनसंख्या वृद्धि का कारण बन जाता है.  

4. आर्थिक कारक (Financial Factors)

गरीब और अशिक्षित परिवारों में यह धारणा होती है कि अधिक सदस्य होने से आय के साधन भी बढ़ेंगे. सामाजिक सुरक्षा के अभाव में संतान को बुढ़ापे का सहारा समझने की प्रवृत्ति भी अधिक बच्चों को जन्म देने का कारण बनती है. अधिक बच्चे इन्हें पुनः गरीबी के नजदीक और शिक्षा से दूर ले जाता है. इस तरह बना दुष्चक्र जनसंख्या वृद्धि का एक मुख्य कारण है.

5. स्वास्थ्य संबंधी कारक (Health Related Factors)

देश में शिशु मृत्यु दर उच्च होने के कारण, माता-पिता एक संतान के स्थान पर अधिक संतान पैदा करते हैं, ताकि कुछ बच्चे जीवित रह सकें. हालाँकि, भारत में शिशु मृत्यु दर में उल्लेखनीय कमी आई है. 2014 में प्रति 1000 जीवित जन्मों पर 39 से घटकर 2021 में 27 हो गई है. लोगों में परिवार नियोजन की जानकारी या साधनों की कमी और कार्यक्रमों के प्रति उदासीनता भी उच्च जन्म दर का एक कारण है 1.

6. घटती मृत्यु दर (Decreasing Death Rate)

जनसंख्या वृद्धि का दूसरा प्रमुख कारण मृत्यु दर में कमी है. आधुनिक स्वास्थ्य सेवाओं, बेहतर टीकाकरण, और पोषण में सुधार के कारण मृत्यु दर में कमी आई है. अकाल और महामारियों (जैसे इन्फ्लूएंजा, प्लेग) पर नियंत्रण पा लिया गया है. इस कारण भारी जनहानि से बचा जा सका है. 1921 के बाद चिकित्सा सुविधाओं की उपलब्धता ने मृत्यु दर में गिरावट लाई.

यह जनसांख्यिकीय संक्रमण के दूसरे चरण की विशेषता है. इस चरण में स्वास्थ्य सुधारों के कारण मृत्यु दर में गिरावट आती है. लेकिन जन्म दर उच्च बनी रहती है. इस तरह, जनसंख्या में तेजी से वृद्धि होती है. यह अक्सर जनसंख्या वृद्धि का प्रारंभिक चालक होता है.

7. प्रवास (Migration)

लोगों का एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में चले जाने को प्रवास कहते हैं. यह जनसंख्या परिवर्तन का एक महत्वपूर्ण घटक है.  कुछ अनुकूल परिस्थितियाँ लोगों को शहरी या विकसित क्षेत्रों की ओर खींचती हैं. स्थायी नौकरी और उच्च वेतन के तलाश में ग्रामीण प्रवासी शहर को आकर्षित होते हैं. यह शहरी जनसंख्या वृद्धि का एक कारण है.

कई बार शहरों की सुख-सुविधा के संरचना भी प्रवास का कारण बनता हैं. ये सुविधाएं रोजगार के तलाश में आए ग्रामीणों को शहर का स्थायी निवासी बना देती है. ग्रामीण अर्थव्यवस्था का अविकसित होना और वहाँ मूलभूत सुविधाओं का कमी इन्हें वापसी से रोक देती है.

जनसंख्या प्रसार और संकुचन के विभिन्न सिद्धांत (Different theories of population expansion and contraction)

जनसंख्या गतिशीलता को समझने के लिए विभिन्न विद्वानों ने कई सिद्धांत प्रस्तावित किए हैं, जो जनसंख्या के प्रसार (वृद्धि) और संकुचन (कमी) की व्याख्या करते हैं.

माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत (Population theory of Malthus)

थॉमस रॉबर्ट माल्थस ने 1798 में “प्रिंसिपल ऑफ पॉपुलेशन” में जनसंख्या सिद्धांत प्रस्तुत किया. इसके अनुसार, जनसंख्या गुणोत्तर श्रेणी (1, 2, 4, 8…) में बढ़ती है, जबकि खाद्य उत्पादन समांतर श्रेणी (1, 2, 3, 4…) में. इस असमान वृद्धि से भोजन की कमी होगी और आबादी का भरण-पोषण मुश्किल हो जाएगा. 

उन्होंने जनसंख्या नियंत्रण के लिए दो अंकुश बताए.

  1. सकारात्मक नियंत्रण (Positive Checks): इनमें बीमारी, अकाल, युद्ध और प्राकृतिक आपदाएँ जैसी घटनाएँ शामिल होती हैं. माल्थस आपदा एक काल्पनिक परिदृश्य है, जहाँ अनियंत्रित जनसंख्या वृद्धि व्यापक अकाल और बीमारी के रूप में सामने आती है. इसके परिणामस्वरूप जनसंख्या में कमी आती है.
  2. निवारक नियंत्रण (Preventive Checks): माल्थस मानवीय निर्णयों के माध्यम से जन्म दर को कम करने का लक्ष्य रखते हैं. ऐसे उपायों में देर से विवाह, ब्रह्मचर्य और जन्म नियंत्रण आदि शामिल हो सकते हैं. माल्थस ने नैतिक संयम पर अधिक बल दिया. मतलब, शादी को तब तक रोकना जब तक परिवार का भरण-पोषण न हो सके.

तकनीकी प्रगति ने खाद्य उत्पादन बढ़ाकर माल्थस को गलत साबित किया है. यह भी गलत साबित हुआ कि जीवन स्तर सुधरने पर जनसंख्या बढ़ती है. वास्तव में, शिक्षा और स्वास्थ्य सुधार से जन्म दर घटती है.

लेकिन, कुछ भविष्यवाणियों के गलत होने पर भी सिद्धांत की प्रासंगिकता बनी हुई है. 

माल्थस सिद्धांत के अनुरूप ही सीमित संसाधनों पर जनसंख्या का दबाव पर्यावरणीय क्षरण और संसाधन कमी के रूप में दिख रहा है. इस तरह यह सिद्धांत सतत विकास, जनसंख्या नीतियों और पर्यावरण पर बहस के लिए महत्वपूर्ण है.

जनसांख्यिकीय संक्रमण सिद्धांत (Demographic Transition Theory)

यह सिद्धांत एम. थॉम्पसन (1929) और फ्रेंक नोटेस्टीन (1945) ने प्रतिपादित किया है. इस सिद्धांत में आमतौर पर चार या पांच चरण शामिल होते है:

  • प्रथम चरण (उच्च स्थिर): इस चरण में जन्म और मृत्यु दोनों की दर बहुत उच्च होती हैं. फलतः जनसंख्या वृद्धि धीमी या स्थिर रहती है. इस चरण में चिकित्सा सुविधाओं का अभाव, महामारी (जैसे इन्फ्लूएंजा, प्लेग), कुपोषण और अकाल जैसी स्थितियाँ उच्च मृत्यु दर का कारण होती हैं. जीवन प्रत्याशा बहुत कम होती है.
  • द्वितीय चरण (प्रारंभिक विस्तार/जनसंख्या विस्फोट): इस चरण में स्वास्थ्य सेवा, स्वच्छता और खाद्य उत्पादन में सुधार के कारण मृत्यु दर में तेजी से कमी आती है. लेकिन, जन्म दर उच्च बनी रहती है. इससे जनसंख्या में तीव्र वृद्धि होती है, जिसे जनसंख्या विस्फोट कहा जाता है. भारत 1951-1981 की अवधि में इस चरण में था.
  • तृतीय चरण (देर से विस्तार/घटती वृद्धि): इस चरण में जन्म दर में गिरावट शुरू होती है, जबकि मृत्यु दर कम और स्थिर बनी रहती है. शहरीकरण, निम्न बाल मृत्यु दर, गर्भनिरोध की सुविधा और छोटे परिवारों की ओर समाज का रुख इसके प्रमुख कारक हैं. भारत 1981-2011 की अवधि में इस चरण में था.
  • चतुर्थ चरण (निम्न स्थिर): इस चरण में निम्न जन्म दर और निम्न मृत्यु दर होती है, जिससे जनसंख्या स्थिर या वृद्ध होती है. यह चरण उच्च जीवन स्तर, उन्नत प्रौद्योगिकी और सामाजिक विकास को दर्शाता है.
  • पंचम अवस्था (संकुचन): कुछ मॉडल पांचवें चरण को भी शामिल करते हैं. इस चरण मे जन्म दर, मृत्यु दर से भी कम हो जाती है. फलतः जनसंख्या में संकुचन होता है. कई विकसित देश इस समस्या का सामना कर रहे है. इसलिए वे आप्रवास को बढ़ावा भी दे रहे है.

यह सिद्धांत आर्थिक (औद्योगिक) विकास और जनसंख्या में अंतर के बीच संबंध स्थापित करता है. औद्योगीकरण के शुरू होने के बाद जनसंख्या वृद्धि दर कम होना विकास की उच्च दर दर्शाता है.

इष्टतम जनसंख्या सिद्धांत (Optimum Population Theory)

इष्टतम जनसंख्या वह आदर्श जनसंख्या है जो देश के अन्य उपलब्ध संसाधनों के साथ मिलकर अधिकतम प्रतिफल या प्रति व्यक्ति आय अर्जित करेगी. इस सिद्धांत के अनुसार, जनसंख्या इतनी अधिक होनी चाहिए कि आर्थिक विकास संभव हो सके. लेकिन इतनी कम होनी चाहिए कि संसाधनों का अत्यधिक उपयोग न हो. एडविन कैनन ने 1924 में अपनी पुस्तक “वेल्थ” में इस सिद्धांत का प्रतिपादन किया था.

इष्टतम जनसंख्या को कई कारक प्रभावित करते हैं:

  • फसलें और कच्चा माल उगाने के लिए भूमि की मात्रा पहला महत्वपूर्ण कारक है.
  • किसी क्षेत्र में नौकरियों और काम के अवसरों की संख्या.
  • सड़कों, स्कूलों और अस्पतालों जैसे संसाधनों, मशीनों और बुनियादी ढाँचे की उपलब्धता.
  • किसी क्षेत्र का पर्यावरण कितना कुछ धारण कर सकता है, यानी उसकी वहन क्षमता.
  • निवासियों को सबसे अधिक धन और आराम देने के लिए जनसंख्या का संसाधनों और अवसरों से मेल खाना चाहिए.
  • कृषि तकनीक, निर्माण पद्धतियों और संसाधनों के उपयोग में उन्नति किसी स्थान की आदर्श जनसंख्या का आकार बढ़ा सकती है.
  • किसी स्थान के नागरिकों की जीवनशैली और खर्च करने की आदतें भी उसकी आदर्श आबादी को प्रभावित करती हैं.

माल्थस के अनुसार जनसंख्या की वृद्धि हमेशा हानिकारक होती है, जबकि इष्टतम जनसंख्या सिद्धांत के अनुसार जनसंख्या की वही वृद्धि हानिकारक होगी जो इष्टतम स्तर से ऊपर हो. माल्थस का सिद्धांत जनसंख्या वृद्धि और खाद्य आपूर्ति के संबंध में था, जबकि इष्टतम सिद्धांत प्राकृतिक संसाधनों, उत्पादन कला, पूंजी आदि के संदर्भ में जनसंख्या का विश्लेषण करता है. 

इष्टतम जनसंख्या का स्तर स्थायी नहीं होता है. यह उत्पादन के संसाधन, उत्पादन की तकनीक, औद्योगिक संगठन आदि में परिवर्तन के साथ बदलता रहता है. 

प्रमुख जनसंख्या सिद्धांतों का तुलनात्मक सारांश

सिद्धांत का नामप्रतिपादकमुख्य अवधारणाजनसंख्या वृद्धि का स्वरूपनियंत्रण/समाधानआलोचनाएँआधुनिक प्रासंगिकता
माल्थस का जनसंख्या सिद्धांतथॉमस माल्थस (1798)जनसंख्या गुणोत्तर श्रेणी से बढ़ती है, खाद्य उत्पादन समांतर श्रेणी सेज्यामितीय (1, 2, 4, 8…)सकारात्मक (अकाल, बीमारी, युद्ध) और निवारक (नैतिक संयम, देर से विवाह)तकनीकी प्रगति की अनदेखी, निराशावादीसंसाधन कमी, पर्यावरणीय दबाव, गरीबी
जनसांख्यिकीय संक्रमण सिद्धांतएम. थोम्पसन (1929), फ्रेंक नोटेस्टीन (1945)समाज के आर्थिक विकास के साथ जन्म और मृत्यु दर में परिवर्तनविभिन्न चरणों में परिवर्तन (उच्च स्थिर से निम्न स्थिर/संकुचन)विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, शहरीकरणविभिन्न देशों में समान पैटर्न का अभाव, सामाजिक-सांस्कृतिक कारकों की जटिलताजनसंख्या प्रवृत्तियों का विश्लेषण, भविष्य का पूर्वानुमान
इष्टतम जनसंख्या सिद्धांतएडविन कैनन (1924)वह आदर्श जनसंख्या जो उपलब्ध संसाधनों से अधिकतम प्रति व्यक्ति आय देती हैदेश के संसाधनों और प्रौद्योगिकी पर निर्भरसंसाधनों का कुशल उपयोग, तकनीकी विकास, जीवन स्तर का प्रबंधनइष्टतम स्तर की गणना में कठिनाई, गतिशील प्रकृतिसंसाधनों के प्रबंधन, जीवन स्तर में सुधार हेतु नीति निर्माण

जनसंख्या वृद्धि के विविध प्रभाव (Vivid Impacts of Population Growth)

जनसंख्या वृद्धि के व्यापक और बहुआयामी प्रभाव होते हैं. यह किसी भी देश के आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय ताने-बाने को गहराई से प्रभावित करता हैं. इसके तीन मुख्य प्रभाव हैं:

आर्थिक प्रभाव (Economic Impact)

सकारात्मक: जनसंख्या वृद्धि श्रम शक्ति और उपभोक्ता मांग बढ़ाती है. यह बाजार विस्तार, निवेश, उत्पादन और रोजगार वृद्धि में सहायक है. 1% से कम वार्षिक वृद्धि उत्पादकता, नवाचार और पैमाने की बचत (Economies of Scale) को बढ़ावा देती है. भारत में युवा कार्यबल जनसांख्यिकीय लाभांश प्रदान करता है. यह लाभांश वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता और आर्थिक विकास को गति देता है.

नकारात्मक: तेज वृद्धि से बेरोजगारी, संसाधनों पर दबाव, गरीबी, भ्रष्टाचार और प्रति व्यक्ति आय में कमी होती है. भारत में कुशल कार्यबल की कमी, महिलाओं की कम भागीदारी और अपर्याप्त बुनियादी ढांचा जनसांख्यिकीय लाभांश को बोझ में बदल देता है.

सामाजिक प्रभाव (Social Impact)

बढ़ती जनसंख्या से शिक्षा, स्वास्थ्य और आवास की कमी होती है. भारत में प्रति 1000 जनसंख्या पर केवल 0.9 अस्पताल बेड उपलब्ध हैं. शहरीकरण से भीड़भाड़, अपराध और तनाव बढ़ता है. ग्रामीण क्षेत्रों में अवसरों की कमी से असंतुलित विकास होता है. संतुलित विकास के लिए ग्रामीण अवसरों का सृजन आवश्यक है.

पर्यावरणीय प्रभाव (Environmental Impact)

जनसंख्या वृद्धि से प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन, प्रदूषण, वनों की कटाई, जैव विविधता हानि और जलवायु परिवर्तन होता है. जल संकट, अपशिष्ट प्रबंधन की समस्या और शहरी फैलाव पर्यावरणीय स्थिरता को चुनौती देते हैं. 

भारत का जनसंख्या नीति (Population Policy of India)

भारत ने 1952 में परिवार नियोजन कार्यक्रम शुरू किया. 1976 में राष्ट्रीय जनसांख्यिकी रणनीति लागू की गई. इस नीति द्वारा अधिक उम्र में विवाह और जन्म नियंत्रण को प्रोत्साहन दिया गया. 

राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000 (NPP 2000) में मुफ्त शिक्षा, शिशु मृत्यु दर में कमी, और परिवार नियोजन को जन-केंद्रित बनाने का लक्ष्य बनाया गया. इसका लक्ष्य 2010 तक कुल प्रजनन दर (TFR) 2.1 और 2045 तक जनसंख्या स्थायित्व है. इसके तहत गर्भनिरोधक विकल्प, नसबंदी मुआवजा, और जन्म-मृत्यु पंजीकरण जैसी पहलें शुरू की गईं. 

इस योजना के फलस्वरूप, TFR 2021 तक 2.0 पर पहुँच गया है. लेकिन जनसंख्या स्थायित्व 2060 तक बढ़ गया. भारत का जनसंख्या पर नीति सफल रहा है. किन्तु, जनसांख्यिकीय जड़ता के कारण जनसंख्या वृद्धि जारी है.

जनांकिकीय लाभांश के लिए आवश्यक कदम

भारत के पास जनांकिकीय लाभांश का सीमित समय है. इस लाभांश के दोहन के लिए निम्नलिखित उपाय आवश्यक है:

  • कौशल विकास: शिक्षा और प्रशिक्षण में निवेश, जैसे स्किल इंडिया, क्योंकि केवल 4% कार्यबल औपचारिक रूप से कुशल है.
  • महिला श्रम भागीदारी: लैंगिक समानता और नीतियों से महिला श्रम भागीदारी बढ़ाना.
  • स्वास्थ्य देखभाल: वृद्धजनों के लिए बेहतर चिकित्सा सुविधाएँ, क्योंकि रोगी के तुलना में चिकित्सकों का अनुपात कम है.
  • नवाचार: अनुसंधान, उद्यमिता, और प्रौद्योगिकी से उत्पादकता बढ़ाना.
  • वित्तीय समावेशन: पेंशन और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं से वृद्धों की सुरक्षा.
  • औपचारिक रोजगार: नौकरी सुरक्षा और सामाजिक लाभ बढ़ाना.
  • ग्रामीण विकास: रोजगार और बुनियादी ढाँचे से शहरी प्रवास कम करना.
  • पर्यावरणीय स्थिरता: नवीकरणीय ऊर्जा और प्रदूषण नियंत्रण पर ध्यान.

निष्कर्ष (Conclusion)

भारत ने जनसंख्या नियंत्रण में प्रगति की हैं. लेकिन बड़ी आबादी के कारण संसाधनों पर दबाव बना हुआ है. जनांकिकीय लाभांश का लाभ उठाने के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तिकरण, और पर्यावरणीय स्थिरता में समन्वित प्रयास जरूरी हैं. जनसंख्या को संसाधन के रूप में देखकर सही नीतियों से इसकी क्षमता बढ़ाई जा सकती है.

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