भारत के राष्ट्रपति: संवैधानिक स्थिति, शक्तियाँ और भूमिका

भारत के राष्ट्रपति, भारतीय गणराज्य का संवैधानिक (De Jure) प्रमुख होता है. राष्ट्रपति नाममात्र का कार्यकारी प्रमुख होता है, जबकि वास्तविक कार्यकारी शक्तियाँ प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद के पास होती हैं. यह लेख भारत के राष्ट्रपति से संबंधित सभी महत्वपूर्ण तथ्यों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत करती है, जिसमें उनकी संवैधानिक स्थिति, चुनाव प्रक्रिया, शक्तियाँ, मंत्रिपरिषद के साथ संबंध और अन्य परिप्रेक्ष्य शामिल हैं.

इस लेख में हम जानेंगे

राष्ट्रपति का संवैधानिक पद

भारत के संविधान के अनुच्छेद 52 में कहा गया है कि भारत का एक राष्ट्रपति होगा. अनुच्छेद 53 के अनुसार, संघ की कार्यकारी शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी. अपने इस शक्ति का प्रयोग वह सीधे या अपने अधीनस्थ अधिकारियों के माध्यम से संविधान के अनुसार करेगा. यह प्रावधान राष्ट्रपति को संघ के कार्यकारी प्रमुख के रूप में स्थापित करता है.

भारत में संसदीय प्रणाली अपनाई गई है, जो ब्रिटिश वेस्टमिंस्टर (Westminster) मॉडल पर आधारित है. इस प्रणाली में, राष्ट्रपति राज्य का प्रमुख होता है, जबकि प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद वास्तविक कार्यकारी होते हैं. संघ सरकार की सभी कार्यकारी कार्रवाइयाँ औपचारिक रूप से राष्ट्रपति के नाम पर की जाती हैं. राष्ट्रपति संघ की संसद का एक अभिन्न अंग भी है, भले ही वह किसी भी सदन का सदस्य न हो.

राष्ट्रपति पद के लिए पात्रता और योग्यताएँ

राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार को कुछ संवैधानिक आवश्यकताओं को पूरा करना होता है, जैसा कि अनुच्छेद 58 में उल्लिखित है:

  • उसे भारत का नागरिक होना चाहिए.
  • उसने 35 वर्ष की आयु पूरी कर ली हो.
  • उसे लोकसभा के सदस्य के रूप में चुनाव के लिए योग्य होना चाहिए.
  • उसे संघ या राज्य सरकार या किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकरण के अधीन कोई ‘लाभ का पद’ धारण नहीं करना चाहिए.

राष्ट्रपति के लिए कुछ अन्य शर्तें (अनुच्छेद 59) भी महत्वपूर्ण हैं:

  • राष्ट्रपति संसद के किसी भी सदन या राज्य विधानमंडल का सदस्य नहीं हो सकता. यदि ऐसा कोई व्यक्ति राष्ट्रपति चुना जाता है, तो यह माना जाएगा कि उसने कार्यालय में प्रवेश करने की तारीख से अपनी सीट खाली कर दी है.
  • वह कोई अन्य लाभ का पद धारण नहीं कर सकता.
  • वह बिना किराए के आधिकारिक निवास, और संसद द्वारा निर्धारित परिलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकारों का हकदार है.
  • उसके कार्यकाल के दौरान परिलब्धियों और भत्तों को कम नहीं किया जा सकता है.

राष्ट्रपति चुनाव प्रक्रिया (President’s Election Procedure)

भारत के राष्ट्रपति का चुनाव सीधे लोगों द्वारा नहीं, बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से एक निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाता है. उम्मीदवार के नामांकन के लिए कम से कम 50 निर्वाचकों द्वारा प्रस्तावित और अन्य 50 निर्वाचकों द्वारा समर्थित होना आवश्यक है. इसके अतिरिक्त, ₹15,000 की सुरक्षा राशि जमा करना होता है. यदि उम्मीदवार कुल वैध मतों के छठे हिस्से को सुरक्षित करने में विफल रहता है तो यह राशि जब्त हो जाती है. (अनुच्छेद 54)

निर्वाचक मंडल की संरचना (अनुच्छेद 54): 

इसमें निम्नलिखित शामिल होते हैं:

  • संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) के निर्वाचित सदस्य.
  • राज्यों की विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्य.
  • दिल्ली और पुडुचेरी के केंद्र शासित प्रदेशों की विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्य (70वें संशोधन अधिनियम, 1992 द्वारा जोड़ा गया, जो 1995 से प्रभावी हुआ). संसद और राज्य विधान सभाओं के मनोनीत सदस्य, और विधान परिषदों के सदस्य (जहाँ द्विसदनीय है) निर्वाचक मंडल का हिस्सा नहीं होते हैं.

चुनाव की विधि (अनुच्छेद 55):

चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होता है. मतदान गुप्त मतपत्र द्वारा होता है. प्रतिनिधित्व के पैमाने में विभिन्न राज्यों के बीच एकरूपता होनी चाहिए. राज्यों के बीच समग्र रूप से और संघ के बीच समानता होनी चाहिए.

मत मूल्यों की गणना:

  • एक विधायक के मत का मूल्य: (राज्य की कुल जनसंख्या / राज्य में निर्वाचित विधायकों की कुल संख्या) x 1/1000.
  • जनसंख्या का अर्थ 1971 की जनगणना के आँकड़ों से है, जिसे 84वें संशोधन अधिनियम, 2001 द्वारा 2026 के बाद की पहली जनगणना तक स्थिर कर दिया गया है.
  • एक सांसद के मत का मूल्य: (सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के सभी निर्वाचित विधायकों के मतों का कुल मूल्य / संसद में निर्वाचित सांसदों की कुल संख्या). 2017 में सभी विधायकों के मतों का कुल मूल्य 5,49,495 था, और सभी सांसदों के लिए 5,49,408 था. कुल निर्वाचक मंडल का मूल्य 10,98,903 था.

चुनाव के लिए कोटा:

एक उम्मीदवार को निर्वाचित घोषित होने के लिए मतों का एक निश्चित कोटा सुरक्षित करना होता है.

कोटा = (डाले गए कुल वैध मतों की संख्या / (चुने जाने वाले उम्मीदवारों की संख्या + 1)) + 1.

चुनाव विवादों का समाधान (अनुच्छेद 71):

राष्ट्रपति के चुनाव से उत्पन्न होने वाले या उससे संबंधित सभी संदेहों और विवादों की जाँच और निर्णय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किया जाता है. सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय अंतिम होता है. किसी व्यक्ति के राष्ट्रपति के रूप में चुनाव को उपयुक्त निर्वाचक मंडल में किसी रिक्ति के आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती है. संसद को राष्ट्रपति के चुनाव से संबंधित मामलों को विनियमित करने का अधिकार है.

कार्यकाल, पुनर्चुनाव और रिक्ति (Tenure, Re-election and Vacancy)

राष्ट्रपति अपने पद ग्रहण करने की तारीख से पाँच वर्ष की अवधि के लिए पद धारण करता है. कार्यकाल समाप्त होने के बावजूद, राष्ट्रपति तब तक पद पर बना रहता है जब तक उसका उत्तराधिकारी पद ग्रहण नहीं कर लेता. (अनुच्छेद 56)

एक व्यक्ति जो राष्ट्रपति के रूप में पद धारण करता है, या जिसने धारण किया है, वह उस पद के लिए पुनर्चुनाव के लिए पात्र है. अमेरिकी राष्ट्रपति (दो कार्यकाल तक सीमित) के विपरीत, भारतीय राष्ट्रपति के लिए कार्यकाल की संख्या पर कोई संवैधानिक सीमा नहीं है. (अनुच्छेद 57)

रिक्ति के कारण (अनुच्छेद 62): 

निम्नलिखित परिस्थितियों में राष्ट्रपति का पद रिक्त हो सकता है:

  • कार्यकाल की समाप्ति: पाँच वर्ष बाद सबसे सामान्य तरीका.
  • त्यागपत्र: राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित त्यागपत्र दे सकता है. उपराष्ट्रपति को इसे लोकसभा अध्यक्ष को सूचित करना होगा.
  • महाभियोग द्वारा पद से हटाना: ‘संविधान के उल्लंघन’ के लिए (अनुच्छेद 61).
  • मृत्यु: जैसा कि डॉ. जाकिर हुसैन और फखरुद्दीन अली अहमद के साथ हुआ था.
  • पद धारण करने के लिए अयोग्यता: यदि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा चुनाव को शून्य घोषित कर दिया जाता है.

रिक्ति की स्थिति में उपराष्ट्रपति की भूमिका (अनुच्छेद 65):

यदि राष्ट्रपति का पद मृत्यु, त्यागपत्र, पद से हटाने या अन्यथा के कारण रिक्त हो जाता है, तो उपराष्ट्रपति तब तक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करता है जब तक एक नया राष्ट्रपति नहीं चुन लिया जाता. नए राष्ट्रपति के लिए चुनाव रिक्ति की तारीख से छह महीने के भीतर होना चाहिए. 

जब उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति के रूप में कार्य करता है, या राष्ट्रपति के कार्यों का निर्वहन करता है, तो उसे राष्ट्रपति की सभी शक्तियाँ, उन्मुक्तियाँ और परिलब्धियाँ प्राप्त होती हैं. यदि उपराष्ट्रपति का पद भी रिक्त है, तो भारत के मुख्य न्यायाधीश (या उपलब्ध सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश) राष्ट्रपति के रूप में कार्य करते हैं. ऐसा 1969 में हुआ था जब न्यायमूर्ति एम. हिदायतुल्ला ने राष्ट्रपति के रूप में कार्य किया था.

राष्ट्रपति का वेतन और भत्ता

अनुच्छेद 75 के तहत राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री का वेतन तय होता है. राष्ट्रपति का सैलरी 5 लाख प्रतिमाह है, राष्ट्रपति का वेतन पर कोई टैक्स नहीं लगता है. इसके अतिरिक्त उन्हें नि:शुल्क आवास व संसद द्वारा स्वीकृत अन्य भत्ते प्राप्त होते हैं. उन्हें मुफ़्त इलाज भी प्रदान किया जाता है. सेवानिवृत्ति के बाद राष्ट्रपति को 9 लाख रुपए वार्षिक पेंशन प्राप्त होती है. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 59 के अनुसार, राष्ट्रपति के कार्यकाल के दौरान सैलरी तथा भत्ते में किसी प्रकार की कमी नहीं की जा सकती है.

राष्ट्रपति पर महाभियोग की प्रक्रिया (अनुच्छेद 61):

निर्दिष्ट एकमात्र आधार ‘संविधान का उल्लंघन’ है. महाभियोग का आरोप संसद के किसी भी सदन द्वारा शुरू किया जा सकता है. आरोप को एक प्रस्ताव में शामिल किया जाना चाहिए जिसे कम से कम 14 दिन की सूचना के बाद पेश किया गया हो.सूचना पर आरोप शुरू करने वाले सदन के कुल सदस्यों के कम से कम एक-चौथाई सदस्यों के हस्ताक्षर होने चाहिए.

प्रस्ताव को उस सदन की कुल सदस्यता के कम से कम दो-तिहाई बहुमत से पारित किया जाना चाहिए. एक सदन द्वारा पारित होने के बाद, आरोप की जाँच दूसरे सदन द्वारा की जाती है. इस जाँच के दौरान राष्ट्रपति को उपस्थित होने और प्रतिनिधित्व करने का अधिकार होता है.

यदि जाँच करने वाला सदन भी अपनी कुल सदस्यता के कम से कम दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित करता है, तो राष्ट्रपति उस तारीख से पद से हटा दिया जाता है, जिस तारीख को प्रस्ताव पारित किया जाता है.

महाभियोग की प्रकृति अर्ध-न्यायिक है. संसद के मनोनीत सदस्य महाभियोग प्रक्रिया में भाग ले सकते हैं, चुनाव के विपरीत. राज्य विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्य महाभियोग प्रक्रिया में भाग नहीं लेते हैं, चुनाव के विपरीत. अब तक किसी भी राष्ट्रपति पर महाभियोग नहीं चलाया गया है.

राष्ट्रपति की शक्तियाँ और कार्य

राष्ट्रपति के पास कार्यकारी, विधायी, वित्तीय, न्यायिक, राजनयिक, सैन्य और आपातकालीन शक्तियों सहित व्यापक शक्तियाँ होती हैं.

1. कार्यकारी शक्तियाँ (अनुच्छेद 53):

भारत सरकार की सभी कार्यकारी कार्रवाइयाँ औपचारिक रूप से उनके नाम पर की जाती हैं.

  • नियुक्तियाँ:
  • प्रधानमंत्री और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करते हैं.
  • भारत के महान्यायवादी, भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक, मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों, संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों, राज्यों के राज्यपालों, वित्त आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति करते हैं.
  • राष्ट्रपति ही भाषा आयोग, पिछड़ा वर्ग आयोग, राष्ट्रीय महिला आयोग, मानवाधिकार आयोग, अल्पसंख्यक आयोग एवं अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में रिपोर्ट देने वाले आयोग के सदस्यों और अध्यक्षों का नियुक्ति करते है. 
  • राष्ट्रपति विदेशी राजनयिकों का आमंत्रण-पत्र स्वीकार करता है तथा राजदूतों को नियुक्ति पत्र जारी करते है. 
  • सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति करते हैं.
  • प्रशासन:
  • उनके द्वारा नियुक्त प्रशासकों के माध्यम से केंद्र शासित प्रदेशों का प्रशासन करते हैं.
  • अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप, दादरा और नगर हवेली, और दमन और दीव की शांति, प्रगति और सुशासन के लिए नियम बना सकते हैं.
  • अंतर-राज्यीय परिषद: केंद्र-राज्य और अंतर-राज्यीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक अंतर-राज्यीय परिषद की स्थापना कर सकते हैं.
  • अनुसूचित क्षेत्र: किसी भी क्षेत्र को अनुसूचित क्षेत्र घोषित कर सकते हैं और अनुसूचित क्षेत्रों और जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में शक्तियाँ रखते हैं.

2. विधायी शक्तियाँ:

  • संसदीय सत्र: संसद को आहूत या सत्रावसान कर सकते हैं और लोकसभा को भंग कर सकते हैं.
  • संयुक्त बैठक: किसी विधेयक पर गतिरोध की स्थिति में संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुला सकते हैं.
  • संबोधन और संदेश: प्रत्येक आम चुनाव के बाद पहले सत्र और प्रत्येक वर्ष के पहले सत्र के प्रारंभ में संसद को संबोधित करते हैं. किसी विधेयक या अन्य के संबंध में संसद को संदेश भेज सकते हैं.
  • मनोनीत सदस्य: कला, साहित्य, विज्ञान और समाज सेवा में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव रखने वाले व्यक्तियों में से राज्यसभा के लिए 12 सदस्यों को मनोनीत करते हैं. एंग्लो-इंडियन समुदाय से लोकसभा के लिए 2 सदस्यों को मनोनीत करते हैं (यदि पर्याप्त रूप से प्रतिनिधित्व नहीं है). (नोट: एंग्लो-इंडियन नामांकन का यह प्रावधान अब 104वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2019 द्वारा बंद कर दिया गया है).
  • विधेयकों पर सहमति:
  • संसद द्वारा पारित कोई विधेयक राष्ट्रपति की सहमति के बाद ही अधिनियम बनता है. वे सहमति दे सकते हैं, सहमति रोक सकते हैं, या गैर-धन विधेयक को पुनर्विचार के लिए वापस कर सकते हैं. यदि संसद इसे संशोधनों के साथ या बिना संशोधनों के फिर से पारित करती है, तो राष्ट्रपति को सहमति देनी होगी.
  • धन विधेयक: धन विधेयक को पुनर्विचार के लिए वापस नहीं कर सकते; उन्हें या तो सहमति देनी होगी या सहमति रोकनी होगी.
  • संवैधानिक संशोधन विधेयक: सहमति देनी होगी.
  • अध्यादेश बनाने की शक्ति (अनुच्छेद 123):
  • जब संसद के दोनों सदन सत्र में न हों तो अध्यादेश जारी कर सकते हैं. अध्यादेशों का वही बल और प्रभाव होता है जो संसद के अधिनियमों का होता है.
  • संसद के फिर से एकत्रित होने के छह सप्ताह के भीतर इसका अनुमोदन सदन द्वारा हो जाना चाहिए. अनुमोदन न मिलने पर ये समाप्त हो जाते है.
  • राष्ट्रपति किसी भी समय अध्यादेश वापस ले सकते हैं.

3. वित्तीय शक्तियाँ:

  • धन विधेयक: धन विधेयक संसद में उनकी पूर्व सिफारिश के बिना पेश नहीं किया जा सकता है.
  • वार्षिक वित्तीय विवरण (बजट): वार्षिक वित्तीय विवरण (केंद्रीय बजट) को संसद के समक्ष रखवाते हैं.
  • अनुदान की मांगें: उनकी सिफारिश के बिना किसी अनुदान की मांग नहीं की जा सकती है.
  • आकस्मिकता निधि: अप्रत्याशित व्यय को पूरा करने के लिए भारत की आकस्मिकता निधि से अग्रिम राशि निकाल सकते हैं.
  • वित्त आयोग: केंद्र और राज्यों के बीच राजस्व के वितरण की सिफारिश करने के लिए हर पाँच साल में एक वित्त आयोग का गठन करते हैं.

4. न्यायिक शक्तियाँ (अनुच्छेद 72, 143):

  • क्षमादान शक्ति (अनुच्छेद 72): किसी भी अपराध के लिए दोषी ठहराए गए किसी भी व्यक्ति की सजा को क्षमा, प्रविलंबन, विराम, परिहार या निलंबित, कम या लघुकरण कर सकते हैं:
  • उन सभी मामलों में जहाँ दंड या सजा कोर्ट मार्शल द्वारा दी गई है.
  • उन सभी मामलों में जहाँ दंड या सजा संघ की कार्यकारी शक्ति से संबंधित किसी कानून के विरुद्ध अपराध के लिए है.
  • उन सभी मामलों में जहाँ सजा मृत्युदंड है.
  • सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श (अनुच्छेद 143): सार्वजनिक महत्व के किसी भी कानून या तथ्य के प्रश्न पर सर्वोच्च न्यायालय से सलाह ले सकते हैं. सर्वोच्च न्यायालय की सलाह राष्ट्रपति पर बाध्यकारी नहीं होती है.

5. राजनयिक शक्तियाँ:

अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ और समझौते उनके नाम पर बातचीत और संपन्न किए जाते हैं. भारत का अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर प्रतिनिधित्व करते हैं और राजनयिकों (राजदूतों, उच्चायुक्तों) को भेजते और प्राप्त करते हैं.

6. सैन्य शक्तियाँ:

भारत के सशस्त्र बलों के सर्वोच्च कमांडर होते हैं. सेना, नौसेना और वायु सेना के प्रमुखों की नियुक्ति करते हैं. संसदीय अनुमोदन के अधीन युद्ध की घोषणा या शांति स्थापित कर सकते हैं.

7. आपातकालीन शक्तियाँ:

भारतीय संविधान में राष्ट्रपति को तीन स्थितियों में विशिष्ट आपातकालीन शक्तियां प्रदान की गई है:-

  1. अनुच्छेद 352: अनुच्छेद 352 के अंतर्गत युद्ध बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह की स्थिति में राष्ट्रपति को यह शक्ति प्राप्त है कि पूरे भारत या किसी एक भाग की सुरक्षा खतरे में है तो वह संपूर्ण भारत या किसी भाग में आपातकाल घोषणा कर सकता है. अगर यह अवधि 1 माह के पश्चात संसद से अनुमोदित ना हो तो ऐसी स्थिति में स्वत: समाप्त हो जाती है. इस तरह की घोषणा को संसद के दो तिहाई बहुमत से पास होना आवश्यक होता है.
  2. अनुच्छेद 356: अनुच्छेद 356 के अंतर्गत यदि कोई राज्य सरकार संवैधानिक नियमों के अनुरूप कार्य नहीं कर रही है तो राष्ट्रपति  तत्काल की घोषणा वहां ऐसी घोषणा को राष्ट्रपति शासन कहा जाता है जिसे संसद द्वारा 2 माह के भीतर अनुमोदन करना आवश्यक होता है.
  3. अनुच्छेद 360: अनुच्छेद 360 के अंतर्गत देश में आर्थिक संकट की स्थिति में राष्ट्रपति अपनी विशिष्ट शक्तियों का प्रयोग कर वित्तीय आपात की घोषणा कर सकता है.

8. राष्ट्रपति की विवेकाधीन शक्तियाँ:

जबकि आमतौर पर सलाह से बाध्य होते हैं, राष्ट्रपति कुछ विशिष्ट स्थितियों में कुछ विवेकाधीन शक्तियों का प्रयोग करते हैं:

  • प्रधानमंत्री की नियुक्ति जब किसी पार्टी को लोकसभा में स्पष्ट बहुमत न हो, या जब प्रधानमंत्री की अचानक मृत्यु हो जाती है और कोई स्पष्ट उत्तराधिकारी न हो.
  • मंत्रिपरिषद को बर्खास्त करना जब वह लोकसभा का विश्वास साबित नहीं कर सकती.
  • लोकसभा को भंग करना यदि मंत्रिपरिषद ने अपना बहुमत खो दिया है.
  • प्रशासनिक या विधायी प्रस्तावों के संबंध में प्रधानमंत्री से जानकारी मांगना (अनुच्छेद 78).
  • मंत्रिपरिषद की सलाह को पुनर्विचार के लिए वापस भेजना.
  • गैर-धन विधेयकों पर ‘निलंबनकारी वीटो’ का प्रयोग करना.
  • ‘पॉकेट वीटो’ का प्रयोग करना (अनिश्चित काल के लिए सहमति रोकना).

अनुच्छेद 75 में कहा गया है कि मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होगी.

9. मंत्रिपरिषद के साथ संबंध

‘सहायता और सलाह’ खंड (अनुच्छेद 74):

राष्ट्रपति को उसके कार्यों के प्रयोग में सहायता और सलाह देने के लिए प्रधानमंत्री के नेतृत्व में एक मंत्रिपरिषद होगी. राष्ट्रपति ऐसी सलाह के अनुसार कार्य करेगा.

  • 42वां संशोधन अधिनियम, 1976: मंत्रिपरिषद की सलाह को राष्ट्रपति पर बाध्यकारी बना दिया.
  • 44वां संशोधन अधिनियम, 1978: राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद से ऐसी सलाह पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता करने का अधिकार दिया, लेकिन राष्ट्रपति ऐसे पुनर्विचार के बाद दी गई सलाह के अनुसार कार्य करेगा.

10. राष्ट्रपति की विटों शक्तियां

राष्ट्रपति को तीन प्रकार की वीटो शक्तियां प्राप्त है:-

Absolute Veto: इस वीटो शक्ति के तहत राष्ट्रपति किसी विधेयक पर अपनी अनुमति नहीं देता है, अर्थात वह अपनी अनुमति को सुरक्षित रख सकता है.

Suspension Veto: इस वीटो शक्ति के अंतर्गत राष्ट्रपति किसी विधेयक को संसद के पास पुनर्विचार हेतु भेज सकता है.

जेबी वीटो (Pocket veto):इस वीटो शक्ति के तहत राष्ट्रपति किसी विधेयक को अनिश्चितकाल के लिए अपने पास सुरक्षित रख सकता है अर्थात इस वीटो शक्ति का प्रयोग राष्ट्रपति द्वारा किसी विधेयक पर न अनुमति देता है, न ही अनुमति देने से इनकार करता है और न ही पुनर्विचार हेतु संसद के पास भेजता है.

नोट: विवादास्पद भारतीय डाक संशोधन विधेयक 1986 के संबंध में तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह द्वारा जेबी वीटो का प्रयोग किया गया भारत में किसी राष्ट्रपति द्वारा जेबी वीटो का यह प्रथम बार प्रयोग किया गया था.

भारतीय राष्ट्रपतियों का ऐतिहासिक अवलोकन

भारत के राष्ट्रपतियों की सूची | List of Presidents of India Collage Image

यह खंड भारत के सभी राष्ट्रपतियों की एक कालानुक्रमिक सूची, उनके कार्यकाल और उनके कार्यकाल के उल्लेखनीय पहलुओं को प्रस्तुत करता है.

भारत के राष्ट्रपतियों की सूची

क्रमनामकार्यकाल (प्रारंभ – समाप्त)मुख्य विशेषता/महत्व
1.डॉ. राजेंद्र प्रसाद26 जनवरी 1950 – 13 मई 1962प्रथम राष्ट्रपति, सबसे लंबे समय तक सेवा (दो कार्यकाल), संविधान सभा के प्रमुख सदस्य.
2.डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन13 मई 1962 – 13 मई 1967प्रख्यात दार्शनिक और शिक्षाविद, भारत रत्न से सम्मानित, उनके जन्मदिन पर शिक्षक दिवस.
3.डॉ. ज़ाकिर हुसैन13 मई 1967 – 3 मई 1969प्रथम मुस्लिम राष्ट्रपति, कार्यकाल के दौरान निधन, भारत रत्न से सम्मानित.
4.वराहगिरी वेंकट गिरी3 मई 1969 – 20 जुलाई 1969 (कार्यवाहक), 24 अगस्त 1969 – 24 अगस्त 1974प्रथम कार्यवाहक राष्ट्रपति, बाद में पूर्णकालिक राष्ट्रपति, भारत रत्न से सम्मानित.
5.फखरुद्दीन अली अहमद24 अगस्त 1974 – 11 फरवरी 1977दूसरे मुस्लिम राष्ट्रपति, आपातकाल के दौरान कार्यकाल, कार्यकाल में निधन.
6.बी. डी. जत्ती11 फरवरी 1977 – 25 जुलाई 1977 (कार्यवाहक)कार्यवाहक राष्ट्रपति, छोटा कार्यकाल.
7.नीलम संजीव रेड्डी25 जुलाई 1977 – 25 जुलाई 1982सबसे कम उम्र में राष्ट्रपति बने, पहले आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री.
8.ज्ञानी जैल सिंह25 जुलाई 1982 – 25 जुलाई 1987प्रथम सिख राष्ट्रपति, ऑपरेशन ब्लू स्टार और आपातकाल के बाद के दौर में सेवा.
9.रामास्वामी वेंकटरमण25 जुलाई 1987 – 25 जुलाई 1992आर्थिक सुधारों के दौर में राष्ट्रपति, वकालत और स्वतंत्रता संग्राम में योगदान.
10.डॉ. शंकर दयाल शर्मा25 जुलाई 1992 – 25 जुलाई 1997विद्वान और स्वतंत्रता सेनानी, स्थिर शासन के दौरान सेवा.
11.के. आर. नारायणन25 जुलाई 1997 – 25 जुलाई 2002प्रथम दलित राष्ट्रपति, कूटनीतिज्ञ, सामाजिक समानता पर जोर.
12.डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम25 जुलाई 2002 – 25 जुलाई 2007“जनता के राष्ट्रपति”, वैज्ञानिक, मिसाइल प्रोग्राम के जनक, भारत रत्न से सम्मानित.
13.प्रतिभा पाटिल25 जुलाई 2007 – 25 जुलाई 2012प्रथम महिला राष्ट्रपति, सामाजिक कार्य और महिला सशक्तिकरण पर ध्यान.
14.प्रणब मुखर्जी25 जुलाई 2012 – 25 जुलाई 2017अनुभवी राजनेता, भारत रत्न से सम्मानित, कूटनीतिक और प्रशासनिक योगदान.
15.राम नाथ कोविंद25 जुलाई 2017 – 25 जुलाई 2022दूसरा दलित राष्ट्रपति, सामाजिक समावेशन और शिक्षा पर जोर.
16.द्रौपदी मुर्मू25 जुलाई 2022 – वर्तमानप्रथम आदिवासी राष्ट्रपति, महिला सशक्तिकरण और आदिवासी अधिकारों पर ध्यान.

राष्ट्रपतियों की कालानुक्रमिक सूची डॉ. राजेंद्र प्रसाद से शुरू होती है. डॉ प्रसाद देश के पहले राष्ट्रपति थे. देश के पहले दलित राष्ट्रपति डॉ. के.आर. नारायणन, पहली महिला राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल., और पहली आदिवासी राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू शामिल हैं.

ज्ञानी जैल सिंह (पॉकेट वीटो) और के.आर. नारायणन (संवैधानिक मामलों में सक्रिय भूमिका) जैसे कुछ राष्ट्रपतियों के कार्यकाल में ऐसे उदाहरण मिलते हैं, जहाँ राष्ट्रपतियों ने अपनी संवैधानिक शक्तियों का अधिक मुखर रूप से प्रयोग किया है या अपनी भूमिका की अधिक स्वतंत्रता के साथ व्याख्या की है.

राष्ट्रपति से संबंधित प्रमुख संवैधानिक अनुच्छेद

अनुच्छेद प्रावधान अनुच्छेद प्रावधान 
अनुच्छेद 52 भारत का राष्ट्रपतिअनुच्छेद 65उपराष्ट्रपति का राष्ट्रपति के रूप में कार्य करना
अनुच्छेद 53संघ की कार्यकारी शक्तिअनुच्छेद 71 राष्ट्रपति के चुनाव से संबंधित मामले
अनुच्छेद 54राष्ट्रपति का चुनावअनुच्छेद 72राष्ट्रपति का क्षमादान शक्ति 
अनुच्छेद 55राष्ट्रपति के चुनाव की विधिअनुच्छेद 74राष्ट्रपति को सहायता और सलाह देने के लिए मंत्रिपरिषद
अनुच्छेद 56राष्ट्रपति का कार्यकालअनुच्छेद 75मंत्रियों के बारे में अन्य प्रावधान
अनुच्छेद 57पुनर्चुनाव के लिए पात्रताअनुच्छेद 78प्रधानमंत्री के कर्तव्य
अनुच्छेद 58राष्ट्रपति के रूप में चुनाव के लिए योग्यताएँअनुच्छेद 123राष्ट्रपति द्वारा अध्यादेश
अनुच्छेद 59राष्ट्रपति पद के लिए शर्तेंअनुच्छेद 143सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श
अनुच्छेद 60राष्ट्रपति द्वारा शपथअनुच्छेद 352राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा
अनुच्छेद 61राष्ट्रपति पर महाभियोग की प्रक्रियाअनुच्छेद 356राष्ट्रपति शासन
अनुच्छेद 62राष्ट्रपति के रिक्ति भरने का अवधिअनुच्छेद 360वित्तीय आपातकाल

निष्कर्ष

संक्षेप में, भारत का राष्ट्रपति एक नाममात्र का कार्यकारी होने के बावजूद, उसका कार्यालय केवल औपचारिक नहीं है. यह भारतीय लोकतांत्रिक ढांचे में एक महत्वपूर्ण संवैधानिक जाँच, एक नैतिक अधिकार और एक एकीकृत व्यक्ति के रूप में कार्य करता है. वास्तव मे राष्ट्रपति, राष्ट्र की संप्रभुता और संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

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