सिख साम्राज्य का इतिहास: उदय, विस्तार और क्षेत्र

जब मुग़ल कमजोर हुए तो देश के कई हिस्सों में स्थानीय शासकों का सत्ता स्थापित होने लगा. सिख साम्राज्य एक ऐसा ही राज्य था. इसके स्थापना का श्रेय बन्दा बहादुर को दिया जाता है. लेकिन इसके औपचारिक गठन का श्रेय महाराजा रंजीत सिंह को दिया जाता है.

बंदा बहादुर: सिख साम्राज्य का प्रारंभिक नायक

बंदा बहादुर (मूल नाम लक्ष्मण देव) 1708 में सिख धर्म में परिवर्तित हुए. उन्हें बंदा सिंह बहादुर के नाम से जाना गया. वह गुरु गोबिंद सिंह के प्रभाव से प्रेरित थे. उन्होंने 1709 में समाना की लड़ाई में मुगल सेनाओं को हराया और पहला सिख राज्य स्थापित किया. उन्होंने किसानों के बीच जमीन वितरित करने और बड़े जमींदारों के खिलाफ विद्रोह शुरू किया. 

1710 में सद्धौरा की लड़ाई में उन्हें सफलता मिली. लेकिन 1716 में गुरदासपुर की घेराबंदी में मुगलों से हार गए. उन्हें गुरदास नांगल किले में आठ महीने तक कैद रखा गया और इस्लाम स्वीकार करने से इनकार करने पर उन्हें दिल्ली में फांसी दे दी गई. बंदा बहादुर को सिख इतिहास में एक महान योद्धा और सिख साम्राज्य के प्रारंभिक नायक के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने सिखों को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई .

बंदा बहादुर के बाद और रंजीत सिंह से पहले

1716 से 1799 तक की अवधि में, सिखों ने मुगल साम्राज्य के पतन के बाद पंजाब में शक्ति हासिल की. इस दौरान, सिखों ने दल खालसा के माध्यम से अपनी स्वतंत्रता को मजबूत किया और मिसलों में संगठित हो गए. मिसलों के बीच आंतरिक युद्ध और गठबंधन हुए. इनमें भंगाई, नक्कई, दलेलवाला, रामगढ़िया, सुकरचकिया, अहलूवालिया, करोर सिंघिया, और कन्हैया मुख्य मिसल थे. इस तरह सिखों ने मुगल साम्राज्य के पतन के बाद पंजाब में शक्ति का खालीपन भरा. 

सादा कौर कन्हैया मिसल की शासिका थीं, जिन्होंने भंगाई मिसल को नष्ट किया और बाद में रंजीत सिंह को सिंहासन सौंपा. इस अवधि में, सिखों ने अफगान-सिख युद्धों और अन्य लड़ाइयों में भाग लिया. इससे सिक्खों के सैन्य क्षमता और राजनीतिक प्रभाव बढ़ा.

अंततः महाराजा रंजीत सिंह ने इन्हें एकीकृत किया और लाहौर पर कब्जा करके साम्राज्य की नींव रखी. साम्राज्य का भौगोलिक विस्तार पंजाब से लेकर खैबर पास (पश्चिम), कश्मीर (उत्तर), सिंध (दक्षिण), और तिब्बत (पूर्व) तक फैला था.

रंजीत सिंह का शासन

सिख साम्राज्य का राजनैतिक नक्शा | Political Map of Sikh Empire Hindi

महाराजा रंजीत सिंह ने 1799 में लाहौर पर कब्जा कर लिया. उन्हें 12 अप्रैल 1801 को वैसाखी के दिन औपचारिक रूप से एकीकृत पंजाब या सिख साम्राज्य का महाराजा घोषित किया गया. उन्होंने 1813 तक सभी शेष सिख मिसलों को मिलाकर एक एकीकृत साम्राज्य बनाया. उन्होंने अफगानों को पंजाब से निष्कासित किया. 1818 तक मुल्तान पर कब्जा करके अफगान प्रभाव को इंदुस नदी के पूर्व समाप्त कर दिया. उनके शासन के दौरान, साम्राज्य का विस्तार कश्मीर, पेशावर, लद्दाख, और बाल्टिस्तान तक हुआ. 

रंजीत सिंह ने नवीनतम प्रशिक्षण और हथियारों का उपयोग करके सेना को आधुनिक बनाया. उनके शासन के चरम पर, सिख साम्राज्य 520,000 वर्ग किलोमीटर में फैला था. इसकी आबादी  12,000,000 थी, जिसमें 69% मुस्लिम, 24% हिंदू, और 6% सिख थे. राज्य चार प्रांतो में विभक्त था- पेशावर, कश्मीर, मुल्तान और लाहौर. 

उनके शासन को समृद्धि और धार्मिक सहिष्णुता के लिए जाना जाता है. इस दौर में कला, चित्रकला, और शिक्षा का भी विकास हुआ. इनके शासन के दौरान अफगानों के खिलाफ कई लड़ाइयां लड़ी गई और अफगानों को पश्चिम की तरफ धकेल दिया गया. 

अफगानी अमीर शाहशुजा, दोस्त मुहम्मद से हारकार कश्मीर में कश्मीर में रुका था. यहाँ सूबेदार आत्ममोहम्मद ने उसे किले में कैद कर रखा था. रिहाई के बदले शाहशुजा की पत्नी वफ़ा बेगम ने महाराजा रंजीत सिंह को कोहिनूर हिरा दिया था.

27 जून 1839 को रंजीत सिंह की मृत्यु हो गई. इनके बाद शासक बनने वाले तीन पुत्रों के नाम इस प्रकार है:

  • खड़क सिंह (1839-1840): महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद उनके सबसे बड़े पुत्र खड़क सिंह ने गद्दी संभाली.
  • शेर सिंह(1841-43)
  • दलीप सिंह (1843 से 1849 ई. तक).

अन्य पुत्रों के नाम है- मुल्ताना सिंह, रतन सिंह, कश्मीर सिंह, तारा सिंह, ईशर सिंह और पेशावरा सिंह.

अमृतसर की संधि

यह संधि 25 अप्रैल, 1809 को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के  चार्ल्स टी. मेटकाफ और महाराजा रंजीत सिंह के बीच हुआ था. इस संधि ने भारत-सिख तनाव एक पीढ़ी तक को समाप्त कर दिया. ब्रिटिश एक रक्षा गठबंधन चाहते थे. साथ ही सतलज नदी से पंजाब पर नियंत्रण चाहते थे. हालाँकि यह एक रक्षात्मक समझौता नहीं था. लेकिन इसने रणजीत के क्षेत्रों की सीमा को मोटे तौर पर सतलज नदी के मार्ग के साथ स्थायित्व प्रदान किया.

वास्तव में, ब्रिटिश रंजीत सिंह के विस्तारवादी नीति से भयभीत थे. इसलिए गवर्नर लार्ड मिंटो सिक्खों के साथ शांति-संधि चाहते थे. इसलिए मिंटो ने अपने दूत मेटकॉफ के माध्यम से इसे अमलीजामा पहनाया और ब्रिटिशों के पश्चिम में स्थित क्षेत्रों को सुरक्षित कर लिया.

महाराजा दिलीप सिंह

Maharaja Dilip Singh | महाराजा दिलीप सिंह

महाराजा दिलीप सिंह (6 सितंबर 1838 – 22 अक्टूबर 1893) महाराजा रंजीत सिंह के सबसे छोटे पुत्र थे और सिख साम्राज्य के अंतिम शासक थे. उन्हें 15 सितंबर 1843 को पांच वर्ष की आयु में महाराजा घोषित किया गया. उनकी मां, महारानी जिंद कौर, उनकी ओर से शासन कर रही थीं. 

हालांकि, 1848 तक, ब्रिटिश अधिकारी हेनरी लॉरेंस ने उन्हें अपनी मां से अलग कर दिया. महारानी को पंजाब से निष्कासित कर दिया गया. 1849 में, दूसरे आंग्ल-सिख युद्ध के बाद, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने पंजाब पर कब्जा कर लिया. दिलीप सिंह को उनके राज्य और शक्ति से वंचित कर दिया गया. फिर, 15 वर्ष की आयु में उन्हें ब्रिटेन में निर्वासित कर दिया गया. यहाँ उन्होंने रानी विक्टोरिया के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध विकसित किए. 

बाद में, उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह किया और अपने राज्य को वापस पाने का प्रयास किया. लेकिन असफल रहे. उन्होंने 1893 में पेरिस में अपनी मृत्यु से पहले सिख धर्म में वापसी की.

सिख साम्राज्य का पतन: आंतरिक और बाहरी कारक

रंजीत सिंह की मृत्यु (1839) के बाद, साम्राज्य आंतरिक विभाजन और राजनीतिक अस्थिरता से कमजोर हो गया. उनके उत्तराधिकारियों, जैसे खरक सिंह और नौ निहाल सिंह, की संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु हो गई, जिससे अस्थिरता बढ़ी . 

ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने इन विभाजनों का लाभ उठाया और पहले आंग्ल-सिख युद्ध (1845-1846) और दूसरे आंग्ल-सिख युद्ध (1848-1849) को शुरू किया. 1845 में फिरोजशाह की लड़ाई एक महत्वपूर्ण मोड़ थी.

दरअसल, मजबूत सिख सेना के कारण महारानी जिंद कौर ने ब्रिटिशों को कमजोर समझ लिया. उन्होंने साम्राज्य विस्तार का आदेश दे दिया. लेकिन, ब्रिटिश बदले हुए परिस्तिथि को जानते थे और उन्होंने प्रथम और द्वितीय आंग्ल-सिख युद्ध द्वारा सिख साम्राज्य को लगभग समाप्त कर दिया.

1849 में, साम्राज्य को विघटित कर दिया गया, और पंजाब को ब्रिटिश प्रशासन के अधीन कर दिया गया. इसके बाद, पंजाब को अलग-अलग रियासतों और ब्रिटिश प्रांत में विभाजित कर दिया गया. पतन के मुख्य कारणों में आंतरिक विभाजन, विद्रोही सैनिक, अविश्वसनीय मंत्री, और ब्रिटिश हस्तक्षेप शामिल थे. ब्रिटिशों ने महारानी जिंद कौर को “विश्वासघाती” घोषित करके अपने हस्तक्षेप को जायज ठहराया .

1846 के बाद, पूर्ण अधिकारों वाले नौ राज्य थे. ये बाद में घटकर छह रह गए. पटियाला सबसे बड़ा था, जिसका क्षेत्रफल 5,412 वर्ग मील (14,017 वर्ग किमी) था. इसके विलय के समय इसमें दो मिलियन लोग रहते थे. ये राज्य 1947 में भारत के स्वतंत्र होने तक बने रहे. आजादी के बाद इन्हें पटियाला और पूर्वी पंजाब राज्य संघ (PEPSU) में मिला दिया गया. उसके बाद उन्हें पंजाब और हरियाणा के भारतीय राज्यों में एकीकृत कर दिया गया.

निष्कर्ष

सिख साम्राज्य का इतिहास सिखों की सैन्य और राजनीतिक क्षमता का एक उल्लेखनीय अध्याय है, जो बंदा बहादुर से शुरू होकर महाराजा रंजीत सिंह के स्वर्ण युग तक पहुंचा. हालांकि, आंतरिक कलह और ब्रिटिश हस्तक्षेप ने इसके पतन का मार्ग प्रशस्त किया. अंततः पंजाब को ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन हो गया.

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