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सिख धर्म और इसके 10 गुरु

    सिख धर्म (Sikhism) समानता और आधुनिक न्याय पर आधारित एक नया धर्म है, जो उपवास, तीर्थ यात्रा, अंधविश्वास, मृतकों व मूर्ति पूजा जैसे अनुष्ठानों का निंदा करता है. इसका उदय पंद्रहवीं सदी के दौरान सल्तनत काल में हुआ था, मुग़ल शासन के दौर के कारण मुग़ल काल भी कहा जा सकता है. आज इस धर्म के अनुयायी पुरे दुनिया में फैले हुए है. इस धर्म के लोग नव-बौद्धों के भाँती सबसे अधिक शिक्षित और धनाढ्य परिवार है.

    अधिकांश किसान, मजदूर और दमित वर्ग के अनुयायियों वाला सिख धर्म एक जीवंत और समावेशी धर्म है, जिसकी उत्पत्ति 15वीं शताब्दी के दौरान भारत के पंजाब क्षेत्र में हुई थी. सिख धर्म के मान्यताओं में 10 आध्यात्मिक गुरुओं का महत्वपूर्ण स्थान है. इन्होंने इस धर्म के आस्था को आकार देने और इसके अनुयायियों का मार्गदर्शन करने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई है.

    इस लेख में, हम इन पूज्य गुरुओं के जीवन और शिक्षाओं के बारे में विस्तार से जानेंगे और सिख धर्म पर उनके व्यापक प्रभाव को समझेंगे. गुरु नानक देव जी से लेकर गुरु गोबिंद सिंह जी तक, प्रत्येक गुरु ने सिख धर्मावलम्बियों को अद्वितीय दृष्टिकोण और ज्ञान लाया से समृद्ध किया है.

    सिख धर्म के दस गुरु (10 Gurus of Sikhs in Hindi)

    क्र. स.10 सिख गुरु – परंपरा तालिका
    1पहले गुरुगुरु नानक1469-1539
    2दूसरे गुरुगुरु अंगद1539-1552
    3तीसरे गुरुगुरु अमर दास1552-1574
    4चौथे गुरुगुरु राम दास1574-1581
    5पाँचवें गुरुगुरु अर्जुन देव1581-1606
    6छठे गुरुगुरु हरगोबिंद1606-1644
    7सातवें गुरुगुरु हर राय1644-1661
    8आठवें गुरुगुरु हरकिशन1661-1664
    9नवें गुरुगुरु तेग बहादुर1665-1675
    10दसवें गुरुगुरु गोबिंद सिंह1675-1708
    सिख धर्म के 10 गुरु

    गुरु नानक देव जी: सिख धर्म के संस्थापक

    सिख धर्म के पहले गुरु और संस्थापक, गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल 1469, तलवंडी (अब ननकाना साहिब, पाकिस्तान) में हुआ था. उनके पिता, मेहता कालू, पटवारी और व्यापारी थे, जबकि उनकी माँ तृप्ता, एक गहरी आस्था वाली आध्यात्मिक महिला थीं.

    उनका विवाह नानक सुलक्खनी के साथ हुआ था. इनके दो पुत्र, श्रीचन्द और लक्ष्मीचन्द थे. गुरु नानक की वंशावली खत्री जाति के बेदी वंश से मिलती है. उनका परिवार में आध्यात्मिकता के प्रति अत्यधिक झुकाव था. इसी आध्यात्मिक ने उनके जीवन यात्रा को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

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    गुरु नानक का जीवन प्रेम, समानता और मानवता की एकता फैलाने के लिए समर्पित था. उनके इस विचरण यात्रा को ‘उदासी’ कहा जाता है. उनका पहला उदासी 1507 ई. से 1515 ई. तक चला. इस यात्रा को उन्होंने हरिद्वार, अयोध्या, प्रयाग, काशी, गया, पटना, असम, जगन्नाथपुरी, रामेश्वर, सोमनाथ, द्वारका, नर्मदातट, बीकानेर, पुष्कर, दिल्ली, पानीपत, कुरुक्षेत्र, मुल्तान, लाहौर आदि स्थानों से तय किया.

    उन्होंने ‘इक ओंकार‘ के अवधारणा का प्रचार किया, जिसका अर्थ है ‘परम शक्ति एक ही है’. यह सिख धर्म का मुख्य दर्शन और मत माना जाता है. उनकी शिक्षाओं में प्रेम, समानता और निस्वार्थ सेवा पर जोर दिया गया. गुरु नानक देव जी के मार्गदर्शन में, सिख धर्म ने शांति और करुणा को बढ़ावा देने वाले एक विशिष्ट धर्म के रूप में आकार लेना शुरू किया.

    22 सितंबर, 1539 को, गुरु नानक ने इस नश्वर दुनिया को छोड़ दिया और शाश्वत प्रकाश में विलीन हो गए. सिख इस दिन को गुरु नानक गुरुपर्व के रूप में मनाते हैं, उनके जीवन और विरासत को उत्साह और भक्ति के साथ याद करते है.

    श्री करतारपुर साहिब (Sri Kartarpur Sahib)

    वर्षों की यात्रा और अपने दिव्य संदेशों का प्रचार करने के बाद, गुरु नानक अंततः 1522 में करतारपुर (अब पकिस्तान) में बस गए, जहाँ उन्होंने अपनी शिक्षाओं के माध्यम से अपने अनुयायियों को प्रेरित करना जारी रखा. यहां उन्होंने अपने जीवन के आखिरी 18 वर्ष बिताएं. अब यहां करतारपुर साहिब गुरुद्वारा स्तिथ है, जिसे गुरुद्वारा दरबार साहिब के नाम से जाना जाता है.

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    गुरु नानक के साथ ही उनके माता-पिता भी श्री करतारपुर साहिब में बस गए थे और दोनों ने यही पर अपना प्राण त्याग दिए थे. गुरु नानक देव जी से जुड़े इस स्थल पर भारतीय सिक्खों के सुलभ दर्शन हेतु विजारहित करतारपुर साहिब गलियारा बनाया गया है. इसका उद्घाटन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके पाकिस्तानी समकक्ष इमरान खान द्वारा 2019 में गुरु नानक के 550वें जयंती पर किया गया. यह कॉरिडोर भारत के पंजाब में डेरा बाबा नानक गुरुद्वारा को पाकिस्तान के नरोवाल ज़िले के दरबार साहिब से जोड़ता है. इसे “शांति का गलियारा” भी कहा जाता है.

    गुरु नानक जी की शिक्षाएं और कार्य (Teachings and Works og Guru Nanak Ji in Hindi)

    गुरु नानक की शिक्षाएँ गहन और काव्यात्मक शैली में दोहे के रूप में है. उन्होंने हमें भजनों और छंदों का एक विशाल संग्रह दिया, जो अब सिख धर्म के पवित्र ग्रंथ, गुरु ग्रंथ साहिब का हिस्सा हैं. उनके शिक्षाएं गुरबानी के नाम से प्रसिद्ध है. गुरु नानक ने सिख धर्म में संगत (धर्मशाला) और पंगत (सामुदायिक लंगर या भोज) के अवधारणा का नींव रखा. ये संस्थाएं समानता पर आधारित है, जिसने सामाजिक बेड़ियों को तोड़ने का काम किया है.

    गुरु नानक ने जाति-आधारित भेदभाव और लैंगिक असमानता को खत्म करने की वकालत की. उन्होंने समाज में महिलाओं की आवश्यक भूमिका को पहचानते हुए उनके साथ सम्मान और गरिमा के साथ व्यवहार करने के महत्व पर जोर दिया. उन्होंने छुवाछुत समेत हिन्दू और इस्लाम धर्म फैले सभी तरह के कुरीतियों का अपने धर्म में निषेध किया. अतः गुरु नानक की शिक्षाएँ समानता और सामाजिक न्याय पर आधारित है.

    उन्होंने अपने अनुयुयियों से काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार को नियंत्रण में रखने को कहा. सिख धर्म के अनुयायी आज भी इस पांच दोषों से बचते है. ये शिक्षा उन्हें जीवन के लक्ष्यों से भटकने नहीं देती है और उन्हें आत्मकेंद्रित बनाती है. इसकी प्राप्ति के लिए तीन कर्तव्यों का पालन करना गुरु नानक जी ने निर्धारित किया है.

    1. जपनाम‘, जिसका अर्थ है कीर्तन करे और ”सच्चे भगवान’ के नाम का जाप करें” अर्थात हमेशा ईश्वर का सुमिरन करना (ईश्वर का याद बनाए रखना).
    2. इसके दूसरे भाग में उन्होंने ”कीरत करो” का शिक्षा दिया, जो अपने सुख के लिए दूसरों के शोषण का निषेध करता है. इस सिद्धांत में ईश्वर को सत्य माना गया है और उनके प्रकोप से बचने के लिए ईमानदार आजीविका की शिक्षा दी गई है. अनुयायियों से अपराध,जुए, भीख, शराब व तंबाकू उद्योग से दूर रहने की अपील की गई है.
    3. वंड छको” सिद्धांत में उन्होंने संसाधनों को आपस में साझा करने और अभावों और गरीबी को दूर करने की शिक्षा दी. दान और दूसरे का देखभाल इसका खासियत है. इन तीन कर्तव्यों का पालन सिख आज भी करते है.

    आपसी भाईचारे को मजबूत करने के लिए अपने उन्होंने अपने अनुयायियों को ”सरबत दा भला” का आशीर्वाद दिया, जो धर्म, जाति और लिंग से परे सबके कल्याण का कामना करता है. इसके अलावा नानक देव जी ने बिना किसी भय के सत्य वचन बोलने की शिक्षा दीं.

    सिख धर्म में संगत और पंगत समेत नानकजी द्वारा दी गई शिक्षा और परम्पराएँ आज भी जीवित है. समानता और मानव कल्याण के लिए दिए गए उनके इन शिक्षाओं के कारण ही बौद्ध धर्म से समानता रखने वाला सिख धर्म आज भी कायम है.

    गुरु अंगद देव जी: सिख धर्म के मशाल वाहक

    गुरु नानक के बाद गुरु अंगद देव जी (Guru Angad Devji)सिख धर्म के दूसरे गुरु बने. इनका जन्म 31 मार्च, 1504 को पंजाब के हरीके नामक गांव, फिरोजपुर में हुआ था. इनके पिता का नाम फेरू जी पेशे से व्यापारी और माता रामो जी गृहिणी थी. इनके पत्नी खीवी थी, जिनसे इन्हें दो पुत्र, दासू व दातू , और दो पुत्रियां, अमरो व अनोखी, प्राप्त हुए.

    इन्होंने गुरु नानकदेव के पंजाबी लिपि के वर्णों में फेरबदल कर गुरूमुखी लिपि की एक वर्णमाला को प्रस्तुत किया. आज के समय में यह पंजाबी भाषा की लिपि है. इसलिए इन्हें ‘गुरुलिपि का जन्मदाता’ भी कहा जाता है.

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    गुरु नानक जी ने अपने पुत्रों के जगह अंगद देव जी को अपना उत्तराधिकारी चुना. इससे पहले सात वर्षों तक अंगद जी, गुरु नानक से साथ रहे थे. गुरु नानक जी के मृत्योपरांत सितम्बर 1939 में अंगद देव जी सिक्खों के गुरु नियुक्त हुए और अप्रैल 8, 1552 को अपने मृत्यु प्रयन्त इस पद पर रहे. इन्होंने अपना आखिरी वक्त अमृतसर में बिताया था.

    अंगद देव जी की शिक्षाएँ, शिक्षा के महत्व और आध्यात्मिक विकास के साथ शारीरिक कल्याण के एकीकरण पर केंद्रित है. इन्होंने ‘गुरु का लंगर’ प्रथा से जातपात पूर्णतः हटाकर इसे और भी लोकप्रिय बनाया.

    गुरु अमर दास जी: लैंगिक समानता के चैंपियन

    तीसरे गुरु, गुरु अमर दास (Guru Amar Das ji) जी ने लैंगिक समानता की महत्वपूर्ण वकालत की. उन्होंने सिख धर्म में ‘सती प्रथा’ को समाप्त कर दिया. इन्होंने जाति प्रथा, ऊंच-नीच, कन्या-हत्या और पर्दा प्रथा जैसे कुरीतियों को समाप्त करने में अहम् भूमिका निभाई. इन्होंने ‘आनंद कारज विवाह’ का शुभारंभ किया. हिन्दू धर्म के विपरीत यह आडम्बर से दूर है और विवाह के समय नव दम्पत्ति को सिख धर्म और मानवता की शिक्षा दी जाती है.

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    इनका जन्म 23 मई, 1479 को अमृतसर के बसारके गांव में हुआ था. इनके पिता तेजभान एवं माता का नाम लखमी था. इन्होंने 61 साल की उम्र में गुरु अंगद देव जी को अपना गुरु माना. अलगे लगातार 11 वर्षों तक उनकी सेवा की. इस सेवा और सिख धर्म के प्रति इनके समर्पण को देखते हुए गुरु अंगद देव जी ने उन्हें गुरुगद्दी सौंप दी. गुरु अमर दास का निधन 1 सितंबर, 1574 को गोइंदवाल साहिब में हुआ था.

    इन्होंने अंतर्जातीय विवाह और विधवा विवाह को अनुमति देकर महिला सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाया था. उनके इस कदम के कारण ही सिख धर्म से आडम्बर और कुरीतियों का समापन हो पाया. आज सिख धर्म दुनिया में वैज्ञानिक विचारों के करीब माना जाता है, जो समानता और सद्भाव के उसूलों पर आधारित है. ये भी जान ले कि मुग़ल सम्राट अकबर और गुरु अमरदास जी समकालीन थे.

    गुरु राम दास जी: स्वर्ण मंदिर के निर्माता (Builder of the Golden Temple)

    सिक्खों के चौथे गुरु राम दास जी (जेठा जी) ने बादशाह अकबर द्वारा दिए गए जमीन पर 1577 में ‘अमृत सरोवर’ नाम से शहर बसाया. बाद में यह अमृतसर नाम से मशहूर हो गया. जल्द ही ये जगह व्यापार का महत्वपूर्ण केंद्र बन गया और लाहौर को टक्कर देने लगा. यहाँ बड़े संख्या में सिख अनुयायी बसे, इसलिए सिख धर्मावलमियों के लिए यह स्थल महत्वपूर्ण हो गया. साथ ही, स्वर्ण मंदिर निर्माण के लिए भी गुरु अर्जुन दास इतिहास में याद किए जाते है.

    सम्राट अकबर, गुरु रामदास जी से प्रभावित थे और इनका काफी सम्मान करते थे. इसी आत्मीयता के कारण इन्होंने गुरु राम दास जी को शहर बसाने के लिए जमीन दान में दे दी. इसके अलावा, पंजाब का लगान एक साल के लिए माफ़ कर दिया.

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    गुरु रामदास जी का जन्म 24 सितंबर 1534 को लाहौर के चुना मंडी में हुआ था. इनके पिताजी का नाम हरदासजी और माता दयाजी थी. इनके माता-पिता का देहांत बचपन में ही हो गया था. इसलिए इनका लालन-पालन इनके नानी के द्वारा किया गया. इससे उपजे गरीबी ने इन्हें यह बचपन से ही स्वावलंबी और नेक दिल इंसान बना दिया.

    गरीबी में ये अपने नानी के साथ गोइंदवाल आ गए और उबला चना बेचने लगे. साथ ही, ये गुरु अमरदास जी के सांगत में जाने लगे. ये स्वभाव से सहनशील, विनम्र और आज्ञाकारी थे. इस खासीयत से प्रभावित होकर गुरु अमरदास जी ने अपने छोटी बेटी बीबी भानी जी का विवाह इनके साथ कर दिया. इनके तीन बेटे पृथी चन्द जी, महादेव जी एवं और अरजन साहिब जी हुए.

    गुरु अर्जुन देव जी: गुरु ग्रंथ साहिब के संकलनकर्ता

    गुरु अर्जुन देव ने 1604 ईस्वी में ‘आदि ग्रंथ’ की रचना की. इसकी रचना उनहोंने अपने भाई गुरदास के सम्पादकीय सहायता से की थी. बाद में यह ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ का हिस्सा बना. इसलिए गुरु अर्जुनदेव जी को ‘श्री गुरु ग्रन्थ साहिब’ का संकलनकर्ता कहा जाता है. गुरुग्रन्थ साहिब में तीस रागों में इनकी वाणी संकलित है, जो गणना के अनुसार गुरुग्रंथ साहिब में सर्वाधिक है. ‘सुखमनी साहिब’ भी इनकी महान कृति है, जिसे सिख धर्म में मानसिक शांति के लिए सर्वोत्तम धार्मिक ग्रन्थ माना जाता है.

    इनका जन्म गोइंदवाल साहिब में 15 अप्रैल 1563 को सोढ़ी खत्री परिवार में हुआ था. ये चौथे गुरु राम दास जी के सुपुत्र थे. इन्होंने अमृतसर शहर और अमृत सरोवर के बीच हरगोबिंद मंदिर (स्वर्ण मंदिर) का निर्माण पुरा करवाया. इन्हें शाहिदीन-दे-सरताज (Shaheeden-de-Sartaj) के नाम से भी जाना जाता है.

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    अकबर के बाद मुग़ल बादशाह बने जहांगीर को गुरु अर्जुन देव पर शहजादा खुसरो को शरण देने का शक था. इसी शक के कारण 28 अप्रैल, 1606ई. को बादशाह जहांगीर ने गुरु अर्जुन देव जी को सपरिवार कैद करने का हुक्म जारी कर दिया. 30 मई, 1606 को लाहौर में पांच दिनों का कठोर यातना देकर गुरु अर्जुन दास जी को मार डाला गया. फिर इनके शव को रावी नदी में बहा दिया गया. तुजुके-जहांगीरी के अनुसार उनका परिवार मुरतजाखान के हवाले कर घरबार लूट लिया गया. कालांतर में यहीं से सिखों और मुगलों में दुश्मनी का आगाज हुआ.

    नोट: गुरु अर्जुन देव जी ने खुद को सच्चा बादशाह कहा था.

    गुरु हरगोबिंद जी: योद्धा संत

    इनके पिता गुरु अर्जन देव जी की जहांगीर द्वारा निर्मम हत्या कर दी गई थी. इसलिए इन्होंने सिख कौम को एक सैन्य कौम में बदलने का निर्णय लिया. ये खुद भी योद्धा थे. इन्होंने अपने अनुयायियों को सैन्य प्रशिक्षण देना शुरू किया और छोटी सी सैन्य टुकड़ी स्थापित कर ली. नाराज होकर जहांगीर ने इन्हें 12 साल तक अपने कैद में रखा. इस कैद से आजाद होने के बाद इन्होंने शाहजहां के खिलाफ बगावत कर दी.

    शाहजहां को फारस के राजा से मिला एक सफ़ेद बाज को गुरु हरगोबिंद जी ने कैद कर लिया था. यह शाही शक्ति का प्रतीक था. इससे नाराज होकर शाहजहां ने मुखलिस खान के नेतृत्व में 7000 सैनिकों का एक दस्ता सिखों के खिलाफ कूच कर दिया. फिर 5 जून 1928 को गुमटाला में दोनों दलों के बीच अमृतसर की लड़ाई हुई, जिसमें 700 सिखों ने भाग लिया. आखिर में आमने-सामने की लड़ाई में गुरूजी ने मुख्लिस खान को मार गिराया और सिखों की जीत हुई.

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    जहांगीर और शाहजहां के खिलाफ युद्ध छेड़ने के कारण हरगोबिंद जी को सैन्य संत कहा जाता है. इन्होंने स्वर्ण मंदिर के सामने अकाल तख्त की स्थापना की. सिख समुदाय को सैन्य समुदाय में बदलने का श्रेय इन्हें ही दिया जाता है. सन् 1644 ई . में कीरतपुर, पंजाब में इनकी मृत्यु हो गई.

    छठे गुरु, गुरु हरगोबिंद जी ने ‘मीरी-पीरी’ प्रणाली का अवधारणा भी पेश किया था, जिसमें सिख धर्म में 6=स्वयं और दूसरों की रक्षा करने की तत्परता के साथ आध्यात्मिक गतिविधियों को भी संतुलित किया गया था.

    गुरु हर राय जी: प्रकृति-प्रेमी गुरु

    गुरु हर राय जी, सातवें गुरु, एक दयालु नेता थे जो प्रकृति और वन्य जीवन के प्रति अपने प्रेम के लिए जाने जाते थे. उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के महत्व पर जोर दिया और सभी जीवित प्राणियों के प्रति सहानुभूति का मूल्य सिखाया. गुरु हर राय जी के कार्यकाल ने सिख धर्म के सद्भाव और परोपकार के सिद्धांतों को और मजबूत किया.

    उनका जन्म 16 जनवरी, 1630 ई . को पंजाब के कीरतपुर, रोपड़ में हुआ था. ये सिख धर्म के छठे गुरु के पुत्र बाबा गुरदिता जी के छोटे बेटे थे. इनकी पत्नी किशन कौर जी और दो पुत्र गुरु रामराय जी और हरकिशन साहिब जी थे. इन्होंने दारा शिकोह की औरंगजेब के खिलाफ सिंहासन के संघर्ष में मदद की थी. गुरु हरराय की मृत्यु सन् 1661 ई . में हुई थी.

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    इनका जीवन मानवता के प्रति समर्पित था. इन्होंने ‘मसन्द पद्धति’ में भ्रष्टाचार समाप्त करने के लिए कई नए ईमानदार मंजियों की नियुक्ति की और 360 मांजी स्थापित किए. इन्होंने किरतपुर में एक आयुर्वेदिक अस्पताल भी स्थापित किया, जहाँ द्वारा शिकोह का सफल इलाज हुआ. इन्होंने गुरुग्रन्थ साहिब में दर्ज गुरु नानक या अन्य शिक्षाओं में फेरबदल के खिलाफ सख्त नियम भी बनाया.

    मालवा और दोआबा के प्रवास से लौटते वक्त इनपर मोहम्मद यारबेग खान ने एक हजार सशस्त्र सैनिकों के साथ हमला कर दिया था. इस हमले को मजबूती से झेल लिया गया और यारबेग खान भाग गया. गुरु हरराय जी शांतिप्रिय व्यक्तित्व थे. उन्होंने पूरा समय सिख धर्म के उत्थान और कल्याण में समर्पित किया था.

    गुरु हर कृष्ण जी: सबसे कम उम्र के गुरु

    गुरु हर कृष्ण या गुरु हर किशन जी अल्प आयु में ही आठवें गुरु बन गये. इन्हें 5 वर्ष की आयु में गुरु की उपाधि दी गई थी. अपनी युवावस्था के बावजूद, उन्होंने उल्लेखनीय ज्ञान और करुणा का प्रदर्शन किया. गुरु हर कृष्ण जी ने स्वयं को बीमारों को ठीक करने और पीड़ितों को सांत्वना प्रदान करने के लिए समर्पित कर दिया. उनके संक्षिप्त लेकिन प्रभावशाली नेतृत्व ने सिख इतिहास पर एक अमिट छाप छोड़ी.

    3 मार्च 1644 को इनके दादा और सिख धर्म के सातवें गुरु गुरु हर राय जी के मौत के बाद ये सातवें नानक के पद पर सुशोभित हुए थे. इनका जन्म जन्म 17 जुलाई, 1656 को किरतपुर साहेब में हुआ था.

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    इनसे भी औरंगजेब को भय था. विरोध स्वरुप इनके खिलाफ सम्मन जारी कर इन्हें दिल्ली बुला लिया गया. राजा जयसिंह को इन्हें लाने के लिए भेजा गया था. जब ये दिल्ली पहुंचे तो वहां हैजा फैला हुआ था. फिर ये लोगों का सेवा करने लगे. इसी क्रम में ये खुद भी चेचक का शिकार हो गए और 09 अप्रैल 1664 को मृत्यु को प्राप्त हुए.

    मरते वक्त इन्होंने ‘बाबा बकाले’ कहा था. इनके अनुयायियों ने इसका अर्थ अगला गुरु बकाला गांव से खोजना समझा. इन्होंने अपने मौत पर लोगों से न रोने को भी कहा था.

    गुरु तेग बहादुर जी: धार्मिक स्वतंत्रता के लिए शहीद

    नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर जी (Guru Teghbahadur Ji)धार्मिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों के समर्थक थे. उन्होंने औरंगजेब के सिख धर्म के प्रति उत्पीड़न का प्रतिकार किया और सिख धर्म के अधिकारों की रक्षा के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया. उनके शहादत से समानता, सद्भाव, धर्म और न्याय जैसे सिख धर्म के मूल सिद्धांतों को बल मिला. इन्होंने अन्य धर्मावलम्बियों का इस्लाम में बलात परिवर्तन का भी विरोध किया था.

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    सिख इन्हें ‘मानवता के रक्षक’ (श्रीष्ट-दी-चादर) के रूप में याद करते है. इनका जन्म 1 अप्रैल, 1621 को सिख धर्म के छठे गुरु, गुरु हरगोबिंद साहिब और माता नानकी के यहाँ पंजाब के अमृतसर में हुआ था. इन्होंने भारत के कई हिस्सों का भ्रमण किया और जगह-जगह उपदेश दिए. कुरुक्षेत्र, कड़ामानकपुर, प्रयाग, बनारस, पटना, और असम इलाकों से गुजरते हुए इन्होंने लोगों के आध्यात्मिक, सामाजिक व आर्थिक उन्नयन के लिए कई रचनात्मक कार्य किए. इसी यात्रा के दौरान पटनासाहिब में सिख धर्म के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म 22 दिसम्बर 1666 को हुआ था.

    ये एक अच्छे शिक्षक होने के साथ ही योद्धा, कवि व विचारक भी थे. सिख धर्म के पवित्र ग्रन्थ, ‘गुरु ग्रन्थ साहिब’ में इनके शिक्षाओं को 116 काव्यों के रूप में संग्रहित किया गया है. इन्होंने आनंदपुर साहिब का भी स्थापना किया था, जहाँ 1699 में सिख धर्म के दसवें गुरु गोविंद सिंह ने सिख धर्म के महत्वपूर्ण संस्था खालसा पंथ की स्थापना की. यह अंतरात्मा और धर्म की स्वतंत्रता का पंथ है, जिसे इस्लाम द्वारा सिख धर्म पर हो रहे जुल्म के खिलाफ स्थापित किया गया था.

    कश्मीरी पंडितों के आग्रह पर शहादत

    औरंगजेब इस्लाम से इतर धर्मावलम्बियों को बलात इस्लाम स्वीकार करवा रहा था. इससे सिख भी प्रभावित थे. इसलिए गुरु तेजबहादुर मुगलों के इस निति का विरोधी थे. कुछ समय बाद, धर्म परिवर्तन के दवाब से परेशान होकर कश्मीरी पंडित इनसे मदद मांगने आए. फिर इन्होंने, कश्मीरी पंडितों से कहा कि औरंगजेब से कहो कि वो यदि गुरु तेगबहादुर को इस्लाम कबूल करवा ले तो सभी कश्मीरी पंडित भी इस्लाम स्वीकार लेंगे. इस तरह 1675 में गुरु तेगबहादुर दिल्ली में औरंगजेब के सामने प्रस्तुत हुए, जहाँ औरंगजेब ने इनसे इस्लाम स्वीकारने को कहा.

    मना करने पर 11 नवम्बर, 1675 को औरंगजेब ने चांदनी चौक पर खुले में सबके सामने उनका सिर कटवा दिया. इससे पहले तेगबहादुर जी को लालच और यातना देकर इस्लाम कबूल करवाने की कोशिश की गई थी. नहीं मानने पर इनके दो मुख्य शिष्यों को इनके सामने ही मार डाला गया. इस स्थान पर अब गुरुद्वारा शीश गंज साहिब स्थित है. गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब में इनका अन्तिम संस्कार किया गया था.

    ऐसा कहा जाता है कि अगर गुरु अर्जन की शहादत ने सिख पन्थ को एक साथ लाने में मदद की थी, तो गुरु तेग बहादुर की शहादत ने मानवाधिकारों की सुरक्षा को सिख पहचान बनाने में मदद की.

    गुरु गोबिंद सिंह जी: योद्धा कवि और दसवें गुरु

    दसवें और अंतिम गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी (Sri Guru Govind Singh Ji) ने सिख समुदाय को खालसा, एक समर्पित और अनुशासित व्यवस्था में बदल दिया. उन्होंने अपने अनुयायियों में निडरता और बहादुरी की भावना पैदा की. गुरु गोबिंद सिंह जी की काव्य रचनाएँ, जैसे ‘दसम ग्रंथ’, दुनिया भर में सिखों को प्रेरित करती रहती हैं.

    गुरु गोबिंद सिंह जी नौवें सिख धर्मगुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी और माता गुजरी के सुपुत्र थे. इनकी तीन पत्नियाँ थीं. इनका पहला विवाह माता जीतो के साथ हुआ था. उन दोनों के 3 पुत्र हुए जिनके नाम थे – जुझार सिंह, जोरावर सिंह, फ़तेह सिंह. दूसरा विवाह माता सुन्दरी के साथ हुआ. इनका एक बेटा अजित सिंह था. उन्होंने तीसरी विवास माता साहिब देवन से किया था. ये निःसंतान रही, पर सिख पन्थ के पन्नों पर उनका दौर भी बहुत प्रभावशाली रहा.

    दिसंबर 1704 में आनंदपुर साहिब किले को मुगलों ने नाहर खान के नेतृत्व में घेर लिया. तय शर्त के अनुसार, तेग बहादुर अपने अनुयायियों व कुटुंब के साथ आनंदपुर दुर्ग छोड़कर जा रहे थे. लेकिन सरहिंद के सूबेदार वजीर खान के नेतृत्व में मुगल सेना के एक विशाल दस्ते ने सरसा नदी पार करते हुए इस काफिले पर हमला कर दिया. इस लड़ाई में 40 सिखों ने अपने शहादत से मुगलों को रोक दिया.

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    अपने पिता के हत्या का बदला लेने के लिए इन्होंने कई प्रायः किए. इन्होने खालसा योद्धा समूह के अलावा नया संस्कार “पाहुल” (Pahul) की भी स्थापना की. इन्होंने पांच ककारों का – केश, कंघा, कड़ा, किरपान, कच्चेरा – का महत्व समझाते हुए खालसा को इसका पालन करने को कहा. खालसा का अर्थ ‘शुद्ध’ होता है.

    27 दिसम्बर सन्‌ 1704 को दोनों छोटे साहिबजादे और जोरावर सिंह व फतेह सिंहजी को मुग़ल गवर्नर वजीर खां के आदेश दीवारों में ज़िंदा चुनवा दिया गया. फिर, 8 मई सन्‌ 1705 में ‘मुक्तसर’ नामक स्थान पर सिखों व मुगलों में भीषण युद्ध हुआ, जिसमें सिखों की जीत हुई. इसके कुछ समय बाद ही औरंगजेब की मृत्यु हो गई.

    सिख धर्म में कई प्रकार के कुरीतियां और विसंगति आ रही थी. इसे रोकने के लिए एकरूपता जरूरी था. इसी कारण गुरु गोबिंद सिंह ने खुद को आखिरी इंसानी गुरु घोषित किया और सिखों से अपने बाद गुरु अर्जुन देव जी द्वारा रचित ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ को गुरु मानने को कहा. इसके लिए उन्होंने गुरु ग्रन्थ साहिब को अंतिम रूप दिया.

    इसके अलावा, जापु साहिब या जाप साहिब, अकाल स्तुति, बचित्तर नाटक या बिचित्तर नाटक, चंडी चरित्र चंडी दी वार, ज्ञान परबोध, चौबीस अवतार, ब्रह्मा अवतार, रूद्र अवतार और शस्त्र माला इनके अन्य रचनाएं है. जापू साहिब इनमें सबसे अधिक प्रसिद्ध है और सिख धर्म में प्रातः स्तुति के रूप में गाया जाता है.

    औरंगजेब की मृत्यु के बाद आपने बहादुरशाह जफर को दिल्ली का बादशाह बनाने में मदद की. इससे दोनों के सम्बन्ध मधुर हुए, जिसे सरहिंद के नवाब वजीत खाँ ने खुद के लिए खतरा माना. इसलिए उसने दो पठान को इनके ह्त्या के लिए भेजा. नांदेड साहिब में मौका पाकर इन पठानों ने 7 अक्टूबर 1708 को गुरु गोबिन्द सिंह जी पर धोखे से घातक वार किया, जिससे इनका देहांत हो गया.

    क्या है सिख धर्म? (What is Sikhism in Hindi)

    सिख धर्म (Sikhism) सबसे नए धार्मिक विश्वासों में से एक है, जिसे पुरे दुनिया में 25 से 30 मिलियन लोग मानते है. इनमें अधिकांश भारत खासकर पंजाब में बसे है. देश के अलग-अलग हिस्सों में भी इनकी आबादी विरल रूप से फैली है. गुरु नानक के शिक्षा (Teachings of Guru Nanak in Hindi)- “सच्चाई; निष्ठा; आत्म-नियंत्रण और पवित्रता” का “सक्रिय, रचनात्मक और व्यावहारिक जीवन” जीना; और आध्यात्मिक सत्य से ऊपर है- के सिद्धांतों पर आधारित है. सिख अपने सभी पूर्व 10 इंसानी गुरु और गुरु ग्रन्थ साहिब का पालन करते है.

    इसके साथ ही, सिख धर्म में माना जाता है (Faith of Sikhism in Hindi) कि आदर्श व्यक्ति “ईश्वर के साथ मिलन स्थापित करता है, उसकी इच्छा जानता है और उसे पूरा करता है. सभी मानव जाति की दिव्य एकता और समानता, सेवा में संलग्न होना, सभी के लाभ और समृद्धि के लिए न्याय के लिए प्रयास करना और एक गृहस्थ जीवन जीते हुए ईमानदार आचरण और आजीविका इत्यादि मानक का पालन करना ही सिख धर्म है.

    पंजाबी शब्द सिख का अर्थ ‘शिष्य’ होता है. सभी सिख मानते है कि सभी 10 गुरुओं में एक ही आत्मा का वास था और ये इनके सच्चे गुरु है व ये आत्मा अब गुरु ग्रन्थ साहिब में समाहित है. सिख अपने पंथ को गुरुमत (गुरु का मार्ग- The Way of the Guru) कहते हैं. आज के समय में श्री गुरु ग्रन्थ साहिब ही सिखों का मार्गदर्शक और गुरु है. वे अपने धर्म में जीवित गुरुओं के भांति इसे सर्वोच्च स्थान देते है.

    सिख धर्म का उदय भक्तिकाल के दौरान वैष्णव और हिन्दू धर्म के कुरीतियों के खिलाफ हुआ था. इसी दौर में कबीररैदास जैसे समतामूलक समाजसुधारक भी पैदा हुए थे. इनका स्पष्ट प्रभाव सिख धर्म पर दिखता है. सिख धर्म ने आडम्बर और भेदभाव के जगह समतामूलक सिद्धांतों को चुना. इसलिए यह आध्यात्मिक व लौकिक (सांसारिक) दुनिया के बीच संतुलन बनांते हुए सदाचारी एवं सत्यनिष्ठ जीवन जीने का शिक्षा देता है. सिख धर्म में उपवास, तीर्थ यात्रा, अंधविश्वासों का पालन, मृतकों की पूजा या मूर्ति पूजा जैसे आडम्बर और अंधविश्वास का पूर्ण निषेध है.

    सिक्खो के चार अनुष्ठान (Four Rituals of Sikhs in Hindi)

    “सिख रहत मर्यादा” में सिक्खो के लिए चार अनुष्ठान का वर्णन है, जिसे सिक्खो का चार संस्कार कहा जाता है. ये है-

    1. जन्म और गुरूद्वारे में नामकरण संस्कार.
    2. आनंद करज या आनंदमय मिलन, यह विवाह संस्कार है. यह अक्सर गुरूद्वारे में संपन्न होती है.
    3. खालसा में जुड़ने से पहले किया जाने वाला संस्कार, अमृत संस्कार कहलाता है.
    4. आखिरी संस्कार मृत्यु के बाद होने वाला अंतिम संस्कार है. इस दौरान मृतक को नहलाने के बाद मृतक से जुड़े सिख धर्म के पांच चिन्ह, कंघा, कटार, कड़ा, कृपाण और केश संवारा जाता है. फिर वाहेगुरु का जाप करते हुए शव को श्मशान ले जाते है, जहाँ परिजनों में से एक मुखाग्नि देते है.

    सिख धर्म के पांच महत्वपूर्ण कालचक्र

    सिख धर्म में इतिहास के पांच घटनाक्रम (5 Historical Events) को इसके वर्तमान आकार का कारण माना जाता है. ये है-

    1. गुरु नानक देव जी का उपदेश, उन्होंने सतनाम पर ध्यान से मुक्ति का संदेश दिया.
    2. गुरु हरगोबिंद जी द्वारा सिखों सशस्त्रीकरण.
    3. गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा खालसा पंथ की स्थापना.
    4. गुरु गोविन्द सिंह जी की मृत्यु पर आत्मा-स्वरूपी रहस्यमयी गुरुओं का अपने 10 मानवीय रूपों से गुरु ग्रंथ साहिब में समाहित होना.
    5. 20वीं शताब्दी के आरंभ में ‘तत खालसा’ के नेतृत्व में सिख धर्म में गहन सुधार.

    सिख धर्म के महत्वपूर्ण गुरुद्वारे (Important Gurudwaras of Sikhism)

    सिख समुदाय पाँच गुरुद्वारों को काफी महत्वपूर्ण मानते है, इसे पंच तख्त के नाम से जानते है. इनका सिख धर्म के आस्था के विशेष महत्व है.

    1. अकाल तख्त साहिब का अर्थ है “शाश्वत सिंहासन” (Eternal Throne). यह अमृतसर में स्थित स्वर्ण मंदिर परिसर का एक हिस्सा है. इसकी नींव छठे सिख गुरु, गुरु हरगोबिंद जी द्वारा रखी गई थी.
    2. तख्त श्री केशगढ़ साहिब, आनंदपुर साहिब, पंजाब में स्थित है. यह खालसा का जन्मस्थल है.
    3. तख्त श्री दमदमा साहिब, भटिंडा के पास तलवंडी साबो ग्राम में स्थित है. गुरु गोबिंद सिंह जी लगभग एक वर्ष तक यहाँ रुके थे और उन्होंने वर्ष 1705 में गुरु ग्रंथ साहिब के आखिरी संस्करण को संकलित किया था, जिसे ‘दमदमा साहिब बीर’ के नाम से भी जाना जाता है.
    4. तख्त श्री पटना साहिब, बिहार की राजधानी पटना में स्थित है. गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म वर्ष 1666 में यहीं हुआ था और उन्होंने आनंदपुर साहिब के जाने से पहले अपना बचपन यहाँ बिताया था.
    5. तख्त श्री हज़ूर साहिब, महाराष्ट्र के नांदेड़ में स्थित है. यहीं पर 1708 में गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपना शिविर लगाया था, जब दो पठानों ने उनपर धोखे से हमला कर दिया था. चाकू से हुए इस छलपूर्ण हमले में उन्होंने एक ही वार से दोनों पठानों को मार गिराया था. घायल रूप में उन्होंने कुछ वक्त इसी स्थान पर बिताया था.

    इसके अलावा गुरु नानक के जन्म और मृत्यु से जुड़े दो स्थल भी सिखों का तीर्थ है:

    • ननकाना साहिब (पाकिस्तान): गुरु नानक देव जी का जन्मस्थान है.
    • गुरुद्वारा दरबार साहिब (करतारपुर, पाकिस्तान): गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन के अंतिम 18 वर्ष इसी जगह बिताए थे.
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