गंगा का मैदान: भौगोलिक तथ्य, कृषि, जनजीवन व जलवायु

गंगा का मैदान भारत के उत्तर में स्थित विशाल मैदान का ही एक खंड हैं.  गंगा का मैदान दक्षिण एशिया का एक विशाल और महत्वपूर्ण भू-भाग है. भारत के सबसे महत्वपूर्ण और उपजाऊ भौगोलिक क्षेत्रों में से एक है. गंगा का मैदान मुख्य रूप से हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड (कुछ भाग) और पश्चिम बंगाल राज्यों में विस्तृत है.

यह मैदान गंगा और उसकी सहायक नदियों (जैसे यमुना, घाघरा, गंडक, कोसी, सोन आदि) द्वारा लाए गए जलोढ़ निक्षेपों (alluvial deposits) से बना है, जिसकी औसत गहराई 1000 से 2000 मीटर तक हो सकती है. अपनी अत्यधिक उपजाऊ मिट्टी और समतल भूभाग के कारण यह क्षेत्र भारत के सबसे घनी आबादी वाले क्षेत्रों में से एक है.

सीमाएं व आकार

गंगा का मैदान मुख्यतः घग्गर और तीस्ता नदियों के बीच फैला हुआ है. पश्चिम में यह दिल्ली-अंबाला रिज (Delhi-Ambala Ridge) और अरावली पर्वतमाला (Aravalli Range) द्वारा पंजाब-हरियाणा मैदान से अलग होता है. उत्तर में इसकी सीमा शिवालिक पहाड़ियों (Shivalik Hills) से सटी हुई है.

दक्षिण में यह प्रायद्वीपीय पठार (Peninsular Plateau) की उत्तरी सीमा तक फैला हुआ है, जिसमें बुंदेलखंड-विंध्य पठार (Bundelkhand-Vindhyan Plateau) और छोटानागपुर पठार (Chotanagpur Plateau) शामिल हैं. यह पूर्व में बांग्लादेश की सीमा और पूर्वांचल की पहाड़ियों (Purvanchal Hills) तक फैला हुआ है.

गंगा के मैदान की पूर्व से पश्चिम तक कुल लंबाई लगभग 1400 किलोमीटर है. यदि संपूर्ण सिंधु-गंगा-ब्रह्मपुत्र मैदान की बात करें, तो इसकी लंबाई लगभग 3200 किलोमीटर है, जिसमें से करीब 2400 किलोमीटर भारत में है. इसकी औसत चौड़ाई लगभग 300 किलोमीटर है. हालांकि, यह पश्चिम में अधिक चौड़ा (लगभग 450-200 किमी) और पूर्व की ओर संकरा (60-100 किमी) होता जाता है.

खासियत

गंगा का मैदान का जलोढ़ आवरण, जो कुछ स्थानों पर 6,000 फीट (1,800 मीटर) से अधिक मोटा है, संभवतः 10,000 साल से अधिक पुराना नहीं है. मिट्टी की उर्वरता का निरंतर नवीनीकरण इसकी कृषि उत्पादकता और सहस्राब्दियों से उच्च जनसंख्या को बनाए रखने की क्षमता का एक मूलभूत कारण है. ताजे तलछट का निरंतर प्रवाह मिट्टी के क्षरण को रोकने में मदद करता है.

गंगा के मैदानों को एक व्यापक बाढ़ के मैदान के रूप में वर्णित किया जाता है. इसकी समतलता के कारण जल निकासी की दर धीमी हो जाती हैं. साथ ही, मानसून से गंगा-के जलग्रहण इलाकों में ही सबसे अधिक वर्षा होती है. यह गंगा का मैदान में बाढ़ का मुख्य कारण है. 

यह वर्षा ढाल कृषि पद्धतियों, फसल विविधता और यहाँ तक कि जनसंख्या वितरण को भी गहराई से प्रभावित करता है, जिससे पश्चिमी भाग सिंचाई पर अधिक निर्भर और पूर्वी भाग बाढ़ के प्रति अधिक प्रवण हो जाते हैं. गंगा के मैदानों को मोटे तौर पर ऊपरी, मध्य और निचले गंगा के मैदानों में वर्गीकृत किया गया है, प्रत्येक की अपनी विशिष्ट भौगोलिक, कृषि और सांस्कृतिक विशेषताएँ हैं.

ऊपरी गंगा का मैदान

ऊपरी गंगा का मैदान भारतीय उपमहाद्वीप के कृषि विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यह गंगा, यमुना, घाघरा, गोमती, गंडक और सोन जैसी बारहमासी नदियों तथा उनकी कई सहायक नदियों द्वारा सिंचित है. 

ऊपरी गंगा का मैदान की भौगोलिक स्थिति

ऊपरी गंगा का मैदान गंगा नदी के ऊपरी जलोढ़ बेसिन में स्थित है. यह क्षेत्र कृषि के लिए अत्यधिक उपजाऊ है और भारत के सबसे घनी आबादी वाले क्षेत्रों में से एक है. इसके पश्चिम में यमुना नदी, उत्तर में हिमालय की तलहटी में स्थित शिवालिक पहाड़ी, और दक्षिण में यह प्रायद्वीपीय पठार की उत्तरी सीमा (जैसे मालवा और बुंदेलखंड के ऊपरी हिस्से) से घिरा है. यह पूर्व दिशा में मध्य गंगा के मैदान से मिलता है. इलाहाबाद (प्रयागराज) और फैजाबाद (अयोध्या) को जोड़ने वाली 100 मीटर की समोच्च रेखा इसकी पूर्वी सीमा का निर्धारण करती है.

यह मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश के पश्चिमी और मध्य भागों को कवर करता है, जिसमें हरियाणा, दिल्ली और उत्तराखंड के कुछ हिस्से भी शामिल हैं. ऊपरी गंगा का मैदान लगभग 263,100 वर्ग किलोमीटर के विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है. यह गंगा के मैदान का पश्चिमी और ऊपरी भाग है. अन्य हिस्से के तुलना में अपेक्षाकृत अधिक चौड़ा है. इसकी चौड़ाई 450 किमी से 200 किमी तक है. इसकी चौड़ाई पश्चिम में अधिक और पूर्व में संकरी होती जाती है. इसकी लंबाई लगभग 1000 किमी है.

मौसम व जलवायु 

भौगोलिक रूप से, ऊपरी गंगा का मैदान तुलनात्मक रूप से अधिक शुष्क है. यहाँ की जलवायु चरम सीमाओं के प्रति थोड़ी अधिक प्रवण है. यह जलोढ़-व्युत्पन्न मिट्टी के साथ एक गर्म उप-आर्द्र पारिस्थितिक क्षेत्र के रूप में वर्गीकृत है. इस क्षेत्र की जलवायु गर्म से गर्म ग्रीष्मकाल की विशेषता है, जहाँ मई और जून के दौरान तापमान 45°C तक पहुँच जाता है. 

इसके विपरीत सर्दियाँ अत्यधिक ठंडी होती हैं. कभी-कभी जनवरी में तापमान 5-7°C तक गिर जाता है. फरवरी तक पाला तथा ओलावृष्टि भी होती है, जिससे अक्सर फसलों को नुकसान होता है. जलवायु की यह चरम सीमा, पूर्वी मैदानों की तुलना में उच्च कृषि जोखिम का संकेत देती है. 

क्षेत्र में औसत वार्षिक वर्षा लगभग 1,000 मिमी होती है. 70% बारिश जुलाई से सितंबर तक ग्रीष्मकालीन मानसून अवधि के दौरान होती है. इस अवधि के दौरान वर्षा औसतन 500 मिमी होती है, जो फसलों के लिए 150 से 180 दिनों तक नमी की उपलब्धता को बढ़ाती है. मिट्टी काफी हद तक सजातीय जलोढ़ है, जो नदियों द्वारा लाए गए तलछट से बनी है.

भू-आकृति विज्ञान के संदर्भ में, ऊपरी गंगा का मैदान मध्य गंगा के मैदान की तुलना में भ्रंशों पर अधिक आवास स्थान प्रदान करता है. यह अवलोकन मैदान के आकारिकी और तलछट निक्षेपण पैटर्न को प्रभावित करने वाली अंतर्निहित विवर्तनिक गतिविधि का संकेत देता है. यह बताता है कि मैदान का निर्माण केवल नदीय प्रक्रियाओं से ही नहीं, बल्कि विवर्तनिक रूप से भी संचालित होता है, जिसके भूजल, भूकंपीयता और दीर्घकालिक भूमि स्थिरता के लिए निहितार्थ हो सकते हैं.

कृषि और आर्थिक गतिविधियाँ

ऊपरी गंगा का मैदान भारत में कृषि के विकास के लिए एक ऐतिहासिक केंद्र रहा है. नवपाषाण काल से ही यहाँ बहुत शुरुआती कृषि के प्रमाण मिलते हैं. इस क्षेत्र को कोल्डीहवा और महागारा में चावल के सबसे शुरुआती घरेलूकरण और हड़प्पा सभ्यता के माध्यम से गेहूं की शुरुआत का श्रेय दिया जाता है. इस क्षेत्र ने प्रमुख अनाज, दलहन, तिलहन और सब्जी फसलों की बड़ी मात्रा में आनुवंशिक विविधता विकसित की है. पशुधन भी फसल उत्पादन में एक प्रमुख इनपुट रहा है.

वर्तमान में, इस क्षेत्र में मुख्य रूप से गेहूं की खेती की जाती है, जिसे आमतौर पर नवंबर के शुरुआती सर्दियों के महीने में बोया जाता है. अन्य प्रमुख फसलों में चावल, गन्ना, मक्का, बाजरा और जूट शामिल हैं. यह क्षेत्र अपनी उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी के कारण एक “कृषि स्वर्ग” के रूप में जाना जाता है.

रुहेलखंड का मैदान

यह ऊपरी गंगा के मैदान का एक अभिन्न अंग है. यह ऊपरी गंगा के मैदान का पश्चिमी भाग है. यह बरेली और मुरादाबाद डिवीजनों में केंद्रित है. भौगोलिक रूप से, यह अवध के मैदान और गंगा नदी के बीच स्थित एक निम्न-भूमि वाला जलोढ़ क्षेत्र है. इस क्षेत्र को ऐतिहासिक रूप से मध्यदेश और पांचाल के नाम से जाना जाता था. ऐसा संस्कृत महाकाव्य ‘महाभारत और रामायण’ में वर्णित है. इसका नाम रोहिल्ला जनजाति (रुहेला पठान) के नाम पर पड़ा है. ये पठान हाइलैंडर्स थे और इस क्षेत्र में प्रमुख थे. 

रुहेलखंड का भूगोल व अवस्थिति

यह उत्तरी उत्तर प्रदेश के उत्तर-पश्चिमी भाग में स्थित है, जिसमें बरेली और मुरादाबाद मंडल प्रमुख हैं. इसमें अमरोहा, बरेली, बिजनौर, बदायूं, पीलीभीत, रामपुर, और शाहजहांपुर जैसे शहर शामिल हैं. यह दक्षिण और पश्चिम में गंगा नदी द्वारा घिरा है. इसके उत्तरी सीमा उत्तराखंड और नेपाल से लगती है. इसके पूर्व में अवध क्षेत्र स्थित है. रुहेलखंड का मैदान लगभग 25,000 वर्ग किलोमीटर (लगभग 10,000 वर्ग मील) क्षेत्र में फैला हुआ है.

रुहेलखंड ऊपरी गंगा के मैदान का ही हिस्सा है. यह लगभग 300 किमी लंबा और 100 किमी चौड़ा हो सकता है, लेकिन यह अनुमानित है क्योंकि यह एक उप-क्षेत्र है.

अवध का मैदान

अवध उत्तरी भारत का एक ऐतिहासिक क्षेत्र है. यह उत्तर प्रदेश राज्य के उत्तर-पूर्वी हिस्सा है. यह भारत-गंगा के मैदान के घनी आबादी वाले हृदय में स्थित है. इस क्षेत्र का नाम अयोध्या से मिला है, जो प्राचीन कोसल साम्राज्य की राजधानी थी. कोसल का विस्तार लगभग वर्तमान अवध के बराबर था. यह गंगा-जमुनी तहज़ीब के लिए भी जाना जाता है. यह क्षेत्र की ऐतिहासिक समृद्धि और विविध शासकों के प्रभाव का प्रत्यक्ष परिणाम है.

इसके उत्तर में नेपाल और हिमालय की तलहटी, दक्षिण में प्रायद्वीपीय पठार और पूर्व में मध्य गंगा के मैदान (पूर्वांचल) स्थित हैं.  यह वर्तमान उत्तर प्रदेश के मध्य भाग में स्थित है, जिसमें लखनऊ, अयोध्या (पूर्व में फैजाबाद), प्रयागराज (कुछ भाग), कानपुर (कुछ भाग), हरदोई, सीतापुर, अमेठी, सुल्तानपुर आदि जिले शामिल हैं.

अवध क्षेत्र का कुल क्षेत्रफल लगभग 68,006 वर्ग किलोमीटर (26,257 वर्ग मील) है. अवध का मैदान भी ऊपरी गंगा के मैदान का ही एक भाग है. इसकी लंबाई-चौड़ाई रुहेलखंड की तरह अलग से स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं है. लेकिन यह लगभग 300 किमी लंबा और 150-200 किमी चौड़ा अनुमानित किया जा सकता है.

गंगा का मैदान: भौगोलिक तथ्य, कृषि, जनजीवन व जलवायु

मध्य गंगा का मैदान

मध्य गंगा का मैदान ऊपरी और निचले गंगा के मैदानों के बीच एक संक्रमणकालीन क्षेत्र के रूप में कार्य करता है. इस क्षेत्र की विशेषता गंगा नदी प्रणाली द्वारा जमा किए गए मोटे जलोढ़ आवरण है. यह आवरण कुछ स्थानों पर 6,000 फीट (1,800 मीटर) से अधिक मोटा हो सकता है. मैदान की समतलता के कारण नदी के प्रवाह की दर धीमी है, जिससे यह बाढ़ के प्रति अत्यधिक प्रवण हो जाता है.

मध्य गंगा का मैदान, ऊपरी गंगा के मैदान और निचले गंगा के मैदान के बीच स्थित है. यह क्षेत्र गंगा और उसकी सहायक नदियों द्वारा लाए गए जलोढ़ निक्षेपों से बना है. यह मुख्यतः पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार राज्य का क्षेत्र है. मध्य गंगा का मैदान लगभग 1,54,382 वर्ग किलोमीटर (1.54 लाख वर्ग किमी) के क्षेत्र में फैला हुआ है.

यह पूर्व से पश्चिम में लगभग 600 किलोमीटर लंबा हैं. वहीं, उत्तर से दक्षिण में लगभग 320 किलोमीटर चौड़ा हैं.

सीमाएं

  • पश्चिम में: यह ऊपरी गंगा के मैदान से मिलता है, जिसकी पश्चिमी सीमा मोटे तौर पर इलाहाबाद (प्रयागराज) और फैजाबाद (अयोध्या) को जोड़ने वाली 100 मीटर की समोच्च रेखा द्वारा निर्धारित की जाती है.
  • उत्तर में: इसकी सीमा हिमालय की तलहटी में स्थित शिवालिक पहाड़ियों और नेपाल से लगती है.
  • दक्षिण में: यह प्रायद्वीपीय पठार के उत्तरी किनारे (जैसे विंध्याचल और छोटानागपुर पठार) से घिरा है.
  • पूर्व में: यह निचले गंगा के मैदान से मिलता है, जो पश्चिम बंगाल में प्रवेश करता है.

जलवायु और मौसम 

मध्य गंगा का मैदान ऊपरी गंगा के मैदान की तुलना में अधिक नमी प्राप्त करता है. औसत वार्षिक वर्षा बिहार के मध्य गंगा के मैदान में 40 से 60 इंच (1,020 से 1,520 मिमी) तक होती है. यह पूर्वी पहुंच में अधिक नमी की ओर क्रमिक प्रवृत्ति को दर्शाता है, जबकि पश्चिमी भाग में शुष्क परिस्थितियाँ होती हैं. पानी की आपूर्ति जुलाई से अक्टूबर तक दक्षिण-पश्चिमी मानसून हवाओं द्वारा लाई गई बारिश के साथ-साथ अप्रैल से जून तक गर्म मौसम में हिमालयी बर्फ के पिघलने से होती है.

जैव विविधता और कृषि 

ऐतिहासिक रूप से, गंगा-यमुना क्षेत्र कभी घने जंगलों से आच्छादित था. 16वीं और 17वीं शताब्दी के ऐतिहासिक लेखों से संकेत मिलता है कि वहाँ जंगली हाथी, भैंस, बाइसन, गैंडे, शेर और बाघों का शिकार किया जाता था. हालांकि, बढ़ती जनसंख्या की जरूरतों को पूरा करने के लिए भूमि की गहन खेती के कारण अधिकांश मूल प्राकृतिक वनस्पति गायब हो गई है. अब बड़े जंगली जानवर कम ही मिलते हैं, सिवाय हिरण, सूअर, जंगली बिल्लियाँ और कुछ भेड़िये, सियार और लोमड़ी के. यह मानव बस्तियों के विस्तार और कृषि के लिए भूमि रूपांतरण के प्रत्यक्ष परिणाम को दर्शाता है.

मध्य गंगा के मैदान में गंगा नदी लगभग 20 मीटर लेट क्वाटरनरी तलछटों का कटाव दिखाती है, जो एक विशाल अपलैंड वेदिका (T2) का निर्माण करती है. कटी हुई गंगा नदी घाटी में दो वेदिकाएँ दिखाई देती हैं: नदी घाटी (वेदिका-T1) और वर्तमान बाढ़ का मैदान (वेदिका-T0). घाघरा नदी, गंगा नदी की सबसे लंबी सहायक नदियों में से एक है. यह चैनल शिफ्टिंग/प्रवासन के लिए जानी जाती है. इसने पिछले 45 वर्षों (1975-2020) में बहराइच और देवरिया के बीच 4.2 से 6.1 किमी का पार्श्व प्रवासन दिखाया है. भारी वर्षा, अन्य चैनलों का पुनर्सक्रियन, तलछट का निक्षेपण और तटबंधों का टूटना जैसे कारक नदी के पार्श्व प्रवासन के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं.

पूर्वी उत्तर प्रदेश का मैदान

इस हिस्से में स्थित गंगा का मैदान उत्तर प्रदेश राज्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. यह भारत के उत्तर-मध्य भाग में स्थित है.  भौगोलिक रूप से, राज्य का अधिकांश भाग समतल, निम्न-भूमि वाला मैदान है जो चावल की खेती के लिए उपयुक्त है. यह मैदान जलोढ़ और बहुत ही उपजाऊ है. यह गंगा के मैदान के पूर्वी हिस्से में आता है. यह आवधिक बाढ़ और सूखे के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है. इन जिलों में जनसंख्या घनत्व सबसे अधिक है, जिसके परिणामस्वरूप प्रति व्यक्ति भूमि सबसे कम है. 

यह मध्य गंगा के मैदान का पश्चिमी भाग है. इसके पश्चिम में ऊपरी गंगा का मैदान (अवध का मैदान), उत्तर में नेपाल और हिमालय की तलहटी, दक्षिण में प्रायद्वीपीय पठार (मुख्यतः विंध्य पर्वतमाला) और पूर्व में बिहार का मैदान स्थित है. इसमें उत्तर प्रदेश के पूर्वी जिले जैसे वाराणसी, गोरखपुर, जौनपुर, गाजीपुर, बलिया, देवरिया, आज़मगढ़, मऊ, बस्ती, सिद्धार्थनगर, कुशीनगर, महाराजगंज आदि शामिल हैं.

पूर्वी उत्तर प्रदेश का मैदान लगभग 1.43 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. इसकी लंबाई लगभग 600 किलोमीटर (पूर्व-पश्चिम) और चौड़ाई लगभग 150-200 किलोमीटर (उत्तर-दक्षिण) है.

जलवायु व कृषि 

कृषि इस क्षेत्र की रीढ़ है. मुख्य रूप से उगाई जाने वाली फसलें चावल, गेहूं, बाजरा, चना और जौ हैं. गन्ना क्षेत्र की मुख्य नकदी फसल है. हालांकि, पूर्वी जिलों में भारी वर्षा, निम्न समतल भूमि, उच्च उप-मिट्टी जल स्तर और नदी तलछट के कारण बाढ़ एक समस्या है. इनसे फसलें, जीवन और संपत्ति को नुकसान होता है. 1971 में सबसे खराब बाढ़ आई थी, तब इस राज्य के 54 में से 51 जिले प्रभावित हुए थे. इससे लगभग 52,000 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र प्रभावित हुआ था.

यहाँ की अर्थव्यवस्था में अब सेवा उद्योग का प्रभुत्व है. इसमें यात्रा और पर्यटन, होटल उद्योग, रियल एस्टेट, बीमा और वित्तीय परामर्श शामिल हैं. ऐतिहासिक रूप से यह क्षेत्र चीनी उत्पादन के लिए जाना जाता है.

बिहार का मैदान

बिहार का मैदान को भारत-गंगा का मैदान भी कहा जाता है. यह क्षेत्र अपनी समृद्ध जलोढ़ मिट्टी की विशेषता है, जो अत्यधिक उपजाऊ है और विविध कृषि का समर्थन करती है. बिहार गंगा नदी के बेसिन के नदी मैदानों में स्थित है. इसलीए इसकी भूमि में उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी और भूजल संसाधन अत्यधिक मात्रा में हैं. यह बिहार की कृषि को समृद्ध और विविध बनाते हैं.

यह मध्य गंगा के मैदान का पूर्वी भाग है और गंगा नदी द्वारा दो मुख्य भागों (उत्तरी बिहार का मैदान और दक्षिणी बिहार का मैदान) में विभाजित है.

यह पश्चिम में पूर्वी उत्तर प्रदेश के मैदान से मिलता है. इसके उत्तर में नेपाल की सीमा और हिमालय की तलहटी है. दक्षिण में छोटानागपुर पठार और प्रायद्वीपीय पठार की उत्तरी सीमा है. इसके पूर्व में पश्चिम बंगाल के निचले गंगा के मैदान है.

इसमें लगभग पूरा बिहार राज्य शामिल है. बिहार का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल लगभग 94,163 वर्ग किलोमीटर है. इसमें से उत्तरी बिहार का मैदान लगभग 53,300 वर्ग किमी और दक्षिणी बिहार का मैदान लगभग 40,900 वर्ग किमी है. यह पूर्व से पश्चिम लगभग 483 किलोमीटर लंबा है. उत्तर से दक्षिण में लगभग 345 किलोमीटर चौड़ा हैं.

कृषि

बिहार में शुद्ध बोया गया क्षेत्र इसके भौगोलिक क्षेत्र का 60% है. यह अखिल भारतीय औसत 42% से काफी अधिक है. खेती योग्य भूमि का इतना अधिक प्रतिशत दो कारणों से संभव है: पहला, बिहार का अधिकांश भाग कृषि के लिए उपयुक्त एक मैदानी क्षेत्र है; दूसरा, पिछले 2,000 वर्षों के दौरान अधिकांश वन भूमि को कृषि भूमि में बदल दिया गया है. वर्तमान में, वन के अधीन भूमि क्षेत्र का केवल 6% है.

चावल, गेहूं और मक्का प्रमुख अनाज फसलें हैं. अरहर, उड़द, मूंग, चना, मटर, मसूर और खेसारी कुछ दालें हैं जिनकी खेती बिहार में की जाती है. बिहार सब्जियों का चौथा सबसे बड़ा उत्पादक है, जिसमें आलू, प्याज, बैंगन और फूलगोभी का प्रभुत्व है. यह लीची का सबसे बड़ा उत्पादक और अनानास का चौथा सबसे बड़ा उत्पादक है. साथ ही आम, केला और अमरूद का भी एक प्रमुख उत्पादक है. गन्ना और जूट बिहार की दो अन्य प्रमुख नकदी फसलें हैं.

बाढ़ की समस्या 

उत्तरी बिहार अपने बाढ़ और सूखे से प्रवण भूगोल से बाधित है, जबकि दक्षिणी बिहार एक उत्पादक कृषि केंद्र है. दक्षिण में, फसलों की खेती के लिए अहर-पाइन प्रणाली का लंबे समय से उपयोग किया जाता रहा है. मक्का की खेती भी की जाती है, जिसका औसत वार्षिक उत्पादन लगभग 4-4.5 मिलियन टन है. दालें, जैसे मूंग, अरहर, मटर और खेसारी, उत्तरी बिहार की तुलना में दक्षिणी बिहार में अधिक उगाई जाती हैं.

बिहार के मैदानों का विभाजन

गंगा के मैदानों का विभिन्न भाग और वर्गीकरण नक्शा हिन्दी में

बिहार के मैदान को कई उप-विभाजनों में बांटा गया है, प्रत्येक की अपनी विशिष्ट विशेषताएँ हैं. शाहबाद मैदान, दक्षिण बिहार के मैदान के सबसे पश्चिमी भाग में स्थित एक व्यापक निम्न-भूमि वाला मैदान है, जो गंगा नदी, सोन नदी, कैमूर पठार और कर्मनाशा नदी से घिरा है.यह गंगा नदी और उसकी सहायक नदियों द्वारा लाए गए जलोढ़ मिट्टी के निक्षेपण से बना है. इसकी समतल स्थलाकृति और उपजाऊ मिट्टी कृषि के लिए उपयुक्त है.

बिहार के मैदान को आगे कई उप-क्षेत्रों में बांटा गया है, जिनमें सारण, मगध, और मिथिला के मैदान प्रमुख हैं. इसी क्षेत्र के पास अंग और कोसी का मैदान भी स्थित हैं. 

सारण का मैदान

सारण का मैदान उत्तरी बिहार के मैदान का एक हिस्सा है. यह बिहार के उत्तर-पश्चिमी भाग में गंगा और घाघरा नदियों के संगम के पास स्थित है. इसमें मुख्य रूप से सारण (छपरा), सीवान, गोपालगंज जैसे जिले शामिल हैं. सारण जिले का कुल क्षेत्रफल लगभग 2,641 वर्ग किलोमीटर है. मैदान का सटीक क्षेत्रफल इसमें स्थित जिले के क्षेत्रफल के अनुरूप ही होगा.

सारण जिला बिहार राज्य के उत्तरी भाग में स्थित है. इसका मुख्यालय छपरा में है. गंगा नदी जिले की दक्षिणी सीमा बनाती है, जिसके पार भोजपुर और पटना जिले स्थित हैं. सारण के उत्तर में सीवान और गोपालगंज जिले हैं, जबकि गंडक नदी पूर्व में वैशाली और मुजफ्फरपुर जिले के साथ विभाजन रेखा बनाती है . पश्चिम में सीवान जिला और उत्तर प्रदेश का बलिया जिला स्थित है, जिसमें घाघरा सारण और बलिया के बीच एक प्राकृतिक सीमा बनाती है.

यह जिला पूरी तरह से मैदानों से बना है, लेकिन इसमें कुछ अवसाद और दलदल भी हैं, जो तीन व्यापक प्राकृतिक विभाजनों का कारण बनते हैं:

  • बड़ी नदियों के किनारे के जलोढ़ मैदान, जो आवधिक बाढ़ के अधीन हैं और बाढ़ के प्रति प्रवण हैं.
  • नदियों से दूर के ऊँचे क्षेत्र जो बाढ़ के अधीन नहीं हैं.
  • बड़ी नदियों के तल में दियारा क्षेत्र.
मगध का मैदान

मगध का मैदान दक्षिणी बिहार के मैदान का एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक क्षेत्र है. यह बिहार के दक्षिणी भाग में गंगा नदी के दक्षिण में स्थित है. इसमें गया, औरंगाबाद, जहानाबाद, नालंदा, नवादा, और पटना (कुछ भाग) जैसे जिले शामिल हैं. मगध के मैदान का कुल क्षेत्रफल लगभग 50,000 वर्ग किलोमीटर है.

मगध प्राचीन भारत का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र और साम्राज्य था, जो पूर्वी गंगा के मैदान में स्थित था. यह द्वितीय शहरीकरण काल के दौरान सोलह महाजनपदों में से एक था. मगध साम्राज्य का क्षेत्र, अपने विस्तार से पहले, क्रमशः उत्तर, पश्चिम और पूर्व में गंगा, सोन और चंपा नदियों से घिरा था. विंध्य पर्वत की पूर्वी शाखाएँ इसकी दक्षिणी सीमा बनाती थीं. प्रारंभिक मगध साम्राज्य का क्षेत्र इस प्रकार आधुनिक पटना और गया जिलों के अनुरूप था. 

मिथिला का मैदान

मिथिला को तिरहुत या मिथिलांचल के नाम से भी जाना जाता है. यह भारत और नेपाल के कुछ हिस्सों में फैला हुआ है. भौगोलिक रूप से, मिथिला मुख्य रूप से भारत के उत्तरी मैदानों और नेपाल के दक्षिणी मैदानों में स्थित है. यह पूर्व में महानंदा नदी, दक्षिण में गंगा, पश्चिम में गंडक नदी और उत्तर में हिमालय की तलहटी से घिरा है. यह बिहार और झारखंड राज्यों के कुछ हिस्सों के साथ-साथ नेपाल के तराई क्षेत्र के कुछ क्षेत्रों को भी समाहित करता है. 

मिथिला एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र है जिसमें नदियाँ और पहाड़ियाँ जैसी प्राकृतिक सीमाएँ हैं. यह काफी हद तक एक समतल और उपजाऊ जलोढ़ मैदान है जो हिमालय से निकलने वाली कई नदियों द्वारा कटा हुआ है. गंडक, कोसी, महानंदा, बागमती, कमला, बालन और बूढ़ी गंडक सहित सात प्रमुख नदियाँ मिथिला से होकर बहती हैं, जो उत्तर में हिमालय से दक्षिण में गंगा नदी तक बहती हैं.

मिथिला का मैदान बिहार के उत्तर-पूर्वी भाग में स्थित है, जिसमें दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर, सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, अररिया, किशनगंज, पूर्णिया के कुछ भाग और नेपाल के कुछ तराई क्षेत्र शामिल हैं. यह कोसी नदी और गंडक नदी के बीच फैला हुआ है. यह एक बड़ा सांस्कृतिक क्षेत्र है, जिसका कोई निश्चित प्रशासनिक क्षेत्रफल नहीं है. प्राचीन ग्रंथों के अनुसार इसका विस्तार पूर्व में कोसी से पश्चिम में गंडकी तक लगभग 24 योजन और दक्षिण में गंगा से उत्तर में हिमालय वन (तराई प्रदेश) तक 16 योजन बताया गया है. 1 योजन लगभग 12-15 किलोमीटर होता है, तो इसके आधार पर एक अनुमानित क्षेत्रफल निकाला जा सकता है.

इसकी लंबाई पूर्व से पश्चिम की तरफ, कोसी से गंडक तक लगभग 288-360 किलोमीटर (24 योजन) है. वहीं, चौड़ाई (उत्तर से दक्षिण की तरफ) गंगा से हिमालय (तराई) तक लगभग 192-240 किलोमीटर (16 योजन) हैं. 

कृषि व जनवीजन 

समतल मैदानों और उपजाऊ भूमि के कारण मिथिला में जैविक संसाधनों की समृद्ध विविधता है. हालांकि, लगातार बाढ़ के कारण लोग इन संसाधनों का पूरा लाभ नहीं उठा पाए हैं. नियमित बाढ़ से कृषि भूमि पर गाद जमा हो जाती है. यह जनहानि और कठिनाई का कारण भी बनता हैं.

मिथिला अपनी अनूठी संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है. इसमें जीवंत कला रूप, जटिल मधुबनी पेंटिंग, समृद्ध लोककथाएँ और शास्त्रीय संगीत और नृत्य की विशिष्ट शैली शामिल है. मिथिला में बोली जाने वाली प्राथमिक भाषा मैथिली है. इसकी अपनी लिपि और साहित्य है. यह एक इंडो-आर्यन भाषा है. 

मिथिला हिंदू पौराणिक कथाओं का भी हिस्सा हैं.  रामायण की कई महत्वपूर्ण घटनाएँ, जैसे भगवान राम और सीता का विवाह, इसी क्षेत्र में हुई मानी जाती हैं. मिथिला की लोककथाएँ और किंवदंतियाँ पीढ़ियों से चली आ रही हैं. यह क्षेत्र की सांस्कृतिक ताने-बाने को समृद्ध करती हैं. मिथिला विभिन्न हिंदू त्योहारों को बड़े उत्साह के साथ मनाता है, जिसमें दिवाली, होली, छठ पूजा और अन्य शामिल हैं. छठ पूजा सूर्य देव की पूजा के लिए समर्पित एक प्रमुख त्योहार है.

यह इलाका विभिन्न राजवंशों और साम्राज्यों द्वारा शासित रहा है, जिसमें मौर्य, गुप्त और मल्ल शामिल हैं. यह जैन धर्म के सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में से एक भी है. इन तीर्थों का संबंध महावीर, मल्लिनाथ और नमिनाथ जैसे तीर्थंकरों से है.

कोसी का मैदान (Kosi Plain)

कोसी का मैदान उत्तरी बिहार के मैदान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो कोसी नदी और उसकी सहायक नदियों द्वारा निर्मित है. यह क्षेत्र अपनी बार-बार आने वाली विनाशकारी बाढ़ों के कारण “बिहार का शोक” (Sorrow of Bihar) के रूप में जाना जाता है.

यह मुख्यतः बिहार के उत्तर-पूर्वी भाग में स्थित है. इसमें मुख्य रूप से सुपौल, सहरसा, मधेपुरा, अररिया, पूर्णिया और कटिहार जैसे जिले शामिल हैं. यह नेपाल की सीमा से शुरू होकर गंगा नदी तक फैला हुआ है.

इसके उत्तर में नेपाल की तराई और शिवालिक पहाड़ियां, पश्चिम में गंडक नदी का मैदान या मिथिला का पश्चिमी भाग, दक्षिण में गंगा नदी और पूर्व में महानंदा नदी का बेसिन स्थित है. कोसी नदी बेसिन का कुल क्षेत्रफल लगभग 74,500 वर्ग किलोमीटर (तिब्बत, नेपाल और भारत सहित) है. बिहार में कोसी नदी द्वारा निर्मित मैदान का सटीक क्षेत्रफल उपलब्ध नहीं है, लेकिन यह कोसी बेसिन के बिहार भाग को दर्शाता है. यह अनुमानित रूप से 25,000 से 30,000 वर्ग किलोमीटर हो सकता है.

कोसी नदी नेपाल के पहाड़ों से निकलकर बिहार में लगभग 260 किलोमीटर दक्षिण की ओर बहकर गंगा में मिलती है. यह मैदान इस नदी के प्रवाह के साथ-साथ फैला हुआ है. कोसी नदी अपने मार्ग में लगातार बदलती रहती है, जिससे इसका मैदान भी अनियमित चौड़ाई का है. औसतन, इसकी चौड़ाई 50 से 100 किलोमीटर तक हो सकती है, लेकिन बाढ़ के दौरान यह बहुत अधिक फैल जाती है.

अंग का मैदान (Anga Plain)

अंग का मैदान, जो एक प्राचीन महाजनपद भी था, बिहार के पूर्वी भाग में स्थित है. यह बिहार के दक्षिण-पूर्वी भाग और झारखंड तथा पश्चिम बंगाल के कुछ सटे हुए क्षेत्रों में स्थित है. इसमें आधुनिक भागलपुर और मुंगेर जिले (बिहार) के साथ-साथ झारखंड और पश्चिम बंगाल के कुछ सटे हुए क्षेत्र शामिल हैं.

इसके पश्चिम में मगध क्षेत्र है, जिसे चंपा नदी (अंग और मगध की सीमा पर) द्वारा विभाजित किया जाता था. इसे उत्तर में गंगा नदी, दक्षिण में छोटानागपुर पठार और झारखंड के पठारी क्षेत्र व पूर्व में राजमहल की पहाड़ियां और पश्चिम बंगाल का मैदान स्थित हैं. 

अंग महाजनपद एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक क्षेत्र है, जिसका कोई निश्चित प्रशासनिक क्षेत्रफल नहीं है. हालांकि, आधुनिक भागलपुर और मुंगेर जिलों का कुल क्षेत्रफल लगभग 7,700 वर्ग किलोमीटर है. अंग का मैदानी भाग इसी क्षेत्र में फैला हुआ है. इसलिए इसे लगभग 7,000 से 10,000 वर्ग किलोमीटर अनुमानित किया जा सकता है.

अंग का मैदान एक विशिष्ट नदी बेसिन या प्रशासनिक इकाई नहीं है. बल्कि एक ऐतिहासिक क्षेत्र है. इसकी कोई निश्चित लंबाई और चौड़ाई उपलब्ध नहीं है. हालांकि, यह गंगा के किनारे फैला हुआ एक संकरा मैदान है, जिसकी लंबाई गंगा के समानांतर लगभग 100-150 किलोमीटर और चौड़ाई 50-70 किलोमीटर है. विभिन्न क्षेत्रों में इसमें थोड़ा बदलाव हो सकता है.

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ऐतिहासिक या सांस्कृतिक क्षेत्रों की भौगोलिक सीमाएं अक्सर आधुनिक प्रशासनिक सीमाओं जितनी स्पष्ट नहीं होती हैं, और इनके क्षेत्रफल व आयाम अनुमानित ही होते हैं.

निचली गंगा का मैदान

निचला गंगा का मैदान, गंगा नदी प्रणाली के सबसे पूर्वी और निचले हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है, जो दुनिया के सबसे बड़े क्वाटरनरी जलोढ़ निक्षेपण क्षेत्रों में से एक है. इसका क्षेत्रफल लगभग 2,50,000 वर्ग किलोमीटर है. इसकी पार्श्व सीमा पश्चिम से पूर्व तक लगभग 1000 किमी और उत्तर से दक्षिण तक 200-450 किमी के बीच है.

इस क्षेत्र की जलवायु उष्णकटिबंधीय और अत्यधिक मौसमी है. दक्षिण-पश्चिमी मानसून, जो बंगाल की खाड़ी से आता है, जून से सितंबर तक सिर्फ चार महीनों में 3,500 मिमी से अधिक वर्षा करता है. बंगाल की खाड़ी में बार-बार आने वाले चक्रवात भी इस क्षेत्र में व्यापक बाढ़ का कारण बनते हैं.

समृद्ध जैव विविधता और कृषि

यह  क्षेत्र कभी जैविक अतिशयोक्ति का क्षेत्र था: हिमालय से लाई गई जलोढ़ मिट्टी और गाद से समृद्ध एक अत्यधिक उपजाऊ बाढ़ का मैदान, जिसने एशिया के कुछ सबसे बड़े, सबसे करिश्माई वन्यजीवों के लिए आवास बनाया. इस पारिस्थितिक क्षेत्र में एशियाई हाथियों, बाघों, एक सींग वाले गैंडों, भारतीय बाइसन या गौर, जंगली जल भैंसों, दलदली हिरणों और स्लॉथ भालुओं के बड़े झुंड रहते थे. बंगाल फ्लोरिकन जैसे विश्व स्तर पर खतरे वाले पक्षी यहाँ फले-फूले थे.

यह पारिस्थितिक क्षेत्र अब भी चुनौतियों का सामना कर रहा है, क्योंकि यह पृथ्वी पर सबसे घनी मानव आबादी में से एक का घर है. इस कारण यहाँ प्राकृतिक वनस्पति की व्यापक कटाई और गहन कृषि गतिविधियाँ होती हैं. इसके बावजूद, यह पारिस्थितिक क्षेत्र अभी भी महत्वपूर्ण जैव विविधता क्षेत्र है, जहाँ बाघों और हाथियों जैसी कई बड़े, खतरे वाली प्रजातियों को संरक्षित रखे हुए हैं. 

ज्ञात स्तनपायी जीवों में 126 प्रजातियाँ शामिल हैं, जिनमें से कई खतरे में हैं. पक्षी प्रजातियों में 380 ज्ञात प्रजातियाँ शामिल हैं. इनमें दो वैश्विक स्तर पर संकटग्रस्त प्रजातियाँ हैं: बंगाल फ्लोरिकन और लेसर फ्लोरिकन. इस पारिस्थितिक क्षेत्र की प्रमुख प्रजाति दलदली हिरण है.

पश्चिम बंगाल के गंगा का मैदान

गंगा नदी बिहार से निकलकर पश्चिम बंगाल में प्रवेश करती है, जहाँ यह निचला गंगा का मैदान बनाती है. यह मैदान काफी समतल है और इसमें कई वितरिकाएं (distributaries) हैं. यह मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल राज्य के मध्य और दक्षिणी भागों को कवर करता है, जिसमें मुर्शिदाबाद, नदिया, उत्तर 24 परगना, दक्षिण 24 परगना, हावड़ा, हुगली, मेदिनीपुर और कोलकाता जैसे जिले शामिल हैं. गंगा की एक प्रमुख शाखा, हुगली नदी, इसी क्षेत्र से होकर बहती है.

पश्चिम बंगाल में गंगा के मैदान का क्षेत्रफल लगभग 80,000 वर्ग किलोमीटर है. इसकी लंबाई (उत्तर से दक्षिण) लगभग 400 किलोमीटर (पश्चिम बंगाल में प्रवेश से लेकर सुंदरबन डेल्टा तक) हैं. वहीं यह पश्चिम में अपेक्षाकृत चौड़ा (लगभग 200 किलोमीटर) और पूर्व में संकरा (लगभग 100 किलोमीटर) होता जाता है.

जल प्रदूषण की समस्या 

यह क्षेत्र घनी आबादी वाला है. गंगा नदी में अनुपचारित सीवेज, औद्योगिक कचरा, कृषि अपवाह, आंशिक रूप से जले या बिना जले शवों के अवशेष, और पशु शव सभी गंगा को प्रदूषित करने में योगदान करते हैं. रोग पैदा करने वाले बैक्टीरिया और जहरीले पदार्थों का उच्च स्तर भी गंगा में पाया गया है. गंगा के निचले हिस्से में होने के कारण इस क्षेत्र में इसका प्रभाव व्यापक हैं. 

मानव अपशिष्ट भी एक प्रमुख प्रदूषक है, जिसमें 100 से अधिक शहरों और 50,000 से अधिक आबादी वाले 97 शहरों से बड़ी मात्रा में सीवेज गंगा में छोड़ा जाता है. उत्तरी मैदानों में उत्पन्न होने वाले कुल सीवेज का तीन-चौथाई हिस्सा गंगा और उसकी सहायक नदियों में पूरी तरह से अनुपचारित रूप से छोड़ा जाता है. 

कानपुर, प्रयागराज, वाराणसी और पटना जैसे औद्योगिक शहरों से चमड़ा कारखाने, रासायनिक संयंत्र, कपड़ा मिलें, डिस्टिलरी, बूचड़खाने और अस्पताल अनुपचारित कचरा नदी में डालते हैं. औद्योगिक बहिःस्राव कुल अपशिष्ट मात्रा का अपेक्षाकृत कम अनुपात (लगभग 12%) है. यह एक बड़ी चिंता है क्योंकि ये बहिःस्राव अक्सर जहरीले और गैर-बायोडिग्रेडेबल होते हैं.

बढ़ती मानव गतिविधियों और जलवायु परिवर्तन के कारण जल-मौसम संबंधी विसंगतियाँ आम हैं. इससे आवधिक जलवैज्ञानिक आपदाएँ होती हैं. नदी के मार्ग में परिवर्तन से भूमि के पुनर्वितरण, जनसंख्या विस्थापन और गरीबी के कारण सामाजिक समस्याएँ भी पैदा होती हैं. नदी तट का कटाव एक महत्वपूर्ण जोखिम है जिसके परिणामस्वरूप नुकसान और आर्थिक हानि होती है. मुर्शिदाबाद में, कई व्यक्तियों ने गंगा के किनारे नदी के कटाव के कारण अपने घर और जमीन खो दी है.

बांग्लादेश में गंगा का मैदान और मुहाना

बांग्लादेश में गंगा नदी को पद्मा के नाम से जाना जाता है. यह ब्रह्मपुत्र (जो बांग्लादेश में जमुना कहलाती है) और मेघना नदियों से मिलती है. इससे दुनिया का सबसे बड़ा डेल्टा बनता है. बांग्लादेश का अधिकांश भाग गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना डेल्टा का हिस्सा है, जो एक विशाल जलोढ़ मैदान है. यह देश का लगभग पूरा मध्य और दक्षिणी भाग शामिल करता है.

बांग्लादेश का कुल क्षेत्रफल लगभग 148,460 वर्ग किलोमीटर है. इसका अधिकांश भाग गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना नदी प्रणाली द्वारा निर्मित जलोढ़ मैदान है. इसलिए, गंगा के मैदान का एक बड़ा हिस्सा बांग्लादेश में स्थित है. यह अनुमानित तौर पर 1 लाख वर्ग किलोमीटर से अधिक हो सकता है.

बांग्लादेश में गंगा के मैदान की कोई विशिष्ट लंबाई और चौड़ाई नहीं बताई जा सकती क्योंकि यह एक विशाल डेल्टा है जिसमें नदियां कई धाराओं में बंटकर बहती हैं. यह एक त्रिभुजाकार या पंखे के आकार का क्षेत्र है जो पूर्व से पश्चिम तक लगभग 300 किलोमीटर और उत्तर से दक्षिण तक लगभग 200 किलोमीटर तक फैला हुआ है. 

कृषि, भूगोल व जनजीवन

बांग्लादेश में गंगा का मैदान और मुहाना, विशेष रूप से गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा, दुनिया के सबसे आपदा-प्रवण क्षेत्रों में से एक है.  उच्च जनसंख्या घनत्व और उष्णकटिबंधीय चक्रवात, बाढ़, खारा जल का घुसपैठ इस क्षेत्र की खासियत है. यह क्षेत्र हिमालय से ग्लेशियर पिघलने, अत्यधिक मानसूनी वर्षा, समुद्र के स्तर में वृद्धि, भूमि धँसने और तूफान के बढ़ने के संयोजन से और भी अधिक संवेदनशील हो जाता है.

सुंदरबन, गंगा डेल्टा में स्थित एक मैंग्रोव वन, पारिस्थितिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है. यह 133,010 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला है. इसमें अनुमानित रूप से 55% वन भूमि और 45% ज्वारीय नदियाँ, खाड़ियाँ, नहरें और नदी के विशाल मुहाने शामिल हैं. यह मानसून की बारिश से बाढ़, डेल्टा निर्माण, ज्वारीय प्रभाव और पौधों के उपनिवेशीकरण की पारिस्थितिक प्रक्रियाओं का एक उत्कृष्ट उदाहरण है. 

सुंदरबन दुनिया के तीन सबसे बड़े मैंग्रोव वनों में से एक है, जिसका बड़ा हिस्सा बांग्लादेश में और छोटा हिस्सा भारत में स्थित है. यह विभिन्न प्रकार के जलीय, बेंथिक और स्थलीय जीवों के लिए महत्वपूर्ण आवास प्रदान करता है. यहाँ तलछटों का जाल भी हैं.

मानव बस्तियों का इतिहास सुंदरबन क्षेत्र में मौर्य काल (चौथी-दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व) से मिलता है. डेल्टा की उपजाऊ मिट्टी सदियों से गहन मानव उपयोग के अधीन रही है. पारिस्थितिक क्षेत्र का अधिकांश भाग गहन कृषि में परिवर्तित हो गया है. अब जंगल के कुछ ही हिस्से बचे हैं. शेष जंगल सुंदरबन मैंग्रोव के साथ बाघों के लिए महत्वपूर्ण आवास हैं.

बांग्लादेश डेल्टा में जनसंख्या घनत्व बहुत अधिक है. यह जनसंख्या बड़े पैमाने पर गरीब है और इनकी आय काफी कम है. इसलीए ये भूजल संसाधनों, मत्स्य पालन और कृषि जैसी पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर अत्यधिक निर्भर है.

गंगा नदी का मुहाना (Mouth of the Ganga River)

गंगा नदी का मुहाना बंगाल की खाड़ी में है. यह विश्व के सबसे बड़े डेल्टा, सुंदरबन डेल्टा, का निर्माण करती है. सुंदरबन डेल्टा भारत (पश्चिम बंगाल) और बांग्लादेश के तटीय क्षेत्रों में फैला हुआ है. यह गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना नदियों द्वारा लाई गई गाद से बना एक विशाल मैंग्रोव वन और दलदली क्षेत्र है. सुंदरबन डेल्टा का कुल क्षेत्रफल लगभग 10,000 वर्ग किलोमीटर (विभिन्न स्रोतों के अनुसार 7,000 से 10,000 वर्ग किमी) से अधिक है, जिसमें से लगभग 60% बांग्लादेश में और 40% भारत में है.

डेल्टा एक अनियमित आकार का क्षेत्र है, जिसकी कोई निश्चित लंबाई और चौड़ाई नहीं होती. यह बंगाल की खाड़ी के तट पर लगभग 300 किलोमीटर तक फैला हुआ है और अंतर्देशीय लगभग 150 किलोमीटर तक फैला हुआ है.

सारांश में, गंगा नदी का मैदानी क्षेत्र भारत के पूर्वी भाग और पूरे बांग्लादेश में फैला हुआ है, जो विश्व के सबसे उपजाऊ और घनी आबादी वाले क्षेत्रों में से एक है. इसका अंतिम मुहाना सुंदरबन डेल्टा के रूप में बंगाल की खाड़ी में है.

तालिका: गंगा के मैदान के उप-क्षेत्रों की प्रमुख विशेषताएँ और वर्गीकरण 

उप-क्षेत्रप्रमुख भौगोलिक विशेषताएँप्रमुख नदियाँमिट्टी के प्रकारप्रमुख फसलेंजनसंख्या घनत्व (सापेक्ष)प्रमुख चुनौतियाँ
I. ऊपरी गंगा का मैदानतुलनात्मक रूप से शुष्क, गर्म उप-आर्द्र; चरम जलवायु (पाला, उच्च ग्रीष्मकाल); जलोढ़ वेदिकाएँगंगा, यमुना, घाघरा, गोमती, गंडक, सोनसजातीय जलोढ़गेहूँ, चावल, गन्ना, मक्का, बाजरा, दलहन, तिलहन, सब्जियाँ, फलउच्चजलवायु चरम सीमाएँ, मिट्टी का क्षरण (अकार्बनिक उर्वरक)
(a) रुहेलखंड का मैदाननिम्न-भूमि जलोढ़ क्षेत्र, अवध और गंगा के बीचगंगा, रामगंगा (सहायक)उपजाऊ जलोढ़गेहूँ, चावल, गन्ना, विविध सब्जियाँ, फल, मसालेउच्चऐतिहासिक संघर्ष
(b) अवध का मैदानभारत-गंगा के मैदान का हृदय, समृद्ध जलोढ़ मिट्टीगोमती, घाघरा, सरयूसमृद्ध जलोढ़गेहूँ, चावल, गन्ना, विभिन्न अनाजबहुत उच्चऐतिहासिक राजनीतिक अस्थिरता
II. मध्य गंगा का मैदानसमतल, जलोढ़ मैदान; पूर्वी भाग में अधिक वर्षा; नदीय वेदिकाएँगंगा, घाघरा, गंडक, बूढ़ी गंडक, कोसी, सोनउपजाऊ जलोढ़चावल, गेहूँ, मक्का, दलहन, सब्जियाँ, फल, गन्ना, जूटबहुत उच्चबाढ़ (विशेषकर उत्तर बिहार), नदी मार्ग परिवर्तन
(a) पूर्वी उत्तर प्रदेश का मैदानसमतल, जलोढ़ मैदान; बाढ़ और सूखे के प्रति प्रवणघाघरा, गंगा, गोमतीउपजाऊ जलोढ़चावल, गेहूँ, गन्ना, जूटउच्चतमआवधिक बाढ़ और सूखा, निम्न प्रति व्यक्ति भूमि
(b) बिहार का मैदानविशाल, धीरे-धीरे ढलान वाला मैदान; अत्यधिक उपजाऊगंगा, कोसी, गंडक, बूढ़ी गंडक, घाघरा, कमला, बागमती, सोनसमृद्ध जलोढ़चावल, गेहूँ, मक्का, दलहन, आलू, प्याज, बैंगन, फूलगोभी, लीची, आम, केला, अमरूद, गन्ना, जूट, मखानाबहुत उच्चबाढ़ (उत्तर बिहार), सूखा (दक्षिण बिहार)
(i) सारण का मैदानजलोढ़ मैदान, नदियों से घिरा; कुछ अवसाद और दलदलगंगा, घाघरा, गंडकजलोढ़धान, गेहूँ, गन्ना, आलू, मक्काउच्चआवधिक बाढ़ (दियारा क्षेत्र)
(ii) मगध का मैदानपूर्वी गंगा के मैदान में स्थित, रणनीतिक स्थितिगंगा, सोन, चंपाउपजाऊ जलोढ़(विशिष्ट फसलें उपलब्ध नहीं, कृषि प्रधान)उच्चऐतिहासिक संघर्ष
(iii) मिथिला का मैदानसमतल और उपजाऊ जलोढ़ मैदान, कई नदियों द्वारा कटा हुआगंडक, कोसी, महानंदा, बागमती, कमला, बालन, बूढ़ी गंडकउपजाऊ जलोढ़(विशिष्ट फसलें उपलब्ध नहीं, कृषि प्रधान)उच्चलगातार बाढ़
III. निचली गंगा का मैदानदुनिया के सबसे बड़े जलोढ़ निक्षेपण क्षेत्रों में से एक; उष्णकटिबंधीय, अत्यधिक मौसमी जलवायु; डेल्टा निर्माणगंगा, ब्रह्मपुत्र, हुगली, दामोदर, मेघनाअत्यधिक उपजाऊ जलोढ़, मैंग्रोव मिट्टी (डेल्टा)चावल, गन्ना, आलू, कपास, गेहूँ, तिलहन, दलहनउच्चतमअत्यधिक बाढ़, चक्रवात, नदी कटाव, प्रदूषण, खारापन
(a) पश्चिम बंगाल के गंगा का मैदाननिम्न-भूमि डेल्टा क्षेत्र; धीमी गति से बहने वाली नदियाँ (पश्चिम), सक्रिय नदियाँ (डेल्टा)गंगा, हुगलीउपजाऊ जलोढ़चावल, गन्ना, आलू, कपास, गेहूँ, तिलहन, दलहनउच्चतमबाढ़, नदी कटाव, प्रदूषण (सीवेज, औद्योगिक)
(b) बांग्लादेश में गंगा का मैदान और मुहानागंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा, सुंदरबन मैंग्रोव वनगंगा, ब्रह्मपुत्र, मेघनाउपजाऊ जलोढ़, मैंग्रोव मिट्टीगहन कृषि (चावल, आदि)उच्चतमचक्रवात, बाढ़, खारापन, भूमि धँसना, कटाव, मानव हस्तक्षेप
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