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समष्टि अर्थशास्त्र: परिभाषा, अवधारणा, महत्व, समस्या और सीमाएं

समष्टि अर्थशास्त्र (Macroeconomics) संपूर्ण अर्थव्यवस्था के स्तर पर आर्थिक समस्याओं का अध्ययन करता हैजैसे कि राष्ट्रीय आय, राष्ट्रिय बचत, जीडीपी इत्यादि. दूसरी तरफ, व्यष्टि अर्थशास्त्र (Microeconomics) व्यक्तिगत स्तर पर आर्थिक समस्याओं को समझने पर ध्यान केंद्रित करता है, जैसे किसी एक परिवार, फर्म, उद्योग या बाजार की आर्थिक स्थिति.

“समष्टि” शब्द ग्रीक शब्द “मैक्रोस” से लिया गया है, जिसका अर्थ है “बड़ा”. इस प्रकार, समष्टि अर्थशास्त्र का उद्देश्य संपूर्ण अर्थव्यवस्था के कुल योगों का अध्ययन और विश्लेषण करना है, इसलिए इसे सामूहिक अर्थशास्त्र भी कहा जाता है.

समष्टि अर्थशास्त्र की परिभाषा 

  • प्रो. बोल्डिंग के अनुसार- “समष्टि अर्थशास्त्र में व्यक्तिगत मात्राओं का अध्ययन नहीं किया जाता है, अपितु इन मात्राओं के योग का अध्ययन किया जाता है. इसका संबंध व्यक्तिगत आय से नहीं, बल्कि राष्ट्रीय आय से होता है व्यक्तिगत कीमतों से नहीं, बल्कि सामान्य कीमत-स्तर से होता है तथा व्यक्तिगत उत्पादन से नहीं, बल्कि राष्ट्रीय उत्पादन से होता है.’’
  • प्रो. कीन्स के अनुसार- “राष्ट्रीय तथा विश्वव्यापी आर्थिक समस्याओं का अध्ययन समष्टि अर्थशास्त्र के अंतर्गत किया जाना चाहिए.” इस प्रकार समष्टि अर्थशास्त्र में अर्थव्यवस्था का अध्ययन समग्र रूप से किया जाता है. उदाहरण के लिए, कुल राष्ट्रीय आय, कुल माँग , कुल पूर्ति कुल बचत, कुल विनियोग, पूर्ण रोजगार इत्यादि.
  • प्रो. चैम्बरलिन – ‘‘समष्टि अर्थशास्त्र कुल संबंधों की व्याख्या करता है.’’
  • शेपिरो के अनुसार, समष्टि अर्थशास्त्र संपूर्ण अर्थव्यवस्था के कार्यकरण से संबंधित है.
  • समष्टि अर्थशास्त्र ऐसे चरों (Variables) से संबंधित है जैसे किसी अर्थव्यवस्था के उत्पादन की कुल मात्रा, राष्ट्रीय आय के आकार और सामान्य मूल्य स्तर के साथ इसके संसाधनों को किस हद तक नियोजित किया जाता है. – एक्ले गार्डनर
  • समष्टि अर्थशास्त्र का संबंध संपूर्ण अर्थव्यवस्था या उसके बड़े खंडों से है. वृहत अर्थशास्त्र में बेरोजगारी का स्तर, मुद्रास्फीति की दर, देश का कुल उत्पादन और अर्थव्यवस्थाव्यापी महत्व के अन्य मामले जैसी समस्याओं पर ध्यान केंद्रित किया जाता है.”-एम.एच. विग.

समष्टि अर्थशास्त्र की अवधारणाएँ

1. पूंजीवादी अर्थतंत्र में

समष्टि अर्थशास्त्र में पूंजीवादी राष्ट्र की विशेषताओं और कुछ प्रमुख आर्थिक अवधारणाओं का अध्ययन किया जाता है. एक पूंजीवादी राष्ट्र में:

  • ग्राहकों को वस्तुएं और सेवाएं चुनने की स्वतंत्रता होती है.
  • व्यवसाय शुरू करने का अधिकार व्यक्तियों के पास होता है.
  • सरकार का हस्तक्षेप कम होता है, और बाजार की ताकतें वस्तुओं का वितरण नियंत्रित करती हैं.

2. निवेश (Investment)

वह राशि जिसे परिवार और उद्यम पूंजीगत वस्तुओं पर खर्च करते हैं, निवेश व्यव है. यह दीर्घकालिक आर्थिक वृद्धि और रोजगार सृजन में महत्वपूर्ण है. निवेश के कई प्रकार हैं, जैसे स्वायत्त निवेश, वित्तीय निवेश, सकल निवेश, और शुद्ध निवेश इत्यादि.

3. राजस्व (Revenue)

किसी इकाई की कुल आय राजस्व है, जो वस्तुओं और सेवाओं की बिक्री से प्राप्त होती है. किसी देश के आर्थिक स्वास्थ्य का मापन जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) से किया जाता है, जो इन अवधारणाओं से प्रभावित होता है.

समष्टि अर्थशास्त्र का महत्व 

समष्टि अर्थशास्त्र की उपयोगिता को निम्न बिंदुओं के रूप में स्पष्ट किया जा सकता है-

1. जटिल समस्याओं का अध्ययन- आधुनिक अथर्व्यवस्था में अनेक आर्थिक तत्व एक-दूसरे पर आश्रित रहते है. इससे यह अत्यंत जटिल हो जाता है. समष्टि अर्थशास्त्र की सहायता से पूर्ण रोजगार, व्यापार चक्र आदि जटिल समस्याओं का विश्लेषण आसान हो जाता है.

2. आर्थिक नीतियों के निर्माण में सहायक- सरकार राष्ट्रीय या अपने राज्य स्तर पर अर्थव्यवस्था का अध्ययन करती है. सरकार का प्रमुख कार्य कुल रोजगार, कुल आय, सामान्य कीमत स्तर, व्यापार के सामान्य स्तर आदि पर नियंत्रण करना होता है. ये सभी समष्टि अर्थशास्त्र के अधीन आते है. इस तरह समष्टि अर्थशास्त्र सरकार को आर्थिक नीतियां बनाने में सहायक है.

3. व्यष्टि अर्थशास्त्र का सहायक- व्यष्टि आर्थिक विश्लेषण में समष्टि अर्थशास्त्र बहुत सहायक है. जैसे- एक उत्पादक अपने उत्पादन के संबंध में निर्णय लेते समय कुल उत्पादन के व्यवहार से प्रभावित होता है.

4. आर्थिक विकास का अध्ययन- आर्थिक विकास का अध्ययन समष्टि अर्थशास्त्र का महत्वपूर्ण विषय है. समष्टि आर्थिक विश्लेषण के आधार पर ही अर्थव्यवस्था के आर्थिक विकास के संसाधनों एवं क्षमताओं का मूल्यांकन किया जाता है. समष्टि अर्थशास्त्र के तहत ही राष्ट्रीय आय, उत्पादन एवं रोजगार के स्तर में वृद्धि करने की योजनाएं बनायी व क्रियान्वित की जाती है.

व्यष्टि और समष्टि अर्थशास्त्र 

अर्थशास्त्र के दो प्रमुख भाग हैं – व्यष्टिगत और समष्टिगत अर्थशास्त्र. उदाहरण के साथ इन्हें इस प्रकार समझा जा सकता है:

व्यष्टिगत अर्थशास्त्र में अर्थव्यवस्था के छोटे हिस्सों जैसे किसी व्यक्ति, परिवार या फर्म की आर्थिक गतिविधियों का अध्ययन है. उदाहरण के लिए मानवीय शरीर के किसी एक अंग का अध्ययन करना. इसमें व्यक्तिगत अभिकर्ताओं और उनकी आर्थिक क्रियाओं का विश्लेषण किया जाता है. 

दूसरी तरफ, समष्टिगत अर्थशास्त्र एक संपूर्ण अर्थव्यवस्था या बड़ी आर्थिक इकाइयों का अध्ययन करता है. ऊपर हमने बताया कि व्यष्टिगत अर्थशास्त्र पुरे शरीर के बदले शरीर के किसी ख़ास अंग का अध्ययन करता है. लेकिन समष्टिगत अर्थशास्त्र उदाहरणतः पूरे मानव शरीर का अध्ययन करता है. इसमें कुल उत्पादन, निवेश, और पूरी अर्थव्यवस्था से जुड़े समुच्चयों का विश्लेषण शामिल होता है.

व्यष्टि और समष्टि अर्थशास्त्र एक-दूसरे से अलग न होकर परस्पर जुड़े होते है. व्यष्टिगत अर्थशास्त्र किसी एक वस्तु की कीमत निर्धारण और क्रेताओं-विक्रेताओं की भूमिकाओं का अध्ययन करता है, जो समष्टिगत अर्थशास्त्र के तहत सामान्य कीमत स्तर के विश्लेषण में सहायक होता है. समष्टिगत अर्थशास्त्र पूरी अर्थव्यवस्था या समग्र आर्थिक गतिविधियों का अध्ययन करता है, जिसमें व्यष्टिगत इकाइयों या क्षेत्रों का योगदान समझना आवश्यक है.

इस प्रकार, व्यष्टिगत और समष्टिगत दोनों अध्ययन अर्थव्यवस्था को समझने और आर्थिक नीतियाँ बनाने में एक-दूसरे के पूरक हैं. इन दोनों के माध्यम से अर्थव्यवस्था के अलग-अलग स्तरों पर आर्थिक गतिविधियों और उनकी परस्पर संबंधों को समझा जा सकता है.

व्यष्टि और समष्टि अर्थशास्त्र में अंतर

अंतर का आधारव्यष्टि अर्थशास्त्रसमष्टि अर्थशास्त्र
1. विषय-सामग्रीव्यष्टि अर्थशास्त्र में व्यक्तिगतआर्थिक इकाइयों का अध्ययन कियाजाता है.समष्टि अर्थशास्त्र में संपूर्ण अर्थव्यवस्थाका एक समग्र इकाई के रूप मेंअध्ययन किया जाता है.
2. तेजी और मंदीव्यष्टि अर्थशास्त्र में व्यक्तिगत फर्म,उद्योग या व्यापारिक इकाई में तेजीव मंदी की विवेचना होती है.समष्टि अर्थशास्त्र के द्वारा संपूर्णआर्थिक मंदी का तथा आर्थिक तेजीका स्पष्टीकरण किया जाता है.
3. सहायताउपभोक्ता या फर्म को सर्वोत्तम बिंदुतक पहुंचाने में व्यष्टि अर्थशास्त्रसहायता पहुँचाता है.संपूर्ण अर्थव्यवस्था को सर्वोत्तम बिंदुतक पहुँचाने में समष्टि अर्थशास्त्रविशेष सहायक होता है.
4. दायराइसमें मांग, आपूर्ति, कारक मूल्य बिक्री, उत्पाद मूल्य बिक्री, आर्थिक कल्याण, उत्पादन, उपभोक्ता आदि जैसे इकाइयां शामिल हैं.इसमें वितरण, राष्ट्रीय आय, रोजगार, धन, सामान्य मूल्य स्तर आदि जैसे कई आंकड़े शामिल किए गए हैं.
5. सीमाव्यष्ठि अर्थशास्त्र का क्षेत्र सीमान्तविश्लेषण आदि पर आधारित नियमोंतक सीमित है.समष्टि अर्थशास्त्र का क्षेत्र राष्ट्रीयआय, पूर्ण रोजगार, राजस्व आदिसंपूर्ण अर्थव्यवस्था से संबंधितसमस्याओं के विश्लेषण से व्यापक है.

समष्टि अर्थशास्त्र में हम क्या अध्ययन करते हैं?

इस प्रश्न का संबंध समष्टि-अर्थशास्त्र के क्षेत्र से है. क्षेत्र का अर्थ है-विस्तार. अर्थात् कौन-कौन सी आर्थिक समस्याएँ तथा मुद्दे समष्टि-अर्थशास्त्र में सम्मिलित किए जाते हैं. इनके ज्ञान विषय-सामग्री को जानने के लिए जरूरी है. विस्तृत रूप में समष्टि अर्थशास्त्र के अध्ययन क्षेत्र में निम्नलिखित को सम्मिलित किया जाता है-

1. राष्ट्रीय आय का सिद्धांत – समष्टि-अर्थशास्त्र में राष्ट्रीय आय की विभिन्न अवधारणाओं, इसके विभिन्न तत्त्वों, इसे मापने की विधियों तथा सामाजिक लेख का अध्ययन किया जाता है.

2. रोजगार का सिद्धांत – समष्टि-अर्थशास्त्र में रोजगार तथा बेरोजगारी से संबंधित समस्याओं का भी अध्ययन किया जाता है. इसमें रोजगार के स्तर को निर्धारित करने वाले विभिन्न तत्त्वों, जैसे-प्रभावपूर्ण माँग, कुल पूर्ति, कुल उपभोग, कुल निवेश, कुल बचत आदि का अध्ययन किया जाता है. 

3. मुद्रा का सिद्धांत – मुद्रा की माँग तथा पूर्ति में होने वाले परिवर्तनों का रोजगार के स्तर पर काफी प्रभाव पड़ता है. समष्टि-अर्थशास्त्र में मुद्रा के कार्यों तथा उससे संबंधित सिद्धांतों का अध्ययन किया जाता है. बैंक प्रणाली तथा अन्य वित्तीय संस्थाओं का भी इस संदर्भ में अध्ययन किया जाता है.

4. सामान्य कीमत स्तर का सिद्धांत – सामान्य कीमत स्तर में होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन समष्टि-अर्थशास्त्र की मुख्य समस्या है. इस संदर्भ में मुद्रा स्फीति (अथवा कीमतों में होने वाली सामान्य वृद्धिद्ध तथा मुद्रा विस्फीति ;अथवा कीमतों में होने वाली सामान्य कमी) की समस्याएँ प्रमुख हैं.

5. आर्थिक संवृद्धि का सिद्धांत –समष्टि अर्थशास्त्र में आर्थिक संवृद्धि अर्थात् प्रति व्यक्ति वास्तविक आय में होने वाली वृद्धि से संबंधित समस्याओं का अध्ययन किया जाता है. अल्पविकसित अर्थव्यवस्थाओं की संवृद्धि संबंधी समस्या का विशेष रूप से अध्ययन किया जाता है. सरकार की मौद्रिक तथा वित्तीय नीतियों का भी इसमें अध्ययन किया जाता है.

6. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का सिद्धांत –समष्टि-अर्थशास्त्र में विभिन्न देशों के बीच होने वाले व्यापार का भी अध्ययन किया जाता है. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का सिद्धांत, तटकर संरक्षण आदि समष्टि-अर्थशास्त्र के अति महत्त्वपूर्ण विषय हैं.

समष्टि अर्थशास्त्र की मुख्य समस्याएँ

समष्टि अर्थशास्त्र की कुछ प्रमुख समस्याएँ हैं, जो इसके अध्ययन को आवश्यक बनाती हैं. ये है:

1. संवृद्धि और विकास

ये समष्टि-अर्थशास्त्र के प्रमुख कारक हैं और वैश्विक अर्थव्यवस्था में इनका महत्व बढ़ गया है.

  • संवृद्धि का उद्देश्य वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में वृद्धि करके आम जनता के जीवन-स्तर और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना है. इस संवृद्धि को विकास में परिवर्तित करना चाहिए ताकि समाज में धनी और निर्धन के बीच की खाई कम हो सके.
  • सतत विकास की आवश्यकता पर जोर दिया गया है. मतलब पर्यावरण का पतन और प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक शोषण न हो, ताकि भावी पीढ़ियों की उत्पादन क्षमता प्रभावित न हो. अर्थात प्रकृति का उतना ही शोषण हो, जिससे यह भविष्य के लिए भी उपलब्ध हो.

इस संदर्भ में नीति-निर्माताओं को ऐसी नीतियाँ बनाने पर जोर दिया गया है, जो आर्थिक संवृद्धि और सामाजिक न्याय दोनों को सुनिश्चित करें, पर्यावरण की सुरक्षा करें, और भविष्य के लिए स्थिरता बनाए रखें.

2. रोजगार (Employment)

1930 के दशक में विश्वव्यापी महामंदी के कारण आर्थिक गतिविधियाँ मंद पड़ गईं. इस कारण माँग घट गई, व्यापारिक लाभ कम हो गए, निवेश में कटौती हुई, और बेरोजगारी बढ़ी. आबादी के बड़े हिस्से में बेरोजगारी कि समस्या समूची अर्थव्यवस्था के स्तर पर हल करना आवश्यक हो जाता है. व्यापकता के कारण यह समष्टि-अर्थशास्त्र की एक प्रमुख समस्या है.

बेरोजगारी सभी देशों के लिए एक चुनौती है, चाहे वह विकसित देश हों या अल्पविकसित. विकसित देशों में बेरोजगारी चक्रीय होती है, जो माँग में कमी के कारण उत्पन्न होती है. दूसरी तरफ, अल्पविकसित देशों में यह दीर्घकालिक होती है, जो उत्पादन क्षमता की कमी से जुड़ी है. इस प्रकार, बेरोजगारी का समाधान समष्टि-अर्थशास्त्र की एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है.

3. व्यावसायिक चक्र

व्यापार या व्यावसायिक चक्र में आर्थिक गतिविधियों में उतार-चढ़ाव होता है, जो निम्नलिखित चरणों से गुजरता है:

1. मंदी – आर्थिक गतिविधियों में गिरावट.

2. अत्यधिक मंदी – न्यूनतम स्तर पर लाभ, फर्मों का बंद होना, निवेश में कमी और बेरोजगारी में वृद्धि.

3. पुनरुत्थान – सुधार की शुरुआत.

4. तेजी – चरम लाभ, बढ़ता निवेश और उत्पादन साधनों की अधिक माँग.

व्यावसायिक चक्र एक समष्टि घटना है जो सभी उत्पादन इकाइयों और कभी-कभी वैश्विक स्तर पर भी असर डालती है, जैसा कि 1929 की महामंदी में हुआ. इसी दौर में अर्थशास्त्री लॉर्ड केन्स ने आय और रोजगार सिद्धांत प्रस्तुत किया. इस द्वारा उन्होंने समग्र माँग में कमी के कारण उत्पन्न बेरोजगारी की समस्या के भूमण्डलीय उपचार का प्रतिपादन किया था.

व्यावसायिक चक्रों के प्रभाव उपजी समस्या समग्र अर्थव्यवस्था में होती है. इसलिए यह समष्टि अर्थशास्त्र का एक समस्या है. इसे कम करने के लिए उत्पादकों और सरकार को समुचित रणनीतियाँ बनानी होती हैं. आर्थिक स्थिरता और संवृद्धि बनाए रखने के लिए यह आवश्यक होता है.

4. मुद्रास्फीति (Inflation)

वह स्थिति जब सामान्य कीमत स्तर (सभी वस्तुओं और सेवाओं की औसत कीमत) एक निश्चित समय में लगातार बढ़ती है, मुद्रास्फीति कहलाता है. इसके कारण मुद्रा का मूल्य घटता है और लोगों की क्रय-शक्ति कम हो जाती है. यह समष्टि-अर्थशास्त्र से जुड़ी एक महत्वपूर्ण समस्या है, जिसे समझना और समाधान ढूंढना आवश्यक है.

मामूली मुद्रास्फीति आर्थिक संवृद्धि को बढ़ावा देती है. लेकिन अत्यधिक मुद्रास्फीति के परिणाम हानिकारक होते है. इससे उत्पादन के साधन महंगे हो जाते हैं, ब्याज दरें बढ़ती हैं, और निवेश की लागत बढ़ जाती है. अंततः उत्पादन लागत में वृद्धि होती है और वैश्विक प्रतिस्पर्धा कम हो जाती है. यह अर्थव्यवस्था में मंदी या महामंदी का कारण भी बन सकता है.

मुद्रास्फीति से आम आदमी की क्रय-शक्ति घटती है, जिससे सरकार के प्रति असंतोष बढ़ता है. इस प्रकार यह सामाजिक अशांति उत्पन्न कर सकती है, जो सरकार की स्थिरता को खतरे में डाल सकती है. इसलिए, कई देशों में मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए नीतियों को उच्च प्राथमिकता दी जाती है. कई बार ये महंगाई के नाम से चुनावी मुद्दे भी बनते है. भारत जैसे देशों में सरकारों के लिए प्रमुख चुनौती मुद्रास्फीति रहित संवृद्धि सुनिश्चित करना होता है.

5. बजट संबंधी घाटा और राजकोषीय नीति

विश्व की अर्थव्यवस्थाओं में निजीकरण और भूमंडलीकरण के बाद सरकारों की विकास प्रक्रिया में प्रत्यक्ष भागीदारी (विशेषकर निवेशक के रूप में) धीरे-धीरे कम हो रही है. हालांकि, कल्याणकारी योजनाओं के विस्तार के कारण सरकारी खर्च में वृद्धि हो रही है. सरकार को प्रतिरक्षा, आतंकवाद से मुकाबला, और न्याय-व्यवस्था बनाए रखने के लिए अधिक खर्च करना पड़ता है. 

इस प्रकार भारत जैसे विकासशील देशों में, सरकारी खर्चों का बड़ा हिस्सा गैर-विकासात्मक कार्यों में खर्च हो रहा है. जिसका अर्थ यह है कि सरकारी खर्चों का एक बड़ा हिस्सा उपभोग पर अधिक और उत्पादन पर कम हो रहा है. इसके कारण, भारत में सरकार आय के लिए अधिकतर उधारी (ऋण) पर निर्भर रहती है, जिससे राजकोषीय घाटा बढ़ता है. सरकार द्वारा लिया गया ऋण केंद्रीय बैंक (RBI) को नोट छापने की आवश्यकता बढ़ा देता है, जिससे मुद्रा स्फीति होती है और अर्थव्यवस्था की संवृद्धि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.

एक और विकल्प के रूप में, सरकार आय बढ़ाने के लिए करों को बढ़ा सकती है. हालांकि, यदि सरकार इन करों का उपयोग उत्पादन की बजाय उपभोग के लिए करती है, तो इससे सामाजिक अशांति और राजनीतिक अस्थिरता पैदा होती है, जिससे देश की आर्थिक स्थिति पर खतरा मंडराता है.

इसलिए, बजट संबंधी घाटा और राजकोषीय नीति समष्टि-अर्थशास्त्र का एक महत्वपूर्ण पहलू है, जिस पर ध्यान देना आवश्यक है ताकि आर्थिक विकास और निवेश के लिए अनुकूल वातावरण सुनिश्चित किया जा सके.

6. ब्याज दरें और मौद्रिक नीति

मौद्रिक नीति का उद्देश्य आर्थिक स्थिरता और विकास को प्रोत्साहित करने के लिए ब्याज दरों और मुद्रा की आपूर्ति में बदलाव करने से है. उच्च ब्याज दरें निवेश की लागत को बढ़ाती हैं, जो विकास प्रक्रिया के लिए हानिकारक होती हैं. खासकर, भारत जैसे विकासशील देशों में उच्च ब्याज दरें बहुत प्रभाव डालती हैं, क्योंकि इससे उत्पादन लागत बढ़ जाती है और अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में उनकी प्रतिस्पर्धा घटती है. परिणामस्वरूप, आयत और निर्यात भी प्रभावित होते है. जबकि, इनके आर्थिक विकास के लिए पूंजीगत वस्तुओं का आयात जरूरी होता है.

साथ ही, उच्च ब्याज दरें मुद्रा स्फीति को और बढ़ाती हैं. भारत जैसे कृषि प्रधान अर्थव्यवस्थाओं में मौसम के कारण खाद्यान्न की मांग और आपूर्ति में उत्पन्न असंतुलन भी मुद्रास्फीति को बढ़ाता है. जब सामान्य कीमतें बढ़ती हैं, तो ब्याज दरों में वृद्धि होती है. इसके गंभीर परिणामों से अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है.

सरकारी घाटे के कारण सरकार को ऋण लेना पड़ता है. इससे मुद्रा की आपूर्ति में वृद्धि होती है, जो मुद्रास्फीति का कारण बनती है. यही वजह है कि मुद्रा की आपूर्ति और ब्याज दरों को नियंत्रण में रखना विकासशील देशों के लिए एक महत्वपूर्ण समष्टि-अर्थशास्त्र संबंधी चुनौती है. ये देश बहुत जल्दी स्फीति दबावों का सामना करते हैं. वहीं विकसित देश ऐसे दबावों से बच नहीं पाते, क्योंकि उनकी अर्थव्यवस्था में अक्सर मांग में कमी होती है, जो विस्फीति का कारण बन सकती है.

विस्फीति की स्थिति में ब्याज दरें कम होने के वावजूद निवेश प्रेरणा में कमी आती है. ऐसे में मौद्रिक नीति का उद्देश्य मुद्रा की आपूर्ति बढ़ाकर वस्तुओं और सेवाओं की मांग को बढ़ाना होता है, ताकि आर्थिक मंदी को दूर किया जा सके.

इसके अलावा, विनिमय दर भी मौद्रिक नीति का महत्वपूर्ण हिस्सा है. अगर किसी देश की मुद्रा की विनिमय दर दूसरे देशों की मुद्राओं के मुकाबले बढ़ती है, तो उसके निर्यात में कमी आएगी, जिससे विकास प्रक्रिया धीमी हो सकती है. उदाहरण के लिए, यदि भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले महंगा हो जाता है, तो अमेरिकी बाजार में भारतीय सामान की मांग घट जाएगी, क्योंकि अब अमेरिकी डॉलर से कम भारतीय वस्तुएं खरीदी जा सकेंगी.

इस प्रकार, मौद्रिक नीति और ब्याज दरों का समष्टि-अर्थशास्त्र में महत्वपूर्ण स्थान है. इनका अध्ययन आर्थिक स्थिरता और विकास की दिशा को निर्धारित करने में सहायक होता है.

समष्टि अर्थशास्त्र की सीमाएँ

समष्टि-अर्थशास्त्र की भी कुछ सीमाएँ होती हैं, जैसे किसी अन्य विषय की होती हैं. इस संदर्भ में कुछ प्रमुख टिप्पणियाँ निम्नलिखित हैं:

  1. सामान्यीकरण: समष्टि-अर्थशास्त्र आमतौर पर पूरे देश या अर्थव्यवस्था के स्तर पर विचार करता है, लेकिन यह व्यक्तिगत या छोटे समूहों की अर्थव्यवस्था की गहरी समझ नहीं देता. इसका मतलब है कि यह विशिष्ट परिस्थितियों या छोटे बदलावों की विस्तार से व्याख्या नहीं कर सकता. इसे “रचना का तर्क दोष” भी कहा जाता है.
रचना का तर्क दोष: समष्टि-अर्थशास्त्र में एक प्रमुख सीमा “रचना का तर्क दोष” है, जो यह दर्शाता है कि कई निष्कर्ष व्यक्तिगत इकाइयों के साधारण सम्मिश्रण पर आधारित होते हैं. इसका मतलब यह है कि जो तथ्य किसी व्यक्ति के लिए तर्कपूर्ण और सही होते हैं, वे जरूरी नहीं कि पूरी अर्थव्यवस्था के लिए भी वैसी ही स्थिति पैदा करें. उदाहरण के लिए, यदि प्रत्येक व्यक्ति बचत करने लगे, तो इससे कुल माँग में कमी होगी, निवेश की प्रेरणा घटेगी और राष्ट्रीय आय में गिरावट आएगी. इसके परिणामस्वरूप, राष्ट्रीय बचत भी कम हो जाएगी, न कि बढ़ेगी.

प्रो. सैम्युलसन ने इसे “रचना का तर्क दोष” कहा है, और उनका मानना था कि समष्टि-अर्थशास्त्र में अत्यधिक सामान्यीकरण की प्रवृत्ति होती है, जिससे व्यक्तिगत अनुभवों को संपूर्ण अर्थव्यवस्था पर लागू करने की कोशिश की जाती है, जो उचित नहीं होता.
  1. वास्तविकता से मेल न खाना: समष्टि-अर्थशास्त्र में उपयोग किए गए सिद्धांत और मॉडल हमेशा वास्तविक दुनिया में लागू नहीं होते, क्योंकि वास्तविक जीवन में कई जटिलताओं और अनिश्चितताएँ होती हैं जिन्हें मॉडल में सही से समाहित नहीं किया जा सकता. इसे विजातीय इकाई के सिद्धांत से समझा जा सकता है.
विजातीय इकाइयाँ: समष्टि-अर्थशास्त्र में विभिन्न प्रकार की विजातीय इकाइयाँ शामिल होती हैं, जिन्हें मापने के लिए समरूप संख्याओं या समान माप का उपयोग करना संभव नहीं होता. उदाहरण के तौर पर:

➮ 6 सेब + 7 सेब = 13 सेब (यह अर्थपूर्ण है)
➮ 6 सेब + 7 संतरे = 13 फल (यह भी अर्थपूर्ण है)
➮ 6 सेब + 7 मकान = (यह अर्थहीन है)

यहां, विजातीय इकाइयों का समुच्चय प्रायः अस्पष्ट होता है, और भले ही हम मुद्रा का उपयोग एक साझा माप के रूप में करें, फिर भी इन इकाइयों का मौद्रिक मूल्य सही माप नहीं होता.
  1. नीतियों की प्रभावशीलता: समष्टि-अर्थशास्त्र में बनाए गए नीतियाँ और सुझाव हमेशा उम्मीद के मुताबिक असर नहीं दिखाते, क्योंकि उनका कार्यान्वयन और उसके परिणाम विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक, और आर्थिक परिस्थितियों पर निर्भर करते हैं.
  2. समुच्चयों के विभिन्न प्रभाव: समष्टि-अर्थशास्त्र की एक सीमा यह है कि यह अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों पर एक समुच्चय के प्रभावों का पर्याप्त अध्ययन नहीं करता. समष्टि प्राचल विभिन्न क्षेत्रों पर समान प्रभाव नहीं डालते. उदाहरण के तौर पर, कीमतों में वृद्धि व्यापारियों और उद्योगपतियों के लिए लाभकारी हो सकती है, जबकि वेतन भोगियों को नुकसान उठाना पड़ता है. समष्टि-अर्थशास्त्र में ऐसे विभिन्न समूहों के प्रभावों का अध्ययन अक्सर संक्षिप्त रूप में ही होता है.
    • उदाहरण के तौर पर, यदि कीमत स्तर 2006 और 2007 में स्थिर रहा, तो इसका मतलब यह नहीं कि 2007 में सभी कीमतों में कोई परिवर्तन नहीं हुआ. हो सकता है कि एक समूह में कीमतों में कमी आई हो, जबकि दूसरे समूह में वृद्धि हुई हो, जिससे सामान्य कीमत स्तर स्थिर दिखाई दिया. इस प्रकार, समस्याओं को ठीक से समझने के लिए समुच्चय के ढाँचे का अध्ययन उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना कि समुच्चय का. समष्टि-अर्थशास्त्र में संरचनात्मक विश्लेषण को कभी-कभी ही उतना महत्व दिया जाता है.
  1. भविष्यवाणी में कठिनाई: समष्टि-अर्थशास्त्र का उपयोग भविष्य की घटनाओं की भविष्यवाणी के लिए किया जाता है, लेकिन यह भविष्यवाणी करने में हमेशा सटीक नहीं होता, क्योंकि अर्थव्यवस्था में अनिश्चितताएँ और बाहरी कारक हमेशा बदलाव ला सकते हैं.

इस प्रकार, समष्टि-अर्थशास्त्र कुछ सीमा रेखाओं में बंधा हुआ है, जो इसके प्रयोग और विश्लेषण में बाधाएँ उत्पन्न कर सकती हैं.

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