अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं या क्षेत्रों के आर-पार वस्तुओं, सेवाओं, प्रौद्योगिकी, पूंजी और अन्य भौतिक संसाधनों का आदान-प्रदान ही अंतर्राष्ट्रीय व्यापार है. दो या दो से अधिक देशों के बीच होने वाले इस वैश्विक कारोबार में दो या दो से अधिक व्यापारी जुड़े होते है.
यह विनिमय प्रणाली सदियों से अस्तित्व में है. आदिकाल में लोग अपने कुटुम्बों और पड़ोसियों में वस्तुओं व सेवाओं का आदान-प्रदान करते थे. सभ्यता के प्रादुर्भाव के साथ ही, सड़कों, मोटरवायों और जलमार्गों के अभाव में भी अंतर्राष्ट्रीय व्यापार ने आकार लेना शुरू कर दिया था. कालांतर में, सभ्यता, यातायात, तकनीक व प्रौद्यौगिकी में उत्तरोत्तर विकास ने इसे अधिक विस्तृत व व्यापक बना दिया.
आज अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए ई-कॉमर्स, इंटरनेट, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, और विभिन्न संचार साधनों का व्यापक उपयोग हो रहा है. इससे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को एक नई दिशा मिली है और दुनियाभर में व्यापारिक संबंधों को सुगमता से संचालित करने में मदद मिली है.
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार क्या है (What is International Trade in Hindi)?
वस्तुओं या सेवाओं की आवश्यकता को पूरा करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सीमाओं या क्षेत्रों में पूंजी, उत्पादों और सेवाओं का हस्तांतरण ही अंतर्राष्ट्रीय व्यापार है. स्थानीय व्यापार की तुलना में, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार करना एक जटिल कार्य है. मुद्रा, सरकारी नीतियां, अर्थव्यवस्था, कानूनी प्रणाली, कानून और बाजार, इन सभी का दो या दो से अधिक देशों के बीच वाणिज्य पर प्रभाव पड़ता है.
एक उत्पाद जो एक देश की इकाई से दूसरे देश के ग्राहक को विनिमय या बेचा जाता है, वह मूल देश से निर्यात और प्राप्तकर्ता देश के लिए आयात है. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के परिणामस्वरूप उपभोक्ता और देश नए बाजारों और उत्पादों के संपर्क में आते हैं. भोजन, कपड़े, आभूषण, शराब, स्पेयर पार्ट्स, स्टॉक, तेल, मुद्राएं और पानी अंतरराष्ट्रीय बाजार में उपलब्ध उत्पादों के कुछ उदाहरण हैं. पर्यटन, बैंकिंग, परामर्श और परिवहन सभी आदान-प्रदान की जाने वाली सेवाओं के उदाहरण हैं.
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार प्रणाली उन्नत प्रौद्योगिकी, परिवहन, वैश्वीकरण, औद्योगीकरण, आउटसोर्सिंग और बहुराष्ट्रीय उद्यमों से प्रभावित है. यदि आप किसी दुकान में जा सकते हैं और भारतीय केले, ब्राजीलियाई कॉफी और इतालवी शराब की एक बोतल पा सकते हैं, तो आप अंतरराष्ट्रीय व्यापार के प्रभावों का अनुभव कर रहे हैं. अंतर्राष्ट्रीय व्यापर देशों को अपने बाज़ार बढ़ाने और उन वस्तुओं और सेवाओं तक पहुंच प्राप्त करने में सक्षम बनाता है, जो उनके अपने देश में अनुपलब्ध हो सकती हैं. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के परिणामस्वरूप बाजार अधिक प्रतिस्पर्धी हो गया है जिससे अधिक प्रतिस्पर्धी मूल्य निर्धारण होता है, और उपभोक्ता को काफी कम लागत वाला उत्पाद प्राप्त होता है.
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रकार (Types of International Trade in Hindi)
वस्तुतः अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रकार को व्यक्त करना संभव नहीं है. लेकिन अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के अवयवों के आधार पर इसे निम्न प्रकार में विभाजित किया जा सकता है.
- वस्तुओं का व्यापार: यह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का सबसे आम रूप है. इसमें एक देश से दूसरे देश में उत्पादों (जैसे कृषि व प्राद्यौगिकी उत्पाद) का आयात और निर्यात शामिल है.
- सेवाओं का व्यापार: इसमें परिवहन, पर्यटन, बैंकिंग, बीमा, वित्तीय सेवाएं और अन्य सेवाओं का आदान-प्रदान शामिल है. ये सेवाएं भी अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का हिस्सा होते है. जैसे निर्यातित किए जा रहे वस्तु का बीमा इत्यादि.
- पूंजी का व्यापार: इसमें प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI), पूंजी बाजार निवेश और अन्य प्रकार के वित्तीय प्रवाह शामिल हैं. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का यह रूप आधुनिक युग में सामने आया है.
- प्रौद्योगिकी का व्यापार: इसमें नवीनतम प्रौद्योगिकियों, प्रक्रियाओं और ज्ञान का आदान-प्रदान शामिल है.
वस्तु और सेवा के प्रवाह के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के तीन प्रकार होते है-
- आयात (Import)- जब अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में एक देश में विश्व के किसी अन्य देश में उत्पादित वस्तु को उस देश या उस देश में स्थित निर्माता से खरीदता है, तो इस खरीद को आयात कहा जाता है और खरीदने वाला देश आयातक कहा जाता है.
- निर्यात (Export)- अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का वह रूप जिसमें कोई देश या देश में स्थित फर्म अपने देश में उत्पादित वस्तुओं को विश्व के किसी अन्य देश को बेचता है तो यह बिक्री निर्यात कहलाता है और बेचने वाला देश निर्यातक कहा जाता है.
- एंट्रेपोट व्यापार (Entrepot Trade)- इस प्रकार के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में पहले किसी वस्तु का आयात किया जाता है, फिर उसका मरम्मत कर या उससे नया उत्पाद तैयार कर निर्यात कर दिया जाता है. जैसे भारत द्वारा मोबाईल के पुर्जो का आयात कर उपभोग लायक मोबाईल तैयार करना, फिर इसे विश्व बाजार में बेच दिया जाना एंट्रेपोट का उदाहरण है. भारत में मोबाईल के कलपुर्जे जुड़ने से इसका कीमत बढ़ने के साथ ही लोगों को रोजगार मिल जाता है, जिसकी वसूली विश्व बाजार में तैयार मोबाईल बेचकर किया जाता ही. अक्सर इस तरह का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का कारण विकसित देशों में मानव संसाधन की कमी या मानव श्रम का महंगा होना होता है.
घरेलु और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अंतर (Difference between Domestic and International Trade in Hindi)
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का उद्भव और इतिहास (Evolution and History of International Trade in Hindi)
दुनिया में व्यापार का शुरुआत आवागमन के साथ हुआ माना जाता है. जब लोग एक इलाके से दूसरे इलाके में जाते थे, तो अपने वस्तुओं के बदले दूसरे खाद्य व अन्य जरूरी वस्तुएं प्राप्त करते थे. इसी से व्यापार का शुरुआत हुआ. इसी दौर में विभिन्न संस्कृतियों का सम्पर्क हुआ, जब ये संस्कृतिया आपस में संपर्क में आए, तो इनके बीच वस्तुओं का आदान प्रदान होने लगा. इस तरह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का उद्भव हुआ.
आरम्भ में माल को पैदल, घोड़े या ऊंटों पर ढ़ोया जाता था. इस तरह के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का एक महत्वपूर्ण प्रारंभिक उदाहरण सिल्क रोड (रेशम मार्ग) है, जो चीन को मध्य पूर्व और यूरोप से जोड़ता था. यह मार्ग 130 ईसा पूर्व में खोजा गया था और अगले कई सौ वर्षों तक अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए एक महत्वपूर्ण मार्ग बना रहा. सिल्क रोड के माध्यम से, चीन से रेशम, चाय मसाले, कीमती पत्थर और अन्य सामान मध्य पूर्व और यूरोप में भेजे गए, जबकि इन क्षेत्रों से धातु, कांच और अन्य सामान चीन भेजे गए.
इसे मूल रूप से चीन के हान राजवंश के द्वारा बनाया गया था. यूरोपीय यात्री मार्को पोलो (1254-1324 CE) ने इस मार्ग से अपना यात्रा संपन्न किया था और इसे अपने यात्रा वृतांत में स्थान दिया है.
सिल्क रोड का एक हिस्सा भारत को भी यूरोप और मध्य पूर्व से जोड़ता था. तिब्बत के ल्हासा से होते हुए भारत के नाथुला दर्रे से होकर सिक्किम को यह जोड़ता था. भारत के कई राज्यों में इसकी उपशाखा फैली थी, जहां अनेक बुद्धिस्ट विहार भी पाए गए है.
प्राचीन रेशम मार्ग भारत के सात मुख्य राज्यों – बिहार, जम्मू और कश्मीर, महाराष्ट्र, पुडुचेरी, पंजाब, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश (और वर्तमान उत्तराखंड) से गुजरते थे. इस मार्ग में कुल 12 मुख्य स्थल स्थित हैं – प्राचीन वैशाली के खंडहर (बिहार), विक्रमशिला प्राचीन विश्वविद्यालय के अवशेष (बिहार), कुशीनगर (यूपी), श्रावस्ती (यूपी), कौशांबी (यूपी), अहिच्छत्र (यूपी), प्राचीन स्थल और बौद्ध स्तूप (पंजाब), अरिकामेडु (पुडुचेरी), उत्खनन के बौद्ध अवशेष कावेरीपट्टिनम (तमिलनाडु) के अवशेष, हरवान (जम्मू और कश्मीर), बुरुद कोट (महाराष्ट्र), और इंद्रप्रस्थ (दिल्ली) में प्राचीन मठ और स्तूप इत्यादि. ये स्थल यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों की अस्थायी सूची में भी शामिल हैं.
मध्य युग में यूरोप में राजनीतिक अस्थिरता और महामारी फैल गई. इसके कारण अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में गिरावट आई. हालांकि, 15वीं और 16वीं शताब्दी में यूरोपीय खोजकर्ताओं ने नए महाद्वीपों की खोज की, जिससे व्यापारिक मार्गों में विस्तार हुआ. इस अवधि के दौरान, यूरोपीय शक्तियों ने दुनिया भर में उपनिवेश स्थापित किए, जिससे इन क्षेत्रों से कच्चे माल और अन्य सामानों का आयात करने का रास्ता खुल गया.
उपनिवेशवाद के बढ़ने के साथ ही दक्षिण अफ्रीका में लोगों को कैद कर गुलाम बनाया जाने लगा. इन्हें अमेरिका के बागानों में ऊँचे कीमतों पर बेचा जाने लगा. आगे चलकर, 12 अप्रैल 1861 – 9 अप्रैल 1865 के दौरान अमेरिका में इसी दास प्रथा के खिलाफ गृह युद्ध भी हो गया.
18वीं शताब्दी में यूरोप में औद्योगिक क्रांति हुए. इससे यूरोप में अतिरिक्त उत्पादन होने लगा, जिसे अंतर्राष्ट्रीय बाजारों और औपनिवेशिक राज्यों में बेचा जाने लगा. साथ ही, आधुनिक उद्योगों को अत्यधिक कच्चे माल की जरूरत थी, जिसे उपनिवेशों से पुरा किया गया. इस तरह मध्यकाल के आखिरी समय में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को काफी बढ़ावा मिला. हम कह सकते है कि औद्योगिक क्रान्ति ने उपनिवेश को जन्म दिया.
20वीं शताब्दी में हुए दो विश्व युद्धों ने अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बाधित किया. हालांकि दोनों युद्धों के बाद अधिकांश उपनिवेश स्वतंत्र हो गए और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में तेजी से वृद्धि हुई. संयुक्त राष्ट्र संघ के स्थापना ने विश्व के राष्ट्रों में आपसी समझ और सहयोग के वातावरण का विकास किया था. इससे विश्व के कई देशों के बीच व्यापारिक संबंध स्थापित हुए. अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक समझौतों और नए स्थापित अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, जैसे कि विश्व व्यापार संगठन (WTO), ने व्यापार को प्रोत्साहित कर बाधाओं को कम किया है.
आज के समय में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. अधिकांश देश निर्यात और आयात से जुड़े है, जिससे वैश्विक बाजारों पर इनकी निर्भरता बढ़ गई है. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार ने लोगों को विभिन्न संस्कृतियों और उत्पादों को जानने का अवसर दिया है. इस तरह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार आर्थिक विकास और समृद्धि को बढ़ावा देने में मदद कर रहा है.
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के उद्देश्य (Objective of International Trade in Hindi)
किसी भी व्यापार का सबसे प्रमुख उद्देश्य राजस्व बढ़ाने के लिए अधिक से अधिक उत्पाद और सेवाएँ बेचकर अधिकतम लाभ कमाना होता है. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कारोबारियों के इसी उद्देश्य को पूरा करता है. अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों तक पहुंच के परिणामस्वरूप कंपनी के उत्पादों या सेवाओं के उपभोक्ता आधार में विस्तार होता है. सूची में जोड़ा गया प्रत्येक राष्ट्र निगमों के लिए नई आय के अवसरों और व्यावसायिक सफलता का द्वार प्रशस्त करता है.
उपभोक्ता के दृष्टिकोण से, एक व्यक्ति जिस उद्देश्य का पीछा करता है वह अधिकतम उपयोगिता या संतुष्टि है और यह उपभोक्ता को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के माध्यम से पूरा किया जा सकता है. चूंकि उपभोक्ता को घरेलू बाजार में उपलब्ध विकल्पों की तुलना में कम कीमत पर उत्पादों और सेवाओं तक पहुंच मिलती है, इसलिए उपभोक्ता की मेहनत की कमाई का उपयोग अधिकतम हो जाता है.
कोई देश अपने नागरिकों द्वारा आवश्यक और वांछित सभी उत्पादों, वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन नहीं कर सकता है. लेकिन अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के अस्तित्व के कारण इनका आयात कर आपूर्ति को सुचारु रखा जा सकता है. आयातक देश अपने विशेषज्ञता वाले वस्तुओं का अधिक से अधिक निर्यात कर इस नुकसान का भरपाई कर सकता है. इस तरह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से मांग और आपूर्ति में संतुलन स्थापित होता है.
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और वाणिज्य कई देशों की अर्थव्यवस्थाओं को एक साथ लाकर वैश्वीकरण को बढ़ावा देते हैं. यह राष्ट्रों के बीच वाणिज्यिक संबंधों के विकास के माध्यम से विश्व शांति स्थापित करने में मदद करता है. जैसे-जैसे विभिन्न राज्यों के बीच अधिक व्यापार का एहसास होता है, राज्य एक-दूसरे के साथ युद्ध में जाने के लिए अधिक अनिच्छुक हो जाते हैं जिसके परिणामस्वरूप संबंधित देशों के नागरिकों के बीच शांतिपूर्ण और सामंजस्यपूर्ण संबंधों में अंतर-राष्ट्रीय सामाजिक और सांस्कृतिक प्रबंधन को बढ़ावा मिलता है.
दूसरी तरफ, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के माध्यम से नए और उन्नत प्राद्यौगिकी का भी कारोबार होता है. भारत द्वारा राफेल विमान का खरीद इसी का एक उदाहरण है. साथ ही, अंतर्राष्ट्रीय आयात-निर्यात से उपभाक्ताओं को कई विकल्प मिलते है. इससे स्थानीय उद्योग सस्ते कीमत पर अधिक गुणवत्तापूर्ण माल, वस्तुएं व सेवाएं तैयार करने को तत्पर रहते है, ताकि उपभोक्ता स्थानीय उत्पादों व सेवाओं से विमुख न हो. इसलिए उपभोक्ता के दृष्टिकोण से भी अंतर्राष्ट्रीय व्यापार लाभदायक है.
कई बार किसी देश में किसी वस्तुओं का अत्यधिक उत्पादन हो जाता है. इसके खपत के लिए अंतर्राष्ट्रीय बाजार एक विकल्प बन जाते है. किसी वस्तु के देश में कमी होने पर, इसका आयात कर इस कमी को पुरा कर लिया जाता है. इस तरह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मांग और आपूर्ति में संतुलन बनाकर, कीमतों में अत्यधिक उछाल या कमी को होने से रोक लेता है.
सरकारें भी अपने देश में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देने के लिए अक्सर बड़े कदम उठाती है. इसके निम्न उद्देश्य होते है-
- आर्थिक समृद्धि की प्राप्ति: अपने देश को विकासशील व अल्प-विकसित देश के श्रेणी से विकसित देश के श्रेणी में ले जाने के लिए सरकारें अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और निर्यात को प्रोत्साहित करती है.
- सामर्थ्य विकास: अंतर्राष्ट्रीय व्यापार हर देश अपने श्रेष्ठतम क्षमताओं और कौशल का उपयोग करने का अवसर देता है. किसी उत्पाद या सेवा में अत्यधिक सामर्थ्य को अंतररष्ट्रीय व्यापार में खपा दिया जाता है. इससे देश आर्थिक मानकों में उच्चतम स्थान प्राप्त कर सकता है.
- विश्वास और सहयोग: अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समझौते दो या दो से अधिक देशों के बीच सम्पन्न होते है, जो इनके बीच विश्वास और सहयोग कायम कर वैश्विक शांति स्थापित करता है.
- अधिकार और कर्तव्यों का संरक्षण: अंतर्राष्ट्रीय समझौते के साथ ही उत्पादों के गुणवत्ता और उत्पादन प्रक्रिया से जुड़े समझौते भी होते है, जो उपभोक्ता अधिकारों को संरक्षित करता है.
- रोज़गार सृजन: अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के माध्यम से नए रोज़गार के अवसर पैदा होते हैं. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के गतिविधियां अतिरिक्त रोजगार का सृजन कर बेरोजगारी को दूर करते है.
व्यापारिक समझौते और अंतर्राष्ट्रीय संबंध (Trade Agreement and International Relationship)
व्यापारिक समझौता दो या दो से अधिक देशों के बीच व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिए किया जाता है. इसमें आमतौर पर सीमा शुल्क और अन्य व्यापार बाधाओं को कम या समाप्त करके व्यापार को प्रोत्साहित करने के नियम और शर्ते होते है. इससे समझौते में शामिल देशों के बीच भरोसा कायम होता है कि इनके बीच अब नियमानुसार कारोबार होंगे और एक-दूसरे का अहित नहीं करेंगे. इस तरह यह अविश्वास समाप्त कर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ता है. इस तरह ये समझौते व्यापार बाधाओं को कम करके, आर्थिक विकास और समृद्धि को बढ़ावा देते हैं.
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार समझौतों का वर्गीकरण (Classification of International Trade Agreements)
वैश्विक स्तर पर कई तरह के व्यापार समझौते किए जाते है. कई बार एक व्यापारिक या राजनैतिक समझौते से बंधा समूह भी किसी देश के साथ समझौता करता है. अंतरराष्ट्रीय व्यापार समझौतों को उनकी व्यापकता और शामिल किए गए क्षेत्रों के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है. इसके कुछ सामान्य प्रकार में शामिल हैं:
- प्रोत्साहन व्यापार समझौता (PTA): इस तरह के समझौते दो या दो से अधिक देशों के बीच व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिए किया जाता है. यह आमतौर पर सहमत हुए सेवाओं और उत्पादों पर व्यापार शुल्क, सीमा शुल्क और अन्य व्यापार बाधाओं को कम या समाप्त करके व्यापार को प्रोत्साहित करता है.
- मुक्त व्यापार समझौता (FTA): यह भी एक प्रकार का प्रोत्साहन व्यापार समझौता है जो शुल्क और सीमा शुल्क को पूरी तरह समाप्त करता है. इसमें आर्थिक विकास और समृद्धि को बढ़ावा देने के लिए भी ख़ास उपबंध होते है. सूचि में शामिल वस्तुओं पर शुल्क नियमानुसार समाप्त कर दिए जाते है.
- व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता (CECA): यह एक व्यापक आर्थिक सहयोग के विशेषता युक्त मुक्त व्यापार समझौता है; जो निवेश, सेवाओं, पेटेंट, और अन्य क्षेत्रों में भी सहयोग को बढ़ावा देता है. इसे आर्थिक एकीकरण और सहयोग को बढ़ावा देने के लिए डिज़ाइन किया गया है. इसी के अनुरूप व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (CEPA) और आर्थिक भागीदारी समझौता (EPA) भी किए जाते है.
- सीमा शुल्क संघ (CU): यह दो या दो से अधिक देशों का समूह है जो एक सामान्य सीमा शुल्क प्रणाली साझा करते है. इस संघ में शुल्क और सीमा शुल्क को समाप्त करके और सदस्य देशों के बीच व्यापार को बढ़ावा दिया जाता है.
- सामान्य बाजार (CM): यह एक प्रकार का सीमा शुल्क संघ है जो श्रम और पूंजी की मुक्त आवाजाही की अनुमति देता है. आर्थिक एकीकरण और सहयोग इसकी खासियत है.
- आर्थिक संघ (EU): यह एक प्रकार का सामान्य बाजार है जो एक एक ही मौद्रिक और आर्थिक नीति साझा करता है. इसका लक्ष्य आर्थिक एकीकरण और सहयोग को बढ़ावा देना होता है.
अंतरराष्ट्रीय व्यापार समझौतों को उनके दायरे और शामिल किए गए क्षेत्रों के आधार पर भी वर्गीकृत किया जा सकता है. कुछ सामान्य वर्गीकरणों में शामिल हैं:
- क्षेत्रीय व्यापार समझौता (RTA): यह दो या दो से अधिक देशों के बीच एक क्षेत्रीय स्तर पर व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिए किया जाता है.
- बहुपक्षीय व्यापार समझौता (MTA): यह कई देशों के बीच वैश्विक स्तर पर व्यापार को सुविधाजनक बनाता है.
विश्व के महत्वपूर्ण व्यापारिक समझौते और ब्लॉक
क्र. सं. | व्यापारिक समूह | मुख्यालय | स्थापना वर्ष | सदस्य | पूरा नाम |
1 | आसियान (ASEAN) | जकार्ता, इंडोनेशिया | 1967 | इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड, ब्रुनेई, वियतनाम, लाओस, म्यांमार, कंबोडिया | Association of Southeast Asian Nations |
2 | सीस (CIS) | मिन्स्क, बेलारूस | 1991 | आर्मेनिया, अज़रबैज़ान, बेलारूस, जॉर्जिया, कज़ाख़स्तान, कीर्गिस्तान, मोल्दोवा, रूस, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, यूक्रेन और उज़्बेकिस्तान | Commonwealth of Independent States |
3 | यूरोपीय यूनियन (ईयू) | ब्रुसेल्स, बेल्जियम | 1 नवंबर 1993, मास्ट्रिच, नीदरलैंड | जर्मनी, डेनमार्क, लक्समबर्ग, बेल्जियम, आयरलैंड, फ्रांस, इटली, नीदरलैंड, पुर्तगाल, ग्रीस, स्पेन, फिनलैंड, स्वीडन, ऑस्ट्रिया, साइप्रस, लातविया, चेक गणतंत्र, पोलैंड, एस्टोनिया, हंगरी, क्रोएशिया, लिथुआनिया, रोमानिया, माल्टा, स्लोवाकिया, स्लोवेनिया, बुल्गारिया | European Union |
4 | लैटिन अमेरिका एकीकरण संघ (LAIA) | मोंटेवीडियो, उरुग्वे | 1960 | अर्जेंटीना, बोलीविया, ब्राजील, चिली, कोलंबिया, क्यूबा, इक्वाडोर, मेक्सिको, पनामा, पराग्वे, पेरू, उरुग्वे और वेनेजुएला | Latin America Integration Association |
5 | उत्तरी अमेरिका मुक्त व्यापार संघ (NAFTA) | 1 जनवरी 1994, 1 जुलाई 2020 को यूएसएमसीए लागू द्वारा प्रतिस्थापित | संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और मैक्सिको | North America Free Trade Agreement, United States – Mexico – Canada Agreement (USMCA) | |
6 | ओपेक (OPEC) | वियना, ऑस्ट्रिया | 1949 | सऊदी अरब, अल्जीरिया, ईरान, ईराक, कुवैत, अंगोला, संयुक्त अरब अमीरात, नाइजीरिया, लीबिया तथा वेनेजुएला, गबोन, गिनी, कांगो | Organisation of Petrolium Exporting Countries |
7 | साफ्टा (SAFTA) | जनवरी, 2006 | बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका | South Asian Free Trade Agreement | |
8 | मर्कोसुर (MERCOSUR) | मोंटेवीडियो, उरुग्वे | 26 मार्च 1991 | अर्जेंटीना, ब्राज़ील, पैराग्वे और उरुग्वे | Mercado Común del Sur (Southern Common Market) |
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में भारत की स्थिति (Position of India in International Trade)
भारत का व्यापार घाटा वित्त वर्ष 2022-23 में 39% बढ़कर रिकॉर्ड 266.78 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है, जबकि वर्ष 2021-22 में यह 191 बिलियन अमेरिकी डॉलर था. इस दौरान भारत के आयात में 16.51% की वृद्धि जबकि निर्यात में मात्र 6.03% की वृद्धि दर्ज कि गई. इस तरह कुल व्यापार घाटा साल 2021-22 के 83.53 बिलियन अमेरिकी डॉलर के तुलना में साल 2022-23 में बढ़कर 122 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया.
भारत के मुख्य व्यापारिक उत्पाद
भारत से इंजीनियरिंग वस्तुएँ, कृषि उत्पाद (चावल मुख्य), वस्त्र और परिधान, फार्मास्यूटिकल्स और ड्रग्स तथा रसायन मुख्य तौर पर निर्यात किए जाते है. कच्चा तेल, सोना, मोती, कीमती पत्थर, पेट्रोलियम उत्पाद, दूरसंचार उपकरण, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, औद्योगिक मशीनरी, इलेक्ट्रॉनिक पार्ट्स, पशु / वनस्पति वसा, तेल, मोम, प्लास्टिक और चिकित्सा उपकरण अन्य उत्पाद है जिनका भारत निर्यात करता है.
वहीं, आयात की बात करे तो भारत कच्चा तेल, सोना, मोती, कीमती पत्थर, पेट्रोलियम उत्पाद, दूरसंचार उपकरण, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, औद्योगिक मशीनरी, इलेक्ट्रॉनिक पार्ट्स, कंप्यूटर, मोबाइल, पशु / वनस्पति वसा, तेल, मोम, प्लास्टिक, चिकित्सा उपकरण और उद्योगों के लिए जरूरी कच्चे माल इत्यादि का मुख्यतः आयात करता है.
मुख्य व्यापारिक साझेदार (Main Trade Partners of India in Hindi)
भारत ने वित्तीय वर्ष 2022-2023 में लगभग 450 बिलियन डॉलर का माल निर्यात किया. समान वित्तीय वर्ष में लगभग 323 बिलियन डॉलर का सेवा निर्यात किया गया. इसी दौरान अमेरिका ने चीन को पछाड़कर भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार का दर्जा हासिल किया. इस वर्ष भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार 7.65 फीसदी बढ़कर 128.55 बिलियन डॉलर हो गया. पिछले वित्तीय वर्ष 2021-22 में यह 119.5 बिलियन डॉलर, जबकि 2020-21 में 80.51 अरब डॉलर का था.
2022-23 में भारत से अमेरिका में निर्यात 2.81 फीसदी बढ़कर 78.31 बिलियन डॉलर का रहा. यह साल 2021-22 में 76.18 बिलियन डॉलर था. वहीं, आयात लगभग 16 फीसदी बढ़कर 50.24 बिलियन डॉलर हो गया. आयात और निर्यात में इस बढ़ोतरी ने अमेरिका को एक बार फिर से भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना दिया.
वित्त वर्ष 2022-23 में चीन और भारत का द्विपक्षीय व्यापार 113.83 बिलियन डॉलर पर आ गया, जो वर्ष 2021-22 के 115.42 बिलियन डॉलर के मुकाबले लगभग 1.5 फीसदी कम है. 2022-23 में भारत द्वारा चीन को निर्यात 28 प्रतिशत घटकर 15.32 अरब डॉलर रह गया. इसी वित्त वर्ष में भारत द्वारा चीन से आयात 4.16 प्रतिशत बढ़कर 98.51 अरब डॉलर हो गया. इसके कारण 2021-22 में 72.91 बिलियन डॉलर का व्यापार घाटा बढ़कर 83.2 बिलियन डॉलर हो गया.
चीन साल 2013-14 से 2017-18 तक और 2020-21 में भारत का शीर्ष व्यापारिक भागीदार रहा था. चीन से पहले संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार था. यूएई से पेट्रोलियम आयात के अधिकता के कारण भारत का मुख्य साझेदार था. किन्तु अब स्तिथि में बदलाव आ गया है, और भारत के शीर्ष 10 व्यापारिक साझेदार इस प्रकार है-
क्र. सं. | देश | निर्यात | आयात | कुल व्यापार | व्यापार अधिशेष |
1 | संयुक्त राज्य अमेरिका | 71.39 | 46.82 | 118.21 | 24.57 |
2 | चीन | 13.6 | 90.72 | 104.32 | -77.12 |
3 | संयुक्त अरब अमीरात | 28.76 | 48.88 | 77.64 | -20.12 |
4 | सऊदी अरब | 9.69 | 38.62 | 48.32 | -28.93 |
5 | रूस | 2.8 | 41.56 | 44.37 | -38.75 |
6 | इंडोनेशिया | 9.06 | 26.89 | 35.95 | -17.83 |
7 | इराक | 2.33 | 31.52 | 33.86 | -29.18 |
8 | सिंगापुर | 11 | 21.7 | 32.7 | -10.7 |
9 | हांगकांग | 9.36 | 16.31 | 25.68 | -6.95 |
10 | दक्षिण कोरिया | 6.1 | 19.26 | 25.35 | -13.16 |
भारत के मुख्य व्यापारिक समझौते (Trade Agreements of India in Hindi)
हमारे देश ने नवंबर 2019 में क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) से बाहर निकलने के फैसला किया. लेकिन उसके बाद भी कुछ व्यापारिक समझौते किए गए है. यह भारत के व्यापारिक भागीदारों में परिवर्तन व समयानुकूल बदलाव को दर्शाता है. भारत द्वारा निन्मलिखित व्यापारिक समझौते किए गए है-
- भारत-श्रीलंका मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए)
- दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र (साफ्टा) पर समझौता – भारत, पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, भूटान, मालदीव और अफगानिस्तान शामिल
- भारत-नेपाल व्यापार संधि
- व्यापार, वाणिज्य और पारगमन पर भारत-भूटान समझौता
- भारत-थाईलैंड एफटीए – प्रारंभिक फसल योजना (ईएचएस)
- भारत-सिंगापुर व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता (CECA)
- भारत-आसियान सीईसीए – वस्तुओं, सेवाओं और निवेश में व्यापार समझौता – ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम का भारत से समझौता
- भारत-दक्षिण कोरिया व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौता (CEPA)
- भारत-जापान सीईपीए (India-Japan CEPA)
- भारत-मलेशिया सीईसीए (India-Malaysia CECA)
- भारत-मॉरीशस व्यापक आर्थिक सहयोग और साझेदारी समझौता (CECPA)
- भारत-यूएई सीईपीए (India-UAE CEPA)
- भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौता (ECTA)
इसके अलावा भारत ने 6 तरजीही व्यापारिक समझौते (पीटीए) पर हस्ताक्षर किए है-
- एशिया प्रशांत व्यापार समझौता (एपीटीए) – Asia Pacific Trade Agreement (APTA)
- व्यापार प्राथमिकता की वैश्विक प्रणाली (जीएसटीपी) – Asia Pacific Trade Agreement (APTA)
- सार्क तरजीही व्यापार समझौता (साप्ता) – SAARC Preferential Trading Agreement (SAPTA)
- भारत-अफगानिस्तान पीटीए – India-Afghanistan PTA
- भारत-मर्कोसुर पीटीए – India-MERCOSUR PTA
- भारत-चिली पीटीए – India-Chile PTA
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के विभिन्न सिद्धांत कौन से है (What are different International Trade Theories)?
लगभग 5,200 साल पहले दक्षिणी मेसोपोटामिया में उरुक संभवतः दुनिया का पहला व्यापारिक शहर था, जिसकी छह मील की दीवार के भीतर 50,000 से अधिक लोग रहते थे. उरुक ने परिष्कृत सिंचाई नहरों द्वारा अपने कृषि को समृद्ध बनाया गया था. यहां बिचौलियों यानि व्यापार मध्यस्थों के अनेक घर था. यहां के सहकारी व्यापार नेटवर्क ने वह पैटर्न स्थापित किया जो अगले 6,000 वर्षों तक कायम रहेगा. यहीं से व्यापार के इतिहास का शुरुआत माना जाता है.
आधुनिक अंतर्राष्ट्रीय व्यापार सिद्धांत का उदय साम्राजयवाद के साथ जुड़ा है. साम्राज्यवाद दूसरे देशों के धन को अपने देश में लाने के लिए व्यापार का सहारा लिया. इसमें ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी व डच मुख्य है. इन देशों के व्यापारियों के लाभ कमाने के लालसा को स्थानीय सरकारों ने भी सराहा और संरक्षण दिया. इस तरह संरक्षित अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का वैश्वीकरण हुआ.
आरम्भ में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर देश का साया बना रहा. इसलिए इस युग के सिद्धांतों को शास्त्रीय या देश आधारित सिद्धांत कहा जा सकता है. बीसवीं सदी के मध्य में व्यापार पर निजी निगमों का आधिपत्य कायम हुआ. इस दौर के सिद्धांतों को हम आधुनिक व्यवसाय सिद्धांत द्वारा संचालित अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कह सकते है. तो आइए हम दोनों युगों के सिद्धांतों का एक-एक कर अध्ययन करते है.
शास्त्रीय या देश-आधारित सिद्धांत (Classical or Country based theories in Hindi)
इस सिद्धांत के समर्थक व्यापारिक कंपनियों के तुलना में राष्ट्र के सम्पत्ति में वृद्धि पर जोर देते थे. इसके लिए व्यापार को जरिया बनाया गया. इनके अनुसार व्यापार इस तरह हो जिससे देश का धन बाहर कम जाएं और देश के अंदर अधिक रहे. इस सिद्धांत में सोने और चाँदी को धन माना गया.
आधुनिक युग में यह सिद्धांत व्यापारिक संतुलन के रूप में मौजूद है. चीन, जापान जापान, चीन, सिंगापुर, ताइवान और यहां तक कि जर्मनी जैसे देश आज भी राष्ट्र के व्यापार सरप्लस पर जोर देते है और कामयाब भी है. इस सिद्धांत में निम्न सिद्धांत आते है-
व्यापारवाद या वाणिज्यवाद (Mercantilism in Hindi)
इस सिद्धांत पर आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का विकास सोलहवीं और सत्रहवीं सदी के दौरान पश्चिमी यूरोप के औद्योगिक देशों में हुआ. यह अठारवीं सदी के मध्य तक एडम स्मिथ के द वेल्थ ऑफ़ नेशंस के प्रकाशन तक प्रभाव में रहा. इस सिद्धांत को थॉमस मून द्वारा दिया गया था.
इस सिद्धांत के पैरोकार मानते थे कि सोना और चांदी राष्ट्रीय संपत्ति की सबसे महत्वपूर्ण इकाई है. उन्होंने तर्क दिया कि व्यापार के माध्यम से सोना और चांदी जमा करने से एक देश अमीर होगा. इसलिए, व्यापारवादी सरकारों ने आयात को प्रतिबंधित करने और निर्यात को बढ़ावा देने के लिए नीतियों को अपनाया.
यह सिद्धांत सबसे पहले 16वीं शताब्दी में इटली में विकसित हुआ और अपनाया गया. 18वीं शताब्दी तक यह पूरे यूरोप में फैल गया था. व्यापारवाद के सिद्धांत के कुछ प्रमुख अवयव इस प्रकार हैं:
- सोने और चांदी: इनका मानना था कि वास्तविक धन सोने, चांदी, हीरे, जवाहरात, बहुमूल्य रत्न ही है. ये सब न तो नाशवान हैं और न परिवर्तनशील. इनके भंडार राजशक्ति के प्रतीक हैं. इसी से युद्ध सामग्री प्राप्त कर देश को आंतरिक शांति और बाह्य खतरों से सुरक्षित किया जा सकता है. इन रत्नों के प्राप्ति के लिए अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का सहारा लेने का सलाह व्यापारवादियों ने दिया.
- आयात प्रतिबंध: व्यापारवादी सरकारें अक्सर आयात को प्रतिबंधित करने और निर्यात को बढ़ावा देने के लिए नीतियों को अपनाया. उन्होंने तर्क दिया कि आयात प्रतिबंध देश में सोने और चांदी को बचाने में मदद करते हैं और निर्यात से अतिरिक्त सोने-चाँदी प्राप्त होते है.
- अतिरेक उत्पादन: धन के प्राप्ति के लिए आयात से अधिक निर्यात को जरुरी माना गया. इसके लिए वस्तुओं का अतिरिक्त उत्पादन जरूरी था. वाष्प इंजन ने अधिक उत्पादन को संभव बना दिया और व्यापरवादी सिद्धांत को सफल बना डाला.
- स्व-निर्भरता को बढ़ावा: व्यापारवादियों का मानना था कि एक देश को अपनी सभी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आवश्यक सभी वस्तुओं का उत्पादन करना चाहिए. उन्होंने तर्क दिया कि स्व-निर्भरता देश को अन्य देशों पर निर्भरता से बचाती है और धन बाहर नहीं जाता है.
- सरकारी नियंत्रण को बढ़ावा: व्यापारवादियों का मानना था कि सरकार को व्यापार को नियंत्रित करना चाहिए ताकि यह देशों के हितों में हो. उन्होंने तर्क दिया कि सरकार व्यापार को ऐसे तरीके से निर्देशित कर सकती है जो देश को अधिक धनी और शक्तिशाली बनाए.
- बड़ी आबादी: देश का विशाल जनसंख्या श्रम शक्ति की आपूर्ति करने, घरेलू वाणिज्य का समर्थन करने और सेनाओं को बनाए रखने का अभिन्न अंग था. इसके अभाव में देश के व्यापार को संरक्षित करना मुश्किल होगा, इसलिए व्यापरवादियों द्वारा देश में आबादी बढ़ाने पर जोर दिया गया.
व्यापारवाद का प्रभाव
इस सिद्धांत के तहत किए गए अंतर्राष्ट्रीय व्यापार ने सम्पूर्ण यूरोपीय इतिहास पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला. इसने यूरोपीय शक्तियों के बीच प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दिया. यह औपनिवेशिक विस्तार का एक महत्वपूर्ण कारण था. ब्रिटिश व अन्य यूरोपियन सरकारों के कॉलोनियों का इस्तेमाल इस सिद्धांत के तहत किया गया. नतीजतन ये उपनिवेश धीरे-धीरे गरीब और कमजोर होते गए. औपनिवेशिक शासकों ने अपने मूल देशों के व्यापार को संरक्षण दिया, जिससे उपनिवेशों का शोषण होने लगा.
भारत भी व्यापारवादी सिद्धांत का शिकार बन गया. इस सिद्धांत के प्रभाव काल में भारत में ब्रिटेन द्वारा तैयार माल बेचा जाता था. वापस जाते वक्त ब्रिटिश जहाज भारत से कच्चा माल ले जाते थे. ये कच्चे माल भी स्थानीय राजस्व से एकत्रित धन से ख़रीदे जाते थे. इस तरह ब्रिटिश सरकार को न के बराबर भुगतान करना पड़ता था. इस तरह के निति को संरक्षणवादी (प्रोटेक्शनिस्ट) भी सिद्धांत कहा जाता है. आज भी दुनिया के अधिकांश देश किसी न किसी रूप में इस नीति को अपनाए हुए है.
18वीं शताब्दी के दौरान, व्यापारवाद की आलोचना शुरू हुई. एडम स्मिथ और अन्य अर्थशास्त्रियों ने तर्क दिया कि व्यापारवाद आर्थिक विकास को बाधित करता है. फिर, 19वीं शताब्दी के दौरान, व्यापारवादी नीतियों को धीरे-धीरे उदार व्यापार नीतियों से बदल दिया गया.
व्यापारवाद बनाम साम्राज्यवाद (Mercantilism vs. Imperialism)
व्यापारवाद एक आर्थिक विचारधारा है, जो एक देश की संपत्ति को बढ़ाने के लिए व्यापार पर जोर देती है. दूसरी तरफ, साम्राज्यवाद एक राजनीतिक और आर्थिक प्रणाली है जो एक शक्तिशाली देश द्वारा कमजोर देशों के नियंत्रण पर आधारित है.
व्यापारवादी सरकारें आयात को प्रतिबंधित करने और निर्यात को बढ़ावा देने के लिए नीतियों को अपनाती हैं. वे अक्सर सरकारी सहायता और सब्सिडी के माध्यम से अपने उद्योगों को भी बढ़ावा देते हैं. साम्राज्यवादी सरकारें सैन्य बल और बड़े पैमाने पर आप्रवासन का उपयोग करती हैं ताकि कम विकसित क्षेत्रों पर अपना नियंत्रण बनाए रख सकें.
वाणिज्यवाद और साम्राज्यवाद के बीच कुछ महत्वपूर्ण अंतर इस प्रकार हैं:
- उद्देश्य: वाणिज्यवाद का एकमात्र लक्ष्य देश की संपत्ति को बढ़ाना है, जबकि साम्राज्यवाद का लक्ष्य देश को शक्तिशाली बनाने के लिए राजनीतिक और आर्थिक लाभ प्राप्त करना है.
- साधन: वाणिज्यवाद आर्थिक नियंत्रण और सहायता पर निर्भर करता है, जबकि साम्राज्यवाद सैन्य बल और बड़े पैमाने पर आप्रवासन पर निर्भर करता है.
- प्रभाव: वाणिज्यवाद का प्रभाव सीमित होता है, जबकि साम्राज्यवाद का प्रभाव व्यापक और विनाशकारी हो सकता है.
ब्रिटेन द्वारा अमेरिकी उपनिवेशों की स्थापना वाणिज्यवाद और साम्राज्यवाद के बीच संबंधों का एक अच्छा उदाहरण है. ब्रिटेन ने अमेरिकी उपनिवेशों को अपने तैयार माल के लिए एक बाजार और कच्चे माल के स्रोत के रूप में देखा. ब्रिटिश सरकार ने उपनिवेशों पर अपने आर्थिक नियंत्रण को बनाए रखने के लिए कई नीतियों को अपनाया, जिसमें आयात शुल्क और निर्यात सब्सिडी शामिल थीं. ब्रिटिश सरकार ने उपनिवेशों पर अपना राजनीतिक नियंत्रण बनाए रखने के लिए सैन्य बल का इस्तेमाल भी किया.
अमेरिकी क्रांति, ब्रिटिश वाणिज्यवाद और साम्राज्यवाद से संघर्ष का एक सजीव उदाहरण है. अमेरिकी उपनिवेशवासी ब्रिटिश सरकार की व्यापार नीतियों से असंतुष्ट थे. इन नीतियों ने अमेरिकी उद्योगों को नुकसान पहुंचाया था. अमेरिकी, ब्रिटिश सरकार की सैन्य उपस्थिति से भी असंतुष्ट थे, जो उनके सुरक्षा और स्वायत्ता लिए एक खतरा था. अंततः अमेरिकी क्रांति ने ब्रिटिश शासन से अमेरिका के स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त किया.
पूर्ण लाभ का सिद्धांत (Theory of Absolute Advantage in Hindi)
यह सिद्धांत एडम स्मिथ द्वारा 1776 में ‘द वेल्थ ऑफ़ नेशंस’ पुस्तक में प्रतिपादित किया था. इस सिद्धांत में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए सरकारी संरक्षण के आवश्यकता को दरकिनार किया गया. स्मिथ के अनुसार, यदि प्रथम देश किसी वस्तु का उत्पादन दूसरे देश के तुलना में अधिक कुशलता और कम श्रम के बल पर करता है, तो प्रथम देश का उत्पाद सस्ता और दूसरे देश का महंगा होगा. इस तरह एक देश का सस्ता उत्पाद दूसरे देश में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के माध्यम से पहुँच जाएगा.
उपरोक्त परिस्तिथि में पहला देश तुलनात्मक रूप से पूर्ण लाभ के स्थिति में है. एडम स्मिथ के अनुसार, यदि एक देश अधिक कुशलता से कम श्रम के बल पर किसी वस्तु का उत्पादन कर रहा है, तो दूसरे देश को अन्य वस्तु, जिसमें वह प्रथम देश के भांति पारंगत है, का उत्पादन करना चाहिए. इस तरह दोनों देश अधिक कुशलता से सस्ता माल तैयार कर पाएंगे.
पारिभाषिक शब्दावली में एडम स्मिथ के सिद्धांत का इस तरह व्याख्या हो सकता है- व्यापार कुछ वस्तुओं के उत्पादन में देशों को तुलनात्मक रूप से पूर्ण लाभ होने के परिणामस्वरूप होता है. एडम स्मिथ के सिद्धांत में पूर्ण लाभ, उस स्थिति को संदर्भित करता है जिसमें एक देश दूसरे की तुलना में कम श्रम के साथ किसी वस्तु की एक इकाई का निर्माण कर सकता है.
स्मिथ कहा कि निर्यात को बढ़ावा देने के लिए आयात में कमी करना व्यापार के दृष्टिकोण से सही नहीं है. देश के नागरिकों को स्थानीय वस्तु खरीदने के लिए प्रेरित करना संभव है. (लेकिन विदेशी लोगों में यह इच्छा जगाना असंभव है.) इसलिए सरकारी संरक्षण हटा दिया जाए. इससे प्रतिस्पर्धा उत्पन्न होगी और स्वदेसी उद्योग गुणवत्तापूर्ण व सस्ते उत्पाद बनाने के लिए प्रेरित होंगे.
इस तरह एडम स्मिथ ने व्यापारवाद के आरंभ सिद्धांत को पूर्णतः नकार दिया. उनके अनुसार संरक्षण के निति से एकाधिकार (monopoly) का जन्म होता है, जो अक्षमता और कुप्रबंधन को जन्म देता है. स्मिथ ने संरक्षणवाद को देश के लिए हानिकारक और अनुत्पादक बताया. उन्होंने स्वतंत्र व्यापार को व्यापार के लिए सबसे अच्छा नीति बताया, जब तक कुछ दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति या अनिश्चितता उत्पन्न न हों.
तुलनात्मक लाभ का सिद्धांत (Theory of Comparative Advantage in Hindi)
इस सिद्धांत को 1817 में डेविड रिकार्डो ने प्रस्तुत किया था. तुलनात्मक लाभ का सिद्धांत के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार तब होता है जब दो देश उन वस्तुओं का उत्पादन करते हैं, जिनमें उन्हें तुलनात्मक लाभ होता है. मतलब, एक देश किसी वस्तु को दूसरे देश की तुलना में कम अवसर लागत पर उत्पादन कर सकता है. एक वस्तु के उत्पादन में कमी के कारण दूसरे वस्तु के उत्पादन में वृद्धि होना ही अवसर लागत है.
अवसर लागत किसी वस्तु के उत्पादन के लिए त्याग की गई दूसरी वस्तु की मात्रा है. उदाहरण के लिए, यदि आप 5 मिलियन पाउंड मक्खन या 15,000 बंदूकें बना सकते हैं, तो 5 मिलियन पाउंड मक्खन की अवसर लागत 15,000 बंदूकें हैं.
रिकार्डो के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार दोनों देशों के लिए लाभदायक होता है, भले ही एक देश दूसरे देश की तुलना में सभी वस्तुओं का उत्पादन अधिक कुशलता से कर सके. इसका कारण यह है कि प्रत्येक देश अपने तुलनात्मक लाभ वाले क्षेत्रों में विशेषज्ञता प्राप्त करके अधिक कुशलता से उत्पादन कर सकता है. इससे दोनों देशों को अधिक वस्तुओं और सेवाओं का उपभोग करने की अनुमति मिलती है.
उदाहरण के लिए, दो देश, ए और बी, दो वस्तुओं, गेहूँ और कपड़ों का उत्पादन करते हैं. देश ए गेहूँ का उत्पादन करने में अधिक कुशल है, और देश बी कपड़ों का उत्पादन करने में अधिक कुशल है. यदि दोनों देश स्वतंत्र रूप से दोनों वस्तुओं का उत्पादन करते हैं, तो देश ए गेहूँ का उत्पादन करेगा और देश बी कपड़ों का उत्पादन करेगा.
लेकिन, रिकार्डो के सिद्धांत के अनुसार, देश ए को कपड़ों के उत्पादन में विशिष्टता प्राप्त करके अधिक लाभ होगा. ऐसा इसलिए है क्योंकि देश ए गेहूँ का उत्पादन करने में अधिक कुशल है, लेकिन यह कपड़ों का उत्पादन भी कुछ हद तक कुशलता से कर सकता है. इससे देश ए को अधिक गेहूँ और कपड़े दोनों प्राप्त होंगे.
इसी तरह, देश बी को गेहूँ के उत्पादन में विशिष्टता प्राप्त करके अधिक लाभ होगा. ऐसा इसलिए है क्योंकि देश बी कपड़ों का उत्पादन करने में अधिक कुशल है, लेकिन यह गेहूँ का उत्पादन भी कुछ हद तक कुशलता से कर सकता है. इससे देश बी को अधिक गेहूँ और कपड़े प्राप्त होंगे.
ऐसी स्थिति में, देश ए और बी को क्रमशः गेंहू और कपड़ो के उत्पादन में पूर्ण उत्पादक लाभ होता है, जबकि इन दोनों देशों (ए और बी) को क्रमशः कपड़ों और गेंहू के उत्पादन में सापेक्ष लाभ होता है. अतः इस परिस्तिथि में भी अंतर्राष्ट्रीय व्यापार दोनों देशों के लिए लाभदायक है. इस सिद्धांत के पालन से, देश ए को अधिक गेहूँ और कपड़े प्राप्त होते हैं, और देश बी को भी अधिक गेहूँ और कपड़े प्राप्त होते हैं.
रिकार्डो के सिद्धांत की कुछ सीमाएँ भी हैं.पहली सीमा है कि उत्पादन की लागत केवल श्रम लागत पर निर्भर करती है. हालांकि, उत्पादन की लागत में पूंजी, भूमि और अन्य कारकों की लागत भी शामिल होती है.
दूसरा, रिकार्डो के अनुसार व्यापार बाधारहित होता है. लेकिन वास्तव में व्यापार पर कई बाधाएं हैं, जैसे आयात शुल्क और पेटेंट इत्यादि. ये बाधाएं अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को कम करने के साथ ही दोनों देशों के लाभों को कम कर सकती हैं.
इन सीमाओं के बावजूद, रिकार्डो के तुलनात्मक लाभ का सिद्धांत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांतों में से एक है. यह समझाने में मदद करता है कि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार क्यों होता है और यह दो देशों के लिए कैसे लाभदायक हो सकता है.
वस्तुतः, रिकार्डियन मॉडल तुलनात्मक लाभ पर जोर देता है, जो तकनीकी या प्राकृतिक संसाधन के विसंगति से प्राप्त होता है. किसी देश में श्रम और पूंजी की सापेक्ष मात्रा को एक कारक के रूप में रिकार्डियन मॉडल में स्पष्ट रूप से शामिल नहीं किया गया है.
हेक्शर-ओहलिन सिद्धांत (कारक अनुपात सिद्धांत) – Heckscher-Ohlin Theory (Factor Proportions Theory)
एडम स्मिथ और डेविड रिकार्डो के सिद्धांत, इस बात को निर्धारित करने में विफल रहे कि किस वस्तु का उत्पादन किसी देश के लिए लाभदायक होगा. इन्होंने उत्पाद का निर्धारण के लिए खुले और मुक्त बाजार द्वारा स्वतः निर्धारित करने के लिए छोड़ दिया था. बीसवीं सदी के शुरूआती समय में एली हेक्शर (Eli Heckscher) और बर्टिल ओहलिन (Bertil Ohlin) ने पूर्व के व्यापारिक सिद्धांतों के इस खामी को दूर करने के लिए ‘कारक अनुपात सिद्धांत’ प्रस्तुत किया, जिसे ओएच थ्योरी भी कहा जाता है.
कोई देश अपने यहां प्रचुर मात्रा में उपलब्ध कारको के इस्तेमाल से तुलनात्मक लाभ प्राप्त कर सकता है. इन्होंने भूमि, श्रम और पूंजी को उत्पादन का कारक माना, जो कारखानों के मशीनरी और अन्य आधारभूत संरचना के निर्माण के लिए आवश्यक थे. इन्होंने किसी भी कारक का लागत सीधे इसके मांग और आपूर्ति से संबंधित बताया. जिस वस्तु के उत्पादन के लिए कारक सस्ते होंगे, उनका प्रचुर निर्माण होगा और अतिरिक्त माल का निर्यात उन देशों को किया जाएगा, जहां इनके उत्पादन के कारकों का कीमत अधिक है. इसके विपरीत, महंगे कारक वाले वस्तुओं का कम निर्माण होगा, जिसके कारण देश को सस्ते कारक वाले देशों से इसका आयात करना होगा.
उदाहरण के लिए, भारत, चीन और बांग्लादेश में प्रचुर मात्रा में कुशल श्रम उपलब्ध है. इसके कारण इन देशों में अमेरिका जैसे देशों से श्रमसाध्य उत्पाद, जैसे कपड़ा, सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर का निर्माण करवाया जाता है. साथ ही, पूंजी (Capital) से भरपूर अमेरिका से पूंजी गहन उत्पाद के निर्यात का संभावना इस सिद्धांत में व्यक्त किया गया है.
आसान शब्दों में ओएच थ्योरी श्रम की बहुलता वाले देशों से श्रम-गहन उत्पाद पूंजी बहुल देश को और पूंजी की प्रचुरता वाले वाले देशों से पूंजी-गहन उत्पाद का श्रम बहुल देश को निर्यात होने का व्याख्या करता है.
बर्टिल ओहलिन ने अपने शिक्षक व स्वीडिश अर्थशास्त्री एली फिलिप हेक्शर (1879-1952) के कार्य के आधार पर इस सिद्धांत को विकसित किया थाल. इसलिए दोनों का नाम इस सिद्धांत के साथ आता है. ओहलिन को इस कार्य के लिए 1977 में अर्थशास्त्र विज्ञान के नोबेल स्मृति पुरस्कार (वैज्ञानिक अल्फ्रेड नोबेल की स्मृति में स्थापित स्वेरिग्स रिक्सबैंक पुरस्कार) से पुरस्कृत भी किया गया.
आधुनिक या फर्म-आधारित सिद्धांत (Modern or Firm-Based Trade Theories in Hindi)
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बहुराष्ट्रीय कंपनियों का आगमन हुआ. इस नए परिदृश्य में बिज़नेस स्कूलों ने एक नया सिद्धांत दिया, जिसे आधुनिक या फर्म आधारित सिद्धांत कहा गया. इस सिद्धांत के अनुसार, व्यापार मुख्य रूप से फर्मों के बीच विभिन्नता और असमानता के कारण होता है. आधुनिक या फर्म-आधारित सिद्धांत के अनुसार विभिन्न फार्मों का संसाधन और क्षमता अलग-अलग होता है. इस अंतर का उपयोग अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में लाभ प्राप्त करने के लिए किया जा सकता है.
इस सिद्धांत में माना जाता है कि उत्पादन तकनीक, श्रम कौशल, उत्पाद नवाचार, और संसाधन उपलब्धता के आधार पर दो फर्म अलग-अलग होते है. इस तरह दोनों द्वारा उत्पादित एक ही उत्पाद अलग-अलग गुणों और विशेषताओं से लैस होते है. इनके कीमत भी भिन्न होते है. इन सभी अंतरों का उपयोग कर वस्तुओं का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार किया जाता है. अपने अंतरों के कारण ये उत्पाद प्रतिस्पर्धी होते है और फर्म को लाभ पहुंचाते है.
उदाहरण के लिए, अमेरिका एप्पल आईफोन मोबाईल फ़ोन का निर्यात करता है, लेकिन सैमसंग मोबाइल फ़ोन का आयात करता है. एक ही वस्तु का अमेरिका द्वारा आयात और निर्यात इसके विशेषता, कीमत और ब्रांड में अंतर् के कारण संभव हो पाता है.
इस तरह आधुनिक या फर्म-आधारित व्यापार सिद्धांत फर्मों को व्यापार के मुख्य अभिनेताओं के रूप में देखता है. फर्में व्यापार को प्रेरित करती हैं और व्यापार के माध्यम से लाभ प्राप्त करती हैं.
आधुनिक या फर्म-आधारित व्यापार सिद्धांत यह समझाने में मदद करता है कि क्यों कुछ देश विशेष उत्पादों या सेवाओं में विशेषज्ञ होते हैं. यह सिद्धांत यह भी समझाता है कि क्यों अंतर्राष्ट्रीय व्यापार अक्सर तकनीकी परिवर्तन और उत्पाद नवाचार से जुड़ा होता है.
इस सिद्धांत के कुछ सीमाएं भी हैं. पहला, यह सिद्धांत व्यापार के कुछ महत्वपूर्ण कारकों, जैसे कि सरकारी नीतियों और व्यापार बाधाओं, को ध्यान में नहीं रखता है. दूसरा, व्यापार के सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभावों पर विचार नहीं करता है.
कुल मिलाकर, आधुनिक या फर्म-आधारित व्यापार सिद्धांत व्यापार के कई पहलुओं की व्याख्या करने में सहायक है. यह सिद्धांत व्यापार के बारे में हमारी समझ को बेहतर बनाने में मदद करता है. यह व्यापार नीतियों और रणनीतियों के विकास में सहायक हो है.
देश की समानता का सिद्धांत (Country Similarity Theory in Hindi)
1961 में स्वीडिश अर्थशास्त्री स्टीफ़न लिंडर (Steffan Linder) द्वारा देश की समानता का सिद्धांत विकसित किया गया, जो अंतर उद्योग व्यापार (Intraindustry Trade) पर प्रकाश डालता है.
इनके अनुसार, विकास के समान चरण से गुजर रहे देशों की प्राथमिकताएं समान होती है. इन देशों के उद्योग पहले अपने देश के लिए उत्पादन करते है. जब ये निर्यात के संभावनाएं तलाशते है, तो समान रूप से विकसित देशों के उपभोक्ताओं को अपने देश के अनुरूप मांग वाला पाते है. इसी आधार इन्होंने पाया कि समान प्रतिव्यक्ति आय वाले देशों के बीच व्यापार होगा और अंतर-उद्योग व्यापार सामान्य होंगे.
यह सिद्धांत उन वस्तुओं के व्यापार को समझाने में सबसे उपयोगी है जहां ब्रांड नाम और उत्पाद की ख्याति खरीदारों के खरीद प्रक्रिया और निर्णय में महत्वपूर्ण कारक होते हैं.
उत्पाद जीवन चक्र का सिद्धांत (Product Life Cycle Theory in Hindi)
हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के प्रोफेसर रेमंड वर्नोन (Raymond Vernon) ने 1960 के दशक में उत्पाद जीवन चक्र सिद्धांत (PLC Theory) विकसित किया था. उत्पाद जीवन चक्र (PLC) के सिद्धांत के अनुसार, एक उत्पाद का जीवन चक्र तीन चरणों में विभाजित किया जा सकता है:
- परिचय चरण
- विकास चरण
- परिपक्वता चरण
1. परिचय चरण (Introduction Phase)
इस चरण में किसी उत्पाद को पहली बार बाजार में पेश किया जाता है. इस उत्पाद के बारे में लोगों को काफी कम जानकारी होती है और लोग इसके बारे में जानकारी जुटाकर सिख रहे होते है. इसलिए बिक्री आमतौर पर धीमी होती है.
बिक्री कम होने से फर्मो को कम लाभ प्राप्त होता है. इसलिए फर्मों को विपणन और वितरण लागतों को पुरा के लिए उत्पाद को उच्च मूल्य पर बेचना पड़ता है.
प्रो. रिमांड के अनुसार, नए उत्पाद का आविष्कार करने वाले देशों में ही इसका उत्पादन शुरू होता है. उदाहरण के लिए, 1960 के दशक में अमेरिका द्वारा कंप्यूटर की खोज और इसका उत्पादन शुरू करना.
2. विकास चरण (Development Phase)
इस चरण में बाजार में उत्पाद की लोकप्रियता दिनोदिन बढ़ना शुरू हो जाता है. इसलिए बिक्री का ग्राफ तेजी से बढ़ता है और उत्पाद की लाभप्रदता क्षमता भी बढ़ती है.
3. परिपक्वता चरण (Maturity Phase)
इस चरण में उत्पाद बाजार में स्थापित हो जाता है और बिक्री स्थिर हो जाती है. प्रतिस्पर्धा बढ़ जाती है और उत्पाद की नवीनता कम हो जाती है. इन कारणों से उत्पाद की लाभप्रदता कम होने लगती है. इस दौर में वस्तु का उत्पादन उन देशों को प्रतिस्थापित हो जाता है, जहां इसका उत्पादन सस्ता होता है. इस तरह प्रौद्यौगिकी और वस्तु के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में तेजी आती है.
कई बार उत्पाद का नवीनता बनाए रखने के लिए इनमें कई तरह के इनोवेशन (नवाचार) किए जाते है. कंप्यूटर का उत्पादन अमेरिका से चीन में हस्तांतरित होना इसका एक उदाहरण है. आज के दौर में कंप्यूटर उत्पाद अपने परिपक्व चरण में है.
इन चरणों के अलावा उत्पाद जीवन चक्र के सिद्धांत में अन्य चरण गिरावट का चरण (Downfall Phase) भी शामिल है. इस चरण में उत्पाद बाजार में लोकप्रियता खोने लगता है और बिक्री गिरने लगती है. इससे लाभप्रदता नकारात्मक हो सकती है.
उत्पाद जीवन चक्र के सिद्धांत का उपयोग
यह सिद्धांत विपणन रणनीति (Marketing Strategy) के विकास में उपयोगी है, जो कंपनियों को अपने उत्पादों के जीवन चक्र के विभिन्न चरणों के लिए उपयुक्त रणनीतियां विकसित करने में मदद कर सकता है.
- उदाहरण के लिए, पहले यानि परिचय चरण में, कंपनियों को उत्पाद के बिक्री बढ़ाने और ग्राहकों को खरीद के लिए प्रोत्साहित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.
- दूसरे यानि विकास चरण में, कंपनियों को उत्पाद की बिक्री और लाभप्रदता बढ़ाने के लिए अपने बाजार हिस्सेदारी को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.
- तीसरे यानि परिपक्वता चरण में, कंपनियों को उत्पाद की नवीनता बनाए रखने और प्रतिस्पर्धा में आगे बने रहने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.
- आखिरी यानि गिरावट चरण में, कंपनियों को उत्पाद का उत्पादन समाप्त करने या उत्पाद में नवाचार (Innovation) द्वारा इसे पुनर्जीवित करने के रणनीति पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.
Note: अनुसंधान और विकास आम तौर पर परिचय या नए उत्पाद चरण से जुड़ा होता है और इसलिए स्वदेश में उत्पादन किया जाता है. लेकिन, भारत और चीन जैसे विकासशील या उभरते बाजार वाले देश उच्च कुशल श्रम और नई अनुसंधान सुविधाएं सस्ते दरों पर उपलब्ध करवाते है. यह वैश्विक कंपनियों के लिए लाभदायक होता है. इस कारण से आज के समय में कई नए उत्पाद का उत्पादन भी तुरंत खोजकर्ता देश से नए देश में हस्तांतरित हो जाता है. |
आलोचनाएं (Criticisms)
उत्पाद जीवन चक्र का सिद्धांत, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का एक सामान्य नियम है, जो सभी उत्पादों पर लागू नहीं होता है. कुछ उत्पादों का जीवन चक्र लम्बा हो सकता है, जबकि अन्य का जीवन चक्र बहुत छोटा हो सकता है. कुछ उत्पादों का जीवन चक्र अनियमित हो सकता है, जिसमें चरम बिंदु और गिरावट शामिल होते हैं.
उदाहरण के लिए, दवा का उपयोग नियमित तौर पर किया जाता है. महामारी के दौर में इसका मांग और उत्पादन बढ़ जाता है. लेकिन, किसी अर्थव्यवस्था में सभी लोगों द्वारा कंप्यूटर खरीद लिए जाने पर, इसके मांग में कमी आ सकती है. लोग कंप्यूटर का साइबर कैफे के माध्यम से भी उपयोग कर सकते है, जो खरीद को हतोत्साहित करता है.
वैश्विक रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता सिद्धांत (Global Strategic Rivalry Theory in Hindi)
पॉल क्रुगमैन (Paul Krugman) और केल्विन लैंकेस्टर (Kelvin Lancaster) के काम पर आधारित वैश्विक रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता सिद्धांत का विकास 1980 के दशक में हुआ था. यह सिद्धांत बहुराष्ट्रीय कंपनियों और उनके उद्योग में अन्य वैश्विक कंपनियों के खिलाफ प्रतिस्पर्धात्मक लाभ हासिल करने के उनके प्रयासों पर केंद्रित है.
इस सिद्धांत के अनुसार, फर्मों को समृद्ध होने के लिए अपने उद्योगों में वैश्विक प्रतिस्पर्धा का सामना करते हुए प्रतिस्पर्धात्मक लाभ प्राप्त करना होगा. किसी कंपनी द्वारा स्थायी प्रतिस्पर्धात्मक लाभ प्राप्त करने के तरीके, उस उद्योग में प्रवेश की बाधाएं कहलाती हैं. प्रवेश बाधा (entry barrier) उन बाधाओं को संदर्भित करती हैं, जिनका सामना एक नई फर्म को किसी उद्योग या नए बाजार में प्रवेश करते समय करना पड़ सकता है. वे प्रवेश बाधाएँ, जिनका उपयोग कर कोई कम्पनी बाजार को अपने अनुकूल करना चाहता है, में निम्नलिखित तत्व शामिल हैं:
- अनुसंधान और विकास,
- बौद्धिक संपदा अधिकारों का स्वामित्व,
- पैमाने की अर्थव्यवस्थाएं (वे कुशलताएं जिससे उत्पादन की लागत कम होती है),
- अद्वितीय व्यावसायिक प्रक्रिया या विधियों के साथ-साथ अपने उद्योग (या कारोबार या उत्पाद) में व्यापक अनुभव, और
- संसाधनों पर नियंत्रण या कच्चे माल तक अनुकूल पहुंच.
वैश्विक रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता सिद्धांत (GSR Theory) के लाभ-हानि
यह सिद्धांत व्याख्या करता है कि व्यापार मुख्य रूप से फर्मों के बीच प्रतिस्पर्धा के कारण होता है. फर्में अपने उत्पादों और सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए लगातार नवाचार कर एक-दूसरे को चुनौती देती हैं. यह प्रतिस्पर्धा आर्थिक विकास और नवाचार को बढ़ावा देती है. इस तरह यह सिद्धांत फर्मों के बीच प्रतिस्पर्धा, नवाचार और आर्थिक विकास को जन्म देती है.
यह सिद्धांत कुछ उद्योगों में प्रतिस्पर्धा और नवाचार अधिक होने के कारणों का व्याख्या करता है. लेकिन कुछ पहलुओं को यह सिद्धांत अनदेखा भी करता है, जैसी सरकारी नीति, नए व अन्य व्यापार बाधा, तथा सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभावों, पर विचार नहीं करता है.
इसी सिद्धांत के तहत बड़ी कंपनियां छोटे कंपनियों का अधिग्रहण करते जाती है. इस तरह वे उनके नवाचार और अनुसंधान का स्वामित्व हासिल कर लेते है और कम्पनी को बाजार में स्थायित्व प्राप्त करने और टिके रहने में मदद मिलती है.
जीएसआर सिद्धांत के उदाहरण (Examples of GSR Theory in Hindi)
कुल मिलाकर, यह सिद्धांत व्यापार नीतियों और रणनीतियों के विकास में सहायक है. इस सिद्धांत के कुछ उदाहरणों में शामिल हैं:
- मोटर वाहन उद्योग: दुनिया के प्रमुख ऑटोमोबाइल निर्माता, जैसे कि जनरल मोटर्स, फोर्ड, और फ़ोक्सवैगन, एक-दूसरे को लगातार चुनौती देते हैं. यह प्रतिस्पर्धा बेहतर उत्पादों और सेवाओं के विकास को प्रेरित करती है.
- तकनीकी उद्योग: कंप्यूटर, इलेक्ट्रॉनिक्स, सिलिकॉन चिप्स और स्मार्टफोन जैसे उद्योगों में प्रतिस्पर्धा बहुत अधिक है. यह प्रतिस्पर्धा नई प्रौद्योगिकियों के विकास को प्रेरित करती है.
- फार्मास्युटिकल उद्योग: फार्मास्युटिकल कंपनियां नई दवाओं और उपचारों के विकास के लिए लगातार प्रतिस्पर्धा करती हैं. यह प्रतिस्पर्धा रोगों के उपचार में सुधार करती है.
राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धात्मक लाभ सिद्धांत (National Competitive Advantage Theory in Hindi)
यह सिद्धांत अमेरिकी लेखक और अर्थशास्त्री माइकल ई. पोर्टर द्वारा लिखी अर्थशास्त्र की पुस्तक, ‘राष्ट्रों के प्रतिस्पर्धात्मक लाभ’ पर आधारित है. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार सिद्धांतों के विकास क्रम में, हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के माइकल पोर्टर ने 1990 में राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धात्मक लाभ को समझाने के लिए एक नया मॉडल विकसित किया. इसे पोर्टर का सिद्धांत के नाम से भी जाना जाता है.
उन्होंने कहा कि किसी उद्योग में राष्ट्र की प्रतिस्पर्धात्मकता उद्योग की नवप्रवर्तन और उन्नयन की क्षमताओं पर निर्भर करती है. इस सिद्धांत से यह समझने में मदद मिली कि कोई राष्ट्र कुछ उद्योगों में अधिक प्रतिस्पर्धी क्यों हैं? इसे बेहतर ढंग से समझाने के लिए, पोर्टर ने चार निर्धारकों की पहचान की. ये निर्धारक इस प्रकार है-
1. स्थानीय बाजार की क्षमताएं और यहाँ उपलब्ध संसाधन
इस निर्धारक द्वारा पोर्टर ने कारक अनुपात सिद्धांत मान्यता दिया. कारक अनुपात सिद्धांत किसी देश के संसाधनों (जैसे कि, प्राकृतिक संसाधन और उपलब्ध श्रम) को उत्पादन और निर्यात करने को प्रेरित करने के लिए महत्वपूर्ण कारक मानता है. इन बुनियादी कारकों में पोर्टर ने उन्नत कारकों की एक नई सूची जोड़ी. इस नए सूचि में कुशल श्रम, आधुनिक शिक्षा, नव प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढांचे में निवेश शामिल किया गया. उन्होंने इन उन्नत कारकों को देश को स्थायी प्रतिस्पर्धात्मक लाभ प्रदान करने वाला माना.
2. स्थानीय बाजार में मांग की स्थिति
पोर्टर के अनुसार मजबूत और अधिक मांग वाला घरेलू बाजार फर्मों को नवाचार और दक्षता में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करता है. इस नवाचार से स्थानीय उद्योगों के उत्पाद परिष्कृत और नए प्राद्यौगिकी से लैस हो जाते है, जो बाजार चलन (Market Trend) के अनुरूप होता है.
उदाहरण के लिए, अमेरिकी सॉफ्टवेयर कंपनियां सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में लगातार अनुसंधार कर नवाचार को बढ़ावा देते है. इसका उत्प्रेरक अमेरिकी उपभोक्ताओं में अधिक परिष्कृत सॉफ्टवेयर का मांग है. इस प्रकार अमेरिकी उपभोक्ताओं के मांग की पद्धति से अमेरिकी सॉफ्टवेयर उत्पाद और सेवा में संग्लग्न फर्मों को स्थायी प्रतिस्पर्धात्मक लाभ प्राप्त होता है.
3. संबंधित और सहायक उद्योगों की उपस्थिति
किसी भी उद्योग के प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए संबंधित और सहायक उद्योग होना जरूरी है. जैसे, ऑटोमोबाइल उद्योग के लिए स्टील उद्योग का विकसित होना जरुरी है. यदि स्टील उद्योग देश में उपलब्ध नहीं है तो स्टील का आयात करना होगा, जो एक खर्चीला आयात साबित होगा और उत्पादन के लागत में बढ़ोतरी कर देगा. इस तरह बड़ी वैश्विक फर्मों को प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए अन्य उद्योग द्वारा आवश्यक इनपुट प्रदान करने के लिए मजबूत, कुशल समर्थन और संबंधित उद्योग होने से लाभ होता है.
4. स्थानीय फर्म की विशेषताएं
स्थानीय फर्म की विशेषताओं में फर्म की रणनीति, उद्योग संरचना और उद्योग प्रतिद्वंद्विता शामिल हैं. स्थानीय उद्योगों की रणनीति किसी फर्म की प्रतिस्पर्धात्मकता को प्रभावित करती है. साथ ही, स्थानीय कंपनियों के बीच स्वस्थ स्तर की प्रतिद्वंद्विता नवाचार और प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ावा देगी.
पोर्टर ने उपरोक्त चार निर्धारकों के अलावा, सरकार के नीतियों को भी देश के राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धात्मकता को प्रभावित करने वाला माना है. सरकारें व्यापार और निवेश को प्रोत्साहित करने, शिक्षा और प्रशिक्षण प्रदान करने, और अनुसंधान और विकास को वित्त पोषित करने के लिए नीतियों में बदलाव कर स्थानीय उद्योगों में अप्रत्यक्ष हस्तक्षेप कर सकती है. उदाहरण के लिए, जर्मनी ने मजबूत शिक्षा प्रणाली, अनुसंधान और विकास पर उच्च खर्च के साथ अपने उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए नीतियों को लागू किया है.
यह सिद्धांत सरकारों और व्यवसायों को अपने उद्योगों की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाने के लिए नीतियां और रणनीतियां विकसित करने में मदद कर सकता है. हालाँकि पोर्टर का सिद्धांत अपेक्षाकृत नया है और इसका न्यूनतम परीक्षण किया गया है. फिर भी यह सिद्धांत अन्य आधुनिक फर्म-आधारित सिद्धांतों के साथ मिलकर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के रुझानों का रोचक व्याख्या करता है. इसलिए इस सिद्धांत को लाभदायक माना जाता है.
अन्य सिद्धांत (Other Theories in Hindi):
विशिष्ट कारक मॉडल (Specific Factors Model)
रिकार्डियन मॉडल को विशिष्ट कारक मॉडल द्वारा विस्तारित किया जाता है. जैकब विनर (Jacob Viner) ने यह समझने की कोशिश किया कि औद्योगिक क्रांति के बाद मजदूर ग्रामीण क्षेत्रों से शहर की ओर क्यों पलायन करने लगे. यह उद्योगों के बीच श्रम की गतिशीलता का समर्थन करता है. लेकिन माना जाता है कि भौतिक पूंजी अल्पावधि में स्थिर रहती है और एक क्षेत्र से दूसरे में आसानी से हस्तांतरणीय नहीं होती है. इस धारणा के अनुसार, यदि किसी उत्पाद की कीमत बढ़ती है, तो उत्पादक घटक के मालिक वास्तव में लाभ कमाते है.
वस्तुतः इस मॉडल में एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में श्रम, पूंजी व अन्य उत्पादन कारकों के हस्तांतरण का अध्ययन किया जाता है. किसी क्षेत्र में एक उत्पादन कारक की बदलाव उद्योग के उत्पादन स्तर को प्रभावित करता है. कई बार टैरिफ, सरकारी निति या नए प्राद्यौगिकी के आगमन से भी उत्पादन पर असर पड़ता है. क्या आपने एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में पूंजी, श्रम या सरकारी संरक्षण के हस्तांतरित होने का कोई खबर हाल में पढ़ा है? यदि हाँ तो इस सिद्धांत के तहत उसकी व्याख्या करें, जो सिविल सेवा परीक्षा के दृष्टिकोण से जरुरी भी है.
लियोन्टीफ विरोधाभास (Leontief Paradox in Hindi)
शुरूआती 1950 के दशक में, रूस में जन्मे अमेरिकी अर्थशास्त्री वासिली डब्ल्यू. लेओन्टिफ़ ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था पूंजी-प्रधान पाया. इसलिए उन्हें संयुक्त राज्य अमेरिका से अधिक पूंजी-गहन वस्तुओं का निर्यात की उम्मीद थी. लेकिन वास्तविक आंकड़ों ने इसके ठीक विपरीत परिणाम दिखाए. अमेरिका अधिकांश पूंजी-गहन सामान का आयात और श्रम-गहन वस्तुओं का निर्यात कर रहा था. इस विश्लेषण को लिओन्टिफ़ विरोधाभास के नाम से जाना जाता है, क्योंकि यह कारक अनुपात सिद्धांत द्वारा अपेक्षित परिणाम के ठीक विपरीत था.
बाद के वर्षों में कई अर्थशास्त्रियों ने ऐतिहासिक तथ्यों से इसका अध्ययन किया और इसे सच पाया. वास्तव में, संयुक्त राज्य अमेरिका में श्रम का स्थिर आपूर्ति हो रहा था और कई अन्य देशों की तुलना में अधिक उत्पादक था. इसलिए श्रम-गहन वस्तुओं का निर्यात किया जा रहा था.
इस विरोधाभास मॉडल से साबित होता है कि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार जटिल है और यह कई अक्सर बदलते कारकों से प्रभावित होता है. इसलिए अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को एक ही सिद्धांत द्वारा स्पष्ट रूप से नहीं समझाया जा सकता है. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार सिद्धांतों के बारे में हमारी समझ अभी भी विकसित हो रही है.
नया व्यापार सिद्धांत – एनटीटी (New Trade Theory – NTT in Hindi)
नए व्यापार सिद्धांत को 1970 के दशक में पॉल क्रुगमैन द्वारा दिया गया है. नया व्यापार सिद्धांत और नया आर्थिक भूगोल को प्रस्तुत करने के लिए के लिए उन्हें साल 2008 में अर्थशास्त्र विज्ञान में नोबेल स्मृति पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
इस सिद्धांत का उद्देश्य व्यापार के उन अनुभवजन्य पहलुओं की व्याख्या करना है, जिसे तुलनात्मक लाभ-आधारित मॉडल द्वारा समझाना मुश्किल है. यह सिद्धांत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रवृत्ति (pattern) को समझने में मदद करता है. यह सिद्धांत पुराने व्यापारिक सिद्धांतों को नकार देता है, जो बतलाते है कि उत्पादन कारकों से उत्पन्न कीमत असमानता से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा मिलता है.
यह सिद्धांत इस बात को समझाने कि कोशिश करता है कि समान उत्पाद और सेवा में विशेषज्ञ होने के बावजूद दो देशों के बीच अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में बढ़ोतरी क्यों होता है? यह सिद्धांत ऑटोमोबाईल, खाद्य पदार्थ और इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद के सन्दर्भ में विशेष रूप से सही है. उदाहरण के लिए, भारत में मोबाईल और कारों का व्यापक उत्पादन होता है, फिर भी इनका बड़े पैमाने पर आयात किया जाता है.
आमतौर पर ऐसे उत्पाद वैश्विक होते है और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ाने में इनका अहम योगदान होता है. ऐसा (1) पैमाने की अर्थव्यवस्था (Economic of Scale), (2) नेटवर्क प्रभावों (Network effects) और (3) प्रथम-प्रस्तावक लाभ जैसे अदृश्य कारकों के उपस्तिथि से सम्भव होता है.
1. पैमाने की अर्थव्यवस्था (Economic of Scale)
अविकसित व अल्पविकसित देशों में गरीबी के कारण वस्तुओं का उत्पादन काफी छोटे पैमाने पर होता है. जब विकसित व अमीर देशों में इस वस्तु का मांग बढ़ता है, तो वे बड़े स्तर पर उत्पादन करने लगते है. साथ ही, आईटी, प्रौद्यौगिकी, ऑटोमोबाईल, बड़े पैमाने पर उत्पादन करने वाले स्वचालित मशीन व अन्य आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल भी विकसित देशों के कम्पनियाँ करते है. इससे वस्तु के प्रति इकाई लागत कम हो जाता है और ये सस्ता हो जाता है.
यह सस्ता वस्तु अविकसित व अल्पविकसित देशों को निर्यात किया जा सकता है. इन गरीब देशों में मांग में वृद्धि होते ही विकसित देश और भी बड़े पैमाने पर उत्पादन करने लगते है, जो उत्पादन लागत को और भी कम कर देता है.
दूसरे तरफ, गरीब देशों के पास विकसित देशों के तुलना में आधुनिक तकनीकों का अभाव होता है, जिस वजह से वस्तु में विशेषज्ञता होने के बावजूद ये आधुनिक तकनीक के अभाव के कारण पिछड़ जाते है. इस तरह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का झुकाव विकसित देशों के तरफ या आधुनिक तकनीकों से लैस अत्यधिक उत्पादन के करने वाले देशों के पक्ष में हो जाता है. इस तरह यह सिद्धांत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में एकाधिकारिता (Monopoly) के जन्म की व्याख्या करती है.
2. नेटवर्क प्रभाव
उत्पादों के उपयोगकर्ता बढ़ने से उनका मूल्य बढ़ता है. इंटरनेट और टेलीफोन इसके ज्वलंत उदाहरण है. इसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म से भी समझा जा सकता है. टेलीफोन का सिर्फ एक ही व्यक्ति के पास हो तो यह कोई काम का नहीं होता है. लेकिन दूर स्थित दो लोगों के पास होने पर दोनों घर बैठे आपस में बात कर सकते है.
इसी प्रकार, फेसबुक, एक्स (पहले ट्विटर) व इंस्टाग्राम पर जितने अधिक लोग होंगे, उतना ही अधिक डिजिटल सामग्री उत्पन्न होंगे. इसके साथ ही इन सोशल साइट्स का लोकप्रियता और कीमत भी बढ़ती जाएगी.
अमेज़न, फ्लिपकार्ट, ईबे और नेटफ्लिक्स जैसे कंपनियों का विकास भी नेटवर्क प्रभाव का उदाहरण है. (Fact: अमेज़न और नेटफ्लिक्स तो बिना परिवहन लागत के ही अंतर्राष्ट्रीय व्यापार करने में सक्षम हो गए है, जो इंटरनेट के के कारण सम्भव हो पाया है.)
3. प्रथम-प्रस्तावक लाभ (First Mover Advantage)
किसी उत्पाद का शुरुआत में उत्पादन करने वाले कंपनी को देर से आने वाले कम्पनी के तुलना में किफायती और रणनीतिक लाभ प्राप्त होता है. यह लाभ कंपनी को मजबूत ब्रांड पहचान और ग्राहक वफादारी स्थापित करने में मदद कर सकता है. प्रथम प्रस्तावक लाभ कंपनी को प्रतिस्पर्धियों से पहले ग्राहक वफादारी अर्जित करने, उत्पाद या सेवा में सुधार करने और प्रतिस्पर्धी बाजार मूल्य स्थापित करने में मदद कर सकता है.
नया नया व्यापार सिद्धांत (“New New” Trade Theory)
मार्क मेलिट्ज़ (Marc Melitz) ने 2003 में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के सिद्धांत के रूप में “नया नया” व्यापार सिद्धांत पेश किया. इस सिद्धांत के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार फर्मों की उत्पादकता केवल घरेलू बाजार के लिए उत्पादन करने वालों की तुलना में बेहतर होती है. इस तरह यह सिद्धांत किसी देश में उद्यमों की दक्षता में बहुत भिन्न होने के कारणों का उल्लेख करता है. इस अनुसंधान ने बहुत अधिक ध्यान आकर्षित किया, क्योंकि यह आधुनिक समय में उपलब्ध विशाल आंकड़ों के अनुरूप था. पॉल क्रुगमैन के नए व्यापार सिद्धांत द्वंद्व के रूप में, इसे ‘नया नया’ व्यापार सिद्धांत के नाम से जाना गया.
गुरुत्वाकर्षण मॉडल (Gravity Model in Hindi)
यह सिद्धांत दो या दो से अधिक स्थानों के बीच वस्तुओं, सेवाओं या लोगों के प्रवाह की मात्रा का अनुमान प्रदान करता है. यह दो शहरों के बीच लोगों की आवाजाही या देशों के बीच व्यापार की मात्रा हो सकती है. यह सिद्धांत 1954 में वाल्टर इसार्ड (Walter Isard) द्वारा दिया गया है, जो गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत के अनुरूप है. यह सिद्धांत दुरी बढ़ने के साथ व्यापार और आवागमन में बदलाव को दर्शाता है.
इस सिद्धांत के उपयोग से नाफ्टा जैसे व्यापारिक संगठनों और विश्व व्यापार संगठन के प्रभाव को जांचने के लिए किया गया है. इससे प्रवासन, यातायात, धन प्रेषण और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को भी मापा गया है.
कौन सा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार सिद्धांत सर्वमान्य है (Which International Theory is universally accepted)?
उपरोक्त सिद्धांतों के अध्ययन से ये ज्ञात होता है कि सभी अंतर्राष्ट्रीय व्यापार सिद्धांतों के महत्वपूर्ण अवयवों का इस्तेमाल आज के सरकार और उद्योग कर सकते है. इसलिए एक व्यापार सिद्धांत को सर्वमान्य नहीं कहा जा सकता है. सभी अंतर्राष्ट्रीय व्यापार सिद्धांतों ने समयानुरूप व्यापार के दशा और दिशा को व्यक्त किया है. कई बार प्रौद्यौगिकी और तकनीक में बदलाव से भी अंतर्राष्ट्रीय व्यापार प्रभावित हुआ है. इसलिए सभी सिद्धांतों के महत्वपूर्ण तथ्यों के सावधानी से इस्तेमाल द्वारा ही अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का लाभदायक सिद्धांत साकार होना संभव है.
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के फायदे (Advantages of International Trade in Hindi)
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के कई लाभ हैं, जिनमें शामिल हैं:
- आर्थिक विकास: अंतर्राष्ट्रीय व्यापार आर्थिक विकास और उत्पादकता वृद्धि में सहायक है.
- जीवन स्तर में सुधार: अंतर्राष्ट्रीय व्यापार उपभोक्ताओं को अपेक्षाकृत सस्ते कीमत पर उत्पाद और सेवाओं के कई विकल्प प्रदान करता है.
- रोजगार सृजन: अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के विकास से देश में अतिरिक्त रोजगार का सृजन होता है.
- तकनीकी प्रगति: अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से नवाचार और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को बढ़ावा मिलता है.
- एफडीआई: अविकसित, अल्पविकसित और विकासशील देशों को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) प्राप्त होने से उनके अर्थव्यवस्था में सुधार होता है.
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के नुकसान (Disadvantages of International Trade in Hindi)
- अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के साथ साथ व्यापारिक विवाद की संभावना भी बढ़ जाती है. व्यापारिक समझौतों में गलतफहमियाँ और विचार-मतलब के कारण संघटित होने वाले विवाद हो सकते हैं, जिनसे अंतर्राष्ट्रीय संबंध और सहयोग प्रभावित हो सकते हैं.
- दो देशों में विश्वास और सहयोग की कमी से भी अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को नुकसान हो सकता है. यह उन देशों के लिए अधिक नुकसानदेह है, जिनके अर्थव्यवस्था का आधार अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर टिका है.
- प्रतिस्पर्धा: अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण स्थानीय बाजार में वैश्विक उत्पाद पहुँच जाते है. इस तरह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कंपनियों को अपने उत्पाद में सुधार करने और अधिक प्रतिस्पर्धी बनने के लिए मजबूर करता है. इसमें विफल होने वाले स्थानीय कंपनियों के बंद होने का खतरा बना रहता है.
- आर्थिक अस्थिरता: अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर आधारित अर्थव्यवस्था वैश्विक अर्थव्यवस्था से जुड़े होते है. इसलिए विश्व में किसी प्रकार का आर्थिक अस्थिरता अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर आधारित देश को भी प्रभावित कर सकता है. उदाहरण के लिए 1930 के दशक में महामंदी से विश्व के कई देशों का प्रभावित होना, जबकि अपेक्षाकृत बंद अर्थव्यवस्था वाले रूस का इसके प्रभाव से बच निकलना.
- पर्यावरणीय प्रभाव: अंतर्राष्ट्रीय व्यापार एक देश में उपलब्ध उत्पाद को पुरे दुनिया में फ़ैलाने की क्षमता रखता है. ये उत्पाद अक्सर जीवाश्म ईंधन से प्राप्त ऊर्जा से तैयार किए जाते है, जो पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पैदा कर सकता है. इन जरूरतों को पुरा करे के लिए प्राकृतिक संसाधनों का अतिदोहन भी प्रयावरणीय प्रभाव पैदा करता है. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए इस्तेमाल किए जा रहे जलयानों से समुद्री जल का प्रदूषित होने और समुद्री पारिस्थितिकी का प्रभावित होने पर भी चिंता व्यक्त किए जा रहे है.
कुल मिलाकर, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार एक जटिल और बहुआयामी घटना है, जिसे लाभ और जोखिमों को ध्यान में रखते हुए इस्तेमाल किया जाना चाहिए.
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से जुड़े महत्वपूर्ण संगठन (Important Organisations related to International Trade in Hindi)
विश्व व्यापार संगठन (WTO)
डब्ल्यूटीओ का स्थापना 1 जनवरी 1995 को मराकेश समझौता (Marrakesh Agreement) के तहत हुआ था. यह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का सबसे बड़ा और स्वीकृत अंतरसरकारी संगठन है. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में महत्वपूर्ण भूमिका वाले विश्व के अधिकांश देश इसका सदस्य है. इसका मुख्यालय स्विट्ज़रलैंड के जेनेवा शहर में है.
यह खुले और मुक्त व्यापार के लिए काम करता है. साथ ही यह स्वतंत्र और निष्पक्ष अंतर्राष्ट्रीय व्यापार सुनिश्चित करने, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के बाधाओं को कम और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से जुड़े समझौतों लागू करने के लिए मंच प्रदान करता है.
विश्व बैंक (World Bank)
विश्व बैंक विकासशील देशों को आर्थिक उन्नति में सहायता के लिए वित्त, सलाह और अनुसंधान प्रदान करता है. इसका मुख्य उद्देश्य सदस्य राष्ट्रों को पुनर्निमाण और विकास के कार्यों में आर्थिक सहायता देना है. यह बैंक विकासशील देशों को वित्तीय सहायता का बड़ा स्त्रोत है. विश्व बैंक की स्थापना 1944 में ब्रैटन वुड्स कॉन्फ्रेंस में हुई थी. इसका मुख्यालय वाशिंगटन, डीसी में है. वर्तमान में 189 देश इसके सदस्य हैं.
यह पांच अंतरराष्ट्रीय संगठनों का एक समूह है, जिसमें इंटरनेशनल बैंक फॉर रिकंस्ट्रक्शन एंड डेवलपमेंट (आईबीआरडी), इंटरनेशनल फाइनेंस कॉरपोरेशन (आईएफसी), इंटरनेशनल डेवलपमेंट एसोसिएशन (आईडीए), बहुपक्षीय निवेश गारंटी एजेंसी (एमआईजी) और इंटरनेशनल सेंटर फॉर रिकंस्ट्रक्शन एंड डेवलपमेंट (आईसीएसआईडी) शामिल हैं.
यह बैंक विदेशी मुद्रा में ऋण देता है, जो देशों को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से हुए नुकसान के भरपाई में भी मदद करता है.
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund)
190 देश आईएमएफ के सदस्य है. इसका मुख्यालय वाशिंगटन, डी.सी. में है. इसकी स्थापना 27 दिसंबर 1945 को हुई थी. गरीबी कम करना, आर्थिक विकास बनाए रखना, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देना और वित्तीय स्थिरता बनाए रखना इसका मुख्य उद्देश्य है.
यह भुगतान संतुलन के दबाव का सामना कर रहे देशों को अल्पकालिक वित्त पोषण भी प्रदान करता है. इस तरह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से नकारात्मक रूप से प्रभावित देशों को आईएमएफ तुरंत उबार लेता है. यह सदस्यों को अपने आर्थिक विकास और नागरिकों के जीवन स्तर में सुधार के लिए भी मदद करता है. लेकिन इसकी शर्ते कई बार काफी कठोर भी होते है. IMF के वर्तमान प्रबंध निदेशक (MD) और अध्यक्ष बल्गेरियाई अर्थशास्त्री क्रिस्टालिना जॉर्जीवा हैं.
एशियाई विकास बैंक (Asian Development Bank)
1966 में स्थापित इस बैंक का मुख्यालय फिलिपिन्स के मनिला में है. यह एशिया और प्रशांत क्षेत्र में स्थित राष्ट्रों के सामाजिक और आर्थिक विकास सम्बन्धी कार्यों में ऋण उपलब्ध करवाता है. यह चरम गरीबी को समाप्त करने के लिए भी कार्यरत है.
नया विकास बैंक (New Development Bank)
इसका स्थापना 2012 में चौथे ब्रिक्स (BRICS) सम्मेलन के दौरान ब्रिक्स के सदस्य देशों द्वारा किया गया. यह बुनियादी ढाँचा और सतत विकास परियोजनाएँ के लिए संसाधन जुटाने में सदस्य व अन्य देशों ऋण के रूप में मदद करता है.
Thorey of economic