मिड-डे मील योजना (पीएम पोषण योजना) का स्वरूप व उद्देश्य

आजादी के बाद भारत में शैक्षणिक पिछड़ेपन को महसूस किया गया. इसी लिए समय-समय में कई सुधार कार्यक्रम लागू किए गए. इन्हीं सुधार कार्यक्रमों में से एक मिड-डे मील योजना भी है. मिड-डे मील योजना को अब प्रधानमंत्री पोषण योजना (PM POSHAN) के नाम से जाना जाता है. इसका उद्देश्य सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में बच्चों को पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराना है. यह योजना 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए है जो कक्षा 1 से 8 तक पढ़ते हैं.

लेकिन, इसकी राह भी आसान नहीं था. भारत में प्राथमिक शिक्षा की उत्तम व्यवस्था हेतु भारत में स्वतन्त्रोपरान्त ही बहुत सी नीतियाँ बनाई गई. उस समय हमारा एकमात्र उद्देश्य निश्चित आयु वर्ग के सभी बालकों के लिए प्राथमिक शिक्षा निःशुल्क व अनिवार्य के लक्ष्य को पाना था. आगे के सुधारात्मक कार्यों से मिड-डे मिल योजना को अमिलीजमा पहनाया गया.

नोट: “पीएम पोषण शक्ति निर्माण योजना” (PM-POSHAN) का मुख्य उद्देश्य बच्चों में कुपोषण को दूर करना और स्कूलों में उनकी उपस्थिति को बढ़ाना है. यह योजना 2021 में शुरू की गई थी. इसने “मध्याह्न भोजन योजना” का स्थान लिया है. इसका  लक्ष्य प्री-प्राइमरी स्कूलों में अतिरिक्त 24 लाख बच्चों को शामिल करना है. इसका एक लक्ष्य गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के पोषण में सुधार करना भी है. इसी कारण यह मिड-डे मील योजना से थोड़ा अलग है.

मिड-डे मील योजना का इतिहास

मद्रास नगर निगम ने 1925 में एक नई पहल की शुरुआत की, जिसके तहत अपने क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालयों में पढ़ने वाले गरीब एवं वंचित बच्चों को निःशुल्क दोपहर का भोजन उपलब्ध कराया जाता था.
धीरे-धीरे यह योजना 1980 के दशक के मध्य तक तमिलनाडु, केरल, गुजरात और पांडिचेरी तक फैल गई. समय के साथ देश के कई अन्य राज्यों ने भी इसे अपनाया और अपने-अपने क्षेत्रों में लागू किया.

राष्ट्रीय स्तर पर इसे लागू करने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने 15 अगस्त 1995 को “प्राथमिक शिक्षा के लिए पोषण सहायता का राष्ट्रीय कार्यक्रम” (NP-NSPE) आरंभ किया. बाद में इसका नाम बदलकर “स्कूलों में मध्याह्न भोजन का राष्ट्रीय कार्यक्रम” कर दिया गया, जिसे आम बोलचाल में मिड-डे मील योजना कहा जाता है. साल 2001 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सभी राज्य सरकारों को आदेश दिया कि वे सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त सभी प्राथमिक विद्यालयों में बच्चों को पका हुआ मध्याह्न भोजन उपलब्ध कराएं.

कुछ राज्यों ने इसके क्रियान्वयन में अंतरराष्ट्रीय सहयोग लिया—जैसे कर्नाटक, ओडिशा और पश्चिम बंगाल—जबकि आंध्र प्रदेश और राजस्थान में यह पूरी तरह विदेशी सहायता से संचालित हुआ. कर्नाटक में इस योजना की शुरुआत 1997 में चिल्ड्रन लवकैसल्स ट्रस्ट ने की थी. इस संस्था ने आठ विद्यालयों को गोद लेकर एक “फूड बैंक” और “आंगनवाड़ी दूध कार्यक्रम” शुरू किया. बाद में राज्य सरकार ने इस फूड बैंक योजना को बंद कर अपनी खुद की मध्याह्न भोजन योजना लागू कर दी.

शिक्षा में मिड-डे मील योजना का आगमन

प्राथमिक शिक्षा के प्रसार तथा उन्नयन के लिए सुझवा देने के सम्बन्ध में 1957 में सरकार ने ‘अखिल भारतीय प्राथमिक शिक्षा परिषद्’ का गठन किया. इस परिषद् ने प्राथमिक शिक्षा के प्रसार व उन्नयन के सम्बन्ध में ठोस सुझाव दिए जिससे प्राथमिक शिक्षा के प्रसार में तेजी आई. 1966 में राष्ट्रीय शिक्षा आयोग’ ने अपना प्रतिवेदन सरकार के समक्ष पेश किया. इस आयोग ने बिना किसी भेदभाव के हर धर्म, जाति व लिंग के छात्रों के लिए शैक्षिक अवसरों की समानता पर बल दिया.

इस आयोग के सुझावों के आधार पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1968′ घोषित हुई इसमें भी प्राथमिक शिक्षा को निःशुल्क व अनिवार्य करने के सम्बन्ध में ठोस नीतियाँ दी गई. उसके बाद कांग्रेस के कार्यकाल में ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986’ आई. इस शिक्षा नीति में शिक्षा का सार्वभौमीकरण करना प्रमुख लक्ष्य निर्धारित किया गया. इसके लिए 1986 में सरकार ने ‘ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड योजना’ का प्रारम्भ किया और प्राथमिक शिक्षा के लिए आधारभूत सुविधाएँ मिलना शुरू हो गई.

1990 में विश्व कॉन्फ्रेंस में ‘सबके लिए शिक्षा’ की घोषणा की गई जिससे सभी देशों में प्राथमिक शिक्षा के प्रसार में तेजी आई. 1994 में सरकार ने शैक्षिक रूप से पिछड़े जिलों के लिए जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम शुरू किया. लेकिन विद्यालयों में नामांकन और उपस्थिति उल्लेखनीय नहीं हो सका. इसलिए 15 अगस्त, 1995 को सरकार ने छात्रों को स्कूलों की तरफ आकर्षित करने तथा उन्हें रोके रखने के लिए ‘मिड-डे-मील योजना’ शुरू की. इसे ‘पौष्टिक आहार सहायता का राष्ट्रीय कार्यक्रम’ भी कहा जाता है.

मिड-डे मील योजना के उद्देश्य (Objectives of Mid Day Meal Programme)

मिड-डे मील योजना के उद्देश्य (Objectives of Mid Day Meal Programme)

मिड-डे मोल योजना केन्द्र सरकार के द्वारा शुरू की गई. इस योजना में केन्द्र और राज्य सरकारें 75 : 25 के अनुपात में व्यय करती हैं. सरकार भोजन के लिए खाद्य सामग्री (गेहूं, चावल व अन्य पदार्थ) उपलब्ध कराती है. भोजन कराने के लिए 25 बालकों पर एक रसोइया तथा एक सहायक, 25 से अधिक बालकों पर 2 रसोइये तथा दो सहायकों की व्यवस्था है जो भोजन पकाने का कार्य करते हैं.

मिड-डे मील योजना के निम्न उद्देश्य हैं-

1. प्राथमिक स्कूलों में छात्रों की प्रवेश संख्या में वृद्धि करना.

2. प्राथमिक स्तर पर अपव्यय को रोककर बालकों को प्राथमिक स्कूलों में रोके रखना.

3. छात्रों की नियमित उपस्थिति में वृद्धि करना.

4. छात्रों को पौष्टिक भोजन के द्वारा स्वास्थ्य लाभ देना.

5. बिना किसी भेदभाव के एक साथ भोजन करने से भ्रातृत्व का भाव उत्पन्न करना, जातिभेद खत्म करना.

मिड-डे मील योजना का क्षेत्र (Scope of Mid Day Meal Programme)

प्रारम्भ में यह योजना केवल सरकारी प्राथमिक स्कूलों में लागू की गई. 1997-98 तक इसे देश के सभी प्रान्तों के स्कूलों में लागू किया जा चुका था. 2002 इस इस योजना में मदरसों को भी शामिल कर लिया गया. 2007 में उच्च प्राथमिक स्कूलों को भी इस योजना, लाभ मिलना शुरू हो गया.

वर्तमान में कुछ सरकारी आर्थिक सहायता, मान्यता प्राप्त निजी स्कूलों को इस योजना में भी शामिल कर लिया गया है. 2014-15 में यह योजना लगभग साढ़े ग्यारह लाख प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक स्कूलों में चल रही थी. यह योजना देश भर के 11.20 लाख से अधिक स्कूलों में लगभग 11.80 करोड़ बच्चों को कवर करती है.

मध्याह्न भोजन की आवश्यकता (NEED OF MID DAY MEAL)

स्कूल में अधिकतर बच्चे खाली पेट पहुँचते हैं. जो बच्चे स्कूल आने से पहले भोजन करते हैं उन्हें भी दोपहर तक भूख लग आती है और वे अपना ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाते हैं. मध्याह्न भोजन बच्चों के लिए ‘पूरक पोषण’ के स्रोत और उनके स्वस्थ विकास के रूप में भी कार्य कर सकता है. यह समतावादी मूल्यों के प्रसार में भी सहायता कर सकता है क्योंकि कक्षा में विभिन्न सामाजिक पृष्ठभूमि वाले बच्चे साथ में बैठते हैं और साथ-साथ खाना खाते हैं.

विशेष रूप से मध्याह्न भोजन स्कूल में बच्चों के मध्य जाति व वर्ग के अवरोध को मिटाने में सहायता कर सकता है. स्कूल की भागीदारी में लैंगिक अन्तराल को भी यह कार्यक्रम कम कर सकता है क्योंकि यह बालिकाओं को स्कूल जाने से रोकने वाले अवरोधी को समाप्त करने में भी सहायता करता है.

मध्याह्न भोजन स्कीम छात्रों में ज्ञानात्मक, भावात्मक और सामाजिक विकास में मदद करती है. सुनियोजित मध्याह्न भोजन को बच्चों में विभिन्न अच्छी आदतें डालने के अवसर के रूप में उपयोग में लाया जा सकता है. यह स्कीम महिलाओं को रोजगार के उपयोगी स्रोत भी प्रदान करती है.

मिड-डे मील योजना की कार्य प्रणाली (Implementation Procedure of Mid-Day Meal Scheme)

इस योजना को राज्य सरकारों की सर्व शिक्षा अभियान समितियों के द्वारा संचालित कराया जाता है. ये समितियाँ अपने-अपने क्षेत्र में इस योजना का संचालन तथा निगरानी करती हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूलों में ही भोजन तैयार कराया जाता है. शहरी क्षेत्रों में ठेकेदारों के द्वारा भोजन उपलब्ध कराया जाता है.

सरकारी दावे के अनुसार कक्षा 1 से 5 तक प्रत्येक बच्चे को प्रतिदिन 100 ग्राम अनाज, दाल, सब्जी दिए जा रहे हैं और कक्षा 6 से कक्षा 8 तक प्रत्येक छात्रों को प्रतिदिन 150 ग्राम अनाज, दाल, सब्जी दिए जा रहे हैं. कई बार स्थानीयता के आधार पर इनमें बदलाव भी होते है.

मिड-डे मील योजना के गुण (Merits of MidDay Meal Programme)

मिड-डे मील योजना के गुण इस प्रकार हैं-

1. इस योजना को लागू करने के बाद से प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक स्कूलों में प्रवेश लेने वाले छात्रों संख्या में वृद्धि हुई है.

2. पिछड़ी जाति, अनुसूचित जाति, जनजाति व मुस्लिम छात्रों का नामांकन बढ़ा है.

3. इस योजना के बाद से ही बीच में स्कूल छोड़ जाने वाले छात्रों की संख्या में कमी आयी है अर्थात् अपव्यय को समस्या का समाधान हुआ है.

4. इस योजना के कारण गरीब परिवारों के बच्चे जिन्हें पौष्टिक आहार नहीं मिलता था उन्हें पौष्टिक आहार मिलने लगा है जिससे उनका पोषण हुआ है. छात्रों के एक साथ बैठकर खाने से जातिगत भेदभाव में कमी आयी है.

मिड-डे मील योजना के दोष (Demerits of Mid Day Meal Programme)

मिड-डे मील के प्रमुख दोष इस प्रकार हैं-

1. जो धनराशि सरकार से इस योजना के लिए स्कूलों को प्रदान की जा रही है उसका सही प्रयोग नहीं किया जा रहा है.

2. समाचार पत्रों में खबरें प्रकाशित होती रहती हैं कि मिड-डे मील खाने से छात्रों की तबियत खराब हो गई. इसका प्रमुख कारण है मिड-डे मील बनाते समय सफाई का ठीक प्रकार से ध्यान न रखना.

3. इस योजना के प्रति कई स्कूल गम्भीर नहीं हैं. इस कारण योजना का ठीक से संचालन नहीं हो पा रही है.

4. कोई भी योजना छात्रों के जीवन से खिलवाड़ करने की इजाजत नहीं देती है, इस योजना के प्रति गम्भीरता न होने से यह बालकों के लिए लाभदायी से ज्यादा कष्टदायी सिद्ध हो रही है.

इस योजना में अच्छाइयाँ तो हैं परन्तु साथ में कुछ बुराइयाँ भी हैं. इस योजना को लागू हुए बहुत समय हो गया है परन्तु इससे जो लाभ होने चाहिए थे, उनका प्रतिशत कम है. यदि इस योजना से जुड़े व्यक्ति अपना कार्य निष्ठा व ईमानदारी से करें तो इस योजना से बहुत लाभ हो सकते हैं. अपव्यय की समस्या का समाधान तथा सार्वभौमीकरण के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है. इस योजना में हो रही लापरवाही की जाँच कराकर दोषी व्यक्तियों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए तब ही यह योजना अपने उद्देश्यों को प्राप्त कर पाएगी.

छात्रों/विद्यालयों के प्रदर्शन में मिड-डे मील प्रभाव (Effects of Mid-day meal on Performance of Students/Schools)

देश भर में राज्य/केन्द्र शासित प्रदेशों में मिड-डे मील योजना के अन्तर्गत 25-70 लाख रसोइया सहायकों को काम दिया गया. इन सहायकों को इस कार्य के लिए मानदेय को संशोधित कर दिसम्बर, 2009 से एक हजार रुपये प्रति माह कर दिया गया तथा साल में कम से कम दस महीने कार्य दिया गया. इस कार्य के लिए रसोइया सहायकों को दिए जाने वाले मानदेय का खर्च केन्द्र और पूर्वोत्तर राज्यों के बीच 90:10 के औसत में उठाया गया, जबकि अन्य राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों तथा केन्द्र के बीच यह औसत 25: 75 तय किया गया.

वर्तमान में, मिड डे मील रसोइयों को साल में केवल 10 महीने का मानदेय 2000 रुपये प्रति माह की दर से मिलता है. अब इसे 12 महीनों तक बढ़ाने और न्यूनतम वेतन भी 10,000 रुपये प्रतिमाह करने की योजना है. बिहार सरकार ने हाल ही में इनका मानदेय 1650 रुपये से बढ़ाकर 3300 रुपये किया है.

यदि राज्य/केन्द्र शासित प्रदेश चाहे तो इस कार्य में किये जाने वाले खर्च में योगदान निर्धारित अनुपात से अधिक भी कर सकते हैं. मानव संसाधन विकास मन्त्री श्रीमती स्मृति इरानी ने लोकसभा में जानकारी दी कि योजना को वर्ष 2009-10 में संशोधित किया गया है. योजना के अन्तर्गत भोजन तैयार करने के लिए वर्ष 2010-11 से प्रत्येक वर्ष खर्च में साढ़े सात प्रतिशत वृद्धि का प्रावधान किया गया. इस खर्च में अन्तिम बार 1 जुलाई, 2014 को वृद्धि की गई.

मध्याह योजना स्कूल में भोजन उपलब्ध कराने की सबसे बड़ी योजना है. इससे रोजाना सरकारी सहायता प्राप्त 11-58 लाख से भी अधिक स्कूलों के करीब 8 से 10 करोड़ बच्चे लाभान्वित होते हैं.

विश्व में मिड-डे मील योजना के समान कुछ प्रमुख योजनाएं

भारत की तरह, दुनिया भर के अन्य कई देशों में भी मिड-डे मील योजना जैसे कार्यक्रम चलाए जाते हैं. इनका मुख्य उद्देश्य बच्चों के पोषण और शिक्षा में सुधार लाना है. इन योजनाओं को अक्सर “स्कूल भोजन कार्यक्रम” (School Meal Programs) के नाम से जाना जाता है.

विश्व में मिड-डे मील योजना के समान कुछ प्रमुख योजनाएं निम्नलिखित हैं:

  • संयुक्त राज्य अमेरिका (United States): अमेरिका में “नेशनल स्कूल लंच प्रोग्राम” (National School Lunch Program) चलाया जाता है. यह उन बच्चों को सब्सिडी वाला या मुफ्त भोजन प्रदान करता है, जिनके परिवार की आय कम है.
  • ब्राजील (Brazil): ब्राजील में “राष्ट्रीय स्कूल भोजन कार्यक्रम” (National School Feeding Program – PNAE) चलाया जाता है, जो सभी सार्वजनिक स्कूलों के बच्चों को मुफ्त भोजन प्रदान करता है. इस कार्यक्रम की एक अनूठी विशेषता यह है कि यह स्थानीय किसानों से भोजन की खरीद को प्राथमिकता देता है. इससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी फायदा होता है.
  • फिनलैंड (Finland): फिनलैंड उन पहले देशों में से एक था जिसने स्कूल भोजन की शुरुआत की. 1943 से, फिनलैंड में सभी स्कूली बच्चों को मुफ्त, पौष्टिक भोजन प्रदान किया जाता है.
  • स्वीडन (Sweden): फिनलैंड की तरह, स्वीडन भी 1946 से सभी स्कूली बच्चों को मुफ्त भोजन प्रदान कर रहा है.
  • एस्टोनिया (Estonia): एस्टोनिया में भी प्राथमिक और माध्यमिक दोनों स्तरों के स्कूलों में मुफ्त भोजन परोसा जाता है.
  • स्कॉटलैंड और वेल्स (Scotland and Wales): इन देशों ने भी सभी प्राथमिक स्कूल के बच्चों को मुफ्त स्कूल भोजन प्रदान करने की योजनाएं शुरू की हैं.
  • विश्व खाद्य कार्यक्रम (World Food Programme – WFP): संयुक्त राष्ट्र का विश्व खाद्य कार्यक्रम दुनिया भर के कई गरीब देशों में स्कूल भोजन कार्यक्रम का समर्थन करता है. इसका उद्देश्य कुपोषण को दूर करना और बच्चों को स्कूल आने के लिए प्रेरित करना है. यह कार्यक्रम विशेष रूप से संकटग्रस्त और कमजोर देशों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
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