बिहार के वन्यजीव अभ्यारण्य और राष्ट्रिय उद्यान जैव विविधता के संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान देते है. ये आरक्षित क्षेत्र विविध प्रकार के जानवरों, कीटों, पौधों, सरीसृपों, जलीय जीवों और अन्य प्राणियों को सुरक्षित आश्रय स्थल प्रदान करते है. बिहार में जंगलों का क्षेत्र काफी कम है. लेकिन जो भी वैन क्षेत्र है, वह विविधता से परिपूर्ण है. इसलिए राज्य में 11 वन्यजीव अभ्यारण्य, एक जैविक उद्यान और एक राष्ट्रिय उद्यान (National Park) स्थापित किया गया है.
विभिन्न जीवों को आश्रय के लिए पर्याप्त क्षेत्र मुहैया करवाने के उद्देश्य से, बिहार के अभ्यारण्यों में पर्याप्त क्षेत्र आरक्षित किए गए है. बिहार हिमालय के तलहटी में बसा है. इसका प्रभाव बिहार के जीव-जंतुओं के विविधता में स्पष्ट दिखता है. साथ ही, हिमालय के जंगलों से अक्सर कई जीव उत्तरी बिहार के इलाकों में आ धमकते है.
बिहार के वन्यजीव अभ्यारण्यों की सूचि (List of Wildlife Sanctuaries in Bihar)
यहाँ चिकित्सा से लेकर अन्य कई प्रकार के ऐतिहाती उपाय किए गए है. नीचे दिए गए तालिका में बिहार राज्य में स्थित पक्षी और पशु वन्यजीव अभयारण्य, उनके स्थापना वर्ष और स्थान के साथ अवलोकन दिया गया है:
नाम | प्रकार | बिहार के जिले | स्थापना वर्ष | आकार (वर्ग किमी में) |
बरेला झील सलीम अली पक्षी अभयारण्य | वन्यजीव अभ्यारण्य | वैशाली | 1997 | 1.96 |
भीमबांध वन्यजीव अभयारण्य | वन्यजीव अभ्यारण्य | मुंगेर | 1976 | 681.99 |
गौतम बुद्ध वन्यजीव अभयारण्य | वन्यजीव अभ्यारण्य | गया | 1976 | 259.48 |
कैमूर वन्यजीव अभयारण्य | वन्यजीव अभ्यारण्य | कैमूर और रोहतास | 1979 | 1504.96 |
कांवर झील पक्षी अभयारण्य | वन्यजीव अभ्यारण्य | बेगूसराय | 1987 | 67.5 |
नागी बांध पक्षी अभयारण्य | वन्यजीव अभ्यारण्य | जमुई | 1987 | 7.91 |
नकटी बांध पक्षी अभयारण्य | वन्यजीव अभ्यारण्य | जमुई | 1987 | 3.32 |
पंत वन्यजीव अभयारण्य | वन्यजीव अभ्यारण्य | राजगीर,नालंदा | 1978 | 35.84 |
संजय गांधी जैविक उद्यान | चिड़ियाघर और वनस्पति उद्यान | पटना | 1969 | 0.619 |
उदयपुर वन्यजीव अभयारण्य | वन्यजीव अभ्यारण्य | चंपारण | 1978 | 8.74 |
वाल्मिकी राष्ट्रीय उद्यान | राष्ट्रीय उद्यान | पश्चिमी चंपारण | 1989 | 335.65 |
वाल्मिकी वन्यजीव अभयारण्य | वन्यजीव अभ्यारण्य | पश्चिमी चंपारण | 1976 | 880.78 |
विक्रमशिला गंगा डॉल्फिन अभयारण्य | वन्यजीव अभ्यारण्य | भागलपुर | 1990 | 60 कि.मी |
बिहार के 11 वन्यजीव अभ्यारण्य, राष्ट्रिय और जैवक उद्यान
बिहार राज्य में स्थितस्थित 13 वन्य आरक्षित क्षेत्रों का वर्णन इस प्रकार है:
1. भीमबांध वन्यजीव अभ्यारण्य (Bhimbandh Wildlife Sanctuary)
भीमबांध वन्यजीव अभ्यारण्य का स्थापना साल 1976 में किया गया था. इसके पूरब में संथाल परगना, दक्षिण में छोटा नागपुर पठार और उत्तर में गंगा नदी स्थित है. यह भागलपुर जिला मुख्यालय के नजदीक है और दक्षिणी मुंगेर जिले के हवेली खरगपुर शहर के पास अवस्थित है. इसके चारों ओर जंगल का अभाव है, जहाँ घनी आबादी बसी है. भीमबांध वन्यजीव अभ्यारण्य का अधिकांश भूभाग लम्बी ढलानों से बना है, जो एक मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है.
यहां कई गर्म पानी के झरने है, जिसका तापमान सालभर एक समान रहता है. इनमें सीता कुंड और ऋषि कुंड सबसे अच्छे और प्रसिद्ध है. बिहार सरकार ने इन झरनों का इस्तेमाल सिंचाई के लिए करने का निर्णय लिया है.
इसके अलावा भीमबांध वन्यजीव अभ्यारण्य में बाघ, तेंदुए, जंगली भालू, चीतल जैसे कई अन्य जीव-जंतु पाए जाते है. यहाँ पक्षियों की भी विविध प्रजाति पाई जाती है. पक्षियों में मैना, मोर, ग्रे तीतर, बटेर, मालाबार हॉर्नबिल, चितकबरा हॉर्नबिल, निगल, नाइटजार्स, ड्रोंगो, पैराडाइज़ फ्लाईकैचर, किंगफिशर और बुलबुल मुख्य है. स्थानीय इलाके के पक्षियों का इस इलाके में आवागमन होते रहता है.
जीव-जंतुओं के अलावा यहां विभिन्न तरह के पेड़-पौधे और घास के मैदान भी है. साल, केन्दु, सलाई, आसन, बहेरा, अर्जुन और महुआ मुख्य है.
2. गौतम बुद्ध वन्यजीव अभ्यारण्य (Gautam Budha Wildlife Sanctuary)
गौतम बुद्ध वन्यजीव अभ्यारण्य मध्य-पूर्व भारत में स्थित अभ्यारण्य है, जो बिहार राज्य के गया और झारखंड राज्य के कोडरमा जिले में फैला हुआ है. तथागत बुद्ध को गया जिले के बोधगया नामक स्थान पर ज्ञान प्राप्त हुआ था. इसलिए इनके नाम पर ही इस अभ्यारणय का मान गौतम बुद्ध वन्यजीव अभ्यारण्य रखा गया है.
इसे आरक्षित किए जाने तक विशेष शिकार अभ्यारण्य था. इस इलाके में छोटा नागपुर के शुष्क पर्णपाती वन और निचले गंगा के मैदानों के नम पर्णपाती वन पाए जाते है. सूखे और गीले साल (Shorea robusta) के जंगल, तंग घाटी के कांटेदार जंगल, और उष्णकटिबंधीय शुष्क नदी के जंगल इस अभयारण्य में पाई जाने वाली प्राकृतिक वनस्पतियां है.
यहाँ बाघ, तेंदुए, भेड़िये, स्लॉथ भालू, चीतल, चिंकारा जैसे कई जीव-जंतु, पक्षियों की विभिन्न प्रजातियाँ, विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधे, जहां और किट-पतंग पाए जाते है.
इसका आकार 259.5 वर्ग किलोमीटर है. इन निम्नलिखित विशेषताओं के लिए जाना जाता है:
- अनोखा पारिस्थितिकी तंत्र
- सुंदर लहरदार भूभाग
- प्रचुर मात्रा में समृद्ध वनस्पति और जीव
- विविध प्रकार के मांसाहारी और शाकाहारी जीव-जंतु
गौतम बुद्ध वन्यजीव अभ्यारण्य गया से 65 किमी दक्षिण पूर्व में है. गया में एक रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डा है. यह गया के बिरहोर जनजाति के निवास स्थान के भी करीब है.
3. कैमूर वन्यजीव अभयारण्य (Kaimur Wildlife Sanctuary in Hindi)
कैमूर वन्यजीव अभ्यारण्य क्षेत्रफल के दृष्टि से बिहार का सबसे बड़ा अभयारण्य है. इसका क्षेत्रफल लगभग 1342 वर्ग किमी है, जो बिहार के दो जिलों, कैमूर और रोहतास में स्थित है. गौतम बुद्ध वन्यजीव अभ्यारण्य में प्राचीन गुफा चित्र और दुनिया का सबसे पुराना जीवाश्म पार्क है. इसके घाटियों में कई झरने हैं, जिनमें करकट और तेलहर झरना सबसे प्रसिद्ध है.
यहां स्थानीय पक्षी के 70 से अधिक प्रजातियां स्थायी निवास करते है. सर्दी के मौसम में मध्य एशिया से यहाँ प्रवासी पक्षी आते है, जिससे पक्षियों के संख्या में इजाफा हो जाता है. इसके अलावा यहां बाघ, तेंदुआ, जंगली सूअर, स्लॉथ भालू, सांभर हिरण, चीतल, चार सींग वाले मृग और नीलगाय जैसे जीव भी पाए जाते है. बिहार सरकार इसे बाघ आरक्षित क्षेत्र बनाने पर विचार कर रही है.
यहाँ वनस्पतियों के भी विविध प्रकार पाए जाते है. उष्णकटिबंधीय शुष्क मिश्रित पर्णपाती, शुष्क साल वन, बोसवेलिया वन और शुष्क बांस ब्रेक यहां पाए जाने वाले मुख्य वनस्पति के प्रकार है. यह कई अन्य दुर्लभ और लुप्तप्राय वनस्पतियों और जीवों का आश्रय स्थल है. रोहतासगढ़ किला और शेरगढ़ किला भी इन्हीं जंगलों में स्थित हैं. इसमें कई मेगालिथ, प्रागैतिहासिक युग की रॉक पेंटिंग और बीते युग के पत्थर के शिलालेख भी हैं.
4. पंत वन्यजीव अभ्यारण्य (Pant Wildlife Sanctuary in Hindi)
पंत वन्यजीव अभ्यारण्य बिहार के नालंदा जिले में राजगीर शहर के नजदीक राजगीर के पहाड़ियों के बीचोबीच स्थित है. इसका क्षेत्रफल 29.545 वर्ग किमी है, जो पांच पर्वतों रत्नागिरि, विपुलगिरि, वैभारगिरि, सोनगिरि और उदयगिरि से घिरा है. इस अभ्यारण्य के सीमा से 100 से तीन किलोमीटर दुरी के क्षेत्र को पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया गया है.
इस क्षेत्र के दक्षिण गंगा के मैदान के भीतर राजगीर पहाड़ियों में स्थित होने. और ऊंचाई व आवास में भिन्नता के कारण वनस्पतियों की एक विविध श्रृंखला होने की संभावना है. यहां मुख्यतः मिश्रित पर्णपाती जंगल की वनस्पतियां पाई जाती है, जो शुष्क मौसम में अपने पत्ते गिरा देते है. साल (Shorea robusta), टीक (Tectona grandis), नीम (Azadirachta indica), सेमल (Bombax ceiba), और भारतीय शीशम या रोज़वुड (Dalbergia latifolia) इनमें मुख्य है. ये वनस्पति मृदा अपरदन रोकने और भूजल भराव में महत्वपूर्ण योगदान देते है. इससे जहाँ इलाके में भूजल के स्थिति में सुधार होता है वहीं नदियों में गाद भी नहीं भरता है.
इस अभ्यारण्य में पाए जाने वाले मुख्य प्रजातियों में जंगली सूअर (Sus scrofa), नीलगाय (Boselaphus tragocamelus), चीतल (Axis axis), लाल जंगलफाउल (Gallus gallus murghi), भारतीय क्रेस्टेड साही (Hystrix indica), भारतीय खरगोश (Lepus nigricollis) , उत्तरी मैदानी भूरे लंगूर (Semnopithecus entellus), रीसस मकाक (Macaca mulatta), और गोल्डन जैकल (Canis aureus) शामिल है. यहां लुप्तप्राय प्रजाति भारतीय अजगर (Python molurus) भी पाया जाता है.
5. कांवर झील पक्षी अभयारण्य (Kanwar Lake Bird Sanctuary in Hindi)
यह बिहार के बेगूसराय जिला मुख्यालय से 22 किलोमीटर दूर उत्तर-पश्चिम में मंझौल प्रखंड में स्थित है. स्थानीय लोग इसे कांवर ताल या कांवर झील के नाम से बुलाते है. यह एक ऑक्सबो झील है, जिसे गोखुर झील या छाड़न झील भी कहा जाता है. ऐसे झील नदी चैनल के परित्यक्त घुमावदार लूप में स्थित होती है. यह नदी के यू-आकार या घुमावदार मोड़ से बनती है जो मुख्य नदी प्रवाह से कट जाती है.
जब नदी मैदानी इलाके में प्रवेश करती है तो यह बड़े-बड़े मोड़ बनाती है, जिन्हें मेंडर्स कहा जाता है. समय के साथ ये मंदरस नदी के बहाव से अलग हो जाते है और कटी हुई झीलों का निर्माण करते है. राजस्थान का नक्की झील और केरल का विन्थाला झील इसके अन्य उदाहरण है.
कांवर झील का निर्माण गंगा के सहायक नदी बूढ़ी गंडक के घुमावदार मोड़ द्वारा हुआ है. इसे नवंबर 2020 में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा बिहार की पहली रामसर साइट के रूप में नामित किया गया था.
यह पाँच गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजातियाँ आश्रय स्थल है. इसमें तीन गिद्ध – लाल सिर वाला गिद्ध (Sarcogyps Calvus), सफेद दुम वाला गिद्ध (Gyps Bengalensis) और भारतीय गिद्ध (Gyps Indicus)- शामिल है. साथ ही, दो जलपक्षी मिलनसार लैपविंग (Vanellus Gregarius) और बेयर पोचार्ड (Aythya Baeri) भी यहां बसते है.
अभयारण्य के लिए प्रमुख खतरे जल प्रबंधन गतिविधियाँ जैसे जल निकासी, बांध और नहरीकरण हैं. साथ ही झील का अतिक्रमण और अवैध शिकार जीवों के सुरक्षा के लिए खतरा है.
6. विक्रमशिला गंगा डॉल्फिन अभयारण्य (Vikramshila Gangetic Dolphin Sanctuary)
यह बिहार के भागलपुर जिले में गंगा नदी में स्थित अभ्यारण्य है. इस संरक्षण का उद्देश्य जलीय जीवों और इनके प्राकृतिक आवास का सुरक्षा करना है. मुख्यतः गंगा डॉलफिन के संरक्षण के उद्देश्य से इसे बनाया गया है. गंगा डॉल्फिन भारत का राष्ट्रिय जलीय जीव है. स्थानीय लोग इसे सूँस नाम से बुलाते है. यह अभ्यारण्य गंगा नदी में सुल्तानगंज से कहलगांव के बीच नदी के 60 किलोमीटर लम्बाई में फैला हुआ है. गंगा अपना भू-आकृति बदलते रहती है, इसलिए इस अभ्यारण्य के सीमा और विस्तार में भी तदनुरूप बदलाव आता है.
इस इलाके में प्राचीन पाल वंश द्वारा स्थापित विक्रमशिला विश्वविद्यालय के पुरातात्विक अवशेष है, जो बौद्ध शिक्षा का एक मुख्य केंद्र था. इसी प्राचीन विश्वविद्यालय के नाम पर गंगा डॉल्फिन अभ्यारण्य का नामकरण किया गया है. विक्रमशिला अभ्यारण्य साल 1991 में स्थापित किया गया था. यह गंभीर रूप से लुप्तप्राय गंगा डॉल्फ़िन के लिए एशिया का एकमात्र संरक्षित निवास स्थान है.
गंगा डॉल्फिन भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची- I, प्रवासी प्रजातियों के सम्मेलन का परिशिष्ट 2 और 2006 के IUCN की संकटग्रस्त प्रजातियों की लाल सूची में शामिल है. लाल सूचि को लुप्तप्राय जीवों का सूचि माना जाता है.
विक्रमशिला अभ्यारण में जलीय जीवों की कई अन्य प्रजातियां भी निवास करती है. इन जीवों का अस्तित्व भी संकट में है. इनमें जलपक्षी की 135 प्रजातियाँ, घड़ियाल (Gavialis gangeticus), भारतीय स्मूथ-कोटेड ऊदबिलाव (Lutrogale Perspicillata), और अन्य मीठे पानी के कछुए मुख्य है.
7. उदयपुर वन्य प्राणि अभयारण्य (Udaypur Wildlife Sanctuary)
उदयपुर वन्यजीव अभ्यारण्य बिहार राज्य के पश्चिम चम्पारण जिले में स्थित है. इसे 8.74 वर्ग किमी भूमि पर 1978 में स्थापित किया गया है. यह आरक्षित क्षेत्र गंगा के नीचले मैदानों में स्थित है. यहाँ नम पर्णपाती वन पाए जाते है. यह अभ्यारण्य मुख्यतः एक आर्द्रभूमि है और गंडक नदी के बाढ़ क्षेत्र में गोखुर झील (Oxbow Lake) पर स्थित है. यहां विविध प्रकार के स्थायी और जलीय पक्षियां निवास करती है.
अभयारण्य में खैर-सिस्सू वन, शुष्क नदी वन और दलदली वन (Acacia catechu-Dalbergia sissoo) के खंड शामिल हैं. अभयारण्य चंपारण वन प्रभाग के उप निदेशक के अधिकार क्षेत्र में है, जिसका मुख्यालय बेतिया में है. यह अभयारण्य बेतिया आर्द्रभूमि से लगभग आधे घंटे की दूरी पर है.
8. संजय गांधी जैविक उद्यान (Sanjay Gandhi Biological Park)
संजय गाँधी जैविक उद्यान को आमतौर पर पटना चिड़ियाघर कहा जाता है. यह बिहार राज्य के राजधानी पटना के बेली रोड पर स्थित है. इस पार्क को 1969 में पहली बार वनस्पति उद्यान का रूप दिया गया और 1973 में इसे एक चिड़ियाघर के रूप में सार्वजनिक किया गया. तब से इस पार्क में चिड़ियाघर और वनस्पति उद्यान का संयोजन रहा है. यहाँ बड़ी संख्या में स्थानीय और विदेशी पर्यटक भी विविध प्रकार के पशु-पक्षी और वृक्षों की प्रजाति देखने आते है.
राज्य सरकार ने लोक निर्माण विभाग और राजस्व विभाग से इस पार्क के भूमि का अधिग्रहण कर 8 मार्च 1983 को इसे संरक्षित वन क्षेत्र घोषित कर दिया.
फिलहाल यहां 300 से अधिक विभिन्न प्रकार के पेड़, जड़ी-बूटियाँ और झाड़ियाँ हैं. यहां औषधीय पौधों की एक नर्सरी, एक गुलाब का बगीचा, एक आर्किड घर, एक फर्न घर और एक कांच का घर है. इस पार्क में लगभग 110 प्रजातियों के 800 से अधिक जानवर पाए जाते हैं. इनमें बाघ, तेंदुआ, धूमिल तेंदुआ, दरियाई घोड़ा, मगरमच्छ, हाथी, हिमालयी काला भालू, सियार, काला हिरण, चित्तीदार हिरण, मोर, पहाड़ी मैना, घड़ियाल, अजगर, भारतीय गैंडा, चिंपैंजी, जिराफ, ज़ेबरा, एमु, सफ़ेद पांडा और सफेद मोर शामिल हैं.
9/10. नकटी बाँध और नागी बांध पक्षी अभ्यारण्य (Nakti Dam and Nagi Dam Bird Sanctuary)
नागी बाँध पक्षी अभ्यारण्य और नकटी बाँध पक्षी अभ्यारण्य, दो अलग-अलग अभ्यारण्य है. लेकिन दोनों काफी करीब है, इसलिए इन्हें एक पक्षी क्षेत्र माना जाता है. यह बिहार राज्य के दक्षिणी जिले झाझा और जमुई में झारखंड के करीब स्थित है. नागी पक्षी अभ्यारण्य को 25 फरवरी 1984 को वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की धारा 18 के तहत एक पक्षी अभ्यारण्य घोषित किया गया. अभ्यारण्य का क्षेत्रफल करीब 2.1 वर्गकिमी है.
यहां पक्षियों कई प्रकार के स्थानीय और प्रवासी पक्षियां निवास करती है. यहां पक्षियों के 136 प्रजाति पाए गए है. प्रवासी पक्षी मुख्यतः शीत ऋतू में नवम्बर से फ़रवरी माह के दौरान यहां आश्रय लेते है. कुछ प्रजातियाँ यूरेशिया, मध्य एशिया, आर्कटिक सर्कल, रूस और उत्तरी चीन से प्रवास कर यहां आते है. ये मुख्यतः जलाशयों के किनारे अपना आश्रय बनाते है.
वेटलैंड्स इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट के अनुसार यहाँ 1,600 बार-हेडेड गूज़ निवास करते है. यह इसके वैश्विक आबादी का 3 फीसदी है. स्थानीय लोग इसे हंस, बड़ा हंस या सफेद हंस कहते है.इसके सिर पर काले रंग की दो धारियां होती है, जो बार (छड़) की तरह दिखती है. इसलिए इसे छड़ जैसे सर वाला हंस (Bar Headed Geese) कहा जाता है. बार हेडेड गूज़ 27 से 29 हजार किलोमीटर की ऊंचाई तक उड़ सकता है. इसलिए यह सुदूर इलाकों से हिमालय की ऊँची चोटियों को पारकर भारतीय क्षेत्र में आ जाता है.
इंडियन कौरसर, इंडियन सैंडग्राउज़, येलो-वेटल्ड लैपविंग और इंडियन रॉबिन यहां पाए जाने वाले कुछ अन्य पक्षियां है. इलाके में जलीय पौधे, तैरते पौधे, दलदली पौधे और तटवर्ती वनस्पति भी पाए जाते है. यहां मनोरम भूदृश्य और घने जंगल है. यहाँ चट्टानों का एक अलग आकृति है, जो सिर्फ कर्नाटक में पाया जाता है. इसलिए बिहार राज्य का पहला पक्षी महोत्स्व साल 2021 में नकटी-नागी पक्षी अभ्यारण्य में आयोजित किया गया था.
इस आयोजन का उद्देश्य पक्षी संरक्षण और उनके आवास, आर्द्रभूमि के बारे में जागरूकता पैदा करना था और इसमें दुर्लभ पक्षी प्रजातियों की पहचान और संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए देश के विभिन्न हिस्सों के विशेषज्ञों के साथ चर्चा शामिल थी.
इससे पहले साल 2004 में, बर्डलाइफ इंटरनेशनल द्वारा नागी बांध पक्षी अभयारण्य को एक महत्वपूर्ण पक्षी क्षेत्र घोषित किया गया था. आईबीए विश्व स्तर पर महत्वपूर्ण पक्षियों और उनके आवासों के संरक्षण के लिए पहचाना जाता है.
इस अभ्यारण्य को कृषि अपवाह, सिंचाई एवं वन विभाग के बीच भूमि विवाद; मछली पकड़ने के लिए साइट को पट्टे पर देना जैसे संकटों से गुजरना पड़ रहा है.
11/12. वाल्मीकि वन्यजीव अभ्यारण्य और वाल्मीकि राष्ट्रिय उद्यान (Valmiki Wildlife Sanctuary and Valmiki Tiger Reserve)
वाल्मिकी वन्यजीव अभ्यारण्य और राष्ट्रीय उद्यान देश का 18वां टाइगर रिजर्व (18th Tiger Reserve of India) है. यह बिहार के पश्चिमी चम्पारण क्षेत्र में स्थित है, जो गंगा के मैदानी जैव-भौगोलिक क्षेत्र को संरक्षित करता है. यह बिहार का एकमात्र राष्ट्रीय उद्यान है. वाल्मिकी टाइगर रिज़र्व 898.45 वर्ग किमी में फैला है, जो जिले के कुल भूमि का 17.4% है. 2022 के आंकड़ों के अनुसार, इस क्षेत्र में 54 बाघ निवास करते थे.
1950 के दशक के शुरुआत तक बेतिया राज और रामनगर राज के पास वाल्मिकी नगर वन क्षेत्र का स्वामित्व था. उस वक्त इसे भैंसा लोटन के नाम से जाना जाता था. इसे 1978 में एक वन्यजीव अभ्यारण्य के रूप में नामित किया गया. इस राष्ट्रीय उद्यान का भीतरी 335 वर्ग किलोमीटर हिस्से को 1990 में देश का 18वाँ बाघ अभयारण्य बनाया गया.
वाल्मीकि वन्यजीव अभ्यारण्य नेपाल के राजकीय चितवन नेशनल पार्क से सटा है. इसलिए वन्य जीव अंतर्राष्ट्रीय सीमा भी पार करते रहते है. वाल्मिकी नगर राष्ट्रीय उद्यान वनस्पतियों और जीवों से समृद्ध है. यहाँ हिरण, चीतल, साँभर, तेंदुआ, नीलगाय, जंगली बिल्ली जैसे जंगली पशुओं के अलावे चितवन नेशनल पार्क से आए एकसिंगी गैडा और जंगली भैंसा भी दिखाई देते है.
अगस्त 2021 तक इस बाघ रिज़र्व में 8% घास के मैदान और 22 जल स्त्रोत पाए गए है. यहां लगभग 400-450 भालू, 98 तेंदुए और 250-300 भारतीय बाइसन भी है. इस जंगल में लगभग 32 सरीसृप पाए जाते हैं, जिनमें कोबरा, अजगर, करैत, मगरमच्छ, सैंड बोआ, घड़ियाल, मॉनिटर छिपकली, बैंडेड करैत आदि मुख्य है.
हिंदुस्तान टाइम्स अखबार के मुताबिक, बिहार के वन विभाग ने इस रिजर्व के गोनौई, भिखना थोरी, हरनाटांड और मदनपुर इलाकों में हिमालयन ग्रिफॉन गिद्धों के घोंसले देखे हैं. विभाग ने इसके संरक्षण के लिए करीब 57.15 लाख रुपये की लागत वाली योजना प्रस्तावित की है.
जंगल में विभिन्न प्रकार के वनों का संयोजन मिलता है. ऐसा हिमालय और गंगा के मैदान की समीपता के कारण हो सकता है. इनमें मुख्य शामिल हैं:
- पेड़: साल, करम, असन, बहेरा, असिध, सिमल, सतसाल
- लता: बबूल पेनाटा (Acacia Pennata), बाउहिनिया वाहली (Bauhinia Vahlii), स्मिलैक्स परविफ्लोरा (Smilax Parviflora), कैसलपिनिया कुकुलता (Caesalpinia Cucculata)
- औषधीय पौधे: सतावर (Asparagus Racemosus), सफेद मूसली, दुधकोरैया (Holarrahena Antidysenterica), आंवला (Emblica Officinalis), पाइपर (Piper Longum)
इसके अलावा रोहिणी, सीहोर, सागौन, बांस, सरकंडा, हाथी घास, खैर, सिस्सू और यूकेलिप्टस जैसी कई वनस्पतियां भी यहां पाए जाते है.
13. बरैला झील सलीम अली पक्षी अभयारण्य
बरैला झील सलीम अली पक्षी अभयारण्य बिहार के वैशाली ज़िले में स्थित है. इसकी स्थापना 1997 में हुई थी. यह अभयारण्य बरैला झील के तट पर स्थित है. इसका क्षेत्रफल 1.92 वर्ग किलोमीटर है.
यह अभयारण्य कई जैविक प्राणियों के लिए जीवन रेखा है. इनमें प्राग्माइटिस, टिफा, हाइड्रिला, यूट्रोकुलेरिया आदि शामिल हैं. यह झील प्रवासी पक्षियों की लगभग 59 प्रजातियों और लगभग 106 प्रकार के स्थानीय पक्षियों के लिए एक प्राकृतिक घर है. हाल के वर्षों में, बरैला झील में आने वाले प्रवासी पक्षियों की संख्या में भारी गिरावट आई है. दो दशक पहले की अपेक्षा अब दस प्रतिशत पक्षी ही आ रहे हैं.
इस अभ्यारणय का नाम प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी डॉ सलीम अली (12 नवंम्बर 1896 – 20 जुन 1987) के नाम पर रखा गया है. इन्हें “भारत का बर्डमैन” भी कहा जाता है. पक्षियों के अध्ययन में इन्होंने कई खोज की और इसे संरक्षित क्षेत्र घोषित करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
सलीम अली (पुरा नाम – सलीम मोइज़ुद्दीन अब्दुल अली) का जन्म महाराष्ट्र के मुंबई शहर में हुआ था. भारत भर में व्यवस्थित रूप से पक्षियों का सर्वेक्षण करने वाले पहले भारतीय थे. उन्होंने कई पक्षी पुस्तकें लिखीं, जिन्होंने भारत में पक्षीविज्ञान (Ornithology) को लोकप्रिय बनाया.
इन्होंने पक्षियों को पकड़ने के लिए प्रसिद्ध गोंग एंड फायर व डेक्कन विधि की खोज की. इस विधि का इस्तेमाल आज भी पक्षी विज्ञानियों द्वारा किया जाता है. आज़ादी के बाद वे बांबे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी के प्रमुख लोगों में रहे. भरतपुर पक्षी विहार की स्थापना में उनकी प्रमुख भूमिका है.
वाकई, बिहार में प्राचीन से लेकर वर्तमान तक के पर्यटन स्थल उपलब्ध है.