औद्योगिक प्रदूषण के बढ़ते प्रभाव के कारण चक्रीय अर्थव्यवस्था ने विशेषज्ञों का ध्यान आकर्षित किया है. चक्रीय अर्थव्यवस्था उत्पादन और उपभोग का वह मॉडल है, जिसमें मौजूदा सामग्रियों और उत्पादों को यथासंभव लंबे समय तक साझा करना, पट्टे पर देना, पुन: उपयोग करना, मरम्मत करना, नवीनीकरण करना और पुनर्चक्रण करना शामिल है. इसे अंग्रेजी में यह सर्कुलर इकोनॉमी या सी इ (Circular Economy या CE) के नाम से विख्यात है. साधारण शब्दों में प्रकृति से प्राप्त किसी संसाधन को लम्बे वक्त तक उपयोग में बनाए रखकर पर्यावरण पर पड़ने वाले दवाब को कम करना ही चक्रीय अर्थव्यवस्था का लक्ष्य है.
चक्रीय अर्थव्यवस्था आर्थिक विकास के पारंपरिक रैखिक मॉडल के लिये एक अधिक संवहनीय एवं प्रत्यास्थी विकल्प की पेशकश करती है. हमारी वर्तमान अर्थव्यवस्था में, हम पृथ्वी से सामग्री लेते हैं, उनसे उत्पाद बनाते हैं, और अंततः उन्हें अपशिष्ट के रूप में फेंक देते हैं – यह प्रक्रिया रैखिक है. इसके विपरीत, एक चक्रीय अर्थव्यवस्था में, हम सबसे पहले पैदा होने वाले कचरे को रोकते हैं मतलब उत्पादित वस्तु का मरम्मत कर या फिर कच्चे माल के रूप में इस्तेमाल कर पुनः उपयोग योग्य बनाते है. यही चक्रीय अर्थय्वावस्था का आधार है.
चक्रीय अर्थव्यवस्था का लक्ष्य तीन आधार सिद्धांतों का पालन करते हुए जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता हानि, अपशिष्ट और प्रदूषण जैसी वैश्विक चुनौतियों से निपटना है. चक्रीय अर्थव्यवस्था का तीन सिद्धांत है : अपशिष्ट और प्रदूषक उत्पादों का समाधान (Reduce), पुनर्चक्रण द्वारा सामग्रियों को उपयोग में बनाए रखना (Recycle) और प्राकृतिक प्रणालियों को पुनर्जीवित करना (Reuse). इस सिद्धांत के अवधारणा का विस्तार 10आर के रूप में किया गया है.
चक्रीय अर्थव्यवस्था की अवधारणा (Concept of Circular Economics in Hindi)
चक्रीय अर्थव्यवस्था एक नयी अवधारणा है. इसका विकास प्रदूषण के बढ़ते स्तर के साथ 70 के दशक में हुआ माना जाता है. ब्रेटेलर (2022) के अनुसार, चक्रीय अर्थव्यवस्था का सबसे व्यापक मॉडल “10आर सिद्धांत” है, जिसे टिकाऊ उद्यमिता और पूर्व डच पर्यावरण मंत्री प्रोफेसर जैकलिन क्रैमर द्वारा विकसित किया गया है. 10आर का अवधारणा किसी वस्तु के उपभोग और उत्पादन के तरीके से सम्बंधित है. 10आर का उद्देश्य किसी भी उत्पाद, प्रक्रिया या सेवा में चक्रीयता प्राप्त करना है. इसमें 10आर का मतलब (Meaning of 10Rs) है-
- Reuse (पुन: उपयोग) – इसका मतलब है कि किसी वस्तु का कई बार उपयोग करना व सेवा के रूप में किसी वस्तु को उपयोग के लिए दूसरों के साथ साझा करना, जिससे दूसरे व्यक्ति को अल्पकालीन उपयोग के लिए वह वास्तु खरीदना न पड़े और प्राकृतिक संसाधनों पर कम बोझ हो.
- Reduce (कम करना) – कम प्राकृतिक संसाधनों और सामग्रियों का उपभोग कर अधिक कुशल उत्पाद बनाने और उनके उपयोग को प्राथमिकता देना प्राकृतिक दोहन को कम करता है.
- Renew/Redesign (नया बनाना) – इसका तात्त्पर्य वस्तु के पुनः उपयोग को ध्यान में रखते हुए उत्पाद को नया स्वरूप देने से है.
- Reuse (पुन: उपयोग) – अच्छी स्थिति के पुराने उत्पाद, जो अभी भी मूल कार्य करने में सक्षम हैं, नए उपभोक्ताओं को दिए जा सकते हैं. निकट संबंधियों व दोस्तों के बीच कपड़े, किताबों इत्यादि का आदान-प्रदान इसका एक उदाहरण है. पुराने वस्तुओं के दूकान से खरीदारी कर भी इस आदत को बढ़ावा दिया जा सकता है.
- Repair (मरम्मत) – पुराने वस्तुओं या इसके कलपुर्जों का मरम्मत कर फिर से उपयोग लायक बनाना.
- Refurbish (फिर से चमक लाना) – मशीन के कलपुर्जों को खोलकर सफाई करना व उन्हें आपस में जोड़कर पुनः मशीन का रूप देना.
- Remanufacture (पुनः निर्माण) – फेंके गए उत्पादों के अच्छे हिस्सों का उपयोग करके एक नया उत्पाद बनाने कि प्रक्रिया पुनर्विनिर्माण कहलाता है. इससे संसाधनों के दोहन को कम करने और “कचरे” का बेहतर उपयोग करने में मदद मिलती है.
- Repurpose (पुनः प्रयोजन) – पुरानी वस्तुओं को त्यागने के बजाय, हम उसके उपयोग के नए तरीके ढूंढ सकते हैं. इस तरह पुराने उत्पादों का नए उत्पाद के रूप में इस्तेमाल हो सकता है. जैसे पुराने कपड़ो थैला बनाना इत्यादि.
- Recycle (उपयोग दोहराना) – समान या निम्न-गुणवत्ता वाला उत्पाद प्राप्त करने के लिए सामग्री को संसाधित करना महत्वपूर्ण है. हमारे इस्तेमाल की लगभग सभी चीजें पुनर्चक्रण योग्य होती हैं. जब कपड़ा और कपड़ों की बात आती है तो यह लगभग 100% पुनर्चक्रण योग्य होता है. धातु के लिए यह सामान्य है. उदाहरण के लिए, विभिन्न शिल्प जो पुराने कपड़ों और स्क्रैप से कपड़े को रीसाइक्लिंग करके बनाए जा सकते हैं.
- Recover (वापस पाना) – यह ऊर्जा पुनर्प्राप्ति के साथ अपशिष्ट को पूर्णतः जलाने की प्रक्रिया से सम्बंधित है.
चक्रीय अर्थव्यवस्था की आवश्यकता (Need of Circular Eco’nomy)
- प्राकृतिक संसाधन सिमित है, लेकिन जनसंख्या विस्फोट और बढ़ती समृद्धि के कारण प्राकृतिक संसाधनों का अभाव हो गया है.
- पुराने वस्तुओं के पुनः इस्तेमाल से आयात बिल कम किया जा सकता है. इससे किसी देश की अर्थव्यवस्था को फायदा होगा. प्राकृतिक संसाधन विहीन देशों के लिए यह अत्यधिक लाभदायक है.
- चक्रीय अर्थव्यवस्था से रिसाइक्लिंग उद्योगों को बढ़ावा मिलती है. इस तरह एक नए उद्योग की स्थापना की जा सकती है. इन उद्योगों के उत्पाद अपेक्षाकृत सस्ते होते है, जो अधिक संवहनीय उत्पादन एवं उपभोग (Sustainable Production and Consumption) को बढ़ावा देती है. यह सतत विकास के एजेंडा 2030 लक्ष्यों को पाने में मददगार है.
- पुनर्चक्रण से कचरे के समस्या का समाधान हो जाता है. इससे प्रदूषण को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी.
- चक्रीय अर्थव्यवस्था प्राकृतिक स्त्रोतों से संसाधन के दोहन की संभावना को कम कर देता है. इस तरह खनन के लिए आवश्यक ऊर्जा की बचत हो जाती है.
विश्व और भारत की चक्रीय अर्थव्यवस्था पर पहल (World and Indian Economy of Circularity)
आबादी के विस्फोर और उपभोग की संस्कृति के कारण विश्व एकरेखीय अर्थव्यवस्था से चक्रीय अर्थव्यवस्था की ओर प्रस्थान कर रहा है. विश्व के कई देशों और संगठनों ने इस दिशा में प्रयास तेज कर दिए है. इनमें यूरोपियन यूनियन, चीन, अमेरिका व भारत समेत कई अन्य विकसित व विकासशील देश शामिल है.
2015 में यूरोपियन यूनियन ने चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए एक कार्य योजना को मंजूरी दी. दिसंबर 2019 में, यूरोपीय ग्रीन डील प्रस्तुत की गई. इसके हिस्से के रूप में मार्च 2020 में नए एक्शन प्लान को मंजूरी दी गई, जिसमें चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए व्यवसायों, सार्वजनिक प्राधिकरणों और उपभोक्ताओं के लिए एक स्थायी मॉडल अपनाने के उपाय शामिल थे. इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि संसाधन यथासंभव लंबे समय तक अर्थव्यवस्था में बने रहें.
चीन और जर्मनी ने चक्रीय अर्थव्यवस्था को बाध्यकारी रूप से लागू किया है. चीन ने चक्रीय अर्थव्यवस्था संवर्धन कानून भी पारित किए है. भारत भी चक्रीय अर्थव्यवस्था के दिशा में आगे बढ़ रहा है. भारत ने सतत विकास के लक्ष्यों को ध्यान में रख हाल ही में तीन नए कानून पारित किए है:-
- बैटरी अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2022
- प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2022
- ई-अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2022
कई बार विकसित देश अपने यहाँ के कचरे को अविकसित या विकासशील देशों में भेज देते है, जहाँ इनके निपटान का कोई उद्योग नहीं होता है. ऐसे स्थितियों से बचने के लिए बेसल कन्वेंशन सहायक है. बेसल कन्वेंशन को खतरनाक अपशिष्टों की सीमा पार आवाजाही और उनके निपटान के नियंत्रण पर एक अंतरराष्ट्रीय संधि है जो विशेष रूप से विकसित से कम विकसित देशों में खतरनाक कचरे के आंदोलन को सीमित और नियंत्रित करने के लिए डिज़ाइन की गई है.
चक्रीय अर्थव्यवस्था के लाभ (Benefits of Circular Economics in Hindi)
व्यापार और विकास के लिए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAD) के अनुसार भारत चक्रीय अर्थव्यवस्था को अपनाकर 2030 तक अपने अर्थव्यवस्था के आकार में 200 बिलियन डॉलर जोड़ सकता है. सिर्फ शहर व निर्माण, खाद्य व कृषि तथा यातायात व वाहन उद्योग में चक्रीय अर्थव्यवस्था अपनाने से भारतीय अर्थव्यवस्था को 600 डॉलर बिलियन से अधिक का लाभ होगा.
- निति आयोग के सीईओ ने साल 2019 में कहा था कि भारत चक्रीय अर्थव्यवस्था को अपनाकर 1.4 करोड़ अतिरिक्त नौकरियां प्राप्त कर सकता है.
- उपभोक्ता पुराने व अन्युपयुक्त वस्तुओं को पुनर्चक्रण के लिए बेच सकते है. इससे उनके धन में थोड़ी वृद्धि होगी. इस तरह वे करता के साथ-साथ विक्रेता भी बन जाएंगे.
- खनन पर दवाब कम होगा. इससे उत्सर्जित होने वाले प्रदूषण कम तो होगा ही, प्राकृतिक संसाधन भी लम्बे वक्त तक संरक्षित रहेंगे.
- यदि शत-प्रतिशत चक्रीय अर्थव्यवस्था लागु कर दिया जाए तो कचरे के समस्या का पूर्णतः समाधान हो जाएगा.
चक्रीय अर्थव्यवस्था की के समक्ष चुनौतियाँ
चक्रीय अर्थव्यवस्था संसाधन का स्थायी प्रबंधन और आर्थिक विकास के लिए नए अवसर प्रस्तुत करती है. लेकिन हरेक पनपते उद्योग की भांति, इसके सामने भी कई तरह की बाधाएं है. सबसे बड़ी बाधा विश्व के एकरेखीय अर्थव्यवस्था को चक्रीय अर्थव्यवस्था के anukul बनाने की है. इसके अलावा भी कई अन्य चुनैतियाँ इसके सामने है. इसके सफल कार्यान्वयन के लिए इन समस्याओं को संबोधित करने की आवश्यकता है:
सीमित जागरूकता और समझ:
भारतीय जनता चक्रीय अर्थव्यवस्था के लाभों से परिचित नहीं है. इससे चक्रीय अर्थव्यवस्था के पक्ष में माहौल नहीं बन पाता है. साथ ही, जागरूकता का अभाव कई समस्याओं को जन्म देता है. जैसे, भारत में पुराने वस्तुओं को बेकार समझकर कचरे के तौर पर फेंक दिया जाता है. इससे चक्रीय अर्थव्यवस्था को आघात पहुँचता है. साथ ही इससे जुड़े उद्योगों को कच्चे माल की समुचित आपूर्ति नहीं हो पाती है, जो लागत को बढ़ा देता है. चक्रीय अर्थव्यवस्था के बारे में सिमित जानकारी, कई बार जरुरी नीतिगत बदलावों को धीमा कर देता है.
जटिल मूल्य श्रृंखलाएँ:
चक्रीय अर्थव्यवस्था में अधिकांशतः उपभोक्ता कच्चे माल का खुदरा विक्रेता और तैयार माल का खुदरा खरीदार होता है. लेकिन, इस कच्चे माल के पुनर्चक्रण और उत्पादन करने वाले उद्योग थोक में खरीद-बिक्री करते है. वास्तव में चक्रीय अर्थव्यवस्था में किसी एक वस्तु को दो बार खरीद या बिक्री होती है. ऐसे में विभिन्न हितधारकों के बीच जटिल मूल्य श्रृंखला का निर्माण हो जाता है, जो समन्वय और सहयोग के कमी से और भी जटिल हो जाता है. इनके बीच संरेखित समन्वय स्थापित करना एक बड़ी चुनौती है.
वित्तीय बाधाएँ:
अर्थतंत्र को चक्रीय अर्थव्यवस्था में परिवर्तन के लिए बुनियादी ढांचे, प्रौद्योगिकियों और नवाचार में बड़े निवेश की आवश्यकता है. भारत में चक्रीय अर्थव्यवस्था से जुड़े आधारभूत संरचनाओं का अभाव है. इसलिए उद्यमी चक्रीय अर्थव्यवस्था से जुड़ना नापसंद करते है.
नियामक ढाँचे:
मौजूदा नियामक ढाँचे चक्रीय अर्थव्यवस्था के सिद्धांतों के पूरी तरह अनुकूल नहीं है. इससे जुड़े नए उद्योग स्थापना में काफी लागत आती है. इस उद्योग में निवेश को प्रोत्साहन भी न के बराबर मिलता है. लगभग समस्त लाभ एकरेखीय अर्थव्यवस्था से जुड़े उद्योगों को मिल रहे है. ऐसा तब है, जब चक्रीय अर्थव्यवस्था पर्यावरण पर दवाब को काफी हद तक कम कर देती है. अतः चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए, अपशिष्ट प्रबंधन नियमों, उत्पाद मानकों और चक्रीय अर्थव्यवस्था से जुड़े उद्योगों के कराधान प्रणाली को पुनः सम्बोधित करने की जरुरत है.
संग्रह और छँटाई का बुनियादी ढाँचा:
चक्रीय अर्थव्यवस्था के लिए अपशिष्ट और पुनर्चक्रण योग्य सामग्रियों का कुशल संग्रह, छँटाई और प्रसंस्करण सबसे आवश्यक कड़ी है. हालाँकि, कई क्षेत्रों में अपशिष्ट प्रबंधन और पुनर्चक्रण के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचे का अभाव है, जिससे एकरेखीय लूप को प्रभावी ढंग से बंद करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है. कई बार एक वस्तु कई अलग-अलग धातुओं के अलग-अलग पुर्जों से बना होता है. इन्हें अलग करने में तकनिकी कौशल के साथ ही काफी वक्त लगता है, जो लागत को बढ़ा देती है.
उपभोक्ता व्यवहार और संस्कृति:
खपत के व्यवहार और संस्कृति को टिकाऊ उपभोग की ओर स्थानांतरित करना चक्रीय अर्थव्यवस्था के लिए अतिमहत्वपूर्ण है. एकल-उपयोग और डिस्पोजेबल वस्तुओं के बजाय चक्रीय अर्थव्यवस्था के सिद्धांतों के अनुरूप उपभोक्ता संस्कृति को बढ़ावा मिलना चाहिए. इसके लिए शैक्षिक अभियान, जागरूकता कार्यक्रम और आसान विकल्प उपलब्ध करवाने की जरूरत है.
वैश्विक और प्रणालीगत चुनौतियाँ:
आज के समय में दुनिया एक गांव का रूप ले चुकी है. ऐसे में एक देश का तैयार माल दूसरे देश में चला जाता है और अंततः कचरे के रूप में फेंक दिया जाता है. यदि उत्पादक देश को वह कचरा वापस किया जाए तो इसका पुनर्चक्रण हो सकता है, कारण उत्पादक देश के पास तकनिकी कौशल व अन्य जानकारी होती है. इसलिए चक्रीय अर्थव्यवस्था को लागू करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग व समन्वय की भी जरुरत है. वस्तुओं के परिवहन में आने वाले लागत को कम करने के लिए क्रेता देश को तकनीक हस्तांतरित कर उपभोक्ताओं पर पड़ने वाले असर को कम किया जा सकता है.
साथ ही जटिल पुनर्चक्रण प्रक्रिया और इसे सुगम बनाने वाले जानकारियों का अभाव, भारतीयों उपभोक्ताओं का नए वस्तुओं के प्रति झुकाव, चक्रीय अर्थव्यवस्था को हतोत्साहित करता है. साथ ही, चक्रीय अर्थव्यवस्था के विकास से जुड़े गतिविधियों का आकलन अध्ययन के लिए संरचनाओं का भी अभाव भी एक बाधा है.
चक्रीय अर्थव्यवस्था के विकास के उपाय
- शैक्षिणिक व अन्य माध्यमों से व्यवसायों, नीति निर्माताओं और आम जनता के बीच चक्रीय अर्थव्यवस्था के लाभों से जुड़े जानकारी का प्रसार किया जा सकता है.
- टिकाऊ उत्पाद को बढ़ावा देने के लिए भारतीय मानक ब्यूरो के नियमों को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए. वहीं, रीसाइक्लिंग और अपशिष्ट निपटान से जुड़े नियम सरल होने से चक्रीय अर्थव्यवस्था के गतिविधियों में उछाल आ सकता है.
- वैश्विक और स्थानीय स्तर पर चक्रीय अर्थव्यवस्था को लागु करने के लिए क्रमशः विश्व व्यापार संगठन (WTO) और रेडक्रॉस जैसे संस्थाओं की आवश्यकता है.
- गुणवत्तापूर्ण व टिकाऊ वस्तुओं के पहचान के लिए उपभोक्ताओं को जागरूक करना जरुरी है. इसके लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम का भी सहारा लिया जा सकता है. नवाचार और अनुसंधान को बढ़ावा देकर अधिक टिकाऊ डिजाइन प्राप्त किया जा सकता है.
- पुरे देश से अपशिष्टों को संगृहीत कर जरूरतमंदों तक इसे पहुँचाने के लिए एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म या संगठन की स्थापना भी स्थानीय, राष्ट्रिय या वैश्विक स्तर पर की जा सकती है.
- पूर्ण स्वामित्व के बजाय उत्पादों को साझा करने, किराए पर लेने या पट्टे पर देने जैसे व्यवसाय को बढ़ावा देना चाहिए. ऐसे वस्तुओं के उपभोग को समाज में भी सकारात्मक दृष्टि से देखा जाना चाहिए, जो जागरूकता से ही संभव है.
- टिकाऊ उपभोग पैटर्न चक्रीय अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है. इसलिए, भारतीय उपभोक्ता संस्कृति के अनुरूप, पुराने वस्तुओं में नए उत्पाद जैसा चमक लाने की उद्योगों का क्रमिक फैलाव भी जरुरी है.
- खपत और पुनर्चक्रण दर के गणना से सरकार पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन से जुड़े आंकड़े जुटा सकती है. साथ ही, इसी के अनुरूप नीतियों को कठोर व लचीला बनाया जा सकता है.
- चक्रीय अर्थव्यवस्था से जुड़े सरकारों और संगठनों को सर्वोत्तम तकनीकों, ज्ञान, मानकों और विनियमों में सामंजस्य स्थापित होने से चुनौतिओं से निपटने में आसानी होगी.
इस तरह चक्रीय अर्थव्यवस्था के प्रसार को तेज किया जा सकता है.
भविष्य में चक्रीय अर्थव्यवस्था (Future of Circular Economy in Hindi)
- चक्रीय अर्थव्यवस्था आर्थिक विकास के पारंपरिक रैखिक मॉडल के तुलना में, एक अधिक संवहनीय व प्रत्यास्थी विकल्प पेश करती है. लेकिन इस नए आर्थिक मॉडल से सम्बंधित ज्ञान, नवाचार, तकनीक व जागरूकता का नितांत अभाव है.
- पर्यावरण समेत प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करने वाली इस मॉडल का तीव्र प्रचार-प्रसार की संभावना है. ऐसे में इससे जुड़े वस्तुओं के परिवहन, शैक्षणिक गतिविधियों व प्रचार-प्रसार तथा नवाचार में कई गुना वृद्धि हो सकती है. यह चक्रीय अर्थव्यवस्था के उज्जवल भविष्य की ओर इशारा करता है.
- चक्रीय अर्थव्यवस्था टिकाऊ व सस्ता उपभोक्ता वस्तुओं का विकल्प है, जो उपभोग की विचारधारा को बदलकर एकरेखीय अर्थव्यवस्था को प्रतिस्थापित करने में सक्षम है.
- पुनर्चक्रण उद्योग और भाड़े पर सामान देने की प्रथा से नए उद्योग का विकास होगा. दोहरा क्रय-विक्रय होने से आर्थिक क्रियाकलाप में तेजी आएगी, जो जनसंख्या विस्फोट के बाद उत्पन्न बेरोजगारी की समस्या का समाधान करने में सक्षम होगा.
- मतलब, चक्रीय अर्थव्यवस्था में नए व्यापार मॉडल विकसित हो सकते हैं जो उत्पादों और सेवाओं को साझा करने, किराए पर देने, और पर्याप्त उपयोग करने पर जोर देते हो.
- चक्रीय अर्थव्यवस्था से जुड़े उन्नत रिसाइक्लिंग प्रणालियाँ, तकनीकी संवर्धन, स्मार्ट उपकरण, और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) के विकास से नया अर्थतंत्र विकसित होगा.
- अधिकाँश देशों को चक्रीय अर्थव्यवस्था के विकास के सामरिक और वित्तीय मदद की भी जरुरत होगी, जो वैश्विक गतिविधियों को बढ़ावा देगी. श्रमप्रधान तंत्र होने के कारण विकासशील व अल्पविकसित देशों को अधिक फायदा होगा. साथ ही, अतिरिक्त आबादी के बोझ को हल्का किया जा सकेगा.
- चक्रीय अर्थव्यवस्था एक सुस्थित और प्रदूषणमुक्त भविष्य को प्राथमिकता देने वाला मॉडल है, इसलिए इसके विकास को तेज बढ़ावा मिल सकता है.
- दूसरे शब्दों में, चक्रीय अर्थव्यवस्था से होने वाले पर्यावरणीय लाभ की कीमत आर्थिक लाभ के तुलना में कई गुना अधिक है. इसलिए पर्यावरणीय फंड का एक बड़ा हिस्सा चक्रीय अर्थव्यवस्था को प्राप्त हो सकता है.
- भारत जैसा देश आयातित वस्तुओं के पुनर्चक्रण से जहाँ स्थानीय उद्योगों को बढ़ावा दे सकता है, वहीँ आयात बिल को कम सकता है. बड़ी आबादी वाला विकाशील देश होने के कारण भारत के लिए यह मुफीद प्रतीत होता है.