महासागरीय जलधाराएँ समुद्र में पानी की निश्चित दिशा में होने वाली गति हैं. ये समुद्र में नदियों की तरह बहती हैं. ये गतियाँ सूरज, हवा, गुरुत्वाकर्षण और पृथ्वी के घूर्णन से होती हैं. ये जलधाराएं दो प्रकार से गति करती हैं: क्षैतिज और लंबवत. क्षैतिज गति को ‘धारा’ कहा जाता है, जबकि ऊर्ध्वाधर गति को ‘अपवेलिंग‘ या ‘डाउनवेलिंग‘ कहा जाता है. पृथ्वी की जलवायु, मौसम, समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र और पृथ्वी के जीवन पर इसका गहरा प्रभाव होता हैं. इसलिए भू-भौतिकी और पर्यावरण विज्ञान में यह अध्ययन का एक महत्वपूर्ण विषय हैं.
महासागरीय जलधाराओं के निर्धारक (Determinants of ocean currents in Hindi)
महासागरीय जलधाराएँ कई कारणों से बनती हैं. इन्हें कारणों को दो प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता हैं:
प्राथमिक कारण
ये महासागरीय जलधाराओं की गति को आरंभ करते हैं. इनमें शामिल हैं:
- सौर ऊर्जा: सूरज की रोशनी समुद्र के सतह पर पानी को गर्म करता है. इससे पानी फैलता हैं. इसी कारण विषुवत रेखा पर समुद्री जल का स्तर मध्य अक्षांश से 8 सेमी ऊंचा होता हैं. इस प्रक्रिया में गर्म पानी हल्का होकर ऊपर उठता है और ध्रुवों की तरफ बढ़त हैं. ठंडा पानी भारी होकर नीचे जाता है और उच्च अक्षांशों में डूब जाता है. यह भूमध्य रेखा की ओर बहता है. इस प्रकार सूर्यताप से पानी की गति शुरू होती है.
- पवन (वायुमंडलीय परिसंचरण): हवा समुद्र की सतह पर घर्षण करती है और पानी को बहाती है. जैसे, मानसूनी हवाएँ हिंद महासागर में धाराओं की दिशा बदल देती हैं.
- गुरुत्वाकर्षण: यह पानी को ऊँचे से नीचे की ओर बहाता है. चंद्रमा और सूरज के खिंचाव से ज्वार-भाटा भी बनता है.
- कोरिओलिस बल: पृथ्वी का घूर्णन पानी की दिशा को मोड़ता है. उत्तरी गोलार्द्ध में पानी दाईं ओर और दक्षिणी गोलार्द्ध में बाईं ओर मुड़ता है. इससे गोलाकार धाराएँ (Gyres) बनती हैं. हिंद महासागर इसका एक महत्वपूर्ण अपवाद है, जहाँ मानसूनी पवनों के कारण धाराओं की दिशा मौसमी रूप से बदल जाती है.
द्वितीयक कारण
द्वितीयक बल धाराओं के प्रवाह को नियंत्रित करते हैं:
- जल का घनत्व (तापमान और लवणता का प्रभाव): अधिक घनत्व वाला पानी डूब जाता है, जबकि कम घनत्व वाला पानी ऊपर उठता है. उच्च लवणता वाला समुद्री जल प्रायः कम लवणता वाले जल के नीचे बैठ जाता है, जिससे लवणता का स्तरीकरण होता है. ध्रुवीय प्रदेशों में कम तापमान और बर्फ पिघलने से लवणता कम होती है, जबकि शुष्क प्रदेशों में वाष्पीकरण अधिक होने से लवणता बढ़ जाती है.
- (नोट: थर्मोहेलिन परिसंचरण (Thermohaline Circulation) एक महासागरीय परिसंचरण है जो तापमान और लवणता (नमक की मात्रा) में अंतर के कारण होता है. यह परिसंचरण समुद्र के पानी को गहराई में ले जाता है और सतह के पानी को वापस ऊपर लाता है, जिससे एक वैश्विक “कन्वेयर बेल्ट” बनता है.)
- तटीय आकृति: समुद्र तल की बनावट और तट धाराओं की दिशा बदल सकते हैं. महाद्वीपीय तटरेखाएँ और समुद्री पर्वतमालाएँ धाराओं के मार्ग को अवरुद्ध या विक्षेपित कर सकती हैं.
दिशा (Direction)
महासागरीय धाराएँ मुख्यतः दो प्रकार की होती हैं- गर्म और ठंडी:
- गर्म धाराएँ: ये भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर जाती हैं. ये तटों को गर्म करती हैं.
- ठंडी धाराएँ: ये ध्रुवों से भूमध्य रेखा की ओर जाती हैं. ये तटों को ठंडा करती हैं.
विभिन्न महासागरीय जलधाराएँ (Different Ocean Currents)

विभिन्न महासागरों में प्रमुख महासागरीय जलधाराएँ और उनकी दिशाएँ निम्नलिखित हैं:
अटलांटिक महासागर (The Atlantic Ocean)
- उत्तरी विषुवतीय धारा: यह एक गर्म जलधारा है जो अफ्रीका के पश्चिमी तट पर उत्पन्न होता हैं. इसकी दिशा पूर्व से पश्चिम की ओर है. यह दक्षिणी अमेरिका के पूर्वी तट से टकराकर एंटलीज़ और कैरेबियन की धारा में विभाजित हो जाती है.
- दक्षिणी विषुवतीय धारा: यह बेंगुला धारा का अगभाग हैं, जो पश्चिमी अफ्रीका के तट से उत्पन्न होती है . ब्राजील के तट से टकराकर यह दो भागों में विभक्त हो जाती है. इसके दक्षिणी शाखा को ब्राजील की धारा कहते हैं. यह गर्म धारा हैं.
- प्रतिविषुवत धारा: यह उत्तरी तथा दक्षिणी विषुवत रेखीय धाराओं के मध्य बहती हैं. लेकिन इसकी दिशा विपरीत यानि पश्चिम से पूर्व होती हैं.
- गल्फ स्ट्रीम: यह मेक्सिको की खाड़ी में 20° उत्तरी अक्षांश के पास शुरू होती है. यह फ्लोरिडा धारा और एंटलीज़ धारा के मिलने से बनती है. यह उत्तरी अमेरिकी महाद्वीप के पूर्वी किनारे के साथ ग्रैंड बैंक क्षेत्र तक बहती है. कोरिओलिस बल के प्रभाव से यह उत्तर-पूर्वी दिशा में पश्चिमी यूरोप की ओर विक्षेपित हो जाती है. यह महत्वपूर्ण गर्म धारा हैं, जो यूरोप को गरम रखता हैं. इसलिए इसे यूरोप का कंबल भी कहा जाता हैं.
- उत्तरी अटलांटिक बहाव (North Atlantic Drift): यह गल्फ स्ट्रीम का विस्तार है. यह उत्तरी अमेरिका के ग्रैंड बैंक क्षेत्र से निकलती है. कोरिओलिस बल के प्रभाव से उत्तर-पूर्वी दिशा में यूरोप के पश्चिमी तट तक पहुँचती है. यह भी एक गर्म धारा है. इसकी शाखाएँ नार्वे, इरमिंज़र और ग्रीनलैंड की धारा में विभाजित होती हैं.
- कनारी धारा: यह एक ठंडी धारा है जो उत्तरी अटलांटिक धारा की निरंतरता है. यह यूरोप के पश्चिमी तट पर विभाजित होने के बाद बनती है. आगे चलकर यह विषुवत रेखीय धारा से मिल जाती है.
- लैब्राडोर धारा: यह आर्कटिक महासागर से दक्षिण की ओर प्रवाहित होने वाली एक ठंडी धारा है. यह उत्तरी अटलांटिक में गर्म गल्फ स्ट्रीम से मिलती है. इस मिलन से न्यूफ़ाउंडलैंड के पास ग्रांड बैंक में विशाल मतस्य क्षेत्र का निर्माण होता हैं.
- ब्राजील की धारा: यह दक्षिणी अटलांटिक महासागर में ब्राजील के तट के सहारे दक्षिण की ओर बहने वाली एक गर्म धारा है.
- बेंगुएला धारा: यह दक्षिणी गोलार्ध की पश्चिमी पवन बहाव की एक ठंडी शाखा है. यह अफ्रीका के पश्चिमी तट के सहारे उत्तर की ओर प्रवाहित होती है.
- फॉकलैंड धारा: यह अंटार्कटिक सर्कम्पोलर करंट की एक ठंडी शाखा है. इसे माल्विनास धारा के नाम से भी जाना जाता है. यह दक्षिणी अमेरिका के पूर्वी तट के सहारे उत्तर दिशा में प्रवाहित होती है. यह ब्राजील की गर्म धारा के साथ मिलकर ब्राजील-माल्विनास संगम क्षेत्र बनाती है.
प्रशांत महासागर (The Pacific Ocean)
प्रशांत महासागर की धाराएँ भी जटिल पैटर्न का अनुसरण करती हैं:
- क्यूरोशिवो धारा: यह उत्तरी फिलीपीन्स और फार्मोसा के पूर्वी तट के सहारे उत्तर दिशा में बहती है. यह फार्मोसा से रिक्यू (Riukiu) तक उत्तर-पूर्व की ओर प्रवाहित होने वाली एक गर्म धारा है.
- ओयाशियो/कुरील धारा: यह उप-आर्कटिक महासागरीय धारा है जो वामावर्त दिशा में बहती होती है. यह आर्कटिक महासागर से निकलती है और पश्चिमी उत्तरी प्रशांत महासागर में बेरिंग सागर के माध्यम से दक्षिण में बहती है. यह पोषक तत्वों से भरपूर धारा है. जापान के उत्तरी पूर्वी तट के समीप लगभग 35° उत्तरी अक्षांश तक प्रवाहित होती है. यहाँ यह क्यूरोशिवो धारा से टकराती है और उत्तरी प्रशांत बहाव बनाती है.
- उत्तरी प्रशांत धारा: यह क्यूरोशिवो और ओयाशियो के टकराव से बनती है. यह पश्चिमी उत्तरी प्रशांत महासागर के किनारे वामावर्त दिशा में बहती होती है.
- हम्बोल्ट/पेरुवियन धारा: यह दक्षिणी अमेरिका के पश्चिमी तट के साथ बहने वाली ठंडी धार हैं. यह चिली के दक्षिणी सिरे से उत्तरी पेरू की ओर बहती हैं. इसका पता वैज्ञानिक हम्बोल्ट ने लगाया था. यह कम लवणता वाली धारा है, जो विशाल समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के लिए विख्यात हैं.
- पूर्वी ऑस्ट्रेलिया धारा: यह ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट के समीप उत्तर से दक्षिण की ओर प्रवाहित होने वाली एक गर्म जलधारा है.
- कैलिफोर्निया धारा: यह उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी तट के साथ दक्षिण की ओर बहने वाली अलेउतियन धारा का विस्तार है. यह उत्तरी प्रशांत घूर्णन (North Pacific Gyre) का एक हिस्सा है और एक अपवेलिंग क्षेत्र है.
हिंद महासागर (The Indian Ocean)
हिंद महासागर की धाराएँ मानसूनी पवनों के कारण वर्ष में दो बार अपनी दिशा बदलती हैं. इसकी यह खासियत इसे अन्य महासागरों से अलग बनाती है:
- उत्तरी विषुवतीय धारा: यह उत्तरी हिंद महासागर में पूरब से पश्चिम चलती है. यह गर्म होती है. ग्रीष्म ऋतु में दक्षिण-पश्चिमी मानसून के कारण इसकी दिशा दक्षिण से उत्तर की ओर हो जाती है. लेकिन, शीत ऋतु में उत्तर-पूर्वी मानसून के कारण यह उत्तर से दक्षिण की ओर प्रवाहित होती है.
- दक्षिणी विषुवतीय धारा: यह भूमध्य रेखा के दक्षिण में पूरब से पश्चिम की ओर प्रवाहित होती है. यह एक गर्म धारा है.
- प्रतिविषुवत धारा: यह दक्षिणी हिंद महासागर में भूमध्य रेखा के सहारे पश्चिम से पूरब प्रवाहित होती है.
- अगुलहास धारा: यह दक्षिण-पश्चिमी हिंद महासागर की एक पश्चिमी सीमा पर स्थित धारा है. यह एक गर्म जलधारा है जो मेडागास्कर के पूर्व से आती है.
- मोजाम्बिक धारा: यह भी एक गर्म जलधारा है जो मेडागास्कर और अफ्रीकी के मुख्य भूमि के बीच बहती है.
- पश्चिमी ऑस्ट्रेलियाई धारा: यह वेस्ट विंड ड्रिफ्ट का हिस्सा है. यह ऑस्ट्रेलिया के पश्चिमी तट के सहारे बहने वाली एक ठंडी जलधारा है. यह एक मौसमी धारा है, जो गर्मियों में तेज़ और सर्दियों में कमज़ोर होती है.
आर्कटिक महासागर (The Arctic Ocean)
आर्कटिक महासागर में मुख्य रूप से ठंडी धाराएँ पाई जाती हैं:
- पूर्वी ग्रीनलैंड धारा: यह आर्कटिक महासागर से निकालकर उत्तरी अटलांटिक महासागर में प्रवेश करती है . यह फ्रैम स्ट्रेट और केप फेयरवेल के मध्य वितरित कम लवणता की ठंडी धारा है.
- लैब्राडोर धारा: जैसा कि अटलांटिक महासागर खंड में उल्लेख किया गया है, यह भी आर्कटिक महासागर से दक्षिण की ओर प्रवाहित होती है.
- ट्रांसपोलर ड्रिफ्ट स्ट्रीम: यह आर्कटिक के ध्रुवीय क्षेत्र में हवा से संचालित होती है.
दक्षिणी महासागर (अंटार्कटिक सर्कम्पोलर करंट)
- वेस्ट विंड ड्रिफ्ट / अंटार्कटिक सर्कम्पोलर करंट (ACC): यह विश्व की विशालतम महासागरीय धारा है. इसे वेस्ट विंड ड्रिफ्ट के नाम से भी जाना जाता है. यह दक्षिणावर्त दिशा में अंटार्कटिका के चारों ओर पूर्व से पश्चिम की ओर प्रवाहित होती है. यह दक्षिणी महासागर और अंटार्कटिका के आसपास के समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करती है. यह कई दुर्लभ समुद्री पौधों और जानवरों की प्रजातियों के अस्तित्व में मददगार हैं.
जलवायु और मौसम पर महासागरीय जलधाराओं का प्रभाव
महासागरीय जलधाराएँ पृथ्वी की जलवायु प्रणाली के महत्वपूर्ण घटक हैं. यह वैश्विक तापमान और मौसम के पैटर्न को प्रभावित करती हैं. महासागरीय जलधाराएं एक तरह से धरती के लिए पानी का हीटिंग और कूलिंग सिस्टम हैं.
तापमान पर प्रभाव (Thermo Effects)
गर्म धाराएं भूमध्य रेखा (गरम इलाके) से गर्मी को ठंडे इलाकों की तरफ ले जाती हैं. इससे उन जगहों का तापमान बढ़ जाता है जहां से ये धाराएं गुजरती हैं. उदाहरण: गल्फ स्ट्रीम यूरोप के पश्चिमी किनारों को सर्दियों में भी ज्यादा ठंडा नहीं होने देतीं. इस तरह वहां का मौसम काफी सुहावना रहता है. ये धाराएं अपने साथ नमी भी लाती हैं, जिससे बारिश होती है.
ठंडी धाराएं ठंडे ध्रुवीय इलाकों से पानी को गरम इलाकों की तरफ लाती हैं. इससे इनके बहाव क्षेत्र मे स्थित तटीय इलाकों का तापमान कम हो जाता है. उदाहरण के लिए, पेरू की ठंडी धारा पेरू के गर्म मौसम को ठंडा रखती है. ठंडी धाराएं नमी नहीं लातीं, इसलिए जहां से ये गुजरती हैं, वहां बारिश कम होती है और अक्सर रेगिस्तान बन जाते हैं (जैसे कालाहारी रेगिस्तान).
बारिश और मौसमी घटनाएं
‘ला-निना’ नाम की ठंडी जलधारा प्रशांत महासागर में बनती है. इससे भारत में गर्मियों का मानसून ज्यादा तेज होता है.
गर्म समुद्री धाराएं चक्रवातों और तूफानों को ताकत देती हैं. गर्म पानी ही उनके लिए ऊर्जा का मुख्य स्रोत होता है. महासागरों के गर्म होने से हवा में पानी की भाप बढ़ती है, जिससे तेज बारिश और बड़े तूफान आते हैं.
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
महासागरीय धाराओं पर जलवायु परिवर्तन का गहरा असर हुआ हैं. महासागर ग्रीनहाउस गैसों से निकलने वाली ज्यादातर गर्मी को सोख लेते हैं, जिससे समुद्र का तापमान बढ़ जाता है. यह जल में ऑक्सीजन का मात्रा कम कर देता हैं, जो जलीय जीवों के लिए नुकसानदेह हैं.
महासागरों में पानी का एक बड़ा घूमता हुआ सिस्टम होता है जिसे समुद्री सर्कुलेशन (MOC- Meridional Overturning Circulation) कहते हैं. यह पानी, गर्मी, नमक और पोषक तत्वों को पूरी दुनिया में फैलाता है. वैज्ञानिकों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण यह समुद्री सर्कुलेशन कमजोर पड़ सकता है. अगर ऐसा हुआ तो समुद्र कम कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) सोख पाएगा, जिससे हवा में CO2 बढ़ जाएगी और ग्लोबल वार्मिंग और तेज होगी.
महासागरिय जलधाराओं का महत्व (Importance of Ocean Currents in Hindi)
महासागरिय जलधाराएं हमारे लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण हैं:
समुद्री जीवन और विविधता
ये महासागरीय जलधाराएं पोषक तत्वों से भरा पानी ऊपर लाती हैं. इससे मछलियों के लिए अच्छे चारा का विकास होता हैं. कनाडा के ग्रैंड बैंक्स इसका एक उदाहरण हैं. ये धाराएं मछलियों और दूसरे समुद्री जीवों की आवागमन की आदतों को भी प्रभावित करती हैं. इस प्रकार महासागरीय जलधाराएं जैव विविधता के दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं.
व्यापार और जहाजरानी
सदियों से नाविक समुद्री धाराओं का इस्तेमाल अपने जहाजों को चलाने के लिए करते रहे हैं. धाराओं की दिशा समझकर ईंधन बचाया जा सकता हैं. लेकिन, ठंडी धाराएं बड़े हिमखंडों को ला सकती हैं जो जहाजों के लिए खतरनाक होते हैं (जैसे टाइटैनिक जहाज का डूबना). गर्म धाराओं के कारण ठंडे इलाकों के बंदरगाह भी साल भर खुले रहते हैं.
ऊर्जा उत्पादन
समुद्री धाराओं में ऊर्जा बनाने की भी बहुत क्षमता है. ज्वार-भाटे से पैदा होने वाली ऊर्जा को बांध बनाकर बिजली में बदला जा सकता है. समुद्र की तेज लहरों से भी बिजली बनाई जा सकती है. समुद्र की सतह के गर्म पानी और गहरे समुद्र के ठंडे पानी के तापमान के अंतर का उपयोग करके बिजली बनाई जा सकती है. इसे समुद्री तापीय ऊर्जा (OTEC) कहते हैं.
आखिर में
संक्षेप में, महासागरीय जलधाराएं हमारी धरती के मौसम, जलवायु, समुद्री जीवन और यहां तक कि मानव गतिविधियों के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण हैं. जलवायु परिवर्तन के समय में, इन धाराओं को समझना और उनके बदलावों का अनुमान लगाना और भी जरूरी हो गया है, क्योंकि ये सीधे तौर पर हवा में CO2 के स्तर और वैश्विक तापमान को प्रभावित करती हैं.