नाइट्रोजन चक्र पृथ्वी पर नाइट्रोजन का एक अनिवार्य जैव-भूरासायनिक चक्र है. इस प्रक्रिया में वायुमंडल की स्वतंत्र नाइट्रोजन को विभिन्न जैविक और अजैविक विधियों द्वारा नाइट्रोजनीय यौगिकों में स्थिर किया जाता है. फिर इन यौगिकों को पुनः स्वतंत्र नाइट्रोजन में परिवर्तित करके वायुमंडल में वापस लौटाया जाता है. यह एक जटिल चक्र है.
वायुमंडल में नाइट्रोजन गैस (N2) के रूप में लगभग 78% मात्रा में पाई जाती है. हालांकि, पौधे और जानवर इस गैसीय नाइट्रोजन का सीधे उपयोग नहीं कर सकते हैं; उन्हें इसे नाइट्रेट (NO3-) या अमोनिया यौगिकों में परिवर्तित करने की आवश्यकता होती है. यह सारा रूपांतरण नाइट्रोजन चक्र से ही संभव है.
नाइट्रोजन चक्र के प्रमुख चरण
नाइट्रोजन चक्र में पाँच मुख्य चरण होते हैं: नाइट्रोजन स्थिरीकरण, नाइट्रीकरण, स्वांगीकरण, अमोनीकरण और विनाइट्रीकरण. इन चरणों के माध्यम से, नाइट्रोजन लगातार वायुमंडल, मृदा, जल निकायों और जीवित जीवों के बीच घूमता रहता है.
1. नाइट्रोजन स्थिरीकरण (Nitrogen Fixation)
यह नाइट्रोजन चक्र का प्रारंभिक और सबसे महत्वपूर्ण चरण है, जिसमें वायुमंडलीय नाइट्रोजन (N2) को उपयोग योग्य रूप अमोनिया (NH3) में परिवर्तित किया जाता है. नाइट्रोजन स्थिरीकरण कई तरीकों से हो सकता है:
- अजैविक/वायुमंडलीय स्थिरीकरण: बिजली की उच्च ऊर्जा वायुमंडलीय नाइट्रोजन को ऑक्सीजन के साथ प्रतिक्रिया करने के लिए प्रेरित करती है, जिससे नाइट्रोजन के ऑक्साइड (NOx) बनते हैं. ये नाइट्रोजन ऑक्साइड फिर पानी के साथ प्रतिक्रिया करके नाइट्रस एसिड या नाइट्रिक एसिड बनाते हैं, जो वर्षा के साथ मृदा में रिस जाते हैं और पौधों के लिए उपजाऊ नाइट्रेट बन जाते हैं. इस प्रक्रिया में शामिल रासायनिक अभिक्रियाएँ हैं:
N2 + O2 → 2NO
2NO + O2 → 2NO2
4NO2 + 2H2O + O2 → 4HNO3
- औद्योगिक स्थिरीकरण: मानव द्वारा विकसित हैबर-बॉश प्रक्रिया के माध्यम से उच्च तापमान और दाब की स्थिति में नाइट्रोजन को हाइड्रोजन के साथ जोड़कर अमोनिया का उत्पादन किया जाता है. यह अमोनिया बाद में खेती के लिए विभिन्न उर्वरकों जैसे यूरिया में परिवर्तित हो जाती है. इस प्रकार कृत्रिम तरीके से नाइट्रोजन प्रकृति तक पहुंचता हैं.
- जैविक स्थिरीकरण: यह सूक्ष्मजीवों द्वारा किया जाता है, जिन्हें डायजोट्रोफ कहा जाता है. इनमें स्वतंत्रजीवी जीवाणु जैसे ऐजोटोबैक्टर, क्लॉस्ट्रिडियम, और नीले-हरे शैवाल जैसे एनाबीना और नॉस्टॉक शामिल हैं. दलहनी पौधों (जैसे मटर) की जड़ों में रहने वाले राइजोबियम जीवाणु भी नाइट्रोजन स्थिरीकरण करते हैं. इस प्रक्रिया में नाइट्रोजिनेस (nitrogenase) नामक एंजाइम द्वारा नाइट्रोजन, अमोनिया में परिवर्तित होती है. नाइट्रोजिनेस एंजाइम ऑक्सीजन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते हैं. इसलिए कई नाइट्रोजन-फिक्सिंग जीव अवायवीय (anaerobic) स्थितियों में मौजूद होते हैं. अन्य स्थिति में ये ऑक्सीजन के स्तर को कम करने के लिए श्वसन करते हैं या लेगहीमोग्लोबिन जैसे प्रोटीन के साथ ऑक्सीजन को बांध देते हैं.
2. नाइट्रीकरण (Nitrification)
इस प्रक्रिया में बैक्टीरिया की सहायता से अमोनिया (NH3) को नाइट्राइट (NO2-) और फिर नाइट्रेट (NO3-) में परिवर्तित किया जाता है. इस प्रक्रिया में दो मुख्य चरण शामिल हैं:
- नाइट्राइट का निर्माण नाइट्रोसोमोनास (Nitrosomonas) बैक्टीरिया प्रजातियों द्वारा अमोनिया के ऑक्सीकरण से होता है.
- इसके बाद, नाइट्रोबैक्टर (Nitrobacter) बैक्टीरिया द्वारा उत्पादित नाइट्राइट को नाइट्रेट में परिवर्तित किया जाता है.
नाइट्रीकरण प्रक्रिया में शामिल अभिक्रियाएँ इस प्रकार हैं: 2NH3 + 3O2 → 2NO2– + 2H+ + 2H2O, और 2NO2- + O2 → 2NO3– 2.
3. स्वांगीकरण (Assimilation)
इस प्रक्रिया में पौधे अपनी जड़ों के माध्यम मृदा से नाइट्रोजन यौगिकों को अवशोषित करते हैं. ये यौगिक अमोनिया, नाइट्राइट आयनों, नाइट्रेट आयनों, या अमोनियम आयनों के रूप में उपलब्ध होते हैं. पौधों की कोशिकाओं में, नाइट्रेट के अपचयन (reduction) से बनी हुई अमोनिया को ऐमीनो रूप (-NH2) में उपयोग में लाया जाता है. यह ऐमीनो अम्लों का एक महत्वपूर्ण घटक बनती है. इन ऐमीनो अम्लों का उपयोग पौधों में प्रोटीन और अन्य आवश्यक यौगिकों के निर्माण के लिए किया जाता है. जब प्राथमिक उपभोक्ता (जंतु) इन पौधों को खाते हैं, तो नाइट्रोजन खाद्य जाल में प्रवेश करती है. यह जंतुओं के शरीर में प्रोटीन और अन्य जैविक अणुओं के संश्लेषण के लिए उपयोग होती है.
4. अमोनीकरण (Ammonification)
इस प्रक्रिया में मृत जन्तुओं और पौधों के शरीर, साथ ही जंतुओं के उत्सर्जी पदार्थों का विघटन मृतजीवी सूक्ष्मजीवों द्वारा किया जाता है. इस प्रकार अपघटन से नाइट्रोजन मृदा में वापस आकर अमोनिया (NH3) के रूप में मुक्त होती है. यह अमोनिया बाद में नाइट्रीकरण जैसी अन्य जैविक प्रक्रियाओं में उपयोग की जाती है.
5. विनाइट्रीकरण (Denitrification)
विनाइट्रीकरण नाइट्रोजन चक्र का अंतिम चरण है, जिसमें मृदा में उपस्थित नाइट्रेट (NO3-) वापस गैसीय नाइट्रोजन (N2) में बदल जाता है. यह प्रक्रिया विनाइट्रीकारी बैक्टीरिया (जैसे Bacillus denitrificans और Pseudomonas denitrificans) द्वारा की जाती है. अधिकांश जलाक्रांत (waterlogged) जैसी अवायवीय स्थिति में यह सम्पन्न होता हैं. यह चरण चक्र को पूरा करता है. इस प्रकार वायुमंडल में नाइट्रोजन की मात्रा को संतुलित होता है.
नाइट्रोजन चक्र का पोस्टर (Poster of Nitrogen Cycle in Hindi)

नाइट्रोजन चक्र में सूक्ष्मजीवों की भूमिका
सूक्ष्मजीव (खासकर बैक्टीरिया) नाइट्रोजन चक्र के प्रत्येक चरण में एक महत्वपूर्ण और अपरिहार्य भूमिका निभाते हैं. इस चक्र में भाग लेने वाले विभिन्न प्रकार के जीवाणु और शैवाल का उल्लेख नीचे तालिका में किया गया हैं:
सूक्ष्मजीव का प्रकार | नाइट्रोजन चक्र में भूमिका | उदाहरण | विशेषताएँ |
नाइट्रोजन-स्थिरीकरण बैक्टीरिया (स्वतंत्रजीवी) | वायुमंडलीय N2 को NH3 में परिवर्तित करना | ऐजोटोबैक्टर, क्लॉस्ट्रिडियम, एनाबीना, नॉस्टॉक | ऑक्सीजन संवेदनशीलता (नाइट्रोजिनेस एंजाइम), अवायवीय या लेगहीमोग्लोबिन द्वारा नियंत्रित वातावरण में कार्य |
नाइट्रोजन-स्थिरीकरण बैक्टीरिया (सहजीवी) | पौधों की जड़ों में N2 को NH3 में परिवर्तित करना | राइजोबियम (फलियों के साथ) | लेगहीमोग्लोबिन की सहायता से ऑक्सीजन न्यूनता बनाए रखना |
नाइट्रीफाइंग बैक्टीरिया | NH3 को NO2- और NO3- में ऑक्सीकृत करना | नाइट्रोसोमोनास (NH3 → NO2-), नाइट्रोबैक्टर (NO2- → NO3-) | विशिष्ट ऑक्सीकरण प्रक्रियाएँ |
मृतजीवी सूक्ष्मजीव | मृत कार्बनिक पदार्थों का अपघटन कर अमोनिया मुक्त करना | बैसिलस वल्गेरिस, कवक | अपघटन के माध्यम से अमोनिया उत्पन्न करना |
विनाइट्रीफाइंग बैक्टीरिया | नाइट्रेट को गैसीय N2 में परिवर्तित करना | बैसिलस डिनाइट्रीफिकेन्स, स्यूडोमोनास डिनाइट्रीफिकेन्स | अवायवीय परिस्थितियों में NO3- का N2 में अपचयन |
पौधों और जानवरों के लिए नाइट्रोजन चक्र का महत्व
नाइट्रोजन चक्र पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व और निरंतरता के लिए एक मौलिक प्रक्रिया है. इसका महत्व व्यक्तिगत जीवों से लेकर संपूर्ण पारिस्थितिक तंत्रों तक फैला हुआ है.
प्रोटीन, डीएनए और अन्य जैविक अणुओं का संश्लेषण
नाइट्रोजन प्रोटीन्स, क्लोरोफिल, ऐमीनो अम्ल, ऐल्केलॉयड्स, एन्जाइम और हॉर्मोन्स जैसे महत्वपूर्ण जैविक अणुओं के संश्लेषण में प्रयोग होती है. नाइट्रोजन स्थिरीकरण द्वारा वायुमंडलीय नाइट्रोजन पौधे के उपयोग लायक बन जाता हैं. जानवर इन पौधों को खाकर आवश्यक नाइट्रोजन प्राप्त करते हैं. यह प्रोटीन संश्लेषण और डीएनए प्रतिकृति (DNA replication) के लिए आवश्यक होती है. प्रोटीन से ही डीएनए और आरएनए जैसे आनुवंशिक पदार्थ बनते हैं. इस प्रकार, नाइट्रोजन की उपलब्धता सीधे जीवों के आनुवंशिकी से जुड़ी हैं.
पारिस्थितिक तंत्र में पोषक तत्वों का संतुलन
वायुमंडल की स्वतंत्र नाइट्रोजन का उपयोग करके बने नाइट्रोजन यौगिक विभिन्न उपयोग में लाए जाते हैं, जो पारिस्थितिक तंत्रों की उत्पादकता को बढ़ावा देते हैं. जीव-जंतुओं की उचित वृद्धि खाद्य पदार्थों के बिना असंभव है, जो नाइट्रोजन चक्र से संभव है. नाइट्रोजन सभी जैविक मैक्रोमोलेक्यूल्स के लिए एक मूलभूत निर्माण खंड है. मतलब इसकी उपलब्धता सीधे प्राथमिक उत्पादकता (पौधों की वृद्धि) को नियंत्रित करती है.
मानवीय गतिविधियों का नाइट्रोजन चक्र पर प्रभाव
मानवीय गतिविधियों ने नाइट्रोजन चक्र के प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़कर पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डाला है. प्रमुख प्रभाव निम्नलिखित हैं:
- कृषि में उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग: नाइट्रोजन-आधारित उर्वरकों का बड़े पैमाने पर उपयोग मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाता है, जो जल स्रोतों में बहकर यूट्रोफिकेशन (शैवाल भराव) का कारण बनता है. इससे जलीय पारिस्थितिकी तंत्र में ऑक्सीजन की कमी और “डेड ज़ोन” बनते हैं, जो जलीय जीवन को नुकसान पहुँचाते हैं.
- जीवाश्म ईंधन का दहन: कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस के जलने से नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) उत्सर्जित होता है, जो वायु प्रदूषण, स्मॉग और श्वसन संबंधी समस्याओं का कारण बनता है. यह अम्लीय वर्षा और ग्लोबल वार्मिंग में योगदान देता है, क्योंकि नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है.
- वनों की कटाई और अपशिष्ट प्रबंधन: वनों की कटाई से पौधों द्वारा नाइट्रोजन अवशोषण कम होता है, जिससे मिट्टी की उर्वरता घटती है और नाइट्रोजन का लीचिंग बढ़ता है. अनुचित अपशिष्ट प्रबंधन से जल प्रणालियों में अतिरिक्त नाइट्रोजन प्रवेश करता है, जो प्रदूषण और यूट्रोफिकेशन को बढ़ाता है.
- पर्यावरणीय निहितार्थ:
- अम्लीय वर्षा: नाइट्रोजन ऑक्साइड और अमोनिया उत्सर्जन से वन, जल निकाय और इमारतें क्षतिग्रस्त होती हैं.
- वायु गुणवत्ता: NOx से स्मॉग और पार्टिकुलेट मैटर बनता है, जो स्वास्थ्य जोखिम बढ़ाता है.
- ग्रीनहाउस गैस संतुलन: N2O और NOx ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाते हैं.
- जैव विविधता हानि: यूट्रोफिकेशन से “डेड ज़ोन” बनते हैं, जो समुद्री जीवन को नुकसान पहुँचाते हैं.
- शीतलन प्रभाव: अमोनिया और NOx से बनने वाला पार्टिकुलेट मैटर (PM-2.5) जलवायु पर शीतलन प्रभाव डालता है.
निष्कर्ष (Conclusion)
नाइट्रोजन चक्र पृथ्वी पर जीवन के लिए आवश्यक है, लेकिन मानवीय गतिविधियों, जैसे उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग, जीवाश्म ईंधन दहन, वनों की कटाई और अनुचित अपशिष्ट प्रबंधन, ने इसे बाधित किया है. इससे अम्लीय वर्षा, वायु प्रदूषण, यूट्रोफिकेशन और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन जैसी समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं, जो जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता हानि को बढ़ावा देती हैं. इस संकट को नियंत्रित करने के लिए एकीकृत नाइट्रोजन प्रबंधन और सतत प्रथाओं को अपनाना आवश्यक है, ताकि पारिस्थितिक तंत्र का स्वास्थ्य और स्थिरता सुनिश्चित हो.