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मुद्रा (Currency): इसके प्रकार और अर्थव्यवस्था में महत्व 

जनसामान्य के लिए सिक्के और नोट ही मुद्रा (Currency) है. यह किसी भी देश की अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होती है. इसके बिना किसी भी प्रकार का लेन-देन संभव नहीं है. विश्व में सभी प्रकार के लेनदेन में मुद्रा का ही इस्तेमाल किया जाता है. इसलिए घरेलु अर्थव्यवस्था के साथ ही वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए भी मुद्रा काफी अहम् है.

हम मुद्रा के विकास, इतिहास, प्रकार, सिद्धांत, परिभाषाएँ, कानूनी मान्यता, स्वीकृति, महत्व और भविष्य के बारे में सरल भाषा में जानकारी देंगे.

इस लेख में हम जानेंगे

मुद्रा का अर्थ और परिभाषा (Meaning and Definition of Currency)

मुद्रा का अर्थ है वह साधन जिससे हम चीजें खरीदते हैं और बेचते हैं. मुद्रा लोगों को सीधे वस्तुएँ और सेवाएँ अदला-बदली करने की अनुमति देती है. यह वस्तुओं के मूल्य को समझाने और उनके मूल्य को संग्रहीत करने का एक माध्यम प्रदान करती है. मुद्रा एक मानक के रूप में मूल्यवान होती है, जिससे चीज़ों का मूल्य तय होता है और भुगतान स्वीकार होता है. हालांकि, मुद्रा का उपयोग और रूप समय के साथ बदलते रहे हैं.

यह पैसे का ही दूसरा नाम है. मुद्रा से ही हम सामान और सेवाओं का आदान-प्रदान करते हैं, यानी यह विनिमय का एक साधन है. मुद्रा किसी भी रूप में हो सकती है – सिक्के, नोट, डिजिटल पैसा जैसे बैंक खातों में रखी राशि या फिर मोबाइल पेमेंट आदि. यह एक ऐसा साधन है जिसे लोग आसानी से स्वीकार करते हैं क्योंकि इसके बदले वे अपनी आवश्यक चीजें प्राप्त कर सकते हैं. साथ ही, स्थानीय मुद्रा अपने देश में कानूनन मान्य होती है. 

किसी देश का मुद्रा अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा प्रणाली व उस देश के केंद्रीय बैंक के नियम के तहत वैश्विक भुगतान के लिए मान्य होता है. इसलिए किसी मुद्रा की वैधानिकता नियमों और बंदिशों के अधीन सार्वभौमिक तौर पर मान्य हो जाती है.

मुद्रा हमेशा मूल्यवान नहीं होती है, कई बार यह धराशाई भी हो जाती है. ये याद रखे कि बिना मुद्रा के हम कंगाल हो जाते है.

मुद्रा का इतिहास और विकास

1. विनिमय से लेकर मुद्रा तक

मुद्रा का इतिहास लगभग 5,000 साल पुराना है. इसके पहले वस्तु-विनिमय प्रणाली (Barter System) का उपयोग होता था, जिसमें एक वस्तु के बदले दूसरी वस्तु का आदान-प्रदान होता था. जैसे, एक किसान गेहूं के बदले जूते प्राप्त कर सकता था.

वस्तु विनिमय प्रणाली में कई समस्याएँ थीं. जैसे कि सही चीज का मिलना और मूल्य का बराबरी से तय होना. समय के साथ, लोग जानवरों की खाल, नमक, और हथियार जैसे सामानों का प्रयोग करने लगे, जिन्हें आसानी से अदला-बदली किया जा सकता था. 

फिर, लोग धातु, कीमती पत्थर और अन्य चीजों का प्रयोग करने लगे, जिन्हें सिक्के का रूप दे दिया गया. इसे ‘मुद्रा’ कहा गया, क्योंकि यह विनिमय की समस्या को हल करने में सक्षम थी. आगे चलकर सोने, चांदी आदि की जगह कागज का इस्तेमाल होने लगा. 

2. पहली आधिकारिक मुद्रा की ढलाई

600 ईसा पूर्व में लीडिया के राजा एलायट्स ने पहली बार लिडियन स्टेटर नाम की आधिकारिक मुद्रा की ढलाई की. यह सिक्के प्राकृतिक रूप से प्राप्त सोने और चाँदी के मिश्रण से बने थे और उन पर चित्र बने होते थे.

3. कागजी मुद्रा का उद्भव

1260 ईस्वी में, चीन के युआन वंश ने सिक्कों से कागज मुद्रा की ओर रुख किया. 1271 ईस्वी में जब मार्को पोलो ने चीन का दौरा किया, तब चीन का सम्राट मुद्रा की विभिन्न इकाइयों और इसके आपूर्ति पर नियंत्रण रखता था.

4. डिजिटल मुद्रा का दौर

आजकल डिजिटल मुद्रा का दौर चल रहा है. इसमें बैंक खातों में रखा पैसा और मोबाइल पेमेंट सिस्टम प्रमुख हैं. डिजिटल मुद्रा ने लेन-देन को आसान और सुरक्षित बना दिया है.

मुद्रा के प्रकार

मुद्रा समाज में अनके रूपों में प्रचलित रही हैं तथा विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने मुद्रा के वगीर्करण की विभिन्न रीतियाँ अपनायी हैं. मुद्रा का वर्गीकरण निम्नलिखित है-

  1. वास्तविक मुद्रा और हिसाब की मुद्रा,
  2. विधि ग्राह्य मुद्रा और ऐच्छिक मुद्रा,
  3. धातु मुद्रा और पत्र-मुद्रा,
  4. सुलभ मुद्रा और दुर्लभ मुद्रा,
  5. सस्ती मुद्रा और महँगी मुद्रा,
  6. आधुनिक मुद्रा के प्रकार

1. वास्तविक मुद्रा और हिसाब की मुद्रा

(1) वास्तविक मुद्रा – 

किसी देश में सरकार द्वारा प्रचलित मुद्रा ही वास्तविक मुद्रा कहलाती है. अर्थात् वास्तविक मुद्रा वह होती है जो किसी देश में वास्तव में प्रचलित होती है. सिक्के तथा नोट वास्तविक मुद्रा होते हैं . वास्तविक मुद्रा तथा चलन में कोर्इ अन्तर नहीं है. भारतवर्ष में 5 पेसै से लेकर 1000 रूपये तक के नोट सब वास्तविक मुद्रा के अन्तर्गत आते है. कीन्स ने वास्तविक मुद्रा को दो भागों में बाँटा है-

  1. पदार्थ मुद्रा – पदाथर् मुद्रा सदैव किसी न किसी धातु की बनी होती है आरै उसका अंकित मूल्य उसकी धातु की मुद्रा की कीमत (या यथार्थ मूल्य) के बराबर होता है. इसलिए इसका सचंय कर लिया जाता है.
  2. प्रतिनिधि मुद्रा – प्रतिनिधि मुद्रा चलन में होती है किन्तु आवश्यक रूप से धातु की नहीं होती है. प्रतिनिधि मुद्रा प्रचलन करते समय उसके पीछे शत-प्रतिशत स्वर्ण-कोष रखा जाता है जिसका वह प्रतिनिधित्व करती है. इसलिए प्रतिनिधि मुद्रा में क्रयशक्ति का संचय नहीं किया जा सकता है.

(2) हिसाब की मुद्रा-

हिसाब की मुद्रा से आशय, उस मुद्रा से होता है जिसमें सभी प्रकार के हिसाब-किताब रखे जाते है. इसी मुद्रा में ऋणों की मात्रा, कीमतों एवं क्रय-शक्ति को व्यक्त किया जाता है. यह आवश्यक नहीं है कि देश की वास्तविक मुद्रा ही हिसाब-किताब की मुद्रा हो. संकटकाल में ये दोनों अलग-अलग हो सकती है. जेसै – प्रथम महायुद्ध के पश्चात् (सन् 1923) जर्मनी में वास्तविक मुद्रा तो मार्क थी, किन्तु हिसाब-किताब की मुद्रा अमेरिकन डालर या फ्रेंक थी.

इसका कारण यह था कि जमर्न मार्क की तलुना में इन मुद्रा ओं का मूल्य अधिक स्थिर थे. प्राय: प्रत्यके देश की वास्तविक मुद्रा तथा हिसाब-किताब की मुद्रा एक ही होती है. जसै – भारत में रूपया और अमेरिका में डालर वास्तविक मुद्रा भी है और हिसाब-किताब की मुद्रा भी.

2. विधि ग्राह्य मुद्रा और ऐच्छिक मुद्रा-

(1) विधि ग्राह्य मुद्रा – 

यह वह मुद्रा है जो भुगतान के साधन के रूप में जनता द्वारा स्वीकार की जाती है. कोर्इ भी व्यक्ति भुगतान के रूप में इसे स्वीकार करने से इन्कार रहीं कर सकता है और यदि वह एसेा करता है, तो सरकार उसको दण्डित कर सकती है. इसीलिए इस विधि गा्रह्य मुद्रा कहते है. विधि गा्र ह्य मुद्रा दो श्रेि णयों में विभाजित किया जा सकता है-

  1. सीमित विधि ग्राह्य मुद्रा – यह वह मुद्रा है जिसको एक निश्चित सीमा तक ही स्वीकार करने के लिए किसी व्यक्ति को बाध्य किया जा सकता है. इस निश्चित सीमा में अधिक मुद्रा लेने से व्यक्ति इन्कार कर दे तो न्यायालय की शरण लेकर उसको बाध्य नही किया जा सकता. जैसे- भारत में 5 पैसे से लेकर 25 पैसे तक के सिक्के केवल 25 रूपये तक ही विधि गा्रह्य है. अत: यदि किसी व्यक्ति को इन सिक्कों की 25 रूपये से अधिक की रजे गारी दी जाती है तो वह इसे अस्वीकार कर सकता है. हाँ वह 25 रूपये तक इन सिक्कों को स्वीकार करने के लिए कानूनी रूप से बाध्य है.
  2. असीमित विधि ग्राह्य मुद्रा – यह वह मुद्रा है जिसे कोर्इ भी व्यक्ति किसी भी सीमा तक (एक बार म) भगु तान के रूप में स्वीकार करने के लिए बाध्य है. यदि कोर्इ व्यक्ति असीमित मात्रा में इसे स्वीकार करने से इन्कार कर दे तो उसके विरूद्ध कानूनी कार्यवाही की जा सकती है तथा उसको दण्डित किया जा सकता है. जसै -भारत में 50 पैसे से लेकर 1000 रूपये तक के नोट असीमित विधि ग्राह्य मुद्रा है.

(2) ऐच्छिक मुद्रा – 

यह वह मुद्रा है जिसे व्यक्ति प्राय: अपनी इच्छा से स्वीकार कर लेता है, किन्तु उसके अस्वीकार करने पर कानून द्वारा उसे इस मुद्रा को स्वीकार करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता. जैसे- चेक, हुण्डियाँ, विनिमय-पत्र इत्यादि ऐच्छिक मुद्रा कहै जा सकते हैं .

3. धातु-मुद्रा और पत्र-मुद्रा-

(1) धातु-मुद्रा – 

यदि मुद्रा धातु की बनी होती है, तो उसे धातु-मुद्रा या सिक्का कहते हैं . प्राचीन समय में धातु-मुद्रा विशेष रूप से चलन में थी. प्रारम्भ में प्राय: धातु के टुकडा़ें पर राजा, महाराजा या नवाब का कार्इे ठप्पा या चिन्ह अंकित कर दिया जाता था, किन्तु वर्तमान में एक निश्चित आकार-प्रकार एवं तौल वाली मुद्रा जिस पर राज्य का वैधानिक चिन्ह अंकित होता है, धातु-मुद्रा कहलाती है. धातु-मुद्रा में कौन-सी धातु कितनी मात्रा में हागेी ? यह कानून द्वारा निधार् िरत किया जाता है. धातु मुद्रा दो प्रकार की होती है.

  1. प्रामाणिक सिक्का – प्रामाणिक सिक्का को प्रधान, पूर्णकाय तथा सवार्गं मुद्रा भी कहते है. ये सिक्के प्राय: चाँदी या सोने के बनाये जाते हैं जो कानून द्वारा निश्चित वजन तथा शुद्धता के होते हैं .
  2. सांकेतिक सिक्का – इसे प्रतीक मुद्रा के नाम से जाना जाता है. सांकेितक मुद्रा , वह मुद्रा होती है जिसका बाह्य मूल्य एवं आतं रिक मूल्य बराबर होता है. यह मुद्रा प्राय: घटिया धातु की बनी होती है.

(2) पत्र-मुद्रा – 

कागजी नोटों के रूप में निगर्मित मुद्रा को ‘पत्र-मुद्रा ‘ कहा जाता है. पत्र-मुद्रा पर किसी सरकारी अधिकारी अथवा केन्द्रीय बकैं के गवर्नर के हस्ताक्षर होते है. अलग-अलग नोटों का आकार एवं रगं अलग-अलग निधार् िरत किया जाता है तथा कागज के नोटों पर नम्बर भी अंकित रहता है. भारत में 1 रूपये का नोट भारत सरकार द्वारा निर्गमित किया जाता है, जिस पर वित्त मंत्रालय के सचिव के हस्ताक्षर होते है. 2, 5, 10, 20, 50, 100, 500 एवं 1000 रूपये के नोटों का निर्गमन भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा किया जाता है. इन नोटों पर रिजर्व बकैं के गवर्नर के हस्ताक्षर होते हैं . पत्र-मुद्रा को दो भागों में बाँटा जा सकता है-

  1. प्रतिनिधि पत्र-मुद्रा तथा
  2. प्रादिष्ट पत्र-मुद्रा.

(अ) प्रतिनिधि पत्र-मुद्रा –जब निगरिमत पत्र-मुद्रा के पीछे ठीक इसके मूल्य के बराबर सोना व चाँदी, आरक्षित निधि रूप में रखे जाते है. तब इस मुद्रा को प्रतिनिधि पत्र-मुद्रा कहा जाता है. निगरिमत पत्र-मुद्रा क्योंिक उस धातु काषेा का प्रतिनिधित्व करती है, जिसके आधार पर पत्र-मुद्रा निर्गमित की जाती है इसलिए इस प्रतिनिधि पत्र-मुद्रा कहते हैं . प्रतिनिधि पत्र-मुद्रा भी दो प्रकार की होती है-

  1. परिवर्तनशील प्रतिनिधि पत्र-मुद्रा- जब किसी देश में पत्र-मुद्रा इस प्रकार जारी की जाती है कि उसको जनता किसी भी समय सोन अथवा चाँदी में परिवर्तित कर सकती है, तब इस प्रकार की मुद्रा का परिवतर्न शील प्रतिनिधि पत्र-मुद्रा कहते हैं . इस प्रकार की गारण्टी दिये जाने पर जनता का विश्वास पत्र-मुद्रा में बना रहता है तथा कवे ल आवश्कयता पड़ने पर ही वह पत्र-मुद्रा को बहुमल्ूय धातुओं में परिवर्तित करती है.
  2. अपरिवर्तनशील प्रतिनिधि पत्र-मुद्रा – जब किसी देश में पत्र-मुद्रा इस प्रकार जारी की जाती है कि सरकार उसे सोने या चाँदी में परिवर्तित करने की कोर्इ गारण्टी नहीं देती है, तब इस प्रकार की मुद्रा को अपरिवतर्न शील प्रतिनिधि पत्र-मुद्रा कहते हैं . दूसरे शब्दों में नोटों को सिक्कों में परिवर्तित करने की कार्इे गारण्टी सरकार द्वारा नहीं दी जाती है. इस प्रकार मुद्रा पूर्णत: सरकार की साख पर आधारित होती है.

निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि प्रतिनिधि पत्र-मुद्रा में जनता का विश्वास होता है, लेकिन यह प्रणाली बेलोचदार एवं खर्चीली होती है क्योंकि बहुमूल्य धातु कोष के अभाव में सरकार नोटों का निगर्म न नहीं कर सकती है तथा देश में मुद्रा की अपयार्प्तता के कारण आथिर्क विकास की योजनाएं क्रियान्वित नहीं हो पाती हैं . इसके अलावा स्वर्ण या रजत का एक विशाल भडांर व्यर्थ में रखना पड़ता है.

(ब) प्रादिष्ट पत्र-मुद्रा – यह भी पत्र-मुद्रा का ही एक रूप है. प्रादिष्ट मुद्रा प्राय: संकटकालीन स्थिति में निर्गमित की जाती है. इसीलिए इसे कभी-कभी संकटकालीन मुद्रा भी कहा जाता है. प्रथम महायुद्ध के प्रारम्भ (सन् 1914) में इसे अस्थायी आधार पर जारी किया जाता था, किन्तु अब यह स्थायी रूप धारण कर चुकी है. प्रादिष्ट मुद्रा के पीछे किसी भी प्रकार का सरु क्षित कोष नहीं रखा जाता है और न ही सरकार पत्र-मुद्रा को धातु में परिवतिर्त करने की गारण्टी ही देती है.

प्रादिष्ट मुद्रा का एक उदाहरण, अमेिरका में गृहयुद्ध के दौरान ग्रीनवैक्स नामक मुद्रा का जारी करना है. इसी प्रकार, प्रथम महायुद्ध के पश्चात् जमर्नी में भी कागजी मार्क मुद्रा जारी की गयी थी जो एक प्रकार की प्रादिष्ट मुद्रा ही थी.

प्रादिष्ट मुद्रा इसलिए अच्छी मानी जाती है क्याेिक इसमें सकंटकालीन परिस्थिति में बहमुल्य धातुओं का कोष रखने की आवश्यकता नहीं होती है. किन्तु जब सरकार इस प्रकार की पत्र-मुद्रा जारी करती है तो इससे अत्यधिक मुद्रा -प्रसार का भय बना रहता है, जिससे अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित होती है.

विदेशी विनिमय के आधार पर मुद्रा का वर्गीकरण-

विदेशी विनिमय के आधार पर मुद्रा को दो भागों में बाँटा जा सकता है-

(1) सुलभ मुद्रा- 

यदि किसी देश की मुद्रा की माँग की तुलना में मुद्रा की पूर्ति अधिक हो और जनता की माँग पर ऋण (मुद्रा) सरलता से उपलब्ध हो रहे हो तो उस देश की मुद्रा को सलु भ मुद्रा कहा जायेगा.

(2) दुर्लभ मुद्रा – 

यदि बाजार में मुद्रा की पूर्ति की तुलना में मागँ में लगातार वृिद्ध होती जा रही हो तो उस मुद्रा को दुर्लभ मुद्रा कहा जाता है.

कीमत अथवा ब्याज के आधार पर मुद्रा का वर्गीकरण-

कीमत अथवा ब्याज के आधार पर मुद्रा को दो भागों में बाँटा जा सकता है-

(1) सस्ती मुद्रा – 

यदि मुद्रा कम कीमत पर अथवा नीची ब्याज की दरों पर ऋण के रूप में उपलब्ध हो रही हाे ताे उसे सस्ती मुद्रा कहा जाता है.

(2) मँहगी मुद्रा – 

यदि मुद्रा बहतु अधिक कीमत पर ऊँची ब्याज दरों पर उपलब्ध हो तो उसे मँहगी मुद्रा कहा जाता है.

आधुनिक मुद्रा के प्रकार

(1) मोबाइल भुगतान – 

21वीं सदी में मोबाइल भुगतान का आगमन हुआ, जिसमें मोबाइल फोन या टैबलेट के जरिए भुगतान किया जा सकता है. एशिया और यूरोप में यह तेजी से बढ़ा है. भीम एप्प, पेटीएम, एप्पल पे, वेनमो और पेपल जैसे एप्स इस प्रकार के भुगतान को आसान बना रहे हैं.

(2) वर्चुअल करेंसी –

यह केवल इलेक्ट्रॉनिक रूप में उपलब्ध होती है और कम्प्यूटर एप्स के माध्यम से संग्रहीत और व्यापार की जाती है. बिटकॉइन इसका प्रमुख उदाहरण है, जो 2009 में शुरू हुई और आज इसकी कीमत अरबों डॉलर में है.

मुद्रा के सिद्धांत (Theories of Currency in Hindi)

  1. स्थिर मूल्य का सिद्धांत: मुद्रा का मूल्य स्थिर होना चाहिए ताकि लोग उस पर भरोसा करें.
  2. लेन-देन का सिद्धांत: मुद्रा का रूप ऐसा होना चाहिए कि वह किसी भी स्थान पर ले जाया जा सके.
  3. विनिमय का सिद्धांत: मुद्रा ऐसी होनी चाहिए कि लोग इसे सामान और सेवाओं के बदले में स्वीकार कर सकें.

मुद्रा की कानूनी मान्यता

मुद्रा का एक महत्वपूर्ण पहलू उसकी कानूनी मान्यता है. सरकार द्वारा जारी की गई मुद्रा को ही ‘कानूनी मुद्रा’ कहा जाता है. इसका मतलब है कि हर व्यक्ति को इसे स्वीकार करना होगा, चाहे वह किसी भी प्रकार का लेन-देन कर रहा हो. अगर कोई व्यक्ति कानूनी मुद्रा को लेने से मना करता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सके, ऐसा प्रावधान हो.

मुद्रा का महत्व

मुद्रा का हमारे जीवन मेंमहत्वपूर्ण है. इसका मुख्य कारण यह है कि इसके बिना व्यापार, उद्योग, सेवा क्षेत्र, शिक्षा आदि का संचालन मुश्किल हो जाएगा. मुद्रा की आवश्यकता के कुछ मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:

  • विनिमय का साधन: हम चीजों की खरीदारी और बिक्री मुद्रा के द्वारा ही करते हैं.
  • मूल्य निर्धारण: चीजों का मूल्य मुद्रा के आधार पर ही तय होता है.
  • भविष्य की योजना: मुद्रा से हम अपने भविष्य के लिए भी पैसे का संचय कर सकते हैं.
  • संपत्ति का संग्रह: मुद्रा का उपयोग संपत्ति के रूप में भी किया जा सकता है.
  • अंतरराष्ट्रीय लेन-देन: विभिन्न देशों के बीच व्यापार और निवेश में मुद्रा ही मुख्य माध्यम होती है.

मुद्रा का भविष्य

वर्तमान दौर में मुद्रा का स्वरूप तेजी से बदल रहा है. डिजिटल मुद्रा, क्रिप्टोकरेंसी जैसे बिटकॉइन और इथेरियम, मोबाइल पेमेंट सिस्टम और डिजिटल वॉलेट भविष्य में मुद्रा का एक बड़ा हिस्सा बन सकते हैं. डिजिटल मुद्रा के आने से नकद मुद्रा का उपयोग धीरे-धीरे घट रहा है.

आने वाले समय में मुद्रा का भविष्य संभवतः निम्नलिखित हो सकता है:

  • डिजिटल मुद्रा का विस्तार: डिजिटल मुद्रा से लेन-देन तेज, सुरक्षित और आसान हो जाएंगे.
  • क्रिप्टोकरेंसी का महत्व: कई देशों में क्रिप्टोकरेंसी को मान्यता मिल रही है और यह भविष्य में एक मान्य मुद्रा का रूप ले सकती है.
  • नकद का कम होना: नकद मुद्रा का प्रयोग भविष्य में कम हो सकता है क्योंकि लोग डिजिटल माध्यमों को प्राथमिकता दे रहे हैं.
  • सरकारी नियंत्रण: भविष्य में सरकारें डिजिटल मुद्रा का नियंत्रण अपने हाथ में रखने का प्रयास करेंगी ताकि इसे सुरक्षित बनाया जा सके.

अंत में (Conclusion)

मुद्रा हमारी आर्थिक गतिविधियों का आधार है. इसके बिना किसी भी समाज की कल्पना करना मुश्किल है. समय के साथ मुद्रा के स्वरूप में काफी परिवर्तन आए हैं, और भविष्य में इसके डिजिटल और आधुनिक स्वरूप और भी अधिक महत्त्वपूर्ण हो सकते हैं. मुद्रा का सही उपयोग और समझ हमें आर्थिक रूप से मजबूत बनाता है. इसलिए हमें इसकी भूमिका और महत्व को समझना बहुत जरूरी है.

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